धराली-हर्षिल आपदा: ग्राउंड जीरो पर सबसे पहले पहुंचे ‘आजतक’ के मनजीत नेगी

जान हथेली पर रखकर की रिपोर्टिंग। समाचार4मीडिया से बातचीत में मनजीत नेगी ने बताया, ग्राउंड जीरो पर पहुंचकर मुझे वर्ष 2013 में केदारनाथ में आई आपदा की भयावह यादें ताजा हो गईं।

Last Modified:
Saturday, 09 August, 2025
Manjeet Negi


उत्तरकाशी में पिछले दिनों आई भीषण प्राकृतिक आपदा ने एक बार फिर पहाड़ों में रहने वाले लोगों की नाजुक स्थिति और राहत-बचाव कार्यों की चुनौतियों को सामने ला दिया। बादल फटने और बाढ़ ने धराली, हर्षिल और सुखी टॉप जैसे इलाकों में भारी तबाही मचाई। इस मुश्किल घड़ी में, हिंदी न्यूज चैनल ‘आजतक’ (AajTak) के कार्यकारी रक्षा संपादक मनजीत नेगी सबसे पहले वहां कवरेज के लिए पहुंचे और जान जोखिम में डालकर आपदा की असली तस्वीर देश के सामने रखी।

समाचार4मीडिया से बातचीत में मनजीत नेगी ने बताया, ‘गंगोत्री जाने वाले मार्ग पर स्थित धराली और चीन सीमा पर स्थित पर्यटक स्थल हर्षिल में बादल फटने और बाढ़ ने प्रकृति का कहर दिखाया। सबसे पहले ग्राउंड ज़ीरो पर पहुंचकर मुझे वर्ष 2013 में केदारनाथ में आई भीषण आपदा की भयावह यादें ताजा हो गईं। उस समय भी मैं गुप्तकाशी से 50 किलोमीटर का पैदल रास्ता तय करके सबसे पहले केदारनाथ धाम पहुंचा था। इस बार वैसी ही स्थिति धराली और हर्षिल में थी। 5 अगस्त को शाम 5 बजे सड़क के रास्ते मैं पूरी रात का सफर तय करके उत्तरकाशी पहुंचा। 6 अगस्त को काफ़ी मुश्किलों के साथ मैं हर्षिल पहुंच पाया।

लगभग आधी रात और सुबह 5 बजे से मैंने 14 राजपूताना रेजिमेंट के जवानों के साथ सबसे पहले हर्षिल में आर्मी कैंप के ऊपर आई उस तबाही को कवर किया, जिसमें सेना के 8 जवान और एक जेसीओ आपदा का शिकार हुए। उसके बाद धराली में मैंने खीर गाड़ से आई प्रलय को देखा। इस विनाशकारी घटना में धराली में करीब 150 से अधिक होटल, रिजॉर्ट और लोगों के मकान 40 फीट से अधिक के मलबे में दब गए। इस भीषण आपदा के समय पिछले कई दिनों से सेना, आईटीबीपी, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के जवान दिनरात राहत और बचाव कार्य में जुटे हैं। आने वाले समय इस आपदा का विश्लेषण होगाl

मनजीत नेगी की रिपोर्टिंग में साफ दिखा कि कैसे हर्षिल में गंगोत्री को जोड़ने वाला हाईवे मलबे में तब्दील हो चुका था। जगह-जगह गाड़ियां उलटी पड़ी थीं, दुकानें और घर बह गए थे, आर्मी के मेस हॉल की 12 फीट ऊंची इमारत आधी से ज्यादा जमीन में धंस चुकी थी और किचन का सामान कीचड़ में बिखरा पड़ा था।

मनजीत नेगी का यह साहस और समर्पण सिर्फ एक पत्रकारिता का उदाहरण नहीं, बल्कि सच्ची ग्राउंड रिपोर्टिंग की मिसाल है, जहां खबर तक पहुंचने के लिए रिपोर्टर अपनी जान की परवाह किए बिना आगे बढ़ता है, ताकि सच्चाई लोगों तक पहुंचे। आपको बता दें कि कुछ दिनों पूर्व उत्तराकाशी जिले में तीन जगह धराली, हर्षिल और सुखी टॉप में विनाशकारी सैलाब आया था।

इस प्राकृतिक आपदा की मनजीत नेगी द्वारा की गई ग्राउंड रिपोर्टिंग को आप यहां देख सकते हैं।

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'विभाजन-विभीषिका' : पाञ्चजन्य में 1947 के नरसंहार की सच्ची कहानियां

पाञ्चजन्य ने इस पहल के माध्यम से विभाजन के उस सच को सामने लाने की कोशिश की है, जिसे लंबे समय तक दबा दिया गया था। डॉक्यूमेंट्री देखने के लिए पाठक पाञ्चजन्य की आधिकारिक वेबसाइट पर जा सकते हैं।

