आज का दिन भारतीय विज्ञापन उद्योग के एक ऐसे नाम को समर्पित है, जिसने अपने काम, सोच और नेतृत्व से इस क्षेत्र पर गहरा असर डाला है- नवरोज धोंडी।
आज का दिन भारतीय विज्ञापन उद्योग के एक ऐसे नाम को समर्पित है, जिसने अपने काम, सोच और नेतृत्व से इस क्षेत्र पर गहरा असर डाला है- नवरोज धोंडी। 'क्रिएटीजीज' (Creatigies) के फाउंडर व मैनेजिंग डायरेक्टर के रूप में, साथ ही कई अन्य उद्यमों के माध्यम से, नवरोज ने न सिर्फ मार्केटिंग की दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई, बल्कि इसे दिशा भी दी।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र रहे नवरोज ने अपने करियर की शुरुआत चार दशक पहले लिंटास (Lintas) से की, जहां वे नौ साल तक रहे। इसके बाद वे भारत की प्रतिष्ठित एजेंसी HTA/ JWT से जुड़े और लगभग पांच वर्षों तक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1995 में, नवरोज धोंडी ने मात्र 30 के दशक में ही ANTHEM का नेतृत्व संभाला और इसे TBWA ANTHEM में बदल दिया। इस बदलाव ने उन्हें भारत के सबसे कम उम्र के CEO में शुमार कर दिया। इसके बाद उन्होंने परसेप्ट ग्रुप जैसी बहुआयामी एजेंसी का संचालन किया और उसे नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
पिछले 22 वर्षों से नवरोज Creatigies के जरिए बतौर उद्यमी सक्रिय हैं। यह एजेंसी भारत में स्पोर्ट्स मार्केटिंग के क्षेत्र में कई क्रांतिकारी प्रयोगों और मीडिया पार्टनरशिप की अगुवा रही है। उनकी सोच ने खेल और ब्रांडिंग के मेल को जिस तरह नया आकार दिया, वह अपने आप में बेमिसाल है।
लेकिन नवरोज की पहचान सिर्फ एक विज्ञापन पेशेवर तक सीमित नहीं है। वे एक कवि, फोटोग्राफर, लेखक, घुमक्कड़, स्पोर्ट्स लवर और फूड प्रेमी भी हैं। उन्होंने कई प्रतिष्ठित प्रकाशनों में समय-समय पर लिखा और विज्ञापन से आगे भी अपनी रचनात्मकता को जिया।
उनका करियर सिर्फ भारत तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने UK, साउथ अमेरिका, श्रीलंका सहित कई देशों में भारतीय ब्रांड्स को इंटरनेशनल पहचान दिलाई। उनकी कामयाबी का राज सिर्फ रणनीति नहीं, बल्कि अलग-अलग संस्कृतियों को समझने और ब्रांड को उस नजर से प्रस्तुत करने में रहा है।
आज जब नवरोज धोंडी अपना जन्मदिन मना रहे हैं, पूरा इंडस्ट्री उन्हें सलाम करता है- एक ऐसे व्यक्तित्व के रूप में जिसने हर मोड़ पर विज्ञापन को नए मायनों में देखा, समझा और गढ़ा।
नवरोज का परिवार छोटा और खूबसूरत है। उनकी पत्नी नीलूफर धोंडी देश की मशहूर F&B उद्यमी हैं, जबकि उनकी बेटी अनाहिता धोंडी, जो एक जानी-मानी शेफ हैं, का जन्मदिन ठीक एक दिन पहले 23 मई को था। अनाहिता एक सफल कॉर्पोरेट वकील से विवाह कर चुकी हैं और उनके बेटे का नाम कुरुष है।
जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएं, एक ऐसे लीजेंड को जो आज भी उतने ही प्रेरणादायक हैं जितने वह पहले थे।
इन्फोमो डिजिटल मीडिया प्राइवेट लिमिटेड (Infomo Digital Media Private Limited) ने अनिमेष कुमार को भारत में अपना नया चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर (CEO) नियुक्त किया है।
इन्फोमो डिजिटल मीडिया प्राइवेट लिमिटेड (Infomo Digital Media Private Limited) ने अनिमेष कुमार को भारत में अपना नया चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर (CEO) नियुक्त किया है। डिजिटल मार्केटिंग और ऐडवर्टाइजिंग जगत में दो दशकों से अधिक अनुभव रखने वाले अनिमेष अब भारत समेत वैश्विक बाजारों में कंपनी की ग्रोथ और इनोवेशन की अगली दिशा तय करेंगे।
अनिमेष डिजिटल रणनीति, मीडिया कंसल्टिंग और टेक्नोलॉजी अपनाने के क्षेत्र में गहरी विशेषज्ञता रखते हैं। गूगल में एजेंसी बिज़नेस लीडर के रूप में अपने पिछले कार्यकाल में उन्होंने WPP जैसी अग्रणी कंपनियों के साथ मजबूत साझेदारियां बनाईं और संयुक्त व्यवसाय योजनाओं के माध्यम से ग्रोथ को गति दी।
डिजिटल कैसल में चीफ ग्रोथ ऑफिसर रहते हुए उन्होंने वैश्विक B2B एजेंसी ऑपरेशन मॉडल तैयार किया और faith-tech स्टार्टअप bhaktvatsal.com की शुरुआत में अहम भूमिका निभाई। इससे पहले वे WPP की Neo Media World के CEO भी रह चुके हैं, जहां उन्होंने ROI आधारित डिजिटल रणनीतियों के ज़रिए उच्च-प्रदर्शन वाली टीमें तैयार कीं, जो डिस्प्ले, एफिलिएट, सर्च और प्रोग्रामेटिक जैसे क्षेत्रों में काम करती थीं।
WPP की Mindshare यूनिट में उन्होंने वियतनाम में हेड ऑफ डिजिटल और मलेशिया में मैनेजिंग डायरेक्टर जैसे अहम पद संभाले। इस दौरान उन्होंने डेटा-आधारित प्लानिंग और टेक्नोलॉजी-प्रेरित बदलावों के ज़रिए बिज़नेस को सफलतापूर्वक स्केल किया और कई अंतरराष्ट्रीय अवॉर्ड भी जीते।
इन्फोमो ग्लोबल के ग्रुप CEO डॉ. आनंद राव ने इस नियुक्ति पर कहा, "हम अनिमेष का स्वागत करते हुए बेहद उत्साहित हैं। डिजिटल कारोबार को स्केल करने में उनकी सिद्ध क्षमता और रणनीतिक दृष्टिकोण हमें एजेंसियों, ब्रैंड्स और SMEs के लिए नए जमाने के AdTech समाधान विकसित करने में मदद करेगा।"
