देश-दुनिया में कोरोनावायरस (कोविड-19) का प्रकोप थमने का नाम नहीं ले रहा है। तमाम देश कोरोना से बचाव के लिए वैक्सीन ईजाद करने में लगे हैं।
देश-दुनिया में कोरोनावायरस (कोविड-19) का प्रकोप थमने का नाम नहीं ले रहा है। तमाम देश कोरोना से बचाव के लिए वैक्सीन ईजाद करने में लगे हैं। सरकार द्वारा भी लोगों को इस महामारी से बचाव के लिए जागरूक किया जा रहा है। इसके तहत सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने, मास्क और सैनिटाइजर का इस्तेमाल करने और बहुत ही आवश्यक न होने पर घरों से बाहर न निकलने पर जोर दिया जा रहा है।
ऐसे में दैनिक भास्कर ने भी पाठकों को जागरूक करने के लिए एक अभियान चलाया है। ‘अभी मास्क ही वैक्सीन है’ अभियान के तहत दैनिक भास्कर ने एक दिसंबर से अपने मास्टहेड (Masthead) में भी बदलाव किया है। इस बदलाव के तहत मास्टहेड पर मास्क की फोटो पब्लिश की जा गई है और दैनिक भास्कर में दैनिक व भास्कर के बीच भी कुछ अधिक दूरी रखी गई है, ताकि लोग मास्क व सोशल डिस्टेंसिंग का महत्व समझें।
इस अभियान के बारे में ‘डीबी कॉर्प लिमिटेड’ के मैनेजिंग डायरेक्टर सुधीर अग्रवाल का कहना है, ‘भास्कर ग्रुप ने समाज में अपनी भूमिका को हमेशा गंभीरता से लिया है। मास्टहेड को मास्क के साथ बदलने का यह क्रांतिकारी कदम है और इसे खासतौर पर मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए पाठकों को सचेत करने के लिए उठाया गया है।’
बताया जाता है कि दैनिक भास्कर के इस अभियान के सकारात्मक परिणाम भी सामने आ रहे हैं। लोग अपनी दिनचर्या में मास्क शामिल कर रहे हैं और उन लोगों के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं जो बिना मास्क के सार्वजनिक रूप से देखे जाते हैं।
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सूचना-प्रसारण मंत्रालय (MIB) के तहत आने वाले ब्यूरो ऑफ आउटरीच एंड कम्युनिकेशन (BOC) ने वित्तीय वर्ष 2021 में 12 मार्च तक प्रिंट मीडिया और प्राइवेट सैटेलाइट चैनल्स पर 73.18 करोड़ रुपए खर्च किए हैं।
सूचना-प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, BOC द्वारा अखबारों सहित प्रिंट मीडिया पर 62.01 करोड़ रुपए खर्च किए गए, जबकि प्राइवेट केबल एंड सैटेलाइट (C&S) चैनल्स पर 11.17 करोड़ रुपए खर्च किए गए। वहीं, इस दौरान सोशल मीडिया पर विज्ञापनों पर कोई खर्चा नहीं किया गया।
वहीं वित्तीय वर्ष 2020 में, सरकार ने प्रिंट मीडिया, केबल एंड सैटेलाइट (C&S) चैनल्स और सोशल मीडिया पर कुल मिलाकर 157.64 करोड़ रुपए की राशि खर्च की थी। इस दौरान लगभग 128.96 करोड़ रुपए प्रिंट मीडिया पर खर्च किए गए, जबकि इसके बाद प्राइवेट केबल एंड सैटेलाइट (C&S) चैनल्स पर 25.68 करोड़ रुपए और सोशल मीडिया 3 करोड़ रुपए पर खर्च किए गए।
इससे पहले वित्तीय वर्ष 2019 में विज्ञापन खर्च की बात की जाए तो, सरकार ने इस दौरान प्रिंट मीडिया पर 301.03 करोड़, टीवी चैनल्स पर 123.01 करोड़ और सोशल मीडिया पर 2.6 करोड़ रुपए खर्च किए। इस तरह से कुल मिलाकर 426.64 करोड़ रुपए की राशि खर्च की गई।
