छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कोरोना काल में असमय दुनिया छोड़ने वाले पत्रकारों को श्रद्धांजलि दी और उनके परिजनों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की है।
‘कोरोना महामारी के कठिन समय में भी मीडिया ने अपनी भूमिका सक्रियता से निभाई है। इस दौरान कई पत्रकारों को जान भी गंवाना पड़ा।’ यह कहना है छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का। वह रविवार को रायपुर प्रेस क्लब में नववर्ष मिलन समारोह में शामिल हुए। इस दौरान, उन्होंने पत्रकारों को नए साल की बधाई और शुभकामना देते हुए कहा कि पत्रकारों के सहयोग से छत्तीसगढ़ मॉडल की चर्चा देश-दुनिया में पहुंच रही है। उन्होंने इसके लिए पत्रकारों को धन्यवाद दिया।
उन्होंने कोरोना काल में असमय दुनिया छोड़ने वाले पत्रकारों को श्रद्धांजलि दी और उनके परिजनों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की है।
मुख्यमंत्री बघेल ने नववर्ष मिलन समारोह में कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार पत्रकारों की सहायता के लिए हमेशा तैयार है। यहां प्रस्तावित पत्रकार सुरक्षा कानून पूरे देश के लिए नजीर बनेगी। उन्होंने प्रेस क्लब की मांग पर पत्रकारों के होम लोन के ब्याज में छूट देने पर विचार करने की बात भी कही।
रायपुर प्रेस क्लब के अध्यक्ष दामू आम्बेडारे ने कोविड-19 से जान गंवाने वाले पत्रकारों के परिजनों की आर्थिक सहायता, पत्रकारों को आवास मुहैया कराने और प्रेस क्लब की मांगों पर संवेदनशीलता से विचार करने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के प्रति आभार व्यक्त किया।
रायपुर प्रेस क्लब द्वारा आयोजित नववर्ष मिलन समारोह में संसदीय सचिव विकास उपाध्याय, छत्तीसगढ़ पाठ्य पुस्तक निगम के अध्यक्ष शैलेष नितिन त्रिवेदी, रायपुर नगर निगम के महापौरएजाज ढेबर समेत तमाम लोग मौजूद रहे।
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वरिष्ठ पत्रकार और गांधीवादी कार्यकर्ता डॉ. राकेश पाठक ने जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा को कानूनी नोटिस भेजा है। यह नोटिस उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बारे में मिथ्यावाचन करने पर उपराज्यपाल को भेजा है।
बता दें कि नोटिस में उपराज्यपाल से कहा गया है कि वह सात दिन में अपने बयान पर लिखित में सार्वजनिक माफीं मांगें और यदि वह ऐसा नहीं करते हैं, तो उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जाएगी।
दरअसल, जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा 23 मार्च को ग्वालियर की ITM यूनिवर्सिटी में एक कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए थे, जहां उन्होंने कहा था कि शायद कम ही लोगों को मालूम है और देश में अनेक पढ़े-लिखे लोगों को यह भ्रांति भी है कि गांधी जी के पास लॉ डिग्री थी, गांधी जी के पास कोई डिग्री नहीं थी। गांधीजी सिर्फ हाई स्कूल डिप्लोमा किए थे।'
डॉ. राकेश पाठक द्वारा भेजे नोटिस में कहा गया है कि मनोज सिन्हा का यह बयान पूरी तरह मिथ्या है। गांधी जी की शैक्षणिक योग्यता को धूमिल करने और मृत्यु उपरांत उन्हें अपमानित करने की गरज से दिया गया है।
डॉ. पाठक ने कहा कि सोशल मीडिया पर उनके बयान के वायरल होने की वजह से देश दुनिया में गांधी जी की छवि धूमिल हुई है। उन्होंने कहा कि न केवल वे, बल्कि जो लाखों, करोड़ों लोग महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित हैं, वे सब इस बयान से आहत हुए हैं।
डॉ. पाठक की ओर से उनके वकील भूपेंद्र सिंह चौहान, पंकज सक्सेना ने उपराज्यपाल मनोज सिन्हा को राजभवन, जम्मू कश्मीर के पते पर रजिस्टर्ड डाक से नोटिस भेजा है। राजभवन के आधिकारिक ईमेल पर भी नोटिस भेज दिया है। नोटिस की प्रतिलिपि उपराज्यपाल की नियोक्ता राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को भी संलग्न की गई है।
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मुंबई के नेहरू सेंटर में राजकमल प्रकाशन की ओर से आयोजित पांच दिवसीय किताब उत्सव में युवा पत्रकार और लेखक सारंग उपाध्याय का बॉम्बे पर आधारित पहला उपन्यास 'सलाम बॉम्बे व्हाया वर्सोवा डोंगरी' का विमोचन वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता अनुराग चतुर्वेदी द्वारा किया गया।