Infomo एक अग्रणी AdTech कंपनी है, जिसकी प्रमुख पेशकशों में टेलीकॉम-आधारित डिटरमिनिस्टिक टार्गेटिंग के साथ DSP और जनरेटिव AI-आधारित मेटा DSP Beki शामिल हैं। ये समाधान एजेंसियों, ब्रैंड्स और छोटे-मध्यम व्यवसायों को सर्च, सोशल और प्रोग्रामेटिक मीडिया पर अपने डिजिटल कैंपेन को प्रभावी ढंग से ऑप्टिमाइज़ करने में सक्षम बनाते हैं।
यह नियुक्ति ऐसे समय पर हुई है जब Infomo वैश्विक बाज़ारों में अपने पांव और मजबूत कर रही है और AI-आधारित, स्केलेबल और प्राइवेसी-कॉम्प्लायंट विज्ञापन समाधानों की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ रही है।
नए टेस्ट कप्तान को आधिकारिक एडिडास जर्सी की बजाय नाइकी का इनरवियर टॉप पहने देखा गया और यहीं से ब्रैंडिंग, कॉन्ट्रैक्ट और क्रिकेटिंग इमेज को लेकर एक बड़ी बहस शुरू हो गई।
हाल ही में जब शुभमन गिल मैदान पर भारत की पारी खेलने उतरे, तो सुर्खियों में उनकी बल्लेबाजी नहीं, बल्कि उनका पहनावा था। नए टेस्ट कप्तान को आधिकारिक एडिडास जर्सी की बजाय नाइकी का इनरवियर टॉप पहने देखा गया और यहीं से ब्रैंडिंग, कॉन्ट्रैक्ट और क्रिकेटिंग इमेज को लेकर एक बड़ी बहस शुरू हो गई।
हालांकि गिल ने इंग्लैंड में चल रही टेस्ट सीरीज के दौरान शानदार पारी खेलकर सबका ध्यान खींचा है।
एडिडास, जिसे भारतीय टीम की किट का एक्सक्लूसिव अधिकार मिला हुआ है और जो हर मैच के लिए ₹75 लाख चुकाता है, इस मामले को हल्के में नहीं ले सकता। भले ही एथलीजर को आधिकारिक जर्सी न माना जाए, लेकिन बीसीसीआई के प्लेयर कॉन्ट्रैक्ट में कथित तौर पर किसी ब्रैंड के टकराव की अनुमति नहीं है। और चूंकि गिल नाइकी के ब्रैंड एंबेसडर हैं, इसलिए सवाल उठना लाजमी था। यह घटना उस समय की याद भी दिलाती है जब सौरव गांगुली को नाइकी हेलमेट के नीचे प्यूमा हेडबैंड पहनने पर जुर्माना भरना पड़ा था।
लेकिन इस ‘कपड़ों की बहस’ से कहीं अधिक अहम है- गिल की तेजी से बढ़ती ब्रैंड वैल्यू।
इस जर्सी विवाद के तुरंत बाद गिल ने ओकली के साथ एक नई एंडोर्समेंट डील साइन की, और वह इसके नए फ्यूचरिस्टिक कैंपेन ‘आर्टिफैक्ट्स फ्रॉम द फ्यूचर’ के चेहरा बने।
सिर्फ 25 साल की उम्र में गिल के पास एक मजबूत ब्रैंड पोर्टफोलियो है। उन्होंने अब तक Nike, Dior, JBL, Gillette, CEAT, BharatPe, MRF, Prime Video India, Tinder India और Flipkart जैसे ब्रैंड्स के साथ काम किया है। उनकी सालाना एंडोर्समेंट कमाई ₹10–12 करोड़ के आसपास आंकी गई है।
शानदार कमाई, कप्तानी का प्रभाव
Sports Dunia के अनुसार शुभमन गिल की कुल अनुमानित नेटवर्थ ₹32–50 करोड़ (करीब $4–6 मिलियन) के बीच है। इसका बड़ा हिस्सा बीसीसीआई के ग्रेड A सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट से आता है, जिससे उन्हें ₹5–7 करोड़ सालाना मिलते हैं, इसके अलावा हर टेस्ट मैच के लिए ₹15 लाख, वनडे के लिए ₹6 लाख और टी20 के लिए ₹3 लाख मैच फीस के रूप में मिलते हैं।
गुजरात टाइटंस की कप्तानी मिलने के बाद उनकी कमाई में और इजाफा हुआ है। 2025 आईपीएल सीजन में उन्हें ₹16.5 करोड़ मिल रहे हैं, यह रकम सिर्फ उनकी क्रिकेटिंग क्षमता ही नहीं, बल्कि लीडरशिप वैल्यू को भी दर्शाती है। गुजरात टाइटंस की ब्रैंड वैल्यू ₹1,185 करोड़ बताई जाती है और गिल की छवि इस वैल्यू से गहराई से जुड़ी हुई है।
ब्रैंड एक्सपर्ट्स की राय
exchange4media से बात करते हुए TheBlurr के COO और को-फाउंडर गोपा मेनन ने कहा, “टेस्ट कप्तान बनने के बाद, अगर गिल नेतृत्व में सफल होते हैं तो उनकी ब्रैंड वैल्यू और बढ़ेगी। अगर वे शानदार प्रदर्शन जारी रखते हैं और भारत को बड़ी जीतों तक पहुंचाते हैं, तो ₹7 करोड़ से ऊपर की एंडोर्समेंट डील्स मिलना तय है।”
मेनन का मानना है कि गिल के पास कई फायदे हैं — वे युवा हैं, तीनों फॉर्मेट में खेलते हैं, और अब एक आईपीएल फ्रेंचाइजी के कप्तान भी हैं। उनकी बल्लेबाजी शैली आकर्षक है और उनकी छवि साफ-सुथरी है, जो हर वर्ग को पसंद आती है। हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा, “कोहली और धोनी जैसे स्तर तक पहुंचने के लिए गिल को मैदान पर लगातार बेहतरीन प्रदर्शन करना होगा और संभवतः किसी आईसीसी ट्रॉफी को जीतकर अपनी विरासत मजबूत करनी होगी।”
सोशल मीडिया पर गिल का प्रभाव
गिल के सोशल मीडिया आंकड़े भी बेहद प्रभावशाली हैं। इंस्टाग्राम पर उनके 1.66 करोड़ फॉलोअर्स हैं, जहां हर पोस्ट पर औसतन 12 लाख लाइक्स और 6,600 कमेंट्स आते हैं। उनके रील्स को औसतन 75 लाख बार देखा जाता है और उनका एंगेजमेंट रेट 7.48% है। उनके ब्रैंडेड इमेज पोस्ट का एंगेजमेंट रेट 0.94% है जबकि 18 ब्रैंडेड रील्स पर यह 0.96% और व्यू रेट 16.63% है।
