'द इकनॉमिस्ट' मैगजीन के जरिए ‘असहिष्णुता’ के मुद्दे पर खुलकर बोले पीएम मोदी

समाचार4मीडिया ब्यूरो ।। देश में इन दिनों ‘असहिष्णुता’ के मुद्दे पर बहस छिड़ी हुई है। टीवी चैनलों की डिबेट से लेकर संसद की चौखट तक हर जगह ये मुद्दा छाया हुआ है। इस बीच, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी खुलकर अपनी बात सबके सामने रख दी है। इस बार उन्होंने मैगजीन का सहारा लिया है। हाल ही लंदन यात्रा के दौरान असहिष्णुता के मुद्दे पर च

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Published - Thursday, 19 November, 2015
Last Modified:
Thursday, 19 November, 2015
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समाचार4मीडिया ब्यूरो ।। देश में इन दिनों ‘असहिष्णुता’ के मुद्दे पर बहस छिड़ी हुई है। टीवी चैनलों की डिबेट से लेकर संसद की चौखट तक हर जगह ये मुद्दा छाया हुआ है। इस बीच, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी खुलकर अपनी बात सबके सामने रख दी है। इस बार उन्होंने मैगजीन का सहारा लिया है। हाल ही लंदन यात्रा के दौरान असहिष्णुता के मुद्दे पर चुप्पी तोड़ने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'द इकनॉमिस्ट' मैगजीन के लेख में इस ओर अपना और सरकार का पक्ष रखा है। देश में बढ़ती असहिष्णुता के विवाद को लेकर पीएम मोदी ने लिखा है कि भारत में जबरदस्त सामाजिक ताकत और बहुलतावाद है। 'द इकोनॉमिस्ट मैगजीन' में छपे लेख में केंद्र सरकार के 18 महीने पूरा होने पर पीएम मोदी ने कहा कि लोगों को उनसे और उनकी सरकार से बड़ी उम्मीदें हैं। असहिष्णुता के मुद्दे पर आलोचनाओं के बीच हाल के दिनों में यह दूसरा मौका है, जब पीएम ने विविधता और बहुलवाद से संबंधित मुद्दों पर चर्चा की। काम करने के अपने 'सबका साथ, सबका विकास' के रुख की बात करते हुए उन्होंने दावा किया कि सबूत बताते हैं कि 'स्वच्छ भारत अभियान' और 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' अभियान स्वच्छता और लैंगिक समानता में आमूलचूल बदलाव ला रहे हैं। पीएम ने जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को लेकर विकसित देशों पर निशाना साधा और कहा कि दुनिया को संरक्षण के मामले में भारत की पुरानी परंपराओं से सीख लेनी चाहिए। लेख के कुछ अंशों को मैगजीन के पेरिस स्थित यूरोप बिजनेस संवाददाता ने ट्वीट किया हैं। मैगजीन 30वें स्पेशल एडिशन के मेन पेज पर 'द वर्ल्ड इन 2016' शीर्षक के साथ मोदी सहित दूसरे वैश्विक नेताओं के कार्टून प्रकाशित किए गए हैं। मैगजीन के विशेष हिस्से में मोदी के अलावा आईएमएफ प्रमुख क्रिस्टियन लगार्डे और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई सहित अन्य ने योगदान दिया है। मैगजीन का यह स्पेशल एडिशन गुरुवार को बाजार में आ जाएगा।

 

 

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INS के अध्यक्ष राकेश शर्मा ने बताया, PRP विधेयक 2023 क्यों है जरूरी

चुनौतियों से जूझ रहे उद्योग पर इस विधेयक के संभावित प्रभाव को लेकर और अधिक जानकारी हासिल करने के लिए हमारी सहयोगी वेबसाइट 'एक्सचेंज4मीडिया' ने आईएनएस के अध्यक्ष राकेश शर्मा से बातचीत की।

समाचार4मीडिया ब्यूरो by
Published - Friday, 22 December, 2023
Last Modified:
Friday, 22 December, 2023
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लोकसभा में गुरुवार को प्रेस और पत्र-पत्रिका पंजीकरण विधेयक, 2023 (PRP) विधेयक 2023 पारित हो गया, जो 1867 के पुराने प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम से बदल दिया गया है, जिसने 1867 से देश में प्रिंट और प्रकाशन उद्योग के पंजीकरण को नियंत्रित किया। यह विधेयक पहले ही मानसून सत्र में राज्यसभा में पारित हो चुका है, लिहाजा विधेयक को कानून बनने के लिए अब राष्ट्रपति की मंजूरी का इंतजार है। 

‘प्रेस एवं पत्र-पत्रिका पंजीकरण विधेयक, 2023’ के नए कानून में किसी भी कार्यालय में गए बिना ही ऑनलाइन प्रणाली के जरिए पत्र-पत्रिकाओं के शीर्षक आवंटन और पंजीकरण की प्रक्रिया को सरल और समकालिक बना दिया गया है। इससे प्रेस रजिस्ट्रार जनरल को इस प्रक्रिया को काफी तेज करने में मदद मिलेगी, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि प्रकाशकों, विशेषकर छोटे और मध्यम प्रकाशकों को अपना प्रकाशन शुरू करने में किसी कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ेगा।

सबसे जरूरी चीज यह है कि प्रकाशकों को अब जिला मजिस्ट्रेट या स्थानीय अधिकारियों के पास संबंधित घोषणा को प्रस्तुत करने और इस तरह की घोषणाओं को प्रमाणित कराने की आवश्यकता नहीं होगी। इसके अलावा, प्रिंटिंग प्रेस को भी इस तरह की कोई घोषणा प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं होगी। इसके बजाय केवल एक सूचना ही पर्याप्त होगी। वर्तमान में इस पूरी प्रक्रिया में 8 चरण शामिल थे और इसमें काफी समय लगता था।

चुनौतियों से जूझ रहे उद्योग पर इस विधेयक के संभावित प्रभाव को लेकर और अधिक जानकारी हासिल करने के लिए हमारी सहयोगी वेबसाइट 'एक्सचेंज4मीडिया' ने  इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी (आईएनएस) के अध्यक्ष राकेश शर्मा से बातचीत की। शर्मा आईटीवी नेटवर्क और गुड मॉर्निंग मीडिया इंडिया के डायरेक्टर के तौर पर भी कार्यरत हैं।

बातचीत के प्रमुख अंश:

आईएनएस के नजरिए से आप हाल ही में पारित PRP विधेयक को किस तरह से देखते हैं, और क्या बता सकते हैं कि इसका समाचार पत्र उद्योग पर क्या प्रभाव पड़ेगा? 

हम PRP विधेयक का तहे दिल से स्वागत करते हैं, जो समाचार पत्र प्रकाशकों को महत्वपूर्ण लाभ पहुंचाने के लिए है। पिछले कानून में राज्य और केंद्र सरकार के स्तर पर कई कार्यालय शामिल थे, जिससे देरी और बाधाएं उत्पन्न होती थीं। नए कानून से प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने, सरकारी स्वीकृति को कम करने और सुचारू तौर पर संंचालित करने की सुविधा मिलने की उम्मीद है।

क्या आप मानते हैं कि ऑनलाइन पंजीकरण प्रक्रिया समाचार पत्र उद्योग के विकास में योगदान देगी, क्योंकि और अधिक प्लेयर इस क्षेत्र में प्रवेश करेंगे? वर्तमान में कितने समाचार पत्र पंजीकृत हैं और आप किस तरह की ग्रोथ की उम्मीद करते हैं?

वर्तमान में भारत में 1.5 लाख समाचार पत्र पंजीकृत हैं। हालांकि मैं अनुमानित वृद्धि का आंकड़ा नहीं दे सकता, लेकिन सुव्यवस्थित ऑनलाइन पंजीकरण प्रक्रिया से व्यापार करने में और आसानी होने की उम्मीद है। समाचार पत्र उद्योग अब आगे बढ़ने के लिए तैयार है।

नए विधेयक में जिलाधिकारी की शक्ति को समाप्त करने के साथ, क्या आपको लगता है कि यह समाचार पत्रों की गुणवत्ता से समझौता है, क्योंकि इससे किसी को भी पंजीकरण करने और प्रकाशन शुरू करने की अनुमति मिल सकती है?

नहीं, जिलाधिकारी और पुलिस प्रमुखों की मंजूरी को हटाना एक सकारात्मक कदम है। उनकी संलिप्तता लालफीताशाही के अलावा और कुछ नहीं थी। नए कानून का उद्देश्य लालफीताशाही को कम करना और प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना है। पूरी प्रक्रिया, जिसमें पहले एक वर्ष से अधिक का समय लगता था, अब 60 दिनों में समाप्त होने की उम्मीद है। यदि कोई मौजूदा स्वामित्व पंजीकृत करने का प्रयास करता है या गलत दस्तावेज प्रदान करता है, तो उनका पंजीकरण अस्वीकार कर दिया जाएगा या रद्द कर दिया जाएगा। 

नए विधेयक में उल्लंघनों के लिए ज्यादा से ज्यादा छह महीने तक की जेल की सजा का प्रावधान है, जबकि पिछले कानून में मामूली अपराधों के लिए भी कारावास की सजा होती थी। क्या आपको यह प्रावधान कमजोर लगता है और क्या कोई जोखिम दिखता है?

ब्रिटिश राज की विरासत, 1867 के अधिनियम ने भारी जुर्माने और इसके साथ ही प्रेस पर पूर्ण नियंत्रण लागू था। फर्जी खबरों से निपटने के लिए हमारे पास पर्याप्त सुरक्षा उपाय हैं। बड़े उल्लंघनों के लिए जेल की सजा का प्रावधान है और  छोटे अपराधों के लिए कारावास का सहारा लिए बिना ही जवाबदेही तय करना ही एक महत्वपूर्ण उपाय  है।

आईएनएस का अगला कदम क्या है और आप नए कानून के बारे में समाज, विशेषकर संभावित प्रकाशकों को कैसे शिक्षित करने की योजना बना रहे हैं?

हम अपनी होने वाली बोर्ड बैठक में कानून के हर प्रावधान की गहन जांच करेंगे और इसके फायदे व नुकसान दोनों पर चर्चा करेंगे। हम समाज और संभावित प्रकाशकों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए मीडिया से बात कर रहे हैं।

आपने इस विधेयक के केवल फायदों के बारे में ही बात की है। क्या इसमें कोई खामियां हैं?

फिलहाल मुझे इस बिल के सकारात्मक पहलू ही नजर आ रहे हैं। हालांकि, हमारी बोर्ड बैठक में विचार-विमर्श के दौरान, कुछ सदस्य संभावित कमियों की पहचान कर सकते हैं। देखिए, कानून के नियम अभी बनने बाकी हैं और सरकार इस प्रक्रिया में आईएनएस को भी शामिल करेगी। नियम-निर्माण चरण के दौरान किसी भी मुद्दे या चिंता का समाधान किया जा सकता है। 

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पाठकों तक Magazines की पहुंच आसान और सुनिश्चित हो, इस पर है हमारा मुख्य फोकस: अनंत नाथ

‘दिल्ली प्रेस’ के एग्जिक्यूटिव पब्लिशर, 'द कारवां' मैगजीन के संपादक और ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ व ‘द एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजींस’ के प्रेजिडेंट अनंत नाथ ने समाचार4मीडिया के साथ खास बातचीत की है।

पंकज शर्मा by
Published - Thursday, 21 December, 2023
Last Modified:
Thursday, 21 December, 2023
Anant Nath

देश के प्रमुख मैगजीन पब्लिशर्स में शुमार ‘दिल्ली प्रेस’ (Delhi Press) के एग्जिक्यूटिव पब्लिशर और 'द कारवां' (The Caravan) मैगजीन के संपादक अनंत नाथ को पिछले कुछ समय में दो और बड़ी जिम्मेदारियां मिली हैं। उन्हें देश में संपादकों की शीर्ष संस्था ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ (Editors Guild Of India) और देश में पत्रिकाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रमुख संगठन ‘द एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजींस’ (AIM) का प्रेजिडेंट चुना गया है। हाल ही में समाचार4मीडिया के साथ बातचीत में अनंत नाथ ने मीडिया समेत तमाम अहम मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखी। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश:

पिछले दिनों आपको देश में पत्रिकाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रमुख संगठन ‘द एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजींस’ (AIM) का प्रेजिडेंट चुना गया है। बतौर प्रेजिडेंट अपने कार्यकाल में आप किन प्रमुख प्वॉइंट्स पर फोकस करेंगे? 

