भारतीय टीवी न्यूज मीडिया और ऐडवर्टाइजर्स आज मीडिया योजनाओं और बजट की रणनीति बनाने के लिए ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल (BARC) इंडिया द्वारा जारी किए गए आंकड़ों पर पूरी तरह भरोसा करते हैं।
इसलिए, कई लोग एकाधिक रेटिंग सिस्टम रखने का सुझाव देते हैं, जो विभिन्न डेमोग्राफिक्स में व्युअरशिप पैटर्न्स की अधिक सूक्ष्म समझ की अनुमति देता है।
पीटीसी नेटवर्क के एमडी व प्रेजिडेंट रबिन्द्र नारायण, जी मीडिया की चीफ रेवेन्यू ऑफिसर मोना जैन और ओमनिकॉम मीडिया ग्रुप के ग्रुप सीईओ कार्तिक शर्मा का मानना है कि मल्टी-रेटिंग सिस्टम प्रतिस्पर्धा के बीच उत्कृष्टता को बढ़ावा देगी।
दूसरी ओर, एकाधिक रेटिंग सिस्टम्स ब्रॉडकास्टर्स के साथ-साथ ऐडवर्टाइजर्स के लिए बढ़ी हुई जटिलताएं, रेटिंग में संभावित विसंगतियां और उच्च लागत जैसी चुनौतियां भी पेश कर सकती हैं।
रेटिंग की वर्तमान प्रणाली "त्रुटिपूर्ण" और "पक्षपाती है, क्योंकि इसे मुट्ठी भर लोगों द्वारा नियंत्रित किया जाता है", यह इंडस्ट्री के दिग्गजों का विचार था, जिन्होंने केवल एक के बजाय कई रेटिंग एजेंसियों की जरूरत पर जोर दिया, क्योंकि वर्तमान में एकमात्र रेटिंग एजेंसी BARC है और इसकी वकालत करने वाले दिग्गजों का यह कहना है कि 'एकाधिकार लोगों को आत्मसंतुष्ट बना देता है।'
डिबेट के दौरान, चीजें तब और प्रबल हो गईं जब कुछ पैनलिस्ट्स, जो एकाधिक रेटिंग सिस्टम के प्रस्ताव के लिए बोल रहे थे, ने BARC रेटिंग पर सवाल उठाया, खासकर न्यूज चैनल्स के लिए, यह कहते हुए कि पॉलीटिशियन न्यूज चैनल्स पर विज्ञापन देने के लिए पैसा खर्च तो करते हैं, लेकिन जनरल एंटरटेनमेंट चैनल्स पर नहीं, यह इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि यह जॉनर BARC द्वारा दी गई रेटिंग से कहीं बेहतर प्रदर्शन कर रही है।
एकाधिक रेटिंग सिस्टम के प्रस्ताव के खिलाफ अपने-अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए स्ट्रैटजिक मार्केटिंग व मीडिया कंसल्टेंट चिंतामणि राव, डाबर इंडिया के मीडिया हेड राजीव दुबे और भारत एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क के डायरेक्टर व सीईओ वरुण कोहली नई दिल्ली में e4m की मीडिया डिबेट में शामिल हुए। BW बिजनेसवर्ल्ड मीडिया ग्रुप के चेयरमैन व एडिटर-इन-चीफ और e4m ग्रुप के फाउंडर डॉ. अनुराग बत्रा ने डिबेट की अध्यक्षता की।
जी मीडिया की चीफ रेवेन्यू ऑफिसर मोना जैन ने डिबेट की शुरुआत करते हुए कहा, “एक ऐडवर्टाइजर्स की निर्भरता एजेंसी के माध्यम से एक विशेष मीडिया प्लान लेने पर होती है। दूसरी ओर, ब्रॉडकास्टर पूरी तरह से मीजरमेंट सिस्टम की दया पर निर्भर है, जो यह तय करता है कि आपकी क्या रैंक हैं। मुद्दा यह है कि कोई यह नहीं देखता कि जमीनी हकीकत क्या है। इसलिए, मैंने एजेंसियों और ऐडवर्टाइजर्स से यह कहना शुरू कर दिया है कि वे मेरे डिजिटल प्लेटफॉर्म की रैंकिंग को भी देखें, लेकिन BARC की रेटिंग अभी भी उनके लिए महत्वपूर्ण वैल्यू रखती है।
उन्होंने आगे सुझाव दिया कि हमारे पास एक प्रमाणित, मान्य, स्वीकृत करेंसी होनी चाहिए जिसे ऐडवर्टाइजर्स और एजेंसियों द्वारा भी मान्यता प्राप्त और मूल्यवान माना जाए।
