पूर्वी भारत का प्रमुख हिंदी दैनिक ‘प्रभात खबर’ (Prabhat Khabar) आज सोशल मीडिया पर काफी ट्रेंड कर रहा है।
पूर्वी भारत का प्रमुख हिंदी दैनिक ‘प्रभात खबर’ (Prabhat Khabar) आज सोशल मीडिया पर काफी ट्रेंड कर रहा है। दरअसल, अखबार ने आज मोदी के बिहार-झारखंड दौरे को लेकर जैकेट पेज छापा है और तमाम केंद्रीय मंत्रियों और बीजेपी के बड़े नेताओं ने ‘प्रभात खबर’ के इस पेज को शेयर करते हुए ट्वीट किए हैं।
बता दें कि प्रधानमंत्री आज बिहार-झारखंड जा रहे हैं। इस दौरान प्रधानमंत्री देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर में दर्शन करेंगे और झारखंड में 16,000 करोड़ रुपये की परियोजनाओं की आधारशिला रखेंगे। बताया जाता है कि वह यहां एयरपोर्ट और एम्स का उद्घाटन भी करेंगे। मोदी के इतने विस्तृत कार्यक्रम को देखते हुए ही अखबार ने इस दौरे को इतनी कवरेज दी है और सोशल मीडिया पर छाया हुआ है।
इस बारे में भारत सरकार में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने प्रभात खबर के पेज को शेयर करते हुए अपने ट्वीट में लिखा है, ‘भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को पुनर्जीवित करने को संकल्पित आदरणीय @NarendraModi जी देश के पहले प्रधानमंत्री हैं जो स्वतंत्रता के पश्चात बाबानगरी बैद्यनाथ धाम के दर्शन करने आ रहे हैं। मोदी जी झारखंड को ₹16,835 करोड़ की विकास परियोजनाओ का उपहार भी देंगे।’
भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को पुनर्जीवित करने को संकल्पित आदरणीय @NarendraModi जी देश के पहले प्रधानमंत्री हैं जो स्वतंत्रता के पश्चात बाबानगरी बैद्यनाथ धाम के दर्शन करने आ रहे हैं।
— Piyush Goyal (@PiyushGoyal) July 12, 2022
मोदी जी झारखंड को ₹16,835 करोड़ की विकास परियोजनाओ का उपहार भी देंगे।#JoharModiJi pic.twitter.com/mDlkX7NgNp
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने लिखा है, ‘देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी, आज झारखंड वासियों को बाबा वैद्यनाथ धाम देवघर में एयरपोर्ट एवं #AIIMS सहित कुल 16,835 करोड़ की विकास परियोजनाओं की सौगात देंगे...। ‘
देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी, आज झारखंड वासियों को बाबा वैद्यनाथ धाम देवघर में एयरपोर्ट एवं #AIIMS सहित कुल 16,835 करोड़ की विकास परियोजनाओं की सौगात देंगे...#JoharModiJi pic.twitter.com/Yo0QEfw65g
— Narendra Singh Tomar (@nstomar) July 12, 2022
वहीं, बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने भी प्रभात खबर के इस पेज को ट्विटर पर शेयर किया है। अपने ट्वीट में उन्होंने लिखा है, ‘'बोल बम' आदरणीय प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी आज झारखंड वासियों को बाबा वैद्यनाथ धाम देवघर में एयरपोर्ट एवं एम्स सहित कुल 16,835 करोड़ की परियोजनाओं की सौगात देंगे।’
'बोल बम'
— Sambit Patra (@sambitswaraj) July 12, 2022
आदरणीय प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी आज झारखंड वासियों को बाबा वैद्यनाथ धाम देवघर में एयरपोर्ट एवं एम्स सहित कुल 16,835 करोड़ की परियोजनाओं की सौगात देंगे। #JoharModiJi pic.twitter.com/5Vx6Wx50ZJ
इसके साथ ही केंद्रीय मंत्री भानु प्रताप सिंह वर्मा ने भी भास्कर के पेज को शेयर करते हुए लिखा है, ‘भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को पुनर्जीवित करने को संकल्पित आदरणीय @NarendraModi जी देश के पहले प्रधानमंत्री हैं जो स्वतंत्रता के पश्चात बाबानगरी बैद्यनाथ धाम के दर्शन करने आ रहे हैं। मोदी जी झारखंड को ₹16,835 करोड़ की विकास परियोजनाओ का उपहार भी देंगे।’
भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को पुनर्जीवित करने को संकल्पित आदरणीय @NarendraModi जी देश के पहले प्रधानमंत्री हैं जो स्वतंत्रता के पश्चात बाबानगरी बैद्यनाथ धाम के दर्शन करने आ रहे हैं।
— Bhanu Pratap Singh Verma (@bpsvermabjp) July 12, 2022
मोदी जी झारखंड को ₹16,835 करोड़ की विकास परियोजनाओ का उपहार भी देंगे।#JoharModiJi pic.twitter.com/oZsj43tqMY
बता दें कि ’प्रभात खबर’ कल भी काफी चर्चाओं में रहा था। दरअसल, 11 जुलाई को इस अखबार के पटना एडिशन ने अपनी स्थापना के 26 साल पूरे कर लिए थे। इस खास मौके पर ‘प्रभात खबर’ के प्रधान संपादक आशुतोष चतुर्वेदी ने अखबार के पहले पेज पर एक विशेष संपादकीय लिखा था। यही नहीं, राज्य के महत्वपूर्ण घटनाक्रमों को समेटते हुए अखबार ने एक विशिष्ट परिशिष्ट (स्पेशल एडिशन) भी निकाला था।
इससे पहले रवीन्द्रन करीब एक साल तक 'द टाइम्स ऑफ इंडिया' के साथ एसोसिएट वाइस प्रेसिडेंट और रिस्पॉन्स हेड के रूप में जुड़े हुए थे।
HT मीडिया ग्रुप ने स्वप्निल रवीन्द्रन को साउथ का चीफ रेवेन्यू ऑफिसर नियुक्त किया है। इस खबर की घोषणा रवीन्द्रन ने अपने लिंक्डइन प्रोफाइल के जरिए की है।
एचटी मीडिया में अपनी भूमिका का वर्णन करते हुए रवीन्द्रन ने लिखा, “हिन्दुस्तान टाइम्स, हिन्दुस्तान हिंदी और मिंट के लिए प्रिंट और डिजिटल दोनों प्लेटफॉर्म पर रेवेन्यू ग्रोथ पहलों का नेतृत्व करना, दक्षिण क्षेत्र के लिए ‘वन एचटी’ नैरेटिव को और मजबूत बनाना। क्रॉस-फंक्शनल टीमों के साथ सहयोग करते हुए इनोवेटिव रणनीतियों को लागू करना, जिससे मार्केट शेयर में वृद्धि हो रही है।”
इससे पहले रवीन्द्रन करीब एक साल तक 'द टाइम्स ऑफ इंडिया' के साथ एसोसिएट वाइस प्रेसिडेंट और रिस्पॉन्स हेड के रूप में जुड़े हुए थे।
अतीत में उन्होंने 'इनमोबी' और 'द हिंदू' के साथ भी काम किया है।
देश के प्रमुख अखबारों ने महामारी के बाद से अपने सर्कुलेशन और पेज संख्या में भारी कटौती की है, जिसके चलते पिछले पांच वर्षों में अखबारों में इस्तेमाल होने वाले न्यूजप्रिंट में 25–30% की गिरावट आई है।
अंग्रेजी के शीर्ष दैनिक समेत देश के प्रमुख अखबारों ने महामारी के बाद से अपने सर्कुलेशन (प्रसार) और पेज संख्या में भारी कटौती की है, जिसके चलते पिछले पांच वर्षों में अखबारों में इस्तेमाल होने वाले न्यूजप्रिंट में 25–30% की गिरावट आई है।
