नवरात्रि के आगमन से बड़े ब्रैंड्स के अखबारों में ऊर्जा का संचार तेज

3 अक्टूबर को नवरात्रि की शुरुआत ने भारत के प्रिंट इंडस्ट्री को उत्साहित कर दिया है। नेशनल और रीजनल दोनों ही तरह के बड़े दैनिक अखबारों  ने विज्ञापनों में भारी उछाल दर्ज किया है।

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Monday, 07 October, 2024
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कंचन श्रीवास्तव, सीनियर एडिटर, ग्रुप एडिटोरियल इवैंजलिस्ट एक्सचेंज4मीडिया ग्रुप ।।

3 अक्टूबर को नवरात्रि की शुरुआत ने भारत के प्रिंट इंडस्ट्री को उत्साहित कर दिया है। नेशनल और रीजनल दोनों ही तरह के बड़े दैनिक अखबारों  ने विज्ञापनों में भारी उछाल दर्ज किया है। इंडस्ट्री के अधिकारियों ने 'एक्सचेंज4मीडिया' को बताया कि बाकी के लिए, यह मौसम फिलहाल शांत है।

शनिवार को 'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने कई पूर्ण-पृष्ठ विज्ञापनों के कारण 76 पृष्ठों का प्रकाशन किया। शुक्रवार और रविवार को उनके संस्करणों में भी 44 पृष्ठ थे। बिजनेस हेड्स ने कहा कि इन दिनों विज्ञापन बड़े पैमाने पर सप्ताहांत (वीकेंड्स) की ओर स्थानांतरित हो गए हैं।

बीसीसीएल ग्रुप के रिस्पॉन्स प्रेजिडेंट सुरिंदर सिंह चावला ने कहा, "नवरात्रि हमारे लिए अब तक एक मजबूत सीजन रहा है। जैसा कि हमारी करेंट बुकिंग्स हैं, हमें उम्मीद है कि आने वाले दिनों में दशहरा तक और भी विज्ञापन मिलेंगे।" समूह के हिंदी और मराठी अखबार 'नवभारत टाइम्स' और 'महाराष्ट्र टाइम्स' ने भी नवरात्रि के दौरान कई विज्ञापन प्राप्त किए।

हिन्दुस्तान टाइम्स के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर राजीव बेओत्रा ने कहा, "हिन्दुस्तान टाइम्स के साथ-साथ नवरात्रि प्रिंट मीडिया के लिए एक अच्छा सीजन है। हमें विज्ञापनदाताओं से बहुत अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है।"

दैनिक भास्कर के लिए भी यह त्योहारी सीजन बेहतरीन साबित हो रहा है। दैनिक भास्कर के चीफ कॉर्पोरेट सेल्स एंड मार्केटिंग ऑफिसर सत्यजीत सेनगुप्ता ने कहा, "नवरात्रि सीजन हमारे वार्षिक राजस्व का 15-20% हिस्सा होता है। इस साल हम सभी फेस्टिव कैटेगरी को बड़े पैमाने पर अखबारों में विज्ञापन करते हुए देख रहे हैं। हमें पिछले साल के मुकाबले दोहरे अंकों की वृद्धि की उम्मीद है।"

ज्वेलरी, ऑटोमोबाइल, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, उपकरण और रियल एस्टेट जैसे सेक्टर्स ने त्योहारी सीजन की शुभता का फायदा उठाते हुए विज्ञापन में बढ़त बनाई है। उम्मीद है कि दशहरा तक इन विज्ञापनों में और इजाफा होगा।

कुछ पब्लिशर्स ने 'एक्सचेंज4मीडिया' को बताया  कि कुछ अंग्रेजी व रीजनल अखबारों के लिए यह सीजन चुनौतीपूर्ण रहा। उनके विज्ञापन राजस्व में अपेक्षाओं से काफी कमी आई है। इंडस्ट्री जगत ने बताया कि वे नवरात्रि के विज्ञापनों से 20-25% वृद्धि की उम्मीद कर रहे थे, जो आमतौर पर त्योहार से 1-2 सप्ताह पहले अखबारों में आने लगती है। लेकिन मौजूदा बुकिंग के आधार पर यह वृद्धि केवल 5-10% तक ही सीमित रही है।

पब्लिशर्स का कहना है कि अगले कुछ दिनों में स्थिति में थोड़ा सुधार हो सकता है, लेकिन उम्मीदों या पिछले साल के आंकड़ों से मेल खाने की संभावना नहीं है।"

'मलयाला मनोरमा' के मार्केटिंग व ऐड सेल्स के वाइस प्रेजिडेंट वर्गीस चांडी ने कहा, "केरल जैसे राज्यों में नवरात्रि कोई बड़ा त्यौहार नहीं है। ऐसे राज्यों में प्रकाशकों की उम्मीदें दिवाली से जुड़ी हैं, जो महीने के अंत में है।"

विज्ञापन एजेंसियां आमतौर पर इस त्योहारी सीजन की गहमा-गहमी को याद कर रही हैं, जो उन्हें हर साल व्यस्त रखती थी।

Tgthr के सीईओ राहुल वेंगलिल ने कहा, "सामान्यत: खरीदारी के लिए बेहतरीन समय 2-3 सप्ताह का ही समय होता है। नवरात्रि के विज्ञापन तीन हफ्ते पहले ही शुरू हो जाने चाहिए थे और इस समय दिवाली कैम्पेंस शुरू हो जाने चाहिए थे। लेकिन हम अभी भी विज्ञापनों की उस बाढ़ का इंतजार कर रहे हैं, जो आमतौर पर त्योहारों के उत्साह को दर्शाती है।"

हालांकि केंद्र और राज्य सरकारों के विज्ञापन अभियान, खासकर महाराष्ट्र जैसे चुनावी राज्यों में, इस अवधि में कई अखबारों को आगे बढ़ने में मदद कर रहे हैं। 

हर त्योहारी सीजन में रियल एस्टेट, ऑटोमोबाइल, शिक्षा, रिटेल, ज्वेलरी, FMCG और BFSI जैसे प्रमुख क्षेत्रों में विज्ञापन का बजट बढ़ जाता है। इस साल जब पूरा त्योहारी सीजन एक ही महीने में सिमट गया है, प्रिंट मीडिया में विज्ञापन की गति अब भी धीमी है।

