पत्रिका समूह से एक बड़ी खबर निकलकर सामने आई है...
समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
पत्रिका समूह से एक बड़ी खबर निकलकर सामने आई है।
समाचार4मीडिया को विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने कंसल्टिंग एडिटर के तौर यहां जॉइन किया है।
उन्होंने आज एक मीटिंग भी ली, जोकि दिल्ली के आईएनएस
बिल्डिंग में संपन्न हुई। इस मीटिंग में नेशनल ब्यूरो समेत कई विभागों के साथ-साथ
राजस्थान पत्रिका के जयपुर एडिशन के संपादक भुवनेश जैन भी मौजूद रहे। उसके बाद वे पत्रिका ग्रुप के दूसरे वेंचर कैच (Catch) वेबसाइट के ऑफिस भी गए, वहां भी उन्होंने एक मीटिंग ली है। बता दें कि 'राजस्थान पत्रिका' में वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी की
ये दूसरी पारी है।
हालांकि समाचार4मीडिया से बात करते
हुए ओम थानवी ने कहा कि अभी उन्हें पत्रिका समूह से ऑफर है लेकिन उन्होंने जॉइन नहीं किया है।
गौरतलब है कि वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी का जन्म 1 अगस्त 1957 को फलोदी, जोधपुर (राजस्थान) में हुआ था। वह नौ वर्षों (1980 से 1989) तक 'राजस्थान
पत्रिका' में रहे। इसके बाद चंडीगढ़, फिर दिल्ली में संपादक बने। इसके अतिरिक्त हिंदी
दैनिक ‘जनसत्ता’ में भी वे
डेढ़ दशक से भी अधिक समय तक संपादक की भूमिका निभा चुके हैं, जिसमें दस साल तक उन्होंने चंडीगढ़ एडिशन का संपादन किया।
बीते वर्ष की शुरुआत उन्होंने अध्यापन के क्षेत्र में भी
कदम रखा और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से जुड़ गए थे। उन्हें यहां
विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज में बतौर गेस्ट फैकल्टी (विजिटिंग
स्कॉलर) की जिम्मेदारी दी गई है।
उन्होंने हिंदी की साहित्यिक व सांस्कृतिक पत्रिका ‘इतवारी’ का भी संपादन किया है। ओम थानवी की
साहित्य, कला, सिनेमा, पर्यावरण, पुरातत्त्व, स्थापत्य और यात्राओं में गहन रुचि है। वह मेक्सिको, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैण्ड, फ्रांस, जर्मनी, इटली, स्पेन, स्विटजरलैंड, ऑस्ट्रिया, नीदरलैंड, फिनलैंड, स्वीडन, बेल्जियम, रोमानिया, थाईलैंड, आर्मेनिया, बेलारूस, चीन, ब्राजील, मलेशिया, सिंगापुर, गयाना, त्रिनिदाद व टोबेगो, सूरीनाम, श्रीलंका, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, तुर्की, ग्रीस और क्यूबा आदि अनेक देशों की
यात्राएं कर चुके हैं।
ओम थानवी अपने यात्रा संस्मरणों पर केन्द्रित पुस्तक 'मुअनजोदड़ो' से विशेष चर्चा में रहे। थानवी ने
अपनी इस पुस्तक में हड़प्पा सभ्यता के गंभीर ऐतिहासिक आयामों को साहित्यिक रूप मे
पेश किया। इसके अलावा यात्रा संस्मरणों पर ही आधारित उनकी दो खंडों में संपादित
किताब 'अपने-अपने अज्ञेय' व 'सिंधुघाटी की सभ्यता' और इतावली विद्वान
एल.पी. तेस्सीतोरी और आचार्य
रामचन्द्र शुक्ल के अंतर्विरोध पर लिखी ‘लेखमाला’ भी काफी चर्चित रहीं।
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