जो स्थिति बाहर से देखने पर एक झटका या नुकसान जैसी लग रही थी, वास्तव में वही प्रकाशकों के लिए एक “बचाव की रणनीति” बन गई। इसी रणनीति ने उन्हें अपने विज्ञापन राजस्व को बनाए रखने और कुछ मामलों में बढ़ाने तक में मदद की है।
नाम का खुलासा न करने की शर्त पर अखबारों से जुड़े अधिकारियों ने एक्सचेंज4मीडिया को बताया, “कॉपी और पन्ने घटाने से उत्पादन लागत कम हुई, जिससे कोविड के बाद विज्ञापनदाताओं द्वारा हासिल की गई 10–15% विज्ञापन दरों की गिरावट को संतुलित किया जा सका। नतीजतन, मैदान में कम कॉपियां होने के बावजूद मौजूदा विज्ञापन वॉल्यूम पर मार्जिन बेहतर हुए। यही वजह है कि ज्यादातर कंपनियों की विज्ञापन आय 2020 के स्तर के बराबर या उससे भी ज्यादा है, जबकि सर्कुलेशन घट चुका है।”
हालांकि विज्ञापनदाताओं के लिए तस्वीर उतनी आश्वस्त करने वाली नहीं है। ज्यादातर विज्ञापनदाता अपने बजट का लगभग 10–15% प्रिंट पर खर्च करते हैं, लेकिन वास्तविक सर्कुलेशन आंकड़े स्पष्ट न होने और इंडियन रीडरशिप सर्वे (IRS) के स्थगित रहने के कारण कई लोग अपने कैंपेंस की असली पहुंच से अनजान हैं।
विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि भले ही यह रणनीति अल्पकालिक सहारा बनी हो, लेकिन लंबे समय तक टिकाऊ नहीं होगी। एक अधिकारी ने कहा, “फिलहाल पब्लिशर्स ने अपने लिए समय खरीदा है, लेकिन सवाल यह है कि कितने समय तक प्रिंट पतले कागज पर टिकेगा? सर्कुलेशन के लंबे समय तक कम आंकड़े दिखाना और पाठकों का घटता आधार अंततः विज्ञापनदाताओं का भरोसा कमजोर कर सकता है, खासकर तब, जब डिजिटल प्लेटफॉर्म लगातार और सटीक मेट्रिक्स और जवाबदेही प्रदान कर रहे हैं।”
गौरतलब है कि IRS, जिसे भारत के प्रिंट मीडिया इंडस्ट्री के लिए लंबे समय तक एकमात्र विश्वसनीय करंसी माना जाता रहा है, पिछले पांच वर्षों से रुका हुआ है। पहले कोविड-19 और फिर फंडिंग विवादों को कारण बताया गया, हालांकि इंडस्ट्री से जुड़े लोग मानते हैं कि असली बाधा पब्लिशर्स की घटती सर्कुलेशन संख्या का सामना करने में अनिच्छा है।
एक अखबार संपादक ने स्वीकार किया, “पेज और कॉपियां घटाए जाने के बावजूद, बड़ी संख्या में कॉपियां पाठकों तक पहुंचती ही नहीं, बल्कि पब्लिशर्स उन्हें कबाड़ के तौर पर बेच देते हैं और फिर भी बढ़े-चढ़े सर्कुलेशन आंकड़े दिखाते हैं। एक नया सर्वे इन असहज सच्चाइयों को उजागर कर सकता है और उनकी विज्ञापन पिच को कमजोर कर सकता है।”
सोमवार को एक्सचेंज4मीडिया ने रिपोर्ट दी कि पब्लिशर्स की मांग है कि IRS को पहले एक पायलट टेस्ट से गुजारा जाए, ताकि यह आंका जा सके कि महामारी के बाद के दौर में फिजिकल सर्वे विशेष रूप से महानगरों में अभी भी व्यावहारिक हैं या नहीं।
मीडिया रिसर्च यूजर्स काउंसिल ऑफ इंडिया (MRUCI) ने अपनी बोर्ड मीटिंग्स में इस मुद्दे पर लंबी चर्चा की, लेकिन अभी तक पायलट का दायरा, सैंपल साइज और लोकेशन तय नहीं की है, क्योंकि सदस्य पारंपरिक डोर-टू-डोर सर्वे मॉडल को लेकर बढ़ती चिंता जता रहे हैं।
MRUCI सदस्यों ने एक्सचेंज4मीडिया से कहा, “हाउसिंग सोसाइटीज पहले से ज्यादा प्रतिबंधात्मक हो गई हैं, जिससे सर्वेयर को एंट्री मिलना बेहद मुश्किल होता जा रहा है। इसके अलावा, परिवार अब निजता को ज्यादा महत्व देते हैं। मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों में पुरुष और महिलाएं दोनों सुबह से देर रात तक घर से बाहर रहते हैं, और भले ही आप उनसे मिल भी लें, वे 45 मिनट सर्वे के लिए निकालने को तैयार नहीं होते।”
यह मुद्दा MRUCI के भीतर नई चिंता पैदा कर रहा है कि क्या IRS को फिर से शुरू करने की लागत और जटिलता, जो 2019 में खर्च हुए ₹20 करोड़ से भी ज्यादा होने की संभावना है, डिजिटल-फर्स्ट मार्केट में, जहां सर्वे की उपयोगिता पर ही सवाल उठ रहे हैं, उचित ठहराई जा सकती है।
विडंबना यह है कि तेजी से बढ़ते ई-कॉमर्स और क्विक-कॉमर्स सेक्टर, जिनके डिलीवरी स्टाफ रोज इन्हीं गेट्स से आसानी से गुजरते हैं, यह संकेत देते हैं कि यह बाधा वास्तविक से ज्यादा धारणा-आधारित हो सकती है।
फिर भी, यह सर्वे, जो भारत के प्रिंट इंडस्ट्री के लिए एकमात्र करंसी माना जाता है, वापस आएगा या नहीं, यह अंततः पब्लिशर्स की इच्छा पर निर्भर करेगा।
महामारी के बाद हुए सामाजिक बदलाव भारतीय रीडरशिप सर्वे (IRS) के लिए सबसे बड़ी बाधा के रूप में सामने आ रहे हैं।
कंचन श्रीवास्तव, सीनियर एडिटर, एक्सचेंज4मीडिया ।।
पांच वर्षों की देरी और व्यवधानों के बाद पहले कोविड-19 महामारी के कारण, फिर कार्यप्रणाली और फंडिंग से जुड़े विवादों के चलते और अब महामारी के बाद हुए सामाजिक बदलाव भारतीय रीडरशिप सर्वे (IRS) के लिए सबसे बड़ी बाधा के रूप में सामने आ रहे हैं।
परंपरा से हटकर, लंबे समय से प्रतीक्षित IRS पहले एक पायलट टेस्ट से गुजर सकता है ताकि यह आंका जा सके कि मौजूदा परिस्थितियों में विशेषकर मेट्रो शहरों में, फिजिकल रीडर सर्वे संभव है या नहीं। मीडिया रिसर्च यूजर्स काउंसिल ऑफ इंडिया (MRUCI) की तकनीकी समिति ने अभी तक इस पायलट टेस्ट के दायरे, सैंपल साइज और स्थानों पर निर्णय नहीं लिया है।
कई इंडस्ट्री सूत्रों के अनुसार, काउंसिल के प्रमुख सदस्य पारंपरिक डोर-टू-डोर मॉडल को लेकर बढ़ती शंकाएं जता रहे हैं। कुछ का कहना है कि कोविड के बाद हाउसिंग सोसाइटीज पहले की तुलना में कहीं अधिक सख्त हो गई हैं, जिससे सर्वेयर का पहुंच पाना मुश्किल हो गया है।
भारतीय समाचार पत्र सोसाइटी (INS) के अध्यक्ष एम.वी. श्रेयम्स कुमार ने कहा, “कुछ मीडिया हाउसेज का मानना है कि महामारी के बाद के दौर में हाउसिंग सोसाइटीज काफी हद तक प्रतिबंधात्मक हो गई हैं, जिससे सर्वेयर के लिए प्रवेश पाना कठिन हो गया है। आवासीय नियमों में यह बदलाव बड़े पैमाने पर डोर-टू-डोर सर्वे करने में बड़ी चुनौती पेश करता है, खासकर शहरी क्षेत्रों में।”
