'अमर उजाला' में रेजीडेंट एडिटर बने आशीष तिवारी, मिली इस यूनिट की कमान

आशीष तिवारी इससे पहले ‘अमर उजाला वेब सर्विसेज’ (Amar Ujala Web Services) में अपनी जिम्मेदारी संभाल रहे थे। यहां वह नेशनल टीम में कार्यरत थे।

समाचार4मीडिया ब्यूरो by
Published - Thursday, 03 October, 2024
Last Modified:
Thursday, 03 October, 2024
Aashish Tiwari


‘अमर उजाला’ (Amar Ujala) ने वरिष्ठ पत्रकार आशीष तिवारी को रेजिडेंट एडिटर के पद पर नियुक्त किया है। अपनी इस भूमिका में वह चंडीगढ़ यूनिट (Tri-City और Punjab State) में एडिटोरियल हेड की जिम्मेदारी संभालेंगे।

आशीष तिवारी इससे पहले ‘अमर उजाला वेब सर्विसेज’ (Amar Ujala Web Services) में अपनी जिम्मेदारी संभाल रहे थे। यहां वह नेशनल टीम में कार्यरत थे।  

बता दें कि आशीष तिवारी को मीडिया के क्षेत्र में काम करने का 19 साल से ज्यादा का अनुभव है। पूर्व में वह ‘अमर उजाला’ के अलावा ‘दैनिक भास्कर’ और ‘नवभारत टाइम्स’ जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में भी अपनी भूमिकाएं निभा चुके हैं।

आशीष तिवारी ने मीडिया में अपने करियर की शुरुआत ‘अमर उजाला’ चंडीगढ़ से बतौर ट्रेनी रिपोर्टर की। इसके बाद वह करीब दो साल तक ‘दैनिक भास्कर’, चंडीगढ़ की टीम का हिस्सा रहे और फिर ‘अमर उजाला’ लौट आए। फिर यहां से बाय बोलकर वह वर्ष 2013 से 2019 तक ‘नवभारत टाइम्स’ लखनऊ में सिटी हेड भी रह चुके हैं। इसके बाद वह फिर ‘अमर उजाला’ आ गए और 2019 से 2021 तक इस अखबार में दिल्ली में मेट्रो एडिटर की पारी खेली।

2021 से वह ‘अमर उजाला वेब सर्विसेज’ में अपनी भूमिका निभा रहे थे और अब उन्होंने अमर उजाला, चंडीगढ़ में बतौर रेजीडेंट एडिटर जॉइन किया है। समाचार4मीडिया की ओर से आशीष तिवारी को उनकी नई पारी के लिए ढेरों बधाई और शुभकामनाएं।

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इस बड़े पद पर ‘HT City’ से जुड़े रोहित भटनागर

रोहित भटनागर इससे पहले करीब तीन साल से ‘द फ्री प्रेस जर्नल’ (The Free Press Journal) में अपनी भूमिका निभा रहे थे।

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Published - Thursday, 28 August, 2025
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Thursday, 28 August, 2025
Rohit Bhatnagar

‘एचटी सिटी’ (HT City) दिल्ली ने रोहित भटनागर को अपना नया एंटरटेनमेंट एडिटर नियुक्त करने की घोषणा की है। वह इससे पहले ‘द फ्री प्रेस जर्नल’ (The Free Press Journal) में इसी पद पर तीन साल तक अपनी भूमिका निभा चुके हैं।

रोहित भटनागर को प्रिंट, डिजिटल और टेलीविजन मीडिया में 16 साल से अधिक का अनुभव है।

भटनागर मुंबई की कई प्रमुख मीडिया संस्थाओं का हिस्सा रह चुके हैं, जिनमें ‘B4U’, ‘CNN-IBN’, ‘E24’, ‘Bollywood Now’, ‘डेक्कन क्रॉनिकल’, ‘मुंबई मिरर’ और ‘PeepingMoon’ भी शामिल हैं।

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'BW बिजनेसवर्ल्ड' अपनी 45वीं वर्षगांठ पर जारी करेगी विशेष अंक

भारत की सबसे सम्मानित बिजनेस मैगजीन 'BW बिजनेसवर्ल्ड' ने अपनी 45वीं वर्षगांठ पर विशेष अंक की घोषणा की है।

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Published - Thursday, 28 August, 2025
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Thursday, 28 August, 2025
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भारत की सबसे सम्मानित बिजनेस मैगजीन 'BW बिजनेसवर्ल्ड' ने अपनी 45वीं वर्षगांठ पर विशेष अंक की घोषणा की है। अपनी स्थापना के बाद से ही यह पत्रिका भारत की कॉर्पोरेट और आर्थिक यात्रा का दस्तावेजीकरण करने, महत्वपूर्ण चर्चाओं को आकार देने और अहम पड़ावों को दर्ज करने में अग्रणी रही है।

भविष्य की ओर देखता विशेषांक

यह स्मारक अंक निम्न विषयों पर प्रकाश डालेगा:

  • India@2047: विकसित भारत के लिए विजन और रोडमैप

  • The Changing Face of Leadership: यह समझ कि लीडर्स भविष्य की तैयारी किस तरह कर रहे हैं

  • Voices That Matter: नीतिनिर्माताओं, उद्यमियों और उद्योग जगत के अग्रणी हस्तियों के दृष्टिकोण, जो कल को आकार दे रहे हैं

संग्रहणीय अंक

45वीं वर्षगांठ का यह अंक न सिर्फ अतीत पर नजर डालेगा, बल्कि आने वाले समय का खाका भी प्रस्तुत करेगा। इसमें विशेष निबंध, गहन फीचर और भारत के सबसे प्रभावशाली निर्णयकर्ताओं के लिए थॉट लीडरशिप शामिल होगी।

विस्तृत प्रभाव

यह ऐतिहासिक अंक विस्तारित प्रसार और डिजिटल प्रसार-प्रचार से और अधिक प्रभावी होगा, जिससे यह बिजनेस लीडर्स, नीतिनिर्माताओं, उद्यमियों और बदलाव लाने वाले व्यापक पारिस्थितिकी तंत्र तक अधिकतम दृश्यता सुनिश्चित करेगा। यह संगठनों के लिए भारत की विकास यात्रा के एक निर्णायक क्षण से जुड़ने का अनोखा अवसर प्रदान करता है।

BW बिजनेसवर्ल्ड का 45वीं वर्षगांठ विशेषांक सितंबर 2025 में जारी किया जाएगा। 

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तीन मार्केट्स में शुरू हो सकता है प्रिंट-डिजिटल रीडरशिप पर IRS का पायलट सर्वे

छह साल के अंतराल के बाद, मीडिया रिसर्च यूजर्स काउंसिल ऑफ इंडिया (MRUCI) तीन शहरों में पायलट इंडियन रीडरशिप सर्वे (IRS) करने पर विचार कर रहा है

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Published - Thursday, 28 August, 2025
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Thursday, 28 August, 2025
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कंचन श्रीवास्तव, सीनियर एडिटर, एक्सचेंज4मीडिया ।। 

छह साल के अंतराल के बाद, मीडिया रिसर्च यूजर्स काउंसिल ऑफ इंडिया (MRUCI) तीन शहरों में पायलट इंडियन रीडरशिप सर्वे (IRS) करने पर विचार कर रहा है, ताकि बदलते रीडरशिप पैटर्न को प्रिंट और डिजिटल दोनों न्यूज प्लेटफॉर्म्स पर ट्रैक किया जा सके। इंडस्ट्री सूत्रों ने यह जानकारी एक्सचेंज4मीडिया को दी।

