‘दिल्ली प्रेस’ के एग्जिक्यूटिव पब्लिशर, 'द कारवां' मैगजीन के संपादक और ‘द एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजींस’ के प्रेजिडेंट अनंत नाथ ने इस इंडस्ट्री की चुनौतियों और इससे निपटने के उपायों पर अपनी बात रखी है।
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समाचार4मीडिया ब्यूरो
एक समय पाठकों की बड़ी संख्या से गुलजार रहने वाली देश की मैगजीन इंडस्ट्री कोरोना महामारी के बाद से डिस्ट्रीब्यूशन से जुड़ी समस्याओं के साथ-साथ पाठकों की प्राथमिकताओं में बदलाव समेत कई चुनौतियों से जूझ रही है। इस नए परिदृश्य में खुद को प्रासंगिक बनाए रखने और आगे बढ़ने के लिए मैगजीन इंडस्ट्री अपनी रणनीतियों को फिर से परिभाषित करने में जुटी हुई है।
‘इंडियन मैगजीन कांग्रेस‘ से पहले ‘दिल्ली प्रेस’ के एग्जिक्यूटिव पब्लिशर, 'द कारवां' मैगजीन के संपादक और ‘द एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजींस’ के प्रेजिडेंट अनंत नाथ ने मैगजीन इंडस्ट्री की इन्हीं तमाम चुनौतियों और इससे निपटने के लिए किए जा रहे उपायों को लेकर अपनी बात रखी है।
अनंत नाथ का मानना है कि मैगजींस पर कोरोना महामारी का प्रभाव बाकी पब्लिकेशन इंडस्ट्री के समान ही रहा है, जहां बड़ी संख्या में पाठक वर्ग प्रिंट से डिजिटल की ओर शिफ्ट हो गया है। उनका मानना है कि हालांकि अधिकांश न्यूजपेपर पब्लिशर्स की तरह अधिकांश मैगजीन पब्लिशर्स के पास भी अपनी वेबसाइट्स हैं, फिर भी हर किसी को उस दर्शक वर्ग से रेवेन्यू जुटाने के लिए अपने-अपने तरीके से संघर्ष करना पड़ा।
यह सही है कि डिजिटल ऑडियंस की संख्या प्रिंट के पाठकों से अधिक है, क्योंकि डिजिटल मीडिया कहीं अधिक सुलभ और अधिक आसानी से उपभोग योग्य है। लेकिन उस पाठक वर्ग का मुद्रीकरण करना, विशेष रूप से विज्ञापन के दृष्टिकोण से कहीं अधिक कठिन रहा है।
वैकल्पिक रेवेन्यू स्ट्रीम्स मैगजींस के लिए स्थिति पूरी तरह बदल देंगी: दरअसल, इंडस्ट्री के लिए एक बड़ी चुनौती यह पता लगाना है कि फिजीकल डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम को कैसे ठीक किया जाए। कोविड से काफी पहले ही फिजीकल न्यूजस्टैंड डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगा था।
अनंत नाथ के अनुसार, ‘मैगजीन पब्लिशर्स के लिए यूरोप और अमेरिका की तुलना में भारत में सबस्क्रिप्शन से रेवेन्यू पहले ही काफी कम है। वे सबस्क्रिप्शन की दिशा में काफी आगे हैं, जबकि भारतीय पब्लिशर्स न्यूजस्टैंड की दिशा में ज्यादा आगे हैं। लेकिन पिछले चार साल की बात करें तो हमने सबस्क्रिप्शन बनाने पर ज्यादा जोर दिया है, जिसका अर्थ है कि हम सबस्क्रिप्शन कॉपियों के लिए अच्छा डिलीवरी सिस्टम बना रहे हैं। ‘द एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजींस’ ने ‘मैगजीन पोस्ट’ (Magazine Post) नामक एक नई सदस्यता वितरण सेवा (subscription delivery service) शुरू की है। यह बेहद प्रभावी, विश्वसनीय और निजी कोरियर की तुलना में काफी सस्ती है। इसके साथ ही, अधिकांश पब्लिशर्स ऑनलाइन सबस्क्रिप्शन मार्केटिंग कैंपेन, डेटाबेस संवर्धन और तमाम अन्य तरीकों से मार्केटिंग सबस्क्रिप्शंस में जुटे हुए हैं।’ ऐसे में अनंत नाथ का मानना है कि अधिकांश पब्लिशर्स को डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम की दक्षता में सुधार के साथ-साथ कुछ ई-कॉमर्स प्लेयर्स के साथ साझेदारी करके सबस्क्रिप्शंस को बढ़ाते हुए आगे का रास्ता तैयार करना है।
