धर्मशाला से न्यूजपेपर इम्लानइज यूनियन ऑफ इंडिया के अद्यक्ष रविंद्र अग्रवाल ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और श्रम मंत्री को लिखा पत्र
पत्रकारों का आरोप है कि केंद्र सरकार श्रम कानूनों में सुधार के नाम पर वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट को समाप्त करने जा रही है। पत्रकारों का कहना है कि यदि ये एक्ट ही खत्म हो जाएगा तो अखबार मालिक और अधिक निरंकुश हो जाएंगे। इसका नतीजा व्यापक पैमाने पर शोषण और जब चाहे नौकरी से निकालने के रूप में देखने को मिलेगा। धर्मशाला से न्यूजपेपर इम्प्लाइज यूनियन ऑफ इंडिया के अद्यक्ष रविंद्र अग्रवाल ने इस संबंध में राष्ट्रपति, पीएम और श्रम मंत्री को एक विरोध पत्र लिखा है।
इस पत्र को आप यहां पढ़ सकते हैं-
प्रतिष्ठा में,
महामहिम राष्ट्रपति महोदय, भारत गणराज्य, नई दिल्ली।
विषय: श्रमजीवी पत्रकार और अन्य समाचारपत्र कर्मचारी (सेवा की शर्तें) और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम,1955 तथा श्रमजीवी पत्रकार (मजदूरी की दरों का निर्धारण) अधिनियम, 1958 को निरस्त करने का विरोध और चिंताएं।
मान्यवर,
केंद्र सरकार ने 23 जुलाई को लोकसभा में व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति को विनियमित करने वाले कानूनों में संशोधन करने के लिए व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता विधेयक, 2019 प्रस्तुत किया है। इसमें श्रमजीवी पत्रकार और अन्य समाचारपत्र कर्मचारी (सेवा की शर्तें) और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम,1955 तथा श्रमजीवी पत्रकार (मजदूरी की दरों का निर्धारण) अधिनियम, 1958 को निरस्त किए जाने वाले 13 श्रम कानूनों में शामिल किया गया है, जो लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के साथ कुठाराघात है।
देश के श्रमजीवी पत्रकारों और समाचारपत्र स्थापनाओं में कार्य करने वाले अन्य कर्मचारियों के वेतन और सेवाशर्तौं से जुड़े उपरोक्त दोनों अधिनियमों के विशेष प्रावधानों के कारण श्रमजीवी पत्रकारों और अन्य समाचारपत्र कर्मचारियों को वेजबोर्ड का संरक्षण प्राप्त है।
महोदय, उपरोक्त दोनों अधिनियम तत्कालीन केंद्र सरकार ने प्रेस कमीशन की सिफारिशों और विभिन्न जांच समीतियों की रिपोर्टों को ध्यान में रखते हुए बनाए थे। वर्ष 1955 में श्रमजीवी पत्रकारों के लिए बनाए गए श्रमजीवी पत्रकार अधिनयम को और मजबूत करते हुए वर्ष 1974 को किए गए संशोधन के तहत इसमें समाचार पत्रों में कार्यरत अन्य कर्मचारियों को भी शामिल किया गया था।
ये दोनों अधिनियम श्रमजीवी पत्रकारों और अन्य अखबार कर्मचारियों को बाकी श्रमिकों से अलग विशेष संरक्षण देते हैं और सही मायने में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ होने में भूमिका निभा पाने का माहौल मुहैया करवाने में मदद करते हैं। इन अधिनियमों की खास बात यह है कि इनके तहत वेतनमान निर्धारण के लिए वेजबोर्ड का प्रावधान होने के चलते श्रमजीवी पत्रकार और अन्य अखबार कर्मचारी लोकतंत्र के बाकी तीन स्तंभों के समान ही एक सम्मानजनक वेतनमान पाने के हकदार बनते हैं।
हालांकि सच्चाई यह भी है कि वर्ष 1956 में गठित प्रथम वेजबोर्ड (दिवतिया वेजबोर्ड) से लेकर पिछली बार वर्ष 2007 को गठित वेजबोर्ड (मजीठिया वेजबोर्ड) को अखबार मालिकों ने कभी भी अपनी मर्जी से लागू नहीं किया और हर बार इन वेजबोर्डों सहित उपरोक्त अधिनियमों के प्रावधानों की वैधानिकता को माननीय सुप्रीम कोर्ट में चनौती दी गई। अखबार मालिकों के कुटिल प्रयासों के बावजूद श्रमजीवी पत्रकार और अखबार कर्मचारी अपनी यूनियनों और विभिन्न संगठनों के दम पर कानूनी लड़ाई जीतते रहे।