अधिकारियों ने एक्सचेंज4मीडिया को बताया, “काउंसिल ने इस महीने की शुरुआत में अपनी बोर्ड मीटिंग में तीन मार्केट्स में पायलट सर्वे करने पर चर्चा की थी, जिसमें प्रिंट और डिजिटल न्यूज रीडरशिप दोनों को कवर किया जाएगा। हालांकि, इन मार्केट्स के चयन पर अभी सहमति नहीं बन पाई है।” 

अधिकारियों का कहना है कि अगले मीटिंग में मार्केट्स के नाम, सैंपल साइज, मेथडोलॉजी और सर्वे की टाइमलाइन को अंतिम रूप दिए जाने की संभावना है। सर्वे में शहरी और अर्ध-शहरी आबादी को शामिल किया जाना चाहिए।

सूत्रों के अनुसार, काउंसिल संभवतः इस बहुप्रतीक्षित सर्वे को अंजाम देने के लिए रिसर्च फर्म Inteliphyle को शामिल कर सकता है, जिसका नेतृत्व प्रसून बासु कर रहे हैं, जो पहले कंतार और नीलसन में एग्जिक्यूटिव रह चुके हैं।

जब एक्सचेंज4मीडिया ने IRS पायलट टेस्ट के विवरण के बारे में पूछा, तो MRUCI के चेयरमैन शैलेश गुप्ता ने कहा, “इस समय कोई भी बयान देना जल्दबाजी होगी।”

गौरतलब है कि MRUCI ने पिछले साल के दौरान इस सर्वे पर कई मीटिंग्स कीं, लेकिन सदस्य कभी सहमति पर नहीं पहुंचे। फंडिंग फॉर्मूला से लेकर सर्वे मेथडोलॉजी, एजेंसी के चयन और सर्वे के दायरे तक- कई पहलुओं पर व्यापक बहस हुई लेकिन कोई समाधान नहीं निकला।

एक्सचेंज4मीडिया ने पहले रिपोर्ट किया था कि काउंसिल के कई प्रमुख सदस्य पारंपरिक डोर-टू-डोर सर्वे मॉडल के प्रति बढ़ती शंका जता रहे हैं। उन्होंने कहा कि COVID के बाद हाउसिंग सोसायटीज तक पहुंच सीमित हो गई है और प्राइवेसी को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं। उन्होंने यह भी बताया कि मेट्रो शहरों के निवासी 45 मिनट इंटरव्यू देने के लिए कम इच्छुक हैं, जिससे अर्बन डेटा की विश्वसनीयता और बदले में IRS की साख प्रभावित हो सकती है।

पब्लिशर्स ने यह तर्क भी दिया कि सर्वे को फिर से शुरू करने की लागत और जटिलता अब उचित नहीं ठहराई जा सकती, खासकर जब इसकी प्रासंगिकता पर बढ़ते हुए डिजिटल-चालित प्लानिंग माहौल में सवाल उठ रहे हैं।

2019 में हुआ था आखिरी सर्वे

आखिरी सर्वे 2019 में किया गया था। उसके बाद पहले महामारी के कारण और फिर फंडिंग चुनौतियों की वजह से इसका रोलआउट रुक गया।

इस बीच, भारत का विज्ञापन इंडस्ट्री 2024 में ₹1.1 लाख करोड़ को पार कर गया, जिसमें कुल विज्ञापन खर्च में प्रिंट की हिस्सेदारी 15–16% रही। इसका मतलब है कि प्रिंट इंडस्ट्री अब भी ₹15,000–16,000 करोड़ के विज्ञापन राजस्व पर अधिकार रखता है, जिससे यह करेंसी विज्ञापनदाताओं के लिए और भी अहम हो जाती है, खासकर आज के कठिन आर्थिक माहौल में, जहां हर मार्केटिंग रुपये पर बारीकी से नजर रखी जा रही है।

इस गतिरोध ने इंडस्ट्री-स्तरीय बहस को जन्म दिया है कि क्या पारंपरिक रीडरशिप सर्वे पूरे परिदृश्य को कैप्चर कर सकता है, जब डिजिटल न्यूज, शॉर्ट-फॉर्म वीडियो और सोशल मीडिया खपत में विस्फोटक वृद्धि हो रही है। कई पर्यवेक्षक प्रिंट के साथ-साथ सभी मीडिया प्लेटफॉर्म्स की खपत को समझने के लिए एक व्यापक अध्ययन की भी मांग कर रहे हैं।

डाबर इंडिया के वाइस प्रेसिडेंट और हेड ऑफ मीडिया, राजीव दुबे, इस पुराने दृष्टिकोण को एक अधिक AI-संचालित “मीडिया यूनिवर्स सर्वे” से बदलने की वकालत करते हैं।

राजीव दुबे ने सोमवार को अपने एक्सचेंज4मीडिया कॉलम में लिखा, “यह सर्वे सिर्फ इम्प्रेशंस को नहीं गिनेगा, यह प्रिंट, टीवी, मैगजीन, सोशल, शॉर्ट-फॉर्म वीडियो, ओटीटी, डिजिटल न्यूज और ई-कॉमर्स तक फैला होगा और पूरी शॉपर जर्नी को मैप करेगा और क्रॉस-चैनल व्यवहार को कैप्चर करेगा। यह डायनेमिक और ऑलवेज-ऑन होगा, कोई धुंधली वार्षिक रिपोर्ट नहीं, यह प्लेटफॉर्म्स, चैनल्स और डिवाइसेज पर रियल-टाइम, एक्शन योग्य इनसाइट्स देगा।”

इंडस्ट्री के एक लीडर ने कहा, यह देखना दिलचस्प होगा कि IRS एक टेक-संचालित, हाइब्रिड मीजरमेंट तकनीक में विकसित होता है या अपने पारंपरिक प्रिंट-फर्स्ट दृष्टिकोण को जारी रखता है या फिर हमेशा के लिए अपनी प्रासंगिकता खो देता है।

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ITC के करुणेश बजाज बन सकते हैं ABC के नए चेयरमैन, BCCL के मोहित जैन होंगे वाइस चेयरमैन

आईटीसी लिमिटेड में मार्केटिंग व एक्सपोर्ट्स के एग्जिक्यूटिव वाइस प्रेजिडेंट करुणेश बजाज साल 2025-26 के लिए ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशंस (ABC) के नए चेयरमैन बन सकते हैं।

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Published - Tuesday, 26 August, 2025
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Tuesday, 26 August, 2025
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आईटीसी लिमिटेड में मार्केटिंग व एक्सपोर्ट्स के एग्जिक्यूटिव वाइस प्रेजिडेंट करुणेश बजाज साल 2025-26 के लिए ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशंस (ABC) के नए चेयरमैन बन सकते हैं। इस संबंध में उच्च पदस्थ सूत्रों ने एक्सचेंज4मीडिया को जानकारी दी है।

परंपरा के अनुसार, बजाज वर्तमान चेयरमैन रियाद मैथ्यू, जो मलयाला मनोरमा ग्रुप के चीफ एसोसिएट एडिटर और डायरेक्टर हैं, की जगह लेंगे। औपचारिक पुष्टि आगामी वार्षिक आम बैठक (AGM) में होगी और इसके बाद 2 सितंबर से बजाज पदभार ग्रहण करेंगे।

जब इस विकास पर रियाद मैथ्यू से सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा, “यह एक वार्षिक प्रक्रिया है। हर साल ABC में नए चेयर और वाइस चेयर का चुनाव होता है।”

सूत्रों के अनुसार, बेनेट, कोलमैन एंड कंपनी लिमिटेड (टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप) के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर और बोर्ड मेंबर मोहित जैन वाइस चेयरमैन बनाए जा सकते हैं। वह बजाज की जगह लेंगे, जो फिलहाल इस पद पर कार्यरत हैं।