विरोधी रुख पेश करते हुए स्ट्रैटजिक मार्केटिंग व मीडिया कंसल्टेंट चिंतामणि राव ने समझाया, "BARC और इसकी कार्यप्रणाली के बारे में कई संदेह हैं लेकिन मैं इस बात पर कायम हूं कि ऑडियंस मीजरमेंट सरकार का काम नहीं है।"
अंत में, यह चर्चा वेंडर्स की संख्या को लेकर नहीं होनी चाहिए बल्कि यह इस बात पर होनी चाहिए कि इसे कैसे मैनेज किया जाता है। उन्होंने कहा कि मुख्य मुद्दा यह है कि BARC पर उसके एक घटक का प्रभुत्व है और उसी को मापा जा रहा है।
इस दौरान चिंतामणि राव से सवाल किया गया कि यदि ऐडवर्जाइजर्स का पैसा पूरे मीडिया इकोसिस्टम को ईंधन देता है, तो उन्होंने 60 प्रतिशत पर इंडियन ब्रॉडकास्टिंग एंड डिजिटल फाउंडेशन (IBDF) के साथ एक स्ट्रक्चर क्यों स्वीकार किया?"
इस पर डिबेट में शामिल हुए ओमनिकॉम मीडिया ग्रुप के ग्रुप सीईओ कार्तिक शर्मा ने कहा कि यदि हम कुछ समय के लिए इंडस्ट्री को भूल जाएं, तो हमें NSE और BSE की जरूरत क्यों है? हमें CIBIL और Experian की आवश्यकता क्यों है? इसका संक्षिप्त उत्तर इनोवेशन और कम्पटीशन है। यदि कोई कम्पटीशन ही नहीं होगा, तो हम जिस भी कैटेगरी में काम करेंगे, उस हर एक कैटेगरी में एक ब्रैंड होगा।
उन्होंने कहा कि यहां तक कि संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे मार्केट में भी, जहां सबसे बड़ा AdEx मार्केट है, दो सिस्टम्स हैं। यहां तक कि यूके, ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया, फिलीपींस और कई अन्य देशों में भी दो ऑडियंस मीटरमेंट सिस्टम्स हैं। भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश में दो सिस्टम्स बेहतर सैम्पलिंग और सेगमेंटेशन में मदद करेंगी।
इसके बाद डाबर इंडिया के मीडिया हेड राजीव दुबे ने मंच संभाला और बताया कि कैसे एक, दो या एकाधिक रेटिंग सिस्टम एक ऐडवर्टाइजर्स के लिए मायने नहीं रखते। आखिरकार, इससे ब्रैंड को बेचने में मदद मिलनी चाहिए। उनका उद्देश्य कंज्युमर्स तक सबसे सस्ते तरीके से पहुंचना है।
उन्होंने कहा कि BARC का विचार एक मजबूत सिस्टम बनाना था, जो सभी को अच्छी तरह से माप सके। क्या हम ऐसा करने में सक्षम हैं? शायद हां भी या शायद नहीं भी।
बदलते समय के साथ, दर्शकों की जरूरतें बदल गई हैं और NCCS एक ऐसी प्रणाली थी जो कंज्युमर्स ड्यूरेबल्स के स्वामित्व के आधार पर लोगों के वर्ग को मापती थी। लेकिन अब, नया प्रस्तावित ISEC उन कमियों को पूरा करता है।
कंज्युमर्स ने भी डिजिटल और ओटीटी की ओर अधिक ध्यान देते हुए विभिन्न प्लेटफॉर्म्स पर कंटेंट को कंज्यूम करना शुरू कर दिया है। राजीव दुबे का मानना है, “हम अभी तक उस दर्शक वर्ग का सही आकलन नहीं कर पाए हैं। इसलिए, भारतीय टीवी इंडस्ट्री को एक सिस्टम की जरूरत है और उस सिस्टम को इस तरह से मजबूत करने की जरूरत है कि वह टीवी और डिजिटल दर्शकों को समान रूप से माप सके।