वित्तीय वर्ष 2016 में प्रिंट मीडिया और निजी चैनल्स पर बीओसी ने 624.23 करोड़ रुपए खर्च किए। इसके बाद वित्तीय वर्ष 2017 में 621.44 करोड़ रुपए और वित्तीय वर्ष 2018 में 572 करोड़ रुपए खर्च किए।
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फ्रांस की व्यंग्य पत्रिका (मैगजीन) 'शार्ली हेब्दो' (Charlie Hebdo) एक बार फिर अपने कार्टून की वजह से विवादों में है। इस बार विवाद का कारण बना है यूनाइटेड किंगडम (यूके) की महारानी एलिजाबेथ और उनके पोते की बहू मेगन मर्केल का एक कार्टून।
दरअसल, शनिवार को मैगजीन ने जो कार्टून छापा है, उसमें इस बार ब्रिटिश राज परिवार पर तीखा प्रहार किया गया है। इस कार्टून के छपने के बाद से इसके खिलाफ विरोध देखा जा रहा है। इस कार्टून को टाइटल दिया गया है– मेगन ने बकिंघम क्यों छोड़ा। कार्टून में मेगन चीखती हुई कह रही हैं, क्योंकि अब मैं अब सांस भी नहीं ले सकती। कार्टून में यूके की महारानी एलिजाबेथ को उनके पोते हैरी की पत्नी मेगन मर्केल की गर्दन पर घुटने टिकाए दिखाया गया है।
बता दें कि इस तरह से गर्दन पर घुटने टिकाने को ‘नीलिंग’ कहते हैं। कुछ साल पहले नीलिंग की घटना के चलते ही अमेरिका में दंगे भड़के थे। अमेरिकी पुलिस का एक गोरा अधिकारी अश्वेत जॉर्ज फ्लॉयड के गर्दन पर घुटने से तब तक दबाव डालता रहा था, जब तक कि उसकी जान नहीं चली गई। नीलिंग का यह दृश्य अमेरिका में अश्वेतों के खिलाफ हिंसा का प्रतीक बन कर उभरा। अब इस तरह के कार्टून में मेगन को जॉर्ज फ्लॉयड और यूके की महरानी एलिजाबेथ को श्वेत पुलिस अधिकारी की जगह पर दिखाया गया है।
बता दें कि इसी मैगजीन ने पैगंबर मुहम्मद साहब का एक कार्टून छापा था, जिसकी वजह से ही करीब साढ़े पांच साल पहले मैगजीन के दफ्तर पर आतंकी हमला हुआ था, जिसमें 12 लोग मारे गए थे। इस हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन अलकायदा ने ली थी।
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केरल में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी यानी कि सीपीआई एक अखबार के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की योजना बना रही है और यह अखबार बीजेपी का मुखपत्र ‘जन्मभूमि’ है। दरअसल इस अखबार में रविवार को नट्टिका विधानसभा क्षेत्र से लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) के उम्मीदवार सी.सी. मुकुंदन के निधन की एक गलत प्रकाशित हुई थी।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह खबर त्रिस्सूर एडिशन में प्रकाशित की गई, लेकिन जब इस गलत खबर को लेकर सोशल मीडिया पर बवाल मचा, तो अखबार ने अपना ई-एडिशन वापस ले लिया।
बता दें कि यह खबर छपने से एक दिन पहले ही सीपीआई ने एलडीएफ के कैंडिडेट के तौर पर नट्टिका विधानसभा क्षेत्र से उनकी उम्मीदवारी की घोषणा की थी। अखबार में शोक समाचार कॉलम में उनकी तस्वीर के साथ यह खबर प्रकाशित की थी।
सीपीआई के जिला सचिव के.के. वलसराज ने कहा कि पार्टी इस तरह की गलत खबर प्रकाशित करने के लिए अखबार के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करेगी। मुकुंदन का परिवार इस फर्जी खबर को पढ़कर गंभीर मानसिक आघात से गुजर रहा है। इस स्थिति में, हमने अखबार के खिलाफ चुनाव आयोग से भी संपर्क करने का फैसला किया है।