इसके साथ ही अनंत नाथ का यह भी कहना है, ‘मैगजींस को फिर चाहे वह मैगजीन का करेंट इश्यू ही क्यों न हो, पाठकों तक पहुंचाने के लिए हम देश में ऐसा डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क तैयार करने की कोशिश में लगे हुए हैं, जिसमें डिजिटली ऑर्डर दिया जा सके और जल्द से जल्द उसकी डिलीवरी सुनिश्चित हो सके। हमने ‘ब्लिंकिट’ के साथ मिलकर इस तरह का प्रयास शुरू किया है, जिसमें आप वहां से मैगजीन ऑर्डर कर सकते हैं। फिलहाल दिल्ली से इसकी शुरुआत हुई है और इस सेवा को दिल्ली, पुणे व बेंगलुरु और कोलकाता समेत देश के तमाम हिस्सों से शुरू किया जा रहा है। एमेजॉन से भी हमारी बातचीत चल रही है, ताकि वहां पर मैगजींस की एक कैटेगरी दोबारा से बनाई जाए। इसके अलावा पेटीएम और मीशो जैसे जाने-माने ऐप्स पर भी पाठकों को मैगजींस मिल सके, इस दिशा में भी हम काम कर रहे हैं। एसोसिएशन अब इंडिया पोस्ट के साथ फिर से काम कर रही है ताकि यह देखा जा सके कि वे इंडिया पोस्ट के नेटवर्क के माध्यम से सबस्क्रिप्शन बेचने के नए अवसर कैसे तैयार कर सकते हैं।’
हालांकि ये तरीके सर्कुलेशन और सबस्क्रिप्शन रेवेन्यू में मदद कर सकते हैं लेकिन मैगजींस को वैकल्पिक रेवेन्यू स्ट्रीम्स को खोजने की काफी आवश्यकता है। परंपरागत रूप से वे विज्ञापन और सर्कुलेशन सबस्क्रिप्शन के माध्यम से इसका मुद्रीकरण करते रहे हैं, लेकिन अब इवेंट्स को भी इसमें जोड़ा गया है। अनंत नाथ का यह भी कहना है, ‘नए रेवेन्यू स्ट्रीम्स की संभावनाओं की बात करें तो नई कंटेंट आईपी (IPs) बनाकर ई-कॉमर्स, मार्केटिंग, ऑडियो स्ट्रीमिंग और वीडियो स्ट्रीमिंग सेवाओं के साथ साझेदारी के माध्यम से रेवेन्यू जुटाने की संभावनाएं हैं। अब ऐसे मॉडलों के साथ मेंबरशिप प्रोग्राम भी हैं, जहां पाठक मैगजीन की एडिटोरियल टीमों के साथ निकटता से जुड़ते हैं।’
मार्केटर्स के दृष्टिकोण में बदलाव की जरूरत है: जब विज्ञापन राजस्व को ‘पुनर्जीवित’ (reviving) अथवा नए सिरे से परिभाषित करने की बात आती है तो इंडस्ट्री को मैगजींस में विज्ञापन के बारे में धारणा बदलने की जरूरत है। अनंत नाथ के अनुसार, ‘हमें अपने प्रयासों को अपने मार्केटर्स के लिए एक बिक्री योग्य कहानी में बदलने की आवश्यकता है, जिनके साथ हमें यह समझाने के लिए बहुत करीब से काम करने की आवश्यकता है कि मैगजीन इंडस्ट्री अपने पाठकों और इसकी प्रसार संख्या को कैसे वापस लेकर आई है।’
तकनीकी रूप से कहें तो विज्ञापनदाताओं को यह समझने की जरूरत है कि पत्रिकाएं कंटेंट के लिए भुगतान करने को तैयार एक बड़े पाठक वर्ग को आकर्षित कर रही हैं और उन लोगों की तुलना में कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं जो बिना किसी निवेश, प्रतिबद्धता या कनेक्शन के, डिजिटल दर्शकों या यहां तक कि बिना किसी लागत के कंटेंट प्राप्त कर रहे हैं। चूंकि अखबार काफी सस्ते होते हैं इसलिए अखबार के पाठकों की संख्या में वृद्धि होती है।
इस मुद्दे पर और विस्तार से बात करते हुए अनंत नाथ का कहना है, ‘भारत में एक अखबार की कीमत चार या पांच रुपये है, लेकिन एक मैगजीन की कीमत 60 से 100 रुपये है। इसलिए, मैगजीन का पाठक कहीं अधिक प्रतिबद्ध है। हमें यह कहने के लिए विज्ञापनदाताओं के साथ काम करने की ज़रूरत है कि यह पाठक जिसके पास अधिक क्रय शक्ति है, वह मैगजीन पर ज्यादा भरोसा करता है, ऐसे में वह उनके लिए बेहतर उपभोक्ता है। विज्ञापनदाताओं को मैगजीन पाठकों की इस ‘ताकत’ को समझना होगा।’
मैगजींस का कंटेंट ज्यादा विशिष्ट और ज्यादा बेहतर: सामान्य रुचि वाला कंटेंट ऑनलाइन खूब दिया जा रहा है। हालांकि, मैगजींस में पाठकों को विशिष्ट कंटेंट मिलता है। यही दोनों में बड़ा फर्क है। दरअसल, जब एक एडिटोरियल टीम किसी कंटेंट पर काम करती है और उसमें तमाम तथ्य अथवा अन्य चीजें शामिल करती है तो उससे पाठक अधिक जुड़ते हैं, क्योंकि कंटेंट उनकी रुचि के करीब होता है और इस बात को ध्यान में रखकर ही तैयार किया जाता है।
अनंत नाथ के अनुसार, ‘यहीं पर डिजिटल कंटेंट पीछे रह जाएगा, क्योंकि अंततः संपादकों, पत्रकारों और लेखकों का एक बहुत ही प्रतिबद्ध समूह बेहद गहन कंटेंट तैयार कर रहा है और यह बहुत ही सतही और तेज गति से तैयार किए गए कंटेंट की तुलना में अलग दिखाई देगा।’ इसके साथ ही अनंत नाथ का यह भी मानना है कि एक अवधारणा के रूप में मैगजींस का भविष्य बहुत उज्जवल होगा। अनंत नाथ के अनुसार, ‘आपके दर्शक जितने अधिक विशिष्ट, अधिक मजबूती से परिभाषित होंगे, पाठक संख्या उतनी ही अधिक होगी। निःसंदेह, आपको दर्शकों के एक निश्चित बुनियादी आकार की आवश्यकता है।’