गौरतलब है कि पिछला सर्वे 2019 में किया गया था और MRUC ने इस बार भी वही कार्यप्रणाली अपनाने का निर्णय लिया था।
एक अन्य सदस्य ने e4m को बताया, “अब परिवार निजता को अधिक महत्व देते हैं। मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों में, पुरुष और महिलाएं सुबह से देर रात तक बाहर रहते हैं और यदि आप उनसे मिल भी जाएं तो वे शायद ही सर्वे के लिए 45 मिनट निकालने को तैयार हों। 2019 तक जो कार्यप्रणाली चल रही थी, वह अब काम करने की संभावना नहीं रखती।”
चिंता यह है कि इससे शहरी सर्वेक्षण को प्रतिनिधित्वकारी और विश्वसनीय रूप से करना कठिन हो जाएगा। और अगर शहरी डेटा असंगत या अधूरा हुआ, तो इससे पूरे IRS आउटपुट की विश्वसनीयता कमजोर हो जाएगी, सदस्यों का कहना है।
सूत्रों ने एक्सचेंज4मीडिया को बताया, “इस मुद्दे ने MRUC के भीतर गंभीर चिंता पैदा कर दी है, कई सदस्यों का सुझाव है कि IRS को फिर से शुरू करने की लागत और जटिलता अब न्यायसंगत नहीं रह गई है, खासकर तब जब डिजिटल-प्रधान प्लानिंग माहौल में सर्वे की उपयोगिता पर बहस चल रही है। इसलिए, पायलट टेस्ट पर चर्चा की जा रही है।”
विडंबना यह है कि तेजी से बढ़ते ई-कॉमर्स और क्विक-कॉमर्स सेक्टर, जिनके डिलीवरी स्टाफ रोजाना इन्हीं गेट्स से होकर गुजरते हैं, यह संकेत देते हैं कि यह बाधा वास्तविक से अधिक धारणा आधारित हो सकती है।
इसके अलावा, हाल के वर्षों में कई अखबारों ने डिजिटल खपत बढ़ने के बीच भारी प्रसार गिरावट देखी है। असर इतना गहरा है कि एक प्रमुख अंग्रेजी दैनिक का मुंबई प्रसार 2020 के 5.5 लाख प्रतियों से घटकर अब मुश्किल से 1.5 लाख पर आ गया है। इंडस्ट्री पर्यवेक्षकों का कहना है कि यही कारण है कि कई मीडिया हाउसेज सर्वे से बच रहे हैं और अड़चनें खड़ी कर रहे हैं, ताकि ऐसे असहज परिणामों से बचा जा सके जो विज्ञापन राजस्व को चोट पहुंचा सकते हैं।
फिर भी, संभावना यही है कि IRS का पूर्ण संस्करण, जिसे प्रिंट इंडस्ट्री की करेंसी माना जाता है और जिसे पूरा होने में आमतौर पर छह से आठ महीने लगते हैं, उम्मीद से कहीं अधिक देर तक टल सकता है। यह आगे बढ़ेगा भी या नहीं, यह पूरी तरह पायलट के नतीजों पर निर्भर करेगा।
आगामी सर्वे की अनुमानित लागत 2019 में खर्च हुए 20 करोड़ रुपये से अधिक होने की उम्मीद है, जो इसके लॉन्च में एक और बड़ी बाधा है, खासकर मौजूदा आर्थिक दबावों के बीच।
एक अधिकारी ने कहा, “इंडस्ट्री के बड़े खिलाड़ियों की आय हजारों करोड़ में है, तो यह राशि बहुत छोटी है। साफ़ तौर पर, वे अपने प्रसार में गिरावट छिपाना चाहते हैं और इसी बहाने देरी कर रहे हैं।”
MRUCI के चेयरमैन शैलेश गुप्ता से संपर्क करने की कई कोशिशें नाकाम रहीं।
IRS कभी दुनिया का सबसे बड़ा वार्षिक रीडरशिप सर्वे माना जाता था, जिसमें 2.56 लाख से अधिक उत्तरदाता शामिल होते थे। इसकी लंबी देरी अब कुछ अहम सवाल खड़े करती है: क्या प्रिंट को अब सिर्फ ABC ऑडिट, प्रकाशकों के आंतरिक डेटा और विज्ञापन बिक्री नैरेटिव्स पर निर्भर रहना पड़ेगा? क्या कोई नया हाइब्रिड या तकनीक-आधारित मॉडल भरोसे की इस खाई को भर सकता है?
हालांकि MRUCI ने कोई औपचारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि चुपचाप एक सहमति बन रही है कि मौजूदा स्वरूप में IRS शायद लौटकर न आए। कुछ सदस्य वैकल्पिक कार्यप्रणालियों की पड़ताल कर रहे हैं, जैसे फोन-सहायता प्राप्त सर्वे या डिजिटल के लिए ऐप-आधारित मीटरिंग, लेकिन इनमें से किसी को अभी तक मान्यता नहीं मिली है या बड़े पैमाने पर अपनाया नहीं गया है।
IRS को नई ऊर्जा मिलेगी या इसे किसी छोटे और तकनीक-प्रेरित मॉडल से बदल दिया जाएगा, यह देखना बाकी है।
रीडरशिप डेटा विज्ञापनदाताओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे यह तय होता है कि उन्हें किन प्रिंट प्रकाशनों को टारगेट करना चाहिए। IRS भारत के प्रिंट और मीडिया खपत पैटर्न, जनसांख्यिकी, उत्पाद स्वामित्व और उपयोग पर अंतर्दृष्टि प्रदान करता है, जिसमें सर्वे किए गए परिवारों में 100 से अधिक उत्पाद श्रेणियाँ शामिल होती हैं।
एक ऐसे मीडिया परिदृश्य में जहां डिजिटल प्लेटफॉर्म लगातार हावी हो रहे हैं, प्रिंट प्रकाशकों पर अनुकूलन का दबाव बढ़ता जा रहा है। इंडस्ट्री सूत्रों का कहना है कि कई अखबारों ने लाभप्रदता सुधारने के प्रयास में प्रसार में 15–20% कटौती की है और घाटे में चलने वाले संस्करणों को बंद कर दिया है।
हालांकि प्रिंट विज्ञापन राजस्व में हाल में कुछ वृद्धि देखी गई है, लेकिन यह मुख्य रूप से घटती विज्ञापन दरों की वजह से है, न कि ब्रैंड मार्केटिंग खर्च में किसी ठोस वृद्धि के कारण। आज, अपनी निरंतर प्रासंगिकता के बावजूद, प्रिंट मीडिया भारत के विज्ञापन खर्च का केवल 20% ही संभालता है, जबकि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का हिस्सा 44% और टेलीविजन का 32% है।
इंडिया टुडे मैगजींस के CEO मनोज शर्मा ने आज ‘दि इम्पीरियल’ होटल में चल रहे इंडियन मैगजीन कांग्रेस 2025 में अपने संबोधन के दौरान मैगजीन इंडस्ट्री के बदलते दौर, चुनौतियों और नए अवसरों पर खुलकर चर्चा की।
इंडिया टुडे मैगजींस के CEO मनोज शर्मा ने आज ‘दि इम्पीरियल’ होटल में चल रहे इंडियन मैगजीन कांग्रेस (IMC) 2025 में अपने संबोधन के दौरान मैगजीन इंडस्ट्री के बदलते दौर, चुनौतियों और नए अवसरों पर खुलकर चर्चा की। उन्होंने कहा कि “छोटा ही सुंदर है” और यह सिद्धांत आज के मीडिया परिदृश्य में गहराई से लागू होता है, जहां छोटी लेकिन अर्थपूर्ण और गहरी जुड़ाव वाली कम्युनिटीज ही असली ताकत हैं।
शर्मा ने अपने संबोधन की शुरुआत हल्के-फुल्के अंदाज में करते हुए कहा कि तकनीकी सत्र के बाद वे सबकुछ सरल बनाकर छोटे हिस्सों में तोड़ना चाहते हैं, यानी “पैसा कमाना आसान कैसे बनाएं।” उन्होंने दर्शकों से सवाल किया कि जीवन में सबसे बड़ा डर किस चीज का होता है? जवाब आया- “मृत्यु।” उन्होंने इसे मीडिया इंडस्ट्री की ‘पब्लिकेशन के बंद होने’ वाली स्थिति से जोड़ा और कहा कि प्रोफेशन जीवन में भी जब किसी माध्यम की ‘मौत’ का खतरा होता है, तो हमें बचने के लिए खुद को फिर से गढ़ना और इनोवेशन करना पड़ता है।