मल्टीपल ऑडियंस मेजरमेंट सिस्टम होने पर डाबर के प्रवक्ता ने कहा, "समस्या को हल करने के लिए, आपको दूसरी समस्या नहीं बनानी चाहिए, बल्कि समस्या को ठीक करना चाहिए।" पीटीसी के रबिन्द्र नारायण, जो प्रस्ताव के पक्ष में खड़े थे, ने कहा, “तथ्य यह है कि हम यहां खड़े हैं और इस मुद्दे पर चर्चा कर रहे हैं, तो इसका मतलब है कि मौजूदा प्रणाली में विश्वास और विश्वसनीयता की कमी है। हम यह भी आधार बना रहे हैं कि टीवी रेटिंग्स से हमारा तात्पर्य केवल लीनियर टीवी रेटिंग्स से है क्योंकि BARC यही करता है।
उन्होंने आगे बताया कि BARC इमेज मैपिंग के जरिए मीटरमेंट करता है और इसलिए, जब कोई चैनल किसी भी प्लेटफॉर्म पर अपना वॉटरमार्क डालता है, तो यह BARC के लिए मापने योग्य हो जाना चाहिए क्योंकि उनके पास पहले से ही इसकी तकनीक है।
उन्होंने कहा कि तो फिर वे ऐसा क्यों नहीं करते? क्योंकि उन्हें अधिक निवेश की नहीं बल्कि एनालिसिस पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। समस्या यह है कि इकोसिस्टम उन रेटिंग्स के विस्तार की अनुमति नहीं दे रहा है।
आज, BARC का कहना है कि 100 में से 9 लोग PTC देखते हैं, जो असंभव है और ऐडवर्टाइजर्स तदनुसार ऐड रेट्स के लिए मोलभाव करते हैं। चैनल आज भी अच्छे शो में निवेश कर रहे हैं, लेकिन BARC के डेटा के कारण ऐडवर्टाइजर्स की दिलचस्पी कम है। यदि इसमें कोई सच्चाई है, तो PTC जैसे खिलाड़ी एकाधिक रेटिंग सिस्टम के लिए क्यों नहीं लड़ेंगे?
इस दौरान मोना जैन ने कहा, “जब चंद्रयान लॉन्च किया गया था, तो दुनिया और भारत में हर कोई इसे देख रहा था, लेकिन यदि आप BARC डेटा देखें, तो उस विशेष सप्ताह में न्यूज जॉनर की रेटिंग कम हुई थी। क्या यह संभव है? न्यूज जॉनर को लेकर BARC जो रेटिंग्स का अनुमान लगा रही है, तो रेटिंग्स उससे कहीं अधिक है।
चंद्रयान के लॉन्च वाले दिन भी, BARC डेटा में कोई उछाल नहीं आया। मोना जैन और रबिन्द्र नारायण दोनों का मानना है कि मौजूदा सिस्टम त्रुटिपूर्ण और पक्षपाती है क्योंकि इसे मुट्ठी भर लोगों द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
रबिन्द्र नारायण ने कहा, “तथ्य यह है कि हम यह चर्चा कर रहे हैं, इसका तात्पर्य यह है कि मौजूदा सिस्टम में विश्वास की कमी है। इसमें विश्वसनीयता का अभाव है। BARC केवल लीनियर टीवी का विश्लेषण करता है, जो सैटेलाइट और केबल के माध्यम से प्रसारित किया जाता है। आज टीवी देखना सिर्फ लीनियर टीवी नहीं है, इसके कई रूप हैं जैसे कनेक्टेड टीवी और फास्ट टीवी एक ही स्क्रीन पर आते हैं, लेकिन BARC इसे माप नहीं रहा है।''
नारायण ने आगे कहा कि अब समय आ गया है कि कुछ नया किया जाए और केवल टेलीविजन रेटिंग पॉइंट्स के बजाय कंटेंट रेटिंग पर ध्यान दिया जाए।
उन्होंने का कि BARC के अनुसार, पूरे देश में न्यूज जॉनर की पहुंच 6-7% है, यदि यह सच है तो राजनेता न्यूज चैनलों पर विज्ञापन पर खर्च करने के लिए ही क्यों उत्सुक हैं? जनरल एंटरटेनमेंट चैनलों पर क्यों नहीं? इस बाइबिल (BARC) जो कि कबाड़ है, के आधार पर ऐडवर्टाइजर्स द्वारा अधिकतम कंज्युमर्स तक पहुंचने के लिए सारा पैसा क्यों खर्च किया जाता है? जब तकनीक और सिस्टम बदल रहे हैं तो हम टीवी रेटिंग पॉइंट्स के लिए क्यों लड़ रहे हैं, कंटेंट रेटिंग पॉइंट्स के लिए क्यों नहीं?
