पत्रकारिता की दुनिया के तमाम ऐसे किस्से इतिहास के पन्नों में दफन पड़े हैं, जो आज की पीढ़ी के लिए काफी दिलचस्प हो सकते हैं।
जिस वंशवाद की आज बात होती है उसका सबसे पहला किरदार विष्णु शर्मा के अनुसार इंदिरा गांधी थीं। इसलिए उन्होंने पहले ही अध्याय में इस पर बात की है।
वर्तमान में पीएम मोदी को 'तानाशाह' कहकर पुकारा जा रहा है। इस किताब में लेखक इस झूठ का भी पर्दाफाश करते हैं।
यह किताब आपको एक ऐसे जीवन की यात्रा पर ले जाएगी जो न सिर्फ सच्चे और आदर्श मनुष्य से रूबरू कराएगी, बल्कि सच्चे धर्म से भी मिलवाएगी और उस सच्चे समाज से भी, जिसके निर्माण के लिए कोशिश हो रही है।
विष्णु शर्मा की 'इंदिरा फाइल्स' युवा पत्रकारों के लिए इसलिए काम की है, क्योंकि सोशल मीडिया के साये में पल रही ये पीढ़ी कम शब्दों में, स्पष्ट और टू-द-पॉइंट जानकारी चाहती है।
बचपन से ही मुझे पढ़ने का शौक रहा है। राम चरित मानस से लेकर महाभारत और रामचंद्र गुहा से लेकर मस्तराम कपूर तक की किताबें।
वरिष्ठ पत्रकार विवेक पांडेय का काव्य संग्रह 'मैं गली हूं' पूरी तरह अनुभवजन्य यथार्थ पर आधारित लगता है।
प्रो. संजय द्विवेदी की उदार लोकतांत्रिक चेतना का प्रमाण उनकी सद्यः प्रकाशित पुस्तक ‘न हन्यते’ है। इस पुस्तक में दिवंगत हुए परिचितों, महापुरुषों के प्रति आत्मीयता से ओत-प्रोत संस्मरण और स्मृति लेख हैं।
'औरंगजेब नायक या खलनायक' सीरीज के तीसरे खंड में उसके राजपूतों के साथ संबंधों का जो विश्लेषण किया गया है उससे पता चलता है कि औरंगजेब का झगड़ा सिर्फ सत्ता का था
गुरुवार को जयंती रंगनाथन जी का उपन्यास ‘शैडो’ मेरे पास आया था। मैंने इसी दिन इसे पकड़ा तो आधा खत्म कर दिया। फिर शुक्रवार को भीमताल चला गया।