‘द एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजींस’ का मुख्य फोकस मैगजींस के डिस्ट्रीब्यूशन को और बेहतर बनाने का रहा है। कोरोना काल के पहले भी मैगजींस का डिस्ट्रीब्यूशन काफी बुरी तरह प्रभावित था, क्योंकि पारंपरिक न्यूजस्टैंड चैनल काफी कमजोर हो रहा था। तमाम लोगों का ये मानना है कि लोग डिजिटल की तरफ ज्यादा चले गए इसलिए प्रिंट कम हो गया है। यह बात शायद अखबारों के लिए सच हो, क्योंकि अपने देश में अखबारों का सर्कुलेशन काफी ज्यादा है। ऐसे में हो सकता है कि वहां पर एक तरह से यह स्थिति आ गई हो कि तमाम लोग डिजिटल की ओर जा रहे हों और अखबार न पढ़ रहे हों, लेकिन मैगजींस का सर्कुलेशन अखबारों के मुकाबले कम रहा है और उसकी डिमांड अभी भी काफी है।

ऐसे में यदि कई लोग डिजिटल की ओर जा भी रहे हैं तो भी प्रिंट मैगजींस की डिमांड काफी है। हालांकि, डिस्ट्रीब्यूशन काफी कमजोर हो गया है, ऐसे में हमारा फोकस इस बात पर है कि कैसे हम डिस्ट्रीब्यूशन को बेहतर बनाएं और मजबूत स्थिति में लाएं। इसमें दो चीजें हैं। पहली तो ट्रेडिशनल न्यूजस्टैंड चैनल है और दूसरा है सबस्क्रिप्शन। हमारा ज्यादा फोकस इस बात पर रहा है कि सबस्क्रिप्शन चैनल को कैसे मजबूत करें क्योंकि भारत में मैगजींस का सबस्क्रिप्शन चैनल कई पश्चिमी देशों के मुकाबले काफी कम है। यहां न्यूजस्टैंड चैनल तो अच्छी स्थिति में है लेकिन सबस्क्रिप्शन चैनल के मोर्चे पर काफी काम करने की और उसे मजबूत बनाने की जरूरत है।

इसके लिए हमने भारतीय डाक विभाग से मिलकर ‘मैगजीन पोस्ट’ नाम से एक सर्विस शुरू कराई थी, जिसमें मैगजींस के लिए स्पीड पोस्ट की सेवा काफी कम रेट पर उपलब्ध है और इसकी डिलीवरी भी सामान्य डाक सेवा से काफी अच्छी व तेज है। हम उसी एजेंडा को आगे लेकर जा रहे हैं कि कैसे हम मैगजींस के डिस्ट्रीब्यूशन को और बेहतर बना सकते हैं, ताकि पाठकों तक इनकी पहुंच आसान और सुनिश्चित हो सके। इसके लिए मैगजीन पोस्ट के अलावा ई-कॉमर्स डिस्ट्रीब्यूशन पार्टनर्स से भी हमारी बात चल रही है कि कैसे वे मैगजीन की एक कॉपी को भी आसानी से और कम समय में पाठकों तक उपलब्ध करा सकते हैं।

मैगजींस को फिर चाहे वह मैगजीन का करेंट इश्यू ही क्यों न हो, पाठकों तक पहुंचाने के लिए हम देश में ऐसा डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क तैयार करने की कोशिश में लगे हुए हैं, जिसमें डिजिटली ऑर्डर दिया जा सके और जल्द से जल्द उसकी डिलीवरी सुनिश्चित हो सके। हमने ‘ब्लिंकिट’ के साथ मिलकर इस तरह का प्रयास शुरू किया है, जिसमें आप वहां से मैगजीन ऑर्डर कर सकते हैं। फिलहाल दिल्ली से इसकी शुरुआत हुई है और इस सेवा को दिल्ली, पुणे व बेंगलुरु और कोलकाता समेत देश के तमाम हिस्सों से शुरू किया जा रहा है। एमेजॉन से भी हमारी बातचीत चल रही है, ताकि वहां पर मैगजींस की एक कैटेगरी दोबारा से बनाई जाए।

कुल मिलाकर हम डिस्ट्रीब्य़ूशन के मोर्चे पर काफी काम कर रहे हैं, ताकि इसे और मजबूत किया जा सके और देश भर में डिस्ट्रीब्य़ूशन आसान व जल्द सुनिश्चित किया जा सके। इसके लिए हम काफी समय से एक ऐप पर भी काम कर रहे हैं, ताकि सबस्क्रिप्शन बढ़ाने के लिए हम सुबह घरों में अखबार पहुंचाने वाले हॉकर्स को भी उसमें जोड़ सकें। क्योंकि इन हॉकर्स को पता रहता है कि किस घर में कौन सा अखबार जाता है, वहां किस तरह की रीडरशिप है और कौन सी मैगजीन वहां पढ़ी जा सकती है। इस ऐप के द्वारा हम इन हॉकर्स के माध्यम से मैगजींस का ऑर्डर और मैगजींस की डिलीवरी को और बेहतर बनाना चाहते हैं। उम्मीद है कि अगले साल इस ऐप का लॉन्च कर दिया जाएगा।

दूसरा प्रमुख फोकस हमारा विज्ञापन पर है। ब्रैंडेंड कंटेंट के लिए मैगजींस काफी प्रभावी माध्यम है। इसके लिए हमने कुछ समय पहले अपने कंटेंट मार्केटिंग स्टूडियो ‘दास्तान हब’ की शुरुआत की थी। हालांकि हम उसे अभी सही से लागू नहीं कर पाए हैं। अब हमारी कोशिश इसे प्रभावी ढंग से लागू करने की रहेगी कि तमाम पब्लिशर्स मिलकर अपनी मैगजींस, उनकी वेबसाइट्स आदि को मिलाकर एक कॉमन स्टूडियो बनाएं, ताकि ब्रैंडिंग कैंपेनिंग आदि के द्वारा बड़े ऐडवर्टाइजर्स को आकर्षित किया जा सके और अपने साथ जोड़ा जा सके।

कोरोना के कारण चार साल के लंबे समय बाद कुछ महीनों पहले ‘द एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजींस’ (AIM) के प्रमुख इवेंट ‘इंडियन मैगजीन कांग्रेस’ (IMC) का मंच एक बार फिर सजा था। इस बार इसे लेकर क्या तैयारियां हैं। यह कब आयोजित होने जा रहा है और इसकी क्या थीम रहेगी। इस बारे में कुछ बताएं?

इस बार ‘इंडियन मैगजीन कांग्रेस’ (IMC) को अप्रैल 2024 में मुंबई में आयोजित करने की योजना है। हर मैगजीन चाहे वह लाइफस्टाइल की हो, एंटरटेनमेंट की हो अथवा न्यूज की हो, प्रिंट के माध्यम से, डिजिटल के माध्यम से, सोशल मीडिया के माध्यम से और इवेंट्स के माध्यम से अपने आसपास एक कम्युनिटी बनाती है। कैसे हम उस कम्युनिटी को अपने साथ जोड़े रखें, कैसे हम उस कम्युनिटी से एक अच्छा बिजनेस मॉडल तैयार कर सकें, ताकि मैगजीन की पूरी निर्भरता सिर्फ विज्ञापन पर ही न रहे, बल्कि रीडर्स रेवेन्यू पर भी रहे।

क्योंकि सिर्फ विज्ञापन पर ही निर्भर रहना काफी रिस्की होता है, इसलिए आप देखेंगे कि पिछले तीन साल में तमाम पब्लिशर्स अपनी मैगजींस का कवर प्राइज लगातार बढ़ाते रहे हैं। हमारा प्रयास रहा है कि हम डीप और इंगेजिंग कंटेंट दें व कम्युनिटी को आगे बढ़ाएं और विज्ञापन के साथ-साथ रीडर्स से भी रेवेन्यू जुटाएं। इसी थीम पर हमारी यह कॉन्फ्रेंस होगी।  

‘द एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजींस’ द्वारा सरकार से अखबारों/मैगजींस की प्रिंटिग और प्रॉडक्शन में जीएसटी से छूट देने, सरकारी विज्ञापन खर्च में मैगजींस को ज्यादा हिस्सेदारी देने और न्यूज प्रिंट के आयात पर लगने वाली कस्टम ड्यूटी को समाप्त करने की मांग लंबे समय से की जा रही है। इनमें से कौन सी मांग पूरी हुई है अथवा सरकार की ओर से क्या किसी तरह का आश्वासन दिया गया है। इनके अलावा भी क्या ‘द एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजींस’ की सरकार से कुछ अन्य मांगें हैं?

बड़े ही खेद की बात है कि इनमें से हमारी एक भी मांग अभी तक पूरी नहीं हुई है। मैगजीन इंडस्ट्री के लिए एक तरह से अभी तक लेवल प्लेयिंग फील्ड भी नहीं है। जहां अखबारी कागज (न्यूजप्रिंट) पर पांच प्रतिशत जीएसटी लगता है, वहीं मैगजींस जो LWC (Light Weight Coated) कागज इस्तेमाल करती हैं, उन पर 12 प्रतिशत जीएसटी  लगता है। यानी हम सात प्रतिशत ज्यादा जीएसटी दे रहे हैं। रही बात कस्टम ड्यूटी की तो पहले तो यह न्यूजप्रिंट पर लगती ही नहीं थी। इसके बाद दस प्रतिशत कस्टम ड्यूटी लगाई गई और फिर बाद में घटाकर पांच प्रतिशत कर दी गई।

हमारी मांग कस्टम ड्यूटी को समाप्त करने की रही है, लेकिन इस दिशा में भी सरकार की ओर से कोई कदम नहीं उठाया गया है। तीसरी हमारी नई मांग अभी यह है कि कैसे हम डिजिटल सबस्क्रिप्शन पर जीएसटी को शून्य करें। जैसे- प्रिंट मैगजीन बेचने पर किसी तरह की जीएसटी नहीं है, लेकिन यदि हम डिजिटल पर कंटेंट बेचें तो किताबों पर 12 प्रतिशत और मैगजींस पर 18 प्रतिशत जीएसटी देना पड़ता है। हमारी मांग है कि जीएसटी को यहां पर भी खत्म कर देना चाहिए। लेकिन, सरकार की ओर से इन सभी मांगों पर अभी तक हमें कोई सपोर्ट नहीं मिला है।    

आपको इस साल देश में संपादकों की शीर्ष संस्था ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ का प्रेजिडेंट चुना गया है। अपने कार्यकाल में इसे पहले से ज्यादा प्रभावी, सक्रिय व विश्वसनीय बनाने के लिए आपका रोडमैप क्या है?

मैं पिछले तीन साल से इस प्रतिष्ठित संस्था का पदाधिकारी रहा हूं। पहले में ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ में कोषाध्यक्ष और जनरल सेक्रेट्री रहा हूं। पिछले तीन वर्षों में हम तीन-चार प्रमुख मुद्दों पर काफी काम किया है। एक तो यह है कि जब भी देश में प्रेस की स्वतंत्रता पर किसी तरह का हमला हो तो उसके खिलाफ तुरंत आवाज उठाना। इसमें कभी स्टेटमेंट के द्वारा अथवा कभी संस्था के पदाधिकारियों द्वारा संबंधित मंत्रालय से मिलना शामिल है।

हमेशा की तरह अभी भी प्रेस की स्वतंत्रता पर हमले के खिलाफ आवाज उठाना हमारा प्रमुख काम रहेगा। इसके अलावा लीगल मामलों-जैसे राष्ट्रदोह मामले में और पेगासस मामले में जांच को लेकर हमने दो-तीन याचिकाएं दाखिल की थीं। हमने अधिवक्ताओं का एक लीगल पैनल भी बनाया है, ताकि जरूरत पड़ने पर कानूनी सलाह/सहायता ली जा सके। पिछले दो साल में हमने कुछ कार्यक्रम भी किए थे। इन्हीं सब कामों को हमें आगे लेकर जाना है। इस साल के एजेंडे बात करें तो हमने कुछ और काम किए हैं। जैसे सरकार ने डिजिटल मीडिया को रेगुलेट करने के लिए साल भर में करीब पांच नए बिल पेश किए हैं। इनका प्रभाव प्रिंट और टेलिविजन पर भी पड़ने वाला है।

चूंकि हमारा सारा कंटेंट जो प्रिंट में जा रहा है, वह टेलिविजन पर भी जा रहा है और वह डिजिटल पर भी जा रहा है। ऐसे में यदि आपने डिजिटल को कंट्रोल कर लिया तो आपने सारा मीडिया कंट्रोल कर लिया। डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन बिल और टेलिकॉम बिल पेश किया गया है। ब्रॉडकास्ट बिल पेश किया जा चुका है। डिजिटल इंडिया बिल अभी आ रहा है। पीआरबी बिल को रिप्लेस करने के लिए प्रेस एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ पीरियॉडिकल बिल बिल आया है। इसके अलावा आईटी रूल्स भी नोटिफाई किए गए हैं। इन सभी पर गिल्ड ने अपनी आवाज उठाई है।

कुछ समय पूर्व ही गिल्ड ने ब्रॉडकास्टिंग बिल पर सूचना प्रसारण मंत्रालय के सामने अपनी बात रखी है। हमारा काम रहेगा कि इन सभी बिलों पर हम पब्लिक कंसल्टेशन करें, इनको लेकर अपनी आवाज उठाएं, जनमोर्चा निकालें और लोगों को बताएं कि इन बिलों के कुछ प्रावधान प्रेस की स्वतंत्रता के खिलाफ हैं, जिनके खिलाफ हम अपनी आवाज उठा रहे हैं। हमारा प्रयास है कि हम सभी प्रमुख प्लेटफॉर्म्स पर अपनी बात रखें। इसके अलावा पत्रकारों के खिलाफ विभिन्न मामलों को लेकर आए दिन बिना उचित जांच के एफआईआर दर्ज करने के मामले सामने आते रहते हैं। इस दिशा में भी हमें काम करना है कि कैसे पत्रकारों और मीडिया संस्थानों को कुछ ऐसी सुरक्षा मिले, ताकि उनके खिलाफ बिना उचित जांच के एफआईआर न दर्ज कर दी जाए।  

कुछ समय पूर्व मणिपुर मामले को लेकर ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ काफी चर्चाओं में रही थी। अब चूंकि आप इसके प्रेजिडेंट हैं तो इस शीर्ष संस्था से जुड़ी इस तरह की घटनाओं को लेकर आपका क्या मानना है? भविष्य में इस तरह की असहज स्थिति न आने पाए, इसे सुनिश्चित करने के लिए आपकी नजर में किस तरह के ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है?