बता दें कि राजकमल प्रकाशन की ओर से 'किताब उत्सव' का आयोजन 19 मार्च 2023 को मुंबई के वर्ली स्थित नेहरू सेंटर हॉल ऑफ हार्मनी में किया गया। इस पांच दिवसीय कार्यक्रम में न सिर्फ लेखकों और पाठकों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया बल्कि लोगों ने भी कई तरह की गतिविधियों में शिरकत की।
सारंग उपाध्याय द्वारा रचित मुम्बई की पृष्ठभूमि पर आधारित ये उपन्यास अतीत के बड़े राजनैतिक फैसलों के सामाजिक जीवन पर हुए प्रभावों को रेखांकित करता है। हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिका 'तद्वव' में प्रकाशित होने के बाद ये उपन्यास चर्चा में बना रहा। अपनी भाषा शिल्प और अंतरवस्तु के कारण भी इस उपन्यास की समीक्षकों द्वारा भी चर्चा की गई और पाठकों द्वारा इसे सराहा भी गया।
अपने पहले उपन्यास पर बात करते हुए सारंग उपाध्याय ने बताया कि, 'ये देश और मुंबई के अतीत में हुए राजनीतिक घटनाक्रम के बीच घटित एक प्रेम कहानी है जिसका परिवेश और परिदृश्य मछुआरा समुदाय है।
सारंग कहते हैं कि ये उपन्यास मुंबई में रहने वाले मछुआरों के उस बड़े वर्ग के जीवन को बताता है जिस पर आमतौर पर हमारा ध्यान कम ही जाता है। साम्प्रदायिक हिंसा, आतंकी हमलों और विभाजन के उस दौर में यह उपन्यास मुंबई को नायक बनाकर उसे सलाम करता है।
मूल रूप से मध्यप्रदेश हरदा के रहने वाले पत्रकार और लेखक सारंग उपाध्याय इंदौर, भोपाल, नागपुर और औरंगाबाद में पत्रकारिता कर चुके हैं। वे नईदुनिया, दैनिक भास्कर, लोकमत, नेटवर्क18 जैसे मीडिया समूह में सेवाएं दे चुके हैं और वर्तमान में अमर उजाला नोएडा में कार्यरत हैं। वे सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लगातार लेखन करते रहे हैं।
सिनेमा में उनकी विशेष रुचि रही है। फिल्मों पर चुनिंदा समीक्षाएं समालोचन में प्रशंसित और चर्चित रही हैं। बता दें कि साहित्य में रुचि रखने वाले सारंग उपाध्याय की कहानियां हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं साक्षात्कार, वसुधा, परिकथा, हंस, नया ज्ञानोदय सहित ऑनलाइन हिंदी पत्रिकाओं समालोचन और जानकीपुल में प्रकाशित और चर्चित रही हैं।
इसके पूर्व सारंग उपाध्याय की पहली किताब “हाशिये पर दुनिया” वर्ष 2013 में प्रकाशित हुई है, जो डॉ. राममनोहर लोहिया के साथी बालकृष्ण गुप्त के आलेखों पर केंद्रित थी। कहानियों के लिए उन्हें साल 2018 में मप्र हिंदी साहित्य सम्मेलन का पुनर्नवा पुरस्कार मिला है।
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टेक-मीडिया स्टार्टअप ‘न्यू इमर्जिंग वर्ल्ड ऑफ जर्नलिज्म’ (NEWJ) को एंटरप्रेन्योर इंडिया स्टार्टअप अवॉर्ड्स 2023 में प्रतिष्ठित 'मीडिया एंड एंटरटेनमेंट स्टार्टअप ऑफ द ईयर' पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
एंटरप्रेन्योर इंडिया द्वारा आयोजित यह पुरस्कार अपने संबंधित उद्योगों में महत्वपूर्ण प्रभाव डालने वाले स्टार्टअप को दिया जाता है। यह पुरस्कार दुनिया को बदलने वाले स्टार्टअप क्षेत्र में बढ़ती प्रतिभा की सराहना और पहचान का प्रतीक है।
इस खास मौके पर ‘न्यूज’ के संस्थापक, सीईओ व एडिटर-इन-चीफ शलभ उपाध्याय ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा, ‘हम एंटरप्रेन्योर इंडिया से 'मीडिया एंड एंटरटेनमेंट स्टार्टअप ऑफ द ईयर' पुरस्कार प्राप्त करके सम्मानित महसूस कर रहे हैं। यह सम्मान हमारी पूरी टीम की कड़ी मेहनत और अटूट प्रतिबद्धता का प्रमाण है। हमने हमेशा अपने दर्शकों के लिए सबसे आकर्षक और ज्ञानवर्धक कंटेंट लाने का प्रयास किया है और यह पुरस्कार हमारे प्रयासों के बारे में बताता है। हम उन सभी का आभार व्यक्त करते हैं जो हमारे अविश्वसनीय सफर का हिस्सा रहे हैं और आशा करते हैं कि हमारे दर्शकों के लिए इसी प्रकार का कंटेंट बनाना जारी रखेंगे।
NEWJ (न्यू इमर्जिंग वर्ल्ड ऑफ जर्नलिज्म लिमिटेड) एक वीडियो-ओनली मोबाइल-फर्स्ट पब्लिशर है, जिसकी स्थापना 'स्टोरीज फॉर इंडिया, स्टोरीज ऑफ इंडिया, स्टोरीज बाय इंडिया के विचार पर की गई है। कंपनी अपने दर्शकों को अनोखे और आकर्षक तरीके से उन भाषाओं में समाचार प्रदान करती है, जो भाषा वो पसंद करते हैं।