टीवी से लेकर डिजिटल तक- हर दौर में लड़ाई और पुनर्जन्म
मनोज शर्मा ने याद किया कि पिछले 15–20 वर्षों में टीवी, रेडियो और अब डिजिटल के ‘ऑनस्लॉट’ के बावजूद मैगजीन इंडस्ट्री ने बार-बार अपने अस्तित्व को साबित किया है। उन्होंने कहा, “मार्केट में हम रोज रिजेक्शन झेलते हैं, लेकिन हर बार कुछ सीखकर लौटते हैं और नए समाधान निकालते हैं।”
उन्होंने बताया कि आज भी 90% लोग मानते हैं कि मैगजीन बची रहेंगी और यदि हम रीइमैजिन करते रहें तो न सिर्फ बचेंगी बल्कि फले-फूलेंगी। उन्होंने प्रिंट और डिजिटल के संयोजन को ‘डेडली कॉम्बिनेशन’ बताते हुए कहा कि प्रिंट विश्वसनीयता देता है और डिजिटल व्यापक पहुंच।
कोविड के दौरान नहीं मानी हार
कोविड-19 काल को याद करते हुए उन्होंने कहा कि उनके चेयरमैन अरुण पुरी ने साफ निर्देश दिए कि “इंडिया टुडे का एक भी अंक छूटना नहीं चाहिए।” उस समय पैसेंजर और ट्रांसपोर्ट सर्विसेज बंद होने के बावजूद उन्होंने कार्गो एयरलाइंस से तीन गुना किराया देकर मैगजीन पांच मेट्रो शहरों में पहुंचाई और वहां से आगे डिस्ट्रीब्यूट की। चूंकि दुकानें बंद थीं, उन्होंने मेडिकल स्टोर्स, दूध बूथ और किराना दुकानों के जरिए मुफ्त कॉपियां बांटी। एजेंट्स की सुरक्षा के लिए मास्क, फेस शील्ड और डिसइंफेक्टेंट तक दिए। इस दौरान उन्हें एहसास हुआ कि प्री-कोविड ढांचे में लागत बहुत अधिक है, इसलिए कॉस्ट मॉडल को पुनर्गठित किया गया और कवर प्राइस तीन बार बढ़ाई गई। नतीजतन अब हर कॉपी ‘कॉस्ट प्लस’ पर बिकती है और घाटा नहीं होता।
डिजिटल थकान, भरोसे का संकट और प्रिंट का महत्व
उन्होंने कहा कि कोविड के दौरान लोगों में डिजिटल और टीवी से थकान पैदा हुई और स्क्रीन टाइम के नुकसान को लेकर जागरूकता बढ़ी। कई देशों (जैसे ऑस्ट्रेलिया) ने स्कूलों में मोबाइल पर प्रतिबंध लगाया है। डिजिटल के ‘ट्रस्ट डेफिसिट’ और ‘इको चैंबर’ इफेक्ट के बीच प्रिंट ही वह माध्यम है जो पाठकों को संपूर्ण और संतुलित दृष्टिकोण देता है।
राजस्व में जबरदस्त वापसी
शर्मा ने गर्व से कहा कि कोविड के चार साल बाद उनकी सर्कुलेशन वैल्यू 2019–20 के मुकाबले 15% बढ़ी है, फिजिकल डिस्ट्रीब्यूशन 8 गुना बढ़ा है और विज्ञापन सेगमेंट में चार वर्षों में औसतन 18% वार्षिक वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा, “सिर्फ इंडिया टुडे का टर्नओवर 100 करोड़ रुपये से अधिक है और बिजनेस टुडे व कॉस्मोपॉलिटन जोड़ दें तो यह 150 करोड़ पार हो जाता है, जो कि पूरे इंग्लिश न्यूज टीवी जॉनर (350 करोड़) के लगभग आधे के बराबर है।”
कम्युनिटी बिल्डिंग और IP क्रिएशन से सफलता
उन्होंने कहा कि राजस्व का सबसे सरल फॉर्मूला है- किसी सेक्टर को पहचानो, उसके इर्द-गिर्द गहरी और अर्थपूर्ण कंटेंट बनाकर कम्युनिटी तैयार करो और फिर विज्ञापनदाताओं को उससे जोड़ो। उदाहरण के तौर पर उन्होंने ‘इंडिया टुडे एडवांटेज’ नामक स्कूल-केंद्रित मैगजीन लॉन्च की, जो 14–18 वर्ष आयु के लिए इंडिया टुडे की अपॉलिटिकल व ज्ञान-आधारित कंटेंट को दोबारा लिखकर प्रस्तुत करती है। यह आज 1,50,000 से अधिक सब्सक्रिप्शन के साथ हजार से अधिक स्कूलों में पहुंच चुकी है, और सर्वे में 79.5% छात्रों ने इसे कवर-टू-कवर पढ़ने की बात कही।
शर्मा ने कहा कि पिछले 15 वर्षों से चल रहे कॉलेज रैंकिंग प्रोजेक्ट को डिजिटल रूप दिया गया, जिसमें पिछले 5–6 वर्षों का डेटा डायनेमिक वेबसाइट पर उपलब्ध है ताकि छात्र कॉलेजों की प्रगति देख सकें।
उन्होंने बताया कि ऑटो सेक्टर से चार साल पहले की तुलना में पांच गुना राजस्व हो रहा है, जबकि ट्रैवल रिपोर्ट शुरू करने के बाद यह वर्टिकल अब इंडिया टुडे राजस्व का 5% योगदान देता है।
उन्होंने कहा कि अवसर सिर्फ देश में नहीं, बाहर भी हैं। जापान के साथ पहले इंडो-जापान समिट और फिर दुबई में इंडो-UAE कॉन्क्लेव आयोजित कर उन्होंने अंतरराष्ट्रीय सहयोग व व्यापारिक संवाद को बढ़ावा दिया और साथ ही राजस्व भी कमाया।
उन्होंने HR कम्युनिटी से जोड़ने के लिए विश्वविद्यालयों के लिए HR राउंडटेबल और समिट आयोजित किए, जो उनके लिए नया और लाभदायक राजस्व स्रोत बना।
क्रिएटिव कैंपेन और ब्रैंड प्रमोशन
ग्रीन ड्राइव जैसे अभियानों के जरिए कार ब्रैंड्स के साथ साझेदारी की, जिसमें देशभर में SUVs चलाई गईं, 75,000 पेड़ लगाए गए और कंटेंट को डिजिटल, सोशल व प्रिंट में व्यापक रूप से प्रसारित किया गया।
अपने संबोधन के अंत में मनोज शर्मा ने कहा, “यदि आप अवसरों को सूंघकर पकड़ लेते हैं, तो उनसे पैसा जरूर बनाया जा सकता है। इंडस्ट्री में समाधान प्रदाता के तौर पर जाएँ, तभी राजस्व और मार्केट हिस्सेदारी बनाए रखी जा सकती है।”
यहां देखें वीडियो:
इंडिया टुडे ग्रुप के सर्कुलेशन डायरेक्टर दीपक भट्ट ने मैगजीन डिस्ट्रीब्यूशन और सेल्स में डिजिटल प्लेटफॉर्म की बढ़ती भूमिका, पोस्ट-कोविड उपभोक्ता व्यवहार में आए बदलाव और भविष्य की रणनीतियों पर बात की।
इंडियन मैगजीन कांग्रेस (IMC) 2025 के दौरान ‘दि इम्पीरियल’ होटल में आयोजित सत्र में इंडिया टुडे ग्रुप के सर्कुलेशन डायरेक्टर दीपक भट्ट ने मैगजीन डिस्ट्रीब्यूशन और सेल्स में डिजिटल प्लेटफॉर्म की बढ़ती भूमिका, पोस्ट-कोविड उपभोक्ता व्यवहार में आए बदलाव और भविष्य की रणनीतियों पर विस्तार से बात की।
उन्होंने बताया कि कोविड के दौरान, जैसा कि पहले उल्लेख किया गया कि इंडिया टुडे ने एक दिन भी प्रिंटिंग बंद नहीं की, लेकिन पहले ही साल में उपभोक्ता आदतों में बड़ा बदलाव दिखा। लोग न केवल मैगजीन बल्कि दूध, किराना और कई ऐसे प्रॉडक्ट्स जिन्हें पहले डिजिटल माध्यम से नहीं खरीदा जाता था, अब ऑनलाइन ऑर्डर करने लगे। उन्होंने कहा, “तब हमने सोचा कि क्यों न मैगजीन को भी उसी तरीके से उपलब्ध कराया जाए। इसके लिए ग्रुप ने अपने डिस्ट्रीब्यूशन प्रोसेस को पूरी तरह रीवैंप किया।”
