वरिष्ठ पत्रकार संतोष भारतीय ने खुले खत के जरिए प्रधानमंत्री को बताया कश्‍मीर का ये सच...

हिंदी साप्ताहिक अखबार चौथी दुनिया के प्रधान संपादक संतोष भारतीय ने देश के प्रधानमंत्री के नाम एक खुला खत लिखा है, जिसमें उन्होंने कश्मीर के हालात से उन्हें अवगत कराया गया है। इस खत को आप यहां पढ़ सकते हैं: यह भी पढ़ें: 

समाचार4मीडिया ब्यूरो by
Published - Thursday, 22 September, 2016
Last Modified:
Thursday, 22 September, 2016
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हिंदी साप्ताहिक अखबार चौथी दुनिया के प्रधान संपादक संतोष भारतीय ने देश के प्रधानमंत्री के नाम एक खुला खत लिखा है, जिसमें उन्होंने कश्मीर के हालात से उन्हें अवगत कराया गया है। इस खत को आप यहां पढ़ सकते हैं:

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प्रधानमंत्री जी, ये कश्‍मीर का सच है

प्रिय प्रधानमंत्री जी,

मैं अभी-अभी चार दिन की यात्रा के बाद जम्मू-कश्मीर से लौटा हूं। चारों दिन मैं कश्मीर वादी में रहा और मुझे ये लगा कि मैंSantosh Bhartiya आपको वहां के हालात से अवगत कराऊं। हालांकि आपके यहां से पत्र का उत्तर आने की प्रथा समाप्त हो गई है, ऐसा आपके साथियों का कहना है, लेकिन फिर भी इस आशा से मैं ये पत्र भेज रहा हूं कि आप मुझे उत्तर दें या न दें, लेकिन पत्र को पढ़ेंगे अवश्य। इसे पढ़ने के बाद अगर आपको इसमें जरा भी तथ्य लगे, तो आप इसमें उठाए गए बिंदुओं के ऊपर ध्यान देंगे। ये मेरा पूरा विश्‍वास है कि आपके पास जम्मू-कश्मीर को लेकर खासकर कश्मीर घाटी को लेकर जो खबरें पहुंचती हैं, वो सरकारी अधिकारियों द्वारा प्रायोजित खबरें होती हैं उन खबरों में सच्चाई कम होती है। यदि आपके पास कोई ऐसा तंत्र हो, जो घाटी के लोगों से बातचीत कर आपको सच्चाई से अवगत कराए तो मेरा निश्‍चित मानना है कि आप उन तथ्यों को अनदेखा नहीं कर पाएंगे।

मैं घाटी में जाकर विचलित हो गया हूं। जमीन हमारे पास है क्योंकि हमारी सेना वहां पर है, लेकिन कश्मीर के लोग हमारे साथ नहीं हैं। मैं पूरी जिम्मेदारी से ये तथ्य आपके सामने लाना चाहता हूं कि 80 वर्ष की उम्र के व्यक्ति से लेकर 6 वर्ष तक के बच्चे के मन में भारतीय व्यवस्था को लेकर बहुत आक्रोश है। इतना आक्रोश है कि वो भारतीय व्यवस्था से जुड़े किसी भी व्यक्ति से बात नहीं करना चाहते हैं। इतना ज्यादा आक्रोश है कि वो हाथ में पत्थर लेकर इतने बड़े तंत्र का मुकाबला कर रहे हैं। अब वो कोई भी खतरा उठाने के लिए तैयार हैं जिसमें सबसे बड़ा खतरा नरसंहार का है। ये तथ्य मैं आपको इसी उद्देश्य को सामने रखकर लिख रहा हूं कि कश्मीर में होने वाले शताब्दी के सबसे बड़े नरसंहार को बचाने में आपकी भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। हमारे सुरक्षा बलों में, हमारी सेना में ये भाव पनप रहा है कि जो भी कश्मीर में व्यवस्था के प्रति आवाज उठाता है, उसे अगर समाप्त कर दिया जाए, तो ये अलगाववादी आंदोलन समाप्त हो सकता है। व्यवस्था जिसे अलगाववादी आंदोलन कहती है, दरअसल वो अलगाववादी आंदोलन नहीं है, वो कश्मीर की जनता का आंदोलन है। अगर 80 वर्ष के वृद्ध से लेकर 6 वर्ष का बच्चा तक आजादी, आजादी, आजादी कहे, तो मानना चाहिए कि पिछले 60 वर्षों में हमसे बहुत बड़ी चूक हुई है और वो चूकें जान-बूझकर हुई हैं। इन चूकों को सुधारने का काम आज इतिहास ने, समय ने आपको सौंपा है। आशा है आप कश्मीर की स्थिति को तत्काल नए सिरे से जानकर अपनी सरकार के कदमों का निर्धारण करेंगे। प्रधानमंत्री जी, कश्मीर में पुलिसवालों से लेकर, वहां के व्यापारी, छात्र, सिविल सोसायटी के लोग, लेखक, पत्रकार, राजनीतिक दलों के लोग और सरकारी अधिकारी, वो चाहे कश्मीर के रहने वाले हों या कश्मीर के बाहर के लोग जो कश्मीर में काम कर रहे हैं, सबका ये मानना है कि व्यवस्था से बहुत बड़ी भूल हुई है। इसलिए कश्मीर का हर आदमी भारतीय व्यवस्था के खिलाफ खड़ा हो गया है। जिसके हाथ में पत्थर नहीं है उसके मन में पत्थर है। ये आंदोलन जन आंदोलन बन गया है, ठीक वैसा ही जैसे भारत का सन 42 का आंदोलन था या फिर जयप्रकाश आंदोलन था, जिसमें नेता की भूमिका कम थी, लोगों की भूमिका ज्यादा थी।

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कश्मीर में इस बार बकरीद नहीं मनाई गई, किसी ने नए कपड़े नहीं पहने, किसी ने कुर्बानी नहीं दी। किसी के घर में खुशियां नहीं मनीं। क्या ये भारत के उन तमाम लोगों के मुंह पर तमाचा नहीं है, जो लोकतंत्र की कसमें खाते हैं। आखिर ऐसा क्या हो गया कि कश्मीर के लोगों ने त्योहार मनाना बंद कर दिया, ईद-बकरीद मनानी बंद कर दी और इस आंदोलन ने वहां के राजनीतिक नेतृत्व के खिलाफ एक बगावत का रूप धारण कर लिया। जिस कश्मीर में 2014 में हुए चुनाव में लोगों ने वोट डाले, आज उस कश्मीर में कोई भी व्यक्ति भारतीय व्यवस्था के प्रति सहानुभूति का एक शब्द कहने के लिए तैयार नहीं है। मैं आपको स्थितियां इसलिए बता रहा हूं कि पूरे देश का प्रधानमंत्री होने के नाते आप इसका कोई रास्ता निकाल सकें।

कश्मीर के घरों में लोग शाम को एक बल्ब जलाकर रहते हैं। ज्यादातर घरों में ये माना जाता है कि हमारे यहां इतना दुख है, इतनी हत्याएं हो रही हैं, दस हजार से ज्यादा पैलेट गन से लोग घायल हुए हैं, 500 से ज्यादा लोगों की आंखें चली गई हैं, ऐसे समय हम चार बल्ब घर में जलाकर खुशी का इजहार कैसे कर सकते हैं? हम एक बल्ब जलाकर रहेंगे। प्रधानमंत्री जी, मैंने देखा है कि लोग घरों में एक बल्ब जलाकर रह रहे हैं। मैंने ये भी कश्मीर में देखा कि किस तरह सुबह आठ बजे सड़कों पर पत्थर लगा दिए जाते हैं और शाम के 6 बजे अपने आप वही लड़के जिन्होंने पत्थर लगाए हैं, सड़क से पत्थर हटा देते हैं। दिन में वे पत्थर चलाते हैं, शाम को वे अपने घरों में इस दु:शंका में सोते हैं कि उन्हें कब सुरक्षा बल के लोग आकर उठा ले जाएं, फिर वो कभी अपने घर को वापस लौटें या न लौटें। ऐसी स्थिति तो अंग्रजों के शासन काल में भी नहीं थी। ये मानसिकता, जितनी हम इतिहास में पढ़ते हैं, सामान्य जन में इतना डर नहीं था, लेकिन आज कश्मीर का हर आदमी, वह हिंदू हो, मुसलमान हो, सरकारी नौकर हो, छात्र हो, बेकार हो, व्यापारी हो, सब्जी वाला हो, ठेले वाला हो या टैक्सी वाला हो, हर आदमी डरा हुआ है और शायद मुझे विश्‍वास नहीं होता है कि क्या हम उन्हें और डराने या और ज्यादा परेशान करने की रणनीति पर तो नहीं चल रहे हैं।