Last Modified:
Monday, 11 August, 2025
Partition Horror Stories

राष्ट्रीय साप्ताहिक पत्रिका पाञ्चजन्य इन दिनों भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान हुए हिंदुओं और सिखों के नरसंहार की दर्दनाक कहानियों पर आधारित एक विशेष सीरीज़ चला रही है। इस सीरीज़ का नाम है ‘विभाजन-विभीषिका’, जिसे पत्रिका के संपादक हितेश शंकर के मार्गदर्शन में प्रकाशित किया जा रहा है।

‘विभाजन-विभीषिका’ में उन सच्ची कहानियों को जगह दी गई है, जो दशकों तक मुख्यधारा की मीडिया और इतिहास के पन्नों से दूर रहीं। पाञ्चजन्य की टीम ने इन घटनाओं को संकलित करने के लिए उन हिंदुओं और सिखों का साक्षात्कार किया है, जिन्होंने 1947 के विभाजन के दौरान अपने परिजनों, घरों और जीवन की असंख्य स्मृतियों को खोया।

यह सीरीज़ उन पीड़ितों और प्रत्यक्षदर्शियों की आपबीती है, जिन्होंने अपनी आंखों के सामने धर्म के आधार पर हुए उस नरसंहार को देखा जिसमें 20 लाख से अधिक हिंदुओं और सिखों की हत्या हुई थी। कई लोगों ने बताया कि कैसे उन्होंने अमानवीय घटनाओं, हिंसा, बलात्कार और मजबूरन पलायन का सामना किया।

पाञ्चजन्य का यह प्रयास केवल घटनाओं को दर्ज करने भर तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें पाठकों के लिए साक्षात्कार के वीडियो और विभाजन पर आधारित पत्रिका की डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी उपलब्ध कराई गई है। इस सीरीज़ को पढ़ते समय पाठक न सिर्फ शब्दों में दर्ज दर्द महसूस करेंगे, बल्कि उन चेहरों और आवाज़ों से भी रूबरू होंगे जो इस त्रासदी के जीवित साक्षी हैं।

पाञ्चजन्य ने इस पहल के माध्यम से विभाजन के उस सच को सामने लाने की कोशिश की है, जिसे लंबे समय तक दबा दिया गया था। सीरीज़ को पढ़ने और डॉक्यूमेंट्री देखने के लिए पाठक पाञ्चजन्य की आधिकारिक वेबसाइट panchjanya.com पर जा सकते हैं।

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पंचतत्व में विलीन हुए डॉ.रामजी लाल जांगिड़

अंतिम संस्कार नोएडा सेक्टर-94 में सम्पन्न हुआ। यहां अनुरंजन झा, प्रो.प्रदीप माथुर, कुशल कुमार, राणा यशवंत, दुर्गानाथ स्वर्णकार, हितेंद्र गुप्ता ने भी अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

Last Modified:
Sunday, 10 August, 2025
Dr. Ramji Lal Jangid

भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी), नई दिल्ली में हिंदी पत्रकारिता विभाग के संस्थापक प्रमुख रहे डा.रामजी लाल जांगिड़ रविवार शाम पंचतत्व में विलीन हो गए। उन्हें मुखाग्नि उनकी नातिन साध्वी प्रज्ञा भारती ने दी। डा.जांगिड़ का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था। रविवार को नोएडा के सेक्टर 35 के कम्युनिटी सेंटर में उनका पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए रखा गया।

जहां भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) के पूर्व महानिदेशक प्रोफेसर संजय द्विवेदी, आजतक के प्रबंध संपादक सुप्रिय प्रसाद, वरिष्ठ पत्रकार बृजेश कुमार सिंह, संगीता तिवारी, उमेश चतुर्वेदी, विकास मिश्र सहित उनके पूर्व विद्यार्थियों और प्रशंसकों ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

प्रो.संजय द्विवेदी ने अपनी भावांजलि में कहा कि मीडिया शिक्षा जगत हमेशा डा.जांगिड़ का कृतज्ञ रहेगा। भारतीय भाषाओं में मीडिया शिक्षा के वे प्रबल पैरोकार और ध्वजवाहक रहे हैं। उनकी प्रेरणा और प्रोत्साहन से प्रेरित सैकड़ों युवा अपने योगदान से मीडिया क्षेत्र को गौरवान्वित कर रहे हैं और उनमें अनेक नेतृत्वकारी भूमिका में हैं।

अंतिम संस्कार नोएडा सेक्टर-94 में सम्पन्न हुआ। यहां अनुरंजन झा, प्रो.प्रदीप माथुर, कुशल कुमार, राणा यशवंत, दुर्गानाथ स्वर्णकार, हितेंद्र गुप्ता ने भी अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

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हैप्पी बर्थडे, जमाल शाहिद शेख: लाइफस्टाइल पत्रकारिता में नए आयाम रच रहे हैं आप

लाइफस्टाइल पत्रकारिता की दुनिया में कुछ ही नाम ऐसे हैं, जिन्होंने अपनी दूरदृष्टि और बहुमुखी प्रतिभा से कहानियों और अंदाज़ को नया आयाम दिया है। इनमें से एक हैं जमाल शाहिद शेख।

