कई लोगों ने खिलाड़ियों के कपड़ों पर ध्यान केंद्रित करने और उनकी उपलब्धियों पर ध्यान केंद्रित नहीं करने के लिए संवाददाता को कड़ी फटकार लगाई
पाकिस्तान की राष्ट्रीय महिला फुटबॉल टीम की खिलाड़ियों के शॉर्ट्स पहनने पर वहां के एक पत्रकार ने आपत्ति जताई है, जिसके बाद उसे आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। पाकिस्तान के इस पत्रकार का वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रहा है।
यह वीडियो सैफ महिला चैंपियनशिप के दौरान का है, जो नेपाल के काठमांडू में खेली जा रही है। उस पत्रकार को लोगों ने खूब लताड़ लगाई है।
काठमांडू में सैफ चैंपियनशिप के मुकाबले में पाकिस्तान की महिला टीम ने मालदीव को सात गोल से हराया। इसके बाद पाकिस्तानी पत्रकार ने खेल पर फोकस पर करने के बयाज खिलाड़ियों की ड्रेस और किट पर सवाल उठाया। मैच के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में उस पत्रकार ने टीम के मैनेजर और अन्य अधिकारियों से पूछा, ‘जैसा कि आप जानते हैं कि हम इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान से ताल्लुक रखते हैं जो एक इस्लामिक देश है, मैं पूछना चाहता हूं कि इन लड़कियों ने शॉर्ट्स क्यों पहन रखी हैं, लेगिंग क्यों नहीं?’
लंबे अंतराल के बाद अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में भाग लेते हुए पाकिस्तानी महिला टीम ने चैंपियनशिप में आठ साल में पहली जीत दर्ज की, लेकिन टूर्नामेंट को कवर करने वाले पत्रकार ने खिलाड़ियों की किट पर ध्यान केंद्रित करना पसंद किया।
कई लोगों ने खिलाड़ियों के कपड़ों पर ध्यान केंद्रित करने और उनकी उपलब्धियों पर ध्यान केंद्रित नहीं करने के लिए संवाददाता को कड़ी फटकार लगाई और सात में से चार गोल करने के लिए ब्रिटिश-पाकिस्तानी फुटबॉलर नादिया खान की तारीफ की।
राष्ट्रीय टीम के कोच आदिल रिजकी ने इस सवाल से स्पष्ट रूप से चकित होकर कहा कि खेलों में 'हर किसी को प्रगतिशील होना चाहिए'। उन्होंने कहा, 'जहां तक पोशाक का सवाल है तो हमने कभी किसी को रोकने की कोशिश नहीं की, यह कुछ ऐसा है जिसे हम नियंत्रित नहीं करते।'
Only in Pakistan ?#saffwomenschampionship @TheRealPFF pic.twitter.com/UPXwtiJMqi
— Muneeb Farrukh (@Muneeb313_) September 15, 2022
इसके बाद टीवी प्रेजेंटर और आरजे अनुषी अशरफ, स्क्वाश खिलाड़ी नूरेना शम्स और कई अन्य खिलाड़ियों के समर्थन में सामने आए। सभी ने पत्रकार को उसकी संकीर्ण मानसिकता के लिए फटकार लगाई।
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दिग्गज टेक कंपनी गूगल (Google) की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं। गूगल की एकाधिकार प्रतिस्पर्धा रोधी नीतियों को लेकर संयुक्त राज्य अमेरिका के न्याय विभाग ने उसके खिलाफ मुकदमा दायर किया है। एंटीट्रस्ट कानून के उल्लंघन के तहत टेक कंपनी के खिलाफ न्याय विभाग का यह दूसरा मुकदमा है।
मामले से जुड़े लोगों के मुताबिक, गूगल ने डिजिटल ऐडवरटाइजिंग बिजनेस में अपने प्रभाव का गलत इस्तेमाल किया है। मुकदमे का उद्देश्य डिजिटल ऐड स्पेस में इस टेक कंपनी के ऐड-टेक डिपार्टमेंट के एकाधिकार को खत्म करना है।
मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि मामले को इस सप्ताह के अंत तक पहले फेडरल कोर्ट में दायर किया जाएगा।
संयुक्त राज्य अमेरिका के न्याय विभाग के चीफ जोनाथन कंटेर (Jonathan Kanter) ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि मुकदमे का उद्देश्य गूगल को इस बात के लिए जिम्मेदार ठहराना है कि उसने डिजिटल ऐड-टेक में लंबे समय से अपना एकाधिकार बना रखा है।
गूगल ने यह कहते हुए इसका प्रतिवाद किया कि संयुक्त राज्य अमेरिका के न्याय विभाग द्वारा दर्ज मुकदमा प्रतिस्पर्धी एडवर्टाइजिंग टेक्नोलॉजी सेक्टर में नवाचार को धीमा कर देगा, विज्ञापन शुल्क बढ़ाएगा और हजारों छोटे व्यवसायों और प्रकाशकों की वृद्धि को कठिन बना देगा।
टेक कंपनी ने यह कहते हुए बचाव दिया कि मुकदमा पब्लिशर्स, ऐडवर्टाइजर्स और इंटरनेट यूजर्स के खर्च पर इतिहास को फिर से लिखने का प्रयास है।
गूगल ने अपने प्रतिद्वंद्वियों Microsoft, Amazon, Apple, TikTok, Comcast और Disney के ऐड बिजनेस और कार्यों पर भी प्रकाश डाला, लेकिन सरकार ने फिलहाल गूगल की बातों पर ध्यान न देने का फैसला किया।
टेक कंपनी पर भारत में भी एंटीट्रस्ट कानून के उल्लंघन का आरोप है, जहां भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने एंड्रॉयड इकोसिस्टम में अपने प्रभुत्व का दुरुपयोग करने के लिए इसके खिलाफ भारी जुर्माना लगाया है।
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एमेजॉन के संस्थापक जेफ बेजोस फुटबॉल टीम ‘वॉशिंगटन कमांडर्स’ (Washington Commanders) को खरीदना चाहते है, लिहाजा इसके लिए वह अमेरिकी अखबार ‘वॉशिंगटन पोस्ट’ (Washington Post) को बेच सकते हैं। अमेरिकी अखबार ‘न्यूयॉर्क पोस्ट’ ने अपनी एक रिपोर्ट में इस तरह का दावा किया है, जिसके बाद से यह खबर सुर्खियों में है।
हालांकि, इस खबर के सामने आने के बेजोस के एक प्रवक्ता ने इस तरह की मीडिया रिपोर्ट्स का खंडन किया और वॉशिंगटन पोस्ट को बेचे जाने से इनकार किया। उन्होंने कहा कि वॉशिंगटन पोस्ट बिक्री के लिए नही है। वहीं, ‘न्यूज कॉर्प’, ‘न्यूयॉर्क पोस्ट’ के भी मालिक ने कहा कि अखबार को बेचा नहीं जाएगा।
न्यूयॉर्क पोस्ट ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि बेजोस फुटबॉल टीम ‘वॉशिंगटन कमांडर्स’ को इसके मालिक डैन स्नाइडर से खरीदने के लिए रास्ता साफ करने की कोशिश कर रहे हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, बेजोस को बहुत ही मुश्किलों का सामना करना पड़ा है, क्योंकि अखबार ने लगातार अपनी रिपोर्ट्स में कमांडर्स के डैन स्नाइडर टीम के जहरीले मैनेमेंट कल्चर को उजागर किया था, जिससे वह अभी भी नाराज हैं। इसमें स्नाइडर सहित बॉसेज को कथित तौर पर यौन उत्पीड़न के लिए जिम्मेदार बताया गया था।
कमांडर्स जिसने 1983, 1988 और 1992 में लोम्बार्डी ट्रॉफी उठाते हुए तीन सुपर बाउल्स जीते हैं, कथित तौर पर उसे उनके संभावित निवेशकों द्वारा एक प्रमुख बाजार में स्लीपिंग जायंट फ्रेंचाइजी के रूप में देखा जाता है।