कश्मीर के लोगों में पिछले साठ वर्षों में व्यवस्था की चूक, लापरवाही या आपराधिक अनदेखी की वजह से लोगों को याद आ गया है कि जब कश्मीर को हिंदुस्तान में शामिल करने का समझौता हुआ था, जिसे वो एकॉर्ड कहते हैं, महाराजा हरि सिंह और भारत सरकार के बीच, जिसके गवाह महाराजा हरि सिंह के बेटे डॉ। कर्ण सिंह अभी जिंदा हैं, उसमें साफ लिखा था कि धारा 370 तब तक रहेगी जब तक कश्मीर के लोग अपने भविष्य को लेकर अंतिम फैसला मत संग्रह के द्वारा नहीं कर देते। कश्मीर के लोग इस जनमत संग्रह को चार-पांच साल में भूल गए थे। शेख अब्दुल्ला वहां सफलतापूर्वक शासन कर रहे थे, लेकिन प्रधानमंत्री जी भारत के पहले प्रधानमंत्री ने जब शेख अब्दुल्ला को जेल में डाला तब से कश्मीर में भारत के प्रति अविश्‍वास पैदा हुआ। 1974 में शेख अब्दुल्ला और इंदिरा गांधी के बीच एक समझौता हुआ, उसके बाद शेख अब्दुल्ला को दोबारा कश्मीर का मुख्यमंत्री बनाया। शेख अब्दुल्ला पाकिस्तान भी गए और उन्होंने अपना शासन चलाया, लेकिन उन्होंने सरकार से जिन-जिन चीजों की मांग की, सरकार ने वो नहीं किया और फिर कश्मीर के लोगों के मन में दूसरे घाव लगे।

1982 में पहली बार शेख अब्दुल्ला के बेटे फारूक अब्दुल्ला कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़े और वहां उन्हें बहुमत हासिल हुआ। शायद दिल्ली में बैठी कांग्रेस कश्मीर को अपना उपनिवेश समझ बैठी थी और उसने फारूक अब्दुल्ला की सरकार गिरा दी। फारूक अब्दुल्ला की जीत हार में बदल गई और यहां से कश्मीरियों के मन में भारतीय व्यवस्था को लेकर नफरत का भाव पैदा हुआ। आपके प्रधानमंत्री बनने से पहले तक दिल्ली में बैठी तमाम सरकारों ने कश्मीर में लोगों को ये विश्‍वास ही नहीं दिलाया कि वो भी भारतीय व्यवस्था के वैसे ही अंग हैं, जैसे हमारे देश के दूसरे राज्य। कश्मीर में एक पूरी पीढ़ी, जो सन 1952 में पैदा हुई, उसने आज तक लोकतंत्र का नाम ही नहीं सुना, उसने आज तक लोकतंत्र का स्वाद ही नहीं चखा। उसने वहां सेना देखी, पैरामिलिट्री फोर्सेज देखीं, गोलियां देखीं, बारूद देखीं और मौतें देखीं। उसको ये नहीं अंदाज है कि हम दिल्ली में, उत्तर प्रदेश में, बंगाल में, महाराष्ट्र में, गुजरात में किस तरह जीते हैं और किस तरह हम लोकतंत्र की दुहाई देते हुए लोकतंत्र नाम के व्यवस्था का स्वाद चखते हैं। क्या कश्मीर के लोगों का ये हक नहीं है कि वो भी लोकतंत्र का स्वाद चखें, लोकतंत्र की अच्छाइयों के समंदर में तैरें या उनके हिस्से में बंदूकें, टैंक, पैलेट गन्स और फिर संभावित नरसंहार ही आएगा।

प्रधानमंत्री जी, ये बातें मैं आपसे इसलिए कह रहा हूं कि आपको लोगों ने ये बतला दिया है कि कश्मीर का हर व्यक्ति पाकिस्तानी है। हमें कश्मीर में एक भी आदमी पाकिस्तान की तारीफ करता हुआ नहीं मिला। लेकिन उनका ये जरूर कहना है कि आपने जो हमसे वादा किया था, वह पूरा नहीं किया। आपने हमें रोटी जरूर दी, लेकिन थप्पड़ मारते हुए दी, आपने हमें हिकारत से देखा, आपने हमें बेइज्जत किया, आपने हमारे लिए लोकतंत्र की रोशनी न आने देने की साजिश की और इसलिए पहली बार ये आंदोलन आजादी के बाद कश्मीर के गांव तक फैल गया। हर पेड़ पर, हर मोबाइल टावर के ऊपर हर जगह प्रधानमंत्री जी पाकिस्तानी झंडा है और जब हमने पता किया तो उन्होंने कहा कि नहीं हम पाकिस्तान नहीं जाना चाहते हैं, लेकिन आप पाकिस्तान से चिढ़ते हैं, इसलिए हम पाकिस्तानी झंडा लगाते हैं और ये कहने में कश्मीर के बहुत से लोगों के मन में कोई पश्‍चाताप नहीं था। कश्मीर के लोग भारत की व्ववस्था को, सत्ता को चिढ़ाने के लिए जब भारत की क्रिकेट में हार होती है, तो जश्‍न मनाते हैं वो सिर्फ पाकिस्तान की टीम की जीत पर जश्‍न नहीं मनाते, खुश नहीं होते, अगर हम न्यूजीलैंड से हार जाएं, अगर हम बंाग्लादेश से हार जाएं, अगर हम श्रीलंका से हार जाएं, तब भी वो उसी सुख का अनुभव करते हैं। क्योंकि उन्हें ये लगता है कि हम भारतीय व्यवस्था की किसी भी खुशी को नकार कर अपना विरोध प्रदर्शित कर रहे हैं। प्रधानमंत्री जी, क्या इस मनोविज्ञान को भारत की सरकार को समझने की जरूरत नहीं है। कश्मीर के लोग अगर हमारे साथ नहीं होंगे, तो हम कश्मीर की जमीन लेकर क्या करेंगे। कश्मीर की जमीन में कुछ भी पैदा नहीं होता, फिर वहां पर न टूरिज्म होगा, न वहां मोहब्बत होगी, सिर्फ एक सरकार होगी और हमारी फौज होगी। प्रधानमंत्री जी, कश्मीर के लोग आत्मनिर्णय का अधिकार चाहते हैं, वो कहते हैं कि एक बार आप हमसे ये जरूर पूछिए कि हम भारत के साथ रहना चाहते हैं कि हम पाकिस्तान के साथ रहना चाहते हैं या हम एक आजाद देश बनाना चाहते हैं और उसमें सिर्फ भारत के साथ शामिल हुआ कश्मीर नहीं शामिल है। उसमें वो जनमत संग्रह पाकिस्तान के अधिकार में रहने वाले कश्मीर, गिलगिट, बलटिस्तान ये तीनों के लिए जनमत संग्रह चाहते हैं और इसके लिए वो चाहते हैं कि भारत, पाकिस्तान के साथ बातचीत करे कि अगर भारत यहां ये अधिकार देने को तैयार है, तो वो भी यहां पर वो अधिकार दें।

santosh2प्रधानमंत्री जी, ये स्थिति क्यों आई, ये स्थिति इसलिए आई कि अब तक संसद ने चार प्रतिनिधिमंडल कश्मीर में भेजे, उन चारों सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों ने जो संसद का प्रतिनिधित्व करते थे, क्या रिपोर्ट सरकार को दी, वो किसी को नहीं मालूम। लेकिन जो भी रिपोर्ट दी हो, उस पर अमल नहीं हुआ। सरकार ने अपनी तरफ से श्री राम जेठमलानी और श्री केसी पंत को वहां पर दूत के रूप में भेजा और इन लोगों ने वहां बहुत से लोगों से बातचीत की, लेकिन इन लोगों ने सरकार से क्या कहा, ये किसी को नहीं पता। आपके पहले के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इंटरलोकेटर की टीम बनाई थी, जिसमें दिलीप पडगांवकर, राधा कुमार, एमएम अंसारी थे, इन लोगों ने क्या रिपोर्ट दी, किसी को नहीं पता, उस पर बहुस नहीं हुई, उस पर चर्चा नहीं हुई। जम्मू-कश्मीर की विधानसभा ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया कि उन्हें क्या अधिकार चाहिए, उसे कूड़े की टोकरी में फेंक दिया गया। कश्मीर के लोगों को ये लगता है कि हमारा शासन हम नहीं चलाते, दिल्ली में बैठे कुछ अफसर चलाते हैंे, इंटेलीजेंस ब्यूरो चलाती है, सेना के लोग चलाते हैं, हम नहीं चलाते। हम तो यहां पर गुलामों की तरह से जी रहे हैं, जिसे रोटी देने की कोशिश तो होती है, लेकिन जीने का कोई रास्ता उसके लिए खुला नहीं है। प्रधानमंत्री जी, कश्मीर के लिए जो पैसा एलॉट होता है वो वहां नहीं पहुंचता, पंचायतों के पास पैसा नहीं पहुंचता, कश्मीर को जितने पैकेज मिले, वो नहीं मिले और आपने 2014 में दिवाली कश्मीर के लोगों के बीच बिताई थी, आपने कहा था कि वहां इतनी बाढ़ आई है, इतना नुकसान हुआ है, इतने हजार करोड़ रुपये का पैकेज कश्मीर को दिया जाएगा। प्रधानमंत्री जी, वो पैकेज नहीं मिला है, उसका कुछ हिस्सा स्व। मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद जब महबूबा मुफ्ती ने थोड़ा दबाव डाला, तो कुछ पैसा रिलीज हुआ। कश्मीर के लोगों को ये मजाक लगता है, अपना अपमान लगता है।