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पद्मश्री से सम्मानित जाने-माने पत्रकार अभय छजलानी का गुरुवार को निधन हो गया है। करीब 88 वर्षीय अभय छजलानी लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उनके परिवार में पुत्र विनय छजलानी और पुत्रियां शीला व आभा हैं। गुरुवार की शाम करीब पांच बजे इंदौर में पंचकुइया मुक्तिधाम पर उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।
चार अगस्त 1934 को इंदौर में जन्मे अभय छजलानी ने वर्ष 1955 में पत्रकारिता की दुनिया में कदम रखा और 1963 में कार्यकारी संपादक का कार्यभार संभाला। इसके बाद लंबे समय तक वह ‘नई दुनिया’ के प्रधान संपादक भी रहे।
वर्ष 1965 में पत्रकारिता के विश्व प्रमुख संस्थान थॉम्सन फाउंडेशन, कार्डिफ (यूके) से स्नातक की उपाधि ली थी। हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र से इस प्रशिक्षण के लिए चुने जाने वाले वह पहले पत्रकार थे। शहर के कई प्रमुख मुद्दों को प्रमुखता से उठाने के साथ ही अभय छजलानी खेलों से भी जुड़े रहे। वह मध्यप्रदेश टेबल टेनिस संगठन के लंबे समय तक अध्यक्ष रहे और फिर आजीवन अध्यक्ष पद पर बने रहे।
पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए छजलानी को तमाम पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा इंदौर में इंडोर स्टेडियम अभय प्रशाल स्थापित करने के लिए भोपाल के माधवराव सप्रे समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान ने भी उन्हें सम्मानित किया था। वह 1988, 1989, 1994 में भारतीय भाषाई समाचार पत्रों के शीर्ष संगठन 'इलना' के अध्यक्ष रह चुके हैं। वह इंडियन न्यूजपेपर्स सोसायटी (INS) के वर्ष 2000 में उपाध्यक्ष और वर्ष 2002 में अध्यक्ष रहे।
अभय छजलानी के निधन पर मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ समेत तमाम राजनेताओं और पत्रकारों ने दुख जताते हुए उन्हें अपनी श्रद्धांजलि दी है।अपने एक ट्वीट में कमल नाथ ने लिखा है, ‘पत्रकारिता जगत की विशिष्ट पहचान पद्मश्री अभय छजलानी जी के निधन का दुखद समाचार प्राप्त हुआ है। मैं दिवंगत आत्मा की शांति एवं परिजनों को यह असीम दुख सहने की शक्ति देने की प्रार्थना करता हूँ। हिन्दी पत्रकारिता के आधारस्तंभ छजलानी जी हमेशा हमारे दिलों में रहेंगे। “भावपूर्ण नमन”’
पत्रकारिता जगत की विशिष्ट पहचान पद्मश्री अभय छजलानी जी के निधन का दुखद समाचार प्राप्त हुआ है।
— Kamal Nath (@OfficeOfKNath) March 23, 2023
मैं दिवंगत आत्मा की शांति एवं परिजनों को यह असीम दुख सहने की शक्ति देने की प्रार्थना करता हूँ।
हिन्दी पत्रकारिता के आधारस्तंभ छजलानी जी हमेशा हमारे दिलों में रहेंगे।
“भावपूर्ण नमन” pic.twitter.com/CYSbodUA8S
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करीब 83 वर्षीय बिपिन कुमार शाह कुछ समय से बीमार चल रहे थे और उन्होंने मंगलवार की शाम अंतिम सांस ली।
वरिष्ठ पत्रकार बिपिन कुमार शाह का निधन हो गया है। करीब 83 वर्षीय बिपिन कुमार शाह कुछ समय से बीमार चल रहे थे और उन्होंने मंगलवार की शाम अंतिम सांस ली। बिपिन कुमार शाह करीब पांच दशक तक गुजराती अखबार ‘संदेश’ से जुड़े रहे थे।
राज्य भाजपा अध्यक्ष सीआर पाटिल ने बिपिन शाह के निधन पर दुख व्यक्त किया है। उन्होंने कहा है कि वह एक ऐसी संस्था थे, जिसने कई युवा पत्रकारों को तैयार किया। 'शहर नी सरगम' (Shaher ni Sargam) और 'विधानसभा न द्वारे' (Vidhan Sabha na Dware) नामक उनके कॉलम्स पाठकों के बीच बहुत लोकप्रिय थे।
वह अहमदाबाद नगर निगम के मामलों पर रिपोर्टिंग करते थे और पिछले 50 वर्षों से इसे कवर कर रहे थे। शहर के वरिष्ठ पत्रकारों ने बिपिन कुमार शाह के निधन पर दुख जताते हुए कहा है कि बिपिन भाई के जाने से एक युग का अंत हो गया।
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‘राष्ट्रीय जांच एजेंसी’ (NIA) ने टेरर फंडिंग मामले में सोमवार की शाम एक और कश्मीरी पत्रकार को गिरफ्तार किया है। पकड़े गए पत्रकार का नाम इरफान महराज है। श्रीनगर के महजूर नगर इलाके का रहने वाला इरफान घाटी में फ्रीलॉन्स पत्रकारिता करता है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पूछताछ के बाद एजेंसी उसे अपने साथ दिल्ली ले गई है।