गौरतलब है कि बेजोस ने 2013 में वॉशिंगटन पोस्ट को 250 मिलियन अमेरिकी डॉलर में खरीदा था। बेजोस ने सार्वजनिक तौर पर दिए एक बयान में कहा कि उनका लक्ष्य एक अखबार का मालिक होना कभी नहीं था। वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने और ऑनलाइन विस्तार को बढ़ावा देने के लिए बेजोस ने 2013 में इसके पूर्व मालिक डोनाल्ड ग्राहम से अखबार खरीदा था। इसके अतिरिक्त बेजोस ने कई बार यह दावा किया कि फुटबॉल उनका पसंदीदा खेल है, लेकिन सार्वजनिक तौर पर कभी उन्होंने यह दावा नहीं किया कि वह अपने बिजनेस में राष्ट्रीय फुटबॉल लीग (NFL) टीम को जोड़ना चाहते हैं या नहीं।
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लाइव कवरेज के दौरान कई बार कुछ इस तरह का घटित हो जाता है, जिससे काफी असहज स्थिति का सामना करना पड़ता है। कुछ ऐसा ही मंगलवार को उस समय ‘बीबीसी’ (BBC) के साथ हुआ, जब फुटबॉल टूर्नामेंट ‘एफए कप’ (FA Cup) में लाइव कवरेज के दौरान अश्लील आवाजें (pornographic noises) सुनाई देने लगीं। इस वजह से शर्मसार हुए ‘बीबीसी’ को माफी भी मांगनी पड़ी है।
दरअसल, ये वाक्या उस समय हुआ, जब ‘एफए कप’ में मंगलवार देर रात लिवरपूल (Liverpool) और वॉल्वरहैम्प्टन (Wolves) फुटबॉल क्लब के बीच थर्ड राउंड का मैच खेला जा रहा था। ‘बीबीसी’ इस कार्यक्रम की लाइव कवरेज कर रहा था।
मैच से पहले इस लाइव प्रोग्राम के दौरान मशहूर फुटबॉलर और कॉमेंटेटर गैरी लिनेकर (Gary Lineker) पैनल पर बैठे लोगों से बात कर रहे थे। उनके साथ दिग्गज फुटबॉलर एलन शियरर (Alan Shearer) भी जुड़े हुए थे। इसी दौरान अचानक से पोर्नोग्राफिक आवाज सुनाई देने लगीं। इस कारण मैच की कवरेज कुछ देर के लिए बाधित भी हुई। बताया गया कि यह आवाज एक मोबाइल फोन से आ रही थी, जिसे किसी शराररती तत्व द्वारा स्टूडियो में छिपा कर रखा गया था।
बाद में ‘बीबीसी’ के प्रवक्ता ने इसके लिए माफी भी मांगी। एक ट्वीट में बीबीसी के प्रवक्ता ने लिखा है, ‘आज शाम फ़ुटबॉल मैच की लाइव कवरेज के दौरान हुई गड़बड़ी की वजह से हम दर्शकों से माफी चाहते हैं। हम जांच कर रहे हैं कि ऐसा कैसे हुआ।’
“We apologise to any viewers offended during the live coverage of the football this evening. We are investigating how this happened.” - BBC spokesperson
— BBC Press Office (@bbcpress) January 17, 2023
वहीं, गैरी लाइनकर ने इस घटना के बाद एक ट्वीट में मोबाइल फोन की एक फोटो पोस्ट करते हुए कहा कि यह स्टेडियम के अंदर ‘सेट के पीछे टेप’ कर रखा हुआ था।
Well, we found this taped to the back of the set. As sabotage goes it was quite amusing. ??? pic.twitter.com/ikUhBJ38Je
— Gary Lineker ?? (@GaryLineker) January 17, 2023
बाद में प्रैंक वीडियोज बनाने वाले यूट्यूबर डेनियल जार्विस उर्फ 'जार्वो’ (Jarvo) ने एक ट्वीट कर बताया कि इसके पीछे उसका हाथ है। 'जार्वो’ ने ट्विटर पर एक वीडियो शेयर किया, जिसमें उसे एक फोन पर कॉल करते हुए देखा जा सकता है। कथित तौर पर उसने इस फोन की रिंगटोन में पोर्नोग्राफिक साउंड लगाकर उसे स्टूडियो में छिपा दिया था।
समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।Yes, it was me that pranked the BBC Match of the Day with the sex Phone :) The video coming soon!!!! @BMWJARVO best prankster ever!!!! pic.twitter.com/0kVE1jlvAI
— Jarvo69 (Daniel Jarvis) (@BMWjarvo) January 17, 2023
अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद शासन करने वाला तालिबान यहां महिलाओं के अधिकारों का बर्बरतापूर्वक दमन कर रहा है
अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद शासन करने वाला तालिबान यहां महिलाओं के अधिकारों का बर्बरतापूर्वक दमन कर रहा है। तालिबान ने यहां महिलाओं पर कई तरह के प्रतिबंध लगा रखे हैं। ऐसे में अब तालिबान ने मीडिया को भी चेतावनी दी है कि मीडिया संस्थानों में यदि कोई महिला कर्मचारी हिजाब नहीं पहनती है और पुरुषों के साथ घुलती-मिलती है, तो मीडिया को ही बैन किया जाएगा।
अफगान पत्रकार नातिक मलिकजादा ने एक वीडियो शेयर किया है। इस वीडियो में तालिबानी नेता को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि कैसे उन्होंने मीडिया संस्थानों को हिजाब का पालन करने के लिए सख्त आदेश जारी किए। मीडिया में काम करने वाली महिला कर्मचारियों को अच्छे ढंग से हिजाब पहनना होगा। साथ ही, ऑफिस में काम करने वाले पुरुष कर्मचारियों के साथ महिलाएं घुल-मिल भी नहीं सकतीं।
#Afghanistan — Taliban warning media that if their female workers do not maintain hijab in the office and do not stop mingling with their male colleagues in the office, they are going to issue a new verdict to ban the media from operating.
— Natiq Malikzada (@natiqmalikzada) January 16, 2023
Video ? pic.twitter.com/n9q81KkLUq
चेतावनी देते हुए तालिबान ने कहा कि यदि कोई मीडिया इन नियमों का पालन नहीं करती है तो उसे बैन किया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा है कि जो चीजें खराब हैं और युवाओं को बर्बाद करने का कारण बन सकती हैं उनके बारे में चुप नहीं रहा जा सकता। इसलिए, मीडिया को खुद ही इस मामले में जरूरी फैसले लेने की जरूरत है।
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ईरान में हिजाब विरोध प्रदर्शन अब ठंडा पड़ता दिखाई दे रहा है। चार माह से ज्यादा चले इस प्रदर्शन से हताश होकर लोग अब अपने घरों की ओर लौटना शुरू कर चुके हैं। दरअसल, ऐसा तर्क दिया जा रहा है कि इस विरोध प्रदर्शनों का सरकार पर कोई असर दिखाई नहीं दे रहा। उल्टा सरकार और भी ज्यादा सख्त रवैया अपना रही है। वैसे बता दें कि ईरान में यह प्रदर्शन मेहसा अमिनी की मौत के बाद से शुरू हुए। इस विरोध प्रदर्शनों के सिलसिले में कई लोगों की गिरफ्तारियां हुईं। बताया जा रहा है कि कम से कम 30 ईरानी पत्रकार अभी भी जेल में बंद हैं। तेहरान में पत्रकारों के संघ ने हाल ही में यह जानकारी दी है।
एसोसिएशन ऑफ जर्नलिस्ट्स ने एक बयान में कहा कि सितंबर के मध्य से लगभग 70 पत्रकार को हिरासत में लिया गया, जिनमें से कुछ को जमानत पर रिहा कर दिया गय, जबकि कम से कम 30 पत्रकार अभी भी जेल में बंद हैं, जिन्हें पूछताछ के लिए रखा गया है।