देखिए, मणिपुर में जो हुआ, वह हर उस चीज का एक यूनिक उदाहरण है, जो आज के दौर में प्रेस की फ्रीडम के मामले में गलत चल रहा है। एडिटर्स गिल्ड ने एक रिपोर्ट निकाली कि मणिपुर में किस तरह की पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग हुई। उसमें थोड़ी बहुत तथ्यात्मक त्रुटि हुई भी तो गिल्ड ने उसे सही कर दिया। यदि आप (राज्य सरकार) इस रिपोर्ट से खुश नहीं है तो रिपोर्ट पर अपनी आपत्ति की जा सकती है या उसके खिलाफ एक और रिपोर्ट दाखिल की जा सकती है या उस रिपोर्ट में करेक्शन कर सकते हैं, लेकिन इस रिपोर्ट के बाद जिस तरह का विवाद हुआ और रिपोर्ट सामने आने के अगले दिन ही दो-तीन शिकायतें दर्ज कर एफआईआर की मांग तक कर दी गई।

सामान्यत: शिकायतों के आधार पर एफआईआर दर्ज करने के लिए कुछ जांच वगैराह होती हैं, लेकिन इस मामले में शिकायतों के आधार पर तुरंत एफआईआर भी दर्ज कर ली गईं। उसके अगले दिन ही मुख्यमंत्री ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कह दिया कि वह एडिटर्स गिल्ड के खिलाफ कार्रवाई करेंगे। यानी बिना जांच के पहले ही मान लिया गया कि एडिटर्स गिल्ड ने गलत किया है और साफ-साफ चेतावनी दे दी गई कि गिल्ड के खिलाफ कार्रवाई होगी। गिल्ड पर उस दौरान तमाम तरह के आरोप लगाए गए। हमें उस मामले में सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा, जहां से गिल्ड को राहत मिली और वहां की राज्य सरकार की मंशा सबके सामने आ गई।

मीडिया की दुनिया काफी तेजी से बदल रही है। प्रिंट, टीवी और डिजिटल से होती हुई यह अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और चैटजीपीटी तक जा पहुंची है। इससे अवसरों के साथ तमाम चुनौतियां भी सामने आ रही हैं। तेजी से बदलते दौर में आपकी नजर में मैगजींस के बिजनेस को प्रासंगिक बने रहने के लिए किस तरह के कदम उठाने की जरूरत है?

सवाल न सिर्फ मैगजींस का बल्कि अखबारों और टेलिविजन का भी है। इसमें हमें एक चीज ध्यान रखनी होगी कि नए टूल्स आते हैं, नई टेक्नोलॉजी आती है। सोशल मीडिया आया, वॉट्सऐप आया, फेसबुक आया। उस पर कंटेंट बनाने वाले लोगों की एक पूरी इंडस्ट्री बन गई। फेक न्यूज बनाने वालों की संख्या भी काफी बढ़ गई। तमाम ऐसे लोग भी हैं, जो फेक न्यूज बनाना नहीं चाहते लेकिन, ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच बढ़ाने के लिए वे रिसर्च किए बिना कंटेंट तैयार कर देते हैं। तो आज के दौर में इतना ज्यादा कंटेंट बन रहा है कि जनरल कंटेंट वालों की संख्या काफी कम हो गई है।

अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आ गया है, जहां आप बिना किसी परेशानी के कंटेंट तैयार कर सकते हैं। ऐसे में सोचने वाली बात है कि जो सही कंटेंट बनाते हैं, उनकी क्या अहमियत रह गई है। लेकिन यहीं पर इस बात का जवाब भी है कि समय के साथ यूजर पहले से ज्यादा सचेत हो रहा है। वह हर चीज जानना चाहता है कि यह किस सोर्स से हुई है। हालांकि, शुरुआत में सभी चीजों पर विश्वास कर लिया जाता था, लेकिन आज यूजर्स ज्यादा सचेत हो गए हैं। तमाम लोग मानते हैं और कहते नजर आते हैं कि सोशल मीडिया पर जो कंटेंट आ रहा है, जब तक वह किसी विश्वसनीय सोर्स से नहीं आ रहा है, उस पर आंख बंद करके भरोसा नहीं करना चाहिए।

कहने का मतलब है कि समय के साथ लोगों में जागरूकता आ रही है कि आप जो कंटेंट देख रहे हैं, पढ़ रहे हैं और शेयर कर रहे हैं, उसके पीछे की क्या प्रक्रिया रही है। मेरा मानना है कि आने वाले समय में विश्वसनीय न्यूज संस्थानों की अहमियत ज्यादा रहेगी, क्योंकि सूचनाओं के अथाह सागर में लोग आज भी विश्वसनीय सूचना पाना चाहते हैं। तमाम मीडिया संस्थानों की एक पहचान है कि वह अच्छी तरह से जांच परखकर ही सूचना आगे बढ़ाते हैं और उनकी सूचना आंकड़ों व तथ्यों पर आधारित होती है, ऐसे में आने वाले समय में भी इनके कंटेंट की अहमियत रहेगी। हो सकता है कि इसमें थोड़ा समय लगे, लेकिन मैगजींस बिजनेस का भविष्य बेहतर है, क्योंकि सभी जानते हैं कि यहां पर जो कंटेंट दिया जाता है, वह उसे तैयार करने की प्रक्रिया से जुड़े तमाम लोगों से होकर गुजरता है और विश्वसनीय होता है।

आजकल ‘डीपफेक’ की भी काफी चर्चा हो रही है। इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का दुरुपयोग कर व्यक्ति के एडिटेड फोटो व वीडियो बनाकर उन्हें वायरल कर दिया जाता है। कुछ समय पूर्व पीएम नरेंद्र मोदी का भी इस तरह का फेक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वह गरबा खेलते हुए नजर आ रहे थे। हालांकि, पीएम ने इस वीडियो को गलत और एडिटेड बताया था। आपकी नजर में इस तरह की हरकतों पर किस तरह अंकुश लगाया जा सकता है?

यह टेक्नोलॉजी से जुड़ा बड़ा सवाल है कि आखिर कैसे डीपफेक पर रोक लग सकती है, लेकिन मेरा मानना है कि टेक्नोलॉजी का तोड़ टेक्नोलॉजी से ही निकलेगा। जिस तरह से डीपफेक को तैयार करने के लिए टेक्नोलॉजी आई है, उसी तरह से कोई ऐसी टेक्नोलॉजी भी आ ही जाएगी, जो डीप फेक को पहचान लेगी। हो सकता है कि इसमें कुछ समय लगे, यह समय ज्यादा भी हो सकता है लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि कहीं न कहीं ऐसी प्रक्रिया आ ही जाएगी, जो फेक न्यूज और मिसइंफॉर्मेशन को चेक करेगी।  

कोविड के दौरान कई मैगजींस बंद हो गईं और तमाम मैगजींस का सर्कुलेशन व ऐडवर्टाइजिंग रेवेन्य भी घट गया। अब क्या स्थिति है? क्या मैगजीन बिजनेस का सर्कुलेशन पहले की तरह वापस आ गया है?

कोविड के दौर के बाद से मैगजींस का सर्कुलेशन बढ़ रहा है। हम अपनी बात करें तो हमारे प्रयासों की बदौलत हमारा सर्कुलेशन और डिस्ट्रीब्यूशन कोविड से पहले की तुलना में और बेहतर हो गया है। विज्ञापन में रफ्तार जरूर थोड़ी धीमी है। इस मामले में हम अभी भी कोविड के दौर से पीछे हैं। उम्मीद है कि जिस तरह से रीडर्स ने हमारे ऊपर भरोसा रखा है, ऐडवर्टाइजर्स भी ऐसा ही भरोसा रखेंगे।

चूंकि अब वर्ष 2023 समाप्त होने वाला है और नए साल का आगाज होने वाला है। ऐसे में यदि प्रिंट मीडिया खासकर मैगजींस की बात करें तो आपके नजरिये से वर्ष 2023 कैसा रहा और नए साल पर इस सेगमेंट में आपकी क्या उम्मीदें हैं?

सर्कुलेशन और रीडर रेवेन्यू के मामले में यह साल मैगजीन बिजनेस के लिए अच्छा ही रहा है। अपनी बात करें तो हमने तो ग्रोथ देखी है। विज्ञापन के मामले में थोड़ा स्लो रहा है। सर्कुलेशन रेवेन्यू अपने आप काफी नहीं रहता, क्योंकि सर्कुलेशन कॉस्ट होती है, मैगजीन की कॉस्ट होती है, डिलीवरी की कॉस्ट होती है। ऐसे में यदि विज्ञापन ढंग से न मिले तो पब्लिशर्स के लिए रेवेन्यू जुटाना काफी मुश्किल होता है।

नए साल की बात करें तो हम चाहते हैं कि विज्ञापनदाता हमारे प्रयासों को समझें, क्योंकि यदि हमारी रीडरशिप बढ़ रही है, इसका मतलब है कि रीडर्स हमारा प्रॉडक्ट खरीद रहे हैं और उन्हें अपना मनपसंद कंटेंट मिल रहा है, फिर उससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैगजीन की कॉस्ट कितनी है। ऐसे में विज्ञापनदाताओं को यह समझना चाहिए कि रीडरशिप चाहे पहले से कम है, लेकिन अभी भी यह बनी हुई है और पाठक मैगजींस से जुड़े हुए हैं तो उसका वे फायदा उठाएं। नए साल पर सबस्क्रिप्शन बढ़ाने पर हमारा फोकस रहेगा। हमारी एसोसिशन का मानना है कि आप सिर्फ रीडर्स जोड़िए, बाकी सब अपने आप ठीक हो जाएगा।

एक बार रीडर्स आपके साथ जुड़ जाएंगे तो विज्ञापनदाता अपने आप आ जाएंगे। यानी हम सभी का मानना है कि सारा फोकस रीडर्स पर रखिए। उन्हें बेहतरीन कंटेंट दीजिए। मैगजींस खरीदने की प्रक्रिया आसान रखिए, ताकि रीडर्स आसानी से मैगजींस खरीद सकें। उन तक मैगजींस की उपलब्धता को सहज बनाइए। कुल मिलाकर रीडर को प्राथमिकता पर रखिए, बाकी सभी चीजें अपने आप ठीक हो जाएंगी।

आप कई प्रतिष्ठित संस्थाओं में अहम पदों पर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। ऐसे में तमाम व्यस्तताओं के बीच कैसे इन सभी जिम्मेदारियों में आपस में तालमेल बिठा पाते हैं और परिवार व अपने लिए कैसे समय निकाल पाते हैं?

मेरा मानना है कि यदि समय को सही ढंग से व्यवस्थित और सदुपयोग करें तो दिक्कत नहीं आती है। रोजाना थोड़ा-थोड़ा समय हर जिम्मेदारी के लिए निकालें। आप थोड़ा-थोड़ा काम रोजाना करते हैं तो सभी कामों के लिए समय निकल आता है। यह एक मिथ है कि समय नहीं है। आप समय निकाल सकते हैं, बस उसे सही से समायोजित करने की जरूरत है और लगातार काम करना पड़ता है, फिर उससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप ऑफिस में हैं अथवा कहीं बाहर।

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IN10 मीडिया नेटवर्क के MD आदित्य पिट्टी ने बतायी, दर्शकों को जोड़ने की स्ट्रैटजी

एक्सचेंज4मीडिया के साथ एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में नेटवर्क के मैनेजिंग डायरेक्टर आदित्य पिट्टी ने अपने विजन, मार्केटिंग स्ट्रैटजीस और नेटवर्क की यात्रा को साझा किया है।

समाचार4मीडिया ब्यूरो by
Published - Monday, 04 December, 2023
Last Modified:
Monday, 04 December, 2023
AdityaPittie7854

अपनी छत्रछाया में मीडिया व एंटरटेनमेंट के ढेर सारे प्लेटफॉर्म्स शुरू करने वाले IN10 मीडिया नेटवर्क की शुरुआत 2014 में एकल चैनल 'एपिक टीवी' के साथ हुई थी और अब वह ब्रॉडकास्टिंग, प्रॉडक्शन, ओटीटी, म्यूजिक लेबल और लॉजिस्टिक्स तक फैले एक बहुआयामी नेटवर्क होने का दावा करता है।

हमारी सहयोगी वेबसाइट 'एक्सचेंज4मीडिया' की असिसटेंट एडिटर अदिति गुप्ता के साथ एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में नेटवर्क के मैनेजिंग डायरेक्टर आदित्य पिट्टी ने अपने विजन, मार्केटिंग स्ट्रैटजीस और नेटवर्क की यात्रा को साझा किया है।

यहां पढ़िए, इंटरव्यू के प्रमुख अंश:

कृपया हमें अपने वेंचर्स के बारे में बताएं, जो अलग-अलग इंडिस्ट्री में  फैले हुए हैं और इस बीच IN10 मीडिया नेटवर्क की यात्रा कैसी रही है?

'एपिक' (EPIC) हमारा प्रमुख चैनल है जिसके साथ हमारा नेटवर्क शुरू हुआ था। यह भारत का एकमात्र हिंदी इन्फोटेनमेंट चैनल है। हमारे पास दिलचस्प शोज और पारंपरिक लोकप्रिय शोज हैं। यह चैनल हमारा प्रमुख ब्रैंड बना हुआ है और हमारे सब्सक्रिप्शन बुके का हिस्सा भी है। हमारा सब्क्राइबर्स बेस साल दर साल 50% तक बढ़ रहा है।

हमारा अपना इंटरैक्टिव म्यूजिक चैनल 'शोबॉक्स' (ShowBox) है। हमारे सभी चैनल्स में बड़े स्तर पर इंटरैक्टिव प्रॉपर्टीज हैं और ये वॉट्सऐप चैटबॉट्स द्वारा संचालित हैं। आप हमारे किसी नंबर पर मिस्ड कॉल देते हैं, तो स्वत: आपके फोन पर एक वॉट्सऐप मैसेज प्राप्त होता है और प्रतियोगिता, प्रश्न आदि के साथ दर्शकों के साथ उच्च स्तरीय जुड़ाव होता है।

हमारे पास फिल्मची भोजपुरी (Filamchi Bhojpuri) मूवी चैनल है, जहां 50 वर्ल्ड टेलीविजन प्रीमियर होने वाले हैं। हमारे पास 350 टाइटल्स की लाइब्रेरी है, जिनमें से 250 ओरिजनल हैं। 

इनके अलावा, नेटवर्क में ब्रॉडकास्ट चैनल 'गुब्बारे' (Gubbare), 'इशारा' (Ishara) और 'नज़ारा' (Nazara), 2 ओटीटी प्लेटफॉर्म्स (DocuBay और EPIC ON), 2 प्रॉडक्शन हाउसेज (जगरनॉट प्रॉडक्शंस और मूवीवर्स स्टूडियो), एक म्यूजिक लेबल (लेट्स गेट लाउडर), एक टेक्नोलॉजी इकाई (स्ट्रीम-सेंस), गेमिंग (प्लैटनिस्टा) और न्यूज प्लेटफॉर्म (लेटेस्टली) शामिल हैं। 

इस तरह से अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स पर उतरने के पीछे क्या वजह थी? क्या कोई स्पोर्ट्स चैनल भी पाइपलाइन में है?