उपभोक्ता व्यवहार में बदलाव, विश्वसनीय पाठक डेटा की कमी और साल भर विवेकाधीन खर्च - ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म द्वारा दी जाने वाली आसान EMI की वजह से - विज्ञापनदाताओं की अख़बारों में घटती दिलचस्पी के लिए जिम्मेदार ठहराए जा रहे कारकों में से हैं।

विज्ञापनदाताओं का कहना है कि इसके अलावा, कमजोर होते उपभोक्ता के सेंटीमेंट्स, उच्च मुद्रास्फीति और व्यापक बेरोजगारी बड़ी चिंताएं हैं। अधिकांश लोग आवश्यक वस्तुओं से अधिक खर्च करने की स्थिति में नहीं हैं। इसलिए, हम अभी सावधानी से खर्च कर रहे हैं।"

कई ब्रैंड लीडर्स ने कहा कि उन्होंने लोकसभा चुनावों के दौरान पहले ही बहुत पैसा खर्च कर दिया है। इसलिए, उनका त्यौहारी बजट पिछले साल जितना बड़ा नहीं है। महाराष्ट्र जैसे चुनावी राज्यों में, कुछ सरकारी कैम्पेंस ने स्थिति को बचाया है।

PMAR के अनुसार, प्रिंट मीडिया के विज्ञापन राजस्व में 4% की वृद्धि दर्ज की गई, फिर भी यह कोविड-पूर्व के अपने उच्चतम स्तर 20,045 करोड़ रुपये से पीछे रह गया और 2023 के लिए 19,250 करोड़ रुपये पर पहुंच गया।  

प्रिंट मीडिया के कुल विज्ञापन खर्च (AdEx) में हिस्सा कम हो रहा है। 2014 में, प्रिंट मीडिया का कुल विज्ञापन खर्च में 41% हिस्सा था, लेकिन इसके बाद से इसमें लगातार गिरावट आ रही है। हाल के आंकड़ों के अनुसार, इस हिस्सेदारी में और दो प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है।

क्रिसिल की जुलाई 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, इस वित्तीय वर्ष में क्षेत्रीय प्रिंट मीडिया कंपनियों का विज्ञापन राजस्व 8-9% तक बढ़ने की उम्मीद है। हालांकि, वित्तीय वर्ष 2024 (FY24) के लिए उनकी वृद्धि की भविष्यवाणी 13-15% थी, यानी वास्तविक वृद्धि अपेक्षा से कम हो सकती है।

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कश्मीर को लेकर 'टाइम्स ऑफ इंडिया' से हुई ये बड़ी चूक, मांगी माफी

टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपने बयान में कहा कि यह गलती उत्तर प्रदेश के कुछ शुरुआती संस्करणों में हुई थी और यह चूक एक विदेशी न्यूज एजेंसी द्वारा भेजे गए फोटो कैप्शन के कारण हुई।

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Published - Friday, 25 April, 2025
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Friday, 25 April, 2025
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प्रमुख अंग्रेजी अखबार 'टाइम्स ऑफ इंडिया' से एक गंभीर चूक हो गई, जब उसके एक स्थानीय संस्करण में श्रीनगर स्थित डल झील की तस्वीर के नीचे कश्मीर को 'Indian controlled Kashmir' बताया गया। इस शब्दावली को लेकर जनता में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली। सोशल मीडिया पर अखबार की आलोचना शुरू होने के बाद 'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने तत्काल माफी मांगते हुए स्पष्टीकरण जारी किया।

अपने आधिकारिक बयान में अखबार ने कहा कि यह गलती उत्तर प्रदेश के शुरुआती संस्करणों के सीमित हिस्से में हुई थी और इसका कारण एक विदेशी न्यूज एजेंसी द्वारा भेजे गए फोटो कैप्शन का प्रयोग करना था। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह त्रुटि अखबार के मुख्य राष्ट्रीय संस्करणों, ऑनलाइन वेबसाइट या ई-पेपर में नहीं हुई थी और जैसे ही इस गलती का पता चला, इसे तुरंत ठीक कर दिया गया।

'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने अपने बयान में दो टूक कहा, "हम पूरे देश की तरह स्पष्ट रूप से और मजबूती से यह दोहराते हैं कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न और अविभाज्य हिस्सा है। यह हमारी निरंतर संपादकीय नीति रही है, जो पूरी तरह भारत के संविधान और भारतीय जनभावना के अनुरूप है।"

अखबार ने कहा कि वह इस चूक को बहुत गंभीरता से लेता है और देशवासियों की भावनाओं का सम्मान करता है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने भरोसा दिलाया कि वह उच्चतम पत्रकारिता मूल्यों और भारत की एकता एवं अखंडता के प्रति पूरी तरह समर्पित है। उन्होंने कहा, "हम इस चूक के लिए गहरा खेद प्रकट करते हैं और भविष्य में इस तरह की त्रुटियों से पूरी सावधानी बरतने के लिए प्रतिबद्ध हैं।" 

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इंडिया टुडे ग्रुप ने लॉन्च किया HELLO! इंडिया, रुचिका मेहता होंगी एडिटर

इंडिया टुडे ग्रुप ने अपने लाइफस्टाइल पोर्टफोलियो में एक और नया नाम जोड़ते हुए HELLO! इंडिया के लॉन्च की घोषणा की है।

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Published - Thursday, 24 April, 2025
Last Modified:
Thursday, 24 April, 2025
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इंडिया टुडे ग्रुप ने अपने लाइफस्टाइल पोर्टफोलियो में एक और नया नाम जोड़ते हुए HELLO! इंडिया के लॉन्च की घोषणा की है। यह मैगजीन प्रिंट संस्करण के साथ ही डिजिटल प्लेटफॉर्म- वेबसाइट व सोशल मीडिया पर भी अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज कराएगी। इसके अलावा इसके प्रमुख कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे।

मैगजीन की संपादकीय टीम का नेतृत्व रुचिका मेहता करेंगी, जो बतौर एडिटर जिम्मेदारी संभालेंगी। लाइफस्टाइल मीडिया में 25 वर्षों से अधिक का अनुभव रखने वाली रुचिका इससे पहले HELLO! इंडिया की लॉन्चिंग एडिटर रह चुकी हैं और करीब 17 वर्षों तक इसका संचालन कर चुकी हैं।

