अगर आप औरंगजेब को नायक मानते हैं तो इस किताब में आपको उसकी खलनायकी पढ़ने को मिलेगी और यदि आप उसे खलनायक मानते हैं तो कई जगहों पर आपको वो एक नायक की तरह खड़ा मिलेगा
अजय शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार।।
अगर आप औरंगजेब को नायक मानते हैं तो इस किताब में आपको उसकी खलनायकी पढ़ने को मिलेगी और यदि आप उसे खलनायक मानते हैं तो कई जगहों पर आपको वो एक नायक की तरह खड़ा मिलेगा। अगर आप दारा शिकोह को अच्छा मानते हैं तो इस किताब में उसकी वो कमियां भी मिलेंगी, जिसकी वजह से उसे सत्ता से दूर रहना पड़ा। कैदखाने में जिंदगी गुजारनी पड़ी।
फारसी फरमान
‘औरंगजेब नायक या खलनायक पार्ट-2 सत्ता संघर्ष’ की कहानी कुछ ऐसी ही है। इसमें लेखक अफसर अहमद ने औरंगजेब-दारा और शाहजहां के बीच जो कुछ भी हुआ, उसे ऐतिहासिक तथ्यों और मुगलकालीन फरमानों के आधार पर हूबहू रखने की कोशिश की है। इतिहासकारों की तरह किसी पक्ष को लेकर अपने विचार थोपने से लेखक बचता रहा है। तीनों किरदारों को लेकर फैली भ्रांतियों और मिथों दूर करके यह किताब उन्हें नए सिरे से समझने का मौका देती है।
कई फैक्ट चैक
लेखक ने किताब में एक पत्रकार की तरह ही मुगलकालीन तख्त को लेकर चले संघर्ष के बारे में अलग-अलग फैक्ट रखने की कोशिश की है। उसे अपने नजरिए में ढालने का काम पाठकों का खुद का है। तीनों किरदारों में आप जो खोजना चाहते हैं, उसे खोज लीजिए। लेखक बड़ा सवाल करता है कि गद्दी को लेकर जो खूनी सत्ता संघर्ष हुआ, क्या उसमें सिर्फ औरंगजेब की ही भूमिका थी या फिर इसमें दारा की ओर से भी कोई वजह बनाई गई थी?
शाहजहां की भूमिका
इसमें मुगल राज परिवार में साजिशों, धोखों और कई बड़े युद्धों की दास्तान हैं। दूसरे खंड में उन सारे सवालों के जवाब खोजे गए हैं जो लोगों के मन में उठते रहते हैं। जैसे औरंगजेब पर अपने भाइयों के कत्ल और पिता को नजरबंद करने वाला सवाल। दूसरे खंड में सत्ता संघर्ष के दौरान शाहजहां की भूमिका की भी विस्तार से पड़ताल की गई है। इसके लिए इतिहास की पुरानी किताबों, बीकानेर आर्काइव में रखे गए मुगलकालीन फरमानों और ऐतिहासिक दस्तावेजों की मदद ली गई है।
क्या दारा का सिर काटा गया था?