देश की प्रतिष्ठित मैगजींस में शुमार 'BW बिजनेसवर्ल्ड' ने अपना एक खास डबल स्पेशल एडिशन जारी किया है, जिसमें भारत के दो सबसे प्रभावशाली समूहों को एक साथ जगह दी गई है
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देश की प्रतिष्ठित मैगजींस में शुमार 'BW बिजनेसवर्ल्ड' ने अपना एक खास डबल स्पेशल एडिशन जारी किया है, जिसमें भारत के दो सबसे प्रभावशाली समूहों को एक साथ जगह दी गई है- RightShift Fittest 40 Above 40 और BW Top 100 Marketers 2025. इस एडिशन में उन लीडर्स को दिखाया गया है जो आने वाले दशक में भारत के बिजनेस को नई दिशा दे रहे हैं, चाहे वो अपनी फिटनेस से हो या मार्केटिंग की समझ से।
इस बार RightShift Fittest 40 Above 40 की लिस्ट में लोगों का इतना ज्यादा उत्साह देखने को मिला कि 40 की जगह 45 लीडर्स को चुना गया। ये सभी अलग-अलग सेक्टर्स- कानून, मीडिया, खेल, टेक्नोलॉजी, फाइनेंस और बिजनेस से आते हैं, लेकिन इन सबकी सोच एक है: अच्छा लीडर बनने के लिए फिटनेस भी उतनी ही जरूरी है जितना स्किल।
इसके साथ ही इस एडिशन में BW Top 100 Marketers 2025 की लिस्ट भी शामिल है। इसमें उन मार्केटिंग प्रोफेशनल्स को जगह दी गई है जो AI, डिजिटल बदलाव और नए ग्राहक व्यवहार के दौर में ब्रांड्स को नई ऊंचाई दे रहे हैं। ये मार्केटर्स FMCG, ऑटो, टेक, वेलनेस, फाइनेंस और कई नए सेक्टर्स से हैं।
एडिशन में Lead Fit Forum की चर्चाओं को भी शामिल किया गया है, जहां देश के CEO, फाउंडर्स और सीनियर लीडर्स ने फिटनेस, पोषण, रिकवरी, मेंटल हेल्थ और डिसिप्लिन जैसे मुद्दों पर बात की। अब वेलनेस सिर्फ पर्सनल गोल नहीं, बल्कि कंपनियों की रणनीति का अहम हिस्सा बन रहा है।
यह डबल स्पेशल एडिशन BW Businessworld की उस सोच को आगे बढ़ाता है, जिसमें वह ऐसे लीडर्स को पहचान देता है जो भारत के विकास की अगली कहानी लिख रहे हैं।
BW Businessworld का यह नया एडिशन अब डिजिटल और प्रिंट दोनों फॉर्मेट में उपलब्ध है।
ब्रिटेन के मशहूर टैब्लॉयड डेली मेल के मालिक DMGT ने अमेरिकी और यूएई की साझेदारी वाली कंपनी RedBird IMI के साथ एक बड़ी डील की है।
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ब्रिटेन के मशहूर टैब्लॉयड 'डेली मेल' (Daily Mail) के मालिक DMGT ने अमेरिकी और यूएई की साझेदारी वाली कंपनी RedBird IMI के साथ एक बड़ी डील की है। इस डील के तहत DMGT द टेलीग्राफ मीडिया ग्रुप को 500 मिलियन पाउंड (654 मिलियन डॉलर) में खरीदने जा रहा है।
DMGT ने प्रेस रिलीज में बताया कि दोनों कंपनियों के बीच समझौता हो गया है और अब जल्दी ही सभी औपचारिकताएं पूरी की जाएंगी। इस खरीद के बाद DMGT ब्रिटेन के सबसे बड़े दाएं झुकाव वाले मीडिया समूहों में से एक बन सकता है, इसलिए माना जा रहा है कि इस डील की जांच कंपटीशन रेगुलेटर भी करेगा।
पिछले हफ्ते ही RedBird Capital ने अचानक टेलीग्राफ खरीदने की अपनी कोशिश छोड़ दी थी। उसके बाद से फिर से अखबार के भविष्य को लेकर अनिश्चितता बढ़ गई थी। यह अखबार करीब दो साल से बिक्री में अटका हुआ है।
DMGT का कहना है कि नई डील से अखबार के कर्मचारियों को “विश्वास और स्थिरता” मिलेगी। कंपनी का प्लान है कि टेलीग्राफ को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेजी से बढ़ाया जाए, खासकर अमेरिका में। साथ ही उन्होंने साफ किया कि डेली टेलीग्राफ की एडिटोरियल टीम पूरी तरह स्वतंत्र रहेगी।
RedBird IMI ने 2023 में भी टेलीग्राफ खरीदने की कोशिश की थी, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने विदेशी नियंत्रण के खतरे और स्वतंत्रता की आजादी पर असर की आशंका को देखते हुए दखल दिया था। इसके बाद कानून में बदलाव भी किए गए, ताकि विदेशी ताकतें ब्रिटिश अखबारों पर नियंत्रण न कर सकें।
1855 में शुरू हुआ द टेलीग्राफ एक समय “Tory Bible” के नाम से जाना जाता था। 2023 में इसे मालिकाना कर्ज चुकाने के लिए बिक्री पर लगाया गया था। इस पर कई बड़े निवेशकों ने बोली लगाई थी।