उन्होंने तर्क दिया, “रेटिंग की वर्तमान प्रणाली (BARC द्वारा) त्रुटिपूर्ण और पक्षपाती है, क्योंकि इसे मुट्ठी भर लोगों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। ब्रॉडकास्टर लॉबी को चार व्यावसायिक घरानों द्वारा नियंत्रित किया जाता है, इसलिए यह हमेशा उनके पक्ष में रहेगा। डेटा भी यही दिखाता है।''
भारत एक्सप्रेस के वरुण कोहली ने कहा, “BARC अस्तित्व में आया क्योंकि पब्लिशर्स एक अलग रेटिंग प्रणाली चाहते थे और फिर एक तंत्र की कल्पना की गई। अब, उस प्रणाली पर सिर्फ इसलिए सवाल उठाना क्योंकि रेटिंग सही अनुपात में नहीं है या यह डिजिटल दर्शकों को मैप नहीं करती है और इसके अलावा एक अलग निकाय की ही मांग करना, मुझे नहीं लगता कि यह सही तरीका है।
समाधान के तौर पर उन्होंने सुझाव दिया कि इंडस्ट्री को एक साथ आने और BARC के साथ अधिकार क्षेत्र का उपयोग करने की जरूर है ताकि उन्हें बताया जा सके कि और क्या चाहिए और वे कहां बेहतर हो सकते हैं।
चिंतामणि राव ने यह भी सुझाव दिया कि एकाधिक खिलाड़ियों के बजाय एक एग्रीगेटर रखना बेहतर है। उस स्थिति में, एग्रीगेटर डेटा प्रदाता भी बन सकता है। BARC हमेशा विभिन्न स्रोतों से कई डेटा एकत्र कर सकता है और उसे प्रस्तुत कर सकता है।
दर्शकों की सही ढंग से मैपिंग करने से भी एक तरह से समस्या का समाधान हो जाएगा, जो प्रमुख रूप से ISEC के साथ किया जाएगा। राजीव दुबे ने कहा, यूनिफाइड मीजरमेंट होना भी एक अन्य समाधान है।
वहीं, कार्तिक शर्मा के अनुसार, “एक से अधिक खिलाड़ी होने से निश्चित रूप सेमे नवीनता को बढ़ावा मिलेगा और थोड़ी प्रतिस्पर्धा होगी, जो अच्छी है। अलग-अलग रेटिंग सिस्टम अलग-अलग लक्ष्य खंडों, समूहों और अन्य पर भी ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
“हमें स्क्रीन पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है, न कि लीनियर टीवी या डिजिटल पर। यह एक स्क्रीन-आधारित दुनिया है और लोग केवल वही कंटेंट देख रहे हैं, जो उनके लिए सार्थक है। इसलिए विभिन्न प्रकार के उपभोगों के लिए विभिन्न प्रकार के मीजरमेंट की आवश्यकता है। मेरा तर्क है कि इनोवेशन महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सही समय है।
उन्होंने कहा कि कंज्युमर मोबाइल या टीवी सेट के माध्यम से स्क्रीन को देख रहा है। हम इसे कैसे माप रहे हैं? कुछ प्रतिस्पर्धा होना बेहतर है। यह मानसिकता रखना महत्वपूर्ण है कि एक प्रणाली दूसरे की कैसे मदद कर सकती है। मौजूदा प्रणाली गलत नहीं है, लेकिन नई प्रणाली हमारे पास जो कुछ है उसे बढ़ा सकती है।
रबिन्द्र नारायण ने निष्कर्ष निकाला कि टेलीविजन देखने और इसके इस्तेमाल के तरीकों में बदलाव आया है। या तो BARC बदलते समय के अनुरूप आगे बढ़े या दूसरों को आगे आकर इस अंतर को भरना चाहिए। मार्केट की ताकतें ही तय करेंगी कि कौन रहेगा और कौन जाएगा, किसका डेटा प्रामाणिक है और किसका नहीं। लिहाजा यहां चर्चा की कोई जरूरत ही नहीं है।”