वहीं, बिजनेस टीम का नेतृत्व इंडिया टुडे ग्रुप की लाइफस्टाइल व लग्जरी बिजनेस COO साक्षी कोहली करेंगी। साक्षी पिछले 17 वर्षों से ग्रुप से जुड़ी हुईं हैं और Harper’s Bazaar, Cosmopolitan और Brides Today जैसी मैगजींस के बिजनेस को लीड करती हैं। उनके पास मीडिया और एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में ब्रैंड बिल्डिंग, इवेंट्स और कम्युनिकेशन का दो दशक से ज्यादा का अनुभव है।

इंडिया टुडे ग्रुप की वाइस चेयरपर्सन और एग्जिक्यूटिव एडिटर-इन-चीफ कली पुरी ने मैगजीन की लॉन्चिंग पर कहा, “HELLO! को अपने लाइफस्टाइल ब्रैंड्स में शामिल करना हमारे लिए बेहद उत्साहजनक है। भारत में सेलिब्रिटी और लग्जरी कल्चर तेजी से बढ़ रहा है और यह लॉन्चिंग का सबसे उपयुक्त समय है। मुझे पूरा यकीन है कि हम HELLO! को भारत में एक अग्रणी ब्रैंड बनाएंगे।”

HELLO! और HOLA S.L. ग्रुप के चेयरमैन एडुआर्डो सांचेज पेरेज ने कहा, “जैसे HOLA! अपनी 80वीं सालगिरह मना रहा है, वैसे ही HELLO! इंडिया का इस कहानी का हिस्सा बने रहना हमारे लिए गर्व और खुशी की बात है। हमें विश्वास है कि इसके पाठकों को इसमें हर बार कुछ नया और जश्न मनाने लायक मिलेगा।”

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पहलगाम आतंकी हमले के खिलाफ अखबारों का काला विरोध, पहले पन्ने पर दर्द व सवाल

पिछले दिनों पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले के विरोध में बुधवार को कश्मीर के प्रमुख अखबारों ने अपने पहले पन्ने पर 'ब्लैकआउट' कर एक सशक्त प्रतीकात्मक विरोध दर्ज किया।

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Published - Wednesday, 23 April, 2025
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Wednesday, 23 April, 2025
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जम्मू-कश्मीर के मशहूर पर्यटन स्थल पहलगाम के बैसरन में मंगलवार दोपहर आतंकियों ने हमला किया। इस हमले में 28 लोगों की मौत हो गई है, जिनमें से ज्यादातर पर्यटक थे, जबकि कई अन्य घायल हुए हैं। इस भीषण आतंकी हमले के विरोध में बुधवार को कश्मीर के प्रमुख अखबारों ने अपने पहले पन्ने पर 'ब्लैकआउट' कर एक सशक्त प्रतीकात्मक विरोध दर्ज किया।  

'ग्रेटर कश्मीर', 'राइजिंग कश्मीर', 'कश्मीर उजमा', 'आफताब' और 'तमीले इरशाद' समेत घाटी के नामचीन अंग्रेजी और उर्दू दैनिकों ने परंपरागत डिजाइन को छोड़ते हुए अपने पहले पन्ने को पूरी तरह काले रंग में प्रकाशित किया। हेडलाइन और संपादकीय सफेद और लाल रंग में छापे गए, जिससे दर्द और आक्रोश का स्पष्ट संदेश उभरकर सामने आया।

‘‘ग्रुसम: कश्मीर गटेड, कश्मीरीज ग्रीविंग’’ (भयावह: कश्मीर तबाह, शोक में कश्मीरी) 'ग्रेटर कश्मीर' ने इस हेडलाइन के साथ हमले की गंभीरता को रेखांकित किया। इसके बाद लाल रंग में उपशीर्षक दिया गया ‘‘26 किल्ड इन डेडली टेरर अटैक इन पहलगाम’’ (पहलगाम में भयावह आतंकी हमले में 26 की मौत)।

अखबार के पहले पन्ने पर छपे संपादकीय का शीर्षक था, ‘‘द मैसकर इन द मेडो - प्रोटेक्ट कश्मीर्स सोल’’ (घाटी में कत्लेआम – कश्मीर की रूह की हिफाजत जरूरी), जिसमें निर्दोष जानों की क्षति पर गहरा शोक जताया गया और घाटी की शांति व सौंदर्य की छवि पर पड़े साये को लेकर चिंता जाहिर की गई।

संपादकीय में लिखा गया – “यह नृशंस हमला सिर्फ इंसानों पर नहीं, बल्कि कश्मीर की पहचान, संस्कृति, मेहमाननवाजी और अर्थव्यवस्था पर सीधा वार है। कश्मीर की आत्मा इस बर्बरता की घोर निंदा करती है और उन परिवारों के साथ गहरी संवेदना प्रकट करती है, जो यहां सुंदरता खोजने आए थे, लेकिन त्रासदी ले गए।”

लेख में यह भी उठाया गया कि जिस बेताब घाटी में यह हमला हुआ, वहां केवल पैदल या खच्चर के जरिए ही पहुंचा जा सकता है। ऐसे में इतने दुर्गम और पर्यटकों से भरे इलाके में हमला होना सुरक्षा व्यवस्था की गंभीर चूक को दर्शाता है। “यह घटना खुफिया और समन्वय के स्तर पर गहरी खामी का संकेत है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह एक चेतावनी है जिसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए।”

अखबारों ने सरकार, सुरक्षाबलों, सिविल सोसाइटी और आम नागरिकों से मिलकर एकजुट होकर आतंक के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई की मांग की। संपादकीय में यह भी कहा गया, “कश्मीर के लोगों ने वर्षों से हिंसा झेली है, लेकिन उनका हौसला नहीं टूटा। यह हमला हमें बांटने नहीं, बल्कि आतंक के खिलाफ एकजुट करने का अवसर होना चाहिए।”

अंत में आह्वान किया गया कि “आइए मिलकर यह सुनिश्चित करें कि पहलगाम की वादियों में फिर से हंसी गूंजे, गोलियों की आवाज नहीं। और कश्मीर, एक बार फिर अमन और तरक्की की मिसाल बने।”

यह संपादकीय प्रदर्शन न केवल घाटी की पत्रकारिता का साहस दिखाता है, बल्कि आम कश्मीरियों की आवाज को भी मुखर करता है – जो शांति चाहते हैं, और हर तरह की हिंसा के खिलाफ खड़े हैं।

इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय अखबार 'दैनिक जागरण' ने भी पहलगाम हमले के विरोध में अपना फ्रंट पेज ब्लैक एंड व्हाइट किया और शीर्षक दिया- कश्मीर में आतंकी हमला, 28 की मौत। यह शीर्षक लाल रंग में छापा गया। 

 
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‘एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजींस’ ने सरकार के समक्ष रखीं चुनौतियां, समाधान की अपील

इसके साथ ही ‘एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजींस’ ने सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव से मुलाकात की मांग भी की है, ताकि वह इन मुद्दों पर चर्चा कर सकें और समाधान के लिए मिलकर काम किया जा सके।

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Published - Tuesday, 22 April, 2025
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Tuesday, 22 April, 2025
AIM.