किताब में बेहद विवादास्पद तथ्य दारा का सिर औरंगजेब ने काटा था या नहीं, इसका फैक्ट चैक किया गया है। लेखक ने हकीकत को जांचने परखने के लिए उस दौर के इतिहासकारों खफी खान, मुत्सईद खान, निकोलो मनुच्ची और फ्रांसिस बर्नियर के तथ्यों की जांच की है। किताब में इन सभी इतिहासकारों के वर्जन हैं।
गौरतलब है कि बीते साल अप्रैल में आए ‘औरंगजेब नायक या खलनायक’ बुक सीरीज के पहले खंड में लेखक ने औरंगजेब की शुरुआती जिंदगी पर रोशनी डाली थी। इसके साथ ही उन वजहों का भी उल्लेख किया था, जिनकी वजह से शाहजहां के चारों बेटों खासकर दारा और औरंगजेब के बीच दुश्मनी चरम पर पहुंच गई। हिंदी भाषा में लिखा गया दूसरा खंड ‘सत्ता संघर्ष’ 184 पेज का है। इसे इवोको पब्लिकेशंस ने प्रकाशित किया है।
BBC में लंबे समय तक कार्यरत रही थीं रेणु अगाल। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बुधवार की देर रात नोएडा के कैलाश अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली।
न्यूज वेबसाइट ‘द प्रिंट’ (The Print) के हिंदी संस्करण की संपादक रेणु अगाल (Renu Agal) का निधन हो गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बुधवार की देर रात नोएडा के कैलाश अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली।
बता दें कि 25 मार्च को उत्तरी दिल्ली में हुई एक सड़क दुर्घटना में रेणु अगाल के सिर में काफी चोटें आई थीं। गंभीर हालत में रेणु को अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उन्होंने बुधवार की देर रात दम तोड़ दिया।
रेणु अगाल बीबीसी में भी लंबे समय तक कार्यरत रही थीं। वह वर्ष 1996 में बीबीसी लंदन से बतौर प्रड्यूसर जुड़ी थीं। वह बीबीसी हिंदी रेडियो के लिए इंटरेक्टिव प्रोग्राम टॉकिंग प्वाइंट और वीकली विश्लेषण कार्यक्रम विवेचना और युवाओं पर आधारित साप्ताहिक शो बदलता भारत भी बनाती थीं।
उन्होंने बीबीसी के लंदन और दिल्ली स्थित दोनों दफ्तरों में अपनी जिम्मेदारी निभाई थी। बीबीसी को अलविदा कहने के बाद अगाल ने दो नामी-गिरामी प्रकाशन संस्थानों में बतौर संपादक काम किया। वह पहले पेंग्विन इंडिया से जुड़ी थीं और उसके बाद जगरनॉट से।
बीबीसी लंदन से पहले रेणु अंग्रेजी अखबार फाइनेंशियल एक्सप्रेस में बतौर रिपोर्टर काम किया करती थीं। उन्होंने दिल्ली के मिरांडा हाउस कॉलेज और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन से पढ़ाई की थी। रेणु अगाल के निधन पर तमाम वरिष्ठ पत्रकारों ने उन्हें अपनी श्रद्धांजलि दी है।
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कई तेलुगु पब्लिकेशंस और न्यूज चैनल्स में अपनी रिपोर्ट से अलग पहचान बना चुके वरिष्ठ पत्रकार के. अमरनाथ का मंगलवार को हैदराबाद में COVID-19 की वजह से निधन हो गया। वे 69 साल के थे। इस बीमारी के इलाज के लिए उन्हें 10 दिन पहले शहर के निजाम इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (NIMS) अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
पत्रकारिता में उन्हें 40 वर्षों का अनुभव था। इस दौरान, अमरनाथ ने तेलुगु दैनिक ‘आंध्रभूमि’ में लंबे समय तक काम किया। इसके अलावा अन्य तेलुगु व नेशनल पब्लिकेशंस में भी अपना योगदान दिया।
अपने करियर के दौरान, अमरनाथ ने यूनाइटेड आंध्र प्रदेश यूनियन फॉर वर्किंग जर्नलिस्ट्स (APUWJ) और इंडियन यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (UJI) में विभिन्न पदों पर काम किया। वे प्रेस क्लब ऑफ इंडिया (पीसीआई) के सदस्य भी थे।