यहां खास बात यह है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठों ने वेजबोर्ड और उपरोक्त अधिनियमों को संविधान संवत मानते हुए वेजबोर्ड को उचित ठहराया है। अब तक किए गए दर्जनों मुकद्दमों में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्ववर्ती निर्णयों को विशेष टिप्पणियों के साथ कायम रखा है। ऐसे में इन विशेष अधिनियमों को निरस्त करने का निर्णय समझ से परे है। इस संबंध में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य इस प्रकार से हैं:-
देश के स्वतंत्र होते ही शुरू हुआ था चिंतन
महोदय, देश के आजाद होते ही लोकतंत्र के इस चौथे स्तंभ की निष्पक्षता और स्वतंत्रता को लेकर चिंतन शुरू हो गया था। पहले जहां अखबारों का प्रकाशन और संचालन व्यक्तिगत तौर पर समाज चिंतक, देश की स्वतंत्रता के आंदोलन में शामिल सेनानी और प्रबुध पत्रकार करते थे। आजादी के बाद जैसे ही पूंजीपतियों या औद्योगपतियों ने अखबारों को व्यवसाय के तौर पर संचालित करना शुरू किया तभी से पत्रकारों के वेतनमान, काम के घंटों और बाकी श्रमिकों से अलग विशेषाधिकार देने की मांग उठना शुरू हो गई।
इसे देखते हुए पहली बार वर्ष 1947 में गठित एक जांच समिति ने सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी, फिर 27 मार्च 1948 को ब्रिटिश इंडिया के केंद्रीय प्रांत और बेरार ( Central Provinces and Berar) ने समाचारपत्र उद्योग के कामकाज की जांच के लिए गठित जांच समिति ने सुझाव दिए और 14 जुलाई 1954 को भारत सरकार द्वारा गठित प्रेस कमीशन ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट दी थी। इसके अलावा एक अप्रैल 1948 को जिनेवा प्रेस एसोसिएशन और जिनेवा यूनियन आफ न्यूजपेपर पब्लिशर्ज ने 01 अप्रैल 1948 को एक संयुक्त समझौता किया था।
इस तरह एक व्यापक जांच और रिपोर्टों के आधार पर तत्कालीन भारत सरकार ने श्रमजीवी पत्रकार और अन्य समाचारपत्र कर्मचारी (सेवा की शर्तें) और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम,1955 तथा श्रमजीवी पत्रकार (मजदूरी की दरों का निर्धारण) अधिनियम, 1958 को लागू किया था। इतना ही नहीं भारत के संविधान के अनुच्छेद 43 ( राज्य की नीति के निदेशक तत्व) के तहत भी उपरोक्त दोनों अधिनयम संवैधानिक वैधता रखते हैं।
अधिनियमों को और अधिक मजबूत करने की जरूरत
महोदय, मौजूदा परिस्थितियों में जबकि प्रिंट मीडिया को चुनौती देने के लिए इलेक्ट्रानिक मीडिया और वेब मीडिया दस्तक दे चुका है तो ऐसे में उपरोक्त अधिनयमों को और सशक्त बनाने की जरूरत है। श्रमजीवी पत्रकार और गैर-पत्रकार अखबार कर्मचारियों के संगठन लंबे अर्से से इन अधिनियमों में इलेक्ट्रानिक मीडिया और वेब मीडिया में काम करने वाले श्रमजीवी पत्रकारों और गैरपत्रकार कर्मचारियों को भी शामिल करने की मांग करते आ रहे हैं। वहीं इन अधिनियमों के उल्लंघन पर सख्त प्रावधान करने की भी जरूरत है।
महज सौ या दो सौ रुपए जुर्माना करने के प्रावधन के बजाय भारी जुर्माना राशि, करावास की सजा और पीड़ित कामगार को हर्जाने की व्यवस्था करना जरूरी माना जा रहा था। वहीं श्रमजीवी पत्रकारों की ठेके पर नियुक्तियों पर रोकना भी जरूरी समझा जा रहा था। ऐसे में अधिनियमों को सशक्त बनाने के बजाय समाप्त करने का निर्णय केंद्र सरकार के खिलाफ रोष और चिंता उत्पन्न कर रहा है।
आम मजदूर से अलग है अखबार कर्मचारी
महोदय, अखबारों में कार्यरत श्रमजीवी पत्रकार और अन्य कमर्चारी आम मजदूरों से अलग परिस्थितियों में कम करते हैं। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने 07 फरवरी, 2014 को अखबार मालिकों की याचिकाओं पर सुनाए गए अपने फैसले में भी इस बात का स्पष्ट उल्लेख किया है कि अखबार कर्मचारियों को आम श्रमिकों से अलग परिस्थितियों, खास विशेषज्ञता और उच्च दर्जें के प्रशिक्षण के साथ काम करना पड़ता है। ऐसे में उन्हें वेजबोर्ड की सुरक्षा के साथ ही इस बात का भी ख्याल रखना जरूरी है कि समाज की दिशा और दशा तय करने वाले पत्रकारिता के व्यवसाय से जुड़े श्रमजीवी पत्रकारों और अन्य अखबार कर्मचारियों की जीवन शैली कम वेतनमान के कारण प्रभावित ना होने पाए।
मजीठिया वेजबोर्ड के हजारों मामले श्रम न्यायालयों में विचाराधीन