अब, मौजूदा डील पर भी सरकार की संस्कृति मंत्री लीसा नैन्डी नजर रखेंगी और सार्वजनिक हित के आधार पर फैसला लेंगी।
DMGT के चेयरमैन जोनाथन हार्म्सवर्थ ने कहा, “मैं लंबे समय से डेली टेलीग्राफ की तारीफ करता आया हूं… यह ब्रिटेन का सबसे बड़ा और सबसे भरोसेमंद अखबार है।”
जम्मू-कश्मीर की स्टेट इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (SIA) ने गुरुवार सुबह जम्मू में 'कश्मीर टाइम्स' के ऑफिस पर छापा मारा।
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जम्मू-कश्मीर की स्टेट इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (SIA) ने गुरुवार सुबह जम्मू में 'कश्मीर टाइम्स' के ऑफिस पर छापा मारा। यह अखबार कश्मीर का सबसे पुराना इंग्लिश न्यूजपेपर माना जाता है। एजेंसी का आरोप है कि अखबार का 'अलगाववादी और राष्ट्र-विरोधी समूहों के साथ साजिश' में हाथ हो सकता है।
SIA ने दावा किया कि छापे के दौरान ऑफिस से एक रिवॉल्वर, AK-सीरीज के 14 खाली कारतूस, AK की 3 जिंदा गोलियां, 4 फायर की हुई गोलियां, ग्रेनेड के 3 सेफ्टी लीवर और 3 संदिग्ध पिस्टल राउंड मिले हैं।
अखबार की संपादक और मालिक अनुराधा भसीन और उनके पति प्रभोध जमवाल, जो फिलहाल अमेरिका में बताए जा रहे हैं, ने इन छापों की निंदा की। उन्होंने कहा कि सभी आरोप 'निराधार' हैं और यह कार्रवाई 'उन्हें चुप कराने की कोशिश' है।
वहीं, जम्मू-कश्मीर के डिप्टी सीएम सुरिंदर चौधरी ने कहा कि SIA तभी रेड करती है जब किसी मामले में पुख्ता आधार होता है, सिर्फ दबाव बनाने के लिए नहीं।
यह कार्रवाई उस वक्त हुई है जब कुछ दिन पहले J&K पुलिस ने फरीदाबाद में एक आतंकी मॉड्यूल पकड़ने का दावा किया था। इसमें कश्मीर के कम से कम तीन डॉक्टर गिरफ्तार हुए थे। साथ ही 10 नवंबर को दिल्ली के लाल किले के पास हुए कार ब्लास्ट में नौ लोगों की मौत का मामला भी जुड़ा है।
यह अखबार अनुराधा भसीन के पिता और वरिष्ठ पत्रकार वेद भसीन ने 1954 में शुरू किया था। कुछ साल पहले इसका जम्मू एडिशन बंद कर दिया गया और अब यह मुख्य रूप से ऑनलाइन चलता है।
SIA के मुताबिक, उन पर ये आरोप लगाए गए हैं कि वे आतंकी और अलगाववादी सोच फैलाने में शामिल हैं। उन पर यह भी आरोप है कि वे भड़काऊ, गढ़ी हुई और झूठी खबरें चला रहे थे, जिससे घाटी के युवाओं को गलत दिशा में ले जाया जा सकता था। एजेंसी का कहना है कि उनका काम लोगों में सरकार के प्रति नाराजगी और अलगाव की भावना बढ़ा रहा था, जिससे शांति और कानून-व्यवस्था बिगड़ सकती थी। इसके अलावा SIA का आरोप है कि उनकी रिपोर्टिंग और डिजिटल कंटेंट भारत की संप्रभुता और अखंडता को चुनौती देने जैसा था।
छापे के दौरान SIA टीम ने ऑफिस और संपादक के घर में दस्तावेज, डिजिटल उपकरण और दूसरी सामग्री की भी जांच की। अधिकारियों का कहना है कि जांच के तहत अनुराधा भसीन से पूछताछ भी की जा सकती है।
एजेंसी के मुताबिक यह कार्रवाई उन नेटवर्क्स के खिलाफ है जो कथित तौर पर अलगाववादी नैरेटिव या अवैध प्रचार में शामिल हैं।
अपने बयान में अनुराधा और जमवाल ने कहा कि यह सब 'डराने और चुप कराने की कोशिश' है। उन्होंने सरकार से 'उत्पीड़न बंद करने और प्रेस की आजादी का सम्मान करने' की मांग की।
सरकार ने प्रिंट मीडिया यानी अखबारों के विज्ञापन की दरों में 26 फीसदी बढ़ाने का फैसला किया है।
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सरकार ने प्रिंट मीडिया में विज्ञापन की दरों को 26 फीसदी बढ़ाने का फैसला किया है। अब ब्लैक-एंड-व्हाइट विज्ञापन के लिए एक लाख कॉपी वाले अखबारों में प्रति वर्ग सेंटीमीटर के लिए दरें 47.40 रुपये से बढ़ाकर 59.68 रुपये कर दी गई हैं।
सरकार ने समिति की उन सिफारिशों को भी मंजूर कर लिया है, जिनमें कलर विज्ञापनों के लिए प्रीमियम दरें और खास जगह पर विज्ञापन देने जैसी सुविधाएं शामिल हैं।
प्रिंट मीडिया के विज्ञापन रेट इससे पहले 9 जनवरी 2019 को बदले गए थे। यह रेट तब 8th रेट स्ट्रक्चर कमेटी (RSC) की सिफारिशों पर आधारित थे और तीन साल के लिए लागू किए गए थे।