Last Modified:
Saturday, 09 August, 2025
Jamal Sheikh

लाइफस्टाइल पत्रकारिता की दुनिया में कुछ ही नाम ऐसे हैं, जिन्होंने अपनी दूरदृष्टि और बहुमुखी प्रतिभा से कहानियों और अंदाज़ को नया आयाम दिया है। इनमें से एक हैं जमाल शाहिद शेख। आज उनका जन्मदिन है।

हिंदुस्तान टाइम्स में ब्रंच और न्यू मीडिया इनिशिएटिव्स के नेशनल एडिटर के रूप में उन्होंने संडे मैगजीन को 10 लाख से अधिक पाठकों के लिए हर रविवार का पढ़ने का पसंदीदा मंच बना दिया। एक ऐसा प्लेटफ़ॉर्म, जहां लाइफस्टाइल, संस्कृति और संवाद सहज, ताज़गीभरे और जीवंत रूप में सामने आते हैं।

उनकी संपादकीय यात्रा में कई अहम पड़ाव रहे। उन्होंने पुरुषों की हेल्थ के भारतीय संस्करण की शुरुआत की, जिससे वेलनेस को एक नई पहचान मिली और यह एक पूरी पीढ़ी की जीवनशैली का हिस्सा बन गया। इसके बाद उन्होंने रॉब रिपोर्ट को भारत में फिर लॉन्च किया, जिसमें शिल्पकला और लग्ज़री की अनूठी दुनिया को पाठकों तक पहुंचाया। साथ ही डिस्कवरी चैनल मैगज़ीन शुरू की, जिसने जिज्ञासा और विस्मय के नए द्वार खोले। हर पहल में जमाल ने आकांक्षाओं को प्रामाणिकता से जोड़ा और ऐसे मंच बनाए जहां पाठक प्रेरित भी हों और जुड़ाव भी महसूस करें।

अप्रैल 2023 में उन्होंने अपने करियर का नया अध्याय शुरू किया-आरपी–संजिव गोयनका ग्रुप में चीफ़ ऑपरेटिंग ऑफ़िसर (लाइफस्टाइल मीडिया बिज़नेस) के रूप में। उनका मकसद साफ है: ऐसा पोर्टफ़ोलियो तैयार करना जो आने वाले वर्षों में सांस्कृतिक पसंद और उसकी परिभाषा तय करे। उनके नेतृत्व में एस्क्वायर इंडिया, द हॉलीवुड रिपोर्टर इंडिया और मैनिफेस्ट जैसे प्रतिष्ठित ब्रैंड नए दौर के प्रभावशाली नाम बन रहे हैं—जो संपादकीय उत्कृष्टता और आधुनिक कहानी कहने की ताकत से भरपूर हैं।

लेकिन पद और मास्टहेड से परे, जमाल के काम में उनकी निजी रुचियों की झलक है—खाना, यात्रा और दुनिया के प्रति असीम जिज्ञासा। यही तत्व उनके पन्नों को एक जीवंत और अपनापन भरा स्वर देते हैं, जिससे उनकी कहानियां सिर्फ पढ़ी नहीं जातीं, महसूस भी की जाती हैं।

आज उनके जन्मदिन पर सराहना सिर्फ उनके मील के पत्थरों के लिए नहीं, बल्कि उस सोच के लिए भी होनी चाहिए जो उन्हें प्रेरित करती है—ऐसे संपादक जो सुनना जानते हैं, ऐसे ब्रैंड-निर्माता जो हर शीर्षक को जीवित अवधारणा मानते हैं, और ऐसे सांस्कृतिक स्वर जो भारत की लाइफस्टाइल बातचीत को हमेशा ताज़ा, प्रासंगिक और जीवंत बनाए रखते हैं।

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टेक जर्नलिस्ट प्रदीप पाण्डेय ने टाइम्स नाउ के साथ शुरू की नई पारी

अपने कार्यकाल के दौरान प्रदीप पाण्डेय ने अमर उजाला की लगभग सभी बीट्स पर काम करते हुए डिजिटल पत्रकारिता में अपनी बहुआयामी प्रतिभा का परिचय दिया।

Last Modified:
Friday, 08 August, 2025
Pradeep Pandey

वरिष्ठ डिजिटल पत्रकार प्रदीप पाण्डेय ने अमर उजाला से विदा लेने के बाद टाइम्स नाउ के साथ अपनी नई पेशेवर यात्रा शुरू कर दी है। अमर उजाला डॉट कॉम में उन्होंने लगभग आठ वर्षों तक सेवा दी और टेक्नोलॉजी बीट को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। टाइम्स नाउ में भी वे टेक्नोलॉजी बीट की ही ज़िम्मेदारी संभालेंगे।अपने कार्यकाल के दौरान प्रदीप पाण्डेय ने अमर उजाला की लगभग सभी बीट्स पर काम करते हुए डिजिटल पत्रकारिता में अपनी बहुआयामी प्रतिभा का परिचय दिया।