महोदय, केंद्र सरकार द्वारा 11 नंवबर, 2011 को अधिसूचित मजीठिया वेजबोर्ड को लागू करवाने के लिए देशभर के हजारों श्रमजीवी पत्रकार और गैरपत्रकार अखबार कर्मचारी संघर्षरत हैं। इस वेजबोर्ड और उपरोक्त अधिनियमों को भी अखबार मालिकों ने (एबीपी प्राइवेट लिमिटेड व अन्य बनाम भारत सरकार व अन्य मामले में) संगठित तरीके से चुनौती दी थी, मगर वे इसमें कामयाब नहीं हो पाए।
इस मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने 07 फरवरी, 2014 को सुनाए गए अपने फैसले में मजीठिया वेजबोर्ड को लागू करने और 01 अप्रैल, 2014 से एक साल के भीतर चार किश्तों में देय एरियर का भुगतान करने के आदेश दिए थे। अखबार मालिकों ने ऐसा करने के बजाय सभी कर्मचारियों से वेतनमान ना लेने के बारे में जबरन हस्ताक्षर करवाना शुरू कर दिए और जिन कर्मचारियों ने हस्ताक्षर करने से इनकार किया उन्हें नौकरी से हटा दिया गया। हजारों की नौकरी चली गई और उन्होंने माननीय सुप्रीम कोर्ट में (अभिषेक गुप्ता व अन्य बनाम संजय गुप्ता मामले में) अवमानना याचिकाएं दाखिल कीं।
इस मामले में कोर्ट ने 19 जून 2017 को फैसला सुनाते हुए अखबार मालिकों को अवमानना से तो बरी कर दिया, मगर कुछ दिशानिर्देश जारी करते हुए श्रम न्यायालयों को बकाया वेतन की रिकवरी के मामलों पर छह माह में निर्णय लेने को कहा है। हजारों मामले अभी भी श्रम न्यायालयों में लंबित चल रहे हैं। वहीं राज्य सरकारें अभी तक मजीठिया वेजबोर्ड को लागू करवाने के मामले में नकारा साबित हुई हैं। केंद्रीय श्रम विभाग महज बैठकें करने और दिशानिर्देंश देने तक सीमित है।
फिलहाल बेरोजगार हो चुके हजारों अखबार कर्मचारी निरस्त किए जा रहे उपरोक्त अधिनियमों के सहारे ही अपनी अपनी लड़ाई जारी रखे हुए हैं। वर्ष 1955 में बने इस अधिनियम का इतने व्यापक स्तर पर पहली बार न्याय निर्णय के लिए उपयोग हो रहा है तो ऐसे में इसे निरस्त करने का प्रयास श्रमजीवी पत्रकारों और अन्य अखबार कर्मचारियों के अधिकारों पर जबरदस्त कुठाराघात होगा।
ऐसे तो ध्वस्त हो जाएगा चौथ स्तंभ
महोदय, उपरोक्त दोनों अधिनियमों को निरस्त करके श्रमिकों के लिए बनाए गए नए अधिनियम के ड्राफ्ट में सिर्फ तीन धाराएं शामिल करने से श्रमजीवी पत्रकारों और अन्य अखबार कर्मचारियों की हालत और दयनीय हो जाएगी। न्यूजपेपर इंडस्ट्री अब मिशन पत्रकारिता को रौंद कर टारगेट आधारित इंडस्ट्री में तब्दील हो चुकी है। समाचारपत्रों में मालिकों और पत्रकारों के बीच की मजबूत दीवार कही जाने वाले संपादकों की संस्था पहले ही ध्वस्त हो चुकी है। अखबार कर्मचारियों विशेषकर श्रमजीवी पत्रकारों की पैरवी करने वाला कोई नहीं रहा है। संपादक अब कांटेंट से हटकर कांट्रेक्ट के काम में व्यस्त हैं और मालिकों के मैनेजर का काम करने लगे हैं।
अखबार कार्यालयों में लाभ-हानि के आंकड़े जुटाने वाले मैनेजरों का कब्जा होता जा रहा है। अधिकतर अखबार मालिक अब सीधे खबरों को विज्ञापन के साथ तौल कर प्लानिंग करने लगे हैं। हाल ही के चुनावों में बड़े-बड़े अखबारों के मालिकों को राजनीतिक दलों से पेड न्यूज प्लान करते कैमरे पर पकड़े जाने की खबरें अगर केंद्र सरकार के नीति निर्धारकों तक नहीं पहुंच पा रही हैं तो भारत की पत्रकारिता गंभीर संकट में है। वहीं प्रेस की स्वतंत्रता को और भी ज्यादा खतरा है, क्योंकि प्रेस की आजादी अखबार मालिकों के मुनाफा कमाने की आजादी से कहीं उस पत्रकार की आजादी से है, जो उचित वेतनमान और कानूनी तौर पर संरक्षित माहौल मिलने पर ही स्वतंत्र और निष्पक्ष होकर सही जानकारी आम जनता तक परोस सकता है। ऐसे में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ ध्वस्त होने से तभी बचेगा, जब उपरोक्त कानूनों को निरस्त करने के बजाय इन्हें और मजबूती प्रदान की जाएगी।
अखबार मालिकों की चाल में ना आए सरकार