40 से अधिक पब्लिशर्स का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था ‘एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजींस’ (AIM) ने मैगजीन इंडस्ट्री की स्थिरता को खतरे में डाल रही गंभीर चुनौतियों को दूर करने के लिए सरकार से अपील की है।

इस बारे में 17 अप्रैल 2025 को जारी एक ज्ञापन में ‘एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजींस’ ने नियामक अस्पष्टताओं, लॉजिस्टिक समस्याओं और संस्थागत समर्थन की आवश्यकता जैसे मुद्दों पर अपनी चिंताएं जाहिर की हैं।

‘एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजींस’ ने वर्ष 2023 में लागू हुए प्रेस एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ पीरियोडिकल्स (PRP) एक्ट को लेकर आशंका जताई है और कहा है कि यह ‘अखबारों’ और ‘पीरियोडिकल्स’ (पत्रिकाओं) के बीच स्पष्ट भेद करता है, जबकि 1867 का पुराना कानून (Press and Registration of Books Act) ऐसा नहीं करता था।

‘AIM’ के अनुसार, ‘इस नई परिभाषा के चलते रियायती डाक दर, रेल परिवहन, न्यूजप्रिंट पर कम कस्टम ड्यूटी और सरकारी विज्ञापन जैसी सुविधाओं की पात्रता को लेकर भ्रम की स्थिति बन गई है। कुछ पब्लिकेशंस को डाक नवीनीकरण से इनकार किए जाने की घटनाएं भी सामने आ चुकी हैं।’

ऐसे में संस्था ने सरकार से अपील की है कि वह स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करे ताकि अखबारों और मैगजींस, दोनों को ही पूर्व में प्राप्त रियायतें और सुविधाएं पहले की तरह मिलती रहें।

‘AIM’ के अनुसार, ‘मैगजीन इंडस्ट्री पारंपरिक रूप से कम लागत वाले डिस्ट्रीब्यूशन के लिए भारतीय रेलवे पर निर्भर रही है। लेकिन हालिया नीतिगत बदलावों-जैसे कि उत्तरी रेलवे की पैसेंजर ट्रेनों में दोनों SLR डिब्बों का लीज पर जाना और यात्रियों के सामान की सीमा 400 किलोग्राम तक सीमित करना, ने इस मॉडल को बाधित कर दिया है। अब पब्लिशर्स को डिस्ट्रीब्यूशन के लिए कमर्शियल रेट या लीज कॉस्ट चुकानी पड़ रही है, जिससे लागत में इजाफा हो गया है।’

‘एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजींस’ ने मांग की है कि देशभर में जिन 18–20 ट्रेनों का इस्तेमाल मैगजींस डिस्ट्रीब्यूशन के लिए आम तौर पर होता है, उनमें कम से कम 1,000 किलो स्पेस आरक्षित किया जाए ताकि लॉजिस्टिक समस्याओं को कम किया जा सके।

संस्था ने यह भी आग्रह किया है कि सरकारी वित्त पोषित शैक्षणिक और सांस्कृतिक संस्थानों में मैगजींस की सदस्यता को बढ़ावा दिया जाए। ‘AIM’ के अनुसार, ‘देश में 10 लाख से अधिक स्कूल, 58,000 उच्च शिक्षा संस्थान और 54,000 से अधिक सार्वजनिक पुस्तकालय हैं।’ संस्था ने सुझाव दिया है कि विभिन्न मंत्रालय सरकारी स्कूलों (जैसे कि केवीएस और जेएनवीएस), विश्वविद्यालयों और कॉलेजों (यूजीसी/AICTE द्वारा वित्त पोषित), सार्वजनिक पुस्तकालयों और अन्य संस्थानों में मैगजींस के सबस्क्रिप्शन के लिए बजट आवंटन को प्रोत्साहित करें। ‘AIM’ ने उल्लेख किया कि बिहार, तमिलनाडु और तेलंगाना जैसे राज्यों ने पहले ही इस दिशा में पहल की है और यदि केंद्र सरकार सहयोग करे तो इस पहल को राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार दिया जा सकता है।

इसके साथ ही ‘एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजींस’ ने सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव से मुलाकात की मांग की है, ताकि वह इन मुद्दों पर चर्चा कर सकें और समाधान के लिए मिलकर काम किया जा सके।

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हिन्दुस्तान में मधुर अग्रवाल बने दिल्ली-NCR के सर्कुलेशन सेल्स हेड

हिन्दुस्तान ब्रैंड टीम ने अपने मार्केटिंग और सर्कुलेशन विभाग में कुछ अहम नेतृत्व बदलावों की घोषणा की है।

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Published - Saturday, 19 April, 2025
Last Modified:
Saturday, 19 April, 2025
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हिन्दुस्तान ब्रैंड टीम ने अपने मार्केटिंग और सर्कुलेशन विभाग में कुछ अहम नेतृत्व बदलावों की घोषणा की है। अब तक HH (हिन्दुस्तान हिंदी) मार्केटिंग का नेतृत्व कर रहे मधुर अग्रवाल को तुरंत प्रभाव से दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के लिए सर्कुलेशन सेल्स हेड की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

वहीं, HH मार्केटिंग की कमान अब सलील दीक्षित को सौंपी गई है। सलील वर्ष 2011 में HT मीडिया से जुड़े थे और शुरुआत में उन्होंने इनसाइट्स टीम में काम किया था। इसके बाद वे ब्रैंड मार्केटिंग, रणनीति और एक्सपीरिएंशल इवेंट्स जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय रहे। हाल ही में उन्होंने HH इवेंट्स वर्टिकल में अपनी भूमिका निभाई थी।

HT मीडिया के मार्केटिंग हेड सौरभ शर्मा ने एक आंतरिक मेल में कहा, “अपनी नई भूमिका में सलील मुझे रिपोर्ट करेंगे। मैं मधुर और सलील- दोनों को उनकी नई जिम्मेदारियों के लिए बधाई देता हूं। मुझे पूरा भरोसा है कि वे अपने-अपने कार्यक्षेत्र में नई ऊर्जा और दृष्टिकोण लेकर आएंगे।”