विशेष रूप से टेक्नोलॉजी, गैजेट, साइंस और साइबर सिक्योरिटी जैसे जटिल विषयों पर उनकी पकड़ और लेखन शैली सराहनीय रही है। छपरा, बिहार के मूल निवासी प्रदीप पाण्डेय ने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय (नोएडा कैंपस) से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की है। अमर उजाला से पूर्व वे एस्ट्रोसेज डॉट कॉम और इंडिया न्यूज़ जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं।

पत्रकारिता में उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए उन्हें ‘40 अंडर 40’ जैसे प्रतिष्ठित सम्मान से भी नवाज़ा जा चुका है, जिसे समाचार4मीडिया (एक्सचेंज4मीडिया समूह की हिंदी वेबसाइट) द्वारा प्रतिवर्ष प्रदान किया जाता है।

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हैप्पी बर्थडे अनुराग भदौरिया: समाजवादी विचारधारा के मजबूत स्तंभ हैं आप

उनकी हरे रंग के कुर्ते की पहचान और जनता से सीधा जुड़ाव उन्हें एक जमीनी नेता के रूप में स्थापित करता है।

Last Modified:
Friday, 08 August, 2025
Anurag BhadauriaHB

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनुराग भदौरिया के लिए आज का दिन बेहद ही खास है। दरअसल, आज उनका जन्मदिन है। अनुराग भदौरिया भारतीय राजनीति का ऐसा चेहरा हैं जो न सिर्फ विचारों की स्पष्टता से प्रभावित करते हैं, बल्कि ज़मीन से जुड़े होने के चलते जनता का सीधा विश्वास भी जीतते हैं। वह मुद्दों की समझ, तर्क की धार और विचारधारा की निष्ठा से न सिर्फ टीवी स्टूडियो में विपक्ष की बुलंद आवाज हैं, बल्कि जमीनी राजनीति में भी अपने मजबूत जनाधार के लिए जाने जाते हैं।

उत्तर प्रदेश में जन्मे अनुराग भदौरिया का शैक्षणिक सफर भी काफी शानदार है। उन्होंने प्रतिष्ठित आईआईएम कोलकाता से एग्जिक्यूटिव बिजनेस मैनेजमेंट का कोर्स किया है। भदौरिया ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़ाई की है और वे लखनऊ के भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय से शास्त्रीय संगीत में 'विसारद' भी हैं। यह बात उन्हें अन्य नेताओं से अलग बनाती है। जहां एक ओर वे राजनीतिक मंचों पर समाजवादी विचारधारा के मजबूत स्तंभ के रूप में नजर आते हैं, वहीं दूसरी ओर उनका सांस्कृतिक पक्ष भी उतना ही समृद्ध और प्रभावशाली है।

टीवी चैनलों की डिबेट हो या संसद के बाहर किसी सामाजिक मसले पर चर्चा, अनुराग भदौरिया हमेशा तथ्यात्मक, संयमित और मुखर शैली में अपनी बात रखते हैं। वे उन चंद नेताओं में से हैं जिनकी वाणी में तीखापन जरूर होता है, पर भाषा में मर्यादा बनी रहती है। यही कारण है कि राजनीतिक मतभेदों के बावजूद उन्हें विरोधी दलों के प्रवक्ताओं के बीच भी गंभीरता से सुना जाता है।

समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव के भरोसेमंद सिपहसालारों में शामिल भदौरिया किसान, नौजवान, महिला सशक्तिकरण, सामाजिक न्याय जैसे बुनियादी मुद्दों पर लगातार मुखर रहते हैं। वे पार्टी की नीतियों और कार्यक्रमों को जन-जन तक पहुंचाने में एग्रेसिव लेकिन सकारात्मक रणनीति के लिए जाने जाते हैं।

हालांकि राजनीतिक जीवन में उन्हें कई बार चुनौतियों और विवादों का सामना भी करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हर बार साहस और गरिमा के साथ उन परिस्थितियों का जवाब दिया। सोशल मीडिया पर भी उनकी सक्रियता उल्लेखनीय है, जहां वे सम-सामयिक मुद्दों पर बेबाक राय रखते हैं और युवाओं के बीच गहरी पकड़ बनाए हुए हैं।

उन्होंने Indian Gramin Cricket League (IGCL) की स्थापना की है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण प्रतिभाओं को मंच देना है। यह पहल दर्शाती है कि उनका दृष्टिकोण केवल राजनीति तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज के विकास में उनकी गहरी रुचि और भूमिका है।

अनुराग भदौरिया की पारिवारिक पृष्ठभूमि भी उल्लेखनीय है। उनकी पत्नी अनुपमा राग, उत्तर प्रदेश प्रशासनिक सेवा (PCS) की अधिकारी हैं। यह परिवार सेवा, अनुशासन और सामाजिक उत्तरदायित्व जैसे मूल्यों को अपने जीवन में आत्मसात करता है, जो उनके सार्वजनिक जीवन में भी परिलक्षित होता है।