उनके दर्शकों में 82.28% पुरुष हैं, जिनमें से 95.09% भारत से हैं। उनकी उम्र का अधिकांश हिस्सा 25-34 वर्ष के बीच है और ऑडियंस क्रेडिबिलिटी 80.79% है, जो उन्हें विज्ञापनदाताओं के लिए बेहद भरोसेमंद बनाती है। X (पूर्व में ट्विटर) पर उनके 4.19 लाख फॉलोअर्स हैं और वहां भी औसतन हर पोस्ट पर 25.7K लाइक्स और 730 रीट्वीट्स आते हैं, एंगेजमेंट रेट 6.32% है।
स्टाइल, नरेटिव और निजी जीवन की भूमिका
Rediffusion के एमडी संदीप गोयल ने कहा, “शुभमन स्टाइल और अट्रैक्शन दोनों के मामले में सही दिशा में जा रहे हैं, बिल्कुल विराट कोहली के अंदाज में। उनका ‘अस्किंग प्राइस’ ₹7 करोड़ तक पहुंच चुका है, यानी वह न सिर्फ आ चुके हैं बल्कि स्टाइल के साथ आए हैं।”
आज के क्रिएटर-इकोनॉमी युग में ब्रैंड बनाना सिर्फ लुक्स से नहीं चलता। Idiotic Media के को-फाउंडर संकल्प समंत कहते हैं, “गिल में टैलेंट, यंग एज और एलिगेंस है, लेकिन कोहली-धोनी जैसे स्तर पर पहुंचने के लिए उन्हें नंबर से ज्यादा ‘मॉमेंट्स’, कहानियां और एक लंबा नरेटिव चाहिए।”
समंत ने इस बात पर भी जोर दिया कि एक खिलाड़ी को घर-घर में पहचान दिलाने वाली भावनात्मक कहानियां होती हैं। जब उनसे पूछा गया कि क्या एक पार्टनर होने से गिल के ब्रैंड स्टोरी पर असर पड़ेगा, तो उन्होंने कहा, “अगर ठीक से संभाला जाए तो हां, इससे छवि और विश्वसनीयता दोनों को फायदा मिल सकता है। कोहली-अनुष्का की ब्रैंडिंग, धोनी-साक्षी की फैमिली मैन छवि इसका उदाहरण हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “गिल जैसे जनरेशन Z स्टार के लिए एक रिलेशनशिप उनकी छवि को और गहराई दे सकता है- बशर्ते यह गरिमापूर्ण हो और उनके ब्रैंड के मूल स्वरूप से मेल खाता हो। यह जरूरी नहीं है, लेकिन अगर सही ढंग से पेश किया जाए, तो यह उन्हें 'स्टाइलिश प्रोडिजी' से एक ऐसे 'आइकन' में बदल सकता है, जिसकी जिंदगी लोग देखना चाहें।”
तो भले ही नाइकी इनरवियर ने हलचल मचाई हो, लेकिन यह सिर्फ शुरुआत है। करोड़ों के फॉलोअर्स, करोड़ों की एंडोर्समेंट डील्स और कप्तानी की जिम्मेदारी- शुभमन गिल धीरे-धीरे भारत के अगले ब्रैंड सुपरस्टार बनते जा रहे हैं।
एक्सचेंज4मीडिया से हाल ही में से बातचीत में अभिनेता-निर्माता आमिर खान ने ऐसी क्रिएटिव सोच साझा की, जिसने सिनेमा की सीमाओं से परे जाकर विज्ञापन और क्रिएटिव इंडस्ट्री के भीतर गूंज पैदा कर दी है।
सुनिधि विजय, कॉरेस्पोंडेंट, एक्सचेंज4मीडिया ।।
एक्सचेंज4मीडिया (exchange4media) से हाल ही में से बातचीत में अभिनेता-निर्माता आमिर खान ने ऐसी क्रिएटिव सोच साझा की, जिसने सिनेमा की सीमाओं से परे जाकर विज्ञापन और क्रिएटिव इंडस्ट्री के भीतर गूंज पैदा कर दी है।
आमिर खान ने कहा, “इस क्षेत्र में यदि आप सिर्फ लक्ष्मी की पूजा करेंगे, तो हारेंगे। लेकिन यदि आप सरस्वती का अनुसरण करते हैं, तो लक्ष्मी अपने आप साथ आ जाती हैं।” भारतीय संस्कृति के इस रूपक में निहित है एक सार्वभौमिक सत्य: क्रिएटिव क्षेत्रों में यदि आप सिर्फ पैसे के पीछे दौड़ते हैं, तो मौलिकता खो देते हैं; लेकिन यदि आप उत्कृष्टता के पीछे भागते हैं, तो पैसा भी साथ आता है।
इस विचार ने विज्ञापन इंडस्ट्री के सामने एक अहम सवाल खड़ा कर दिया है- क्या एजेंसियां इतनी हिम्मत कर सकती हैं कि पहले शिल्प और मौलिकता पर ध्यान दें, यह भरोसा रखते हुए कि व्यावसायिक सफलता पीछे-पीछे आएगी?
इस विचार पर प्रतिक्रिया देते हुए DDB Tribal के क्रिएटिव हेड इराज फराज ने कहा कि आमिर खान की बात महज एक दर्शन नहीं, बल्कि विज्ञापन विज्ञान पर आधारित है। “आमिर खान द्वारा कही गई बात, सरस्वती के पीछे भागने पर लक्ष्मी मिलने की, दरअसल DDB के Les Binet द्वारा की गई उस रिसर्च का वैदिक संस्करण है जिसमें यह सिद्ध किया गया है कि जिन अभियानों को क्रिएटिव अवॉर्ड्स मिले, वे बाजार में हिस्सेदारी बढ़ाने में 11 गुना अधिक असरदार होते हैं।”
Talented की फाउंडिंग पार्टनर प्रियंका बोरा ने माना, “ब्रैंड्स के पास परफॉर्मेंस लक्ष्य होते हैं, लेकिन यदि आप सिर्फ ROI को ही साध्य बनाएंगे, तो यह स्क्रिप्ट उलटी लिखने जैसा होगा। शिल्प और मौलिकता कोई अतिरिक्त सजावट नहीं, बल्कि प्रभावशीलता के इंजन हैं।”
बोरा के अनुसार, जो काम संस्कृति को प्रभावित करता है, वही सचमुच “नीडल मूव” करता है। “हमारा काम है कहानी कहने की उस आत्मा को बचाए रखना, चाहे ब्रिफ कितना भी हड़बड़ी वाला हो या लक्ष्य समझौता मांग रहे हों।”
उनकी टीम ने इस दर्शन को अपने आंतरिक सिस्टम में भी शामिल कर लिया है। “हमारी स्ट्रैटेजी टीम ने एक रेटिंग मॉडल बनाया है जो महत्वाकांक्षी आइडिया और प्रभावशीलता के बीच संतुलन रखता है। यानी हम सरस्वती और लक्ष्मी- दोनों के पीछे जा रहे हैं।”
Dot Media के को-फाउंडर और CEO शुबम सिंगल का मानना है कि जब आप इरादे, मौलिकता और गहरी कहानी के साथ शुरुआत करते हैं, तो व्यावसायिक नतीजे अपने आप आते हैं। “हमारा सबसे सफल काम हमेशा उस जगह से शुरू होता है जहां प्रामाणिकता होती है, एल्गोरिद्म नहीं। यही हमारे ब्रैंड की साख बनाता है और वह साख अल्पकालिक जुगाड़ से कहीं आगे जाती है।”