बजाज एक अनुभवी बिजनेस लीडर हैं, जिन्हें दो दशकों से अधिक का इंडस्ट्री अनुभव है। मार्केटिंग इनसाइट और बिजनेस अक्यूमेन के दुर्लभ संयोजन के कारण उनकी भूमिका को महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

मोहित जैन भी टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप से बीते दो दशकों से जुड़े हुए हैं। इससे पहले उन्होंने जीएसके कंज्यूमर हेल्थकेयर और Huhtamaki में काम किया है। समय के साथ उन्होंने रणनीतिक समझ और मीडिया बिजनेस की गहरी जानकारी के लिए मजबूत प्रतिष्ठा अर्जित की है।

ABC हर छह महीने में अपने सदस्य प्रकाशकों को ABC सर्टिफिकेट जारी करता है, जिनका सर्कुलेशन डेटा उसके नियमों और विनियमों के अनुरूप होता है। यह संस्था प्रकाशकों के लिए योग्य सर्कुलेशन प्रतियों की गणना हेतु मानकीकृत ऑडिट प्रक्रिया भी निर्धारित करती है।

ABC की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, संस्था की सदस्यता में वर्तमान में 562 दैनिक, 107 साप्ताहिक और 50 मैगजींस शामिल हैं। इसके अलावा 125 विज्ञापन एजेंसियां, 45 विज्ञापनदाता और 22 समाचार एजेंसियां एवं प्रिंट मीडिया और विज्ञापन से जुड़ी संस्थाएं भी इसका हिस्सा हैं।

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'मीडिया इंडस्ट्री में अटेंशन इकनॉमी का दौर, IRS को करना होगा बदलाव'

1995 जब में मीडिया रिसर्च यूजर्स काउंसिल (MRUC) द्वारा पहला इंडियन रीडरशिप सर्वे (IRS) किया गया, तब का भारतीय विज्ञापन इंडस्ट्री आज की तुलना में लगभग पहचानी ही नहीं जा सकती थी

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Published - Monday, 25 August, 2025
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Monday, 25 August, 2025
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राजीव दुबे,  वाइस प्रेजिडेंट, हेड ऑफ इंडिया, डाबर इंडिया लिमिटेड ।।

1995 जब में मीडिया रिसर्च यूजर्स काउंसिल (MRUC) द्वारा पहला इंडियन रीडरशिप सर्वे (IRS) किया गया, तब का भारतीय विज्ञापन इंडस्ट्री आज की तुलना में लगभग पहचानी ही नहीं जा सकती थी। उस समय यह सेक्टर सिर्फ ₹3,000–4,500 करोड़ का था और कुल विज्ञापन खर्च का 70% प्रिंट पर जाता था। टेलीविजन अभी उभर रहा था और केबल टीवी बस क्षितिज पर दिखाई देने लगी थी।

आज की स्थिति देखें तो उद्योग ₹1.1 लाख करोड़ से ज्यादा का हो चुका है और कहानियां कहने के तरीक़े में जबरदस्त बदलाव आया है। IRS ने इन बदलावों के साथ 30 साल की यात्रा तय की है, अब समय है एक अपग्रेड का। 1995 के पहले IRS ने उसी वास्तविकता को दिखाया था- एक ऐसा दौर, जब प्रिंट मीडिया ही राजा था और बाकी सब पीछे थे।

आज का परिदृश्य

आज तस्वीर बिल्कुल अलग है। उद्योग ₹1.1 लाख करोड़ से अधिक पर पहुंच चुका है और इसका इंजन कहानियों और फॉर्मैट्स जितना ही एल्गोरिद्म और स्क्रीन से भी चलता है। प्रिंट का हिस्सा, जो कभी हावी था, अब लगभग 17%-19% पर आ गया है। डिजिटल विज्ञापन सबसे आगे है और कुल विज्ञापन खर्च का लगभग आधा हिस्सा लेता है, जबकि टेलीविजन का हिस्सा एक-तिहाई से भी कम है। यह वह दौर है जब स्क्रॉलिंग थंब और पलक झपकते ध्यान का राज है, जब OTT शो डिमांड पर देखे जाते हैं, न्यूज In Shorts जैसी ऐप्स पर पढ़ी जाती है, और शॉपिंग सर्च से शुरू होकर स्मार्टफोन पर टैप के साथ खत्म हो जाती है।

क्या बदला है और क्यों मीजरमेंट पीछे है?

लेकिन समस्या यह है कि इस बड़े बदलाव के बावजूद हमारी ट्रैकिंग, समझ और रणनीति बनाने के औजार पीछे रह गए हैं। IRS (Indian Readership Survey) अभी भी प्रिंट पर ज्यादा केंद्रित है, जो पुराने (एनालॉग) जमाने की सोच को दर्शाता है। जबकि मीडिया और विज्ञापन इंडस्ट्री अब डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन को अपना चुकी है। आखिरी बार IRS ने सभी स्टेकहोल्डर्स की जरूरत को ठीक से 2019 में पूरा किया था, जब डिजिटल और ब्रॉडकास्ट चैनलों की भूमिका अपेक्षाकृत सीमित थी।

सच्चाई यह है कि विज्ञापन की सफलता अब “opportunity to see” (यानी कितने लोगों ने विज्ञापन देखा) से आगे निकल चुकी है। आज ब्रांड्स और एजेंसियां सिर्फ एक्सपोजर नहीं, बल्कि असली उपभोक्ता रुचि को पकड़ने और बनाए रखने पर ध्यान देती हैं। कंज्यूमर इंटरैक्शन से सीधे जुटाए गए first-party data signals अब कैंपेन रणनीति की नींव हैं। इन्हीं संकेतों से ब्रांड्स सचमुच पर्सनलाइज्ड कम्युनिकेशन कर पाते हैं, जिससे विज्ञापन ज्यादा प्रासंगिक होते हैं और कन्वर्जन बढ़ते हैं।

डेटा से आगे बढ़कर, कंज्यूमर cohorts यानी रुचियों, आदतों या व्यवहार के आधार पर बने समूहों की ताक़त को देखें—ये लेजर-फोकस्ड मैसेजिंग और बड़े पैमाने पर हाइपर-पर्सनलाइजेशन संभव बनाते हैं। या फिर वे प्रोग्रामैटिक प्लेटफॉर्म्स, जो मशीन लर्निंग से सही समय पर सही जगह विज्ञापन दिखाते हैं। उदाहरण के लिए, IPL 2023 से विज्ञापनदाताओं ने इन नए औजारों का असर पहली बार देखा—CTV प्लेटफॉर्म्स पर इंटरैक्टिव विज्ञापनों ने एंगेजमेंट पैदा किया। अब सिर्फ रीच नहीं, बल्कि एंगेजमेंट ही गोल्ड स्टैंडर्ड है।

भविष्य-तैयार, समग्र मीडिया सर्वे की जरूरत
इस वास्तविकता को देखते हुए, जरूरी है कि भारत अपने मीडिया यूनिवर्स को मीजरमेंटने का तरीक़ा दोबारा सोचे। कल्पना कीजिए, एक next-gen survey का जिसमें एक मिलियन से अधिक उत्तरदाता हों, और जो हर फॉर्मैट, क्षेत्र, आयु वर्ग और डेमोग्राफिक को कवर करे। भर्ती, इंटरव्यू और परिणाम AI एजेंट्स द्वारा संचालित हों—सर्वे ज्यादा संरचित, कुशल और ऑडिटेबल हो—और डेटा पारदर्शी व भरोसेमंद हो।