सीपीआई त्रिस्सूर जिला समिति ने एक बयान में कहा कि यह बदनाम करने वाली खबर थी, जोकि जन्मभूमि द्वारा राजनीति की ऊंची जाति की फासीवादी मानसिकता को दर्शाता है।
वहीं, सीसी मुकुंदन ने इस विवाद पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, उन्होंने रविवार को फेसबुक पर अपने चुनाव अभियान की तस्वीरें पोस्ट कीं।
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एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (EGI) ने जम्मू-कश्मीर स्थित अखबारों के एडिटर्स को उनकी रिपोर्टिंग या एडिटोरियल के लिए 'अनौपचारिक तरीके' से हिरासत में लिए जाने पर हैरानी जताई है। एडिटर्स गिल्ड ने अपने बयान में 'द कश्मीर वाला' के एडिटर-इन-चीफ फहाद शाह की हाल में हुई हिरासत का जिक्र किया।
अपने बयान में EGI ने कहा कि शाह को कुछ ही घंटे हिरासत में रखने के बाद छोड़ दिया गया था, हालांकि ये तीसरी बार है जब अपनी लेखनी के लिए फहाद शाह को हिरासत में लिया गया है। एडिटर्स गिल्ड ने कहा कि उनका यह मामला अकेला नहीं है। कई ऐसे पत्रकार हैं जो इस न्यू नॉर्मल का सामना कर रहे हैं कि सरकार के घाटी में शांति लौटने के नैरेटिव से कुछ भी अलग लिखने वालों को सुरक्षा बल हिरासत में ले सकते हैं।
The Editors Guild of India is shocked by the casual manner in which the editors of Kashmir based publications are routinely detained by security forces for reporting or for their editorials. pic.twitter.com/gvSfZIIm0v
— Editors Guild of India (@IndEditorsGuild) March 8, 2021
एडिटर्स गिल्ड ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन से ऐसी परिस्थिति बनाने की मांग की है, जहां प्रेस 'बिना किसी डर और तरफदारी' के अपना नजरिया जाहिर कर सके और खबरों की रिपोर्ट कर सके।
बता दें कि भारतीय सेना ने 30 जनवरी को 'द कश्मीर वाला' के एडिटर-इन-चीफ फहाद शाह और असिस्टेंट एडिटर यशराज शर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। ये एफआईआर 27 जनवरी की एक न्यूज रिपोर्ट के लिए हुई थी, जिसमें कहा गया था कि सेना के लोगों ने शोपियां जिले में कथित तौर से एक स्कूल को गणतंत्र दिवस का कार्यक्रम करने के लिए मजबूर किया था।
इसके अलावा भी कई ऐसे पत्रकार हैं, जिन पर कार्रवाई की गई है। 5 मई को दो फोटोजर्नलिस्ट को श्रीनगर के नौहट्टा इलाके में प्रदर्शन शुरू होने के बाद पुलिस ने कथित तौर से पीटा था। पिछले साल 18 अप्रैल को फ्रीलांस फोटोजर्नलिस्ट मसरत जहरा पर उनके सोशल मीडिया पोस्ट्स को लेकर UAPA लगाया गया था।
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तमाम आरोपों में घिरे ‘दैनिक भास्कर’ चंडीगढ़ के सिटी चीफ संजीव महाजन को प्रबंधन ने बर्खास्त कर दिया है। इसके साथ ही प्रबंधन ने संजीव महाजन की बर्खास्तगी की खबर अखबार में भी पब्लिश की है। इस खबर में बताया गया है कि संजीव महाजन, दैनिक भास्कर में रिपोर्टर था, इसके इस कृत्य को देखते हुए संस्थान ने उसे तुरंत प्रभाव से बर्खास्त कर दिया है। अब वह दैनिक भास्कर का एंप्लॉयी नहीं है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, घर में घुसकर किडनैप करने, फर्जी व्यक्ति दिखाकर प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री करवाने के आरोप में पुलिस की एसआईटी टीम ने संजीव महाजन को चंडीगढ़ के सेक्टर-37 स्थित घर से पिछले दिनों गिरफ्तार किया था।