लखनऊ पूर्वी विधानसभा सीट से 2017 और 2022 में चुनाव लड़ने वाले अनुराग ने हार के बावजूद अपनी जुझारू भावना को बनाए रखा। उनकी हरे रंग के कुर्ते की पहचान और जनता से सीधा जुड़ाव उन्हें एक जमीनी नेता के रूप में स्थापित करता है। उनकी सास, सुशीला सरोज, जो समाजवादी पार्टी की पूर्व सांसद और उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रह चुकी हैं, उनके परिवार की राजनीतिक विरासत को और मजबूती देती हैं।

अनुराग भदौरिया का व्यक्तित्व उनकी विचारशीलता और जोखिम लेने की क्षमता से चमकता है। वह न केवल एक राजनेता हैं, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति हैं जो सामाजिक मुद्दों पर खुलकर बोलते हैं और जनता के बीच अपनी बात रखने में संकोच नहीं करते। उनकी ऊर्जा, समाजवादी विचारधारा के प्रति समर्पण और जनसेवा की भावना उन्हें एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व बनाती है। जन्मदिन की अनंत शुभकामनाएं, अनुराग जी!

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'नरेंद्र मोहन स्मृति साहित्य सम्मान' की घोषणा

दैनिक जागरण ने अपने पूर्व प्रधान संपादक नरेंद्र मोहन जी की स्मृति में 'नरेंद्र मोहन स्मृति साहित्य सम्मान' की घोषणा की है। हिंदी की मौलिक कृति को हर वर्ष पाँच लाख का पुरस्कार मिलेगा।

Last Modified:
Thursday, 07 August, 2025
Narendra Mohan legacy

दैनिक जागरण के पूर्व प्रधान संपादक नरेंद्र मोहन जी की स्मृति में एक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायी पहल की गई है। अब हर वर्ष हिंदी साहित्य (Hindi Literature) की किसी एक उत्कृष्ट मौलिक कृति (Original Work) को 'नरेंद्र मोहन स्मृति साहित्य सम्मान' प्रदान किया जाएगा।

इस सम्मान के तहत चयनित लेखक को ₹5,00,000 (five lakh rupees) की राशि दी जाएगी। यह सम्मान 2024 में प्रकाशित पुस्तक (Book Published in 2024) के लिए दिया जाएगा। पुस्तक का चयन एक प्रतिष्ठित चयन समिति (Selection Committee) द्वारा किया जाएगा, जिसमें हिंदी के वरिष्ठ और निष्ठावान साहित्यकार होंगे। पुरस्कार के लिए प्रविष्टियाँ लेखक, प्रकाशक या संस्था द्वारा भेजी जा सकती हैं। आवेदन की अंतिम तिथि 7 सितंबर 2025 निर्धारित की गई है।

नरेंद्र मोहन: एक संपादक, एक विचारक-

नरेंद्र मोहन जी ने 37 वर्षों तक दैनिक जागरण (Dainik Jagran) के संपादन में अभूतपूर्व योगदान दिया। उन्होंने केवल एक अख़बार नहीं, बल्कि एक जन आंदोलन (Public Movement) खड़ा किया। उनका योगदान न केवल पत्रकारिता में बल्कि भारतीय विचारधारा के संवर्धन में भी ऐतिहासिक रहा।

आपातकाल (Emergency) के दौर में जब लोकतंत्र खतरे में था, नरेंद्र मोहन जी ने 27 जून 1975 को एक खाली संपादकीय प्रकाशित कर अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Expression) की भावना को ज़िंदा रखा। इस साहसी कदम के बाद उन्हें 28 जून की रात गिरफ्तार कर लिया गया — लेकिन उन्होंने कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।

उनके विचार 'विचार प्रवाह' जैसे लोकप्रिय स्तंभों में उजागर होते रहे, जिनमें उन्होंने राजनीति (Politics), अर्थव्यवस्था (Economy), संस्कृति (Culture), हिंदुत्व (Hindutva), धर्म (Religion) और सांप्रदायिकता (Communalism) जैसे विषयों पर निर्भीक और संतुलित लेखन किया।

साहित्य और समाज के लिए समर्पित जीवन -

नरेंद्र मोहन जी एक ऐसे चिंतक थे, जिनकी दृष्टि भारतीय संस्कृति (Indian Culture) और सांस्कृतिक चेतना (Cultural Consciousness) से गहराई से जुड़ी थी। उन्होंने कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं जो आज भी प्रासंगिक हैं। 1996 में वे राज्यसभा (Rajya Sabha) के सदस्य बने और 2002 तक संसद (Parliament) में सक्रिय भूमिका निभाई।अब उनकी स्मृति में दैनिक जागरण द्वारा 'हिंदी हैं हम' (Hindi Hain Hum) अभियान के अंतर्गत यह साहित्य सम्मान प्रारंभ किया गया है जो आने वाले वर्षों में हिंदी लेखन (Hindi Writing) को नई दिशा देगा।

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राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में 'ZEE स्टूडियोज' को बड़ी सफलता

'जी स्टूडियोज' ने 71वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में कुल 6 प्रतिष्ठित पुरस्कार अपने नाम किए हैं।