प्रधानमंत्री जी, क्या ये संभव नहीं कि जितने भी संसदीय प्रतिनिधिमंडल अब तक कश्मीर गए, इंटरलोकेटर्स की रिपोर्ट, केसी पंत और श्री राम जेठमलानी के सुझाव तथा और भी जिन लोगों ने कश्मीर के बारे में आपको राय दी हो, आपसे मतलब आपके कार्यालय को अब तक राय दी हो, क्या उन रायों को लेकर हमारे भूतपूर्व प्रधान न्यायाधीशों का एक आठ या दस का ग्रुप बनाकर उनके सामने वो रिपोर्ट नहीं सौंपी जा सकती कि इसमें तत्काल क्या-क्या लागू करना है, उन बिंदुओं को तलाशें। क्या इंटरलोकेटर्स की रिपोर्ट बिना किसी शर्त के लागू कर उस पर अमल नहीं कराया जा सकता, चूंकि ये सारी चीजें नहीं हुईं, इसलिए कश्मीर के लोग अब आजादी चाहते हैं और वो आजादी की भावना इतनी बढ़ गई है प्रधानमंत्री जी, मैं फिर दोहराता हूं, मुझे पुलिस से लेकर, 80 साल के वृद्ध से लेकर, लेखक, पत्रकार, व्यापारी, टैक्सी चलाने वाले, हाउसबोट के लोग और 6 साल का बच्चा तक ये सब आजादी की बात करते दिखाई दिए। एक भी व्यक्ति मुझे ऐसा नहीं मिला, जिसने ये कहा हो कि उसे पाकिस्तान जाना है, उसे मालूम है पाकिस्तान की हालत क्या है और जिन हाथों में पत्थर हैं, उन हाथों को ये पत्थर पकड़ने की ताकत अगर किसी ने दी है, तो ये हमारी व्यवस्था ने दी है।

प्रधानमंत्री जी, मेरे मन में एक बड़ा सवाल है कि क्या पाकिस्तान इतना बड़ा है कि वहां पत्थर चलाने वाले बच्चों को रोज पांच सौ रुपये दे सकता है और क्या हमारी व्यवस्था इतनी खराब है कि अब तक उस व्यक्ति को नहीं पकड़ पाई, जो वहां पांच-पांच सौ रुपये बांट रहा है। कर्फ्यू है, लोग सड़कों पर नहीं निकल रहे हैं, कौन मोहल्ले में जा रहा है पांच सौ रुपये बांटने के लिए। पाकिस्तान क्या इतना ताकतवर है कि पूरे 60 लाख लोगों को भारत जैसे 125 करोड़ लोगों के देश के खिलाफ खड़ा कर सकता है। मुझे ये मजाक लगता है, कश्मीर के लोगों को भी ये मजाक लगता है। कश्मीर के लोगों को हमारी व्यवस्था के अंग मीडिया से भी बहुत शिकायत है, वो कई चैनलों का नाम लेते हैं जिनको देखकर लगता है कि ये देश में सांप्रदायिक भावना को बढ़ाने का काम कर रहे हैं। इसमें कुछ महत्वपूर्ण चैनल अंग्रेजी के हैं और कुछ हिंदी के भी हैं। मैं मानता हूं कि हमारे साथी राज्यसभा में जाने या अपना नाम पत्रकारिता के इतिहास में प्रथम श्रेणी में लिखवाने के क्रम में इतना अंधे हो गए हैं कि वो देश की एकता और अखंडता से भी खेल रहे हैं। पर प्रधानमंत्री जी, इतिहास निर्मम होता है, वो ऐसे पत्रकारों को देशप्रेमी नहीं देशद्रोही मानेगा, क्योंकि ऐसे लोग जो पाकिस्तान का नाम लेते हैं या हर चीज में पाकिस्तान का हाथ देखते हैं, वो लोग दरअसल पाकिस्तान के दलाल हैं, वो मानसिक रूप से हिंदुस्तान और कश्मीर के लोगों में ये भावना पैदा कर रहे हैं कि पाकिस्तान एक बड़ा सशक्त, बड़ा समर्थ और बहुत विचारवान देश है। प्रधानमंत्री जी, इन लोगों को जब समझ में आएगा, तब आएगा या नहीं समझ में आए, मुझे उससे चिंता नहीं है। मेरी चिंता भारत के प्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर है। नरेंद्र मोदी को इतिहास अगर इस रूप में आंके कि उन्होंने कश्मीर में एक बड़ा नरसंहार करवाकर कश्मीर को भारत के साथ जोड़े रखा, शायद वो आने वाली पीढ़ियों के लिए बहुत दुखद इतिहास होगा। इतिहास नरेंद्र मोदी को इस रूप में जाने कि उन्होंने कश्मीर के लोगों का दिल जीता। उन्हें उन सारे वादों की भरपाई करने का आश्‍वासन दिया, जिन्हें साठ साल से कश्मीरियों को कहा जाता रहा है। कश्मीर के लोग सोना नहीं मांगते, चांदी नहीं मांगते, हीरा नहीं मांगते। कश्मीर के लोग इज्जत मांगते हैं। प्रधानमंत्री जी मैंने जितने वर्गों की बात की, ये सब स्टेक होल्डर हैं।

प्रधानमंत्री जी, ये सारे लोग स्टेक होल्डर हैं और इनमें हुर्रियत के लोग शामिल हैं। हुर्रियत के लोगों का इतना नैतिक दबाव कश्मीर में है कि वो जो कैलेंडर शुक्रवार को वहां जारी करते हैं, वह हर एक के पास पहुंच जाता है। अखबारों में छपा कि हर एक को उसकी जानकारी हो गई और लोग सात दिन उस कैलेंडर के ऊपर काम करते हैं, वो कहते हैं कि 6 बजे तक बाजार बंद रहेंगे, 6 बजे तक बाजार बंद होते हैं और 6 बजे बाजार अपने आप खुल जाते हैं। प्रधानमंत्री जी, वहां तो बैंक भी 6 बजे के बाद खुलने लगे हैं, जो आपके व्यवस्था के अंतर्गत आते हैं, वहां पर हमारे सुरक्षाबलों के लोग 6 बजे के बाद नहीं घूमते, 6 बजे के पहले ही घूमते हैं और इसीलिए हमारा कोर कमांडर सरकार से कहता है कि हमें इस राजनीतिक झगड़े में मत फंसाइए। प्रधानमंत्री जी, ये छोटी चीज नहीं है, हमारी फौज का कमांडर वहां की सरकार से कहता है कि हमें इस राजनीतिक झगड़े में मत फंसाइए। हम सिविलियन के लिए नहीं हैं, हम दुश्मन के लिए हैं।