यह सर्वे सिर्फ impressions नहीं गिनेगा। इसमें प्रिंट, टीवी, मैगजीन, सोशल, शॉर्ट-फॉर्म वीडियो, OTT, डिजिटल न्यूज, ई-कॉमर्स—सब शामिल होंगे और उपभोक्ताओं की पूरी shopper journey को कैप्चर किया जाएगा। यह दिखाएगा कि भारतीय उपभोक्ता वास्तव में किन-किन क्रॉस-चैनल रास्तों से गुजरते हैं। यह हमेशा सक्रिय रहेगा, न कि सालाना धूल जमी हुई रिपोर्ट की तरह—और रियल टाइम में उपयोगी actionable insights देगा। यह वास्तव में cross-channel, cross-platform, cross-devices survey होगा।

उद्योग सहयोग: किन्हें शामिल होना चाहिए
इतनी महत्वाकांक्षी व्यवस्था अकेले नहीं बन सकती। हमें पूरे उद्योग का गठबंधन चाहिए—एजेंसियां, विज्ञापनदाता, मीडिया मालिक, ब्रॉडकास्टर, टेक कंपनियां, प्रोग्रामैटिक और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स, स्ट्रीमिंग खिलाड़ी और अन्य। जब पूरा इकोसिस्टम भाग लेगा, तभी भारत की बदलती मीडिया आदतों की व्यापक और समग्र तस्वीर मिलेगी।

एक व्यावहारिक क़दम यह होगा कि विज्ञापनदाताओं, पब्लिशर्स, एजेंसियों और टेक्नोलॉजी कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ एक स्वतंत्र task force बने। यह संस्था मजबूत मीजरमेंटदंड तय करेगी, पारदर्शिता सुनिश्चित करेगी और इंटीग्रेशन की चुनौतियों को हल करेगी। जैसे-जैसे हम और डेटा स्रोतों का उपयोग करेंगे, हमें उपयोगकर्ता की प्राइवेसी को प्राथमिकता देनी होगी, विविध आवाजों को शामिल करना होगा और टेक्नोलॉजी शिफ्ट्स के साथ बने रहना होगा।

फंडिंग: उद्योग के भविष्य में साझा निवेश
एक ऐसा सर्वे जो सबकी सेवा करे, उसकी फंडिंग सिर्फ कुछ लोग नहीं कर सकते। पारंपरिक रूप से प्रिंट पब्लिशर्स ने अधिकतर लागत उठाई है—लेकिन यह ढाँचा अब प्रासंगिक नहीं है। अब फंडिंग सामूहिक होनी चाहिए।

  • पब्लिशर्स और ब्रॉडकास्टर्स, जिन्हें प्रासंगिकता और विकास चाहिए

  • विज्ञापनदाता और एजेंसियां, जिन्हें सटीकता और actionable intelligence की जरूरत है

  • टेक कंपनियां और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स, जिनके प्लेटफॉर्म, एल्गोरिद्म और ऐड प्रोडक्ट्स मजबूत और विश्वसनीय रीच व एंगेजमेंट डेटा पर निर्भर हैं

केवल तभी जब हर लाभार्थी निवेश भी करेगा, हमें न्यायपूर्ण गवर्नेंस, व्यापक भागीदारी और भरोसेमंद परिणाम मिलेंगे।

भारत के लिए क्यों जरूरी है- अभी और भविष्य में

एक आधुनिक, एकीकृत मीजरमेंट व्यवस्था सिर्फ तकनीकी अपग्रेड नहीं है- यह स्मार्ट कैंपेन प्लानिंग, क्रिएटिव इनोवेशन और उद्योग की विश्वसनीयता की नींव है। इसके साथ मार्केटर्स को साफ समझ मिलेगी, एजेंसियां आत्मविश्वास के साथ खर्च बांट सकेंगी, और जनता को ज्यादा प्रासंगिक और कम दखल देने वाले संदेश मिलेंगे। यह सिर्फ बराबरी करने की बात नहीं है, बल्कि नेतृत्व करने की है।

मैंने उद्योग को उसके स्याही-सने प्रिंट शुरुआती दौर से लेकर उसके आज के गतिशील डिजिटल वर्तमान तक विकसित होते देखा है। मुझे पूरा यक़ीन है: समय अब है। भारत को मानक तय करना चाहिए, सिर्फ पीछे नहीं चलना चाहिए।

आइए, वह मीजरमेंट व्यवस्था बनाएं जिसे एक दिन दुनिया अपनाना चाहेगी।

स्रोत और संदर्भ:

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HT मीडिया ग्रुप ने स्वप्निल रवीन्द्रन को साउथ का चीफ रेवेन्यू ऑफिसर किया नियुक्त

इससे पहले रवीन्द्रन करीब एक साल तक 'द टाइम्स ऑफ इंडिया' के साथ एसोसिएट वाइस प्रेसिडेंट और रिस्पॉन्स हेड के रूप में जुड़े हुए थे।

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Published - Friday, 22 August, 2025
Last Modified:
Friday, 22 August, 2025
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HT मीडिया ग्रुप ने स्वप्निल रवीन्द्रन को साउथ का चीफ रेवेन्यू ऑफिसर नियुक्त किया है। इस खबर की घोषणा रवीन्द्रन ने अपने लिंक्डइन प्रोफाइल के जरिए की है।

एचटी मीडिया में अपनी भूमिका का वर्णन करते हुए रवीन्द्रन ने लिखा, “हिन्दुस्तान टाइम्स, हिन्दुस्तान हिंदी और मिंट के लिए प्रिंट और डिजिटल दोनों प्लेटफॉर्म पर रेवेन्यू ग्रोथ पहलों का नेतृत्व करना, दक्षिण क्षेत्र के लिए ‘वन एचटी’ नैरेटिव को और मजबूत बनाना। क्रॉस-फंक्शनल टीमों के साथ सहयोग करते हुए इनोवेटिव रणनीतियों को लागू करना, जिससे मार्केट शेयर में वृद्धि हो रही है।”

इससे पहले रवीन्द्रन करीब एक साल तक 'द टाइम्स ऑफ इंडिया' के साथ एसोसिएट वाइस प्रेसिडेंट और रिस्पॉन्स हेड के रूप में जुड़े हुए थे।

अतीत में उन्होंने 'इनमोबी' और 'द हिंदू' के साथ भी काम किया है।

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प्रकाशकों ने कोविड के बाद 30% कम किया न्यूजप्रिंट, अब IRS दिखाएगा असली तस्वीर

देश के प्रमुख अखबारों ने महामारी के बाद से अपने सर्कुलेशन और पेज संख्या में भारी कटौती की है, जिसके चलते पिछले पांच वर्षों में अखबारों में इस्तेमाल होने वाले न्यूजप्रिंट में 25–30% की गिरावट आई है।

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Published - Wednesday, 20 August, 2025
Last Modified:
Wednesday, 20 August, 2025
PrintIndustry78

 कंचन श्रीवास्तव, सीनियर एडिटर, एक्सचेंज4मीडिया ।।

अंग्रेजी के शीर्ष दैनिक समेत देश के प्रमुख अखबारों ने महामारी के बाद से अपने सर्कुलेशन (प्रसार) और पेज संख्या में भारी कटौती की है, जिसके चलते पिछले पांच वर्षों में अखबारों में इस्तेमाल होने वाले न्यूजप्रिंट में 25–30% की गिरावट आई है।

जो स्थिति बाहर से देखने पर एक झटका या नुकसान जैसी लग रही थी, वास्तव में वही प्रकाशकों के लिए एक “बचाव की रणनीति” बन गई। इसी रणनीति ने उन्हें अपने विज्ञापन राजस्व को बनाए रखने और कुछ मामलों में बढ़ाने तक में मदद की है।