एनआईए का कहना है कि इरफान का संबंध लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिद्दीन जैसे आतंकी संगठनों से है। आरोप है कि वह कुछ एनजीओ, स्वास्थ्य और शिक्षा में मदद करने के नाम पर लोगों से फंड एकत्रित कर इन आतंकी संगठनों को भेजता था।
वहीं, जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने इरफान महराज की गिरफ्तारी की निंदा करते हुए इसे प्रेस की आजादी पर हमला बताया है। अपने एक ट्वीट में महबूबा मुफ्ती का कहना है, ‘कश्मीर में ठगों को खुली छूट दी जाती है और इरफान महराज जैसे पत्रकारों को गलत बोलकर अपनी ड्यूटी करने के लिए गिरफ्तार किया जाता है। उन्होंने लिखा कि कश्मीर में UAPA जैसे कानूनों का लगातार दुरुपयोग किया जाता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह प्रक्रिया ही सजा बन जाए।’
In J&K Intelligence agencies devote all their energies towards harassing Kashmiris by now criminalising even their livelihoods in the guise of ‘security’. Same agencies are duped by dozens of local Kiran Patels created & empowered by them to perpetuate falsehood of ‘Naya Kashmir’ https://t.co/pghdDU798S
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) March 19, 2023
वहीं, ‘प्रेस क्लब ऑफ इंडिया’ ने भी पत्रकार की गिरफ्तारी पर विरोध जताते हुए एक ट्वीट किया है। अपने ट्वीट में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया का कहना है, ‘हम मीडियाकर्मियों पर यूएपीए लगाने का पुरजोर विरोध करते हैं। कश्मीर के पत्रकार इरफान महराज की गलत तरीके से की गई गिरफ्तारी एनआईए द्वारा इस कठोर कानून के दुरुपयोग, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उल्लंघन की ओर इशारा करती है। हम उनकी तत्काल रिहाई की मांग करते हैं।
We vehemently oppose the imposing of UAPA on mediapersons. The misuse of this draconian law by NIA in randomly arresting Irfan Mehraj, a journalist from Kashmir ominously points towards a violation of freedom of speech and expression. We demand his immediate release pic.twitter.com/Vy2XEVQWEO
— Press Club of India (@PCITweets) March 21, 2023
बता दें कि एक हफ्ते में यह दूसरी बार है, जब एनआईए ने किसी कश्मीरी पत्रकार को गिरफ्तार किया है। इससे पहले एजेंसी ने पुलवामा से लोकल न्यूज आउटलेट ग्रोइंग कश्मीर में कार्यरत पत्रकार सरताज अल्ताफ भट को गिरफ्तार किया था।
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वरिष्ठ पत्रकार एवं ‘माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय’, भोपाल के पूर्व कुलपति अच्युतानंद मिश्र का कहना है कि भाषा का सम्मान, मां का सम्मान है। जब हम अपनी भाषा का सम्मान करेंगे, तभी हम अपने संस्कारों और संस्कृति का भी सम्मान कर पाएंगे।
अच्युतानंद मिश्र मंगलवार को ‘भारतीय जनसंचार संस्थान’ (IIMC) और ‘भारतीय भाषा समिति‘ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र को संबोधित कर रहे थे। उनका कहना था कि भारतीय भाषाओं के विस्तार के साथ भाषाई पत्रकारिता का विकास करना है, तो आपको अपनी भाषा या बोली पर गर्व करना होगा और उसका ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करना होगा।
समापन सत्र के मुख्य अतिथि के रूप में विचार व्यक्त करते हुए अच्युतानंद मिश्र का कहना था कि अंग्रेजी भाषा अपने साथ जो संस्कार और जीवन दर्शन लेकर आई थी, उसने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि हमारे पास कुछ नहीं है। इस कारण भारतीय भाषाओं में जो अमूल्य सामग्री है, वह उपेक्षित हो रही है। इस उपेक्षा की वजह से हमें बहुत तकलीफ झेलनी पड़ी है। इसका हमारे संस्कारों और जीवन मूल्यों पर भी असर पड़ा है।
मिश्र के अनुसार भारतीय भाषाएं भले ही दबी रही हों, लेकिन भारतीय भाषाओं में साहित्य खूब रचा गया और बेहतरीन साहित्य रचा गया। आज जरूरत है कि साहित्य अकादमी की तरह अंत:भाषीय अकादमी आरंभ की जाए, क्योंकि भाषाओं के बीच संवाद खत्म हो गया है। इसे पुन:स्थापित किए जाने की आवश्यकता है। इस तरह की अकादमी से भाषाओं के बीच संपर्क और सौहार्द बढ़ेगा।
यह समापन नहीं आरंभ है: प्रो. द्विवेदी