स्पोर्ट्स चैनल फिलहाल पाइपलाइन में नहीं है। यह बेहद महंगा है और स्पोर्ट्स की इकोनॉमी बहुत अलग है। लेकिन हम अपने ब्रॉडकास्टिंग बिजनेस में और अधिक टीवी चैनल्स जोड़ना चाह रहे हैं, जिनमें हम रीजनल चैनल्स भी शामिल करना चाहते हैं।

आपकी मार्केटिंग स्ट्रैटजी क्या है? आप दर्शकों को अपने प्लेटफॉर्म्स के साथ कैसे जोड़ पा रहे हैं?  

टेलीविजन में, हम आम तौर पर पूरे नेटवर्क पर अपने चैनल्स का प्रचार करते हैं। कभी-कभी हम ऐड के जरिए अन्य टीवी चैनल्स पर अपने चैनल का प्रचार करते हैं। लेकिन डीडी फ्रीडिश की रीच और उसके नेचर व इस तथ्य के कारण कि हमें डीटीएच प्लेयर्स की बहुत अच्छी समझ है, लिहाजा हमें अपने चैनल्स के लिए बहुत सारे ऑर्गेनिक सैंपलिंग और रीच मिलती है। इसलिए, यदि आपके पास टीवी पर अच्छा कंटेंट है, तो आपको ऑर्गैनिक रीच मिलती है।

अपने ओटीटी बिजनेस के लिए, हमारे पास एक बहुत ही मजबूत मार्केटिंग प्लान है। मेरा मानना है कि यदि आपके पास अच्छा कंटेंट है, तो आपको मार्केटिंग में जोर लगाने की जरूरत नहीं है। हमें एक बार में सब कुछ करने के बजाय धीरे-धीरे दर्शकों का आधार बनाना और स्टेप दर स्टेप दर्शकों को आकर्षित करना पसंद हैं।

आपके प्लेटफॉर्म्स पर अधिग्रहित और ओरिजनल कंटेंट कितने हैं?

हर एक चैनल भिन्न होता है। अधिग्रहित कंटेंट में, कुछ डील्स पांच साल के लिए हैं, तो कुछ डील्स एक साल के लिए हैं। म्यूजिक प्लेटफॉर्म 'शोबॉक्स' पर, अधिकांश कंटेंट म्यूजिक कंपनियों से प्राप्त की जाती हैं। 'फिल्मची' के लिए, हमारी एक्सक्लूसिव व लॉन्ग टर्म डील्स हैं। 'गुब्बारे' पर अधिकांश कंटेंट ओरिजनल हैं। जनरल एंटरटेनमेंट के लिए, हमने पिछले कुछ वर्षों में बाहर से कुछ कंटेंट अधिग्रहित किए हैं, लेकिन अब जिस तरह की ओरिजल कंटेंट हम बना रहे हैं, उससे हमें उम्मीद है कि अधिग्रहित किए गए कंटेंट पर निर्भरता कम हो जाएगी। औसतन, विभिन्न प्लेटफॉर्म्स पर, 25-30% कंटेंट अधिग्रहित की जाती हैं और बाकी ओरिजनल होती हैं।

जैसा कि वार्षिक रिपोर्ट में देखा गया है, कई बड़े ब्रॉडकास्टर्स के ऐड रेवेन्यू में वित्तीय वर्ष 2022-23 के बीच गिरावट देखी गई है। इस पर आपका क्या विचार है? 

हम एक बहुत ही यंग नेटवर्क हैं, क्योंकि हमारे अधिकांश चैनल्स तीन साल से भी कम पुराने हैं। हमारा ऐड रेवेन्यू अपने आधार स्तर तक नहीं पहुंच पाया है। हमारा उद्देश्य इस वर्ष अपने ऐड रेवेन्यू को दोगुना करना है। समग्र मार्केट का प्रभाव हम पर है, लेकिन यह अन्य परिपक्व नेटवर्क जितना नहीं है, क्योंकि उनका रेवेन्यू इष्टतम स्तर पर है। लिहाजा हम पर इसका प्रभाव ज्यादा नहीं है, क्योंकि हमें अभी भी पाई का एक बड़ा हिस्सा मिल रहा है। मेरा मानना है कि ऐड रेवेन्यू मार्केट में मौसमी चुनौतियां हैं, लेकिन कुल मिलाकर, मुझे लगता है कि टेलीविजन के लिए ऐड रेवेन्यू मार्केट लगातार बढ़ रहा है।

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DD का OTT प्लेटफॉर्म अगले साल हो सकता है लॉन्च, चल रहीं तैयारियां: अपूर्व चंद्रा

सूचना-प्रसारण सचिव अपूर्व चंद्रा ने कहा कि BARC एक उद्योग-आधारित निकाय है। ब्रॉडकास्टर्स और ऐडवर्टाइजर्स दोनों ही इसका हिस्सा हैं। यहां सरकार की कोई भूमिका नहीं है।

समाचार4मीडिया ब्यूरो by
Published - Wednesday, 25 October, 2023
Last Modified:
Wednesday, 25 October, 2023
MIB Apurva Chandra

सरकार का ओवर-द-टॉप (ओटीटी) या स्ट्रीमिंग सर्विसेज पर कंटेंट को रेगुलेट करने का कोई इरादा नहीं है। यह कहना है सूचना-प्रसारण सचिव अपूर्व चंद्रा का। एक्सचेंज4मीडिया ग्रुप की कंचन श्रीवास्तव को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल (BARC) एक उद्योग निकाय है, इसलिए स्टेकहोल्डर्स को स्वयं समाधान के साथ आना चाहिए। इस दौरान चंद्रा ने मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र के लिए सरकार की योजनाओं को भी साझा किया।

यहां पढ़िए बातचीत के प्रमुख अंश:

सूचना-प्रसारण मंत्रालय की नवीनतम सांख्यिकीय पुस्तिका के अनुसार, जिसे आपने कुछ सप्ताह पहले जारी किया था, वित्त वर्ष 2012 में टेलीविजन की राजस्व वृद्धि धीमी हो गई है। अनुमान के मुताबिक, यह अगले दो वर्षों में 3.9% की दर से सबसे धीमी गति से बढ़ने वाले माध्यमों में से एक होगा। क्या आप इसे लेकर चिंतित हैं?

टीवी राजस्व उस गति से नहीं बढ़ रहा है जिस गति से पहले बढ़ता था। फिर भी, यह अभी भी बढ़ रहा है। डिजिटल साइड पर विज्ञापन अधिक बढ़ रहे हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि टीवी राजस्व नहीं बढ़ रहा है। टीवी पर न्यूज साइड पर कंटेंट क्रिएशन लगातार बढ़ रहा है।

भारत में काफी संभावनाएं हैं और लोग टीवी और ओटीटी दोनों देख रहे हैं। ऐतिहासिक रूप से, कुछ सेक्टर ऊपर उठते हैं, तो कुछ में गिराटव देखने को मिलती हैं। लोगों की रुचि बनाए रखने के लिए, जनरल एंटरटेनमेंट चैनल भी कंटेंट में कुछ नया करते हैं और इसके चलते ही वे रियलिटी शो लेकर आए।

इस वर्ष अब तक आपको कितने नए टीवी चैनल के आवेदन प्राप्त हुए हैं? एमआईबी डेटा के अनुसार, वित्त वर्ष 2023 में केवल 7 नए चैनल लॉन्च किए गए, जबकि उससे पहले के दो वर्षों में 20 बंद हो गए।

मेरे पास सटीक आंकड़े नहीं हैं। आवेदन आते रहते हैं। इसके अलावा, हम नई गाइडलाइंस लेकर लाए हैं, जिनमें न्यूज व करेंट अफेयर्स चैनल खोलने के लिए न्यूनतम नेट वर्थ को 2 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 20 करोड़ रुपये करना शामिल है। नॉन-न्यूज चैनल्स के लिए इसे बढ़ाकर 5 करोड़ रुपये कर दिया गया। 2004 के बाद से नेट वर्थ कैप को कभी संशोधित नहीं किया गया।

क्या आपको नहीं लगता कि इसका असर सरकार के राजस्व पर भी पड़ सकता है?

हमारा मानना है कि केवल गंभीर प्लेयर्स को ही वहां होना चाहिए।' देश में 350 से अधिक न्यूज चैनल्स हैं और सैटेलाइट चैनल्स की संख्या लगभग 950 है। लेकिन आप कितने चैनल्स के नाम बता सकते हैं?

ऐसी अटकलें थीं कि अगर न्यूज चैनल उत्तेजक कंटेंट दिखाना जारी रखेंगे, तो सरकार चुनाव से पहले उनकी टीआरपी पर रोक लगा सकती है। इस पर क्या कहेंगे आप?

फिलहाल ऐसी कोई योजना नहीं है। BARC ने अब चैनल्स के साथ रॉ लेवल डेटा (RLD) साझा करना शुरू कर दिया है। इससे पहले न्यूज चैनल्स ने डेटा और पारदर्शिता की कमी को लेकर शिकायत की थी। इसका उद्देश्य पारदर्शिता लाना है और चैनलों को गलत एल्गोरिदम या हेरफेर, यदि कोई हो, को ट्रैक करने की अनुमति देना है और फिर BARC इसे ठीक कर सकता है। अब, शिकायत यह है कि डेटा बड़ा है और उसकी व्याख्या नहीं की जा सकती। उन्हें इसका अर्थ समझने का प्रयास करना होगा।

क्या आप BARC के कामकाज से संतुष्ट हैं?

भारत एक विविध देश है, जहां बहुत सारी भाषाएं, ग्रामीण-शहरी और आर्थिक विभाजन हैं। वहां केवल 55,000 पैनल होम हैं, लेकिन आबादी का केवल एक हिस्सा ही खबरों को देखना पसंद करता है। इसलिए गलती की गुंजाइश बड़ी है।

हमें जनरल एंटरटेनमेंट चैनल्स (GECs) से शिकायतें नहीं मिलती हैं, जो राजस्व के मामले में सबसे बड़ा हिस्सा हैं। ये मुद्दे बड़े पैमाने पर न्यूज चैनल्स द्वारा उठाए जाते हैं।

BARC मीजरमेंट के खिलाफ  शिकायतों के पीछे क्या कारण हो सकते हैं?

55,000 पैनल होम हैं। उनमें से, खबरों को देखने वाले घर 5,000-7,000 हो सकते हैं और अंग्रेजी न्यूज लगभग 500 घरों तक सीमित है। यहां तक कि एक छोटी सी गलती भी सामने आती है, तो उसे इतने छोटे सैंपल के आकार की वजह से कई गुना और बढ़ाया जा सकता है।

इससे निकलने का रास्ता क्या है? क्या एमआईबी की इस मामले में हस्तक्षेप करने की कोई योजना है?

इस मामले पर खुद न्यूज चैनल भी बंटे हुए हैं। कुछ के पास इसके बारे में एक विशेष दृष्टिकोण है, तो कुछ की पूरी तरह से अलग राय है। न्यूज चैनल्स में एकमत नहीं है।

BARC एक उद्योग-आधारित निकाय है। ब्रॉडकास्टर्स और ऐडवर्टाइजर्स दोनों ही इसका हिस्सा हैं। यहां सरकार की कोई भूमिका नहीं है। काउंसिल को स्वयं इसे मैनेज करना होगा।

इंडियन ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल फाउंडेशन (आईबीडीएफ) ने ट्राई से ब्रॉडकास्टिंग सेक्टर को नियंत्रण मुक्त करने और प्राइज कैप को हटाने का अनुरोध किया है, जिसे कम पेड सब्सक्राइबर्स वालों के साथ-साथ डीडी फ्री डिश व ओटीटी प्लेटफॉर्म्स से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। इस पर एमआईबी का क्या रुख है?

ट्राई एक नियामक (रेगुलेटर) है और उसे सब्सक्राइबर्स और ब्रॉडकास्टर्स दोनों के हितों का ध्यान रखना है। इसमें परिदृश्य का जायजा लिया गया है। ट्राई हर दो साल में नियमों में बदलाव करता है। पहले NTO 1 (नया टैरिफ ऑर्डर) और NTO 2.0 लागू किया गया था और अब NTO 3.0 प्रभावी ढंग से लागू किया जा रहा है। सब्सक्राइबर्स की ओर से कोई समस्या नहीं है और ब्रॉडकास्टर्स की ओर से भी कुछ खास दिक्कत नहीं है।

क्या चुनाव से पहले न्यूज ब्रॉडकास्टिंग ऐडवर्टाइजिंग इंडस्ट्री को लेकर कुछ निर्देश दिए जाने की संभावना है?

हमें चुनाव पर कोई निर्देश क्यों जारी करना चाहिए? हमारे लिए एकमात्र मुद्दा फेक न्यूज है। न्यूज चैनल्स को हर समय आचार संहिता का पालन करना पड़ता है। जब तक लोग आचार संहिता का पालन करते हैं, तब तक किसी नए निर्देश की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

हालांकि, कई न्यूज चैनल्स पर अभी भी फेक न्यूज चलाने का आरोप लगाया जा रहा है, जिसका ताजा उदाहरण इजराइल और फिलिस्तीन युद्ध है, जोकि कार्रवाई का मामला बनता है।

आचार संहिता एक सुदृढ़ व्यवस्था है। पिछले एक साल में, हमने फेक न्यूज और दुष्प्रचार फैलाने के लिए 200 न्यूज चैनल्स को ब्लॉक किया है। उनमें से कई ऐसे यूट्यूब चैनल्स थे, जिनके करोड़ों सब्सक्राइबर्स थे। उनमें से कुछ पाकिस्तान स्थित थे, और कुछ कनाडा स्थित थे, जो खालिस्तान समर्थकों द्वारा संचालित थे।

एक साल से अधिक समय हो गया है जब चार बड़े ब्रॉडकास्टर्स ने अपने फ्री-टी-एयर चैनल डीडी फ्री डिश से हटा लिए हैं। इसका डीडी फ्री डिश के रेवेन्यू पर क्या प्रभाव पड़ा है?