Gozoop Creative की वाइस प्रेसिडेंट ब्रैंड कम्युनिकेशन जान्हवी अय्यर ने विज्ञापन में शिल्प की परिभाषा स्पष्ट करते हुए कहा, “फिल्मकार या लेखक के विपरीत, जहां कहानी बिकती है, विज्ञापन में हम बेचने के लिए कहानी कहते हैं। यह एक छोटा सा फर्क है, लेकिन उद्देश्य में बेहद बड़ा।”
उनके मुताबिक, आज के डेटा और टार्गेट-ड्रिवन युग में ROI की परिभाषा को फिर से समझने की जरूरत है। “क्रिएटिविटी कोई विलासिता नहीं है, यह वह हथियार है जिससे हम डिलीवेरेबल्स और ROI को साधते हैं।”
Response की डायरेक्टर राशी रे ने इस विचार को और मजबूती से रखा, “हम नहीं कहते कि क्रिएटिविटी को कॉमर्स से ऊपर रखा जाए, लेकिन इसे समकक्ष जरूर माना जाए। जब तक आप किसी विज्ञापन या कलाकृति के व्यवसायिक मूल्य को नहीं समझते, तब तक आप उसकी कीमत नहीं तय कर सकते।”
उनके अनुसार, कोई भी विज्ञापन तब तक मूल्य नहीं जोड़ सकता जब तक वह असाधारण न हो। “हम बिजनेस समस्याएं लेते हैं और उन्हें अपनी क्रिएटिविटी से हल करने की कोशिश करते हैं।”
डॉट की टीम का भी यही मानना है। सिंगल कहते हैं, “हम अंदर ही अंदर लगातार इसी पर चर्चा करते हैं। जब आप फाउंडर्स और लीडरशिप के साथ काम करते हैं, तो ‘कंटेंट परफॉर्म करना चाहिए’ का प्रेशर रहता है—लाइक्स, रीच, कन्वर्जन। लेकिन क्रिएटिविटी ही वह सुर है जो सब कुछ जोड़ती है।”
उनके मुताबिक, टीम रणनीति और आवाज को इस तरह मिलाती है कि वह असली लगे। वे मीट्रिक्स के लिए नहीं, बल्कि ऐसे कंटेंट के लिए काम करते हैं जो ब्रैंड की नीयत और पहचान को दर्शाता हो। “इससे बनता है दीर्घकालिक विश्वास, न कि तात्कालिक ट्रेंड।”
हालांकि सरस्वती में विश्वास का मतलब यह नहीं कि लक्ष्मी को नजरअंदाज किया जाए। फराज कहते हैं, “इसको बाइनरी दृष्टि से नहीं देखना चाहिए—परफॉर्मेंस मार्केटिंग बनाम स्टोरीटेलिंग नहीं, बल्कि परफॉर्मेंस मार्केटिंग और स्टोरीटेलिंग दोनों।” उनके मुताबिक, ब्रैंड की सेहत के लिए 60% संचार ब्रैंड प्रेम के लिए और 40% तत्काल ध्यान आकर्षित करने के लिए होना चाहिए।
अय्यर इसे और स्पष्ट करती हैं: “कहानी कहने की भावना हर विज्ञापनकर्मी में बसी होती है। चाहे वह 6 शब्द की कॉपी हो, 30 सेकंड की रील या पूरी विज्ञापन फिल्म—हर एसेट को प्रभावशाली और प्रेरणादायक बनाना हमारा लक्ष्य है।”
उनके मुताबिक, यह कोई विकल्प नहीं बल्कि एक अभ्यास है, जो सीनियर से लेकर नए जॉइन करने वालों तक की ट्रेनिंग, अपस्किलिंग और प्रेरणा सत्रों में लगातार शामिल रहता है। “हम मानते हैं कि बॉक्स को तोड़ने का एक अलग तरीका हमेशा होता है।”
राशी रे का कहना है कि सरस्वती और लक्ष्मी- दोनों के विश्वास के बीच का संतुलन ही काम को जीवंत बनाता है। “यह क्रिएटिविटी को कॉमर्स से ऊपर रखने का नहीं, बल्कि दोनों को उनके-अपने स्थान पर सम्मान देने का मामला है। और समझने का कि किस समय किसे प्राथमिकता देनी है।”
यह द्वैत ही बार-बार उभरता है। सिंगल कहते हैं, “हम उन कहानियों पर ध्यान देते हैं जिनका कोई दर्शक हो—सिर्फ दिखावे या सुंदरता के लिए नहीं। हमारा उद्देश्य सबसे परफेक्ट कंटेंट बनाना नहीं, बल्कि वह बनाना है जो सच्चा हो और असर डाले। और यही सबसे ज्यादा काम करता है।”
फराज का अंतिम निष्कर्ष: “मार्केटिंग टीमों को बजट का इस्तेमाल दोनों (स्टोरीटेलिंग और परफॉर्मेंस) पर करना चाहिए। और क्रिएटिव लोगों को समझना चाहिए कि कब कहानी को आगे बढ़ाना है और कब उसे सरल और प्रभावशाली बनाकर कहना है।”
आमिर खान की एक पंक्ति ने विज्ञापन की दुनिया को फिर यह याद दिलाया है कि क्रिएटिविटी सिर्फ पुरस्कारों की नहीं, व्यवसाय की भी जननी हो सकती है यदि उसमें आत्मा हो।
दिल्ली हाई कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद को अपने उन विज्ञापनों को हटाने का निर्देश दिया है जो डाबर के च्यवनप्राश उत्पाद को कथित तौर पर बदनाम करते हैं।
दिल्ली हाई कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद को अपने उन विज्ञापनों को हटाने का निर्देश दिया है जो डाबर के च्यवनप्राश उत्पाद को कथित तौर पर बदनाम करते हैं। यह अंतरिम आदेश जस्टिस मिनी पुष्कर्णा ने डाबर इंडिया लिमिटेड द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया।
डाबर ने अदालत में आरोप लगाया कि पतंजलि द्वारा प्रसारित एक विज्ञापन भ्रामक और मानहानि करने वाला है, जो उसके प्रमुख उत्पाद ‘डाबर च्यवनप्राश’ को लक्षित करता है। इस विज्ञापन में पतंजलि के संस्थापक बाबा रामदेव दिखाई देते हैं और अन्य च्यवनप्राश ब्रैंड्स की प्रामाणिकता पर सवाल उठाते हैं। विज्ञापन में एक लाइन है: “जिनको आयुर्वेद और वेदों का ज्ञान नहीं, चरक, सुश्रुत, धन्वंतरि और च्यवनऋषि की परंपरा में 'ओरिजिनल' च्यवनप्राश कैसे बना पाएंगे?”