पत्रकारों के इस ग्रुप ने टेलीग्राम मैसेजिंग ऐप चैनल पर जेल में बंद पत्रकारों की सूची भी प्रकाशित की है। इस लिस्ट में ईरानी पत्रकार नीलोफर हमीदी और इलाहा मोहम्मदी भी शामिल हैं, जिनकी रिपोर्टिंग ने मेहसा अमिनी के मामले को उजागर करने में मदद की।
गौरतलब है कि 13 सितंबर को 22 साल की महसा अमिनी अपने परिवार से मिलने तेहरान आई थी। उसने हिजाब नहीं पहना था। पुलिस ने तुरंत महसा को गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी के 3 दिन बाद यानी 16 सितंबर को उसकी मौत हो गई। इसके बाद मामला सुर्खियों में आया। 22 वर्षीय कुर्द-ईरानी मेहसा अमिनी की पुलिस हिरासत में मौत के बाद से लगभग चार महीने तक ईरान में विरोध प्रदर्शन जारी रहा, जो अब लगभग ठंडा पड़ चुका है।
तेहरान में पत्रकारों के संगठन ने बताया कि विरोध शुरू होने के बाद से अधिकारियों ने बड़ी तादाद में पत्रकारों को भी तलब किया है। एक ने बीते बुधवार को रिपोर्ट में कहा कि ताजा सजा स्पोर्ट्स रिपोर्टिंग पत्रकार एहसान पीरबरनाश को दी गई है। उनके खिलाफ आरोपों का खुलासा नहीं किया गया है, लेकिन कहा जाता है कि उन्हें 18 साल की सजा सुनाई गई है, जिनमें से 10 जेल में काटे जाएंगे।
अक्टूबर के आखिर में, 300 से ज्यादा ईरानी पत्रकारों और फोटो पत्रकारों ने अपने हस्ताक्षर के तहत एक बयान जारी कर अफसरों की उनके साथी पत्रकारों को गिरफ्तार करने और कैद करने व उनके नागरिक अधिकारों को छीनने की आलोचना की। ईरानी अफसरों का कहना है कि विरोध प्रदर्शनों के दौरान सुरक्षा बलों के सदस्यों समेत सैकड़ों लोग मारे गए हैं, जबकि हजारों प्रदर्शनकारियों को बर्बरता और हिंसा समेत अलग-अलग आरोपों में गिरफ्तार किया गया है।
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‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ के न्यूजलेटर ‘ऑन पॉलिटिक्स’ के एडिटर और जाने-माने पत्रकार ब्लेक हाउंशेल का वॉशिंगटन में निधन हो गया। वह 44 साल के थे। पूर्व में वह ‘पॉलिटिको’ में कई महत्वपूर्ण पद संभाल चुके थे।
न्यूयॉर्क टाइम्स के एग्जिक्यूटिव एडिटर जो काह्न और मैनेजिंग एडिटर कैरोलिन रेयान ने एम्प्लॉयीज के लिए जारी एक संदेश में कहा कि हाउंशेल ‘एक समर्पित पत्रकार थे, जिन्होंने जल्दी ही खुद को हमारे प्रमुख पॉलिक्टस न्यूजलेटर के शीर्ष लेखक और देश के राजनीतिक परिदृश्य के एक प्रतिभाशाली पर्यवेक्षक के रूप में स्थापित कर लिया।
वह व्यस्त चुनावी चक्र के दौरान वह राजनीतिक घटनाक्रम की रिपोर्टिंग में एक अनिवार्य और अंतरदृष्टि से भरपूर आवाज बनकर उभरे। ब्लेक अपने परिवार के प्रति समर्पित थे और वॉशिंगटन में हमारी टीम के कई सदस्यों के करीबी दोस्त थे।