महोदय, उपरोक्त निर्णय से अखबार कर्मचारियों में आशंका है कि अखबार मालिक संगठित होकर सरकार को गुमराह कर रहे हैं और कहीं ना कहीं उपरोक्त अधिनियमों को निरस्त करवाने में इनकी चाल हो सकती है। निवेदन है कि इस मामले में अपने स्तर पर जांच करवा कर इस तरह की कोशिश पर विराम लगाया जाए और पत्रकार और गैरपत्रकार अखबार कर्मचारियों के संगठनों की मांगों के अनुरूप इन अधिनियमों में उपयुक्त संशोधन करके इन्हें और सशक्त बनाया जाए।
आदर सहित
भवदीय
रविंद्र अग्रवाल अध्यक्ष, (न्यूजपेपर इम्प्लाइज यूनियन ऑफ इंडिया)
समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।राजस्थान के पत्रकार जगत के लिए मंगलवार 2 मार्च 2021 का दिन बहुत ही दुखद भरा रहा। इसकी वजह है दो वरिष्ठ पत्रकारों का एक ही दिन दुनिया से रुखसत हो जाना।
राजस्थान के पत्रकार जगत के लिए मंगलवार 2 मार्च 2021 का दिन बहुत ही दुखद भरा रहा। इसकी वजह है दो वरिष्ठ पत्रकारों का एक ही दिन दुनिया से रुखसत हो जाना। लंबे समय से कोरोना से जंग लड़ रहे वरिष्ठ पत्रकार संजय बोहरा और खेल पत्रकारिता के चेहरे रहे वरिष्ठ पत्रकार नन्हे खान का निधन हो गया है।
वरिष्ठ पत्रकार संजय बोहरा का पिछले 15 दिनों से कोविड डेडिकेटेड राजस्थान यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस में उपचार चल रहा था। तबियत ज्यादा बिगड़ने पर उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया, लेकिन मंगलवार सुबह उनकी अंतिम दुखद की खबर सामने आई, जिसके बाद पत्रकार जगत में शोक की लहर है। दुर्गापुरा मोक्षधाम में उनका अंतिम संस्कार किया गया। वहीं, कई नेताओं के साथ पत्रकारों ने उन्हें श्रदांजलि दी।
बोहरा बीबीसी, हिन्दुस्तान टाइम्स, एशियन ऐज, डीएनए, भास्कर व पत्रिका से जुड़े रहे थे। उनके परिवार में पत्नी और एक पुत्री है।
वहीं, क्रिकेट के पूर्व सचिव और खेल पत्रकारिता का जाना-माना चेहरा नन्हे खान भी जिंदगी की जंग हार गए। कोरोना संक्रमित होने के बाद उन्होंने हौसला तो रखा, लेकिन उससे पूरी तरह से उभर नहीं सके। नन्हे भाई नाम से विख्यात रहे खान जेडीसीए के 30 साल टूर्नामेंट के सचिव भी रहे थे। नन्हे खान का दुनिया से यूं रुखसत हो जाना हर किसी को खल रहा है।
राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने वरिष्ठ पत्रकार संजय बोहरा व खेल पत्रकार नन्हे खान के आकस्मिक निधन पर गहरा दुःख व्यक्त किया है। मिश्र ने ईश्वर से उनकी पुण्यात्मा को शांति प्रदान करने तथा उनके परिजनों को यह बिछोह सहन करने की शक्ति प्रदान करने की कामना की है।
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समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव एक पत्रकार के सवालों से इस कदर बौखला गए कि उन्होंने पत्रकार को बिका हुआ बता दिया।
हाथरस मामले में यूपी की मौजूदा सरकार को कठघरे में खड़े कर रहे समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव एक पत्रकार के सवालों से इस कदर बौखला गए कि उन्होंने पत्रकार को बिका हुआ बता दिया। सोशल मीडिया पर घटनाक्रम का वीडियो वायरल होने के बाद उनकी किरकिरी शुरू हो गई और वे सत्ता पक्ष के निशाने पर आ गए।
दरअसल, जब उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को सम्बोधित कर रहे थे, तो पहले उन्होंने योगी सरकार पर कानून व्यवस्था को लेकर जमकर हमला बोला। उन्होंने कहा कि हाथरस की बेटी रो रही है। उसे न्याय नहीं मिल रहा है और प्रदेश के मुखिया बंगाल में टहल रहे हैं। उन्होंने तीखा हमला करते हुए कहा कि पार्टी घमंड में चूर है और जातिवादी मानसिकता से काम कर रही है।
इसी फेर में एक पत्रकार ने अखिलेश यादव से पूछ लिया किया कि हाथरस मामले में 2018 में ही छेड़छाड़ का मुकदमा दर्ज हुआ था। इस पर अखिलेश यादव पहले बोले- सवाल यह नहीं है फिर अचानक ही वे आपा खो बैठे। और बोले- ‘तुम फिर बिक गए... बिक गए बस इतने में... बिक गए तुम’ इसके बाद अखिलेश यादव बोले- ‘जरा अपने चैनल का नाम बताइए? जो बिक गए हो तुम।’ उन्होंने एक बार फिर कहा, ‘अब कहां जाकर छिप गए हो? हैसियत है तो अपने चैनल का नाम क्यों नहीं बताते?’