Last Modified:
Tuesday, 05 August, 2025
ZEE9562

देश की अग्रणी कंटेंट व टेक्नोलॉजी कंपनी जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज लिमिटेड (ZEE) के मूवी बिजनेस वर्टिकल 'ZEE स्टूडियोज' ने 71वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में कुल 6 प्रतिष्ठित पुरस्कार अपने नाम किए हैं।

Mrs. Chatterjee Vs Norway में दमदार अभिनय के लिए रानी मुखर्जी को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला। इस फिल्म का निर्माण 'ZEE स्टूडियोज' ने किया था।

सर्वश्रेष्ठ बाल फिल्म का पुरस्कार मराठी फिल्म 'नाल 2' को मिला, जिसे 'ZEE स्टूडियोज' ने प्रड्यूस किया था। इसी फिल्म के लिए त्रिषा थोसर, श्रीनिवास पोकले और भार्गव जगताप को उनके शानदार अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार का पुरस्कार भी प्रदान किया गया।

'सिर्फ एक बंदा काफी है' फिल्म के लिए दीपक किंगरानी को सर्वश्रेष्ठ संवाद का पुरस्कार मिला। इस फिल्म का निर्माण भी 'ZEE स्टूडियोज' ने किया था।

 'ZEE स्टूडियोज' द्वारा निर्मित एक और फिल्म 'आत्मपॅम्फ्लेट' को सर्वश्रेष्ठ पहली फिल्म (डायरेक्टर के रूप में डेब्यू) का पुरस्कार मिला।

'गड्ढे गड्ढे चा', जो एक पंजाबी फीचर फिल्म है, को सर्वश्रेष्ठ पंजाबी फिल्म का खिताब मिला। इसका निर्माण भी 'ZEE स्टूडियोज' द्वारा किया गया था।

इसके अलावा, 'ZEE स्टूडियोज' द्वारा डिस्ट्रीब्यूट फिल्म '12th फेल' को दो प्रमुख पुरस्कार मिले- सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म और सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (मुख्य भूमिका), जो कि विक्रांत मैसी को मिला।

इस उपलब्धि पर 'ZEE स्टूडियोज' और जी म्यूजिक कंपनी के चीफ बिजनेस ऑफिसर उमेश कुमार बंसल ने कहा, “यह हमारे लिए सम्मान की बात है कि हम ऐसी गुणवत्तापूर्ण फिल्मों से जुड़े हैं, जिन्हें प्रतिष्ठित 71वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में मान्यता मिली है। यह सफलता हमारे पैन-इंडिया स्टूडियो के उस संकल्प का प्रमाण है जिसके तहत हम हर भाषा में दमदार कहानियां और प्रभावशाली कथानक दर्शकों तक पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमें अपने प्रतिभाशाली फिल्मकारों और टीमों पर गर्व है, जिनकी मेहनत से हम यह सामूहिक सफलता हासिल कर सके हैं। हम आगे भी ऐसी फिल्में बनाते और वितरित करते रहेंगे जो केवल मनोरंजन ही नहीं, बल्कि प्रेरणा भी दें और भारतीय सिनेमा की समृद्ध विविधता का उत्सव मनाएं।” 

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Applause Entertainment ने मिले जेफ्री आर्चर की 6 फेमस नॉवेल्स के स्क्रीन राइट्स

अप्लॉज एंटरटेनमेंट (Applause Entertainment) ने दुनिया के सबसे लोकप्रिय लेखकों में शुमार जेफ्री आर्चर (Jeffrey Archer) की छह प्रतिष्ठित पुस्तकों के विशेष स्क्रीन अधिकार हासिल कर लिए हैं।

Last Modified:
Tuesday, 05 August, 2025
JefferyArcher841

अप्लॉज एंटरटेनमेंट (Applause Entertainment) ने दुनिया के सबसे लोकप्रिय लेखकों में शुमार जेफ्री आर्चर (Jeffrey Archer) की छह प्रतिष्ठित पुस्तकों के विशेष स्क्रीन अधिकार हासिल कर लिए हैं। इनमें The Clifton Chronicles, Fourth Estate, First Among Equals, The Eleventh Commandment, Sons of Fortune और Heads You Win जैसी चर्चित कृतियां शामिल हैं। Applause ने भारतीय पुस्तकों और वैश्विक फॉर्मैट्स को पहले भी स्क्रीन पर सफलतापूर्वक ढाला है, लेकिन यह पहली बार है जब उसने किसी अंतरराष्ट्रीय कथा साहित्य के अधिकार हासिल किए हैं। कंपनी ने एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि यह साझेदारी Applause के बढ़ते कंटेंट पोर्टफोलियो में एक अहम वैश्विक विस्तार है।