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पाकिस्तान पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक देशों में से एक बना हुआ है। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (Reporters Without Borders) की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान उन देशों की सूची में आता है जहां कोई युद्ध नहीं चल रहा है, फिर भी देश में पत्रकारों के लिए सुरक्षित माहौल नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान में 2003 से अब तक 93 पत्रकारों की हत्याएं हुई हैं।
पाक मीडिया में कहा गया है कि पाकिस्तान की यह स्थिति देश के नेताओं के लिए अपमान का क्षण है। साथ ही यह पाकिस्तान के कमजोर लोकतंत्र का सबूत है।
रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान में आतंकवादियों, विद्रोहियों और राज्य समर्थित लोगों के द्वारा पत्रकारों की हत्याएं की गईं। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि इन हत्याओं में सामान्य बात यह है कि हत्यारे खुलेआम घूम रहे हैं और पीड़ित परिवार इंसाफ के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हैं।
पत्रकार अरशद शरीफ की मौत का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि केन्या में रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी हत्या दिल को झकझोर देने वाली सच्चाई दिखाती है कि पाकिस्तानी पत्रकार और असंतुष्ट देश के बाहर भी खतरों से सुरक्षित नहीं हैं।
वैसे इस रिपोर्ट की मानें तो भारत इन देशों की सूची में 5वें स्थान पर है, जहां प्रेस की स्वतंत्रता खतरे में है।
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फ्रांस की व्यंग्य पत्रिका 'शार्ली हेब्दो' (Charlie Hebdo) एक बार फिर सुर्खियों में है।
फ्रांस की व्यंग्य पत्रिका (मैगजीन) 'शार्ली हेब्दो' (Charlie Hebdo) एक बार फिर सुर्खियों में है। दरअसल इस बार 'शार्ली हेब्दो' ने ईरान के सर्वोच्च नेता अयातोल्ला अली खामेनी के आपत्तिजनक कार्टून प्रकाशित किए है, जिसकी वजह से बुधवार को फ्रांसीसी राजदूत निकोलस रोश को तलब किया गया है। ईरान ने इसे अपमानजनक बताते हुए फ्रांस को परिणाम भुगतने की चेतावनी तक दे डाली है।
'शार्ली हेब्दो' ने ईरान में चल रहे हिजाब विवाद को लेकर अयातोल्ला अली खामेनी के खिलाफ कार्टून प्रकाशित किए हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, इस सप्ताह पत्रिका ने अपने पेरिस कार्यालयों पर घातक 2015 के आतंकवादी हमले की वर्षगांठ मनाने के लिए 'जनवरी 7' शीर्षक वाला संस्करण जारी किया, जिसका विषय 'बीट द मुल्लाज' था। इसके तहत ईरान के सर्वोच्च धार्मिक और राजनीतिक व्यक्ति अयातुल्ला अली खामेनेई का मजाक उड़ाते हुए दर्जनों कार्टून प्रकाशित किए थे।
ईरान के विदेश मंत्री होसैन अमीर-अब्दुल्लाहियान ने ट्वीट किया, ' कार्टून प्रकाशित करने में एक फ्रांसीसी प्रकाशन ने धार्मिक और राजनीतिक सत्ता के खिलाफ अपमानजनक और अशोभनीय कृत्य किया है, जिसे बर्दाशत नहीं किया जा सकता है।'
ईरान के विदेश मंत्री ने आगे कहा कि, 'फ्रांस सरकार अपनी हद में रहे। फ्रांस की सरकार ने निश्चित रूप से गलत रास्ता चुन लिया है। इससे पहले भी हम इस पब्लिकेशन को प्रतिबंधित लिस्ट में शामिल कर चुके हैं।'