एक हालिया मैकिंजी सर्वे का हवाला देते हुए भट्ट ने बताया कि अब 10 में से 5 भारतीय प्रोडक्ट खरीदने से पहले स्मार्टफोन का इस्तेमाल करके तय करते हैं कि क्या खरीदना है। साथ ही, एक औसत उपभोक्ता के पास सप्ताह में ‘पैशनेट प्रोडक्ट्स’ (रुचि-आधारित प्रोडक्ट्स) पर खर्च करने के लिए तीन घंटे अधिक हैं, जो कोविड-पूर्व की तुलना में काफी वृद्धि है।
सर्वे में यह भी सामने आया कि स्पीड, कम लागत, विश्वसनीय डिलीवरी और रिटर्न की सुविधा उपभोक्ता के लिए बेहद अहम है और मैगजीन सेक्टर में यह कमी थी। इसी सोच से ग्रुप ने डिजिटल सेल्स पर जोर दिया।
भट्ट ने कहा, “कोविड से पहले डिजिटल सेल्स हमारे कुल बिजनेस का सिर्फ 1% थीं, जो अब बढ़कर 18% हो चुकी हैं।” उन्होंने डिजिटल सेल्स को तीन कैटेगरी में बांटा-
ई-कॉमर्स
क्विक कॉमर्स
प्रिंट-ऑन-डिमांड
ई-कॉमर्स में 400% ग्रोथ
ई-कॉमर्स की बात करते हुए उन्होंने बताया कि पोस्ट-कोविड में इस चैनल में करीब 400% की वृद्धि हुई है, जिसमें एमेजॉन ने अहम भूमिका निभाई। पहले सिर्फ कवर फोटो और सिंगल प्रोडक्ट लिस्टिंग होती थी, अब हर इश्यू के 7-8 मुख्य आर्टिकल विजुअल फॉर्मेट में डिटेल के साथ लिस्ट किए जाते हैं। उन्होंने बताया कि अब एमेजॉन पर India Today का स्टोर पेज भी है, जहां सभी मैगजीन एक जगह उपलब्ध हैं।
प्रमोशन के लिए प्रीमियम प्लेसमेंट, बैनर ऐड, सर्च ऑप्टिमाइजेशन और बुक्स से क्रॉस-प्रमोशन (जैसे मोदी पर किताब देखने पर India Today का बैनर) जैसी रणनीतियों ने ट्रैक्शन बढ़ाया। तीन साल की कोशिश के बाद एमेजॉन की ‘बुक्स’ होमपेज पर अब ‘मैगजीन’ कैटेगरी जोड़ी गई है, जिसमें फिलहाल सिर्फ India Today की मैगजीन हैं, लेकिन एमेजॉन चाहता है कि सभी पब्लिशर्स इसमें शामिल हों।
क्विक कॉमर्स: 10 मिनट में मैगजीन डिलीवरी
भट्ट ने बताया कि पोस्ट-कोविड लोग तुरंत डिलीवरी चाहते हैं, इसलिए Blinkit के साथ 10 मिनट में मैगजीन डिलीवरी शुरू की गई। अब यह सेवा 26 शहरों में है और पिछले दो साल में 5 गुना राजस्व वृद्धि हुई है। अब Zepto भी इस मॉडल में दिलचस्पी ले रहा है।
उन्होंने बताया कि रिटर्न मैनेजमेंट को लेकर ऑपरेशनल एक्सीलेंस विकसित की गई है, जैसे शुक्रवार रात प्रिंट हुई India Today को उसी रात 11 बजे तक डिलीवर कर देना और सभी शहरों में अगले दिन सुबह उपलब्ध करा देना। डैशबोर्ड से रोजाना ट्रैक करके रिटर्न रेशियो को स्वस्थ स्तर पर रखा गया है।
प्रिंट-ऑन-डिमांड: विदेशों में भी तीन दिन में डिलीवरी
दो महीने पहले शुरू हुई इस सेवा में Kindle Direct Publishing के जरिए अब India Today दुनिया भर में ऑर्डर की जा सकती है। उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति जर्मनी में बैठे-बैठे तीन दिन में प्रिंटेड कॉपी मंगवा सकता है। यह मैगजीन स्थानीय रूप से प्रिंट होकर डिलीवर होती है।
भट्ट ने सभी पब्लिशर्स को इस मॉडल में शामिल होने का निमंत्रण दिया और बताया कि लागत शून्य है, जबकि रॉयल्टी सीधे पब्लिशर को मिलती है।
भविष्य की दिशा
स्पीच के अंत में उन्होंने कहा,
“हमें अपने रीडर्स के पास जाना होगा, बजाय इसके कि वो हमारे पास आएं।”
“रीडर चाहे 10 मिनट में मैगजीन चाहता हो या विदेश में बैठे तीन दिन में, हमें वह सुविधा देनी होगी।”
“कम्युनिटीज बनाना, प्रीमियम अनुभव देना और लगातार इनोवेशन करना ही आगे का रास्ता है।”
उन्होंने कहा, “टेक्नोलॉजी ने हमें यह सब करने की ताकत दी है, अब इसे और आगे ले जाना होगा।”
यहां देखें वीडियो:
इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी (INS) के अध्यक्ष एमवी श्रेयम्स कुमार ने कहा कि प्रिंट मीडिया समाप्त होने की ओर नहीं बढ़ रहा, बल्कि यह मीडिया मिक्स का एक अधिक मूल्यवान और अहम हिस्सा बनता जा रहा है।
दिल्ली में 8 अगस्त को आयोजित इंडियन मैगजीन कांग्रेस 2025 में इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी (INS) के अध्यक्ष एमवी श्रेयम्स कुमार ने कहा कि प्रिंट मीडिया समाप्त होने की ओर नहीं बढ़ रहा, बल्कि यह मीडिया मिक्स का एक अधिक मूल्यवान और अहम हिस्सा बनता जा रहा है।
उन्होंने कहा, “प्रिंट कहीं गायब नहीं हो रहा है। बल्कि यह इंटीग्रेटेड मार्केटिंग रणनीतियों के जरिए नए रूपों को अपनाते हुए विकसित हो रहा है।” कुमार ने जोर देकर कहा कि आज भी प्रिंट का फोकस, भावनात्मक जुड़ाव और विश्वसनीयता अद्वितीय है। उन्होंने कहा, “प्रिंट वह भरोसा, फोकस, ध्यान और भावना देता है, जो स्क्रीन कभी नहीं दे सकती।”
हालांकि उन्होंने यह भी माना कि डिजिटल माध्यम तत्काल पहुंच और सटीक टार्गेटिंग की क्षमता रखता है, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने प्रिंट में लोगों के विश्वास को प्रमुखता दी। उन्होंने केरल का एक उदाहरण साझा किया, जहां एक फीचर स्टोरी को पाठकों ने असली ख़बर समझ लिया। उन्होंने कहा, “जो कुछ भी प्रिंट में छपता है, उस पर लोग भरोसा करते हैं। अगर वही बात डिजिटल पर आती, तो शायद किसी ने उस पर ध्यान भी नहीं दिया होता।”
श्रेयम्स कुमार ने एक अहम आंकड़ा साझा करते हुए बताया कि एक औसत पाठक प्रिंट पब्लिकेशन पर 20 मिनट से ज्यादा समय बिताता है, जबकि डिजिटल कंटेंट पर यह समय पांच मिनट से भी कम होता है। उनके मुताबिक, यह दर्शाता है कि प्रिंट एक टिकाऊ और संवेदनात्मक अनुभव प्रदान करता है।
उन्होंने एक अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि प्रिंट विज्ञापन डिजिटल की तुलना में 20% अधिक मोटिवेशन और ब्रांड रिकॉल उत्पन्न करते हैं। साथ ही, उन्होंने यह भी जोड़ा कि जब प्रिंट और डिजिटल को मिलाकर विज्ञापन किया जाता है, तो उसकी प्रभावशीलता चार गुना तक बढ़ जाती है।
QR कोड जैसे टूल्स का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि ये माध्यमों के बीच की खाई को पाट सकते हैं। साथ ही उन्होंने मार्केट एक्सपर्ट्स से आग्रह किया कि वे प्रिंट को डिजिटल के पूरक के रूप में देखें, न कि केवल एक अलग माध्यम के रूप में। उन्होंने कहा, “स्मार्ट मार्केटर्स प्रिंट की अनूठी भूमिका को इंटीग्रेटेड कैंपेन में समझते हैं और उसका इस्तेमाल उसी दृष्टिकोण से करते हैं।”