डाबर का कहना है कि यह सीधा हमला उनके ब्रैंड पर है।
डाबर ने इस विज्ञापन में 40 औषधियों से बने च्यवनप्राश को 'साधारण' कहे जाने पर आपत्ति जताई है। डाबर का दावा है कि उनका च्यवनप्राश भी 40 से अधिक जड़ी-बूटियों से निर्मित है और इस प्रकार की भाषा से उपभोक्ताओं में भ्रम पैदा होता है। डाबर फिलहाल च्यवनप्राश के बाजार में 60% से अधिक हिस्सेदारी के साथ अग्रणी ब्रैंड है।
कंपनी की ओर से दायर याचिका में कहा गया कि यह विज्ञापन तीन स्तरों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है—
पतंजलि के अपने फॉर्मूलेशन को गलत तरीके से प्रस्तुत करता है,
डाबर की आयुर्वेदिक विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है और
डाबर के उत्पाद को हीन बताने की कोशिश करता है।
डाबर ने यह भी तर्क दिया कि ऐसे भ्रामक संदेश उपभोक्ताओं को गुमराह कर सकते हैं और आयुर्वेदिक स्वास्थ्य उत्पादों के प्रति विश्वास को कमजोर कर सकते हैं, जो ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के तहत कड़े मानकों के अधीन हैं। उन्होंने च्यवनप्राश को एक शास्त्रीय आयुर्वेदिक औषधि बताया जो प्राचीन ग्रंथों के अनुसार विशेष नियमों के तहत तैयार की जाती है।
कंपनी ने यह भी चिंता जताई कि पतंजलि का यह विज्ञापन यह संकेत देता है कि गैर-पतंजलि उत्पादों का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है, जो जनहित के लिए खतरनाक संदेश है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, डाबर ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट में पतंजलि के खिलाफ पहले से लंबित अवमानना मामलों का भी हवाला दिया, जिसमें इस तरह के विज्ञापन अभियानों को लेकर पहले भी आपत्ति जताई जा चुकी है। उन्होंने पतंजलि पर ऐसे प्रचारों की "दोहराई जा रही रणनीति" अपनाने का आरोप लगाया।
फिलहाल, कोर्ट के आदेश के बाद पतंजलि को ऐसे सभी विज्ञापन हटाने होंगे जो डाबर के उत्पाद को सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से नुकसान पहुंचाते हैं।
फेसबुक और इंस्टाग्राम पर अब कोई भी फाइनेंशियल विज्ञापन तभी चल पाएगा जब वह भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) से सत्यापित होगा।
फेसबुक और इंस्टाग्राम पर अब कोई भी फाइनेंशियल विज्ञापन तभी चल पाएगा जब वह भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) से सत्यापित होगा। मेटा ने यह नई गाइडलाइन हाल ही में जारी की है, जिसका मकसद गुमराह करने वाले वित्तीय प्रचारों पर लगाम कसना और खुदरा निवेशकों को अनियमित 'फिनफ्लुएंसर्स' से बचाना है।
मेटा के नए नियमों के तहत, म्यूचुअल फंड्स, स्टॉक सलाह, ट्रेडिंग कोर्स या रियल मनी गेमिंग जैसे किसी भी निवेश-संबंधी प्रचार को तभी मंजूरी मिलेगी जब विज्ञापनदाता की SEBI-पंजीकृत ईमेल आईडी और मोबाइल नंबर SEBI के इंटरमीडियरी पोर्टल में अपडेट और सत्यापित हों। यह प्रक्रिया मेटा द्वारा जांची जाएगी और तभी विज्ञापन को लाइव किया जा सकेगा।
नए नियम 31 जुलाई 2025 से प्रभाव में आएंगे। हालांकि, सत्यापन की प्रक्रिया 26 जून से ही चरणबद्ध तरीके से शुरू कर दी गई है। मेटा का लक्ष्य है कि 28 जुलाई 2025 तक ये वेरिफिकेशन टूल्स दुनियाभर के सभी योग्य विज्ञापनदाताओं को उपलब्ध हो जाएं। किसी भी विज्ञापनदाता को यह प्रक्रिया पूरी करने के लिए पात्रता मिलने के बाद कम से कम एक महीने का समय दिया जाएगा।
SEBI, मेटा और गूगल जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहता है कि केवल वैध और जवाबदेह वित्तीय संस्थान ही ऑनलाइन विज्ञापन कर सकें। इसका उद्देश्य न केवल भ्रामक निवेश सलाह को रोकना है, बल्कि निवेशकों के भरोसे को भी मजबूत करना है।
यूरोपीय यूनियन में मेटा (Meta) द्वारा लागू किए गए “पे ऑर कंसेंट” (pay or consent) विज्ञापन मॉडल पर एक बार फिर नियामकों की नजर टिकी है।
यूरोपीय यूनियन में मेटा (Meta) द्वारा लागू किए गए “पे ऑर कंसेंट” (pay or consent) विज्ञापन मॉडल पर एक बार फिर नियामकों की नजर टिकी है। यूरोपीय आयोग ने 27 जून को कहा कि कंपनी ने डिजिटल मार्केट्स एक्ट (DMA) के अनुपालन में अब तक सीमित बदलाव ही किए हैं और यह मॉडल अभी भी कानून की शर्तों को पूरा नहीं करता दिखता।
नवंबर 2023 में मेटा ने यूरोप में यह मॉडल पेश किया था, जिसमें यूजर्स को दो विकल्प दिए गए, या तो वे विज्ञापन-मुक्त अनुभव के लिए शुल्क चुकाएं या ट्रैकिंग की अनुमति देकर मुफ्त में विज्ञापन-समर्थित सेवा का लाभ लें। लेकिन आयोग का कहना है कि यह संशोधित मॉडल यूजर्स को “वास्तविक विकल्प” नहीं देता।
आयोग ने मेटा को अपनी प्रारंभिक राय से अवगत कराया है कि कंपनी DMA की शर्तों का पूरी तरह से पालन नहीं कर रही है और इसे बदलने की आवश्यकता है। यदि मेटा इन चिंताओं का समाधान नहीं करता, तो उसे वैश्विक औसत दैनिक टर्नओवर का 5% तक प्रतिदिन जुर्माना देना पड़ सकता है।
आयोग के प्रवक्ता ने बताया कि DMA के तहत मेटा जैसी ‘गेटकीपर’ कंपनियों को विभिन्न सेवाओं से प्राप्त व्यक्तिगत डेटा को जोड़ने से पहले यूजर्स से सहमति लेनी होती है। अगर कोई उपयोगकर्ता सहमति नहीं देता, तो भी कंपनी को ऐसा विकल्प देना चाहिए जो बिना पर्सनल डेटा प्रोसेसिंग के समान सेवा उपलब्ध कराए। लेकिन मेटा का मौजूदा सब्सक्रिप्शन मॉडल इस मानदंड पर खरा नहीं उतरता, क्योंकि यह यूजर्स को कम निजीकरण वाली लेकिन फिर भी मुफ्त सेवा का विकल्प नहीं देता।
इस पर मेटा ने अपनी स्थिति का बचाव किया है। कंपनी ने कहा है कि वह DMA के अनुपालन के लिए प्रतिबद्ध है और पूरी प्रक्रिया में नियामकों के साथ संवाद करती रही है। मेटा के प्रवक्ता ने दावा किया कि उसका “नो-ऐड सब्सक्रिप्शन मॉडल” यूरोप की सर्वोच्च अदालत के दिशा-निर्देशों का पालन करता है और DMA के अनुरूप है। मेटा ने यह भी कहा कि वह आयोग के साथ रचनात्मक संवाद जारी रखेगा और उसका मानना है कि उसका मॉडल यूजर्स को सार्थक विकल्प देता है।
यह विवाद न केवल यूरोप, बल्कि वैश्विक डिजिटल विज्ञापन व्यवस्था, खासकर भारत के लिए भी प्रासंगिक है। भले ही भारत ने अब तक ऐसे नियम नहीं लागू किए हैं, लेकिन देश डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट और प्रस्तावित डिजिटल कॉम्पिटिशन एक्ट के ज़रिए डेटा सुरक्षा और गोपनीयता के क्षेत्र में सख्त कानूनों की ओर बढ़ रहा है। यूरोपीय मामला यह दर्शाता है कि कैसे नियामक एजेंसियां यूजर्स के अधिकारों की रक्षा के लिए सख्त कार्रवाई कर सकती हैं और डिजिटल कंपनियों के बिजनेस मॉडल को दिशा दे सकती हैं।
फिलहाल मेटा और यूरोपीय आयोग के बीच बातचीत जारी है, लेकिन यदि कंपनी अपने मॉडल में और बदलाव नहीं करती, तो उस पर भारी वित्तीय दंड लग सकता है। इस पूरे मामले में आयोग का अंतिम निर्णय आने वाले महीनों में आने की उम्मीद है।
जिस दौर में डिजिटल को प्राथमिकता दी जाती है, उस दौर में कभी अस्त होता माना जा रहा प्रिंट और रेडियो अब एक अप्रत्याशित वापसी कर रहे हैं
चहनीत कौर, सीनियर कॉरेस्पोंडेंट, एक्सचेंज4मीडिया ।।
जिस दौर में डिजिटल को प्राथमिकता दी जाती है, उस दौर में कभी अस्त होता माना जा रहा प्रिंट और रेडियो अब एक अप्रत्याशित वापसी कर रहे हैं और इस वापसी की अगुवाई कर रहे हैं लाइफस्टाइल और कपड़ों से जुड़े ब्रैंड्स (अपैरल ब्रैंड्स)।
Excellent Publicity नामक विज्ञापन एजेंसी की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, इस सेक्टर ने 2024 में प्रिंट पर विज्ञापन खर्च में 21% और रेडियो पर 12% की बढ़ोतरी की है। वहीं टीवी और डिजिटल विज्ञापन खर्च में 2022 की तुलना में क्रमशः 59% और 71% की भारी गिरावट देखी गई है। यह बदलाव इस ओर इशारा करता है कि ब्रैंड अब रणनीतिक रूप से पारंपरिक मीडिया की ओर लौट रहे हैं, जो ट्रस्ट, अटेंशन और ब्रैंड स्टोरीटेलिंग देने में आज भी असरदार हैं, खासकर एक बिखरे हुए डिजिटल परिदृश्य में।
रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि 2024 में इस कैटेगरी में 1,860 से अधिक विज्ञापनदाता केवल प्रिंट के माध्यम से ही सक्रिय थे, जो 2023 के मुकाबले एक बड़ा उछाल है।
TAM AdEx के आंकड़े भी इस ट्रेंड की पुष्टि करते हैं। 2024 में लाइफस्टाइल और अपैरल विज्ञापन वॉल्यूम में प्रिंट की हिस्सेदारी 55% रही। इसके अलावा 1,500 से अधिक नए ब्रैंड्स ने पहली बार प्रिंट के जरिए विज्ञापन किया, जिससे यह साबित होता है कि यह माध्यम अब भी प्रभावी और विस्तारशील है।
प्रिंट पर लौटे भरोसे की वजह क्या है?