ईरान की कड़ी प्रतिक्रिया के बावजूद ‘शार्ली हेब्दो’ पत्रिका ने झुकने से इनकार कर कर दिया है। पत्रिका की ओर से कहा गया है कि यह सिर्फ ईरान में चल रहे प्रदर्शनों की सच्चाई दिखाने की एक कोशिश है।
विवादित कार्टून को लेकर पत्रिका के पब्लिकेशन डायरेक्टर की ओर से कहा गया कि, ‘1979 से ईरान में जो विचारधारा लोगों को प्रताड़ित कर रही है, उससे आजादी पाने के लिए जो लोग अपनी जान हथेली पर लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं, उन्हें समर्थन देने का यह हमारा एक तरीका है।’
‘शाली हेब्दो’ पत्रिका का विवादों से पुराना नाता रहा है। यह पत्रिका मोहम्मद साहब से लेकर हिंदू देवी देवताओं पर भी वह विवादित कार्टून छाप चुकी है। सबसे ज्यादा विवाद उस समय हुआ था, जब पत्रिका में इस्लाम के आखिरी नबी कहे जाने वाले पैगंबर मोहम्मद का विवादित कार्टून छापा गया था। इस मामले में ना सिर्फ इस्लामिक राष्ट्रों ने विरोध और नाराजगी जताई थी बल्कि दुनिया भर के कई देशों में मुस्लिम लोगों ने जमकर प्रदर्शन भी किया था। उसी समय काफी देशों ने इस पत्रिका को प्रतिबंधित लिस्ट में डाल दिया था।
इसके बाद फ्रांस में जन्मे अल-कायदा के दो आतंकवादियों ने 7 जनवरी 2015 में अखबार के दफ्तर पर हमला करके 12 कार्टूनिस्ट की हत्या कर दी थी।
वहीं, इस पत्रिका ने कोरोना की दूसरी लहर के दौरान भारत में कोविड संकट और ऑक्सीजन की कमी पर तंज कसा था। इसमें प्रकाशित कार्टून में ऑक्सीजन के लिए तरसते भारतीयों को जमीन पर लेटे हुए दिखाया गया था। साथ ही इस कार्टून में हिंदू देवी-देवताओं का मजाक उड़ाया गया।
कार्टून के कैप्शन में लिखा था कि 33 मिलियन देवी-देवता, पर एक भी ऑक्सीजन का उत्पादन करने में सक्षम नहीं हैं।
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जैसे-जैसे दुनिया पर मंदी का साया बढ़ता जा रहा है। बड़ी-बड़ी कंपनियों में छंटनी तेज हो गई है।
जैसे-जैसे दुनिया पर मंदी का साया बढ़ता जा रहा है। बड़ी-बड़ी कंपनियों में छंटनी तेज हो गई है। सोशल मीडिया क्षेत्र की दिग्गज कंपनियां ‘मेटा’ (Meta) और ‘ट्विटर’ (Twitter) में बड़े पैमाने पर छंटनी के बाद अब जानी-मानी ई-कॉमर्स कंपनी ‘एमेजॉन’ (Amazon) में तमाम एंप्लॉयीज की नौकरी पर खतरे की तलवार लटक गई है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कंपनी में जल्द ही करीब 18000 एंप्लॉयीज को बाहर का रास्ता दिखाने जा रही है। बताया जा रहा है कि ये प्रक्रिया 18 जनवरी से शुरू होने जा रही है। इस छंटनी का फरमान कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) एंडी जेसी ने एक सार्वजनिक स्टाफ नोट जारी कर सुनाया है, जिसके चलते तमाम एम्प्लॉयीज में इस बात की चिंता है कि कहीं उनका नाम तो इस लिस्ट में तो नहीं है।
वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि नवंबर से ही ‘एमेजॉन’ में छंटनी की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और नवंबर माह में कंपनी 10 हजार से ज्यादा कर्मचारियों को निकालने की तैयारी कर रही थी, लेकिन अब जनवरी तक इस संख्या में बढ़ोतरी कर दी गई है और कंपनी अब और 7 हजार से ज्यादा एम्प्लॉयीज को बाहर का रास्ता दिखएगी।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, नौकरी में कटौती ‘एमेजॉन’ की डिवाइस यूनिट पर केंद्रित होगी, जिसमें वॉयस-असिस्टेंट एलेक्सा और इसके रिटेल और मानव संसाधन डिवीजन शामिल हैं।