‘भारतीय जनसंचार संस्थान’ के महानिदेशक प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी ने कहा कि संगोष्ठी के इस सत्र को समापन सत्र कहा जा रहा है। यह समापन सत्र नहीं है, बल्कि एक नया आरंभ है, जिसमें हमें अपने साथ भारतीय भाषाओं के विकास का एक नया संकल्प लेकर जाना है। उन्होंने छात्रों का आह्वान करते हुए कहा कि भारतीय जनसंचार संस्थान के रूप में आप सब विद्यार्थियों को एक अवसर मिला है। आप लोग इसका लाभ उठाएं और अपने-अपने क्षेत्र की भाषाओं का और उन भाषाओं की पत्रकारिता का विस्तार करें।
स्वतंत्रता संग्राम में भाषाई समाचार पत्रों की अहम भूमिका: नेवर
वरिष्ठ पत्रकार विशंभर नेवर ने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाषाई समाचार पत्रों की अहम भूमिका रही है। उन्होंने हर तरह का खतरा उठाकर, अपना सब कुछ दांव पर लगाकर अखबार निकाले, ताकि लोगों में आजादी की अलख जगाई जा सके। उन्होंने कहा कि आज अंग्रेजी अखबारों के आगे भाषाई अखबार दबे नजर आते हैं, जबकि औसतन एक अंग्रेजी अखबार को डेढ़ व्यक्ति और भाषाई अखबार को पांच से छह लोग पढ़ते हैं। इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए हमें मिलकर प्रयास करने होंगे।
ताकत और कमजोरियों को भी समझना जरूरी: केतकर
संगोष्ठी के दूसरे दिन 'भारतीय भाषाई मीडिया: चुनौतियां और संभावनाएं' विषय पर विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए 'आर्गेनाइजर' के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने कहा कि अवसर और चुनौतियों को समझने के लिए ताकत और कमजोरियों को भी समझना जरूरी है। वर्ष 2019 में गूगल और ट्विटर ने भारतीय भाषाओं के चयन का विकल्प दिया, तो भारतीय भाषाओं ने मिलकर अंग्रेजी को पछाड़ दिया। उन्होंने कहा कि आज भारतीय भाषाओं के कई शब्दों और अंकों को नई पीढ़ी भुलाती जा रही है। यह एक बड़ी चुनौती है।
भावनाएं तय करती हैं मीडिया की भाषा: प्रणवेन्द्र
‘भारतीय जनसंचार संस्थान’ में अंग्रेजी पत्रकारिता विभाग की पाठ्यक्रम निदेशक प्रो. संगीता प्रणवेन्द्र ने कहा कि अपनी भाषा सुनकर हर कोई भावुक हो जाता है। यही भावनाएं तय कर रही हैं कि मीडिया की भाषा क्या होनी चाहिए। भारतीय भाषाओं की ताकत यही है कि ये जुबां से नहीं, दिल से बोली जाती हैं। उन्होंने कहा कि भारत भाषाई दृष्टि से कितना समृद्ध है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया में जितने देश हैं, उससे तीन गुना ज्यादा भारत में भाषाएं हैं। पिछले एक दशक में युवा तकनीक की मदद लेकर भारतीय भाषाओं को नया जीवन दे रहे हैं।
तकनीक ने बढ़ाए भारतीय भाषाओं में जीविका के अवसर: दुबे
'डिजिटल तकनीक और भारतीय लिपियां' विषय पर आयोजित तकनीकी सत्र को संबोधित करते हुए ‘प्रभासाक्षी डॉट कॉम’ के संपादक नीरज दुबे ने कहा कि तकनीक ने भारतीय भाषाओं में जीविका के अवसर बढ़ाए हैं। इससे भारतीय भाषाओं का भविष्य उज्ज्वल होगा। आज इंटरनेट पर हिंदी और भारतीय भाषाओं को लिखना, पढ़ना और उपयोग करना, पहले के मुकाबले बहुत आसान हो गया है। अब सरकार की योजनाओं की जानकारी विधिवत रूप से भारतीय भाषाओं में भी उपलब्ध है। उन्होंने कहा कि भाषा के विस्तार, विकास और उज्ज्वल भविष्य के लिए हम सबको अपने-अपने स्तर पर प्रयास करने होंगे।
भारतीय भाषाओं के विकास की राह में कई बाधाएं: तरोटे
पुणे से पधारे डॉ. सुधीर तरोटे ने कहा कि व्यावसायिक शिक्षा के अवसर भारतीय भाषाओं में उपलब्ध न होना बड़ी समस्या है। भारत की हर भाषा ज्ञान की दृष्टि से समृद्ध है, लेकिन इसका उपयोग तभी है, जब हर भाषा का ज्ञान भंडार दूसरी सभी भारतीय भाषाओं में उपलब्ध हो। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी का प्रभुत्व हमारे सामने बड़ी समस्या है। हमारी प्रगति और समृद्धि के अधिकतर अवसर दस प्रतिशत अंग्रेजी बोलने वालों के हिस्से में आते हैं। बाकी नब्बे प्रतिशत सिर्फ इसलिए उनसे वंचित रह जाते हैं, क्योंकि वो अंग्रेजी में प्रवीण नहीं होते। तकनीक इन समस्याओं के समाधान में हमारी मदद कर सकती है, लेकिन इसमें अभी काफी सीमाएं हैं। जितना सपोर्ट हमें अंग्रेजी के उपयोग में मिलता है, उतना भारतीय भाषाओं में नहीं मिल पाता।
गूगल ट्रांसलेट से काफी अलग है 'अनुवादिनी' : डॉ. चंद्रशेखर
अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद के मुख्य समन्वय अधिकारी डॉ. बुद्ध चंद्रशेखर ने 'भारतीय भाषाओं में सार्थक अनुवाद' विषय पर विचार व्यक्त करते हुए कि गूगल से किए गए अनुवाद में भाषा को लेकर जो कमियां और शिकायतें रहती हैं, उन्हें हमने 'अनुवादिनी' टूल में दूर करने का प्रयास किया है। 'अनुवादिनी' एक 'ग्लोबल टेक्स्ट' और 'वॉयस एआई लैंग्वेज ट्रांसलेशन टूल' है। इसमें भारत, एशिया और शेष विश्व की लगभग सभी प्रमुख भाषाओं को शामिल किया गया है। किसी भी भाषा से किसी भी भाषा में अनुवाद किया जा सकता है और इसमें आपके डॉक्यूमेंट की प्राइवेसी भी सुरक्षित रहती है।
मानवीय पक्ष से सार्थक होगा अनुवाद: डॉ. बाबु
पोंडिचेरी विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ. सी. जय शंकर बाबु ने कहा कि जब हम मशीन से अनुवाद करते हैं, तो वह सार्थक नहीं होता है। यह तकनीकी पक्ष है, मानवीय पक्ष नहीं। जब इसमें मानवीय पक्ष होगा, तभी वह वास्तविक अर्थों मे सार्थक बनेगा। उन्होंने कहा कि अगर हमें कम समय में अनुवाद करना है, तो मशीन की मदद ले सकते हैं, लेकिन अगर उसमें गुणवत्ता चाहिए, तो हमें उसमें मानवीय योगदान देना ही होगा। मशीन के अनुवाद में आत्मा नहीं होती। हर भाषा का अपना एक संस्कार होता हैं, जो मानवीय अनुवाद में ही संभव है।
इस अवसर पर ‘भारतीय भाषा समिति’ के सहायक कुलसचिव जेपी सिंह, डीन (छात्र कल्याण) एवं संगोष्ठी के संयोजक प्रो. प्रमोद कुमार सहित आईआईएमसी के सभी प्राध्यापक, अधिकारी एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. रिंकू पेगु , डॉ. विकास पाठक एवं अंकुर विजयवर्गीय ने किया। धन्यवाद ज्ञापन प्रो. राकेश गोस्वामी ने दिया।
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‘भारतीय जनसंचार संस्थान’ (IIMC) और ‘भारतीय भाषा समिति‘ के संयुक्त तत्वावधान में सोमवार को 'भारतीय भाषाओं के प्रयोग क्षेत्र का विस्तार और मीडिया' विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी शुरू हुई।
'आईआईएमसी' में शुरू हुई इस संगोष्ठी का शुभारंभ करते हुए 'महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि भारत में बोलीं जाने वाली भाषाएं न केवल दुनिया की सभी भाषाओं से सबसे समृद्ध हैं, बल्कि यह भाषाएं हमारे जीवन मूल्य, संस्कार, ज्ञान और संस्कृति की भी पहचान हैं। उन्होंने कहा कि श्रेष्ठ भारत का निर्माण भारतीय भाषाओं के आधार पर ही संभव है।
संगोष्ठी के मुख्य अतिथि प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि अंग्रेजी को संपर्क भाषा के रूप में स्वीकार करने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन इससे जीवन जिया तो जा सकता है, पर एक श्रेष्ठ समाज और समर्थ राष्ट्र का निर्माण नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि एक शक्तिशाली और स्वाभिमानी राष्ट्र का निर्माण पराई भाषा में संभव नहीं है। जो देश अपनी भाषा में सृजन और संचार नहीं करता, वह पिछड़ जाता है।
राष्ट्र के विकास के लिए भारतीय भाषा का विकास जरूरी: प्रो. द्विवेदी
इस अवसर पर ‘भारतीय जनसंचार संस्थान‘ के महानिदेशक प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी ने कहा कि राष्ट्र के विकास के लिए भारतीय भाषाओं का विकास होना आवश्यक है। भाषा का अपने समाज और संस्कृति से अटूट संबंध होता है और वह अपने समुदाय के मूल्यों से जुड़ी होती है। यदि हम अपने देश की शिक्षा प्रणाली को विश्व स्तरीय बनाना चाहते हैं, तो मातृभाषाओं में शिक्षा के माध्यमों को प्रोत्साहन देना होगा। उन्होंने कहा कि आधुनिक तकनीक और संचार सुविधाओं का लाभ उठाकर हम भारतीय भाषाओं का विस्तार करें, यही इस संगोष्ठी का उद्देश्य है।
भाषा के बिना ज्ञान का प्रसार संभव नहीं: शास्त्री
‘भारतीय भाषा समिति‘ के अध्यक्ष चमू कृष्ण शास्त्री ने कहा कि देश की जीडीपी में 70 प्रतिशत योगदान भारतीय भाषाओं का है और अंग्रेजी का योगदान सिर्फ 30 प्रतिशत है। कृषि और लघु उद्योग जैसे कई क्षेत्र भारतीय भाषाओं से चलते हैं। आज ज्ञान प्रौद्योगिकी, ज्ञान अर्थव्यवस्था, ज्ञान तकनीक जैसी प्रचलित सभी धारणाएं भाषा के माध्यम से ही संचालित होती हैं। जिस तरह तार के बिना बिजली का प्रवाह नहीं होता, उसी प्रकार भाषा के बिना ज्ञान का प्रसार संभव नहीं है।