नाम का खुलासा न करने की शर्त पर अखबारों से जुड़े अधिकारियों ने एक्सचेंज4मीडिया को बताया, “कॉपी और पन्ने घटाने से उत्पादन लागत कम हुई, जिससे कोविड के बाद विज्ञापनदाताओं द्वारा हासिल की गई 10–15% विज्ञापन दरों की गिरावट को संतुलित किया जा सका। नतीजतन, मैदान में कम कॉपियां होने के बावजूद मौजूदा विज्ञापन वॉल्यूम पर मार्जिन बेहतर हुए। यही वजह है कि ज्यादातर कंपनियों की विज्ञापन आय 2020 के स्तर के बराबर या उससे भी ज्यादा है, जबकि सर्कुलेशन घट चुका है।”

हालांकि विज्ञापनदाताओं के लिए तस्वीर उतनी आश्वस्त करने वाली नहीं है। ज्यादातर विज्ञापनदाता अपने बजट का लगभग 10–15% प्रिंट पर खर्च करते हैं, लेकिन वास्तविक सर्कुलेशन आंकड़े स्पष्ट न होने और इंडियन रीडरशिप सर्वे (IRS) के स्थगित रहने के कारण कई लोग अपने कैंपेंस की असली पहुंच से अनजान हैं।

विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि भले ही यह रणनीति अल्पकालिक सहारा बनी हो, लेकिन लंबे समय तक टिकाऊ नहीं होगी। एक अधिकारी ने कहा, “फिलहाल पब्लिशर्स ने अपने लिए समय खरीदा है, लेकिन सवाल यह है कि कितने समय तक प्रिंट पतले कागज पर टिकेगा? सर्कुलेशन के लंबे समय तक कम आंकड़े दिखाना और पाठकों का घटता आधार अंततः विज्ञापनदाताओं का भरोसा कमजोर कर सकता है, खासकर तब, जब डिजिटल प्लेटफॉर्म लगातार और सटीक मेट्रिक्स और जवाबदेही प्रदान कर रहे हैं।”

गौरतलब है कि IRS, जिसे भारत के प्रिंट मीडिया इंडस्ट्री के लिए लंबे समय तक एकमात्र विश्वसनीय करंसी माना जाता रहा है, पिछले पांच वर्षों से रुका हुआ है। पहले कोविड-19 और फिर फंडिंग विवादों को कारण बताया गया, हालांकि इंडस्ट्री से जुड़े लोग मानते हैं कि असली बाधा पब्लिशर्स की घटती सर्कुलेशन संख्या का सामना करने में अनिच्छा है।

एक अखबार संपादक ने स्वीकार किया, “पेज और कॉपियां घटाए जाने के बावजूद, बड़ी संख्या में कॉपियां पाठकों तक पहुंचती ही नहीं, बल्कि पब्लिशर्स उन्हें कबाड़ के तौर पर बेच देते हैं और फिर भी बढ़े-चढ़े सर्कुलेशन आंकड़े दिखाते हैं। एक नया सर्वे इन असहज सच्चाइयों को उजागर कर सकता है और उनकी विज्ञापन पिच को कमजोर कर सकता है।”

लंबे विलंब के बाद पायलट टेस्ट?

सोमवार को एक्सचेंज4मीडिया ने रिपोर्ट दी कि पब्लिशर्स की मांग है कि IRS को पहले एक पायलट टेस्ट से गुजारा जाए, ताकि यह आंका जा सके कि महामारी के बाद के दौर में फिजिकल सर्वे विशेष रूप से महानगरों में अभी भी व्यावहारिक हैं या नहीं।

मीडिया रिसर्च यूजर्स काउंसिल ऑफ इंडिया (MRUCI) ने अपनी बोर्ड मीटिंग्स में इस मुद्दे पर लंबी चर्चा की, लेकिन अभी तक पायलट का दायरा, सैंपल साइज और लोकेशन तय नहीं की है, क्योंकि सदस्य पारंपरिक डोर-टू-डोर सर्वे मॉडल को लेकर बढ़ती चिंता जता रहे हैं।

MRUCI सदस्यों ने एक्सचेंज4मीडिया से कहा, “हाउसिंग सोसाइटीज पहले से ज्यादा प्रतिबंधात्मक हो गई हैं, जिससे सर्वेयर को एंट्री मिलना बेहद मुश्किल होता जा रहा है। इसके अलावा, परिवार अब निजता को ज्यादा महत्व देते हैं। मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों में पुरुष और महिलाएं दोनों सुबह से देर रात तक घर से बाहर रहते हैं, और भले ही आप उनसे मिल भी लें, वे 45 मिनट सर्वे के लिए निकालने को तैयार नहीं होते।”

यह मुद्दा MRUCI के भीतर नई चिंता पैदा कर रहा है कि क्या IRS को फिर से शुरू करने की लागत और जटिलता, जो 2019 में खर्च हुए ₹20 करोड़ से भी ज्यादा होने की संभावना है, डिजिटल-फर्स्ट मार्केट में, जहां सर्वे की उपयोगिता पर ही सवाल उठ रहे हैं, उचित ठहराई जा सकती है।

विडंबना यह है कि तेजी से बढ़ते ई-कॉमर्स और क्विक-कॉमर्स सेक्टर, जिनके डिलीवरी स्टाफ रोज इन्हीं गेट्स से आसानी से गुजरते हैं, यह संकेत देते हैं कि यह बाधा वास्तविक से ज्यादा धारणा-आधारित हो सकती है।

फिर भी, यह सर्वे, जो भारत के प्रिंट इंडस्ट्री के लिए एकमात्र करंसी माना जाता है, वापस आएगा या नहीं, यह अंततः पब्लिशर्स की इच्छा पर निर्भर करेगा। 

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पांच साल की देरी के बाद भी IRS अधर में, बदली सामाजिक परिस्थितियां बनी बाधा

महामारी के बाद हुए सामाजिक बदलाव भारतीय रीडरशिप सर्वे (IRS) के लिए सबसे बड़ी बाधा के रूप में सामने आ रहे हैं।

Samachar4media Bureau by
Published - Monday, 18 August, 2025
Last Modified:
Monday, 18 August, 2025
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कंचन श्रीवास्तव, सीनियर एडिटर, एक्सचेंज4मीडिया ।।

पांच वर्षों की देरी और व्यवधानों के बाद पहले कोविड-19 महामारी के कारण, फिर कार्यप्रणाली और फंडिंग से जुड़े विवादों के चलते और अब महामारी के बाद हुए सामाजिक बदलाव भारतीय रीडरशिप सर्वे (IRS) के लिए सबसे बड़ी बाधा के रूप में सामने आ रहे हैं।

परंपरा से हटकर, लंबे समय से प्रतीक्षित IRS पहले एक पायलट टेस्ट से गुजर सकता है ताकि यह आंका जा सके कि मौजूदा परिस्थितियों में विशेषकर मेट्रो शहरों में, फिजिकल रीडर सर्वे संभव है या नहीं। मीडिया रिसर्च यूजर्स काउंसिल ऑफ इंडिया (MRUCI) की तकनीकी समिति ने अभी तक इस पायलट टेस्ट के दायरे, सैंपल साइज और स्थानों पर निर्णय नहीं लिया है।

कई इंडस्ट्री सूत्रों के अनुसार, काउंसिल के प्रमुख सदस्य पारंपरिक डोर-टू-डोर मॉडल को लेकर बढ़ती शंकाएं जता रहे हैं। कुछ का कहना है कि कोविड के बाद हाउसिंग सोसाइटीज पहले की तुलना में कहीं अधिक सख्त हो गई हैं, जिससे सर्वेयर का पहुंच पाना मुश्किल हो गया है।

भारतीय समाचार पत्र सोसाइटी (INS) के अध्यक्ष एम.वी. श्रेयम्स कुमार ने कहा, “कुछ मीडिया हाउसेज का मानना है कि महामारी के बाद के दौर में हाउसिंग सोसाइटीज काफी हद तक प्रतिबंधात्मक हो गई हैं, जिससे सर्वेयर के लिए प्रवेश पाना कठिन हो गया है। आवासीय नियमों में यह बदलाव बड़े पैमाने पर डोर-टू-डोर सर्वे करने में बड़ी चुनौती पेश करता है, खासकर शहरी क्षेत्रों में।”