प्रभाव इसके विपरीत है, डीडी फ्री डिश का रेवेन्यू बढ़कर 1,050 करोड़ रुपये हो गया है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 30-40 प्रतिशत अधिक है, जब यह 750 करोड़ रुपये था। फ्री डिश पर न्यूज चैनल इस साल ज्यादा रेवेन्यू दे रहे हैं।

ऐसे समय में जब चीजें डिजिटल हो रही हैं, भविष्य में डीडी को लेकर क्या योजना है? डीडी अपना खुद का ओटीटी प्लेटफॉर्म कब तक लॉन्च करेगा?

हम एक ओटीटी प्लेटफॉर्म विकसित करने की योजना पर काम कर रहे हैं। डीडी और एआईआर के पास बहुत सारी अभिलेखीय सामग्री है, जो किसी और के पास नहीं है। 90 के दशक तक कोई निजी चैनल नहीं थे। एम एस सुबुलक्ष्मी, भीम सेन जोशी और बड़े गुलाम अली जैसे प्रतिष्ठित कलाकारों के भाषण, चर्चाएं, साक्षात्कार टीवी धारावाहिक हमारे अभिलेखागार (आर्काइव्स) में पड़े हुए हैं।

अब, लोग ओटीटी पर हर चीज देखना चाहते हैं क्योंकि यह सुविधाजनक है। हालांकि हमारी बहुत सारा कंटेंट यूट्यूब पर उपलब्ध है, लेकिन इसकी कैटलॉगिंग से लोगों को खोजना मुश्किल हो जाता है। यदि हमारे पास अपना ओटीटी चैनल होता है, तो लोग आसानी से हमारी समृद्ध कंटेंट देख सकेंगे।

क्या डीडी का ओटीटी प्लेटफॉर्म फ्री होगा? क्या इसे चुनाव से पहले लॉन्च किया सकता है?

प्रसार भारती अभी भी इस पर काम कर रहा है। इसे अगले साल लॉन्च कि जाने की संभावना है। इसमें एक छोटी सब्सक्रिप्शन फी हो सकती है, लेकिन अभी भी बहुत सी चीजों पर काम किया जाना बाकी है।

मंत्रालय ने इस साल की शुरुआत में सभी टीवी चैनल्स को हर दिन कम से कम 30 मिनट के लिए राष्ट्रवादी हित कार्यक्रम प्रसारित करने का निर्देश जारी किया था। कितने चैनल्स निर्देश का पालन करते हैं?

हमने उनसे कुछ राष्ट्रीय हित कार्यक्रम प्रसारित करने के लिए कहा था। हालांकि, यह न्यूज चैनल्स ही हैं, जो बड़े पैमाने पर जनहित कार्यक्रम चलाते हैं। वैसे जनरल एंटरटेनमेंट चैनल्स भी सामाजिक मुद्दों पर कई कार्यक्रम चलाते हैं। 

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डिजिटल प्लेटफॉर्म पर चुनावी कवरेज को एबीपी नेटवर्क ने तैयार किया खास प्लान: अविनाश पांडेय

एबीपी नेटवर्क के सीईओ अविनाश पांडेय का कहना है कि नेटवर्क का फोकस दक्षिण भारत में ब्रैंड स्थापित करने पर है और उन्हें विश्वास है कि उनकी इस योजनाओं के साथ, डिजिटल प्लेटफॉर्म भी टॉप-थ्री में होगा।

Last Modified:
Friday, 20 October, 2023
Avinash Pandey

चेन्नई में एबीपी नेटवर्क के 'द साउदर्न राइजिंग' शिखर सम्मेलन के मौके पर एबीपी नेटवर्क के सीईओ अविनाश पांडेय ने 'एक्सचेंज4मीडिया ग्रुप' की एसोसिएट एडिटर सिमरन सबरवाल  के साथ बातचीत में तमिल व तेलुगु डिजिटल न्यूज प्लेटफॉर्म 'एबीपी नाडु' और 'एबीपी देशम' की जर्नी के साथ-साथ स्थानीय कंटेंट व प्रोग्रामिंग पर प्रकाश डाला। इस दौरान उन्होंने बताया कि खबरें मुफ्त में क्यों नहीं होनी चाहिए। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि दक्षिण में एबीपी नेटवर्क टॉप थ्री में कैसे होगा।

यहां पढ़िए बातचीत के प्रमुख अंश

आप यहां एबीपी नेटवर्क के 'द साउदर्न राइजिंग समिट' के साथ चेन्नई में हैं। विंध्य के दक्षिण क्षेत्र में समूह को क्या संभावनाएं दिखती हैं?

एबीपी नेटवर्क लंबे समय से यहां है। यहां हमारा पारंपरिक अखबार या टीवी बिजनेस नहीं है और हमने पहले जानबूझकर डिजिटल चुना, क्योंकि मीडिया का उपभोग करने के पैटर्न बदल रहे हैं। यदि आप समग्र तरीके से देखें, तो केवल पैसों के संदर्भ में एक सफलतापूर्वक संचालित कंपनी दक्षिण भारत में आसानी से 250 से 350 करोड़ रुपए कमा सकती है। यहां न्यूज जॉनर में एक कंपनी के लिए राजस्व क्षमता है। हालांकि, हम यहां त्वरित सफलता या तत्काल पैसा कमाने के लिए नहीं हैं। हम यहां अपना ब्रैंड स्थापित करने के लिए हैं और जिस तरह से हम पूरे भारत में काम करते हैं,वह है स्थानीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना। हम एक अखिल भारतीय संगठन हैं लेकिन कंटेंट डिस्ट्रीब्यूशन करने और उससे कमाई करने के बारे में हमारे निर्णय स्थानीय स्तर पर लिए जाते हैं। 

आपने 'एबीपी आनंद', 'एबीपी माझा' और 'एबीपी सांझ' के साथ रीजनल मार्केट में खुद को स्थापित किया है। कोई ऐसी सीख जो आपके स्थापित मार्केट्स से साउथ तक पहुंची हो?

एबीपी ग्रुप 100 साल से अधिक पुराना है। हम 20 साल से अधिक समय से टेलीविजन में हैं और सात साल से अधिक समय से हमारी डिजिटल मौजूदगी है। जब हम तीनों प्लेटफॉर्म्स को एक साथ जोड़ते हैं, तो सीख यह मिलती है कि मीडिया बिजनेस एक स्थानीय बिजनेस है। जब तक आप स्थानीय लोगों की संस्कृति, समाज और रीति-रिवाजों को नहीं समझेंगे, आप कभी भी उतने सफल नहीं हो पाएंगे जितना आप बनना चाहते थे। हमारी पॉलिसी कंटेंट में बेहद स्थानीय होना, संस्कृति को समझना, उसका सम्मान करना और उसके आसपास प्रोग्रामिंग का निर्माण करना है। हालांकि, साथ ही, कंटेंट अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपलब्ध सर्वोत्तम तकनीक में वितरित की जाती है।

एबीपी नाडु और एबीपी देशम दोनों प्लेटफॉर्म्स पर क्या प्रतिक्रिया रही है? आप इन दोनों प्लेटफॉर्म्स के प्रदर्शन का आकलन कैसे करेंगे?

हमने महामारी के बीच में शुरुआत की थी और हमारे लिए आगे एक लंबी जर्नी है और अब तक हमें जो प्रतिक्रिया मिली है, उसे लेकर हम काफी सकारात्मक हैं।

डिजिटल मीडिया बिजनेस कम्युनिटी के निर्माण को लेकर है और यदि आप बहुत अधिक पंख फैला रखे हैं, तो आप सफल नहीं होंगे। हम अपना खुद की जगह बना रहे हैं। यदि आप मीडिया परिदृश्य को देखें - समाचार पत्र, टेलीविजन या डिजिटल चैनल या तो किसी राजनीतिक इकाई से संबद्ध रखते हैं या राजनीतिक रूप से जुड़े हुए हैं। जिस तटस्थ स्थान में हम काम करते हैं वहां कोई नहीं है। दक्षिण भारत शेष भारत की तुलना में एंटरटेनमेंट न्यूज का अधिक उपभोग करता है। हमारा फोकस मुख्य रूप से राजनीति, राजनीति व्यवसाय, अर्थशास्त्र और समाज पर रिपोर्टिंग है। हम वीडियो स्टोरीज बना रहे हैं और हमें जबरदस्त प्रतिक्रिया मिल रही है।

मेट्रिक्स के संदर्भ में आप कहां हैं?

इंस्टाग्राम पर 1.5 लाख से अधिक फॉलोअर्स, फेसबुक पर 4.5 लाख और इन प्लेटफॉर्म्स पर एक मजबूत वीडियो व्युअरशिप के साथ एबीपी नाडु ने सोशल मीडिया पर लगातार एक बहुत मजबूत फॉलोअर्स बेस विकसित किया है, जिससे भारत में तमिल न्यूज के लिए 'एबीपी नाडु' शीर्ष 5 क्राउड टैंगल लीडरबोर्ड में एकमात्र डिजिटल पहला न्यूज पब्लिशर बन गया है।  

29 जुलाई 2021 को लॉन्च होने के बाद से 'एबीपी देशम' भारत में सबसे तेजी से बढ़ते तेलुगु पब्लिशर में से एक है, जिसके यूट्यूब पर 200 मिलियन से अधिक वीडियो व्यूज और फेसबुक पर 100 मिलियन से अधिक व्यूज हैं। कॉमस्कोर एमएमएक्स लीडरबोर्ड में यह वेबसाइट टॉप-5 पब्लिशर्स में स्थान पाने वाली सबसे कम उम्र की वेबसाइट भी है।  

उन पाठकों के साथ जो हार्डकोर न्यूज, ब्रेकिंग न्यूज, हाइपर लोकल कवरेज का उपभोग करते हैं। 'एबीपी देशम' ने यूट्यूब पर 2 लाख से अधिक, फेसबुक पर 1 लाख से अधिक ग्राहकों और इन प्लेटफॉर्म्स पर एक मजबूत वीडियो दर्शकों के साथ सोशल मीडिया पर एक बहुत मजबूत लाखों फॉलोअर्स और युवा फॉलोअर्स आधार विकसित किया है, जिससे भारत में तेलुगु न्यूज के लिए लीडरबोर्ड बीच एबीपी देशम टॉप-10 में एकमात्र डिजिटल न्यूज पब्लिशर बन गया है।  

यहां ऐडवर्टाइजर्स की क्या प्रतिक्रिया रही?

धीमी गति से लेकिन इसमें तेजी आ रही है। हर महीना पिछले महीने से बेहतर होता है। इस क्षेत्र में अधिकांश डिजिटल साइट्स के कंटेंट में एंटरटेनमेंट न्यूज का भारी बोलबाला है। हालांकि हम एंटरटेनमेंट न्यूज देना चाहते हैं, लेकिन यह हमारा उद्देश्य नहीं है क्योंकि हम लोगों को सूचित करना, शिक्षित करना और फिर एंटरटेन करना चाहते हैं और हमारे लिए सूचना और शिक्षा सबसे पहले आती है। हम स्थानीय मुद्दों पर रिपोर्टिंग पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और इसे तैयार करने में हमें समय लगेगा। लोगों ने अन्य ब्रैंड्स पर भरोसा खो दिया है, जो राजनीतिक रूप से जुड़े हुए हैं और मानते हैं कि राजनीतिक खबरें पक्षपातपूर्ण हैं। इसे बनने में समय लग रहा है और हमने एक कठिन रास्ता अपनाया है। अभी राजनीति में तेज बढ़त और 2024 में करीबी मुकाबले की उम्मीद के साथ, मेरा मानना है कि हमारे जैसे प्लेटफॉर्म चमकेंगे।

'एबीपी नाडु' और 'एबीपी देशम' पर कंटेंट निःशुल्क है। क्या आप मानते हैं कि रीजनल मार्केट सब्सक्रिप्शन मॉडल के लिए तैयार हैं?

मेरा मानना है कि इमरजेंसी न्यूज को छोड़कर कुछ भी मुफ्त नहीं होना चाहिए। उदाहरण के लिए, आग लगने, दंगों या गलत सूचना अभियान के मामले में, सही न्यूज मुफ्त में उपलब्ध होने चाहिए। यह एक न्यूज ऑर्गनाइजेशन का कर्तव्य है। हालांकि, सभी अच्छी तरह से शोध किए गए लेखों और डॉक्यूमेंट्रीज को हमें  मुफ्त में क्यों प्रदान करना चाहिए और वह भी नियमित आधार पर?

यह मेरी फिलॉशपी है, लेकिन भारत में यदि इंडस्ट्री सब कुछ मुफ्त में परोसने के लिए तैयार है, तो लोगों से भुगतान करने के लिए कहना बहुत मुश्किल होगा, क्योंकि हमने पेड कंटेंट का कल्चर विकसित नहीं किया है। अब इंडस्ट्री को इसका निर्माण करना है और हम इसका नेतृत्व करने का निर्णय कर चुके हैं। हम सब कुछ पेवॉल के पीछे नहीं रखेंगे, बल्कि कुछ कंटेंट को पेवॉल के पीछे रखकर शुरुआत करेंगे और हमें यकीन है कि हम सफल होंगे।

क्या आप कन्नड़ और मलयालम देख रहे हैं?

अभी नहीं। यह एक चुनावी वर्ष है - तेलंगाना में नेशनल लेवल के साथ स्टेट लेवल का चुनाव है।

ग्रोथ के लिए नेटवर्क इसका लाभ कैसे उठाना चाहता है?