इसके बाद उक्त पत्रकार ने अपने चैनल का नाम बताया- ‘प्राइम न्यूज’। अखिलेश के सवाल पर पत्रकार ने जब अपने चैनल का नाम बताया, तो सपा प्रमुख फिर तुनक कर बोले- ‘चैनल के बिके हुए आदमी हो।’ पत्रकार संग इस पूरी बातचीत में अखिलेश पत्रकार की हैसियत तक पहुंच गए थे। अब यह वीडियो वायरल हो रहा है और अखिलेश यादव सत्ता पक्ष के निशाने पर आ गए हैं।
अखिलेश यादव के इस वायरल वीडियो पर प्रतिक्रिया देते हुए सुल्तानपुर के विधायक देवमणि द्विवेदी ने ट्वीट कर कहा, ‘अखिलेश जी हाथरस में बेटी को छेड़ने और उसके पिता को गोली मारने के कृत्य में आपकी समाजवादी के नेता गौरव सौगरा मुख्य आरोपी हैं और अभी तक फरार हैं। समाजवादी का नाम बदल कर अपराधवादी पार्टी कर लीजिए।’
भाजपा प्रवक्ता मनीष शुक्ला ने इस पर बताया कि सासनी क्षेत्र में घटित घटना को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने संज्ञान लिया है। उनका सख्त आदेश है कि आरोपितों पर रासूका के तहत कार्रवाई की जाए। इसमें एक आरोपित गिरफ्तार किया जा चुका है।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के सासनीगेट क्षेत्र में बेटी से छेड़छाड़ की शिकायत करने पर आरोपी ने अपने साथियों के साथ मिलकर खेत में काम कर रहे लड़की के पिता की गोली मारकर हत्या कर दी और फरार हो गए। पुलिस ने इस मामले में 6 लोगों के खिलाफ केस दर्ज कर कार्रवाई शुरू कर दी है।
वहीं सीएम योगी आदित्यनाथ ने हत्यारोपियों पर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। इसी बीच मृतक किसान की बेटी का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें वह इंसाफ की मांग करती दिख रही है। वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि बेटी रो-रो कर इंसाफ की गुहार लगा रही है। उसने बताया कि आरोपी ने पहले मेरे साथ छेड़खानी की जिस पर पापा ने केस कर दिया। इस बात से चिढ़कर उसने मेरे पापा को गोली मारी दी।
पीड़िता के पिता ने जुलाई 2018 में गौरव शर्मा नाम के आरोपित के खिलाफ अपनी बेटी के साथ छेड़छाड़ की शिकायत पुलिस थाने में दर्ज कराई थी। आरोपित गौरव शर्मा समाजवादी पार्टी का नेता है। वही समाजवादी पार्टी, जिसके मुखिया अखिलेश यादव इस मामले में प्रदेश की योगी सरकार को घेरते हुए ट्वीट कर रहे हैं।
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महाराष्ट्र में कोरोना वायरस की वजह एक और पत्रकार की जान चली गई। कोरोना के कारण बॉलीवुड पत्रकार आरती शेजवलकर का निधन हो गया। कोरोना के संक्रमण का पता चलने के बाद उनका इलाज मुंबई के नायर अस्पताल में चल रहा था।
बताया जा रहा है कि वह छह महीने की गर्भवती थीं, लेकिन कोरोना संक्रमण के बाद प्रेग्नेंसी में उन्हें काफी समस्याएं आईं और उनका निधन हो गया।
आरती के निधन की खबर मशहूर सेलिब्रेटी फोटोग्राफर विरल भयानी ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक तस्वीर शेयर कर दी है। श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए वे कहते हैं, ‘बॉलीवुड पत्रकार आरती के निधन के बारे में सुनकर मैं दुखी हूं। वह बहुत ईमानदार थीं और अपने काम के लिए समर्पित थीं। वह एक फाइटर थीं और मनोरंजन की दुनिया में 24 घंटे काम करती थीं। वो फील्ड पर काम कर रहे लड़कों के लिए मां की तरह थीं और उनका काफी ध्यान रखती थीं। एक युवा रिपोर्टर को उन्होंने शराब पीने की लत छुड़वा दी थी। आरती प्रेग्नेंट थीं और कोविड के चलते हुई दिक्कतों की वजह से उनकी मौत हो गईं। जिंदगी कभी कभी बहुत ज्यादा निर्दयी होती है। ओम शांति।’
कोरोना अवधि के दौरान कई पत्रकार कोरोना से संक्रमित हो गए, जिनमें से यहां अब तक 25 से ज्यादा पत्रकारों की मौत हो चुकी है।
आरती के निधन की खबर सुन बॉलीवुड स्टार्स को भी बड़ा झटका लगा है और वे सोशल मीडिया के जरिए आरती को श्रद्धांजलि दे रहे हैं। वरूण धवन ने आरती के साथ एक तस्वीर शेयर करते हुए लिखा कि वो अपने काम के प्रति बहुत मेहनती और ईमानदार थीं। वरूण ने उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की। इसके अलावा करिश्मा तन्ना, सोफी चौधरी, फिल्मफेयर के एडिटर जीतेश पिल्लई ने भी आरती की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की।