गौरतलब है कि पिछला सर्वे 2019 में किया गया था और MRUC ने इस बार भी वही कार्यप्रणाली अपनाने का निर्णय लिया था।

एक अन्य सदस्य ने e4m को बताया, “अब परिवार निजता को अधिक महत्व देते हैं। मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों में, पुरुष और महिलाएं सुबह से देर रात तक बाहर रहते हैं और यदि आप उनसे मिल भी जाएं तो वे शायद ही सर्वे के लिए 45 मिनट निकालने को तैयार हों। 2019 तक जो कार्यप्रणाली चल रही थी, वह अब काम करने की संभावना नहीं रखती।”

चिंता यह है कि इससे शहरी सर्वेक्षण को प्रतिनिधित्वकारी और विश्वसनीय रूप से करना कठिन हो जाएगा। और अगर शहरी डेटा असंगत या अधूरा हुआ, तो इससे पूरे IRS आउटपुट की विश्वसनीयता कमजोर हो जाएगी, सदस्यों का कहना है।

सूत्रों ने एक्सचेंज4मीडिया को बताया, “इस मुद्दे ने MRUC के भीतर गंभीर चिंता पैदा कर दी है, कई सदस्यों का सुझाव है कि IRS को फिर से शुरू करने की लागत और जटिलता अब न्यायसंगत नहीं रह गई है, खासकर तब जब डिजिटल-प्रधान प्लानिंग माहौल में सर्वे की उपयोगिता पर बहस चल रही है। इसलिए, पायलट टेस्ट पर चर्चा की जा रही है।” 

विडंबना यह है कि तेजी से बढ़ते ई-कॉमर्स और क्विक-कॉमर्स सेक्टर, जिनके डिलीवरी स्टाफ रोजाना इन्हीं गेट्स से होकर गुजरते हैं, यह संकेत देते हैं कि यह बाधा वास्तविक से अधिक धारणा आधारित हो सकती है।

इसके अलावा, हाल के वर्षों में कई अखबारों ने डिजिटल खपत बढ़ने के बीच भारी प्रसार गिरावट देखी है। असर इतना गहरा है कि एक प्रमुख अंग्रेजी दैनिक का मुंबई प्रसार 2020 के 5.5 लाख प्रतियों से घटकर अब मुश्किल से 1.5 लाख पर आ गया है। इंडस्ट्री पर्यवेक्षकों का कहना है कि यही कारण है कि कई मीडिया हाउसेज सर्वे से बच रहे हैं और अड़चनें खड़ी कर रहे हैं, ताकि ऐसे असहज परिणामों से बचा जा सके जो विज्ञापन राजस्व को चोट पहुंचा सकते हैं।

फिर भी, संभावना यही है कि IRS का पूर्ण संस्करण, जिसे प्रिंट इंडस्ट्री की करेंसी माना जाता है और जिसे पूरा होने में आमतौर पर छह से आठ महीने लगते हैं, उम्मीद से कहीं अधिक देर तक टल सकता है। यह आगे बढ़ेगा भी या नहीं, यह पूरी तरह पायलट के नतीजों पर निर्भर करेगा।

आगामी सर्वे की अनुमानित लागत 2019 में खर्च हुए 20 करोड़ रुपये से अधिक होने की उम्मीद है, जो इसके लॉन्च में एक और बड़ी बाधा है, खासकर मौजूदा आर्थिक दबावों के बीच।

एक अधिकारी ने कहा, “इंडस्ट्री के बड़े खिलाड़ियों की आय हजारों करोड़ में है, तो यह राशि बहुत छोटी है। साफ़ तौर पर, वे अपने प्रसार में गिरावट छिपाना चाहते हैं और इसी बहाने देरी कर रहे हैं।”

MRUCI के चेयरमैन शैलेश गुप्ता से संपर्क करने की कई कोशिशें नाकाम रहीं।

डेटा शून्य या पुनर्नवाचार?

IRS कभी दुनिया का सबसे बड़ा वार्षिक रीडरशिप सर्वे माना जाता था, जिसमें 2.56 लाख से अधिक उत्तरदाता शामिल होते थे। इसकी लंबी देरी अब कुछ अहम सवाल खड़े करती है: क्या प्रिंट को अब सिर्फ ABC ऑडिट, प्रकाशकों के आंतरिक डेटा और विज्ञापन बिक्री नैरेटिव्स पर निर्भर रहना पड़ेगा? क्या कोई नया हाइब्रिड या तकनीक-आधारित मॉडल भरोसे की इस खाई को भर सकता है?

हालांकि MRUCI ने कोई औपचारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि चुपचाप एक सहमति बन रही है कि मौजूदा स्वरूप में IRS शायद लौटकर न आए। कुछ सदस्य वैकल्पिक कार्यप्रणालियों की पड़ताल कर रहे हैं, जैसे फोन-सहायता प्राप्त सर्वे या डिजिटल के लिए ऐप-आधारित मीटरिंग, लेकिन इनमें से किसी को अभी तक मान्यता नहीं मिली है या बड़े पैमाने पर अपनाया नहीं गया है।

IRS को नई ऊर्जा मिलेगी या इसे किसी छोटे और तकनीक-प्रेरित मॉडल से बदल दिया जाएगा, यह देखना बाकी है।

विज्ञापनदाताओं के लिए अहम

रीडरशिप डेटा विज्ञापनदाताओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे यह तय होता है कि उन्हें किन प्रिंट प्रकाशनों को टारगेट करना चाहिए। IRS भारत के प्रिंट और मीडिया खपत पैटर्न, जनसांख्यिकी, उत्पाद स्वामित्व और उपयोग पर अंतर्दृष्टि प्रदान करता है, जिसमें सर्वे किए गए परिवारों में 100 से अधिक उत्पाद श्रेणियाँ शामिल होती हैं।

एक ऐसे मीडिया परिदृश्य में जहां डिजिटल प्लेटफॉर्म लगातार हावी हो रहे हैं, प्रिंट प्रकाशकों पर अनुकूलन का दबाव बढ़ता जा रहा है। इंडस्ट्री सूत्रों का कहना है कि कई अखबारों ने लाभप्रदता सुधारने के प्रयास में प्रसार में 15–20% कटौती की है और घाटे में चलने वाले संस्करणों को बंद कर दिया है।

हालांकि प्रिंट विज्ञापन राजस्व में हाल में कुछ वृद्धि देखी गई है, लेकिन यह मुख्य रूप से घटती विज्ञापन दरों की वजह से है, न कि ब्रैंड मार्केटिंग खर्च में किसी ठोस वृद्धि के कारण। आज, अपनी निरंतर प्रासंगिकता के बावजूद, प्रिंट मीडिया भारत के विज्ञापन खर्च का केवल 20% ही संभालता है, जबकि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का हिस्सा 44% और टेलीविजन का 32% है। 

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प्रिंट व डिजिटल का संगम ही मैगजीन इंडस्ट्री का भविष्य सुरक्षित करेगा: मनोज शर्मा

इंडिया टुडे मैगजींस के CEO मनोज शर्मा ने आज ‘दि इम्पीरियल’ होटल में चल रहे इंडियन मैगजीन कांग्रेस 2025 में अपने संबोधन के दौरान मैगजीन इंडस्ट्री के बदलते दौर, चुनौतियों और नए अवसरों पर खुलकर चर्चा की।