आप हमारे डिजिटल प्लेटफॉर्म पर पहले कभी न देखी गई चुनाव की कवरेज देखेंगे। वे इस बार चुनाव की कवरेज का नेतृत्व करेंगे, यदि आप डेटा उपलब्धता को देखें, तो 2019 के चुनाव से अब तक, यह पूरी तरह से बदल गया है। हमें पूरा विश्वास है कि चुनाव के लिए हमारे पास जो योजना है, चुनाव के अंत तक हम टॉप-थ्री में होंगे।

 

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‘इंडियन रेसिंग लीग’ को सीजन-2 में हम नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे: अखिलेश रेड्डी

‘रेसिंग प्रमोशंस प्राइवेट लिमिटेड’ (RPPL) के चैयरमैन अखिलेश रेड्डी ने लीग के सीजन-2 को लेकर हमारी सहयोगी वेबसाइट एक्सचेंज4मीडिया के साथ विस्तार से बातचीत की है।

Last Modified:
Monday, 16 October, 2023
Akhilesh Reddy

भारत में खेल प्रतिभाओं की भरमार है, लेकिन इन प्रतिभाओं और उन्हें चमकने के लिए उपलब्ध अवसरों के बीच एक बड़ा गैप है। यदि हम मोटरस्पोर्ट्स की बात करें तो भारत को इस दिशा में अभी काफी दूरी तय करनी है। ‘रेसिंग प्रमोशंस प्राइवेट लिमिटेड’ (RPPL) के चेयरमैन और ‘एमईआईएल’ (MEIL) के डायरेक्टर अखिलेश रेड्डी देश में मोटरस्पोर्ट्स को आगे बढ़ाने के लिए जुटे हुए हैं। वह देश में फॉर्मूला-3 (F3) और फॉर्मूला-4 (F4) रेसिंग के द्वारा महत्वाकांक्षी भारतीय रेसिंग ड्राइवरों के लिए मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं और उन्हें इस खेल को और अधिक उत्साह से अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।

लीग के सीजन-2 से जुड़े विभिन्न अहम पहलुओं पर हाल ही में अखिलेश रेड्डी ने हमारी सहयोगी वेबसाइट ‘एक्सचेंज4मीडिया’ (exchange4media) से विस्तार से बातचीत की है। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश:

इंडियन रेसिंग फेस्टिवल के बैनर तले फॉर्मूला-4 इंडियन चैंपियनशिप और इंडियन रेसिंग लीग आयोजित करने की पहल को लेकर आपकी क्या सोच है?

मेरा उद्देश्य देश में रेसिंग को बढ़ावा देना है। इसके तहत फॉर्मूला-3 और फॉर्मूला-4 पहल की बात करें तो अगले 5-7 वर्षों में अखिल भारतीय टीम को F1 में और अगले 10-12 वर्षों में अखिल भारतीय महिला टीम को F2 तक ले जाना है। विशुद्ध व्यावसायिक दृष्टिकोण से FIA अंकों को देखते हुए F3 और F4 हमारी पेशकश में बहुत सारी तकनीकी वैधता जोड़ते हैं, जिनमें इंडियन रेसिंग लीग भी शामिल है।

वे भारत में इंटरनेशनल रेसिंग जगत को आकर्षित करेंगे, और बाद में वैश्विक ऑटो रेसिंग इंडस्ट्री में सप्लायर्स को आकर्षित करेंगे। एक नहीं बल्कि दो ‘Fédération Internationale de l'Automobile’ (FIA) स्वीकृत चैंपियनशिप चलाने से भारतीय रेसिंग का प्रोफ़ाइल वैश्विक रैंकिंग में ऊंचा हो जाएगा और इससे दर्शकों की संख्या आकर्षित होगी जो 4-5 साल में व्यावसायिक सफलता में तब्दील होगी। फॉर्मूला-3 और फॉर्मूला-4 FIA-स्वीकृत चैंपियनशिप हैं और इसलिए संबंधित चैंपियनशिप के लिए रेसिंग कमीशन द्वारा निर्धारित प्रोटोकॉल का पालन करते हुए FIA के नियमों-कायदों के तहत चलाई जाती हैं। मेरा लक्ष्य भारत को मोटरस्पोर्ट्स की दुनिया में एक मजबूत खिलाड़ी बनाना है और इच्छुक भारतीय रेसिंग ड्राइवरों के लिए इस खेल को अधिक गंभीरता से लेने के अवसर तैयार करना है, क्योंकि उनके पास अपने घरेलू मैदान में शीर्ष पर पहुंचने का प्लेटफॉर्म है।

अपनी रेसिंग चैंपियनशिप की खास विशेषताओं को लेकर आप क्या कहेंगे, जो मार्केट में इसे अन्य प्रतियोगिताओं से अलग करती हैं?

हमारी रेसिंग चैंपियनशिप सभी पृष्ठभूमियों के रेसरों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने के साथ-साथ समावेशिता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के कारण दूसरी प्रतियोगिताओं से अलग है। हम शीर्ष स्तर के ट्रैक और अत्याधुनिक तकनीक के साथ सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं। हम एक व्यापक अनुभव प्रदान करते हैं और इंटरैक्टिव सेशंस समेत तमाम तरह से प्रशंसकों को आकर्षित करते हैं।

इसके अलावा, हमारी चैंपियनशिप सामाजिक रूप से जिम्मेदार है। समावेशिता, नवीनता, लोगों से जुड़ाव और सामाजिक प्रभाव का यह अनूठा मिश्रण हमें मोटरस्पोर्ट्स मार्केट में दूसरों से अलग करता है और खास बनाता है। हम यह भी मानते हैं कि मोटरस्पोर्ट्स को तभी और आगे बढ़ाया जा सकता है, जब जब हम आकांक्षाओं को लोगों तक पहुंचाने की अपेक्षा खेल को उन तक ले जाएं। स्ट्रीट सर्किट्स के लिए विभिन्न सरकारों के साथ साझेदारी में हमारा प्रयास उसी दिशा में एक कदम है।

क्षेत्रीय अथवा वैश्विक स्तर पर मोटरस्पोर्ट्स के विकास में आपकी चैंपियनशिप किस तरह योगदान देती है?

हमारी चैंपियनशिप कई मायनों में मोटरस्पोर्ट्स के विकास और वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान देती है। सबसे पहली बात तो हम उभरती प्रतिभाओं को अपना कौशल निखारने और रेसिंग करियर में आगे बढ़ने के लिए एक प्रतिस्पर्धी प्लेटफॉर्म प्रदान करते हैं।

दूसरे, हम रीजन के अंदर एक जीवंत रेसिंग संस्कृति को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। जमीनी स्तर की पहल, प्रशिक्षण कार्यक्रमों और स्कूल भागीदारी के माध्यम से, हम युवा पीढ़ी को मोटरस्पोर्ट्स अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं, जिससे बड़ी संख्या में प्रशंसक और भविष्य के रेसर तैयार होते हैं।

इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय रेसिंग सर्किट और संस्थानों के साथ हमारी स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप स्थानीय प्रतिभाओं के लिए वैश्विक प्रदर्शन की सुविधा प्रदान करती है। अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों में भाग लेने से न केवल हमारे रेसर्स का प्रोफ़ाइल ऊंचा होता है, बल्कि वैश्विक मंच पर मोटरस्पोर्ट्स में क्षेत्र की क्षमता भी प्रदर्शित होती है।

चैंपियनशिप के आयोजन और पबंधन के दौरान आपके सामने किस तरह की बड़ी चुनौतियां आईं और आपने कैसे उनका सामना किया?

भारत में फॉर्मूला रेसिंग चैंपियनशिप को लेकर कई चुनौतियां सामने आईं। सबसे बड़ी चुनौती मोटरस्पोर्ट्स कम्युनिटी के भीतर क्रेडिबिलिटी स्थापित करना और भरोसा हासिल करना था। इसके लिए हमने पारदर्शिता और प्रोफेशनलिज्म पर फोकस किया। हमने मोटरस्पोर्ट्स इंडस्ट्री के जाने-माने नामों के साथ गठजोड़ कर उनका सपोर्ट और विशेषज्ञता हासिल की। इन अनुभवी प्रोफेशनल्स के साथ साझेदारी से विश्वसनीयता बनाने में मदद मिली और खेल के प्रति हमारी प्रतिबद्धता भी प्रदर्शित हुई।

इसके साथ ही, विशेष रूप से ट्रैक के डिजाइन और निर्माण से संबंधित लॉजिस्टिक चुनौतियों को विशेषज्ञ ट्रैक डिजाइनरों के साथ मिलकर प्लानिंग और पार्टनरशिप के माध्यम से दूर किया। उनके अनुभव के द्वारा हमने यह सुनिश्चित किया कि हमारे ट्रैक अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हों, जिससे रेसर्स को सुरक्षित और चुनौतीपूर्ण माहौल मिल सके।

स्ट्रैटेजिक सहयोग, वित्तीय योजना, लॉजिस्टिक विशेषज्ञता और मजबूत मार्केटिंग स्ट्रैटेजी के माध्यम से हमने भारत में एक सफल फॉर्मूला रेसिंग चैंपियनशिप की स्थापना के दौरान तमाम चुनौतियों का सामना किया।

आपकी चैंपियनशिप लाइव इवेंट के दौरान और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से प्रशंसकों और दर्शकों के साथ किस तरह जुड़ती है?

लाइव इवेंट के दौरान, हम इंटरैक्टिव फैन ज़ोन और वीआईपी अनुभवों समेत तमाम तरह से प्रशंसकों से जुड़ते हैं। वहीं डिजिटल की बात करें तो हम लाइव स्ट्रीम्स के साथ-साथ सोशल मीडिया इंटरैक्शंस और ऑनलाइन प्रतियोगिताएं भी आयोजित करते हैं, जो साइट पर और ऑनलाइन दोनों तरह के प्रशंसकों के लिए एक व्यापक अनुभव सुनिश्चित करते हैं। हमारा मानना ​​है कि लाइव और डिजिटल दोनों इसे आगे बढ़ाने के लिए अहम रास्ते साबित होंगे और गैर-व्यावसायिक रूप से भी प्रशंसकों को इस खेल के करीब लाएंगे।

आने वाले वर्षों में अपनी रेसिंग चैंपियनशिप की पहुंच और प्रभाव का विस्तार करने की आपकी क्या योजना है? आपको अपनी रेसिंग चैंपियनशिप का महत्वाकांक्षी रेसर्स और मोटरस्पोर्ट्स कम्युनिटी पर किस तरह का प्रभाव पड़ने की उम्मीद है?

आने वाले वर्षों में हम ग्लोबल पार्टनरिशप्स, यूथ डेवलपमेंट प्रोग्राम्स और डिजिटल इनोवेशन के माध्यम से अपनी चैंपियनशिप की पहुंच और प्रभाव का विस्तार करने की योजना बना रहे हैं। स्पॉन्सरशिप को मजबूत करना, सामुदायिक कार्यक्रमों में शामिल होना और शैक्षिक पहलों को बढ़ावा देना भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। हमारा लक्ष्य एक अधिक समावेशी और वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त रेसिंग चैंपियनशिप तैयार करना है, जो तमाम दर्शकों को आकर्षित करे और मोटरस्पोर्ट्स इंडस्ट्री पर महत्वपूर्ण प्रभाव छोड़े।

हम लगातार उन मौकों की तलाश कर रहे हैं जो हमारे ड्राइवरों को अगले स्तर तक आगे बढ़ने के लिए प्रदान किए जा सकते हैं। इसके अलावा तमाम वैश्विक प्रतियोगिताओं में टीमों के साथ साझेदारी कर रहे हैं और हमारी चैंपियनशिप में उनके प्रदर्शन के लिए अतिरिक्त इनाम की पेशकश कर रहे हैं। इस प्रकार के अवसर हमें न केवल इच्छुक भारतीय ड्राइवरों के लिए बल्कि अंतर्राष्ट्रीय ड्राइवरों के लिए भी आकर्षक बनाते हैं।

क्या आप उन अवसरों के बारे में विस्तार से बता सकते हैं जो आपकी चैंपियनशिप मोटरस्पोर्ट्स के साथ जुड़ने के इच्छुक स्पॉन्सर्स, पार्टनर्स ब्रैंड्स को देती है?

हमारी चैंपियनशिप स्पॉन्सर्स, पार्टनर्स ब्रैंड्स को बेहतरीन प्रदर्शन और जुड़ाव के लिए एक अनूठा प्लेटफॉर्म प्रदान करती है। हमारे साथ जुड़कर, उन्हें तमाम तरह से फायदा होता है-

वैश्विक दृश्यता (Global Visibility): स्पॉन्सर्स को टेलीविजन, लाइव स्ट्रीमिंग और सोशल मीडिया कवरेज के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन से लाभ होता है, क्योंकि यह विशाल और विविध दर्शकों तक पहुंचता है।

ब्रैंड एकीकरण (Brand Integration): हम ब्रैंडिंग अवसर प्रदान करते हैं, जिससे स्पॉन्सर्स को अपने ब्रैंड को चैंपियनशिप कार्यक्रमों में सहजता से एकीकृत करने की अनुमति मिलती है, जिससे ब्रैंड की पहचान बढ़ती है।

मार्केटिंग (Targeted Marketing): स्पॉन्सर्स अपने विशिष्ट लक्ष्य के अनुरूप बड़ी संख्या में लोगों से जुड़ सकते हैं।

नेटवर्किंग के अवसर (Networking Opportunities:): पार्टनर्स को इंडस्ट्री के प्रोफेशनल्स, साथी स्पॉन्सर्स और प्रभावशाली व्यक्तित्वों के एक विशेष नेटवर्क तक पहुंच मिलती है, जिससे मूल्यवान बिजनेस कनेक्शन और आपसी सहयोग को बढ़ावा मिलता है।

संक्षेप में कहें तो हमारी चैंपियनशिप स्पॉन्सर्स, पार्टनर्स और ब्रैंड्स को उनकी दृश्यता बढ़ाने, दर्शकों से जुड़ने और उनके ब्रैंड को मोटरस्पोर्ट्स के उत्साह और ऊर्जा के साथ संरेखित करने के लिए एक गतिशील और बहुआयामी प्लेटफॉर्म प्रदान करती है, जिससे पारस्परिक रूप से लाभकारी साझेदारी बनती है।

आप अपनी रेसिंग चैंपियनशिप के भविष्य में टेक्नोलॉजी की क्या भूमिका देखते हैं, विशेष रूप से रेस कारों और इवेंट के अनुभवों में नई पहलों की बात करें तो?

