Women make up 50% of the world, but only 26% of news.
This is about more than news.
It’s about #GenderEquality, democracy, and the right of every woman to have her voice heard.
? See the findings from a new global study: https://t.co/fqgcSIfBbf#Beijing30… pic.twitter.com/owAmvFLNqt
माडी ने कहा कि मीडिया में महिलाओं की कम मौजूदगी और गलत ढंग से पेश किया जाना एक गंभीर समस्या है। यदि इसे समय रहते नहीं समझा गया तो आने वाली पीढ़ियों के लिए लोकतांत्रिक मूल्यों को बचाना मुश्किल हो जाएगा।
महिलाओं की असली भूमिका
संयुक्त राष्ट्र के आकलनों के मुताबिक, कई देशों में अधिकार सीमित होने के बावजूद महिलाएं समुदाय की पहलों का नेतृत्व कर रही हैं, शिक्षा में योगदान दे रही हैं और मुश्किल हालात में भी समाज और अर्थव्यवस्था को मजबूती दे रही हैं।
अफगानिस्तान के कुंदुज प्रांत की मेहरगन एक महिला संगठन चलाती हैं। इस संगठन ने पहले सैकड़ों महिलाओं को प्रशिक्षण दिया और स्थानीय एनजीओ का समर्थन किया था। लेकिन 2022 में फंड और स्टाफ की भारी कमी आ गई। बाद में यूएन वीमेन के सहयोग से यह संगठन फिर से मजबूत हुआ और अब दूसरे महिला समूहों को भी खड़ा होने में मदद कर रहा है।
रिपोर्ट के मुताबिक, जब मीडिया सिर्फ महिलाओं की पीड़िता वाली छवि दिखाता है, तो उनके नेतृत्व और असली योगदान पर पर्दा पड़ जाता है। मेहरगन जैसी कहानियां बताना जरूरी है ताकि जनता और नीति-निर्माता सिर्फ समस्याएं ही नहीं, बल्कि उन समाधानों को भी देखें जिन्हें महिलाएं खुद बना रही हैं।
समानता की राह में रुकावटें
लैंगिक हिंसा (GBV) से जुड़ी खबरों की कमी भी एक बड़ी चिंता है। रिपोर्ट कहती है कि मीडिया अक्सर रूढ़िवादी सोच को बढ़ावा देता है- जैसे पीड़िता को दोष देना, हिंसा को अलग-थलग घटनाओं की तरह दिखाना, पीड़ितों की आवाज दबाना और रिपोर्टिंग में पक्षपातपूर्ण भाषा का इस्तेमाल करना।
यूएन वीमेन ने बताया कि “100 में से 2 से भी कम खबरें ऐसी होती हैं जो उस हिंसा को कवर करती हैं जिसका सामना बड़ी संख्या में महिलाएं करती हैं।”
इस तरह की कम रिपोर्टिंग हकीकत को तोड़-मरोड़कर पेश करती है और लोगों की सोच पर भी असर डालती है। लगभग 80% खबरें राजनीति, अर्थव्यवस्था या अपराध पर होती हैं, जबकि लैंगिक हिंसा जैसे मुद्दों को नजरअंदाज किया जाता है।
अल्पसंख्यक महिलाओं की स्थिति और भी खराब है। रिपोर्ट बताती है कि समाचारों में अल्पसंख्यक समूहों के लोग केवल 6% ही दिखाए जाते हैं और उनमें से सिर्फ 38% महिलाएं होती हैं। किसी महिला का अल्पसंख्यक समुदाय से होना तो 10 में से 1 से भी कम संभावना रखता है।
आगे की राह
हालात बदलना आसान नहीं है, लेकिन डिजिटल मीडिया से उम्मीद है। महामारी के दौरान ऑनलाइन महिला रिपोर्टरों का प्रतिशत 2015 में 25% से बढ़कर 2020 में 42% तक पहुंच गया।
संयुक्त राष्ट्र की Unstereotype Alliance (अनस्टिरियोटाइप अलायंस), जो मीडिया और विज्ञापन में गलत धारणाओं को मिटाने के लिए काम कर रही है, और HeForShe अभियान जैसी पहलें, महिलाओं को मीडिया में जगह दिलाने और रूढ़ियों को चुनौती देने में अहम भूमिका निभा रही हैं।
यूएन वीमेन ने कहा कि जैसे-जैसे संयुक्त राष्ट्र की 80वीं जनरल असेंबली करीब आ रही है, जेंडर समानता और महिलाओं के प्रतिनिधित्व को मजबूत करना और जरूरी हो गया है। खासकर इसलिए क्योंकि पिछले 30 सालों में इस क्षेत्र में बहुत कम प्रगति हुई है।