Vikas Saxena by
Published - Saturday, 09 August, 2025
Last Modified:
Saturday, 09 August, 2025
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इंडिया टुडे मैगजींस के CEO मनोज शर्मा ने आज ‘दि इम्पीरियल’ होटल में चल रहे इंडियन मैगजीन कांग्रेस (IMC) 2025 में अपने संबोधन के दौरान मैगजीन इंडस्ट्री के बदलते दौर, चुनौतियों और नए अवसरों पर खुलकर चर्चा की। उन्होंने कहा कि “छोटा ही सुंदर है” और यह सिद्धांत आज के मीडिया परिदृश्य में गहराई से लागू होता है, जहां छोटी लेकिन अर्थपूर्ण और गहरी जुड़ाव वाली कम्युनिटीज ही असली ताकत हैं।

शर्मा ने अपने संबोधन की शुरुआत हल्के-फुल्के अंदाज में करते हुए कहा कि तकनीकी सत्र के बाद वे सबकुछ सरल बनाकर छोटे हिस्सों में तोड़ना चाहते हैं, यानी “पैसा कमाना आसान कैसे बनाएं।” उन्होंने दर्शकों से सवाल किया कि जीवन में सबसे बड़ा डर किस चीज का होता है? जवाब आया- “मृत्यु।” उन्होंने इसे मीडिया इंडस्ट्री की ‘पब्लिकेशन के बंद होने’ वाली स्थिति से जोड़ा और कहा कि प्रोफेशन जीवन में भी जब किसी माध्यम की ‘मौत’ का खतरा होता है, तो हमें बचने के लिए खुद को फिर से गढ़ना और इनोवेशन करना पड़ता है।

टीवी से लेकर डिजिटल तक- हर दौर में लड़ाई और पुनर्जन्म

मनोज शर्मा ने याद किया कि पिछले 15–20 वर्षों में टीवी, रेडियो और अब डिजिटल के ‘ऑनस्लॉट’ के बावजूद मैगजीन इंडस्ट्री ने बार-बार अपने अस्तित्व को साबित किया है। उन्होंने कहा, “मार्केट में हम रोज रिजेक्शन झेलते हैं, लेकिन हर बार कुछ सीखकर लौटते हैं और नए समाधान निकालते हैं।”

उन्होंने बताया कि आज भी 90% लोग मानते हैं कि मैगजीन बची रहेंगी और यदि हम रीइमैजिन करते रहें तो न सिर्फ बचेंगी बल्कि फले-फूलेंगी। उन्होंने प्रिंट और डिजिटल के संयोजन को ‘डेडली कॉम्बिनेशन’ बताते हुए कहा कि प्रिंट विश्वसनीयता देता है और डिजिटल व्यापक पहुंच।

कोविड के दौरान नहीं मानी हार

कोविड-19 काल को याद करते हुए उन्होंने कहा कि उनके चेयरमैन अरुण पुरी ने साफ निर्देश दिए कि “इंडिया टुडे का एक भी अंक छूटना नहीं चाहिए।” उस समय पैसेंजर और ट्रांसपोर्ट सर्विसेज बंद होने के बावजूद उन्होंने कार्गो एयरलाइंस से तीन गुना किराया देकर मैगजीन पांच मेट्रो शहरों में पहुंचाई और वहां से आगे डिस्ट्रीब्यूट की। चूंकि दुकानें बंद थीं, उन्होंने मेडिकल स्टोर्स, दूध बूथ और किराना दुकानों के जरिए मुफ्त कॉपियां बांटी। एजेंट्स की सुरक्षा के लिए मास्क, फेस शील्ड और डिसइंफेक्टेंट तक दिए। इस दौरान उन्हें एहसास हुआ कि प्री-कोविड ढांचे में लागत बहुत अधिक है, इसलिए कॉस्ट मॉडल को पुनर्गठित किया गया और कवर प्राइस तीन बार बढ़ाई गई। नतीजतन अब हर कॉपी ‘कॉस्ट प्लस’ पर बिकती है और घाटा नहीं होता।

डिजिटल थकान, भरोसे का संकट और प्रिंट का महत्व

उन्होंने कहा कि कोविड के दौरान लोगों में डिजिटल और टीवी से थकान पैदा हुई और स्क्रीन टाइम के नुकसान को लेकर जागरूकता बढ़ी। कई देशों (जैसे ऑस्ट्रेलिया) ने स्कूलों में मोबाइल पर प्रतिबंध लगाया है। डिजिटल के ‘ट्रस्ट डेफिसिट’ और ‘इको चैंबर’ इफेक्ट के बीच प्रिंट ही वह माध्यम है जो पाठकों को संपूर्ण और संतुलित दृष्टिकोण देता है।

राजस्व में जबरदस्त वापसी

शर्मा ने गर्व से कहा कि कोविड के चार साल बाद उनकी सर्कुलेशन वैल्यू 2019–20 के मुकाबले 15% बढ़ी है, फिजिकल डिस्ट्रीब्यूशन 8 गुना बढ़ा है और विज्ञापन सेगमेंट में चार वर्षों में औसतन 18% वार्षिक वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा, “सिर्फ इंडिया टुडे का टर्नओवर 100 करोड़ रुपये से अधिक है और बिजनेस टुडे व कॉस्मोपॉलिटन जोड़ दें तो यह 150 करोड़ पार हो जाता है, जो कि पूरे इंग्लिश न्यूज टीवी जॉनर (350 करोड़) के लगभग आधे के बराबर है।”

कम्युनिटी बिल्डिंग और IP क्रिएशन से सफलता

उन्होंने कहा कि राजस्व का सबसे सरल फॉर्मूला है- किसी सेक्टर को पहचानो, उसके इर्द-गिर्द गहरी और अर्थपूर्ण कंटेंट बनाकर कम्युनिटी तैयार करो और फिर विज्ञापनदाताओं को उससे जोड़ो। उदाहरण के तौर पर उन्होंने ‘इंडिया टुडे एडवांटेज’ नामक स्कूल-केंद्रित मैगजीन लॉन्च की, जो 14–18 वर्ष आयु के लिए इंडिया टुडे की अपॉलिटिकल व ज्ञान-आधारित कंटेंट को दोबारा लिखकर प्रस्तुत करती है। यह आज 1,50,000 से अधिक सब्सक्रिप्शन के साथ हजार से अधिक स्कूलों में पहुंच चुकी है, और सर्वे में 79.5% छात्रों ने इसे कवर-टू-कवर पढ़ने की बात कही।

शर्मा ने कहा कि पिछले 15 वर्षों से चल रहे कॉलेज रैंकिंग प्रोजेक्ट को डिजिटल रूप दिया गया, जिसमें पिछले 5–6 वर्षों का डेटा डायनेमिक वेबसाइट पर उपलब्ध है ताकि छात्र कॉलेजों की प्रगति देख सकें।

उन्होंने बताया कि ऑटो सेक्टर से चार साल पहले की तुलना में पांच गुना राजस्व हो रहा है, जबकि ट्रैवल रिपोर्ट शुरू करने के बाद यह वर्टिकल अब इंडिया टुडे राजस्व का 5% योगदान देता है।

उन्होंने कहा कि अवसर सिर्फ देश में नहीं, बाहर भी हैं। जापान के साथ पहले इंडो-जापान समिट और फिर दुबई में इंडो-UAE कॉन्क्लेव आयोजित कर उन्होंने अंतरराष्ट्रीय सहयोग व व्यापारिक संवाद को बढ़ावा दिया और साथ ही राजस्व भी कमाया।

उन्होंने HR कम्युनिटी से जोड़ने के लिए विश्वविद्यालयों के लिए HR राउंडटेबल और समिट आयोजित किए, जो उनके लिए नया और लाभदायक राजस्व स्रोत बना।

क्रिएटिव कैंपेन और ब्रैंड प्रमोशन

ग्रीन ड्राइव जैसे अभियानों के जरिए कार ब्रैंड्स के साथ साझेदारी की, जिसमें देशभर में SUVs चलाई गईं, 75,000 पेड़ लगाए गए और कंटेंट को डिजिटल, सोशल व प्रिंट में व्यापक रूप से प्रसारित किया गया।