वॉल स्ट्रीट जनरल की एक रिपोर्ट में इस छंटनी की वजह बतायी गई है कि ‘एमेजॉन’ ने कोरोना के दौरान बड़ी संख्या में लोगों को नौकरी पर रख लिया था, लेकिन अब यह फैसला कंपनी पर बोझ साबित हो रहा है और मंदी की वजह से कंपनी की ग्रोथ में काफी गिरावट आ रही है। इसी वजह से कंपनी ने छंटनी का ऐलान किया है।
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वैश्विक आर्थिक मंदी की आहट से आर्थिक जगत में अस्थिरता बनी हुई है। इस बीच दुनियाभर की कई बड़ी कंपनियों में छंटनी का दौर चल रहा है, जिसके चलते एम्प्लॉयीज में डर का माहौल है। ऐसे में यदि आपको उस शख्स के बारे में पता चले, जिसने अपने जूनियर्स की जॉब बचाने के लिए अपनी मोटी तनख्वाह वाली जॉब कुर्बान कर दी हो, तो आपको यह जानकर जरूर हैरानी होगी।
दरअसल यह सच है और ऐसा करने वाले भारतीय मूल के जाने-माने अमेरिकी संपादक पीटर भाटिया हैं, जो अमेरिका के प्रमुख प्रकाशन के ‘डेट्रायट फ्री प्रेस’ के संपादक और उपाध्यक्ष हैं और पुलित्जर विजेता भी हैं। बता दें कि ‘डेट्रायट फ्री प्रेस’ का स्वामित्व गैनेट के पास है।
एडिटर ने कंपनी में बड़े स्तर पर होने वाली छंटनी से अपने एम्प्लॉयीज की नौकरी बचाने के लिए जनवरी में पद छोड़ने की घोषणा की है।
69 वर्षीय पीटर भाटिया ने पिछले सप्ताह आयोजित एक स्टाफ मीटिंग में तब यह फैसला लिया, जब कंपनी ने लगातार तीसरे तिमाही घाटे की सूचना दी। गैनेट ने अपने कारोबार में हो रहे घाटे की भरपाई के लिए छंटनी प्रक्रिया शुरू की है। बता दें कि ‘डेट्रायट फ्री प्रेस’ में कुल 110 लोग कार्यरत हैं।
स्टाफ मीटिंग के दौरान एडिटर पीटर भाटिया ने कहा, कंपनी छंटनी की प्रक्रिया से गुजर रही है और मैंने अनिवार्य रूप से अन्य नौकरियों को बचाने के हित में खुद नौकरी छोड़ने का फैसला किया है। मेरे पास अन्य अवसर हैं। भाटिया सितंबर 2017 में ‘द सिनसिनाटी इंक्वायरर’ और ‘सिनसिनाटी डॉट कॉम’ के एडिटर व वाइस प्रेजिडेंट के तौर पर दो साल की सेवा के बाद ‘फ्री प्रेस’ में शामिल हुए थे।
डेट्रायट फ्री प्रेस ने बताया कि भाटिया के संस्थान छोड़ने की अभी तक कोई रिपोर्ट नहीं है, लेकिन अखबार के एम्प्लॉयीज को खुद ही नौकरी छोड़ने की समय सीमा अगले सप्ताह है। इस बीच वर्षों तक भाटिया के साथ काम करने वाले पत्रकारों ने ट्विटर पर कहा कि वह गुणवत्तापूर्ण पत्रकारिता के लिए खड़े थे और उनका पद छोड़ना डेट्रायट फ्री प्रेस के लिए एक बड़ा नुकसान और दुखद दिन है।
भाटिया ने 1975 में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से इतिहास में बीए किया। 2020 में उन्होंने नेशनल प्रेस फाउंडेशन से बेन ब्रैडली एडिटर ऑफ द ईयर अवॉर्ड जीता। इस महीने की शुरुआत में गैनेट ने उन्हें अपना 2022 का शीर्ष एम्प्लॉयी नामित किया था। भाटिया के पिता यूपी के लखनऊ के रहने वाले थे।
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