इसीलिए जहां सेना का सामना होता है, तो वे पत्थर का जवाब गोली से देते हैं। लोगों की मौतें होती हैं, लेकिन सेना की इस भावना को तो समझने की जरूरत है। सेना अपने देश के नागरिकों के खिलाफ कानून-व्यवस्था बनाए रखने की चीज नहीं है। सुरक्षा बल पैलेट गन चलाते हैं, लेकिन उनका निशाना कमर से नीचे नहीं होता है। कमर से ऊपर होता है इसलिए दस हजार लोग घायल पड़े हैं। प्रधानमंत्री जी, मैं कश्मीर के दौरे में अस्पतालों में गया। मुझसे कहा गया कि चार-पांच हजार पुलिसवाले भी घायल हुए हैं। सुरक्षा बलों के लोग घायल हुए हैं। मुझे पत्थरों से घायल लोग तो दिखाई दिए, लेकिन वो संख्या काफी कम थी। ये हजारों की संख्या वाली बात हमारा प्रचार तंत्र कहता है, जिसपर कोई भरोसा नहीं करता और अगर ऐसा है तो हम पत्रकारों को उन जवानों से मिलवाइए जो दो हजार की संख्या में एक हजार की संख्या में घायल कहीं इलाज करा रहे हैं। पर हमने अपनी आंखों से जमीन पर एक-दूसरे से बिस्तर शेयर करते हुए लोगों को देखा, जो घायल थे। हमने बच्चों को देखा जिनकी आंखें चली गईं, जो कभी वापस नहीं आएंगी। इसलिए मैं ये पत्र बड़े विश्‍वास और भावना के साथ लिख रहा हूं और मैं जानता हूं कि आपके पास अगर ये पत्र पहुंचेगा तो आप इसे पढ़ेंगे और हो सकता है कुछ अच्छा भी करें। लेकिन मुझे इसमें शक है कि ये पत्र आपके पास पहुंचेगा इसलिए मैं इसे चौथी दुनिया अखबार में छाप रहा हूं ताकि कोई तो आपको बताए कि सच्चाई ये है।

प्रधानमंत्री जी, एक कमाल की बात आपको बताता हूं। मुझे श्रीनगर में हर आदमी अटल बिहारी वाजपेयी जी की तारीफ करता हुआ मिला। लोगों को सिर्फ एक प्रधानमंत्री का नाम याद है और वो हैं अटल बिहारी वाजपेयी जिन्होंने लाल चौक पर खड़े होकर कहा था कि मैं पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाता हूं। उन्हें कश्मीर के लोग कश्मीर की समस्याओं को हल करने वाले मसीहा की तरह याद करते हैं। उन्हें लगता है कि अटल बिहारी वाजपेयी कश्मीर के लोगों का दुख-दर्द समझते थे और उनका आंसू पोछना चाहते थे। प्रधानमंत्री जी, वो आपसे भी वैसी ही आशा करते हैं, लेकिन उन्हें विश्‍वास नहीं है। उन्हें इसलिए विश्‍वास नहीं है क्योंकि आप सारे विश्‍व में घूम रहे हैं। आप लाओस, चीन, अमेरिका, सऊदी अरब हर जगह जा रहे हैं। दुनिया भर की यात्रा करने वाले आप पहले प्रधानमंत्री बने हैं, पर अपने ही देश के साठ लाख लोग आपसे नाराज हो गए हैं। ये साठ लाख लोग इसलिए नहीं नाराज हुए कि आप भारतीय जनता पार्टी के हैं। इसलिए नाराज हुए कि आप भारत के प्रधानमंत्री हैं और प्रधानमंत्री के दर्द में अपने ही देश के नाराज लोगों के लिए जितना प्यार होना चाहिए वो प्यार अब नहीं दिखाई दे रहा है। इसलिए मेरा आग्रह है कि आप स्वयं कश्मीर जाएं, वहां के लोगों से मिलें, हालात का जायजा लें और कदम उठाएं। निश्‍चित मानिए कश्मीर के लोग इसे हाथों हाथ लेंगे। लेकिन बात आपको वहां कश्मीर के सभी स्टेक होल्डर से करनी होगी। हुर्रियत से भी।

प्रधानमंत्री जी, मेरे साथ अशोक वानखेड़े, जो मशहूर स्तम्भकार हैं और टेलीविजन पर राजनीतिक विश्‍लेषण करते हैं, प्रोफेसर अभय दूबे, ये भी वरिष्ठ राजनीतिक विश्‍लेषक हैं, जो टेलीविजन पर आते रहते हैं और रिसर्च विशेषज्ञ हैं, ये लोग भी साथ थे। और हम तीनों कई बार कश्मीर की हालत देखकर रोए। हमें लगा कि सारे देश में ये भावना फैलाई गई है, योजनापूर्वक एक ग्रुप ने ये भावना फैलाई है कि कश्मीर का हर आदमी पाकिस्तानी है। कश्मीर का हर आदमी देशद्रोही है और सारे लोग पाकिस्तान जाना चाहते हैं। नहीं प्रधानमंत्री जी, ये सच नहीं है। कश्मीर के लोग अपने लिए रोजी चाहते हैं, रोटी चाहते हैं, लेकिन इज्जत के साथ चाहते हैं। वो चाहते हैं कि उनके साथ वैसा ही व्यवहार हो, जैसा बिहार, बंगाल, असम के साथ होता है। अब प्रधानमंत्री जी, एक चीज और मैंने देखी कि क्या कश्मीर के लोगों को मुंबई के लोगों की तरह, पटना के लोगों की तरह, अहमदाबाद के लोगों की तरह, दिल्ली के लोगों की तरह जीने का या रहने का अधिकार नहीं मिल सकता। हम 370 खत्म करेंगे, 370 खत्म होना चाहिए, इसका प्रचार सारे देश में कर रहे हैं। कश्मीरियों को अमानवीय बनाने का प्रचार कर रहे हैं। लेकिन हम देश के लोगों को ये नहीं बताते कि भारत सरकार का एक निर्णय था कि कश्मीर हमारा कभी अंग नहीं रहा और कश्मीर को जब हमने 47 में अपने साथ मिलाया, तो हमने दो देशों के बीच  एक संधि की थी, समझौता किया था। कश्मीर हमारा संवैधानिक अंग नहीं है, लेकिन हमारी संवैधानिक व्यवस्था ने आत्मनिर्णय के अधिकार से पहले धारा 370 दी। प्रधानमंत्री जी, क्या ये नहीं कहा जा सकता कि हम कभी 370 के साथ छेड़छाड़ नहीं करेंगे और 370 क्या है? 370 है कि हम कश्मीर पर विदेश नीति, सेना और करैंसी इसके अलावा हम कश्मीर के शासन में किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं करेंगे। पर पिछले 65 साल इसके उदाहरण हैं कि हमने, मतलब दिल्ली की सरकार ने, वहां लगातार नाजायज हस्तक्षेप किया। सेना को कहिए कि वो सीमाओं की रक्षा करे। जो सीमा पार करने की कोशिश करे, उसके साथ वैसा ही व्यवहार करे, जैसा एक आतंकवादी या दुश्मन के साथ होता है। लेकिन लोगों के साथ लोगों को तो दुश्मन मत मानिए। देश के कश्मीर के लोगों को इस बात का रंज है, इस बात का दुख है कि इतना बड़ा जाट आंदोलन हुआ, गोली नहीं चली, कोई नहीं मरा। गुजर आंदोलन हुआ, कोई आदमी नहीं मरा, कहीं पुलिस ने गोली नहीं चलाई। अभी कावेरी को लेकर कनार्र्टक में, बेंगलुरू में इतना बड़ा आंदोलन हुआ, पर एक गोली नहीं चली। क्यों कश्मीर में ही गोलियां चलती हैं और क्यों कमर से ऊपर चलती हैं और छह साल के बच्चों पर चलती हैं? छह साल का बच्चा प्रधानमंत्री जी वो क्यों हमारे खिलाफ हो गया? वहां की पुलिस हमारे खिलाफ है।

लोगों का दिल जीतने की जरूरत है और आप इसमें सक्षम हैं। आपने लोगों का दिल जीता इसलिए आप प्रधानमंत्री बने हैं और अकल्पनीय बहुमत के साथ प्रधानमंत्री बने हैं। क्या आप ईश्‍वर द्वारा दी गई, इतिहास द्वारा दी गई, वक्त द्वारा दी गई अपनी इस जिम्मेदारी को निभाएंगे कि कश्मीर के लोगों का भी दिल जीतें और उनके साथ हुए भेदभाव, अमानवीय व्यवहार से निजात दिलाएं। उनके मन में ये भावना भरें कि वो भी विश्‍व के, भारत के किसी भी प्रदेश के वैसे ही सम्माननीय नागरिक हैं, जैसे आप और हम। मुझे पूरी उम्मीद है कि आप बिना वक्त खोए कश्मीर के लोगों का दिल जीतने के लिए तत्काल कदम उठाएंगे और बिना समय खोए अपने दल के लोगों को अपनी सरकार के लोगों को कश्मीर के बारे में कैसा व्यवहार करना है, इसका निर्देश देंगे। मैं पुन: आपसे अनुरोध करता हूं कि आप हमें उत्तर दें या न दें, लेकिन कश्मीर के लोगों को उनके दुख-दर्द, आंसू कैसे पोंछ सकते हैं, इसके लिए कदम जरूर उठाएं।

(साभार: चौथी दुनिया)

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PTI की महिला रिपोर्टर से मारपीट, ANI के पत्रकार पर लगा आरोप

कर्नाटक के उप-मुख्यमंत्री और कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता डीके शिवकुमार के प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान दो पत्रकारों के आपस में भिड़ने की खबर सामने आयी है।