Condé Nast India के मैनेजिंग डायरेक्टर संदीप लोढ़ा ने बताया, “हां, हमने इन कैटेगरीज में जबरदस्त ग्रोथ देखी है। विज्ञापन 25-30% की रेंज में बढ़ा है। हमारे विज्ञापनदाता हमारी प्लेटफॉर्म्स का उपयोग प्रीमियम, समझदार और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध ऑडियंस तक पहुंचने के लिए कर रहे हैं।”
उनके मुताबिक, यह बदलाव केवल रणनीतियों में बदलाव नहीं, बल्कि प्रिंट ब्रैंड्स के साथ जुड़े भरोसे की वजह से हो रहा है। “ब्रैंड ऐसे प्लेटफॉर्म चुन रहे हैं जो सही ऑडियंस, उच्च विश्वास, अधिक ध्यान और सांस्कृतिक प्रभाव देते हैं। चाहे वह प्रिंट की अथॉरिटी हो या डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की पहुंच और प्रभाव, हम ऐसा माहौल देते हैं जिसमें ब्रैंड्स दिखते, सुने जाते और याद रखे जाते हैं।”
Sakal Media Group के CEO उदय जाधव ने भी इस सोच का समर्थन करते हुए बताया, “पिछले दो वर्षों में लाइफस्टाइल और अपैरल ब्रैंड्स के प्रिंट में आने की संख्या में बड़ा उछाल आया है। 2024 में Sakal को डबल डिजिट ग्रोथ मिली है। यह नए विज्ञापनदाताओं के बाजार में आने से संभव हुआ है। प्रिंट विज्ञापन लग्जरी ब्रैंड्स को किफायती दर पर लक्षित ऑडियंस तक पहुंचाने में सक्षम हैं। कोविड के बाद उपभोक्ता अपने जीवन को खुलकर जीना चाहते हैं और लग्जरी उत्पादों पर खर्च करने के लिए तैयार हैं।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि डिस्काउंट-आधारित और वैल्यू-ड्रिवन फॉर्मैट्स ने इस वृद्धि में अहम भूमिका निभाई है। “सेल्स प्रमोशंस, डिस्काउंट बेस्ड विज्ञापन, और ‘बाय वन गेट वन’ जैसी स्कीमें कीमत-संवेदनशील ग्राहकों को आकर्षित कर रही हैं। BMW, Mercedes, iPhone और Rado जैसे लग्जरी ब्रैंड्स भी अब नए बाजारों की ओर बढ़ रहे हैं और Sakal के साथ विज्ञापन कर रहे हैं और परिणामों से संतुष्ट हैं।”
माइग्रेशन ट्रेंड्स भी इसके पीछे एक बड़ी वजह मानी जा रही है। जाधव ने बताया, “पिछले पांच वर्षों में माइग्रेशन रेट में बढ़ोतरी हुई है। गांवों से लोग शहरों की ओर आ रहे हैं और अपने साथ ढेरों आकांक्षाएं भी ला रहे हैं। मेट्रो में बसने के बाद वे नई जीवनशैली अपनाते हैं- अच्छी गाड़ियां, ब्रैंडेड कपड़े, जूते, गैजेट्स आदि। इससे रिटेल उत्पादों की मांग तेज होती है और प्रिंट विज्ञापन ब्रैंड्स को उनके निवेश पर बेहतर रिटर्न दे रहा है।”
दक्षिण भारत में सबसे तेज प्रिंट वापसी
हालांकि देशभर में प्रिंट की वापसी हो रही है, लेकिन लाइफस्टाइल और अपैरल कैटेगरी में सबसे तेज उभार दक्षिण भारत में देखने को मिला है। 2024 में दक्षिण भारत की प्रकाशनों की हिस्सेदारी इस कैटेगरी के कुल विज्ञापन खर्च में 37% रही, जबकि उत्तर भारत 31% पर रहा। ईनाडु, मलयाला मनोरमा, डेली थांती, द हिंदू और टाइम्स ऑफ इंडिया के क्षेत्रीय संस्करणों ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई।
उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि दक्षिण भारतीय बाजार पारंपरिक रूप से ब्रैंड लॉयल्टी और फैशन-रिटेल कैटेगरी के प्रति अधिक जुड़ाव दिखाते हैं, जिससे वे प्रिंट अभियानों के लिए उपजाऊ जमीन साबित हो रहे हैं।
एक इंडस्ट्री सूत्र ने बताया, “दक्षिण भारत में आज भी प्रिंट एक आदत है। हैदराबाद, कोच्चि और चेन्नई जैसे शहरों में सुबह का अख़बार अब भी खोज और ख़रीद के संकेतों का भरोसेमंद जरिया है।”
ब्रैंड्स ‘टारगेटिंग’ की जगह अब ‘टैन्जिबिलिटी’ क्यों चुन रहे हैं?