वरिष्ठ पत्रकार की मृत्यु पर हैदराबाद प्रेस क्लब और अन्य जर्नलिस्ट एसोसिएशंस ने शोक व्यक्त किया। तेलंगाना के स्वास्थ्य मंत्री ईटेला राजेंद्र, आईटी मंत्री के.टी. रामा राव और मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव सहित कई विधायकों ने अपनी संवेदना व्यक्त की।
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पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में अज्ञात बंदूकधारियों ने एक वरिष्ठ पत्रकार को उनके घर के बाहर गोली मार दी। पत्रकार का नाम अबसार आलम है और उन पर तब गोली चलाई गई, जब वे अपने घर के बाहर टहल रहे थे। आलम पाकिस्तान इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अथॉरिटी (PEMRA) के चेयरमैन भी हैं। गोली पत्रकार के पसलियों में लगी, जिसके बाद से वे अस्पताल में भर्ती हैं और फिलहाल खतरे से बाहर हैं।
अबसार आलम ने खुद वीडियो अपलोड कर इस हमले की जानकारी दी है। उन्होंने बताया, ‘मेरी पसलियों में गोली लगी है। हालांकि मैंने उम्मीद नहीं छोड़ी है। जिन लोगों ने यह किया है, मैं उनसे कहना चाहूंगा कि मैं इन हरकतों से डरने वाला नहीं हूं।’ अभी तक किसी ने भी इस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है।
वहीं, इस्लामाबाद पुलिस ने मामले की जांच के लिए विशेष टीम का गठन किया है। इस्लामाबाद पुलिस ने ट्वीट कर कहा, ‘टीम को सभी तरह के वैज्ञानिक व फोरेंसिक तरीके अपनाने को कहा गया है ताकि आरोपियों का पता लगाया जा सके।’
पाकिस्तान के सूचना-प्रसारण मंत्री फवाद चौधरी ने भी इस हमले की निंदा की है। उन्होंने कहा कि पुलिस मामले की गंभीरता से जांच कर रही है।
#BreakingNews: Senior journalist and ex chairman #PEMRA @AbsarAlamHaider shot outside his home. Strong condemnable and everybody praye for Absar Sahb. pic.twitter.com/iHcCEtZZhD
— Asad Ali Toor (@AsadAToor) April 20, 2021
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दैनिक जागरण, आगरा के युवा फोटो पत्रकार अमित भारद्वाज का मंगलवार की सुबह निधन हो गया है।
दैनिक जागरण, आगरा के युवा फोटो पत्रकार अमित भारद्वाज का निधन हो गया है। तबीयत खराब होने पर करीब दो दिन पहले ही अमित को आगरा में सिकंदरा स्थित रेनबो हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था, जहां मंगलवार की सुबह उन्होंने दम तोड़ दिया।
करीब 32 वर्षीय अमित लगभग पांच वर्षों से दैनिक जागरण में फोटो पत्रकार थे। बताया जाता है कि करीब एक हफ्ते पूर्व उन्हें बुखार और उल्टी की समस्या हुई थी। इस पर उन्होंने अपने फैमिली डॉक्टर से दवा ले ली। हालांकि, दवा लेने पर बुखार उतर गया था, लेकिन उल्टी आनी बंद नहीं हुई। इस बीच कराई गई कोविड की जांच में रिपोर्ट निगेटिव आई। करीब दो दिन पूर्व हालत बिगड़ने पर अमित को रेनबो अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां डॉक्टरों ने उनके लिवर में सूजन बताई। मंगलवार की सुबह रेनबो अस्पताल में ही अमित का निधन हो गया।
मूल रूप से आगरा के रहने वाले अमित की करीब डेढ़ साल पहले ही शादी हुई थी। उनके छह माह का बेटा है। अमित के निधन पर तमाम पत्रकारों ने दिवंगत आत्मा को सद्गति और शोकाकुल परिवार को यह दुख सहन करने की शक्ति देने की ईश्वर से प्रार्थना की है।