Last Modified:
Thursday, 28 March, 2024
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कर्नाटक के उप-मुख्यमंत्री और कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता डीके शिवकुमार के प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान दो पत्रकारों के आपस में भिड़ने की खबर सामने आयी है। दरअसल, पीटीआई (PTI) ने आरोप लगाया है कि उनकी महिला पत्रकार के साथ एएनआई (ANI) के पत्रकार ने मारपीट की है।

यह घटना गुरुवार को बेंगलुरु में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान घटी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, प्रेस कॉन्फ्रेंस खत्म होने के बाद ANI और PTI की महिला रिपोर्टर के बीच किसी बात को लेकर बहस हो गई और देखते ही देखते ANI के युवा रिपोर्टर ने PTI की महिला संवाददाता को थप्पड़ जड़ दिया। इस घटना का वीडियो भी सामने आया है।

PTI के मुताबिक, बेंगलुरु में एक प्रेस कार्यक्रम में एक युवा PTI  महिला रिपोर्टर के साथ शारीरिक रूप से मारपीट की और मौखिक रूप से यौन अपशब्द कहे गए।

PTI मैनेजमेंट अपनी महिला रिपोर्टर के साथ हुए इस दुर्वव्यवहार से खफा है और इस मामले को महिला आयोग के समक्ष ले जाने का फैसला किया है। ट्विटर पर वीडियो पोस्ट कर PTI ने डीके शिवकार और ANI की एडिटर स्मिता प्रकाश को पोस्ट में टैग किया है। PTI ने स्मिता प्रकाश से सवाल किया है कि क्या वह अपने रिपोर्टर के इस व्यवहार की निंदा और उचित कार्रवाई करेंगी? PTI के मुताबिक, ANI के संवाददाता ने महिला रिपोर्टर को अपशब्द भी कहे।

PTI मैनेजमेंट ने कहा है कि हम अपने एम्प्लॉयीज की सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जाएंगे। इस घटना को लेकर PTI ने एक एफआईआर दर्ज की जा रही है।

 

 

 

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‘शेयरचैट’ ने कार्तिक पटियार को किया नियुक्त, सौंपी बड़ी जिम्मेदारी

कार्तिक पटियार इससे पहले 'डिज्नी+हॉटस्टार’ (Disney+Hotstar) से जुड़े हुए थे।

समाचार4मीडिया ब्यूरो by
Published - Wednesday, 27 March, 2024
Last Modified:
Wednesday, 27 March, 2024
Kartik Patiar

भारतीय सोशल मीडिया कंपनी 'शेयरचैट' (ShareChat) ने कार्तिक पटियार को सीनियर डायरेक्टर के पद पर नियुक्त किया है। अपनी इस भूमिका में वह राष्ट्रीय स्तर पर 'शेयरचैट' (ShareChat) और 'मोज' (Moj) के ऑनलाइन व मीडिया-एंटरटेनमेंट वर्टिकल्स का नेतृत्व करेंगे। वह 'शेयरचैट' की बिजनेस टीम का हिस्सा होंगे।  

कार्तिक को विभिन्न सेक्टर्स और इंडस्ट्रीज के साथ काम करने का 16 साल से ज्यादा का अनुभव है। इससे पहले वह 'डिज्नी+हॉटस्टार’ (Disney+Hotstar) से जुड़े हुए थे और डायरेक्टर (LCS Sales) के तौर पर रेवेन्यू चार्टर की जिम्मेदारी संभाल रहे थे।

इससे पहले वह फ्लिपकार्ट, ओएलएक्स और स्विगी से जुड़े रहे हैं, जहां उन्होंने बिजनेस, ग्रोथ और मार्केटिंग में विभिन्न भूमिकाएं निभाईं। इसके अलावा वह लेनोवो (एशिया पैसिफिक) के साथ भी जुड़े रहे हैं, जहां उन्होंने एशिया पैसिफिक के लिए मार्केटिंग स्ट्रैटेजी का नेतृत्व किया था। इसके अलावा करियर के शुरुआती दिनों में वह ‘मॉन्डलेज’ के साथ भी काम कर चुके हैं।  

कार्तिक पटियार की नियुक्ति के बारे में शेयरचैट और मोज के चीफ बिजनेस ऑफिसर गौरव जैन का कहना है, ‘कार्तिक ने सेल्स और मार्केटिंग में एक दशक से ज्यादा काम किया है। इंडस्ट्री की गतिशीलता और ग्राहक भावना के बारे में उनकी मजबूत समझ शेयरचैट पर हमारे लिए एक अमूल्य अनुभव होगी। उनकी अंतर्दृष्टि हमें देश की सबसे बड़ी घरेलू सोशल मीडिया कंपनी में बिजनेस टीम को और सशक्त बनाने में मदद करेगी। हम अपने सभी पार्टनर्स के लिए एक उत्कृष्ट सामाजिक अनुभव (social experience) तैयार करने के लिए तत्पर हैं।’

वहीं अपनी नई भूमिका के बारे में कार्तिक पटियार का कहना है, ‘मैं शेयरचैट के साथ इस नए सफर को शुरू करने के लिए काफी उत्साहित हूं और कुछ सबसे प्रतिभाशाली व्यक्तियों व टीमों के साथ काम करना वास्तव में सौभाग्य की बात है। मैं कंपनी में योगदान देने और हमारे व्यावसायिक प्रयासों को अधिकतम करने के लिए उत्सुक हूं। मेरा लक्ष्य हमारे बिक्री प्रयासों, ग्राहक संबंधों और व्यवसाय के लिए विकास के नए अवसरों पर सकारात्मक प्रभाव डालना है।’

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मीडिया की स्वतंत्रता बनाए रखने पर निचली अदालतों को सुप्रीम कोर्ट का बड़ा निर्देश

देश के सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) ने मीडिया की स्वतंत्रता बनाए रखने को लेकर निचली अदालतों को बड़ा निर्देश दिया है।

समाचार4मीडिया ब्यूरो by
Published - Wednesday, 27 March, 2024
Last Modified:
Wednesday, 27 March, 2024
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देश के सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) ने मीडिया की स्वतंत्रता बनाए रखने को लेकर निचली अदालतों को बड़ा निर्देश दिया है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया समूह 'ब्लूमबर्ग' से जुड़ी अवमानना याचिका के मामले में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने अदालतों से मीडिया घरानों के खिलाफ प्रतिबंधात्मक आदेश पारित करते समय "सावधानीपूर्वक चलने" के लिए कहा है।

पीठ ने कहा कि अदालत को प्रथम दृष्टया आरोपों की गुणवत्ता की जांच किए बिना मीडिया घरानों के खिलाफ एकतरफा प्रतिबंध आदेश पारित करने से बचना चाहिए। इसमें कहा गया है, "किसी आर्टिकल के छपने के खिलाफ प्री-ट्रायल निषेधाज्ञा देने से लेखक की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जनता के जानने के अधिकार पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।।"

इस टिप्पणी के साथ शीर्ष अदालत ने देश की मशहूर मीडिया समूह के खिलाफ कथित तौर पर अपमानजनक समाचार लेख का प्रकाशन रोकने वाले ट्रायल कोर्ट के आदेश को भी निरस्त कर दिया। 

अंतरराष्ट्रीय मीडिया समूह 'ब्लूमबर्ग' पर 'जी एंटरटेनमेंट' के खिलाफ अपमानजनक लेख लिखने का आरोप है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने कहा, ‘‘समाचार के खिलाफ सुनवाई पूर्व निषेधाज्ञा प्रदान करने से इसे लिखने वाले की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जानकारी प्राप्त करने के लोगों के अधिकार पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।’’

सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की पीठ में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे। न्यायालय ने कहा कि यह तय किए बिना एक पक्षीय निषेधाज्ञा जारी (Ex-Parte Injunction) नहीं की जानी चाहिए कि जिस सामग्री को निषिद्ध करने का अनुरोध किया गया है वह दुर्भावनापूर्ण एवं झूठी है।  

पीठ ने कहा कि दूसरे शब्दों में मुकदमे का ट्रायल शुरू होने से पहले लापरवाही से (cavalier manner) अंतरिम निषेधाज्ञा जैसे आदेश 'सार्वजनिक बहस का गला घोंटने की तरह' हैं। सीजेआई चंद्रचूड़ की पीठ ने साफ किया कि अदालतों को असाधारण मामलों को छोड़कर एकपक्षीय निषेधाज्ञा नहीं देनी चाहिए। ऐसा करने पर मुकदमे की सुनवाई के दौरान प्रतिवादी की तरफ से बचाव में पेश की गई दलीलें निस्संदेह असफल होंगी।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि आरोप साबित होने से पहले प्रकाशित होने वाली सामग्री के खिलाफ अंतरिम निषेधाज्ञा, वह भी मुकदमा शुरू होने से पहले 'मौत की सजा' की तरह है। न्यायालय ने कहा कि मानहानि के मुकदमों में अंतरिम निषेधाज्ञा देते समय, स्वतंत्र भाषण और सार्वजनिक भागीदारी पर रोक जैसे पहलुओं पर भी ध्यान रखना चाहिए। अदालतों को लंबी मुकदमेबाजी (prolonged litigation) का उपयोग करने की क्षमता पर भी ध्यान देना चाहिए।   