इस मामले में पुलिस ने संजीव के अलावा एक अन्य आरोपित मनीष गुप्ता को भी गिरफ्तार किया है। मामले के अन्य आरोपितों की तलाश में पुलिस तमाम स्थानों पर छापेमारी कर रही है। इसके साथ ही संजीव महाजन के खिलाफ भी विभिन्न एंगल्स से जांच की जा रही है।
संजीव महाजन की बर्खास्तगी के संबंध में दैनिक भास्कर में प्रकाशित खबर की कॉपी आप यहां देख सकते हैं।
नेशनल बुक ट्रस्ट ऑफ इंडिया (National Book Trust of India) के मलयालम विभाग के संपादक रुबिन डीक्रूज के खिलाफ यौन उत्पीड़न का एक मामला दर्ज किया गया है।
नेशनल बुक ट्रस्ट ऑफ इंडिया (National Book Trust of India) के मलयालम विभाग के संपादक रुबिन डीक्रूज के खिलाफ यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment) का एक मामला दर्ज किया गया है। बता दें कि दिल्ली में काम कर रही एक मलयाली महिला ने रुबिन डी. क्रूज के खिलाफ यह मामला वसंत कुंज (उत्तर) पुलिस थाने में मामला दर्ज कराया था।
महिला ने इस कथित तकलीफदेह शारीरिक हमले के बारे में एक फेसबुक (Facebook) पोस्ट भी डाला, जिससे उसे गुजरना पड़ा। महिला ने दावा किया है कि यह घटना 2 अक्टूबर, 2020 को हुई थी। उसने लिखा, ‘मैं हाल में कुछ परेशानियों से गुजर रही हूं । पिछले 25 वर्षो में लोगों में जो आत्मविश्वास और विश्वास पैदा हुआ है, उसे मैंने अपनी जड़ों से तोड़ा है। मैंने कुछ खास लोगों के असली चेहरे देखे, जो फेसबुक का उपयोग करते हैं।’
शिकायतकर्ता महिला का परिचय डी. क्रूज से कॉमन फ्रेंड के द्वारा हुआ था जब वह दिल्ली में एक किराए का घर ढूढ़ रहीं थीं। उनकी हर तरह से मदद करने का आश्वासन देकर डी. क्रूज ने उस महिला को कथित तौर पर अपने घर बुलाया और उस पर यौन हमला करके इस अवसर का फायदा उठाया।
वे लिखती हैं, 'मुझे वाम-प्रगतिशील नकाबपोश का असली चेहरा देखना था जो मानवाधिकारों और समानता के बारे में फेसबुक क्रांति ला रहे हैं। प्रगतिशील, जिन्होंने सार्वजनिक मित्रों और फेसबुक के माध्यम से हुई जान पहचान के नाम पर मुझे भोजन के लिए घर आमंत्रित किया था और एक छोटी मित्रतापूर्ण बातचीत के बाद अपना असली रंग दिखा दिया। अगले कुछ दिनों ने मुझे सिखाया कि शारीरिक रूप से यौन हमला झेलने के बाद सबसे ज्यादा मजबूत लोग भी मानसिक रूप से टूट जाते हैं।'
मैं बहुत थोड़े दोस्तों के लिए ईमानदारी से अपना आभार प्रकट करती हूं, जो अच्छे और बुरे दोनों समय में मेरे साथ खड़े रहे, मेरा परिवार (मेरी 72 साल की मां सहित) जिसने साहस और लोगों के साथ आगे बढ़ने के लिए कहा, जिसमें मेरी काउंसलिंग टीम भी शामिल है। मुझे एक बात सही लगी, उनके जैसे किसी को छोड़ना-मुक्त करना मेरे साथी मनुष्यों के साथ भी अन्याय था।' यह इस तकलीफदेह घटना पर लिखी उनकी लम्बी फेसबुक पोस्ट का एक अंश है।