अपने संबोधन के अंत में मनोज शर्मा ने कहा, “यदि आप अवसरों को सूंघकर पकड़ लेते हैं, तो उनसे पैसा जरूर बनाया जा सकता है। इंडस्ट्री में समाधान प्रदाता के तौर पर जाएँ, तभी राजस्व और मार्केट हिस्सेदारी बनाए रखी जा सकती है।” 

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हमें अपने रीडर्स के पास जाना होगा, बजाय इसके कि वो हमारे पास आएं: दीपक भट्ट

इंडिया टुडे ग्रुप के सर्कुलेशन डायरेक्टर दीपक भट्ट ने मैगजीन डिस्ट्रीब्यूशन और सेल्स में डिजिटल प्लेटफॉर्म की बढ़ती भूमिका, पोस्ट-कोविड उपभोक्ता व्यवहार में आए बदलाव और भविष्य की रणनीतियों पर बात की।

Samachar4media Bureau by
Published - Saturday, 09 August, 2025
Last Modified:
Saturday, 09 August, 2025
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इंडियन मैगजीन कांग्रेस (IMC) 2025 के दौरान ‘दि इम्पीरियल’ होटल में आयोजित सत्र में इंडिया टुडे ग्रुप के सर्कुलेशन डायरेक्टर दीपक भट्ट ने मैगजीन डिस्ट्रीब्यूशन और सेल्स में डिजिटल प्लेटफॉर्म की बढ़ती भूमिका, पोस्ट-कोविड उपभोक्ता व्यवहार में आए बदलाव और भविष्य की रणनीतियों पर विस्तार से बात की।

उन्होंने बताया कि कोविड के दौरान, जैसा कि पहले उल्लेख किया गया कि इंडिया टुडे ने एक दिन भी प्रिंटिंग बंद नहीं की, लेकिन पहले ही साल में उपभोक्ता आदतों में बड़ा बदलाव दिखा। लोग न केवल मैगजीन बल्कि दूध, किराना और कई ऐसे प्रॉडक्ट्स जिन्हें पहले डिजिटल माध्यम से नहीं खरीदा जाता था, अब ऑनलाइन ऑर्डर करने लगे। उन्होंने कहा, “तब हमने सोचा कि क्यों न मैगजीन को भी उसी तरीके से उपलब्ध कराया जाए। इसके लिए ग्रुप ने अपने डिस्ट्रीब्यूशन प्रोसेस को पूरी तरह रीवैंप किया।”

एक हालिया मैकिंजी सर्वे का हवाला देते हुए भट्ट ने बताया कि अब 10 में से 5 भारतीय प्रोडक्ट खरीदने से पहले स्मार्टफोन का इस्तेमाल करके तय करते हैं कि क्या खरीदना है। साथ ही, एक औसत उपभोक्ता के पास सप्ताह में ‘पैशनेट प्रोडक्ट्स’ (रुचि-आधारित प्रोडक्ट्स) पर खर्च करने के लिए तीन घंटे अधिक हैं, जो कोविड-पूर्व की तुलना में काफी वृद्धि है।

सर्वे में यह भी सामने आया कि स्पीड, कम लागत, विश्वसनीय डिलीवरी और रिटर्न की सुविधा उपभोक्ता के लिए बेहद अहम है और मैगजीन सेक्टर में यह कमी थी। इसी सोच से ग्रुप ने डिजिटल सेल्स पर जोर दिया।

भट्ट ने कहा, “कोविड से पहले डिजिटल सेल्स हमारे कुल बिजनेस का सिर्फ 1% थीं, जो अब बढ़कर 18% हो चुकी हैं।” उन्होंने डिजिटल सेल्स को तीन कैटेगरी में बांटा-

  1. ई-कॉमर्स

  2. क्विक कॉमर्स

  3. प्रिंट-ऑन-डिमांड

ई-कॉमर्स में 400% ग्रोथ

ई-कॉमर्स की बात करते हुए उन्होंने बताया कि पोस्ट-कोविड में इस चैनल में करीब 400% की वृद्धि हुई है, जिसमें एमेजॉन ने अहम भूमिका निभाई। पहले सिर्फ कवर फोटो और सिंगल प्रोडक्ट लिस्टिंग होती थी, अब हर इश्यू के 7-8 मुख्य आर्टिकल विजुअल फॉर्मेट में डिटेल के साथ लिस्ट किए जाते हैं। उन्होंने बताया कि अब एमेजॉन पर India Today का स्टोर पेज भी है, जहां सभी मैगजीन एक जगह उपलब्ध हैं।

प्रमोशन के लिए प्रीमियम प्लेसमेंट, बैनर ऐड, सर्च ऑप्टिमाइजेशन और बुक्स से क्रॉस-प्रमोशन (जैसे मोदी पर किताब देखने पर India Today का बैनर) जैसी रणनीतियों ने ट्रैक्शन बढ़ाया। तीन साल की कोशिश के बाद एमेजॉन की ‘बुक्स’ होमपेज पर अब ‘मैगजीन’ कैटेगरी जोड़ी गई है, जिसमें फिलहाल सिर्फ India Today की मैगजीन हैं, लेकिन एमेजॉन चाहता है कि सभी पब्लिशर्स इसमें शामिल हों।

क्विक कॉमर्स: 10 मिनट में मैगजीन डिलीवरी

भट्ट ने बताया कि पोस्ट-कोविड लोग तुरंत डिलीवरी चाहते हैं, इसलिए Blinkit के साथ 10 मिनट में मैगजीन डिलीवरी शुरू की गई। अब यह सेवा 26 शहरों में है और पिछले दो साल में 5 गुना राजस्व वृद्धि हुई है। अब Zepto भी इस मॉडल में दिलचस्पी ले रहा है।

उन्होंने बताया कि रिटर्न मैनेजमेंट को लेकर ऑपरेशनल एक्सीलेंस विकसित की गई है, जैसे शुक्रवार रात प्रिंट हुई India Today को उसी रात 11 बजे तक डिलीवर कर देना और सभी शहरों में अगले दिन सुबह उपलब्ध करा देना। डैशबोर्ड से रोजाना ट्रैक करके रिटर्न रेशियो को स्वस्थ स्तर पर रखा गया है।

प्रिंट-ऑन-डिमांड: विदेशों में भी तीन दिन में डिलीवरी

दो महीने पहले शुरू हुई इस सेवा में Kindle Direct Publishing के जरिए अब India Today दुनिया भर में ऑर्डर की जा सकती है। उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति जर्मनी में बैठे-बैठे तीन दिन में प्रिंटेड कॉपी मंगवा सकता है। यह मैगजीन स्थानीय रूप से प्रिंट होकर डिलीवर होती है।

भट्ट ने सभी पब्लिशर्स को इस मॉडल में शामिल होने का निमंत्रण दिया और बताया कि लागत शून्य है, जबकि रॉयल्टी सीधे पब्लिशर को मिलती है।

भविष्य की दिशा

स्पीच के अंत में उन्होंने कहा, 

  • “हमें अपने रीडर्स के पास जाना होगा, बजाय इसके कि वो हमारे पास आएं।”

  • “रीडर चाहे 10 मिनट में मैगजीन चाहता हो या विदेश में बैठे तीन दिन में, हमें वह सुविधा देनी होगी।”

  • “कम्युनिटीज बनाना, प्रीमियम अनुभव देना और लगातार इनोवेशन करना ही आगे का रास्ता है।”

उन्होंने कहा, “टेक्नोलॉजी ने हमें यह सब करने की ताकत दी है, अब इसे और आगे ले जाना होगा।” 

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