हमारा मानना है कि मोटरस्पोर्ट्स में टेक्नोलॉजी की बड़ी भूमिका है। समय के साथ टेक्नोलॉजी के बढ़ते प्रभाव से कारें अधिक से अधिक पर्यावरण-अनुकूल हो जाएंगी और इससे उनका प्रदर्शन भी बेहतर होता जाएगा। प्रशंसकों के साथ, टेक्निकल इनोवेशन पहले से ही एक बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।

आपको अपनी रेसिंग चैंपियनशिप के सफर में अब तक कौन सी खास उपलब्धियां मिली हैं और इसके भविष्य के लिए आपको किस तरह की उम्मीदें हैं?

जमीनी स्तर की पहल से लेकर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग तक, प्रतिभा का पोषण करने और एक प्रशंसक आधार को बढ़ावा देने के लिए अपनी चैंपियनशिप की पहुंच का विस्तार करने में हमें गर्व है। भविष्य को लेकर अपनी उम्मीदों की बात करें तो इनमें वैश्विक मान्यता, ज्यादा से ज्यादा युवा रेसर्स को सशक्त बनाना और दुनिया भर के प्रशंसकों के लिए एक समावेशी, अभिनव और रोमांचकारी मोटरस्पोर्ट्स अनुभव प्रदान करना शामिल है।  

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न्यूजपेपर इंडस्ट्री को किसी तरह का खतरा नहीं, बस करना होगा यह काम: राकेश शर्मा

‘इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी’ (INS) के नवनिर्वाचित प्रेजिडेंट राकेश शर्मा ने इस संस्था को लेकर अपने विजन और भविष्य की रूपरेखाओं समेत तमाम अहम मुद्दों पर समाचार4मीडिया से खास बातचीत की है।

पंकज शर्मा by
Published - Monday, 16 October, 2023
Last Modified:
Monday, 16 October, 2023
Rakesh Sharma

‘इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी’ (INS) के नवनिर्वाचित प्रेजिडेंट राकेश शर्मा ने इस संस्था को लेकर अपने विजन और भविष्य की रूपरेखाओं समेत तमाम अहम मुद्दों पर समाचार4मीडिया से खास बातचीत की है। बता दें कि राकेश शर्मा करीब 50 वर्षों से मीडिया जगत से जुड़े हैं और तमाम प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में उन्होंने शीर्षस्थ पदों पर कार्य किया है। वर्तमान में राकेश शर्मा ‘आईटीवी नेटवर्क’ (ITV Network) और ‘गुड मॉर्निंग इंडिया मीडिया प्रा. लि.’ (Good Morning India Media Pvt. Ltd.) के डायरेक्टर हैं। गुड मॉर्निंग ग्रुप 'आज समाज', 'द डेली गार्डियन', 'द संडे गार्डियन', 'इंडिया न्यूज' और 'बिजनेस गार्डियन' जैसे प्रतिष्ठित अखबार का प्रकाशन करता है।

प्रस्तुत हैं राकेश शर्मा से इस बातचीत के चुनिंदा अंश:

सबसे पहले तो आप अपने बारे में बताएं कि आपका अब तक का सफर कैसा रहा है और यहां तक किन-किन पड़ावों से होकर पहुंचे हैं?

मैं अपने करियर के शुरुआती दौर से ही मीडिया से जुड़ा हुआ हूं। सबसे पहले मैंने करीब दस साल तक ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ (Times Of India) में काम किया। इसके बाद लंबे समय तक ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ (Hindustan Times) में विभिन्न पदों पर काम किया। इसके बाद मैं पिछले करीब 15 साल से ‘आईटीवी नेटवर्क’ (ITV Network) और ‘गुड मॉर्निंग इंडिया मीडिया प्रा. लि.’ (Good Morning India Media Pvt. Ltd.) के साथ जुड़ा हुआ हूं। हमारा ग्रुप पांच अखबार पब्लिश करता है और टीवी में भी छह रीजनल और दो राष्ट्रीय चैनल हैं। डिजिटल में भी हमारे पास तीन-चार चैनल हैं और इस डोमेन में उनकी अच्छी पकड़ है।

हमारा परिवार मूल रूप से उत्तर प्रदेश का रहने वाला है। मेरा जन्म दिल्ली में हुआ। मेरी जन्मस्थली, पढ़ाई-लिखाई और कार्यस्थली दिल्ली रही है। हालांकि, थोड़े समय के लिए जरूप मैं चंडीगढ़ में ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ अखबार लॉन्च करने के लिए गया था। वहां पूरे उत्तर भारत के एडिशंस मैं देखा करता था। लगभग दस साल मैं चंडीगढ़ में रहा। इसके अलावा मेरा अब तक का सारा समय दिल्ली में ही बीता है।

आप मीडिया में काफी लंबे समय से हैं। वर्तमान दौर में आप प्रिंट मीडिया के सामने किस तरह की चुनौतियां देखते हैं और आईएनएस के नवनियुक्त प्रेजिडेंट के रूप में इनका कैसे सामना करेंगे?

पिछले पांच दशक की बात करें तो हर दशक में मीडिया ने एक नई चुनौती देखी है और बहुत सफलतापूर्वक इसका सामना किया है। चाहे वह टेक्नोलॉजी में चेंजओवर हो, चाहे वो टीवी से अथवा डिजिटल से प्रतिस्पर्धा का दौर हो। सबसे विषम समस्या तो कोरोनाकाल में आई, जब अखबारों का डिस्ट्रीब्यूशन काफी प्रभावित हुआ। अखबारों का एडवर्टाइजिंग रेवेन्यू काफी घट गया। लंबे समय तक लॉकडाउन के कारण जब अखबार बिक ही नहीं रहे थे तो उस दौरान विज्ञापन भी काफी कम हो गए थे। उस दौरान सिर्फ न्यूजप्रिंट का खर्चा थोड़ा कम हुआ, जबकि अखबारों के अन्य खर्चे वही रहे और रेवेन्यू बिल्कुल नहीं था। इस दौरान अखबारों के समक्ष सबसे कठिन दौर आया। उस विषम परिस्थिति का भी सभी अखबारों ने मिलकर सामना किया और उससे बाहर निकलकर आए।    

पहले प्रिंट को टीवी से टक्कर मिली, फिर डिजिटल मीडिया आ गया और अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का जमाना है। ऐसे में प्रिंट के भविष्य को लेकर आपका क्या मानना है। आपकी नजर में न्यूजपेपर इंडस्ट्री को किस तरह के कदम उठाने की जरूरत है?

सबसे पहले हमें ये समझना होगा कि चाहे प्रिंट हो, इलेक्ट्रॉनिक हो, डिजिटल हो अथवा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हो, सबका कार्य सूचना का प्रसार करना है। मार्केट में वही अपने आपको को प्रासंगिक रख पाएगा, जो समय के साथ-साथ अपने आप में बदलाव करता है। कोई भी मीडिया एक-दूसरे का प्रतिद्वंद्वी नहीं है, बल्कि पूरक है। जो भी पाठकों/दर्शकों के लिए के लिए अपने आपको प्रासंगिक बना पाएगा और उनके लिए उपयोगी होगा, उनकी रुचि और आवश्यकताओं के अनुसार उन्हें अपनी पेशकश देगा और बदलते हुए हालातों के अनुसार खुद को विकसित करेगा, वही अपने पाठकों अथवा दर्शकों के लिए प्रासंगिक रहेगा।

असली चीज तो कंटेंट है, जिसे आप चाहे प्रिंट, टीवी, डिजिटल अथवा एआई के द्वारा दे रहे हैं, वो सब तो सिर्फ माध्यम हैं। हम आजकल मीडियम की चर्चा कर रहे हैं, लेकिन न्यूज की चर्चा नहीं हो रही है। कहने का मतलब यही है कि यदि आप पाठकों/दर्शकों के लिए खुद को प्रासंगिक बना पाते हैं तो आप मार्केट में बने रहेंगे। रही बात प्रिंट की तो तमाम माध्यम आने के बाद भी आज भी प्रिंट मीडिया की सबसे ज्यादा विश्वसनीयता है। प्रिंट मीडिया आगे बढ़ रहा है और अखबारों की प्रसार संख्या भी बढ़ रही है। कोरोनाकाल में अखबारों की प्रसार संख्या जरूर प्रभावित हुई थी, लेकिन अब ज्यादातर अखबार रिकवरी के पथ पर हैं और तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। यदि समय के साथ प्रिंट मीडिया इंडस्ट्री थोड़े-थोड़े कुछ जरूरी बदलाव करती रहेगी, तो मुझे नहीं लगता कि प्रिंट मीडिया इंडस्ट्री को किसी तरह का कोई खतरा है।

न्यूजपेपर इंडस्ट्री को आगे बढ़ाने की दिशा में आपका रोडमैप क्या है। क्या आपने कोई ब्लूप्रिंट तैयार किया है?

देखिए, कोरोनाकाल ने हमें काफी चीजें सिखाईं। उस दौरान विज्ञापन कम आए। विज्ञापन रेवेन्यू कम आया और भारतीय परिदृश्य में यदि आप देखें तो 90 के दशक में जब से आर्थिक क्रांति आई, तब से अखबारों में विज्ञापनों की संख्या बहुत बढ़ी है। 90 के दशक से पहले होता यह था कि जब भी न्यूजप्रिंट (अखबारी कागज) के दाम बढ़ते थे तो तमाम अखबार अपने कवर प्राइज (कीमत) बढ़ा देते थे। लेकिन, जब उनका रेवेन्यू काफी बढ़ने लगा तो तमाम अखबारों ने सर्कुलेशन की कवर प्राइज पर एक चेकप्वॉइंट (एक तरह की रोक) लगा दिया।

साउथईस्ट एशिया में जब अखबार 15-20 रुपये के बिक रहे थे, उस समय हमारे देश में इनका मूल्य तीन से चार रुपये था। उसमें से भी 30-40 प्रतिशत कमीशन लोगों को दे दिया जाता था, ऐसे में अखबार मालिकों के हाथ में दो-ढाई रुपये ही आ पाते थे। जबकि अखबारी कागज के दाम बढ़ने की वजह से और अन्य तमाम खर्चों के बढ़ने से अखबारों की प्रॉडक्शन कॉस्ट (उत्पादन लागत) काफी बढ़ गई। ऐसे में जब ऐडवर्टाइजमेंट गिरा तो बहुत सारे अखबार घाटे में आ गए। अखबारों के रेवेन्यू के दो स्ट्रीम होते हैं। एक विज्ञापन और दूसरा कवर प्राइज। ऐसे में मेरा मानना है कि सर्वाइव करने के लिए सभी अखबारों को मिलकर गंभीरता से सोचना चाहिए कि आज तक जो ऐडवर्टाइजर हमारे अखबारों को सब्सिडी देने के लिए पैसा दे देता था कि इससे आप पाठकों को अखबार सस्ता दीजिए तो काम चलता रहा और प्रॉफिट भी होता रहा।

लेकिन अब समय बदल रहा है। आज के दौर में न्यूजपेपर इंडस्ट्री को बहुत गंभीरता से सोचना चाहिए कि अखबार की जो लागत आती है, वह तो पाठकों से जरूर ली जाए। 70-80 के दशक की बात करें तो लगभग एक कप चाय की कीमत के बराबर अखबारों का कवर प्राइज हुआ करता था, लेकिन अब समय के साथ वस्तुओं की कीमतें भी बढ़ गई हैं। ऐसे में अखबारों का कवर प्राइज भी बढ़ना चाहिए। सबसे बड़ा इश्यू यही है कि यदि न्यूजपेपर इंडस्ट्री को आर्थिक रूप से सर्वाइव करना है तो कवर प्राइज पर ध्यान देना चाहिए।  

न्यूज प्रिंट की बढ़ती कीमतों को लेकर आपका क्या मानना है। इसके अलावा न्यूज प्रिंट के आयात पर लगी पांच प्रतिशत कस्टम ड्यूटी का मुद्दा भी आईएनएस की ओर से समय-समय पर उठता रहता है, उस दिशा में आपका क्या मानना है? क्या आप सरकार से इस दिशा में कुछ डिमांड करने जा रहे हैं?

‘इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी’ हमेशा से सरकार से इस बारे में डिमांड करती रही है। अखबार एक तरह से नॉलेज है, क्योंकि यह सूचनाएं प्रदान कर रहा है। अब चाहे जीएसटी लगाइए या कस्टम ड्यूटी लगाइए, जैसे कि अब डिजिटल के सबस्क्रिप्शन पर भी जीएसटी लगाने की कवायद हो रही है, जिस पर हमने सरकार के सामने अपना विरोध जाहिर किया है। लेकिन कस्टम ड्यूटी की बात करें तो हमारे यहां की मशीनें इस प्रकार की हैं कि देसी (भारत में तैयार) न्यूजप्रिंट उन पर चल नहीं पाता है।

इंडस्ट्री को 14 लाख टन अखबारी कागज की जरूरत होती है, जबकि भारतीय मिलें सात लाख टन अखबारी कागज तैयार कर पाती हैं और सात लाख टन अखबारी कागज विदेश से आयात करना पड़ता है। ऐसे में यदि हम बाहर से खरीद रहे हैं और उस पर भी हमें पांच प्रतिशत कस्टम ड्यूटी देनी पड़ रही है, तो यह एक तरह से नॉलेज पर टैक्स है। जब अखबारों की अर्थव्यवस्था चरमराई हुई है, उस समय पर इस प्रकार के टैक्स को जारी रखना औचित्यहीन है। हम सरकार से पुरजोर मांग करेंगे कि न्यूजप्रिंट के आयात पर लगाई गई पांच प्रतिशत कस्टम ड्यूटी को समाप्त किया जाए।      

कोरोनाकाल के दौरान प्रिंट मीडिया इंडस्ट्री का विज्ञापन राजस्व यानी एडवर्टाइजिंग रेवेन्यू काफी घट गया था, अब चूंकि कोरोना नहीं है तो विज्ञापन राजस्व को लेकर वर्तमान में क्या स्थिति है और इसे बढ़ाने की दिशा में किस तरह के कदम उठाएंगे?