डी.क्रूज सोशल मीडिया पर अपने प्रगतिशील विचारों के लिए भी जाने जाते हैं। यौन उत्पीड़न की शिकायत दिल्ली पुलिस के वसंत कुंज स्टेशन में 21 फरवरी, 2020 को की गयी थी। इस मामले ने अपनी तरफ लोगों का ध्यान तब खींचा जब पीड़ित लड़की ने इस बारे में फेसबुक पोस्ट लिखकर लोगों को बताया।
इस मामले में दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के डीसीपी, इंजीत प्रताप सिंह का कहना है कि रुबिन डी. क्रूज के खिलाफ धारा 354 (महिला के साथ मारपीट या आपराधिक बल लगाने का इरादा) के तहत फरवरी में वसंत कुंज उत्तर पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज किया गया था। उन्होंने कहा कि आरोपी और पीड़ित दोनों, जो विवाहित हैं, एक-दूसरे को जानते हैं। महिला का बयान दर्ज कर लिया गया है और कानूनी कार्रवाई की जा रही है।
प्रिंट मीडिया कंपनी ‘जागरण प्रकाशन’ ने मंगलवार को कहा कि उसके निदेशक मंडल ने निवेशकों से 118 करोड़ रुपए के शेयर वापस खरीदने को मंजूरी दी है।
प्रमुख हिन्दी समाचार पत्र ‘दैनिक जागरण’ का प्रकाशन करने वाली प्रिंट मीडिया कंपनी ‘जागरण प्रकाशन’ ने मंगलवार को कहा कि उसके निदेशक मंडल ने निवेशकों से 118 करोड़ रुपए के शेयर वापस खरीदने को मंजूरी दी है।
शेयर बाजार को भेजी गई नियामकीय सूचना में उसने कहा है, ‘कंपनी के निदेशक मंडल ने... कंपनी के पूर्ण चुकता दो रुपए के अंकित मूल्य वाले कुल 118 करोड़ रुपए तक के इक्विटी शेयरों को वापस खरीदने को मंजूरी दी है। यह खरीद कंपनी के शेयरधारकों, उनके लाभार्थी स्वामियों से 60 रुपए प्रति शेयर तक के दाम पर नकद भुगतान के साथ होगी। शेयरों की यह खरीद कंपनी के प्रवर्तकों, प्रवर्तक समूह के सदस्यों और नियंत्रण वाले व्यक्तियों को छोड़कर अन्य शेयरधारकों से की जाएगी। शेयर खरीद की प्रक्रिया खुले बाजार से स्टॉक एक्सचेंज प्रणाली के जरिए होगी।’
कंपनी के मुताबिक, खुले बाजार से होने वाली इस खरीद में 1,96,66,666 शेयरों की खरीद होने का अनुमान है जो कि कंपनी के चुकता शेयरों का 6.99 प्रतिशत होगा। जागरण प्रकाशन ने कहा है कि इस खरीद प्रक्रिया के बारे में समयसीमा और अन्य सांविधिक ब्यौरा आने वाले समय में जारी किया जाएगा।
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शीना बोरा मर्डर केस में चार साल की सजा काट चुके मीडिया टाइकून पीटर मुखर्जी ने टेलिविजन इंडस्ट्री में अपने दिनों को याद करते हुए एक संस्मरण जारी किया है। ‘Starstruck: Confessions of a TV Executive’ नाम से जारी इस संस्मरण में ‘स्टार इंडिया’ (Star India) के पूर्व सीईओ मुखर्जी ने इंडस्ट्री में अपने अनुभवों और तमाम उथल-पुथल के बारे में बताया है। हालांकि, इस किताब से ऐसे लोगों को कुछ निराशा हो सकती है, जो उम्मीद कर रहे थे कि मुखर्जी अपनी सौतेली बेटी शीना बोरा हत्याकांड में जेल में बिताए गए समय के बारे में जानकारी शेयर करेंगे। इसके बजाय मुखर्जी ने इस संस्मरण में इंडस्ट्री में अपनी तीन दशक लंबी यात्रा का जिक्र किया है, जिसने तमाम उतार-चढ़ाव देखे हैं। मीडिया मुगल रूपर्ट मर्डोक द्वारा अधिग्रहीत किए जाने के एक दिन बाद मुखर्जी ने स्टार इंडिया जॉइन किया था।