इन छह उपन्यासों में राजनीतिक ड्रामा, जासूसी कथाएं, मीडिया की शक्ति को लेकर संघर्ष और पीढ़ियों में फैली पारिवारिक गाथाएं शामिल हैं। जेफ्री आर्चर की विशिष्ट शैली (तेज गति, अप्रत्याशित मोड़ और चरित्र-प्रधान कहानी) इन सभी को एक समृद्ध और बहुआयामी नैरेटिव कैनवस बनाती है। Applause इन कहानियों को भारत में विकसित कर, विभिन्न भाषाओं और प्लेटफॉर्म्स के लिए प्रीमियम वेब सीरीज और फीचर फिल्मों के रूप में पेश करेगा, ताकि 'मेड इन इंडिया फॉर द वर्ल्ड' की भावना के साथ आर्चर की दुनिया को स्क्रीन पर जीवंत किया जा सके।

इस सहयोग के साथ Applause अपने रचनात्मक क्षितिज का और विस्तार कर रहा है। वैश्विक स्तर की प्रतिष्ठित कहानियों को अपनी विशिष्ट दृष्टि और शैली के साथ जोड़ते हुए, वह ऐसा कंटेंट तैयार कर रहा है जो सिनेमाई, साहसी और अंतरराष्ट्रीय मंच पर पेश किए जाने योग्य हो। यह साझेदारी लेखकों, निर्देशकों और क्रिएटिव पेशेवरों के लिए भी एक सुनहरा अवसर खोलती है, वे दुनियाभर में पसंद की जाने वाली कहानियों को आधुनिक और सिनेमाई स्वरूप में फिर से गढ़ सकेंगे।

Applause Entertainment के मैनेजिंग डायरेक्टर समीर नायर ने इस अवसर को “एक ऐतिहासिक मोड़” करार देते हुए कहा, “हमने अब तक भारतीय पुस्तकों, फॉर्मैट्स और वास्तविक घटनाओं पर आधारित कहानियां कही हैं। अब हम वैश्विक फिक्शन की दुनिया में कदम रख रहे हैं। जेफ्री आर्चर के उपन्यास चरित्रों से भरपूर, स्क्रीन के लिए उपयुक्त और बेहद रोचक हैं। इन्हें भव्यता और स्टाइल के साथ दुनिया भर के दर्शकों के सामने लाना हमारे लिए एक रचनात्मक अवसर है, जिसे लेकर हम बेहद उत्साहित हैं।”

लेखक जेफ्री आर्चर ने भी इस साझेदारी पर खुशी जताते हुए कहा, “समीर नायर और Applause की टीम के साथ सहयोग करना मेरे लिए अत्यंत सुखद अनुभव है। उनकी कहानी कहने की लगन, अब तक का बेहतरीन काम और उनकी वैश्विक दृष्टि उन्हें मेरी कहानियों को स्क्रीन पर उतारने के लिए आदर्श भागीदार बनाते हैं। भारत को लेकर मेरी एक विशेष आत्मीयता रही है, यह देश मेरी कहानियों को हमेशा अपनी कहानियों की तरह अपनाता आया है और बतौर क्रिकेट प्रेमी, भारत से मेरा जुड़ाव और भी गहरा है। अब जब मेरी कहानियों और किरदारों को भारत से लेकर दुनिया भर में एक नया जीवन मिलेगा, तो यह मेरे लिए बेहद रोमांचक क्षण है।” 

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हरिवंश जी की पत्रकारिता प्रयोगशाला : विज्ञापन से जनकार्य तक

यह पुस्तक केवल अतीत की कहानी नहीं, बल्कि आज के पत्रकारों, विपणन पेशेवरों, विद्यार्थियों और सामाजिक बदलाव के इच्छुक हर व्यक्ति के लिए एक प्रेरणास्पद दस्तावेज़ है।

Last Modified:
Tuesday, 05 August, 2025
Journalism Experiment

वरिष्ठ मीडियाकर्मी ए. एस. रघुनाथ जो कि वर्ष 2005 से 2014 तक 'प्रभात खबर 'अख़बार से ब्रांड एसोसिएट के रूप में जुड़े रहे, ने प्रभात खबर की असाधारण यात्रा को आकर्षक कॉफी टेबल पुस्तक में प्रस्तुत किया है। यह आकर्षक कॉफी टेबल पुस्तक प्रभात खबर की असाधारण यात्रा को दर्ज करती है। एक समय अस्तित्व के संकट से जूझ रहा यह अख़बार कैसे जन-मन की आवाज़ बना, यह पुस्तक उसी परिवर्तन की प्रेरक कथा है।

हरिवंश जी के दूरदर्शी नेतृत्व में प्रभात खबर ने पारंपरिक पत्रकारिता की सीमाओं को लांघते हुए उसे सामाजिक परिवर्तन का सशक्त माध्यम बना दिया। सशक्त संपादकीय लेखन को जनसेवा से जुड़े विज्ञापन अभियानों (Ad-Vocacy Campaigns) से जोड़कर शिक्षा, सामाजिक न्याय, सुशासन, लैंगिक समानता और नागरिक सहभागिता जैसे मुद्दों को नए स्वर, संवेदना और विस्तार मिले। यह चित्रों से समृद्ध पुस्तक 35 चयनित अभियानों को प्रस्तुत करती है, जिनमें 400 से अधिक अनूठे विज्ञापनों का समावेश है।