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हरियाणा के रेवाड़ी जिले में एक पत्रकार पर जानलेवा हमला करने का मामला सामने आया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, रेवाड़ी जिला के डहीना बस स्टैंड पर सोमवार की सुबह पत्रकार संजय कुमार पर मोटरसाइकिल सवाल चार बदमाशों ने कुल्हाड़ी से जानलेवा हमला कर उसे लहूलुहान कर दिया। संजय कुमार ने बस स्टैंड स्थित पुलिस चौकी में जाकर अपनी जान बचाई।
घटना सोमवार की सुबह करीब सवा चार बजे उस समय हुई, जब संजय कुमार बस स्टैंड स्थित एजेंसी जा रहे थे। पुलिस चौकी के जवानों ने लहूलुहान हालत में संजय कुमार को को प्राथमिक उपचार के लिए निजी अस्पताल में भर्ती कराया।
गंभीर हालत को देखते हुए संजय कुमार को रेवाड़ी के ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया गया है। संजय कुमार की शिकायत पर पुलिस ने चार अज्ञात बदमाशों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।
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‘द पॉयनियर’ की पॉलिटिकल एडिटर तविशी श्रीवास्तव का रविवार को कोविड-19 की वजह से निधन हो गया। वे 73 साल की थीं। तविशी को सांस लेने में तकलीफ और बुखार होने के बाद रविवार सुबह लखनऊ के केजीएमयू अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनकी हालत बिगड़ने के बाद शाम को उन्हें आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया था। रात-रात होते-होते उनकी हालत इतनी बिगड़ गई, उनके सांसो की डोर टूट गई।
उन्होंने अपने करियर की शुरुआत पॉयनियर के साथ फ्रीलांसर के रूप में की थी और बाद में कठिन परिश्रम के जरिए सफलता की सीढ़ियां चढ़ते हुए यहां तक पहुंची थीं। रविवार एडिशन में उनका कॉलम ‘उल्टा प्रदेश’ काफी लोकप्रिय था। उनके निधन पर तमाम नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों ने पर शोक व्यक्त किया।
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न्यूज एजेंसी पीटीआई के पूर्व खेल संपादक के जगन्नाथ राव का रविवार को निधन हो गया। वे 78 साल के थे और पिछले छह साल से कैंसर से जूझ रहे थे।
उनके परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटी है। खेल संवाददाता होने के बावजूद राव ने 1971 में पाकिस्तानी सेना के भारतीय सेना के सामने सरेंडर करने की खबर ब्रेक की थी। इसके बाद बांग्लादेश का गठन हुआ था। राव 1964 से 2002 में सेवानिवृत्त होने तक पीटीआई के साथ रहे।
राव ने छह ओलंपिक और दो एशियाई खेलों के अलावा भारतीय क्रिकेट टीम का 1982-83 का पाकिस्तान का एतिहासिक दौरा कवर किया।
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कन्नड़ के लेखक, संपादक और लेक्सियोग्राफर जी वेंकटसुब्बैया का बेंगलुरु में सोमवार की सुबह निधन हो गया। वे 107 साल के थे। कन्नड़ भाषा में उनके योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री व साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी नवाजा गया है।
कन्नड़ साहित्यिक क्षेत्र में लोकप्रिय जी वेंकटसुबैया एक लेक्सियोग्राफर, व्याकरणिक और साहित्यिक आलोचक थे। उन्होंने 12 शब्दकोश संकलित किए हैं। उनकी रचनाओं में व्याकरण, कविता, अनुवाद और निबंध सहित कन्नड़ साहित्य के विभिन्न रूप शामिल हैं।