सरकार का कहना है कि विज्ञापन रेट बढ़ाने से कई फायदे होंगे। बढ़े हुए रेट से प्रिंट मीडिया को जरूरी आर्थिक मदद मिलेगी, खासकर तब जब डिजिटल और अन्य प्लेटफॉर्म्स से कड़ी टक्कर मिल रही है और पिछले कुछ सालों में लागत भी काफी बढ़ी है।
इस अतिरिक्त आमदनी से अखबार अपने कामकाज को बेहतर तरीके से चला सकेंगे, अच्छी पत्रकारिता बनाए रख सकेंगे और स्थानीय खबरों को समर्थन मिलेगा। आर्थिक रूप से मजबूत होने पर वे बेहतर कंटेंट तैयार कर पाएंगे, जिससे पाठकों को फायदा होगा।
सरकार का यह कदम बदलते मीडिया माहौल के हिसाब से भी है। प्रिंट मीडिया की अहमियत को मानते हुए सरकार चाहती है कि उसकी सूचनाएँ अलग-अलग माध्यमों के जरिए ज्यादा प्रभावी तरीके से जनता तक पहुंचें।
केशव मिश्रा इससे पहले करीब छह साल से अधिक नवभारत टाइम्स‘’ (Navbharat Times) में बतौर सीनियर सब एडिटर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे।
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युवा पत्रकार केशव मिश्रा एक बार फिर ‘अमर उजाला’ (Amar Ujala) की टीम में शामिल हो गए हैं। उन्होंने नोएडा में चीफ सब एडिटर के पद पर जॉइन किया है। बता दें कि ‘अमर उजाला’ समूह के साथ केशव मिश्रा की यह दूसरी पारी है।
केशव मिश्रा इससे पहले करीब छह साल से अधिक नवभारत टाइम्स‘’ (Navbharat Times) में बतौर सीनियर सब एडिटर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे। उन्होंने 'दैनिक जागरण', नोएडा में सब एडिटर के तौर पर डेस्क पर करीब दो साल तक अपनी जिम्मेदारी निभाने के बाद ‘नवभारत टाइम्स’ जॉइन किया था।
केशव मिश्रा ने पत्रकारिता के क्षेत्र में अपने करियर की शुरुआत इलाहाबाद (अब प्रयागराज) से बतौर रिपोर्टर की थी। इसके बाद उन्होंने आगरा में ‘द सी एक्सप्रेस अखबार’ का दामन थाम लिया। यहां सब एडिटर के तौर पर उन्होंने करीब दो साल (नवंबर 2011-अगस्त 2013) तक अपनी सेवाएं दीं।
इसके बाद यहां से अपनी पारी को विराम देकर केशव मिश्रा 'दैनिक भास्कर' बठिंडा से जुड़ गए। इस अखबार से वह करीब दो साल (सितंबर 2013-मार्च 2015) तक जुड़े रहे और फिर 'अमर उजाला', रोहतक के साथ नई पारी शुरू कर दी।
जुलाई 2017 तक 'अमर उजाला' में काम करने के बाद केशव मिश्रा ने अगस्त 2017 में 'दैनिक जागरण' नोएडा में अपनी नई पारी का आगाज किया था और फिर यहां से वर्ष 2019 को बाय बोलकर वह ‘नवभारत टाइम्स’ आ गए थे, जहां से अपनी पारी को विराम देकर अब वह फिर से ‘अमर उजाला’ की टीम में शामिल हो गए हैं।
मूलरूप से प्रयागराज के रहने वाले केशव मिश्रा ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से जर्नलिज्म और मास कम्युनिकेशन में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। समाचार4मीडिया की ओर से केशव मिश्रा को नए सफर के लिए ढेरों बधाई और शुभकामनाएं।
धर्मेन्द्र सिंह वर्ष 2011 से लगातार इस अखबार के साथ जुड़े हुए हैं। वह करीब ढाई साल से बतौर एडिटर, हरियाणा के पद पर अपनी भूमिका निभा रहे थे।
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‘दैनिक भास्कर’ (Dainik Bhaskar) समूह ने वरिष्ठ पत्रकार धर्मेन्द्र सिंह भदौरिया पर और अधिक भरोसा जताते हुए उन्हें अब और बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है। इसके तहत उन्हें नेशनल पॉलिटिकल एडिटर के पद पर प्रमोट किया गया है। साथ ही वह नेशनल ब्यूरो हेड के तौर पर भी अपनी जिम्मेदारी निभाएंगे। वह दिल्ली से अपना कामकाज संभालेंगे।
बता दें कि ‘दैनिक भास्कर’ समूह ने करीब ढाई साल पहले भी धर्मेन्द्र सिंह भदौरिया को प्रमोट कर एडिटर, हरियाणा के पद पर नियुक्त किया था। उससे पहले धर्मेन्द्र सिंह वर्ष 2021 से ग्वालियर में बतौर रेजिडेंट एडिटर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे। वह दिल्ली में दैनिक भास्कर के नेशनल ब्यूरो में भी अपनी भूमिका निभा चुके हैं। वह वर्ष 2011 से लगातार इस अखबार के साथ जुड़े हुए हैं।