दैनिक जागरण समेत तमाम मीडिया संस्थानों में वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे थे
दैनिक जागरण के पूर्व संपादक एवं वरिष्ठ पत्रकार दिलीप अवस्थी का मंगलवार को लखनऊ में निधन हो गया है। बताया जाता है कि वह उम्र जनित तमाम समस्याओं से जूझ रहे थे।
लखनऊ के मूल निवासी दिलीप अवस्थी को विभिन्न मीडिया संस्थानों में काम करने का 40 साल से ज्यादा का अनुभव था। उन्हें कुछ महीनों पूर्व ही ‘आउटलुक’ (Outlook) समूह में बतौर कंसल्टिंग एडिटर नियुक्त किया गया था।
दिलीप अवस्थी ने लखनऊ में ‘पॉयनियर’ अखबार के साथ अपने करियर की शुरुआत की थी। पूर्व में लगभग 13 साल तक वह ‘इंडिया टुडे’ के साथ जुड़े रहे थे। वह ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’, लखनऊ में डिप्टी रेजिडेंट एडिटर के तौर पर भी अपनी जिम्मेदारी निभा चुके थे।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य समेत तमाम लोगों ने दिवंगत आत्मा को सद्गति और शोकाकुल परिवार को यह दुख सहन करने की शक्ति देने की ईश्वर से प्रार्थना की है।
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देश के प्रमुख मीडिया शिक्षण संस्थान ‘भारतीय जनसंचार संस्थान’ (IIMC) ने महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार के साथ मंगलवार को एक समझौता पत्र (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं। इस एमओयू का उद्देश्य पत्रकारिता और जनसंचार शिक्षा को प्रोत्साहन देना और मौलिक, शैक्षणिक एवं व्यावहारिक अनुसंधान के क्षेत्रों को परिभाषित करना है। आईआईएमसी की ओर से महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी एवं महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय की ओर से कुलपति प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने एमओयू पर हस्ताक्षर किए।
प्रो. संजय द्विवेदी ने बताया कि इस एमओयू के माध्यम से दोनों संस्थान टीवी, प्रिंट मीडिया, डिजिटल मीडिया, जनसंपर्क और विज्ञापन जैसे विषयों पर शोध को बढ़ावा देंगे। उन्होंने कहा कि इस समझौते से हमें एक-दूसरे की कार्यप्रणालियों एवं अनुभवों को जानने एवं समझने का मौका मिलेगा। यह एमओयू अनुसंधान और शैक्षिक डेटा के आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करेगा और संयुक्त कार्यक्रमों को आयोजित करने के अवसरों का भी जरिया बनेगा।
प्रो. द्विवेदी के मुताबिक, ‘आईआईएमसी का उद्देश्य आज की जरूरतों के अनुसार ऐसा मीडिया पाठ्यक्रम तैयार करना है जो छात्रों के लिए रोजगापरक हो। इस दिशा में हम महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के साथ मिलकर कार्य करने के लिए अग्रसर हैं। आईआईएमसी का उद्देश्य छात्रों और संकाय सदस्यों को देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों से संपर्क प्रदान करना भी है। हमने आने वाले वर्षों में विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों के साथ सहयोग करने और अनुसंधान व शिक्षा में महत्वपूर्ण योगदान देने का लक्ष्य रखा है।’
वहीं, महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने कहा, ’आईआईएमसी देश का सबसे प्रतिष्ठित जनसंचार संस्थान है। इस समझौते के माध्यम से हमें आईआईएमसी के पत्रकारिता एवं शोध अध्ययन के लंबे अनुभव का लाभ मिलेगा।’
इस अवसर पर आईआईएमसी के डीन (अकादमिक) प्रो. गोविंद सिंह, डीन (छात्र कल्याण) प्रो. प्रमोद कुमार, प्रो. सुनेत्रा सेन नारायण, प्रो. वीरेंद्र कुमार भारती, प्रो. सुरभि दहिया, प्रो. अनुभूति यादव, प्रो. संगीता प्रणवेंद्र, प्रो. राजेश कुमार एवं महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष डॉ. प्रशांत कुमार भी मौजूद थे।
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‘भारतीय जनसंचार संस्थान’ (आईआईएमसी) द्वारा शुक्रवार को 'शुक्रवार संवाद' (Friday Dialogue) का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में पद्मश्री से सम्मानित वरिष्ठ पत्रकार और ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ के पूर्व अध्यक्ष आलोक मेहता ने ‘पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा’ विषय पर अपने विचार व्यक्त किए। आलोक मेहता का कहना था,‘पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा को पवित्र मानकर उसका पालन कीजिए। यह मार्ग कांटों भरा भले ही हो, लेकिन यदि आपके पास पूरे तथ्य और प्रमाण हैं और आपको अपने कानूनी अधिकारों की जानकारी है, तो आपको बेबाक होकर अपनी बात रखनी चाहिए।’