1990 के दशक में संसाधनों की कमी के बावजूद जब अंदरूनी टीम द्वारा साधारण कागज़ों पर डिज़ाइन किए गए पर्चों से अभियान शुरू हुआ, वह 2005 के बाद देश की प्रमुख विज्ञापन एजेंसियों द्वारा संचालित प्रभावशाली अभियानों तक पहुँचा, वह भी सीमित बजट में, परंतु बड़े असर के साथ। इस दस्तावेज़ को जीवंत बनाते हैं वे अनुभव, जिन्हें उस समय के पत्रकारों, विज्ञापन विशेषज्ञों, प्रतिस्पर्धी अख़बारों के वरिष्ठों और शिक्षाविदों ने साझा किया जो इस यात्रा के साक्षी भी रहे और सहभागी भी।

इस पूरी प्रक्रिया में प्रभात खबर के प्रबंधन की भूमिका भी सराहनीय रही, जिसने हर मोर्चे पर संपादकीय टीम का साथ दिया। चारा घोटाले का भंडाफोड़, बाल अधिकार, मतदाता जागरूकता, लिंग गरिमा, जनजवाबदेही, और व्यवहार परिवर्तन जैसे विषयों को संपादकीय दृष्टिकोण और रणनीतिक संप्रेषण के साथ प्रस्तुत कर प्रभात खबर ने क्षेत्रीय पत्रकारिता में नई मिसालें कायम कीं। दशकों से मीडिया विपणन से जुड़े रघुनाथ जी इस पुस्तक में AD-Vocacy Journalism के नवाचारपूर्ण मॉडल को गहराई से प्रस्तुत करते हैं, जो केवल संपादकीय प्रयोग न होकर भारतीय मीडिया में एक परिवर्तनकारी आंदोलन का प्रमाण है।

यह पुस्तक केवल अतीत की कहानी नहीं, बल्कि आज के पत्रकारों, विपणन पेशेवरों, विद्यार्थियों और सामाजिक बदलाव के इच्छुक हर व्यक्ति के लिए एक प्रेरणास्पद दस्तावेज़ है, जो यह दर्शाती है कि जब कोई सच्ची बात जनहित में कही जाती है, तो वह स्थायी बदलाव का आधार बन सकती है। यह कॉफी टेबल पुस्तक Amazon और Flipkart पर हार्डकवर एवं किंडल संस्करण में उपलब्ध है।

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डॉ. मनोज पटेल की डॉक्यूमेंट्री ‘परिवर्तन’ को राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में प्रथम पुरस्कार

इस पुरस्कार ने ग्रामीण विकास और सिनेमा के क्षेत्र में कार्यरत कलाकारों को नई प्रेरणा दी है और यह उत्साहवर्धन करेगा कि अन्य लोग भी फिल्म निर्माण की दिशा में आगे आएं।

Last Modified:
Tuesday, 05 August, 2025
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माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के प्रोड्यूसर डॉ. मनोज पटेल की डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘परिवर्तन : गाँव की कहानी, सिनेमा की जुबानी’ को राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान (एनआईआरडीपीआर) द्वारा आयोजित छठवें राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ है।

यह समारोह भारत सरकार के केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के तत्वावधान में आयोजित हुआ, जिसमें देशभर के प्रतिभागियों ने ग्रामीण विकास से जुड़ी कहानियों पर आधारित अपनी फिल्में प्रस्तुत कीं। डॉ. पटेल की फिल्म को ‘समाज’ थीम के अंतर्गत पुरस्कृत किया गया। इस वर्ष महोत्सव का मुख्य विषय ‘पारिवारिक जीवन, समाज और आर्थिक व्यवस्था’ था। फिल्म ‘परिवर्तन’ में गाँवों में आए सामाजिक और आर्थिक बदलावों के साथ-साथ भारतीय सिनेमा में गाँव की प्रस्तुतियों में आए परिवर्तनों को प्रभावशाली ढंग से चित्रित किया गया है।

इस डॉक्यूमेंट्री का निर्देशन एवं संपादन स्वयं डॉ. मनोज पटेल ने किया है, इसकी पटकथा डॉ. केशव पटेल द्वारा लिखी गई है, तथा संदीप शर्मा ने स्वर दिया है। डॉ. पटेल के अनुसार, इस पुरस्कार ने ग्रामीण विकास और सिनेमा के क्षेत्र में कार्यरत कलाकारों एवं तकनीशियनों को नई प्रेरणा दी है और यह उत्साहवर्धन करेगा कि अन्य लोग भी ग्रामीण विकास जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर फिल्म निर्माण की दिशा में आगे आएं।

उल्लेखनीय है कि ग्राम विकास पर आधारित उनकी अन्य फिल्में, ‘बाचा : द राइजिंग विलेज’ और ‘गो-वर’, भी पहले पुरस्कार प्राप्त कर चुकी हैं। साथ ही डॉ. पटेल ने अपना शोधकार्य भी सिनेमा विषय पर ही पूर्ण किया है।

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