शीर्ष अदालत ने कहा कि ट्रायल जज की गलती को उच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा। ट्रायल जज के आदेश में केवल यह दर्ज करना कि 'निषेधाज्ञा के लिए प्रथम दृष्टया मामला बनता है,' पर्याप्त नहीं। इसमें सुविधा के संतुलन (balance of convenience) या अपूरणीय कठिनाई (irreparable hardship) को भी अनदेखा किया गया है। ट्रायल जज के सामने तथ्यात्मक आधार और प्रतिवादी की दलीलें पेश करने के बाद ट्रायल जज को यह विश्लेषण करना चाहिए था कि इस मामले में एकपक्षीय निषेधाज्ञा क्यों जरूरी है।

पीठ ने कहा, यह एक मीडिया प्लेटफॉर्म के खिलाफ मानहानि की कार्यवाही में दी गई निषेधाज्ञा का मामला है। संवैधानिक रूप से संरक्षित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर निषेधाज्ञा का गहरा प्रभाव पड़ रहा है। इस कारण निचले अदालत के आदेश में हस्तक्षेप की जरूरत है।
  

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मीडिया संगठनों ने की फोटो पत्रकारों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई की निंदा

आम आदमी पार्टी (आप) के प्रदर्शन के दौरान दिल्ली पुलिस द्वारा फोटो पत्रकारों से कथित तौर पर हाथापाई किये जाने की मंगलवार को मीडिया संगठनों ने निंदा की

समाचार4मीडिया ब्यूरो by
Published - Wednesday, 27 March, 2024
Last Modified:
Wednesday, 27 March, 2024
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आम आदमी पार्टी (आप) के प्रदर्शन के दौरान दिल्ली पुलिस द्वारा फोटो पत्रकारों से कथित तौर पर हाथापाई किये जाने की मंगलवार को मीडिया संगठनों ने निंदा की और उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश से विषय की जांच कराने की मांग की। 

इस मामले को लेकर ‘प्रेस क्लब ऑफ इंडिया’ (पीसीआई) और ‘दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स’ ने हैरानगी जताई और उन फोटो पत्रकारों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई की निंदा की, जो राष्ट्रीय राजधानी में आप के प्रदर्शन को कवर कर रहे थे। 

‘प्रेस क्लब ऑफ इंडिया’ ने एक बयान में कहा कि वह दिल्ली पुलिस द्वारा फोटो पत्रकारों पर किये गए हमले की निंदा करता है। 

‘वर्किंग न्यूज कैमरामैन्स एसोसिएशन’ ने घटना की तस्वीरें जारी की हैं, जिनमें कुछ पुलिस अधिकारियों को फोटो पत्रकारों का गला पकड़े और अन्य को गंभीर अंजाम भुगतने की धमकी देते देखा जा सकता है।

बयान में कहा गया है, ‘‘प्रेस क्लब ऑफ इंडिया दिल्ली पुलिस के बल प्रयोग की एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश से उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग करता है ताकि पीड़ित फोटो पत्रकारों को न्याय मिले और वे पुलिस की बर्बरता का सामना किये बिना अपना पेशेवर काम कर पाएं।’’

दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स ने निर्वाचन आयोग और केंद्रीय गृह मंत्रालय से दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का आग्रह किया है।

बता दें कि आम आदमी पार्टी ने मुख्यमंत्री अरिवंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के खिलाफ प्रर्दशन का आयोजन किया था।

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दुनिया को अलविदा कह गए वरिष्ठ पत्रकार बीसी जोजो

मलयालम दैनिक 'केरल कौमुदी' (Kerala Kaumudi) के एग्जिक्यूटिव एडिटर रहे वरिष्ठ पत्रकार बीसी जोजो का संक्षिप्त बीमारी के बाद तिरुवंतपुरम के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया

Last Modified:
Tuesday, 26 March, 2024
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मलयालम दैनिक 'केरल कौमुदी' (Kerala Kaumudi) के एग्जिक्यूटिव एडिटर रहे वरिष्ठ पत्रकार बीसी जोजो का संक्षिप्त बीमारी के बाद तिरुवंतपुरम के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। वह 66 साल के थे।

अपनी खोजी रिपोर्ट्स के लिए पहचाने जाने वाले जोजो सरकारी स्तर पर भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को उजागर करने वाली कई स्टोरीज को सामने लेकर आ चुके हैं।

1985 में 'केरल कौमुदी' अखबार से जुड़ने के बाद, जोजो ने 2003 से 2012 तक एक दशक से अधिक समय तक इसके एग्जिक्यूटिव एडिटर के रूप में कार्य किया। 

जोजो के परिवार में पत्नी और दो बच्चे हैं। 

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बेहतरी की दिशा में ‘जी एंटरटेनमेंट’ के बोर्ड का बड़ा कदम, शुरू किया ‘3M’ प्रोग्राम

3एम कार्यक्रम के तहत कंपनी के बोर्ड ने मैनेजमेंट की बिजनेस परफॉर्मेंस की समीक्षा करने और आवश्यक दिशा-निर्देश प्रदान करने के लिए एक विशेष समिति का गठन भी किया है।

Last Modified:
Tuesday, 26 March, 2024
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‘जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज लिमिटेड’ (ZEEL) के बोर्ड ने ‘मंथली मैनेजमेंट मेंटरशिप’ (3M) प्रोग्राम शुरू किया है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य मैनेजमेंट टीम को एमडी और सीईओ द्वारा लक्षित 20% EBITDA मार्जिन सहित प्रमुख मेट्रिक्स प्राप्त करने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करना और सक्षम बनाना है।

कंपनी द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, ‘ZEE’  के चेयरमैन आर. गोपालन के नेतृत्व में यह कदम सभी हितधारकों को उच्च मूल्य प्रदान करने के प्रति बोर्ड की अटूट प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है। प्रेस और निवेशकों के साथ अपनी हालिया बातचीत में गोपालन ने कंपनी के सभी हितधारकों के हितों की रक्षा के लिए बोर्ड द्वारा अपनाए गए विस्तृत दृष्टिकोण को मजबूती से रखा है। 3एम कार्यक्रम की स्थापना इस दिशा में एक मजबूत कदम है।

3एम कार्यक्रम के तहत कंपनी के बोर्ड ने मैनेजमेंट की बिजनेस परफॉर्मेंस की समीक्षा करने और आवश्यक दिशा-निर्देश प्रदान करने के लिए एक विशेष समिति का गठन किया है। विशेष समिति में ‘ZEE’ के चेयरमैन आर. गोपालन और ऑडिट समिति के चेयरमैन उत्तम प्रकाश अग्रवाल शामिल हैं।

3एम प्रोग्राम की विशेष समिति ने बिजनेस वर्टिकल योजनाओं का मूल्यांकन करने, रेवेन्यू जुटाने के दृष्टिकोण और कंपनी में बेहतर दक्षता के लिए संसाधनों के उपयोग को अनुकूलित करने के लिए मैनेजमेंट के साथ व्यापक समीक्षा सत्रों का पहला दौर शुरू कर दिया है।

3M कार्यक्रम के पहले चरण के पूरा होने के बाद ZEE के चेयरमैन आर. गोपालन ने कहा, ‘विभिन्न व्यावसायिक कार्यक्षेत्रों, कॉर्पोरेट कार्यों और मैनेजमेंट टीम के लीडर्स के साथ 33 बैठकों के दौर के बाद, लक्षित परिणाम देने की कंपनी की क्षमता में हमारा विश्वास निश्चित रूप से और मजबूत हुआ है। कंपनी के एमडी और सीईओ के रूप में पुनीत गोयनका के कुशल नेतृत्व में बिजनेस अच्छी तरह से संरेखित हैं और भविष्य के लिए निर्धारित लक्ष्यों की ओर केंद्रित हैं। समिति ने बिजनेस लीडर्स को अपने स्वतंत्र, तटस्थ और नए विचार प्रदान किए हैं, जिससे वे अपनी दक्षता और प्रदर्शन को और बेहतर बनाने में सक्षम हो सकें। बोर्ड ने एमडी और सीईओ को मैनेजमेंट स्ट्रक्चर को और सरल बनाने व ह्यूमन कैपिटल (मानव पूंजी) के उपयोग को अनुकूलित करने की भी सलाह दी है।’