इन बदलावों को संगठन के भीतर सकारात्मक ऊर्जा और नेतृत्व क्षमता को आगे बढ़ाने की दिशा में एक कदम माना जा रहा है।

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रीडरशिप सर्वे की बहाली के लिए MRUC विज्ञापनदाताओं से ले सकता है मदद

2020 से रुकी हुई इंडियन रीडरशिप सर्वे को फिर शुरू करने की संभावनाएं नजर आ रही हैं। मीडिया रिसर्च यूजर्स काउंसिल इंडिया अब इस सर्वे के लिए विज्ञापनदाताओं को साथ जोड़कर फंडिंग का रास्ता तलाश रहा है

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Published - Wednesday, 16 April, 2025
Last Modified:
Wednesday, 16 April, 2025
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कंचन श्रीवास्तव, सीनियर एडिटर व ग्रुप एडिटोरियल इवैन्जिलिस्ट, एक्सचेंज4मीडिया ग्रुप ।।

2020 से रुकी हुई इंडियन रीडरशिप सर्वे (IRS) को एक बार फिर शुरू करने की संभावनाएं नजर आ रही हैं। मीडिया रिसर्च यूजर्स काउंसिल (MRUC) इंडिया अब इस सर्वे के लिए विज्ञापनदाताओं को साथ जोड़कर फंडिंग का रास्ता तलाश रहा है।

MRUC के एक वरिष्ठ बोर्ड सदस्य ने 'एक्सचेंज4मीडिया' को बताया, 'मीडिया हाउस इस सालाना रीडरशिप सर्वे की लागत उठाने को तैयार नहीं हैं, ऐसे में विज्ञापनदाताओं से मदद ली जा सकती है ताकि फाइनेंशियल बोझ साझा किया जा सके।'

इस साल फरवरी में MRUC ने अपनी टेक्निकल कमेटी को निर्देश दिया था कि वह IRS के प्रश्नपत्र की समीक्षा करे और सर्वे के लिए किसी एजेंसी को शॉर्टलिस्ट करे। पिछले दो महीनों में पूरी योजना बना ली गई है।

एक अन्य बोर्ड सदस्य ने कहा, 'हम सर्वे शुरू करने के लिए तैयार हैं, बशर्ते मीडिया मालिक फंडिंग में योगदान दें। हालांकि कई मीडिया हाउस ने भुगतान में असमर्थता जताई है। उनका कहना है कि पिछले दो वर्षों में विज्ञापन बाजार कमजोर रहा है, जिससे राजस्व पर असर पड़ा है। ऐसे में हम अब विज्ञापनदाताओं से फंडिंग पर विचार कर सकते हैं, क्योंकि सर्वे का लाभ उन्हें भी मिलेगा।'

कोविड के बाद पहली रीडरशिप स्टडी

यह प्रस्तावित सर्वे कोविड के बाद का पहला IRS होगा, जो मीडिया इंडस्ट्री पर व्यापक असर डाल सकता है। बीते वर्षों में डिजिटल न्यूज प्लेटफॉर्म्स की ओर रुझान बढ़ने से पारंपरिक मीडिया का रीडरशिप बेस घटा है। वहीं, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की आमदनी लगातार बढ़ रही है, जिससे इंडस्ट्री की संरचना बदल रही है।

एक मीडिया मालिक ने कहा, 'पिछले पांच वर्षों से IRS नहीं होने के चलते बाजारियों को आंख मूंदकर फैसले लेने पड़े हैं। वे इस सर्वे को वापस लाना चाहते हैं, लेकिन कोविड के बाद प्रिंट मीडिया की स्थिति बदल गई है, जिससे पब्लिशर सर्वे के नतीजों को लेकर आशंकित हैं। अगर हमें प्रिंट इंडस्ट्री को आगे ले जाना है तो यह गतिरोध खत्म करना जरूरी है।'

फंडिंग बनी सबसे बड़ी चुनौती

पहले, मीडिया मालिकों ने 2019 के कॉस्ट शेयरिंग मॉडल को बनाए रखने पर सहमति जताई थी, जिसमें योगदान प्रिंट सर्कुलेशन के आधार पर तय किया गया था। लेकिन आगामी सर्वे की लागत ₹20 करोड़ से अधिक होने का अनुमान है, जो 2019 में खर्च हुई राशि से ज्यादा है। मौजूदा आर्थिक दबावों के चलते यह फंडिंग बड़ी रुकावट बन गई है।

MRUC अब विभिन्न वित्तीय विकल्पों पर विचार कर रहा है, जिनमें विज्ञापनदाता अहम भूमिका निभा सकते हैं। इन चर्चाओं का नतीजा ही तय करेगा कि IRS का भविष्य क्या होगा।

IRS के अलावा, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा रीडरशिप सर्वे माना जाता है और जो भारत में प्रिंट मीडिया की "आधिकारिक करेंसी" भी है, MRUC ने इंडियन आउटडोर सर्वे (IOS) और इंडियन लिसनरशिप ट्रैक (ILT) जैसे इनिशिएटिव्स भी शुरू किए हैं।

e4m की एक पूर्व रिपोर्ट के अनुसार, मीडिया मालिकों ने 2019 के समान ही कॉस्ट शेयरिंग फॉर्मूला लागू करने पर सहमति जताई थी, जिसमें हिस्सेदारी प्रिंट सर्कुलेशन के अनुसार तय की जाती थी। हालांकि MRUC ने योगदान जमा करने की कोई समयसीमा तय नहीं की थी।

काउंसिल के एक सदस्य ने कहा, 'भले ही पैसे इकट्ठा हो जाएं, MRUC को सर्वे एजेंसी फाइनल करने में कम से कम छह महीने लगेंगे। इसका मतलब है कि यह सर्वे साल के अंत से पहले शुरू नहीं हो सकेगा।'

पाठक आंकड़े: विज्ञापनदाताओं के लिए अहम

आखिरी बार IRS 2019 में हुआ था। 2020 में यह सर्वे पहले महामारी और फिर लागत संबंधी चिंताओं व स्टेकहोल्डर्स की घटती दिलचस्पी के चलते रुक गया था। कई अखबार, खासतौर पर अंग्रेजी डेली, आज भी सर्कुलेशन और राजस्व में महामारी से पहले की स्थिति तक नहीं पहुंच सके हैं।