संस्कृति में निहित है भाषाओं का मूल तत्व: प्रो. सलूजा
'भारतीय भाषाओं में अंत:संबंध' विषय पर आयोजित संगोष्ठी के प्रथम तकनीकी सत्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात भाषाविद प्रो. चांदकिरण सलूजा ने कहा कि भाषा वह है, जो हम कहना चाहते हैं। भाषाओं का मूल तत्व संस्कृति में निहित है। उन्होंने कहा कि हिंदी के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओं के प्रति हमारी दृष्टि व्यापक होनी चाहिए। हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम हिंदी भाषा तक ही सीमित न रह कर अन्य भारतीय भाषाओं को भी ग्रहण करें।
फिर से विश्वगुरु बनेगा भारत: प्रो. अरोड़ा
‘पीजीडीएवी कॉलेज‘ के हिंदी विभाग में प्राध्यापक प्रो. हरीश अरोड़ा ने कहा कि भारत की भाषाओं में ऐसे बहुत से शब्द हैं, जो अलग-अलग भाषा में होते हुए भी समान स्वरूप और समान अर्थ रखते हैं। इससे प्रमाणित होता है कि भारतीय भाषाओं में कभी कोई संघर्ष नहीं रहा। उन्होंने कहा कि हमें आपसी मतभेदों से उठकर भारतीय भाषाओं के विकास के लिए मिलकर प्रयास करने होंगे। तभी हम इस विराट भारतीय संस्कृति को बचा पाएंगे और भारत को फिर से विश्व गुरु बना पाएंगे।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सबसे बड़ी चुनौती: विजय
'डिजिटल तकनीक के दौर में भारतीय भाषाएं' विषय पर आयोजित संगोष्ठी के दूसरे तकनीकी सत्र को संबोधित करते हुए वरिष्ठ पत्रकार अनंत विजय ने कहा कि भारतीय भाषाओं के सामने आज सबसे बडी चुनौती आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की है। भारतीय भाषाएं अगर इस तकनीक को आत्मसात नहीं कर पाईं, तो पीछे रह जाएंगी। इसलिए जब सब कुछ शुरुआती दौर में है, तो हम इस क्षेत्र में बेहतर काम करके आगे बढ़ सकते हैं। उन्होंने कहा कि अगर हम तकनीक का इस्तेमाल अपनी भाषाओं को जोड़ने, उन्हें व्यापार और कामकाज की भाषा बनाने में करेंगे, तो इससे हम और ताकतवर बनेंगे।
भारतीय भाषाओं में काम करेंगे, तभी विकसित देश बनेंगे: सानू
प्रख्यात लेखक एवं उद्यमी संक्रांत सानू ने कहा कि सबसे अमीर और विकसित देश वो हैं, जो अपनी जनभाषा में काम करते हैं और सबसे पिछड़े एवं गरीब देश वो हैं, जो औपनिवेशिक भाषाओं में काम करते हैं। अंग्रेजी हमारे विकास का नहीं, बल्कि पिछड़ेपन का कारण है। उन्होंने कहा कि जापान और चीन जैसे देशों का उदाहरण हमारे सामने है, जो अपनी भाषाओं में काम करके ही विकसित हुए हैं। हम भारतीय भाषाओं में काम करेंगे, तभी विकसित देश बनेंगे। यही आगे बढ़ने का सही रास्ता है।
संप्रेषण के लिए जरूरी है शब्दों का आधार: भारती
संगोष्ठी के तीसरे तकनीकी सत्र में 'भारतीय भाषाई मीडिया और शब्द चयन' विषय पर विचार व्यक्त करते हुए वरिष्ठ पत्रकार आनंद भारती ने कहा कि शब्द हमें सीधे संप्रेषित करते हैं, लेकिन क्या शब्दों के बिना भी हमारा काम चल सकता है? वर्तमान समय में, खासकर मीडिया में, सम्प्रेषण के लिए शब्दों का आधार जरूरी है। आज प्रश्न शब्दों के चयन का है, जहां हमारे सामने साहित्यिक भाषा और आम बोलचाल की भाषा में से किसी एक को चुनने की दुविधा होती है।
शब्दों की कमी है बड़ी समस्या: मोहम्मद वकास
वरिष्ठ पत्रकार मोहम्मद वकास ने कहा कि भारतीय भाषाई मीडिया की समस्या यह है कि हमारे पास शब्द कम होते जा रहे हैं। एक दिन शायद ऐसा भी आएगा जब लोग इशारों में ही अपनी बात कह देंगे। इमोजी इसका ही एक उदाहरण है।
इस अवसर पर ‘आईआईएमसी‘ के डीन (अकादमिक) प्रो. गोविंद सिंह, डीन (छात्र कल्याण) एवं संगोष्ठी के संयोजक प्रो. प्रमोद कुमार सहित आईआईएमसी के सभी प्राध्यापक, अधिकारी एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. रचना शर्मा, डॉ. पवन कौंडल एवं अंकुर विजयवर्गीय ने किया। धन्यवाद ज्ञापन प्रो. वीके भारती एवं डॉ. मीता उज्जैन ने दिया।
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प्रसिद्ध फिल्म लेखक और निर्देशक डॉ. इकबाल दुर्रानी द्वारा हिंदी व उर्दू में अनुवादित ‘सामवेद’ (Samved) का विमोचन 17 मार्च को किया गया। दिल्ली में लाल किला के निकट स्थित 15 अगस्त पार्क में आयोजित एक कार्यक्रम में ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने इस किताब का विमोचन किया। मंत्रोच्चार के बीच दीप प्रज्वलन से कार्यक्रम की शुरुआत हुई। इसके बाद सरस्वती वंदना व शिव स्तुति हुई।