मूल रूप से भिंड (मध्य प्रदेश) के रहने वाले धर्मेन्द्र सिंह को मीडिया के क्षेत्र में काम करने का दो दशक से ज्यादा का अनुभव है। पत्रकारिता में अपने करियर की शुरुआत उन्होंने वर्ष 2005 में ‘अमर उजाला’ मेरठ से की थी। इसके बाद वह इसी अखबार में नोएडा आ गए और बिजनेस पेज ‘कारोबार’ की कमान संभालने लगे। वर्ष 2008 में वह दैनिक भास्कर आ गए और इस समूह के बिजनेस अखबार ‘बिजनेस भास्कर’ में कॉरपोरेट इंचार्ज के तौर पर दिल्ली में अपनी पारी शुरू कर दी। यहां से उन्हें बिजनेस भास्कर का मध्य प्रदेश/छत्तीसगढ़ का प्रिंसिपल करेसपॉन्डेंट/ब्यूरो हेड बनाकर भोपाल भेज दिया गया।
इसके बाद उन्होंने यहां से बाय बोलकर ‘राजस्थान पत्रिका’ के समाचार पत्र ‘पत्रिका’ ग्वालियर में सिटी चीफ के रूप में अपनी नई पारी शुरू कर दी। हालांकि, यहां वह करीब एक साल तक ही कार्यरत रहे और वर्ष 2011 में फिर से ‘बिजनेस भास्कर’ लौट आए। करीब दो साल बाद इसी अखबार में इंदौर चले गए और फिर वर्ष 2014 में नेशनल आइडिएशन न्यूज रूम में ‘आ गए और वर्ष 2020 तक राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय खबरों पर काम किया। इसके बाद वह दिल्ली में दैनिक भास्कर के नेशनल ब्यूरो में आ गए और फिर कुछ समय बाद वर्ष 2021 में उन्होंने रेजिडेंट एडिटर के तौर पर ग्वालियर की जिम्मेदारी संभाली। इसके बाद अप्रैल 2023 में समूह ने उन्हें एडिटर (हरियाणा) की जिम्मेदारी सौंपी थी और अब उन्हें नेशनल पॉलिटिकल एडिटर के पद पर प्रमोट किया गया है।
वर्ष 2014 से अप्रैल तक सात वर्ष में उन्होंने ग्राउंड रिपोर्टिंग के लिए राष्ट्रीय स्तर पर देश के विभिन्न हिस्सों के साथ ही विदेश यात्राएं भी कीं। इसमें वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव से पहले की ‘महाभारत-2019 भारत यात्रा’ के अलावा कोरोना काल के दौरान जून 2020 से अगस्त 2020 तक ‘कोरोना काल, देश का आंखों देखा हाल’ (उत्तर प्रदेश-बिहार की यात्रा) प्रमुख रहीं।
पढ़ाई-लिखाई की बात करें तो धर्मेन्द्र सिंह भदौरिया ने भोपाल स्थित ‘माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय‘ से पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। समाचार4मीडिया की ओर से धर्मेन्द्र सिंह भदौरिया को ढेर सारी बधाई और शुभकामनाएं।
चंडीगढ़ प्रेस क्लब ने भी इस कार्रवाई की निंदा की और इसे “सूचना के मुक्त प्रवाह में बाधा डालने की कोशिश” बताया।
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Samachar4media Bureau
रविवार सुबह पंजाब के कई हिस्सों में अखबार समय पर नहीं पहुंच पाए। इसका कारण पुलिस द्वारा किए गए वाहन जांच अभियान को बताया जा रहा है, जिसमें खासकर वाणिज्यिक वाहन निशाने पर थे। होशियारपुर और जालंधर जिलों में डिस्ट्रीब्यूशन सेंटर तक वाहन लगभग सुबह 7:30 बजे पहुंचे, जिससे पाठकों तक अखबार देर से पहुंचे। कई डिलीवरी ड्राइवरों ने बताया कि उन्हें अखबार के बंडल उतरवाकर जांच के लिए देना पड़ा।
लुधियाना के सिविल लाइंस, मॉडल टाउन, दुगरी और सराभा नगर इलाकों में अखबार 8:30 बजे तक पहुंचे। एक डिस्ट्रीब्यूटर ने कहा, “रविवार को पहले ही डिलीवरी का बोझ ज्यादा होता है, आज की जांच ने और देरी कर दी।”
अमृतसर में भी डिस्ट्रीब्यूटर्स ने देरी की शिकायत की। एक निवासी, लक्षविंदर सिंह ने बताया कि उनके तीन अखबारों में से केवल एक ही देर से पहुंचा, क्योंकि सप्लाई वाहन पुलिस जांच के लिए रोके गए थे।
इस घटना पर विपक्षी नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया दी। प्रताप सिंह बाजवा ने इसे “पत्रकारिता पर हमला” करार दिया। उन्होंने कहा, “जिस मीडिया ने AAP को बनाया, वही अब इसे परेशान कर रही है।”
पंजाब बीजेपी अध्यक्ष अश्वनी शर्मा ने कहा कि कई जगह अखबार वाहन रोके गए और केवल पुलिस जांच के बाद ही आगे बढ़ने दिए गए। उन्होंने कहा, “इमरजेंसी के बाद पहली बार मीडिया को डराने और दबाने की कोशिश की गई है।”