जी वेंकटसुब्बैया का जन्म 23 अगस्त 1913 में मांड्या जिले के गंजम गांव के श्रीरंगपटना में हुआ था। वे आठ भाई-बहनों में दूसरे स्थान पर थे। उनके पिता गंजम थिमनियाह एक प्रसिद्ध कन्नड़ और संस्कृत विद्वान थे। जी वेंकटसुब्बैया को अपने पिता से ही कन्नड़ के प्रति प्रेम की प्रेरणा मिली थी। जी वेंकटसुब्बैया की प्राथमिक स्कूली शिक्षा दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक के बन्नूर और मधुगिरि के शहरों में हुई है। कन्नड़ में पोस्ट-ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद उन्होंने मांड्या में एक नगरपालिका स्कूल में बतौर शिक्षक के रूप में अपना करियर शुरू किया था। इसके बाद वे दावणगेरे के एक हाई स्कूल और मैसूरु में महाराजा कॉलेज में पढ़ाने चले गए। फिर वे बेंगलुरु के विजया कॉलेज में शिफ्ट हो गए। 1973 में जी वेंकटसुब्बैया ने विजया कॉलेज से सेवानिवृत्त होने के बाद इसके मुख्य संपादक के रूप में कन्नड़-टू-कन्नड़ शब्दकोश पर काम करने की जिम्मेदारी ली। उन्होंने 2011 में बेंगलुरु में आयोजित 77वें अखिल भारतीय कन्नड़ साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता की थी।
जी वेंकटसुब्बैया को उनके स्मारकीय साहित्यिक कृतियों के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया जिनमें पद्मश्री, पम्पा पुरस्कार, साहित्य अकादमी द्वारा भाषा सम्मान, कर्नाटक राज्योत्सव पुरस्कार और कर्नाटक साहित्य अकादमी पुरस्कार शामिल हैं।
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कोरोनावायरस (कोविड-19) का कहर दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। तमाम लोग इसकी चपेट में आकर अपनी जान गंवा चुके हैं और कई लोगों का विभिन्न अस्पतालों में इलाज चल रहा है। कोरोना के संक्रमण के कारण जान गंवाने वालों में कई पत्रकार भी शामिल हैं। ऐसी ही एक दुखद खबर आगरा से आई है। खबर है कि हिन्दुस्तान के आगरा एडिशन में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार बृजेन्द्र पटेल का कोरोना से निधन हो गया है।
कुछ दिनों पूर्व तबीयत खराब होने पर बृजेन्द्र पटेल ने कोविड-19 की जांच कराई थी, जिसमें रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी, इसके बाद उन्हें आगरा के निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। हालत में थोड़ा सुधार होने पर एक-दो दिन पूर्व उन्हें एसएन अस्पताल, आगरा में भर्ती कराया गया था, जहां शनिवार की सुबह उन्होंने दम तोड़ दिया।
करीब 50 वर्षीय बृजेन्द्र पटेल कानपुर के मूल निवासी थे। लगभग 25 वर्षों से मीडिया में सक्रिय बृजेन्द्र अब तक दैनिक आज, अमर उजाला और सहारा समेत तमाम मीडिया संस्थानों में अपनी जिम्मेदारी निभा चुके थे। करीब दो साल से वह हिंदुस्तान, आगरा में अपनी भूमिका निभा रहे थे।
बृजेन्द्र पटेल के निधन पर डॉ. अनिल दीक्षित, विनोद भारद्वाज, पीपी सिंह, अवधेश माहेश्वरी, ताज प्रेस क्लब के महासचिव उपेंद्र शर्मा और राज कुमार दंडौतिया सहित तमाम पत्रकारों ने दिवंगत आत्मा को सद्गति और शोकाकुल परिवार को यह दुख सहन करने की शक्ति देने की ईश्वर से प्रार्थना की है।
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प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) के पूर्व पत्रकार जमालुद्दीन अहमद का निधन हो गया। उनके पारिवारिक सदस्यों ने शुक्रवार को मीडिया को बताया कि जमालुद्दीन अहमद का निधन हाल में एक बीमारी की वजह से नई दिल्ली में हुआ।
जमालुद्दीन अहमद 2007-2008 के दौरान मध्यप्रदेश के भोपाल में पीटीआई के ब्यूरो प्रमुख रहे। उन्होंने साथ ही यहां कई समाचार पत्रों के लिए भी काम किया।
वहीं आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अहमद के निधन पर दुख व्यक्त किया है और शोकाकुल परिवार को यह दुख सहन करने की शक्ति देने की प्रार्थना ईश्वर से की।
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