इस मौके पर ‘सामवेद’ का हिंदी और उर्दू में सचित्र अनुवाद करने वाले डॉ. इकबाल दुर्रानी का कहना था, ‘दाराशिकोह को वेदों का अनुवाद करने के लिए कहा गया था, लेकिन कुछ कारणों से ऐसा नहीं हो पाया। लेकिन आज उन्होंने दाराशिकोह का वह अधूरा काम पूरा कर दिया। इस महान कार्य में बाधक बनने वाला मुगल शासक औरंगजेब आज हार गया और नरेंद्र मोदी जीत गए, क्योंकि उनके शासनकाल में आज वह स्वप्न पूरा हो गया’। इसके साथ ही दुर्रानी ने ‘सामवेद’ को देशभर के स्कूलों और मदरसों में प्रार्थना के रूप में शामिल किए जाने का सुझाव भी दिया। दुर्रानी का कहना था कि वह इसके लिए देशभर के सभी राज्यों में जाएंगे।
दुर्रानी ने कहा कि लोग आज अकारण एक-दूसरे से नफरत कर रहे हैं, ऐसे में ‘सामवेद’ के प्रेम संदेश और शाश्वत सत्य को सभी लोगों तक पहुंचाना चाहिए। दुर्रानी के अनुसार, सनातन सभी का मूल है और इसे समझने व अपनाने की जरूरत है।
इस किताब के विमोचन के दौरान मोहन भागवत का कहना था, ‘मेरे पूर्व वक्ताओं ने इस कार्यक्रम के बारे में, सामवेद के बारे में, इसका भाषांतर क्यों किया इसके बारे में सारी बातें कह दी हैं। इस कार्यक्रम में आते समय मुझे यह समझ में नहीं आ रहा था कि मैं तो वेदों का जानकार नहीं हूं, न विद्वान हूं, न चिंतक हूं, फिर भी मुझे क्यों बुलाया और यह भी मन में आ रहा था कि मैंने हां क्यों की। लेकिन जब डॉ. दुर्रानी मुझसे मिलने आए और मुझसे जिस भाव से कहा, तो मुझे हां करनी ही पड़ी और यहां आने के बाद मेरी समझ में बात नहीं आ रही थी। लेकिन अब एक बात समझ में आती है। सामवेद वेदों का अंग है। वेद शब्द का अर्थ है- जो जानना है यानी ज्ञान। ज्ञान दो प्रकार का होता है। एक बाहर की दुनिया का ज्ञान औऱ दूसरा अंदर का ज्ञान। इन दोनों के बिना ज्ञान को पूर्ण नहीं माना जाता है।’
इसके साथ ही मोहन भागवत ने धार्मिक सहिष्णुता का संदेश देते हुए कहा, ‘सभी के रास्ते भले ही अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन मंजिल सभी की एक ही है। हमें अपनी उपासना पद्धतियों का आदर करना चाहिए। इसी से सभी लोगों को सुख की प्राप्ति होगी। मानवता आज के के समय में प्राकृतिक समस्याओं और आपसी संघर्ष का सामना कर रही है। इसके लिए स्वयं मनुष्य दोषी है। जरूरत इस बात की है कि सत्य को जानकर मनुष्य स्वयं को बदले।’
वेदों के सूत्र वाक्य के महत्व को बताते हुए मोहन भागवत का कहना था, ‘पूजा-पद्धति किसी भी धर्म का एक अंग होता है, लेकिन सभी धर्मों का अंतिम लक्ष्य आध्यात्मिक सत्य को प्राप्त करना होता है और सभी को उसे प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए।’ मोहन भागवत ने अपनी बात को समझाने के लिए सामवेद और उपनिषदों में वर्णित कहानियों का उदाहरण दिया।
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वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेदप्रताप वैदिक की याद में रविवार 19 मार्च को श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया है। यह श्रद्धांजलि सभा नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में दोपहर 3 बजे से 5 बजे तक होगी। हृदय गति रुक जाने से मंगलवार सुबह डॉ. वैदिक का निधन हो गया था। वह 78 वर्ष थे।
बता दें कि मंगलवार सुबह वह नहाने के समय बाथरूम में गिर गए थे और बेसुध हो गए थे। काफी देर तक बाहर न आने के बाद परिजनों ने दरवाजा तोड़ा और उन्हें बाहर निकाला। इसके बाद तत्काल उन्हें नजदीक में ही प्रतीक्षा अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था।
डॉ. वैदिक का पार्थिव शरीर बुधवार सुबह से अंतिम दर्शन के लिए गुरुग्राम स्थित उनके आवास में रखा गया था। इसके बाद उनका अंतिम संस्कार लोधी शवदाह गृह में किया गया।
डॉ. वैदिक के परिवार में एक पुत्र और एक पुत्री हैं। उनकी पत्नी का पहले ही निधन हो गया था।
वैदिक प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) की हिंदी समाचार एजेंसी 'भाषा' के लगभग दस वर्षों तक संस्थापक-संपादक रहे। वह पहले टाइम्स समूह के समाचारपत्र नवभारत टाइम्स में संपादक रहने के साथ ही भारतीय भाषा सम्मेलन के अंतिम अध्यक्ष थे।
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