मेहता ने कहा कि पत्रकारिता करते समय किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं रखना चाहिए। मौजूदा दौर में अधिकतर लोग जिम्मेदारी से अपना काम कर रहे हैं, लेकिन कहीं-कहीं लोग अपनी लक्ष्मण रेखा को पार भी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ब्रिटेन में आचार संहिता का सख्ती से पालन किया जाता है, लेकिन भारत में अब तक हम आचार संहिता को अनिवार्य रूप से लागू करने में सफल नहीं हो पाए हैं।
मेहता ने युवा पीढ़ी के पत्रकारों को आगाह करते हुए कहा कि उन्हें ध्यान रखना होगा कि वे सदैव सुनने को तैयार रहें। दूसरों को भी सुनिए। आप लोगों के प्रति पूर्वाग्रह न रखिए। धर्म, जाति आदि का उल्लेख करने से बचिए। अपराधी की कोई धर्म या जाति नहीं होती। एक व्यक्ति के कारण पूरे समुदाय को दोषी नहीं ठहरा सकते हैं। पहले लिखा जाता था कि दो समुदायों के बीच कोई मामला हुआ, लेकिन अब हालात बदल गए हैं। आप इतनी सावधानी तो बरत ही सकते हैं कि किसी वर्ग और समुदाय को चोट न पहुंचे।
उनका कहना था कि पत्रकार अपनी आचार संहिता स्वयं तय कर सकते हैं। उन्होंने कहा, ‘हम अपने अधिकारों का अतिक्रमण करते हैं, यहीं से गड़बड़ होती है। मीडिया को अपने अधिकारों का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए।’
आलोक मेहता के अनुसार, ‘मीडिया को पारदर्शिता भी बरतनी होगी। आप यदि पत्रकारिता का पेशा चुनते हैं तो आपको भविष्य का ख्याल रखना होगा। आपको देखना होगा कि आने वाली पीढ़ियों को क्या मिलेगा। पत्रकारिता के मूल्यों का पालन कीजिए। आप ऐसे लिखिए कि लोगों को लगे कि यदि अमुक व्यक्ति ने लिखा है तो सही लिखा होगा। मीडिया का काम समाज में निराशा पैदा करना नहीं है।’
कार्यक्रम में आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी विशेष तौर पर उपस्थित थे। आईआईएमसी के डीन अकादमिक प्रो. (डॉ.) गोविंद सिंह ने आलोक मेहता का स्वागत किया। डीन स्टूडेंट्स वेलफेयर प्रो. (डॉ.) प्रमोद कुमार ने कार्यक्रम का संचालन किया तथा धन्यवाद ज्ञापन विकास पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) राजेश कुमार ने किया।
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‘भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण’ (TRAI) के पूर्व चेयरमैन राहुल खुल्लर का मंगलवार की सुबह निधन हो गया है। वह काफी समय से बीमार चल रहे थे। 1975 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के अधिकारी खुल्लर को मई 2012 में ट्राई का चेयरमैन नियुक्त किया गया था। वह करीब तीन साल तक इस पद पर रहे।
खुल्लर ने ऐसे समय में ट्राई के मुखिया का पद संभाला था, जब दूरसंचार आपरेटरों ने स्पेक्ट्रम नीलामी पर नियामक की सिफारिशों के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ था। दिल्ली स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स से पोस्ट ग्रेजुएट खुल्लर ट्राई का चीफ नियुक्त होने से पहले वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में सेक्रेटरी के पद पर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे।
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उत्तर प्रदेश विधानमंडल के बजट सत्र में राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के अभिभाषण के बाद विपक्षी दलों ने विधानसभा की पत्रकार दीर्घा में कवरेज के लिए मीडिया को नहीं बैठने देने का मुद्दा उठाया, जिसके जवाब में विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि कोरोना काल के कारण पत्रकारों के लिए अलग व्यवस्था की गई थी और इस बारे में जल्द ही कोई फैसला लिया जाएगा।
नेता प्रतिपक्ष राम गोविंद चौधरी ने राज्यपाल के अभिभाषण के बाद पूछा कि विधानसभा में पत्रकार दीर्घा से पत्रकारों को क्यों दूर रखा गया है और क्या कोविड-19 केवल पत्रकारों को ही प्रभावित करता है, विधायकों, विधान परिषद सदस्यों, मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष और नेता विपक्ष को नहीं?