IRS, जिसे MRUC इंडिया और रीडरशिप स्टडीज काउंसिल ऑफ इंडिया (RSCI) मिलकर करते हैं, एक समय दुनिया का सबसे बड़ा सतत सर्वे माना जाता था, जिसमें हर साल 2.56 लाख से ज्यादा प्रतिभागी शामिल होते थे।

यह सर्वे विज्ञापनदाताओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके आंकड़े तय करते हैं कि कौन-से अखबारों में विज्ञापन दिए जाएं। IRS भारत में प्रिंट व मीडिया खपत, डेमोग्राफिक्स, प्रोडक्ट ओनरशिप और 100 से ज्यादा प्रोडक्ट कैटेगरीज के उपयोग की जानकारी देता है।

डिजिटल की चुनौती में घिरा प्रिंट

डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के वर्चस्व वाले मौजूदा परिदृश्य में प्रिंट मीडिया पर बदलाव का दबाव लगातार बढ़ रहा है। कई अखबारों ने सर्कुलेशन में 15–20% की कटौती की है और घाटे वाले संस्करणों को बंद कर दिया है। हाल के महीनों में प्रिंट विज्ञापनों से राजस्व में थोड़ी वृद्धि जरूर देखी गई है, लेकिन यह विज्ञापन दरों में गिरावट के चलते है, न कि ब्रैंड्स के कुल विज्ञापन खर्च में वृद्धि के कारण।

वर्तमान में प्रिंट मीडिया देश के कुल विज्ञापन खर्च का केवल 20% हिस्सा प्राप्त कर रहा है, जबकि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स 44% और टेलीविजन 32% हिस्सा लेते हैं।

इंडस्ट्री एक्सपर्ट मानते हैं कि अगर पाठक संख्या से जुड़ा विश्वसनीय और अपडेटेड डेटा उपलब्ध हो तो विज्ञापनदाता प्रिंट में अपने बजट का बड़ा हिस्सा लगाने को तैयार हो सकते हैं।

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प्रिंट मीडिया पर टिकीं भारत की भरोसेमंद खबरें, विज्ञापन खर्च में 6% की सालाना बढ़ोतरी

वॉर्क (WARC) की ताजा ग्लोबल ऐड ट्रेंड्स रिपोर्ट के मुताबिक, देश में न्यूज ब्रैंड्स पर विज्ञापन खर्च में साल दर साल 6% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

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Published - Tuesday, 15 April, 2025
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Tuesday, 15 April, 2025
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भारत में प्रिंट मीडिया ने एक बार फिर खुद को वैश्विक ट्रेंड से अलग साबित किया है। यहां WARC की ताजा रिपोर्ट Global Ad Trends: Advertising's Breaking News Problem के अनुसार भारत में प्रिंट मीडिया ने साल-दर-साल 6% की वृद्धि दर्ज की है, जो न्यूजब्रैंड विज्ञापन खर्च में आई तेजी को दर्शाता है।

रिपोर्ट के मुताबिक, "भारत का न्यूज सेक्टर वैश्विक रुझान से अलग दिशा में बढ़ रहा है। जहां अन्य देशों में डिजिटल माध्यमों के चलते प्रिंट का दबदबा कम हो रहा है, वहीं भारत में प्रिंट मीडिया अब भी मजबूती से बना हुआ है। यही नहीं, भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्रिंट मीडिया बाजार बन चुका है, जबकि शहरी दर्शक तेजी से डिजिटल प्लेटफॉर्म की ओर रुख कर रहे हैं।"

यह बढ़त उस वैश्विक रुझान से ठीक उलटी है जिसमें बताया गया है कि दुनियाभर में न्यूजब्रैंड पर विज्ञापन खर्च 2024 में घटकर 32.3 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है, जो 2019 से 33.1% की गिरावट को दर्शाता है। इसके साथ ही 2026 तक इसमें कोई विशेष बदलाव नहीं आने की संभावना है। वहीं, पत्रिकाओं के लिए विज्ञापन खर्च 2025 में केवल 3.7 अरब डॉलर रहने की उम्मीद है, जो 2019 की तुलना में 38.6% की गिरावट है।

रिपोर्ट कहती है, "आज के दौर में ट्रेड वॉर से लेकर सशस्त्र संघर्षों तक की गंभीर खबरें भले ही दर्शकों को आकर्षित करती हों, लेकिन वे विज्ञापनदाताओं को लुभाने में नाकाम रहती हैं।"

सामग्री की प्रकृति और सुरक्षा से जुड़े सवालों के चलते ब्रैंड्स अब Google और Meta जैसे वैश्विक डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की ओर झुक रहे हैं, जहां उन्हें टार्गेटेड और बड़े पैमाने पर विज्ञापन दिखाने की सुविधा मिलती है। भविष्य की ग्रोथ इस बात पर निर्भर करेगी कि ब्रैंड्स कितनी कुशलता से फ़र्स्ट पार्टी डेटा, भरोसेमंद वातावरण और विज्ञापन के अलावा राजस्व के अन्य स्रोत, जैसे सब्सक्रिप्शन और सीधे उपभोक्ता संबंध को अपनाते हैं।

WARC की यह रिपोर्ट इस बदलाव की भी पड़ताल करती है कि कैसे विज्ञापन खर्च पारंपरिक, प्रोफेशनल पत्रकारिता से हटकर यूजर जेनरेटेड कंटेंट (UGC) और उन ‘क्रिएटर-जर्नलिस्ट्स’ की ओर बढ़ रहा है, जो डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के इकोसिस्टम में काम करने को तैयार हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि समाचार प्रकाशक इस गिरावट से कैसे निपट रहे हैं और वे यह कैसे साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि प्रोफेशनल पत्रकारिता विज्ञापन प्रभावशीलता के लिए कितनी अहम है।

WARC मीडिया के कंटेंट हेड एलेक्स ब्राउनसेल कहते हैं, "ब्रैंड्स अब कठिन खबरों से दूरी बनाने लगे हैं। कीवर्ड ब्लॉकिंग के चलते प्रकाशकों के लिए महत्वपूर्ण खबरों से कमाई करना मुश्किल हो गया है, और विज्ञापन निवेश अब प्रोफेशनल पत्रकारिता से हटकर ‘क्रिएटर-जर्नलिस्ट्स’ की ओर शिफ्ट हो रहा है।"