डिजिटल मीडिया ने जहां रिच, टारगेटिंग और रीयल-टाइम मैट्रिक्स का वादा किया था, वहीं अब ऑडियंस अटेंशन में बिखराव, ब्रैंड सेफ्टी की चिंताएं और ओवरसैचुरेशन की थकावट ने कई ब्रैंड्स को अपनी रणनीति पर फिर से विचार करने को मजबूर कर दिया है।
UNIQLO India की मार्केटिंग डायरेक्टर निधि रस्तोगी ने कहा, “खासतौर से हमारे लिए, जहां हम अपने प्रोडक्ट्स की ज्यादा जानकारी दिखाना चाहते हैं, प्रिंट इस संदेश को प्रभावी तरीके से पहुंचाने में मदद करता है।”
उनकी बात से Titan Ltd के हैंडबैग्स डिविजन की बिजनेस हेड कंवलप्रीत वालिया भी सहमत हैं। उन्होंने कहा, “क्लियर मैसेजिंग और कैप्टिव अटेंशन के लिए प्रिंट बेहतरीन है। जब हम किसी खास शहर में जाते हैं और ब्रैंड की सारी जानकारी- एड्रेस, विजुअल्स, स्टोरी पहुंचानी होती है, तब प्रिंट जादू कर देता है।”
उन्होंने कहा, “यह घर में रहता है, आप इसे उठाते हैं, पढ़ते हैं और यह पूरा दिन आपकी आंखों के सामने बना रहता है, यही तो प्रिंट की ताकत है।”
इवेंट सीजन में भी प्रिंट की बढ़ती अहमियत
Excellent Publicity की रिपोर्ट यह भी बताती है कि प्रिंट में विज्ञापन का शिखर आमतौर पर IPL, ICC T20 वर्ल्ड कप और ICC ODI वर्ल्ड कप जैसे बड़े इवेंट्स के दौरान आता है, जो परंपरागत रूप से टीवी और डिजिटल विज्ञापनों का गढ़ माने जाते हैं। ब्रैंड्स इस अवसर का लाभ उठाकर पाठकों के उत्सव और खर्च करने के मूड में अपनी ब्रैंड इमेजिंग को मजबूत करते हैं।
एक उद्योग सूत्र ने बताया, “न्यूजपेपर में स्थिर, विजुअली रिच विज्ञापन और इवेंट हाइप का यह हाइब्रिड पैटर्न ज्वैलरी, फैशन और एथनिक वियर जैसे सेगमेंट्स के लिए खासतौर से कारगर साबित हुआ है।”
उन्होंने आगे कहा, “ब्रैंड्स वापस इसलिए नहीं आ रहे क्योंकि वे पुराने समय को याद कर रहे हैं, बल्कि इसलिए क्योंकि वे प्रैक्टिकल हैं। डिजिटल का ROI अब कई लाइफस्टाइल कैटेगरीज के लिए स्थिर हो चुका है। प्रिंट उन्हें स्पेस, गंभीरता और स्थायित्व देता है। 15 सेकंड की दुनिया में एक मिनट की पढ़ाई ही लग्जरी बन जाती है और लग्जरी वही चीज है जिससे ये ब्रैंड जुड़ना चाहते हैं।”
अस्थायी रुझान नहीं, बल्कि दीर्घकालिक रणनीति
विशेषज्ञों का मानना है कि यह कोई एकबारगी घटना नहीं है, बल्कि एक दीर्घकालिक हाइब्रिड रणनीति का हिस्सा है, जिसमें पारंपरिक मीडिया (खासतौर से फैशन, लग्जरी और लाइफस्टाइल) से जुड़े सेगमेंट्स में अपनी हिस्सेदारी फिर से हासिल कर रहा है।
इंडस्ट्री से जुड़े एक सूत्र के शब्दों में, “प्रिंट न तो डिजिटल की जगह लेने वाला है और न ही टीवी की, लेकिन वहां जहां विश्वसनीयता, सांस्कृतिक जुड़ाव और कंटेंट-आधारित ब्रैंड स्टोरीटेलिंग मायने रखती है, वहां इसका बजट हिस्सा अब फिर से बढ़ रहा है।”
जब उपभोक्ता डिजिटल भीड़ से थक रहे हों और ब्रैंड फिर से ठहराव और गहराई वाली कहानी कहने की ताकत को पहचान रहे हों, तब प्रिंट केवल जिंदा नहीं है, फल-फूल रहा है। और लाइफस्टाइल और अपैरल की दुनिया में, यह शायद आज का सबसे बोल्ड फैशन स्टेटमेंट है।
इनमोबी (InMobi) ने अपने विज्ञापन व्यवसायों की कमान संभालने के लिए कुणाल नागपाल को चीफ बिजनेस ऑफिसर (CBO) नियुक्त करने की घोषणा की है।
इनमोबी (InMobi) ने अपने विज्ञापन व्यवसायों की कमान संभालने के लिए कुणाल नागपाल को चीफ बिजनेस ऑफिसर (CBO) नियुक्त करने की घोषणा की है। यह नई भूमिका कंपनी की विज्ञापन पहल को और अधिक सुदृढ़ और संगठित करने की दिशा में एक अहम कदम मानी जा रही है। कुणाल को इनमोबी के विविध विज्ञापन पोर्टफोलियो—जैसे कि जेनरेटिव एआई-आधारित इमर्सिव कॉमर्स प्लेटफॉर्म Glance AI, InMobi Global Exchange और InMobi DSP की जिम्मेदारी दी गई है।
कंपनी ने विज्ञापन क्षेत्र में एकीकृत Go-To-Market (GTM) रणनीति के साथ आगे बढ़ने और विभिन्न क्षेत्रों में अपने ग्राहकों व पार्टनर्स को बेहतर अनुभव प्रदान करने की योजना बनाई है। बदलते विज्ञापन परिदृश्य में इनमोबी एक सशक्त और गतिशील ब्रांड पहचान के साथ आगे बढ़ रही है।
इनमोबी एडवरटाइजिंग के को-फाउंडर और सीईओ अभय सिंघल ने कहा, “हम एक ऐसे परिवर्तनशील दौर में हैं जहाँ हमारी टीम को और अधिक संगठित, मजबूत और बाजार की जरूरतों के अनुरूप ढालना जरूरी हो गया है। सभी प्रोडक्ट लाइनों में हमारी विज्ञापन GTM रणनीति को केंद्रीकृत करना हमारी विकास गति को बनाए रखने के लिए बेहद अहम है। इनमोबी एक्सचेंज में कुणाल की सिद्ध नेतृत्व क्षमता और गहन समझ उन्हें इस पहल के लिए आदर्श नेता बनाती है।”
कुणाल नागपाल ने बीते पांच वर्षों में InMobi Exchange को एक अग्रणी पूर्ण-फनल मोबाइल सेल-साइड प्लेटफॉर्म के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने इसे मोबाइल और इन-ऐप विज्ञापन से आगे बढ़ाकर वैश्विक विज्ञापन परिदृश्य में प्रमुख खिलाड़ी बना दिया।
अपने नए पद में कुणाल Glance जैसे प्रमुख कॉमर्स-इंस्पिरेशन प्लेटफॉर्म के मुद्रीकरण प्रयासों की अगुवाई करेंगे। साथ ही, InMobi Exchange, InMobi DSP और कंपनी के फर्स्ट-पार्टी विज्ञापन प्लेटफॉर्म के एकीकरण का भी नेतृत्व करेंगे। इन सभी संसाधनों का यह समन्वय इनमोबी को वैश्विक बाजार में मार्केटर्स के लिए अधिक व्यापक और प्रभावी समाधान प्रदान करने में सक्षम बनाएगा।
अपनी नियुक्ति पर प्रतिक्रिया देते हुए कुणाल नागपाल ने कहा, “विज्ञापन की परिभाषा को नवाचार के जरिये फिर से गढ़ने के लिए मजबूत नेतृत्व और साहसी रणनीति की जरूरत होती है। मैं इस चुनौती को अपनाने और अपनी शानदार टीमों के साथ मिलकर ग्राहकों और साझेदारों के लिए और भी ज्यादा मूल्य उत्पन्न करने के लिए उत्साहित हूं।”