चौधरी की इस बात का समर्थन बहुजन समाज पार्टी के विधानमंडल दल के नेता लालजी वर्मा और कांग्रेस विधानमंडल दल की नेता अराधना मिश्रा ने भी किया। इस पर विधान सभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि कोरोना काल में पत्रकारों की सहमति से यह निर्णय लिया गया था कि मीडिया के लिए बैठने की अलग व्यवस्था कर दी जाए और उसी हिसाब से अलग व्यवस्था की गई थी।
उन्होंने कहा कि पत्रकारों ने कोई आपत्ति नहीं जताई है। लालजी वर्मा और अराधना मिश्रा ने इस पर कहा कि कुछ पत्रकारों को अनुमति दी जानी जाए, जिससे कि वे सदन की कार्यवाही सही ढंग से देखें और उसकी रिपोर्टिंग करें। विधानसभा अध्यक्ष ने इसके जवाब में कहा कि इस पर कार्यमंत्रणा समिति की बैठक में विचार कर लिया जाएगा।
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मध्यप्रदेश का स्टेट प्रेस क्लब हर साल की तरह पत्रकारिता पर केंद्रित अपना सालाना जलसा ‘भारतीय पत्रकारिता महोत्सव’ 19 फरवरी यानी आज से आयोजित कर रहा है, जोकि तीन दिनों तक चलेगा। मध्यप्रदेश का यह बहुप्रतिष्ठित का आयोजन रविन्द्र नाट्यगृह इंदौर में आयोजित किया जा रहा हैं। तीन दिनी इस बौद्धिक अनुष्ठान में पत्रकारिता, शिक्षा और सामाजिक सरोकारों से जुड़े ज्वलंत मुद्दों पर रोजाना टॉक-शो, परिचर्चा, परिसंवाद आदि कार्यक्रम होंगे। रोजाना रात्रि को 8 बजे से सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे।
इस जलसे में गुजरात, दिल्ली,जम्मू कश्मीर, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और अन्य राज्यों से तीन सौ से अधिक पत्रकार शिरकत करेंगे। इस बार का आयोजन भारत के महान शब्द शिल्पियों और संपादकों- राहुल बारपुते, राजेंद्र माथुर, शरद जोशी, प्रभाष जोशी और माणिक चन्द्र वाजपेई जी को समर्पित है। इन सभी ने इंदौर को अपनी कर्मस्थली बनाया।
19 से 21 फरवरी 2021 तक चलने वाले इस आयोजन में प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकार और विभिन्न महाविद्यालयों में अध्ययनरत् शोधार्थी छात्र शामिल होंगे। पत्रकारिता महोत्सव के तहत रोजाना मीडिया की लक्ष्मण रेखा, देश की प्रगति और मीडिया, टूटता भरोसा, बढ़ता गुस्सा, महिला मुद्दे और मीडिया, भविष्य की मीडिया शिक्षा एवं कोरोना काल और पत्रकारिता विषय पर टॉक शो होंगे।
इस प्रतिष्ठित आयोजन में जहां मीडियाकर्मियों का सम्मान समारोह होगा, वहीं फैशन फोटोग्राफी पर वर्कशॉप भी होगी। तीनों दिन तीसरे प्रेस आयोग की मांग पर विभिन्न पत्रकार संगठन गंभीर चिंतन करेंगे। इस मौके पर ‘मीडिया की लक्ष्मण रेखा’ विषय पर केन्द्रित स्मारिका का प्रकाशन भी होगा।
असम के मंत्री हेमंत बिस्व सरमा की छवि खराब करने की कोशिश करने के आरोप में बुधवार को चार पत्रकारों समेत छह लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया
असम के मंत्री हेमंत बिस्व सरमा की छवि खराब करने की कोशिश करने के आरोप में बुधवार को चार पत्रकारों समेत छह लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया, जिसमें एक महिला पत्रकार भी शामिल है। इन पर ‘गलत मंशा’ से मंत्री की अपनी बेटी के साथ फोटो शेयर करने का आरोप है।
मंत्री की पत्नी ने पॉक्सो कानून के तहत गुवाहाटी के दिसपुर थाने में शिकायत दर्ज कराई थी, जिसके बाद पुलिस ने मामले की जांच शुरू की।
गुवाहाटी शहर के पुलिस आयुक्त मुन्ना प्रसाद गुप्ता ने बताया कि स्थानीय समाचार वेबसाइट ‘प्रतिबिंब लाइव’ के प्रधान संपादक तौफीकुद्दीन अहमद और समाचार संपादक आसिफ इकबाल हुसैन को साजिश की जांच के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया है। इसके अलावा दो अन्य कर्मचारियों नजमुल हुसैन और नुरुल हुसैन को हिरासत में लिया गया, जिसके बाद उन्हें मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें पांच दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया गया।
पुलिस ने कहा कि दो अन्य पत्रकारों शिवसागर में 'स्पॉटलाइट अस' के नांग नोयोनमोनी गोगोई और 'बोडोलैंड टाइम्स' की पुली मुचाहेरी को भी इस सिलसिले में गिरफ्तार किया गया है।
वहीं, मंत्री सरमा ने पत्रकारों से कहा कि यह राजनीतिक साजिश का एक स्पष्ट मामला है, लेकिन इस हद तक नीचे जाने से संबंधित लोगों की घटिया मानसिकता झलकती है। यह फोटो गलत इरादे से पोस्ट किया गया। यह बड़ा ही परेशान करने वाला है, जिससे वह रात भर सो नहीं सके।
अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था) जीपी सिंह ने कहा कि पुलिस यौन अपराध से बच्चों की सुरक्षा (पॉक्सो) अधिनियम के सख्त प्रावधानों के तहत ऐसे सभी प्रयासों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेगी।
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