श्रेयम्स कुमार ने एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजींस की ONDC और प्रसार भारती वेब OTT के साथ साझेदारी का उदाहरण देते हुए कहा कि यह दिखाता है कि कैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग प्रिंट मैगजीन की बिक्री बढ़ाने के लिए किया जा सकता है। उन्होंने कहा, “यह इस बात का आदर्श उदाहरण है कि कैसे डिजिटल को समझदारी से प्रयोग में लाकर प्रिंट को मजबूत किया जा सकता है।”
अपनी बात समाप्त करते हुए श्रेयम्स कुमार ने कहा, “प्रिंट मैगजींस पारंपरिक मूल्यों और आधुनिक नवाचारों के मेल से आगे बढ़ रही हैं और अपने पाठकों को दोबारा से जोड़ रही हैं।”
IMC के मौके पर 'दि इम्पीरियल' होटल में आयोजित सम्मेलन के दौरान टाइम्स इंटरनेट के वाइस प्रेजिडेंट पुनीत कुकरेजा ने सब्सक्रिप्शन आधारित मीडिया बिजनेस के विकास, चुनौतियों और रणनीतियों पर गहराई से बात की।
इंडियन मैगजीन कांग्रेस (IMC) 2025 के मौके पर 'दि इम्पीरियल' होटल में आयोजित सम्मेलन के दौरान टाइम्स इंटरनेट के वाइस प्रेजिडेंट पुनीत कुकरेजा ने सब्सक्रिप्शन आधारित मीडिया बिजनेस के विकास, चुनौतियों और रणनीतियों पर गहराई से बात की। उन्होंने अपने 15–16 वर्षों के करियर अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि भारत जैसे मूल्य-संवेदनशील बाजार में लगातार भुगतान कराने का मॉडल कैसे काम करे, यही उनका सबसे बड़ा जुनून रहा है।
'एक बार नहीं, बार-बार और ज्यादा पेमेंट कराना है असली चुनौती'
पुनीत ने अपने करियर की शुरुआत MagicBricks.com से की थी, जहां प्रॉपर्टी लिस्टिंग के लिए मालिकों से ₹20,000 तक लिए जाते थे और फिर होमसीकर से भी पेमेंट की मांग होती थी। बाद में Amazon में iPad और लैपटॉप जैसे महंगे प्रोडक्ट्स बेचने का अनुभव मिला। उन्होंने बताया कि Economic Times में सब्सक्रिप्शन यात्रा की शुरुआत 2018 में की गई, जब ARPU (average revenue per user) गिर रहा था और MAU (monthly active users) स्थिर हो गए थे। ऐसे में ET Prime, ET Markets और Masterclasses जैसे उत्पाद लॉन्च किए गए।
'सब्सक्रिप्शन सिर्फ एक्सेस नहीं, वैल्यू का वादा है'
उन्होंने कहा कि सब्सक्रिप्शन मॉडल का फोकस केवल कंटेंट एक्सेस पर नहीं होना चाहिए, बल्कि उसे एक 'वैल्यू सर्कल' में बदलना चाहिए, जो यूजर को कोई बेहतर निर्णय लेने में मदद करे। उनका मानना है कि यदि कोई यूजर उनके टूल्स या आर्टिकल्स की मदद से प्रमोशन पा ले, बेहतर निवेश कर ले, तो वही सबसे बड़ी सफलता है।
पुनीत ने स्पष्ट कहा कि शुरुआत में उन्होंने कीमत कम रखने की गलती की, लेकिन बाद में समझ आया कि टारगेट यूजर बेस बहुत अलग है और उन्हें वैल्यू के अनुसार ही प्राइसिंग करनी चाहिए। उन्होंने ET Prime जैसे प्रोडक्ट्स को ₹2,000–₹2,500 की कीमत पर लॉन्च किया और Masterclasses को हमेशा प्रीमियम रखा।
'रीटेंशन की अहमियत- 60% रेवेन्यू पहले से तय होता है'
पुनीत के मुताबिक, आज 60% रेवेन्यू पहले दिन से तय रहता है, क्योंकि यूजर रीटेंशन मजबूत है। उन्होंने समझाया कि सिर्फ यूजर एक्सेस पर ध्यान देना गलत है, असली काम तब शुरू होता है जब कोई यूजर पेमेंट कर देता है। उन्होंने सब्सक्राइबर को 'जिम मेंबरशिप' से जोड़ा- एक दिन जिम जाकर कोई फिट नहीं होता, उसी तरह सब्सक्राइबर को लंबे समय तक प्लेटफॉर्म से जोड़े रखना जरूरी है।
AI के युग में बदलाव जरूरी
उन्होंने बताया कि किस तरह AI मीडिया कंपनियों के पारंपरिक मॉडल को चुनौती दे रहा है। जहां पहले 'information advantage' ही USP थी, वहीं अब ChatGPT, Gemini जैसे टूल्स ने उस बढ़त को खत्म कर दिया है। ऐसे में टाइम्स इंटरनेट ने AI को अपनाते हुए खुद को नया रूप देना शुरू कर दिया है।
AI के कुछ प्रयोग जो टाइम्स इंटरनेट कर रहा है:
ET Markets AI TV Anchor: पूरी तरह AI पर आधारित फाइनेंशियल वीडियो, जिसमें डेटा, एंकर और एनालिसिस ऑटोमेटेड हैं।
AI-Generated Songs and Faceless Videos: बिना किसी क्रिएटिव टीम के AI द्वारा गाने और वीडियो बनाए गए।
Tailored AI Agents: भविष्य में यूजर्स को ChatGPT जैसे AI एजेंट ET प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध होंगे, जो प्लेटफॉर्म के कंटेंट के अनुरूप जवाब देंगे।
'हर यूजर की सब्सक्रिप्शन वजह अलग होती है'
उन्होंने बताया कि सब्सक्राइबर्स को 5–6 अलग-अलग 'कोहोर्ट्स' में बांटा जाता है- जैसे 'सुपरफैन', 'सुपरडॉर्मेंट', 'सिर्फ कमेंट पढ़ने वाले', आदि। हर ग्रुप को कस्टम मैसेजिंग और वैल्यू-आधारित nudges भेजे जाते हैं ताकि यूजर जुड़ा रहे।
तीन प्रमुख सीख:
सिर्फ रिटेंशन ट्रैकिंग काफी नहीं — हर यूजर की यात्रा को पर्सनलाइज करना जरूरी।
सामान्य प्रेरक संकेत (nudges) असरदार नहीं होते — हर यूजर के अपने अलग-अलग कारण होते हैं।"
पहले 7 दिन निर्णायक होते हैं — पहले सप्ताह में ही यह पता चल जाता है कि कौन सा यूजर रीन्यू करेगा और कौन नहीं।
पुनीत कुकरेजा ने कहा, 'जिंदगी बहुत जटिल नहीं है, बस मजबूत वैल्यू क्रिएट कीजिए, एक अच्छा रीटेंशन इंजन बनाइए और AI की मदद से खुद को लगातार रीइनवेंट करते रहिए।'
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नीरज शर्मा ने अपनी स्पीच की शुरुआत एक निजी भावुक जुड़ाव से की, जब उन्होंने बताया कि वह ऐसे परिवार में पले-बढ़े हैं जहां मैगजीन हमेशा चारों ओर मौजूद रहती थीं।
इंडियन मैगजीन कांग्रेस (IMC) 2025 के दौरान आज 'दि इम्पीरियल' होटल में आयोजित मुख्य सत्र में 'एक्सेंचर' (Accenture) में कम्युनिकेशन, मीडिया एंड टेक्नोलॉजी (CMT) के मैनेजिंग डायरेक्टर नीरज शर्मा ने मैगजीन इंडस्ट्री की चुनौतियों, संभावनाओं और डिजिटल युग के बदलते परिदृश्य पर एक अत्यंत विचारोत्तेजक भाषण दिया। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि प्रिंट अब भी डिजिटल की तुलना में ज्यादा लाभदायक है और आने वाले वर्षों में यदि सही दिशा में कदम उठाए गए तो मैगजीन इंडस्ट्री को दोबारा लोकप्रिय संस्कृति में स्थापित किया जा सकता है।