वे आगे जोड़ते हैं, "इस रिपोर्ट में हमने यह देखा कि न्यूज मीडिया में विज्ञापन का पैसा अब कहां जा रहा है और न्यूजब्रैंड्स उसे वापस लाने के लिए क्या कर रहे हैं।"

नरम कंटेंट के पक्ष में झुकाव, न्यूज मीडिया की मुश्किलें

सभी प्लेटफॉर्म्स पर खबरों पर विज्ञापन खर्च में गिरावट देखी जा रही है। भले ही दर्शकों की रुचि गंभीर खबरों में हो, लेकिन ब्रैंड्स इन्हें अक्सर 'डिमॉनेटाइज' कर देते हैं क्योंकि वे अपनी प्रतिष्ठा को जोखिम में नहीं डालना चाहते। विवादास्पद या संवेदनशील खबरों के साथ विज्ञापन दिखाने से बचते हुए वे खेल और लाइफस्टाइल जैसे हल्के विषयों को प्राथमिकता दे रहे हैं।

Nielsen के अनुसार, 2024 में UK के कुल टीवी विज्ञापन खर्च का केवल 3.7% (£177 मिलियन) न्यूज प्रोग्रामिंग पर गया। अमेरिका में फार्मा ब्रैंड्स अब न्यूज ब्रॉडकास्टर्स के लिए जरूरी हो गए हैं, जो नेशनल टीवी विज्ञापन बिक्री का 12% हिस्सा रखते हैं।

यह स्थिति खबरों को कंटेंट कैटेगरी के रूप में मिलने वाली अहमियत पर सवाल उठाती है और इस बात पर भी कि क्या ब्रैंड्स को केवल ऑडियंस टार्गेटिंग पर ध्यान देना चाहिए, न कि कंटेंट की प्रकृति पर।

2026 तक यूजर जेनरेटेड कंटेंट विज्ञापन खर्च में पारंपरिक मीडिया को पीछे छोड़ सकता है

जब न्यूज मीडिया पहले से ही संकट से जूझ रहा है, तब विज्ञापनदाताओं की प्राथमिकता यूजर जेनरेटेड कंटेंट (UGC) की ओर शिफ्ट हो रही है, जिसे सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स और कंटेंट क्रिएटर्स तैयार करते हैं। इसकी खासियत है—कम लागत, सीधा जुड़ाव और एल्गोरिदम के अनुकूल कंटेंट।

पारंपरिक मीडिया, जो पत्रकारिता में भारी निवेश करता है और कड़े मानकों के तहत काम करता है, इस प्रतिस्पर्धा में पिछड़ रहा है। खासकर उस न्यूज इंडस्ट्री के लिए यह और घातक है जो विज्ञापन पर निर्भर है। यह इंडस्ट्री पहले से चेतावनी देती आ रही है कि प्रोफेशनल पत्रकारिता में निवेश की कमी से नागरिक साक्षरता पर असर पड़ सकता है और झूठी खबरों के खिलाफ लड़ाई कमजोर हो सकती है।

GroupM के मुताबिक, अगले साल तक प्रोफेशनल रूप से तैयार किया गया कंटेंट, कंटेंट-ड्रिवन विज्ञापन खर्च का आधे से भी कम रह जाएगा। TikTok, पॉडकास्ट और एआई जनरेटेड कंटेंट की बढ़ती भूमिका इस ट्रेंड को और तेज कर रही है।

GroupM में बिजनेस इंटेलिजेंस की ग्लोबल प्रेसिडेंट, केट स्कॉट-डॉकिन्स कहती हैं, "जैसे-जैसे छोटे और मंझले विज्ञापनदाताओं का खर्च टॉप 200 बड़े ब्रैंड्स से तेजी से बढ़ रहा है, वैसे-वैसे यूजर जेनरेटेड कंटेंट का दबदबा और बढ़ने की संभावना है।"

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'फ्री प्रेस जर्नल' के संपादक बने वी. सुदर्शन, एस.ए. धवन ने छोड़ा पद

मुंबई के प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक द फ्री प्रेस जर्नल के लंबे समय से संपादक रहे एस.एस. धवन ने 14 अप्रैल 2025 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया है।

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Published - Tuesday, 15 April, 2025
Last Modified:
Tuesday, 15 April, 2025
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मुंबई के प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक 'द फ्री प्रेस जर्नल' के लंबे समय से संपादक रहे एस.एस. धवन ने 14 अप्रैल 2025 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। अखबार ने इसकी जानकारी अपने आज के प्रिंट संस्करण में दी।

धवन 2004 से 'द फ्री प्रेस जर्नल' के संपादकीय संचालन का नेतृत्व कर रहे थे और बीते दो दशकों में उन्होंने न केवल अखबार की दिशा तय की बल्कि उसे नए मुकाम तक पहुंचाया। उनके नेतृत्व में अखबार को नया रूप दिया गया और इसकी प्रसार संख्या में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

अखबार के प्रबंधन ने धवन के योगदान की सराहना करते हुए कहा, “धवन के नेतृत्व में 'द फ्री प्रेस जर्नल' का पुनः डिजाइन किया गया और इन वर्षों में इसकी प्रसार संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। आज 'द फ्री प्रेस जर्नल' मुंबई का एकमात्र अंग्रेजी दैनिक है, जिसे ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन्स द्वारा प्रमाणित और ऑडिट किया गया है।”

वहीं यह भी बता दें कि धवन की जगह अब वी. सुदर्शन ने ली है, जो नवंबर 2023 से 'द फ्री प्रेस जर्नल' में कार्यकारी संपादक (ऑपरेशन्स) के रूप में कार्यरत थे। अखबार ने घोषणा की कि वी. सुदर्शन 14 अप्रैल 2025 से नए संपादक के रूप में कार्यभार संभालेंगे।

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दैनिक भास्कर की बड़ी छलांग: पहली तिमाही में 1.5 लाख नई प्रतियों का इजाफा

दैनिक भास्कर ग्रुप ने जनवरी से मार्च 2025 के बीच 1.5 लाख अतिरिक्त प्रतियों की बढ़त दर्ज की है, जिसे हाल के समय में किसी भी समाचार पत्र के लिए सबसे बड़ी प्रसार वृद्धि माना जा रहा है