अपने संस्मरण में मुखर्जी लिखते हैं कि 90 के दशक की शुरुआत में अमेरिकी शो ‘बेवॉच’ (Baywatch) जैसे शोज का बोलबाला था। लेकिन यह सोच भारत में काम नहीं कर रही थी। उस समय मर्डोक ने मुखर्जी को एक छोटे टीवी चैनल को दुनिया के बड़े चैनल के रूप में विकसित करने का काफी मुश्किल काम सौंपा। मुखर्जी के इस संस्मरण के अनुसार, वास्तविकता में न तो मर्डोक और न ही स्टार के संस्थापक रिचर्ड ली ने भारत से बहुत उम्मीद की थी, क्योंकि उनकी नजर में यह उनके व्यापार मॉडल के लिए उपयुक्त बाजार नहीं था।
अपनी किस किताब में स्टार इंडिया से जुड़ी आकांक्षाओं और इसे ऊंचाई तक ले जाने के दौरान अपने संघर्षों का जिक्र किया है। मुखर्जी के अनुसार, ’मैं चाहता था कि स्टार टीवी को मीडिया इंडस्ट्री में पसंदीदा नियोक्ता के रूप में देखा जाए, खासकर भारत में।’ कर्मचारियों की नजर में स्टार की प्रतिष्ठा मुखर्जी के लिए महत्वपूर्ण थी। उनका मानना था कि कर्मचारियों का सम्मान देश में एक शानदार ब्रैंड के रूप में स्टार इंडिया के निर्माण के दीर्घकालिक कार्य में मदद करेगा।
अपनी किताब में मुखर्जी लिखते हैं कि प्रतिष्ठित शो कौन बनेगा करोड़पति को शुरू में एक लाख के पुरस्कार के साथ कौन बनेगा लखपति का नाम दिया गया था, लेकिन दर्शकों की रुचि बढ़ाने के लिए मर्डोक ने खुद इस राशि को एक करोड़ बढ़ा दिया था। मुखर्जी ने स्टार के साथ एकता कपूर के दिनों को भी याद किया जिन्होंने अपने धारावाहिकों के द्वारा भारतीय टेलिविजन इंडस्ट्री में क्रांति ला दी थी। अपने इस संस्मरण में मुखर्जी ने अपने कुछ पूर्व साथियों का भी जिक्र किया है, जो आज इंडस्ट्री में काफी ऊंचाइयों पर हैं। इनमें राज नायक, मोनिका टाटा, अजय विद्यासागर, सिद्धार्थ रॉय कपूर, विकास खनचंदानी जैसे नाम शामिल हैं।
एक मीडिया टाइकून के रूप में मुखर्जी के बीते दिनों पर इस किताब को वेस्टलैंड ने पब्लिश किया है। 296 पेज के इस संस्मरण को पिछले दिनों जारी किया गया है।
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मणिपुर में शनिवार 13 फरवरी की शाम दैनिक ‘पोकनाफाम’ के स्थानीय कार्यायल पर एक हथगोला फेंका गया, लेकिन कोई विस्फोट नहीं हुआ और उसे सुरक्षित तरीके से नष्ट कर दिया गया। बताया जा रहा है कि इस बीच कार्यालय में एक अज्ञात बदमाश ने लूटपाट भी की। इस घटना के संबंध में फिलहाल अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई।
वहीं, दूसरी तरफ मणिपुर के पत्रकारों ने इस घटना का विरोध किया और कार्य बहिष्कार कर दिया, जिसके चलते मणिपुर में रविवार को कोई अखबार प्रकाशित नहीं हुआ और न ही टीवी पर खबरें प्रसारित हुईं।
ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन (AMWJU) और एडिटर्स गिल्ड मणिपुर (EGM) ने हमले की निंदा की, जिसके बाद दोनों ही संगठनों ने कार्य बहिष्कार का फैसला किया था।
उधर, पुलिस ने बताया कि यह घटना शाम 6.30 बजे इम्फाल पश्चिम जिले के केशिमपत थियाम लेइकाई स्थित समाचार पत्र ‘पोकनाफाम’ के कार्यालय में हुई। पुलिस ने कहा कि ग्रेनेड का सेफ्टी पिन बरकरार पाया गया। सीसीटीवी फुटेज से पता चला कि ग्रेनेड एक महिला द्वारा फेंका गया था, जो मोपेड पर आई थी। राज्य पुलिस के बम विशेषज्ञों ने विस्फोटक हथियार को मौके से हटा दिया।