Dentsu India ने औपचारिक रूप से स्वीकार किया है कि उसने फरवरी 2024 में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) के समक्ष Leniency Framework के तहत खुद पहल करते हुए संपर्क किया था।
भारत की विज्ञापन इंडस्ट्री को प्रभावित कर सकने वाले एक अहम घटनाक्रम में Dentsu India ने औपचारिक रूप से स्वीकार किया है कि उसने फरवरी 2024 में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) के समक्ष Leniency Framework के तहत खुद पहल करते हुए संपर्क किया था। इस तरह Dentsu ऐसी पहली एजेंसी बन गई है जिसने मीडिया बाइंग में कथित कार्टेल गठजोड़ की चल रही जांच में अपनी भूमिका को सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है।
“बदलाव लाने का विकल्प चुना”
'एक्सचेंज4मीडिया' के साथ साझा किए गए एक बयान में Dentsu India ने कहा, “हम देश की अग्रणी एजेंसी नेटवर्क्स में से एक हैं और इसी के साथ ईमानदारी व जवाबदेही से काम करने की जिम्मेदारी आती है। हमारे पास दो विकल्प थे- चुप रहना या बदलाव की दिशा में पहल करना। हमने बदलाव को चुना।”
गौरतलब है कि फरवरी 2024 में CCI ने कई बड़ी ऐड एजेंसियों पर छापेमारी की थी, जिसके बाद इंडस्ट्री में व्यापक अटकलें और सघन जांच का दौर शुरू हो गया था। अब Dentsu की ओर से मिली पुष्टि इस ओर इशारा करती है कि कंपनी ने स्वेच्छा से आयोग से संपर्क किया और सहयोग के बदले दंड में छूट पाने की पहल की, जो भारतीय प्रतिस्पर्धा कानून के तहत मान्य है।
“बाहर के दबाव में नहीं, खुद की मंशा से किया यह कदम”
Dentsu के बयान में कहा गया, “फरवरी 2024 में हमने CCI से Leniency Framework के अंतर्गत स्वतः संपर्क किया। यह किसी बाहरी दबाव की प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि इंडस्ट्री के भीतर से बदलाव को समर्थन देने का निर्णय था।”
अंदरूनी नियंत्रण और पारदर्शिता के उपाय
Dentsu India ने बताया कि उन्होंने अपनी ओर से कई ठोस बदलाव भी लागू किए हैं — जैसे सख्त ऑडिट प्रक्रिया, मजबूत गवर्नेंस और कड़े आंतरिक नियंत्रण। “हम अपने क्लाइंट्स के हितों की रक्षा के लिए पारदर्शिता, कार्रवाई और जवाबदेही के जरिए विश्वास निर्माण के प्रति प्रतिबद्ध हैं,” कंपनी ने कहा।
“दूर हटकर बदलाव नहीं लाया जा सकता”
Dentsu ने यह भी कहा कि चुनौतीपूर्ण होते हुए भी यह समय इंडस्ट्री में सामूहिक सुधार का अवसर है। “यह समय विज्ञापन इंडस्ट्री के लिए मुश्किल हो सकता है, लेकिन हम इसका हिस्सा बनकर बदलाव की दिशा में काम करना चाहते हैं। हमारे क्लाइंट्स और इंडस्ट्री के बेहतर भविष्य के लिए हम इस रास्ते पर प्रतिबद्ध हैं।”
नई बहस की शुरुआत
जहां अन्य विज्ञापन एजेंसियां इस मामले में चुप्पी साधे हैं, वहीं Dentsu ने न केवल खुद को whistleblower की तरह पेश किया है, बल्कि खुद को एक reform advocate यानी सुधारों के पक्षधर के रूप में भी स्थापित किया है। लंबे समय से मीडिया ट्रेडिंग में अपारदर्शिता के आरोपों से जूझती इंडस्ट्री के लिए यह एक नए दौर की शुरुआत हो सकती है या फिर पुराने तौर-तरीकों और नई गवर्नेंस संस्कृति के बीच टकराव और गहरा भी हो सकता है।
फिलहाल इतना तय है कि Dentsu ने बदलाव के पक्ष में अपनी स्पष्ट भूमिका तय कर ली है।
विज्ञापन जगत के अनुभवी प्रोफेशनल विवेक दास ने EssenceMediacom में मैनेजिंग पार्टनर की अपनी भूमिका से इस्तीफा दे दिया है।
विज्ञापन जगत के अनुभवी प्रोफेशनल विवेक दास ने EssenceMediacom में मैनेजिंग पार्टनर की अपनी भूमिका से इस्तीफा दे दिया है। वह एजेंसी के Media Futures Group (MFG) का नेतृत्व कर रहे थे और भारत व दक्षिण-पूर्व एशिया में Google-केंद्रित संचालन की रणनीति संभाल रहे थे।
उनका यह इस्तीफा अपेक्षाकृत छोटी लेकिन रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण पारी के बाद आया है। विवेक दास ने जून 2024 में EssenceMediacom (उस समय GroupM का हिस्सा) जॉइन किया था। एजेंसी की ओर से उनके उत्तराधिकारी के नाम की अभी घोषणा नहीं की गई है। साथ ही, इस घटनाक्रम पर ना तो दास और ना ही WPP Media ने कोई टिप्पणी की है।
WPP Media में यह बदलाव ऐसे समय पर हुआ है जब होल्डिंग कंपनी खुद एक बड़े आंतरिक बदलाव के दौर से गुजर रही है। महज एक महीने पहले GroupM का नाम बदलकर WPP Media कर दिया गया था। इसके कुछ हफ्तों बाद कंपनी के सीईओ Mark Read ने साल के अंत में पद छोड़ने की घोषणा की, और ठीक एक दिन पहले WPP Media ने संगठनात्मक पुनर्गठन (restructuring) की प्रक्रिया शुरू की है।
EssenceMediacom से पहले विवेक दास Zoo Media और FoxyMoron में सीईओ के रूप में काम कर चुके हैं, जहां उन्होंने एक स्वतंत्र डिजिटल नेटवर्क को पुनर्गठन और विकास की दिशा में नेतृत्व प्रदान किया। फरवरी 2024 में Zoo Media से उनके प्रस्थान के बाद उन्होंने कुछ समय का ब्रेक लिया और फिर GroupM से जुड़े।
लेकिन उन्हें इंडस्ट्री में सबसे अधिक पहचान उनके Mindshare में 13 वर्षों के कार्यकाल के लिए मिली, जहां वह Vice President और Consulting, Data, Analytics और Technology के प्रमुख बने। इस दौरान उन्होंने Airtel, Nokia, PepsiCo, Ford और HUL जैसे बड़े ब्रांड्स के साथ डेटा-संचालित मीडिया प्लानिंग और कंसल्टिंग मॉडल विकसित किए।
दास का दो दशक से अधिक का करियर Wunderman, Omnicom Media Group, ISHIR Digital और Webchutney जैसी प्रतिष्ठित कंपनियों तक फैला है। वह इंडस्ट्री में अपनी रणनीतिक सोच, एनालिटिक्स और मार्कटेक (MarTech) के साथ-साथ विविधता, समावेशिता और टीम मेंटरिंग को लेकर भी खासे सम्मानित माने जाते हैं।
विवेक दास का यह प्रस्थान न केवल EssenceMediacom बल्कि WPP Media के भीतर भी परिवर्तन और नई दिशा की ओर इशारा करता है, जहां कई अहम फैसले अगले कुछ महीनों में सामने आ सकते हैं।