नीरज शर्मा ने अपनी स्पीच की शुरुआत एक निजी भावुक जुड़ाव से की, जब उन्होंने बताया कि वह ऐसे परिवार में पले-बढ़े हैं जहां मैगजीन हमेशा चारों ओर मौजूद रहती थीं। उन्होंने कहा, “हर बार जब मैं मैगजीन की बात करता हूं तो यह मेरे लिए एक नॉस्टैल्जिक अनुभव होता है।”
डिजिटल बदलाव और पुराने सबक
नीरज ने बताया कि कैसे 2012-13 में टेलीकॉम इंडस्ट्री में ग्रोथ ठहर गई थी और फिर Jio के डिजिटल प्लेटफॉर्म से लॉन्च के साथ इंडस्ट्री में बड़ा बदलाव आया। उन्होंने कहा, “डिजिटल की ओर माइग्रेशन लगभग हर इंडस्ट्री में मौजूदा वैल्यू को खत्म कर देता है। नई वैल्यू तो बनती है, लेकिन वह पुराने खिलाड़ियों को नहीं मिलती।”
उन्होंने स्पष्ट किया कि जैसे टेलीकॉम और टीवी के साथ हुआ, ठीक वैसे ही डिजिटल मीडिया में भी हो रहा है, जहां डिजिटल वैल्यू क्रिएशन हो तो रहा है, लेकिन उसका लाभ पारंपरिक मीडिया संस्थानों को नहीं मिल रहा। इसके दो प्रमुख कारण उन्होंने गिनाए- एक, विज्ञापन की कमाई का बड़ा हिस्सा बिग टेक के पास चला जाना और दूसरा, डिजिटल सब्सक्रिप्शन में कम दिलचस्पी और उपभोक्ताओं की ‘सब्सक्रिप्शन थकान’।
चार ‘I’ का फ़्रेमवर्क और क्रिएटर इकोनॉमी
नीरज ने ‘4 I Framework’ का जिक्र किया — Information, Insight, Interaction और Intention capture और बताया कि मीडिया कंपनियां पहले दो में तो मजबूत हैं लेकिन आखिरी दो में नहीं। उन्होंने कहा, “Content eyeballs लाता है, पर पैसा उससे नहीं, बल्कि उन फीचर्स से आता है जो यूजर को समझते हैं और commerce को ट्रिगर करते हैं।”
उन्होंने बताया कि भारत में दो साल पहले ही क्रिएटर इकोनॉमी का राजस्व सभी डिजिटल न्यूज और मैगजीन कंपनियों के कुल डिजिटल राजस्व से दोगुना हो चुका था। उन्होंने कहा, “YouTubers और TikTokers ने content और commerce के बीच का ब्रिज बना लिया है।”
उन्होंने KBC के ‘PlayAlong’ फीचर को एक सफल ‘Four-I’ संपन्न प्रोडक्ट बताया और खुद के एक फेल प्रोजेक्ट ‘Constituency’ का उदाहरण भी ईमानदारी से साझा किया, जो उन्होंने 2024 के आम चुनाव के दौरान एक न्यूज मीडिया कंपनी के साथ मिलकर बनाया था। उन्होंने कहा कि यह गेम मुझ जैसे व्यक्ति के लिए था, आम पाठकों के लिए नहीं, लेकिन बाद में तमिलनाडु के एक न्यूज पोर्टल के साथ ‘Area King’ नाम से इसी आइडिया को रीपैक कर सफलता हासिल की गई।
नीरज ने बताया कि देश में 150 मिलियन लोग ऐसे हैं जो curated, credible कंटेंट के लिए भुगतान कर सकते हैं और डिजिटल थकान का दौर शुरू हो चुका है। उन्होंने शोध के हवाले से बताया, “72% भारतीय इंटरनेट यूजर बहुत ज्यादा कंटेंट से परेशान हैं।”
उन्होंने कहा, “अब यह जरूरी नहीं कि आप करोड़ों तक पहुंचें, 1 लाख सच्चे फॉलोअर ही आपकी सफलता के लिए पर्याप्त हैं।”
इसके लिए तीन सूत्र उन्होंने दिए:
प्रिंट, डिजिटल और फिजिकल- तीनों चैनलों में कस्टमर एक्सपीरियंस को खुद संचालित करें।
अपने पाठकों को एक समुदाय की तरह देखें और उस समुदाय की पूरी जिम्मेदारी खुद उठाएं।
प्लेटफॉर्म को भी खुद कंट्रोल करें, सिर्फ YouTube चैनल बना लेने से आप ऑडियंस के मालिक नहीं बनते।
भविष्य की राह: प्रोडक्ट, कंटेंट, मोनेटाइजेशन और डिस्ट्रीब्यूशन में नया दृष्टिकोण
उन्होंने विस्तार से बताया कि किस तरह मैगजीन कंपनियों को multi-format, multi-platform कंटेंट (जैसे YouTube वीडियो, Instagram Reels, LinkedIn carousel आदि) पर ध्यान देना चाहिए। कंटेंट का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, “1500 शब्दों का लेख अच्छा है, पर 23 वर्षीय यूजर तब तक नहीं पढ़ेगा जब तक वो रील में न दिखे।”
उन्होंने Micro-Influencers की अहमियत पर जोर दिया और कहा कि ऐप बनाने की बजाय aggregated apps या shared platforms की ओर ध्यान देना चाहिए।
इंडस्ट्री के लिए सामूहिक समाधान
नीरज शर्मा ने एक बेहद महत्वपूर्ण सुझाव देते हुए कहा कि कंटेंट के अलावा बाकी सबकुछ (प्रोडक्ट डेवलपमेंट, मोनेटाइजेशन, डिस्ट्रीब्यूशन) इंडस्ट्री को मिलकर करना चाहिए। उन्होंने ‘OpenAP’ (अमेरिका) और ‘Project Freedom’ (इंडोनेशिया) जैसे उदाहरण दिए जो कि Accenture की मदद से बने इंडस्ट्री कंसोर्टियम थे।
उन्होंने कहा, “यदि हम साथ आकर यह कर पाए, तो यकीन मानिए मैगजीन को फिर से लोकप्रिय कल्पना में स्थापित कर सकते हैं।”
अंत में उन्होंने कहा, “मैगजीन अब भी thumb scroll stoppers हैं। अगली पीढ़ी ऑफलाइन अनुभवों की ओर लौट रही है। बस आपको वहां दिखना और उपलब्ध होना है, जहां वे हैं। और इस तरह आप दोबारा लोकप्रिय बन सकते हैं।”
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दिल्ली प्रेस के एग्जिक्यूटिव पब्लिशर व AIM के प्रेजिडेंट अनंत नाथ ने इंडियन मैगजीन कांग्रेस के उद्घाटन सत्र में अपने संबोधन के दौरान न केवल मैगजीन इंडस्ट्री के बदलते स्वरूप पर अपने विचार व्यक्त किए
दिल्ली प्रेस के एग्जिक्यूटिव पब्लिशर और एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन (AIM) के प्रेजिडेंट अनंत नाथ ने आज इंडियन मैगजीन कांग्रेस 2025 के उद्घाटन सत्र में अपने संबोधन के दौरान न केवल मैगजीन इंडस्ट्री के बदलते स्वरूप पर गहन चिंतन प्रस्तुत किया, बल्कि इस माध्यम की प्रासंगिकता, संभावनाओं और चुनौतियों पर भी विस्तार से चर्चा की। यह कार्यक्रम नई दिल्ली के होटल 'दि इम्पीरियल' में आयोजित किया गया।
अपने संबोधन की शुरुआत अनंत नाथ ने कोविड के वर्षों के बाद AIM के पुनर्सक्रिय होने की बात से की और बताया कि एसोसिएशन की स्थापना 2002 में हुई थी, ताकि प्रिंट इंडस्ट्री में विशेष रूप से मैगजीन प्रकाशकों की अनोखी जरूरतों और चुनौतियों के लिए एक अलग मंच उपलब्ध हो सके। उन्होंने बताया कि कैसे कोविड के दौरान AIM के सदस्यों ने साप्ताहिक कॉल्स के माध्यम से एक-दूसरे को संबल दिया और संकट की घड़ी में मानसिक समर्थन का माध्यम बने।
मैगजीन एक रूपक है- ठहराव, दृष्टिकोण और उद्देश्य का