घटना के पीछे अपराधियों को पकड़ने के लिए मणिपुर पुलिस द्वारा तलाशी अभियान चलाया गया है। क्षेत्र के सभी मीडिया हाउसों के आसपास सुरक्षा बढ़ा दी गई है।
पोकनाफम के संपादक अरीबम रोबिन्द्रो शर्मा ने कहा कि उन्हें किसी से भी तरह की धमकी या कुछ ऐसा नहीं मिला है, जो संदिग्ध हो।
इस हमले के विरोध में कीशामपाट थियाम लीकाई में पत्रकारों ने धरना दिया। बाद में मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह को एक ज्ञापन सौंपा गया और उनसे यह सुनिश्चित करने की अपील की गई कि राज्य में प्रेस स्वतंत्र रूप से काम कर पाए।
पुलिस के अनुसार हमले की वजह पता नहीं चल पाई है। किसी संगठन ने भी इस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है।
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पिछले काफी समय से रुकी हुई भारतीय अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे गति पकड़ रही है। तमाम अन्य बिजनेस के साथ भारतीय भाषाई अखबारों की ग्रोथ भी बढ़ रही है। ऐसे में अब सात प्रमुख भाषाई अखबार अपने स्टेकहोल्डर्स (stakeholders) के लिए एक कॉमन लेटर के जरिये एक साथ आगे आए हैं। इस लेटर में कहा गया है कि कोविड-19 से पहले की तुलना में सर्कुलेशन 80 से 90 प्रतिशत तक पहुंच गया है और 80 प्रतिशत से ज्यादा एडवर्टाइजिंग रिकवरी हो चुकी है।
लेटर में कहा गया है, ‘भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी रिकवरी कर रही है। वैक्सीन अभियान गति पकड़ रहा है और जीएसटी कलेक्शन भी अच्छी ग्रोथ दिखा रहा है। देश के टियर-दो और टियर-तीन मार्केट इस ग्रोथ में अहम भूमिका निभा रहे हैं। अखबारों का सर्कुलेशन भी बढ़ रहा है और यह जितना कोविड-19 से पहले था, उसके 80-90 प्रतिशत लेवल तक पहुंच गया है, इसके साथ ही एडवर्टाइजिंग रेवेन्यू भी कोविड-19 से पहले की तुलना में 80 प्रतिशत ग्रोथ प्राप्त कर चुका है।’
इस लेटर पर हस्ताक्षर करने वालों में ‘अमर उजाला’ के राजुल माहेश्वरी, ‘ईनाडु’ के आई वेंकट, ‘हिन्दुस्तान’ के राजीव बेओत्रा, ‘साक्षी’ के विनय माहेश्वरी, ‘दैनिक जागरण’ के शैलेष गुप्ता, ‘दैनिक भास्कर’ के गिरीश अग्रवाल और ‘मलयाला मनोरमा’ के जयंत मैमन मैथ्यू शामिल हैं।
इस रिकवरी के बारे में ‘दैनिक भास्कर ग्रुप’ के प्रमोटर डायरेक्टर गिरीश अग्रवाल का कहना है, ‘टियर दो और टियर तीन शहरों की ग्रोथ की वजह से भारतीय भाषाई अखबार पूरे मार्केट की ग्रोथ में अहम भूमिका निभा रहे हैं। अब जब मार्केट्स सामान्य स्थिति में पहुंचे हैं और तेजी से खुल रहे हैं, अखबारों का सर्कुलेशन स्तर भी कोविड-19 से पहले की तुलना में लगभग 85-87 प्रतिशत तक पहुंच गया है। इसके अलावा समाचार पत्रों की विश्वसनीयता और भरोसा एक प्रमुख प्लस पॉइंट के रूप में उभरा है। खासकर फेक न्यूज के माहौल के बीच जिस तरह अखबारों ने अपनी विश्वसनीयत बनाए रखी है, ऐसे में अखबारों की संपादकीय शक्ति को मार्केट्स और पाठकों द्वारा सराहा जा रहा है।’
इस लेटर में अखबारों की ग्रोथ के साथ ही उसके कारणों पर भी बात की गई है। इस लेटर को आप यहां पढ़ सकते हैं।