3एम कार्यक्रम की विशेष समिति ने उन बिजनेस क्षेत्रों की भी पहचान की है जिनके लिए एक महत्वपूर्ण मूल्यांकन की आवश्यकता है। इनमें 1) Margo Networks (Sugarbox), 2) Teleplay & Zindagi, 3) Hipi, 4) Weyyak और 5) English Cluster of Linear TV Business शामिल हैं।

विशेष समिति ने सलाह दी है कि पहचाने गए बिजनेस क्षेत्रों को घाटे को काफी हद तक कम करने और अपने प्रदर्शन के स्तर को बढ़ाने की आवश्यकता है। 3एम प्रोग्राम स्पेशल कमेटी ने ‘टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन सेंटर’ (TIC) का विस्तृत मूल्यांकन भी किया, जिस पर लगभग 600 करोड़ रुपये का खर्च आया था। विशेष समिति ने गेमिंग और उत्पाद विकास के क्षेत्र में ‘टीआईसी’ द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना की, लेकिन उसका यह भी मानना ​​है कि कई विकास परियोजनाएं अपनी परिपक्वता के स्तर तक पहुंच गई हैं।

समिति ने सलाह दी है कि मैनेजमेंट को अपनी मूल विशेषज्ञता, लोकाचार और डीएनए यानी कंटेंट पर ध्यान केंद्रित रखना चाहिए। इसलिए, इसने प्रबंधन को अपनी सामग्री विकास और वितरण प्रक्रिया को बढ़ाने के लिए ‘टीआईसी’ की सेवाओं का उपयोग करने की सलाह दी है। 3एम कार्यक्रम की विशेष समिति ने कंपनी के म्यूजिक बिजनेस की भी समीक्षा की है और अपनी लीडरशिप टीम को मुद्रीकरण के तरीकों को बढ़ाने और बाद में कंपनी की निचली रेखा में कार्यक्षेत्र के योगदान को बढ़ाने की सलाह दी है।

कंपनी की ओर से जारी विज्ञप्ति में यह भी कहा गया है कि 15 मार्च 2024 को शेयरधारकों की मंजूरी के बाद तीन स्वतंत्र निदेशकों की हालिया नियुक्ति कंपनी के बोर्ड में शेयरधारकों के विश्वास को रेखांकित करती है। बोर्ड इस दिशा में आगे बढ़ते हुए कंपनी के निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने की दिशा में मैनेजमेंट को मार्गदर्शन और सलाह प्रदान करने की अपनी प्रतिबद्धता पर कायम है।

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इस अहम पद पर 'माइंडशेयर' से जुड़े प्रियदर्शी बनर्जी

प्रियदर्शी बनर्जी को माइंडशेयर, 'ग्रुपएम' (GroupM) में प्रिंसिपल पार्टनर/ लीड- कंटेंट+ (यूनिलीवर) के रूप में नियुक्त किया गया है।

Last Modified:
Tuesday, 26 March, 2024
PriyadarshiBanerjee884521

प्रियदर्शी बनर्जी को माइंडशेयर, 'ग्रुपएम' (GroupM) में प्रिंसिपल पार्टनर/ लीड- कंटेंट+ (यूनिलीवर) के रूप में नियुक्त किया गया है। उन्होंने लिंक्डइन पर इस खबर की घोषणा की। उनके लिंक्डइन पोस्ट में लिखा है, "मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि मैं माइंडशेयर, ग्रुपएम में प्रिंसिपल पार्टनर/लीड - कंटेंट+ (यूनिलीवर) के तौर पर एक नई शुरुआत कर रहा हूं।"

इससे पहले, प्रियदर्शी बनर्जी कोफ्लुएंस (Kofluence) में अकाउंट मैनेजमेंट में वाइस प्रेजिडेंट के तौर पर कार्यरत थे।

प्रियदर्शी एक क्रॉस-फंक्शनल लीडर हैं, जो ब्रैंड मैनेजमेंट, बिजनेस डेवलपमेंट, ग्रोथ हैकिंग, कंटेंट स्ट्रैटेजी, डायरेक्ट-टू-कंज्यूमर मार्केटिंग, कैंपेन मैनेजमेंट आदि में विशेषज्ञता रखते हैं।

अपने पिछले कार्यकाल में, प्रियदर्शी बनर्जी ने नियोमा वेंचर्स, वन डिजिटल एंटरटेनमेंट, बेनेट कोलमैन एंड कंपनी लिमिटेड (टाइम्स ग्रुप) सहित अन्य कंपनियों के साथ काम किया है।

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enba 2023: विजेताओं के नाम से 30 मार्च को उठेगा पर्दा

इससे पहले सुबह नौ बजे से ‘न्यूज नेक्स्ट’ (News Next) 2024 कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया जाएगा, जिसमें मीडिया इंडस्ट्री से जुड़े प्रमुख मुद्दों पर जाने-माने पत्रकार और इंडस्ट्री लीडर्स अपनी बात रखेंगे।

Last Modified:
Tuesday, 26 March, 2024
enba

‘एक्सचेंज4मीडिया’ समूह द्वारा प्रत्येक वर्ष दिए जाने वाले बहुप्रतिष्ठित ‘एक्‍सचेंज4मीडिया न्‍यूज ब्रॉडकास्टिंग अवॉर्ड्स’ (enba) 2023 के विजेताओं के नाम से जल्द पर्दा उठने वाला है। 30 मार्च 2024 को दिल्ली स्थित ‘द इंपीरियल’ (The Imperial) होटल में होने वाले एक समारोह में इन विजेताओं के नामों की घोषणा की जाएगी और उन्हें सम्मानित किया जाएगा। इससे पहले सुबह नौ बजे से ‘न्यूज नेक्स्ट’ (News Next) 2024 कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया जाएगा, जिसमें मीडिया इंडस्ट्री से जुड़े प्रमुख मुद्दों पर जाने-माने पत्रकार और इंडस्ट्री लीडर्स अपनी बात रखेंगे। इनबा का 16वां एडिशन है।

बता दें कि इन अवॉर्ड्स के तहत विभिन्न श्रेणियों में तमाम एंट्रीज में से विजेताओं का चुनाव करने के लिए 19 मार्च 2024 को दिल्ली के ‘द लीला पैलेस’ होटल में जूरी मीट का आयोजन किया गया था। इस जूरी में समाज के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े प्रतिष्ठित नाम शामिल हुए।

enba 2023: तस्वीरों में देखिए जूरी मीट की झलकियां

गौरतलब है कि वर्ष 2008 में अपनी शुरुआत के बाद से ही हर साल ये अवॉर्ड्स मीडिया में कार्यरत उन शख्सियतों को दिए जाते हैं, जिन्‍होंने देश में टेलिविजन न्‍यूज इंडस्‍ट्री को एक नई दिशा दी है और अपने योगदान से इस इंडस्‍ट्री को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है।

इसके तहत बेस्ट न्यूज चैनल ऑफ द ईयर इन हिंदी/अंग्रेजी से लेकर बेस्ट सीईओ ऑफ द ईयर और बेस्ट एडिटर-इन-चीफ जैसी कई श्रेणियों में अवॉर्ड दिए जाते हैं। इनबा के 15वें एडिशन में चेयरपर्सन की भूमिका देश के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने निभाई थी।

पूर्व के वर्षों में इनबा की जूरी में हरिवंश नारायण सिंह-राज्य सभा के डिप्टी चेयरमैन;  डॉ. किरण कार्णिक-पूर्व प्रेजिडेंट, नैसकॉम; डॉ. नसीम जैदी-भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त; एस.वाई. कुरैशी-भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त;  एन. राम-चेयरमैन, कस्तूरी एंड संस लिमिटेड, पूर्व एडिटर-इन-चीफ द हिंदू एंड ग्रुप न्यूजपेपर्स; संजय गुप्ता-मैनेजिंग डायरेक्टर, स्टार इंडिया जैसे जाने-माने नाम शामिल रहे हैं।

विजेताओं का चयन करने के लिए 19 मार्च को हुई जूरी मीट में ये प्रमुख नाम शामिल रहे।

