2022 बीतते-बीतते देश के सबसे तेजी से बढ़ते उद्योग घराने अडानी समूह ने एनडीटीवी को खरीद लिया। अचानक कुछ ऐसे स्वर कर्कश राग गाने लगे कि अब भारत से पत्रकारिता पूरी तरह से खत्म हो गई।
साल 2022 में हम सभी के मन में एक सवाल था कि कोरोना के बाद की पत्रकारिता कैसी होगी? असल में इस सवाल का जवाब कोरोना काल में हुई पत्रकारिता में ही छिपा हुआ था।
पत्रकारिता का पेशा सदैव चुनौतीपूर्ण रहा है। कल भी था, आज भी है और कल भी रहेगा। शायद आने वाल कल में और अधिक चुनौतियां होंगी।
मीडिया की दृष्टि से वर्ष 2022 बहुत ही महत्वपूर्ण रहा है। मैं ये कहूंगा कि पिछले दो-तीन साल मीडिया के संक्रमण काल के साल हैं।
कोई भी साल सभी के लिए अच्छा या बुरा नहीं होता। 50 वर्षों में माना जाता है कि कोरोना काल सबसे बुरा समय था, लेकिन यही समय दवा कंपनियों के लिए और कुछ डॉक्टरों के लिए पैसे कमाने का सबसे अच्छा समय बन गया।
2023 में मुझे तो समाचार-जगत से जुड़ी कोई ख़ास गुलाबी उम्मीद नज़र आ नहीं रही। लेकिन कुछ ख़्वाहिशें ज़रूर हैं। पूरी न सही, आधी-अधूरी भी, पूरी हो जाएं तो अयोध्या जाकर प्रसाद चढ़ाऊंगा।
मैं दरअसल रुदन में बहुत अधिक विश्वास नहीं रखता हूं कि हालात बहुत खराब रहे। लेकिन मीडिया के हालात सचमुच धीरे-धीरे बहुत आशाजनक नहीं रहे हैं।
2022 ने मीडिया के संस्थागत स्वरूप की अनिवार्यता को बहुत हद तक कम कर दिया। यह बहुत बड़ा परिवर्तन है मीडिया के रूप-स्वरूप में।
समय का समकाल अगर कुछ है तो वह अनिश्चितता है। उसी अनिश्चितता के गर्भ में उम्मीद, संभावना और आशंका होती हैं। जो बीता हुआ समय है, वह संदर्भ, संदेश और सबक के काम आता है।
वैसे भी साल 2023 में जी20 की मेजबानी भारत करने जा रहा है। इसलिए भारतीय मीडिया के पास इस मोर्चे पर स्कूप और समाचारों की कमी नहीं रहेगी।