कांग्रेस अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वल्लिंग ने सरकार से स्पष्टीकरण मांगा और इसे “पत्रकारिता की स्वतंत्रता के लिए गंभीर मामला” बताया। कांग्रेस विधायक परगट सिंह ने कहा कि यह अभियान अरविंद केजरीवाल के चंडीगढ़ सरकारी बंगले में ठहरने की खबरों को दबाने के लिए किया गया।
शिरोमणि अकाली दल अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि सरकार अखबारों पर इसलिए निशाना साध रही है क्योंकि कोई उनके खिलाफ रिपोर्ट न लिखे।
पंजाब पुलिस के प्रवक्ता ने कहा कि यह वाहन जांच सुरक्षा उपायों के तहत की गई थी। उन्होंने बताया कि पंजाब एक संवेदनशील सीमा राज्य है और पाकिस्तान की ISI ड्रोन और अन्य वाहनों के जरिए अवैध सामान, हथियार और विस्फोटक भेजने की कोशिश करती है। ऐसे में सुरक्षा बढ़ाने के लिए जांच जरूरी है। पुलिस ने कहा कि जनता को कम से कम परेशानी हो, यह सुनिश्चित किया जाएगा, लेकिन सख्त सुरक्षा व्यवस्था जरूरी है।
चंडीगढ़ प्रेस क्लब ने भी इस कार्रवाई की निंदा की और इसे “सूचना के मुक्त प्रवाह में बाधा डालने की कोशिश” बताया। क्लब ने पंजाब सरकार से कहा कि अखबार वितरण में कोई रुकावट न हो और प्रेस की स्वतंत्रता सुनिश्चित की जाए।
तमिलनाडु न्यूजप्रिंट एंड पेपर्स लिमिटेड (TNPL) ने हाल ही में हुई अपनी बोर्ड मीटिंग में दूसरी तिमाही और छमाही के वित्तीय नतीजों की समीक्षा के साथ कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए।
by
Vikas Saxena
तमिलनाडु न्यूजप्रिंट एंड पेपर्स लिमिटेड (TNPL) ने हाल ही में हुई अपनी बोर्ड मीटिंग में दूसरी तिमाही और छमाही के वित्तीय नतीजों की समीक्षा के साथ कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए।
कंपनी ने बताया कि बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की इस बैठक में थिरू मैथ्यू थॉमस को स्वतंत्र निदेशक (Independent Director) के रूप में नियुक्त की घोषणा की गई है। उनका कार्यकाल 27 अक्टूबर 2025 से 26 अक्टूबर 2028 तक रहेगा। यह नियुक्ति कंपनी के शेयरधारकों की मंजूरी के अधीन होगी।
कंपनी ने कहा कि थिरू मैथ्यू थॉमस के पास कॉर्पोरेट गवर्नेंस और प्रबंधन का लंबा अनुभव है और उनके जुड़ने से बोर्ड की विशेषज्ञता और निर्णय क्षमता और मजबूत होगी।
TNPL ने यह भी स्पष्ट किया कि थिरू मैथ्यू थॉमस किसी भी नियामक संस्था जैसे सेबी (SEBI) या अन्य किसी प्राधिकरण द्वारा निदेशक पद संभालने से प्रतिबंधित नहीं हैं। साथ ही, वे कंपनी के किसी अन्य निदेशक से पारिवारिक या व्यावसायिक रूप से जुड़े नहीं हैं और उनके पास TNPL के कोई शेयर नहीं हैं।
शेयरधारकों से उनकी नियुक्ति के लिए सहमति प्राप्त करने के उद्देश्य से कंपनी ने पोस्टल बैलेट की प्रक्रिया शुरू करने का फैसला भी किया है। जिन लोगों के पास 24 अक्टूबर 2025 तक कंपनी के शेयर दर्ज होंगे, सिर्फ वही लोग इस प्रस्ताव (resolution) पर मतदान कर सकेंगे।
पोस्टल बैलेट प्रक्रिया की निगरानी के लिए आर. श्रीधरन एंड एसोसिएट्स के कंपनी सेक्रेटरी आर. श्रीधरन को स्क्रूटिनाइजर नियुक्त किया गया है। मतदान प्रक्रिया सीडीएसएल (Central Depository Services Limited) के ई-वोटिंग प्लेटफॉर्म के जरिए पूरी की जाएगी।
कंपनी ने बताया कि परिणामों की घोषणा के बाद उन्हें नियमानुसार अखबारों में प्रकाशित किया जाएगा।
नेशनल कॉन्फ्रेंस के विधायक तनवीर सादिक ने बुधवार को जम्मू-कश्मीर विधानसभा में स्थानीय अखबारों और अन्य मीडिया संस्थानों को सरकारी विज्ञापन न दिए जाने का मुद्दा उठाया।
by
Samachar4media Bureau
नेशनल कॉन्फ्रेंस के विधायक तनवीर सादिक ने बुधवार को जम्मू-कश्मीर विधानसभा में स्थानीय अखबारों और अन्य मीडिया संस्थानों को सरकारी विज्ञापन न दिए जाने का मुद्दा उठाया। उन्होंने सरकार से पूछा कि आखिर कई सालों से इन प्रकाशनों को विज्ञापन क्यों नहीं मिल रहे हैं।
विधानसभा की कार्यवाही के दौरान बोलते हुए सादिक ने कहा, “अब तक मीडिया संस्थानों को राज्य सरकार की तरफ से कोई विज्ञापन नहीं दिया गया है। क्या सरकार इन्हें ‘देशविरोधी’ मानती है, या फिर इसके पीछे कोई और वजह है?”