  NAME DESIGNATION  COMPANY
1 Acharya Praveen Chauhan Astrologer, Palmist, Occultist, Author, Research Scholar(Psychology)  
2 Acharya Shailesh Tiwary Vedic Tantra Guru  
3 Alok Mehta (Padma Shri) Former President EGI  
4 Amit Gujral Chief Marketing Officer JK Tyre & Industries Ltd.
5 Anu Sehgal Founder Digital Mill Consultants and Social Media Influencer
6 Anurag Bhadouria National Spokesperson Samajwadi Party
7 Arjan Kumar Sikri Jurist and Former Judge  
8 Ashish Shelar President Maharashtra BJP  
9 Atif Rasheed National Executive Member Bharatiya Janata Party OBC Morcha
10 Atul Hegde Co-founder Rainmaker Ventures
11 Charu Pragya Spokesperson BJP
12 Deepali Naair Group CMO CK Birla Group
13 Dhanendra Kumar Chairman Competition Advisory Services (India) LLP
14 Dikshu C. Kukreja Honorary Consul General of The Republic of Albania, New Delhi  
15 Dr Arvind Kumar Goel Renowned Educationist and Philanthropist  
16 Dr. Amit Goel Editorial Director The Pioneer
17 Dr. Annurag Batra Chairman & Editor in chief exchange4media & Businessworld
18 Dr. Bhuvan Lall Author & Film Producer  
19 Dr. Shama Mohamed National Spokesperson Indian National Congress
20 Dr. Vishal Talwar Director IMT Ghaziabad
21 Gaurav Khullar Honorary Emeritus, Khullar Group of Companies & Enterpreneur  
22 Harsha Razdan CEO - South Asia Dentsu
23 Harvannsh Chawla Founder & Managing Partner K R Chawla & Co. Advocates
24 Ishank Joshi CEO Mobavenue Media
25 Jaiveer Shergill National Spokesperson BJP
26 Jamal Shaikh Chief Operating Officer - Lifestyle Media Businesses RP Sanjiv Goenka Group
27 Janardan Pandey Founder & Managing Director Nett Value Media
28 Kunal Katyal Managing Director Konig Group
29 Kunal Tandon Counsel, Delhi High Court and Supreme Court of India  
30 M.Q. SYED C.M.D. Exhicon Events Media Solutions Ltd.
31 Markand Adhikari Chairman & MD SRI ADHIKARI BROTHERS (SABGROUP)
32 Mohit Saraf Founder & Managing Partner Saraf and Partners
33 Namita Chaddha Founder & Managing Partner Chadha & Co.
34 Naziya Alvi Rahman Editor exchange4media
35 Noor Fathima Warsia Group Editorial Director BW Businessworld
36 Pramod Dubey Senior Advocate Supreme Court of India
37 Prateek Bhatt Writer, Astrologer, Face Reader, Numerologist, Spiritual Guru  
38 Pulkit Narayan
Founder & CEO
DangleAds Technologies
39 Rahul Suri Founder Rabaan Enterprises
40 Rajeev Jain Sr. Vice President- Corporate Marketing DS Group
41 Rajesh Lalwani CEO Scenario Consulting
42 Rajiv Dubey Senior GM Head of Media Dabur India
43 Rohit Ohri FCB Global Partner  
44 Ruby Sinha Founder, sheatwork.com and President, BRICS CCI WE  
45 S. Ravi Managing Partner Ravi Rajan & Company,Chairman- TFCI
46 Salil Kapoor Independent director on board , ESSCI ( Electronic Sector Skill Council of India )  
47 Sandeep Dahiya Founder & CEO Branquila Brand Ventures
48 Sandeep Mahajan Chairman & Managing Director Goodyear India Limited
49 Saurav Banerjee Managing Director & Founder MyyTake
50 Shalabh Mani Tripathi Media Advisor, Hon. CM, Uttar Pradesh  
51 Shashank Bajpai Counsel for Union of India Supreme Court and Managing Partner Vardharma chambers  
52 Shazia Ilmi National Spokesperson BJP
53 Shivani Malik Founder Mother's Kitchen
54 Shubhranshu Singh Chief Marketing Officer Tata Motors CV
55 Sudhir Mishra Founder & Managing Partner Trust Legal
56 Suman Saraf Managing Director Radha TMT
57 Sunil Bhargava IAS (Retired) and Cultural Entrepreneur  
58 Sunil Chauhan Founder Fabcafe by Fabindia
59 Syed Zafar Islam Former MP Rajya Sabha
60 Vaibhav Dange Former Advisor National Highways Authority of India, Ministry of Road Transport & Highways
61 Vandana Bhargava Founder and Chairperson House of VSB
62 Veer Sagar Chairman Selectronic India
63 Vinit Goenka Spokesperson BJP Delhi
64 Vinod Agnihotri Consulting editor Amar Ujala
65 Sanjay Jha Head of Newsgathering (South Asia) ITV News, London
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‘Dish TV’ के शेयरहोल्डर्स ने खारिज की तीन इंडिपेंडेंट डायरेक्टर्स की उम्मीदवारी: रिपोर्ट

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, शेयरधारकों की एक्सट्रा-ऑर्डिनरी जनरल मीटिंग (EGOM) में सुनील खन्ना, सोनल बंकिम पारेख और रवि भूषण पुरी की दावेदारी के खिलाफ 80 प्रतिशत वोट पड़े

Last Modified:
Saturday, 23 March, 2024
Dish TV

भारत की डायरेक्ट-टू-होम टेलीविजन सर्विस प्रोवाइडर कंपनी ‘डिश टीवी’ (Dish TV) के शेयरहोल्डर्स ने तीन इंडिपेंडेंट डायरेक्टर्स की उम्मीदवारी को खारिज कर दिया है।

मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से मिली इस खबर के अनुसार, डिश टीवी कंपनी के शेयरधारकों की एक्सट्रा-ऑर्डिनरी जनरल मीटिंग (EGOM) में यह निर्णय लिया गया। इस मीटिंग में डायरेक्टर के रूप में सुनील खन्ना, सोनल बंकिम पारेख और रवि भूषण पुरी की दावेदारी के खिलाफ 80 प्रतिशत वोट पड़े।

बता दें कि कंपनी के बोर्ड से अब तक 16 डायरेक्टर्स को बाहर किया जा चुका है। पिछले साल दिसंबर में डिश टीवी के शेयरधारकों ने चार स्वतंत्र निदेशकों की उम्मीदवारी को खारिज कर दिया था। उस समय डिश टीवी प्रभावी रूप से फंक्शनल बोर्ड के बिना हो गया था।

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‘Pocket FM’ ने जुटाई 103 मिलियन डॉलर की बड़ी फंडिंग

डी-सीरीज के तहत जुटाई गई इस फंडिंग का नेतृत्व ‘लाइटस्पीड वेंचर्स’ (Lightspeed Ventures) ने किया है, जिसमें ‘स्टेपस्टोन ग्रुप’ (Stepstone Group) भी भागीदारी निभा रहा है।

Last Modified:
Thursday, 21 March, 2024
Pocket FM

‘पॉकेट एफएम’ (Pocket FM) ने अपनी डी-सीरीज फंडिंग के तहत 103 मिलियन डॉलर का फंड जुटाया है। कंपनी को करीब 750 मिलियन डॉलर के वैल्यूएशन पर फंडिंग मिली है। यह 390 मिलियन डॉलर की तुलना में लगभग दोगुना है, जब इससे पहले मार्च 2022 में इसने अपने सी-सीरीज राउंड में 65 मिलियन डॉलर जुटाए थे।

इस राउंड की फंडिंग का नेतृत्व ‘लाइटस्पीड वेंचर्स’ (Lightspeed Ventures) ने किया है, जिसमें ‘स्टेपस्टोन ग्रुप’ (Stepstone Group) भी भागीदारी निभा रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस फंडिंग से पॉकेट एफएम की कुल फंडिंग 196.5 मिलियन डॉलर हो गई है।

इस फंडिंग के बारे में ‘पॉकेट एफएम’ के को-फाउंडर और चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर रोहन नायक का कहना है, ‘आज हम पॉकेट एफएम के लिए एक बड़े मील के पत्थर की घोषणा करते हुए काफी उत्साहित हैं। हमने सीरीज-डी फंडिंग में 103 मिलियन डॉलर हासिल किए हैं। यह बड़ी उपलब्धि न केवल हमारे विजन में निवेशकों के विश्वास को बताती है, बल्कि ऑडियो एंटरटेनमेंट की दुनिया में क्रांति लाने के हमारे दृढ़ संकल्प को भी नई ऊर्जा देती है।’

‘पॉकेट एफएम’ का कहना है कि वह अपनी कंटेंट लाइब्रेरी को बढ़ाने और अपने राइटर्स के लिए एक मजबूत आईपी प्लेबुक बनाने के अलावा, अमेरिका में अपनी मौजूदगी को मजबूत करने के साथ-साथ यूरोप और लैटिन अमेरिकी मार्केट्स में विस्तार करने के लिए धन का उपयोग करने की योजना बना रहा है।

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