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Published - Monday, 14 April, 2025
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Monday, 14 April, 2025
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दैनिक भास्कर ग्रुप ने जनवरी से मार्च 2025 के बीच 1.5 लाख अतिरिक्त प्रतियों की बढ़त दर्ज की है, जिसे हाल के समय में किसी भी समाचार पत्र के लिए सबसे बड़ी प्रसार वृद्धि माना जा रहा है। इस सफलता के पीछे जमीन से जुड़ी पहल, पाठकों से मजबूत संवाद और तकनीक की मदद से डिस्ट्रीब्यूशन तंत्र को मजबूती देने की रणनीति रही।

इस उपलब्धि की शुरुआत एक बहुआयामी योजना से हुई, जिसमें 900 सदस्यों की टीम ने पाठकों से सीधे संपर्क कर रियल टाइम डेटा एकत्र किया। इसके बाद ओटीपी आधारित सब्सक्रिप्शन प्रक्रिया शुरू की गई, जिसे अखबार जगत में पहली बार अपनाया गया। इसके साथ ही "जीतो 14 करोड़" अभियान ने पाठकों की भागीदारी को काफी हद तक बढ़ाया और यह बताया कि प्रिंट मीडिया अब भी कितना प्रासंगिक है।

दैनिक भास्कर ग्रुप के ऑपरेशन्स सीओओ राकेश गोस्वामी ने कहा, “यह वृद्धि सिर्फ एक संख्या नहीं है, यह हमारे ज़मीनी जुड़ाव, तकनीकी कुशलता और पाठकों को केंद्र में रखने वाली सोच का परिणाम है। सर्वे टीम से लेकर शीर्ष प्रबंधन तक, हर सदस्य की भूमिका इसमें अहम रही।”

प्रमोटर डायरेक्टर गिरीश अग्रवाल ने कहा, “हम दैनिक भास्कर में हमेशा यह मानते हैं कि हर स्थापित सोच को चुनौती दी जा सकती है। जब दुनिया डिजिटल की बात कर रही थी, तब हमने ज़मीन पर एक खामोश क्रांति रची।”

उन्होंने आगे कहा, “यह वृद्धि इस बात का संकेत है कि जब अखबार नवाचार, अनुशासन और पाठकों के भरोसे के साथ खुद को नए रूप में पेश करते हैं, तो उनकी ताकत पहले से कहीं अधिक हो जाती है। हमें गर्व है कि पाठक दोबारा अखबारों की ओर लौट रहे हैं।”

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‘चित्रलेखा’ के 75 वर्ष पूरे: अमित शाह बोले- समाज पर कई तरह से असर डालती है जागरूक पत्रिका

अमित शाह ने कहा कि साहित्यिक यात्रा को आगे बढ़ाने और अंग्रेजी के प्रभाव वाले दौर में गुजराती साहित्य को जीवंत बनाए रखने के लिए आज ‘चित्रलेखा’ की जरूरत पहले से कहीं अधिक है।

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Published - Monday, 14 April, 2025
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Monday, 14 April, 2025
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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शनिवार को कहा कि केवल वही पत्रिका अपने पाठकों से मजबूत जुड़ाव बनाए रख सकती है, जो किसी पवित्र उद्देश्य, साहित्य के प्रति समर्पण और समाज की समस्याओं को हल करने की प्रतिबद्धता से प्रेरित हो, जैसी कि लोकप्रिय गुजराती साप्ताहिक ‘चित्रलेखा’ है।

यह बात शाह ने पत्रिका की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में कही। उन्होंने कहा कि एक जागरूक पत्रिका समाज पर कई तरह से असर डालती है।

अमित शाह ने कहा कि साहित्यिक यात्रा को आगे बढ़ाने और अंग्रेजी के प्रभाव वाले दौर में गुजराती साहित्य को जीवंत बनाए रखने के लिए आज ‘चित्रलेखा’ की जरूरत पहले से कहीं अधिक है। उन्होंने याद दिलाया कि वाजू कोटक ने इसकी स्थापना 1950 में की थी।

उन्होंने कहा, ‘पाठकों से ऐसा जुड़ाव बहुत मुश्किल होता है। यह तभी संभव है जब किसी प्रकार का लाभ लेने की मंशा न हो, उद्देश्य की पवित्रता हो, साहित्य के प्रति समर्पण हो और समाज की समस्याओं को सुलझाने की सच्ची इच्छा हो और ये सभी बातें ‘चित्रलेखा’ में हैं।’’

शाह ने कहा कि पत्रिका ने अपने 75 वर्षों के सफर में गुजरात के साहित्य, सामाजिक जीवन और समस्याओं के साथ-साथ देश और समाज को भी प्रतिबिंबित किया है।

उन्होंने कहा, ‘समाज की सभी समस्याओं को निर्भीकता से दिखाना, केवल सवाल उठाना नहीं बल्कि समाधान भी सुझाना… मुझे अच्छी तरह याद है जब गुजरात में आरक्षण आंदोलन के दौरान समाज में भारी उथल-पुथल थी, तब ‘चित्रलेखा’ ने समाज को जोड़ने की मशाल थामी थी।’’

उन्होंने कहा, ‘समाज के सहयोग के बिना साहित्य कभी आगे नहीं बढ़ सकता। गुजराती पत्रिकाओं को जीवंत बनाए रखना गुजरात की जनता और लाखों पाठकों की जिम्मेदारी है।’’

शाह ने यह भी कहा कि उन्होंने समय के साथ कई बदलाव देखे हैं, लेकिन ‘चित्रलेखा’ की विश्वसनीयता हमेशा बनी रही है।

उन्होंने ‘बुद्धि प्रकाश’, ‘सत्य विहार’ और ‘नव जीवन’ जैसे प्रकाशनों का उल्लेख करते हुए कहा कि गुजराती पत्रिकाओं ने राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका निभाई है।

चित्रलेखा के स्तंभकार, हास्य लेखक और नाटककार तारक मेहता की चर्चा करते हुए शाह ने कहा कि उनसे मिलने के बाद सबसे गंभीर व्यक्ति भी मुस्कुराने लगता था।

शाह ने कहा, ‘तारकभाई केवल चार पन्नों में पूरे गुजरातियों के दुख भुला देते थे। उन्होंने अपने जीवन से ऊपर उठकर काम किया ताकि समाज मुस्कुराता रहे। लंबे समय तक उन्होंने ‘चित्रलेखा’ के माध्यम से यह किया।’’

उन्होंने ‘चित्रलेखा’ के कई विशेष अंकों को भी याद किया, विशेषकर नर्मदा परियोजना, 26/11 मुंबई आतंकी हमले और अयोध्या में राम मंदिर पर आधारित संस्करणों को। 

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