अनंत नाथ ने मैगजीन के भविष्य पर बात करते हुए कहा कि "मैगजीन सिर्फ कागज पर छपी सामग्री नहीं है, बल्कि यह ठहराव, दृष्टिकोण और उद्देश्य का रूपक है।" उन्होंने कहा कि जब पूरी मीडिया इंडस्ट्री तेज रफ्तार ब्रेकिंग न्यूज के पीछे भाग रही है, तब मैगजीन की असल ताकत उसके कंटेंट की गुणवत्ता, सोच की गहराई और एक विशिष्ट पाठक वर्ग से जुड़ाव में है।
स्पीड नहीं, स्थिरता हो लक्ष्य
उन्होंने कहा कि जब हम सबसे तेज होने की दौड़ में हैं, तब हमें यह याद रखने की जरूरत है कि वही कंटेंट टिकता है जो उद्देश्यपूर्ण होता है और पाठकों के साथ गहरा रिश्ता बनाता है। उन्होंने कहा, “मैगजीन इंडस्ट्री की यह ‘धीमी गति’ असल में उसकी सबसे बड़ी ताकत बन सकती है।”
बिग टेक के साये में भी छोटी दुनिया की अहमियत
बिग टेक कंपनियों के प्रभाव और कंटेंट डिस्ट्रीब्यूशन पर बात करते हुए अनंत नाथ ने Joseph Schumacher की किताब Small is Beautiful का जिक्र किया और बताया कि कैसे छोटी, केंद्रीकृत और समुदाय आधारित इकाइयां न सिर्फ सामाजिक और पर्यावरणीय दृष्टि से स्थायी होती हैं, बल्कि पाठकों के साथ भावनात्मक संबंध भी बना पाती हैं।
उन्होंने डच भाषा में प्रकाशित एक विदेशी मैगजीन का उदाहरण देते हुए कहा कि "सिर्फ ढाई हजार कॉपियों की प्रिंट रन के बावजूद वह पत्रिका एक संपूर्ण और टिकाऊ मॉडल पर चल रही है।"
पत्रकारिता के पुराने और नए मॉडलों की तुलना करते हुए उन्होंने Jill Abramson की किताब Merchants of Truth का हवाला दिया। उन्होंने बताया कि कैसे वाइस और बजफीड जैसी तेज रफ्तार डिजिटल कंपनियां आज खत्म हो चुकी हैं, वहीं न्यूयॉर्क टाइम्स और वॉशिंगटन पोस्ट जैसी पारंपरिक संस्थाएं सब्सक्रिप्शन मॉडल पर आधारित सफल उदाहरण बनकर उभरी हैं।
हमें गूगल या फेसबुक नहीं, पाठकों से संबंध चाहिए
उन्होंने जोर देते हुए कहा कि AIM की प्राथमिकता अब सब्सक्रिप्शन बेस को बढ़ाना है- चाहे वो पेड हो या अनपेड, असल मुद्दा पाठक से सीधा संबंध बनाना है। उन्होंने स्पष्ट किया, "गूगल, फेसबुक या परप्लेक्सिटी हमें मदद नहीं करेंगे। हमें खुद से पाठकों तक पहुंचना होगा।"
AIM की नई पहलों की घोषणा
अपने संबोधन में उन्होंने AIM की कई नई पहलों की घोषणा की, जो मैगजीन इंडस्ट्री को सब्सक्रिप्शन मॉडल की ओर ले जाने के उद्देश्य से शुरू की गई हैं:
इंडिया पोस्ट के साथ 'मैगजीन पोस्ट' सेवा: जो तेज, सटीक और बेहतर डिलीवरी की सुविधा देती है।
ब्लिंकिट के साथ साझेदारी: जिससे अब 10 शहरों में ऑन-डिमांड मैगजीन स्टोर उपलब्ध है और जल्द ही यह 30-40 शहरों तक पहुंचेगा।
प्रसार भारती के WAVES OTT प्लेटफॉर्म पर मैगजीन स्टोर लॉन्च
ONDC (DigiHaat) पर मैगजीन स्टोर लॉन्च
भारतीय रेलवे की प्रीमियम ट्रेनों में मैगजीन बिक्री की योजना
अनंत नाथ ने बताया कि इन पहलों का उद्देश्य पाठकों तक मैगजीन को आसानी और सुविधा से पहुंचाना है, जिससे सब्सक्रिप्शन बढ़े। उन्होंने यह भी कहा कि यह एक मिथक है कि लोग सिर्फ फ्री कंटेंट ही चाहते हैं। लोग गहन और गुणवत्ता वाला कंटेंट चाहते हैं, और वे इसके लिए भुगतान भी करना चाहते हैं।
यह निराश होने का समय नहीं, बल्कि नई दिशा लेने का अवसर है
अंत में उन्होंने कहा, “यह समय निराश होने का नहीं, बल्कि सकारात्मक सोच के साथ कदम उठाने का है। यदि हम अपने सिद्धांतों पर टिके रहें, तो मैगजीन इंडस्ट्री आश्चर्यजनक परिणाम दे सकती है।”
उन्होंने कार्यक्रम के आयोजन में सहयोग देने वाले सभी सदस्यों और एक्सचेंज4मीडिया की टीम का आभार जताया और बताया कि आज Magzimise Awards की भी वापसी हो रही है, जो आखिरी बार 2016 में आयोजित हुए थे।
FIPP वर्ल्ड मीडिया कांग्रेस की विशेष घोषणा
सत्र के समापन से पहले अंतरराष्ट्रीय संगठन FIPP के प्रमुख अलिस्टेयर का एक वीडियो संदेश भी चलाया गया, जिसमें उन्होंने अक्टूबर 2025 में मैड्रिड, स्पेन में आयोजित होने जा रहे FIPP World Media Congress की घोषणा की। उन्होंने AIM के साथ विशेष साझेदारी के तहत भारतीय प्रकाशकों के लिए रियायती रजिस्ट्रेशन की जानकारी भी साझा की।
यहां देखें वीडियो-
रणविजय सिंह ‘दैनिक जागरण’ से 18 साल से ज्यादा समय से जुड़े हुए थे। 31 जुलाई 2025 इस संस्थान में उनका आखिरी कार्यदिवस था।
हिंदी दैनिक ‘दैनिक जागरण’ में 18 साल से ज्यादा लंबी पारी को विराम देकर पत्रकार रणविजय सिंह ने नए सफर की शुरुआत की है। उन्होंने अब ‘हिन्दुस्तान’ में प्रिंसिपल करेसपॉन्डेंट के पद पर जॉइन किया है।
रणविजय सिंह ने जनवरी 2007 में ‘दैनिक जागरण’ के बाहरी पश्चिमी दिल्ली कार्यालय से बतौर इंटर्न रिपोर्टिंग की शुरुआत की थी। यहां अपने 18 साल सात महीने के कार्यकाल में उन्होंने दिल्ली स्टेट में प्रिंसिपल करेसपॉन्डेंट तक का सफर तय किया। 31 जुलाई ‘दैनिक जागरण’ में उनका अंतिम कार्यदिवस था।
इन वर्षों में दिल्ली की प्रमुख मंडियों, नगर निगम, आईएआरआई (भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान), क्राइम, कोर्ट, तिहाड़ जेल, स्पोर्ट्स, दिल्ली सरकार के जल बोर्ड, स्वास्थ्य (केंद्र सरकार के बड़े अस्पताल व स्वास्थ्य विभाग दिल्ली सरकार), दिल्ली मेट्रो, केंद्रीय भूजल बोर्ड, पर्यावरण व मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय (सीईओ) जैसे बीटों पर रिपोर्टिंग की।
चुनावों के दौरान पालिटिकल स्टोरी भी की और स्पोर्ट्स कवर करने के दौरान अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच, आइपीएल, इंडियन हाकी लीग जैसे इवेंट भी कवर किए। दिल्ली में मायापुरी रेडिएशन घटना व अन्ना आंदोलन को भी कवर किया। पिछले दस वर्ष से अधिक समय से स्वास्थ्य पर लिख रहे हैं। इसके साथ ही कोविड महामारी व टीकाकरण अभियान को भी कवर किया।
पढ़ाई-लिखाई की बात करें तो मगध विश्वविद्यालय के एएन कालेज पटना से स्नातक करने के बाद वर्ष 2005 में उन्होंने हरियाणा में हिसार स्थित गुरु जंभेश्वर यूनिवर्सिटी में मास कम्युनिकेशन में पीजी डिप्लोमा किया है।
समाचार4मीडिया की ओर से रणविजय सिंह को उनकी पारी के लिए ढेरों बधाई और शुभकामनाएं।