उन्होंने आगे कहा, “यदि ये देशविरोधी हैं तो इन्हें बंद कर दीजिए, लेकिन यदि नहीं हैं तो फिर इन्हें भी बाकी अखबारों की तरह विज्ञापन मिलने चाहिए।”
सादिक ने कहा कि निष्पक्षता का तकाजा है कि हर अखबार को स्वतंत्र रूप से काम करने दिया जाए। उन्होंने कहा, “कलम को इतनी आजादी तो मिलनी ही चाहिए कि उसे रोका न जाए।”
नेशनल कॉन्फ्रेंस विधायक ने सरकार से अपील की कि वह सदन को बताए कि पिछले पांच, छह या सात सालों से कुछ अखबारों को विज्ञापन क्यों नहीं दिए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि स्वतंत्र मीडिया के लिए जरूरी है कि उसे अपना काम जारी रखने के लिए पर्याप्त समर्थन मिले।
सादिक ने कहा, “जब उनकी कलम मजबूत होगी, तभी वे हमारे खिलाफ या किसी और के खिलाफ लिख पाएंगे, लेकिन लिखने में रुकावट नहीं होनी चाहिए।”
उनका यह बयान विधानसभा में मौजूद सदस्यों का ध्यान इस ओर खींचने में कामयाब रहा कि स्थानीय मीडिया संस्थान कई वर्षों से सरकारी विज्ञापनों से वंचित हैं, जिससे उनके अस्तित्व पर असर पड़ रहा है।
नेशनल कॉन्फ्रेंस के विधायक तनवीर सादिक ने बुधवार को जम्मू-कश्मीर विधानसभा में स्थानीय अखबारों और अन्य मीडिया संस्थानों को सरकारी विज्ञापन न दिए जाने का मुद्दा उठाया।
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नेशनल कॉन्फ्रेंस के विधायक तनवीर सादिक ने बुधवार को जम्मू-कश्मीर विधानसभा में स्थानीय अखबारों और अन्य मीडिया संस्थानों को सरकारी विज्ञापन न दिए जाने का मुद्दा उठाया। उन्होंने सरकार से पूछा कि आखिर कई सालों से इन प्रकाशनों को विज्ञापन क्यों नहीं मिल रहे हैं।
विधानसभा की कार्यवाही के दौरान बोलते हुए सादिक ने कहा, “अब तक मीडिया संस्थानों को राज्य सरकार की तरफ से कोई विज्ञापन नहीं दिया गया है। क्या सरकार इन्हें ‘देशविरोधी’ मानती है, या फिर इसके पीछे कोई और वजह है?”
उन्होंने आगे कहा, “यदि ये देशविरोधी हैं तो इन्हें बंद कर दीजिए, लेकिन यदि नहीं हैं तो फिर इन्हें भी बाकी अखबारों की तरह विज्ञापन मिलने चाहिए।”
सादिक ने कहा कि निष्पक्षता का तकाजा है कि हर अखबार को स्वतंत्र रूप से काम करने दिया जाए। उन्होंने कहा, “कलम को इतनी आजादी तो मिलनी ही चाहिए कि उसे रोका न जाए।”
नेशनल कॉन्फ्रेंस विधायक ने सरकार से अपील की कि वह सदन को बताए कि पिछले पांच, छह या सात सालों से कुछ अखबारों को विज्ञापन क्यों नहीं दिए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि स्वतंत्र मीडिया के लिए जरूरी है कि उसे अपना काम जारी रखने के लिए पर्याप्त समर्थन मिले।
सादिक ने कहा, “जब उनकी कलम मजबूत होगी, तभी वे हमारे खिलाफ या किसी और के खिलाफ लिख पाएंगे, लेकिन लिखने में रुकावट नहीं होनी चाहिए।”
उनका यह बयान विधानसभा में मौजूद सदस्यों का ध्यान इस ओर खींचने में कामयाब रहा कि स्थानीय मीडिया संस्थान कई वर्षों से सरकारी विज्ञापनों से वंचित हैं, जिससे उनके अस्तित्व पर असर पड़ रहा है।