कोरोना के जाने के बाद कॉमर्शियल विज्ञापन काफी हद तक वापस आ गया है हालांकि अब तक यह पूर्व वाली स्थिति में नहीं आया है। सरकारी विज्ञापनों का जो बजट पहले काफी होता था, न जाने किन कारणों से सरकार ने यह बजट कम कर दिया है। हम सरकार से अनुरोध करना चाहेंगे कि कम से कम पुराने बजट को ही बहाल कर दिया जाए, जिससे कि अखबारों को उसका फायदा मिल सके। बाकी तो आप जितना प्रासंगिक होंगे, जितनी आपकी मार्केट में आवश्यकता होगी, जितना विज्ञापनदाता को आपके पास विज्ञापन देने से फायदा होगा, उसका प्रचार प्रसार होगा और उसकी बिक्री बढ़ेगी, उतना आपके पास विज्ञापन बढ़ेगा।  

कोरोना के दौरान विभिन्न कारणों से तमाम अखबार बंद हो गए थे। कोरोना के जाने के बाद अब क्या वे दोबारा से शुरू होंगे और आईएनएस क्या उनकी मदद करेगी?

अखबार बंद करना अथवा दोबारा से शुरू करना अखबार मालिकों की अपनी सोच और व्यापारिक हितों पर निर्भर है। इसमें आईएनएस कुछ नहीं कर सकती। हां, यदि वे इस बारे में आईएनएस से मदद मांगेगे तो हम इस पर जरूर विचार करेंगे और हरसंभव मदद करेंगे।   

आज के दौर में तमाम अखबार ई-प्रारूप (epaper format) में उपलब्ध हैं, जिन्हें ऑनलाइन पढ़ा जा सकता है, जिनमें से कुछ तो बिल्कुल मुफ्त हैं। तमाम यूजर्स अखबार के पेजों की पीडीएफ (PDF) बना रहे हैं और उसे वॉट्सऐप और टेलिग्राम ग्रुप्स पर पाठकों को भेज रहे हैं। माना जा रहा है कि इससे अखबारों और ई-पेपर्स को सबस्क्रिप्शन रेवेन्यू के रूप में काफी नुकसान हो रहा है। इस पर क्या कहेंगे?

इससे अखबारों को कोई नुकसान नहीं है। क्योंकि, मेरा मानना है कि जिसे अखबार को हाथ में लेकर पढ़ने की आदत है, वह ई-पेपर को कभी प्राथमिकता नहीं देगा। अखबार चलते रहेंगे। अखबार को हाथ में पकड़कर पढ़ने का, उसमें से मनपसंद खबरों की कटिंग काटकर रखने का अपना अलग ही आनंद है। ऐसे में मुझे नहीं लगता कि अखबारों के भविष्य पर किसी तरह का कोई संकट है। कुछ लोगों द्वारा इस तरह अखबारों की पीडीएफ बनाकर एक-दूसरे को भेजने से अखबारों पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। 

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सुधीर चौधरी का बेबाक इंटरव्यू, बोले-झूठी FIR का हुआ शिकार

‘न्यूज नेक्स्ट’ (News Next) 2023 के दौरान ‘बिजनेसवर्ल्ड’ और ‘एक्सचेंज4मीडिया’ के चेयरमैन व एडिटर-इन-चीफ डॉ. अनुराग बत्रा के तमाम सवालों का वरिष्ठ टीवी पत्रकार सुधीर चौधरी ने दिया बेबाकी से जवाब

समाचार4मीडिया ब्यूरो by
Published - Tuesday, 05 September, 2023
Last Modified:
Tuesday, 05 September, 2023
Interview

‘एक्सचेंज4मीडिया’ (e4m) समूह की ओर से एक बार फिर अपनी वार्षिक मीडिया समिट ‘न्यूजनेक्स्ट’ (NEWSNEXT) का आयोजन किया गया। नोएडा स्थित होटल रैडिसन ब्लू में 27 अगस्त को सुबह नौ बजे से इसका आयोजन किया गया। यह ‘न्यूजनेक्स्ट’ का 12वां एडिशन था। इस कार्यक्रम के तहत न्यूज टीवी के दिग्गज, मीडिया एक्सपर्ट्स, एडवर्टाइजर्स, ब्रैंड मार्केटर्स, शिक्षाविद् और ग्लोबल मीडिया से जुड़े लीडर्स एक मंच पर जुटे और टीवी न्यूज के भविष्य समेत इससे जुड़े तमाम पहलुओं पर अपने विचार रखे। ‘न्यूज नेक्स्ट’ (News Next) 2023  में एक सेशन के दौरान ‘बिजनेसवर्ल्ड’ और ‘एक्सचेंज4मीडिया’ के चेयरमैन व एडिटर-इन-चीफ डॉ. अनुराग बत्रा और ‘आजतक’ के कंसल्टिंग एडिटर सुधीर चौधरी के बीच लंबा वार्तालाप हुआ और विभिन्न महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हुई। इस बातचीत के दौरान डॉ. अनुराग बत्रा द्वारा पूछे गए तमाम सवालों का सुधीर चौधरी ने बेबाकी से जवाब दिया।

प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश:

आप 28 साल से ज्यादा समय से पत्रकारिता की दुनिया में हैं। आपने अभी जिक्र किया कि गोदी मीडिया शब्द को लेकर किस तरह ट्रोलिंग की जाती है और किस तरह का माहौल तैयार किया जाता है, आखिर यह कौन कर रहा है और जो लोग (कुछ पत्रकार) ऐसा करने में जुटे हैं, उससे उन्हें क्या फायदा होता है?

मुझे लगता है कि यह एक पॉलिटिकल ईको सिस्टम है, जो यह सब कर रहा होगा। जैसा मैंने अभी थोड़ी देर पहले कहा। ये फेसबुक पर नहीं है, इंस्टाग्राम पर नहीं है। यह सबसे ज्यादा ट्विटर पर है, जिसका कि सबसे छोटा बेस है। लगभग ढाई-पौने तीन करोड़ का बेस है। 2014 से पहले भी जब मैं देखता हूं तो ऐसा नहीं है कि लोग उस समय की सरकारों के पक्ष में गीत नहीं गाते थे। शायरी नहीं लिखते थे और हर तरह से उनको समर्थन नहीं करते थे। बिल्कुल करते थे। लेकिन तब तक वह ठीक था। वह असली (genuine) पत्रकारिता मानी जाती थी। मैं इसे किसी पार्टी से जोड़ना नहीं चाहता। मैं इसे नेशनलिज्म से पहले का दौर जोड़ना चाहता हूं। पिछले दस वर्षों में हमारे देश में कुछ बड़े बदलाव आए हैं।

एक तो हमारे मेनस्ट्रीम मीडिया में राष्ट्रवाद की जगह आ गई। इससे पहले नेशनलिज्म अथवा राष्ट्रवाद की कोई बात नहीं करता था। दूसरा, अचानक से ब्रैंड इंडिया को लेकर तेजी देखने को मिली। तीसरी बात मुझे यह लगती है कि देश में बहुसंख्यक आबादी (हिंदुओं) में जागृति आई है। मुझे लगता है कि ये तीन चीजें हुईं और एक ईकोसिस्टम जो पहले काफी कंफर्टेबल था, वह अचानक से एक्टिव हो गया। इस पूरे नैरेटिव के शिकार कुछ खास लोग होते हैं। यदि आप मुझे देखेंगे, मेरी पैकेजिंग देखेंगे तो उससे आपको अंदाजा लग जाएगा कि खास तरह के लोग ही ट्रोलिंग का निशाना बन रहे हैं, जबकि दूसरी तरह के लोग इसका निशाना नहीं बन रहे हैं। उनकी आज भी तारीफ होती है।

इसलिए मुझे लगता है कि ऐसा कुछ नहीं है, सिर्फ पॉलिटिकल टूल की तरह इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। हमारे देश में सोशल मीडिया भी चुनाव जीतने का एक तरीका हो गया है। आज के दौर में नेता और खाकी वर्दी अपनी विश्वनसीयता खो चुके हैं। अगली बारी मीडिया की है और आपने देखा होगा कि न्यायपालिका के साथ भी यही हो रहा है। आज से कुछ साल पहले न्यायपालिका कोई फैसला सुनाती थी तो इस तरह से ट्रोलिंग नहीं होती था। लेकिन आज, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की ट्रोलिंग हो जाती है। यह कितना बड़ा बदलाव है।

आपने एक पत्रकार के तौर पर अपना करियर शुरू किया। फिर आप एक एंकर बने, एडिटर बने। फिर सीईओ बने और एक शो होस्ट बने। आपका यह सफर कैसा रहा और आप अपने शो को लेकर किस तरह तैयारी करते हैं?

काफी समय पहले टीवी18 (अब नेटवर्क18) एक छोटा सा प्रॉडक्शन हाउस हुआ करती थी। वह प्रोडक्शन हाउस एक बिजनेस शो ‘इंडिया बिजनेस रिपोर्ट’ बीबीसी के लिए और दूसरा शो ‘अमूल इंडिया शो’ स्टार टीवी के लिए करता था। मैं बतौर रिपोर्टर इन दोनों शो के लिए काम करता था। इसके बाद धीरे-धीरे मैं आगे बढ़ता गया और आज यहां तक पहुंचा हूं। जब मैंने टीवी की दुनिया में अपनी शुरुआत की थी, उस दौर में टीवी के तमाम लोग अखबार की खबरें पढ़कर खबरें तय करते थे।

अब ज्यादातर लोग सोशल मीडिया पर जो चल रहा है अथवा ट्रोल हो रहा है, उसके आधार पर अपना कंटेंट तय करते हैं। इस दौरान तमाम पत्रकारों ने बाहर निकलना बंद कर दिया। बाहर यदि निकले भी तो लोगों से बात करना बंद कर दिया। लेकिन मैं यदि कहीं जाता हूं और लोगों से बात करता हूं तो इस बातचीत के दौरान ही कोई न कोई स्टोरी आइडिया आ जाता है। मैं अपनी बात करूं तो यह मेरा सौभाग्य है कि बहुत बड़ी संख्या में लोग मुझे मेल लिखते हैं, मुझे वॉट्सऐप करते हैं। बड़ी संख्या में लोग मुझे स्टोरी को लेकर सोशल मीडिया पर संदेश भेजते हैं और कहते हैं कि आप इसे करिए। तो सोशल मीडिया पर जो ट्रोलिंग हो रही है और अखबार में जो छप रहा है।

उसके अलावा तीसरी बड़ी बात यह है कि जो आम जनता है, उसके मुद्दे कैसे आपको पता चलेंगे, क्योंकि न तो वह अखबार में आ रहे हैं और न ही सोशल मीडिया पर। मुझे लगता है कि ट्विटर तो अब सिर्फ एक पॉलिटिकल टूल बन गया है, जिसे तमाम राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने हिसाब से इस्तेमाल कर रही हैं। इसलिए मुझे लगता है कि स्टोरी के लिए हमें स्टूडियो से बाहर निकलकर जनता के बीच जाने की जरूरत है। यदि आप वहां से इनपुट और फीडबैक लेंगे तो आप फिर बिल्कुल अलग नजर आएंगे।

आप पिछले कुछ दिनों से सुर्खियों में हैं। आपके बारे में सोशल मीडिया पर तमाम तरह की बातें हो रही हैं। क्या जो कहा जा रहा था और जिस संदर्भ में कहा जा रहा था, वह ठीक था? आपने इस बारे में न कभी सोशल मीडिया पर टिप्पणी की और न ही उस मुद्दे पर कभी चर्चा की। आज इस मंच पर इस बारे में आपका क्या कहना है?

मेरा मानना है कि एक प्रोफेशनल पत्रकार और एक प्रोफेशनल एंकर के तौर पर आपकी ट्रेनिंग इस तरह होनी चाहिए कि यदि आपका गेस्ट कुछ इस तरह का व्यवहार करता है जो आपको सकते में डाल दे अथवा सरप्राइज कर दे तो आपको पता होना चाहिए कि उस समय आपको क्या करना है। उस समय आपको वहां एक कुश्ती का मैदान नहीं बना देना चाहिए। वो मेरा मंच नहीं था बल्कि वो एक बहुत बड़े चैनल का मंच था और उसका एक मकसद था। उसका मकसद मेरी निजी बातें करने का नहीं था। मैं भी चाहता तो वहां अपनी कुछ निजी बातें कर सकता था, लेकिन वह मंच उस चीज के लिए था ही नहीं। उस जैसी स्थिति में एक प्रोफेशनल एंकर यही सोचेगा कि यह पूरी बातचीत मुद्दे से हटे नहीं और मैंने भी वही किया। मैंने उस माहौल को और आगे बिगड़ने नहीं दिया।

मुझे लगता है कि सारा देश उस क्लिप को देख चुका है। देखने वालों को यह तय करना चाहिए कि इस बारे में उनकी राय क्या बनती है। किसने क्या कहा, सवाल होने चाहिए या नहीं होने चाहिए। लेकिन, मैं फिर से आपको यह कहता हूं कि ऐसा माहौल जरूर बन रहा है, कि एक पत्रकार के ऊपर पहले से ही ऐसा दबाव बना दिया जाए कि वो अगली बार यह सवाल पूछे ही नहीं। उसे अपना पुराना समय अथवा ट्रोलिंग याद आ जाए। मैंने भी देखा कि उस दिन के बाद से एक खास वर्ग के लोग मेरे लिए ट्रोलिंग करने लगे। मैं तो यही कहूंगा कि मैंने उस मंच की पवित्रता को भंग नहीं होने दिया। शालीनता मेरा शुरू से आभूषण रहा है। मेरे 28 साल के करियर के दौरान आपको एक बार भी ऐसा कभी नहीं मिला होगा, जब मैंने किसी का अपमान किया हो। अथवा अपने मेहमान का जिसका मैंने इंटरव्यू किया हो, उससे कुछ ऐसा सवाल पूछ लिया हो, जिससे वह परेशानी में पड़ जाए। क्योंकि वो हमारा मेहमान है। अगर आप खुद को कुछ हजार लाइक्स, ट्वीट आदि देने के लिए किसी का अपमान कर करते हैं तो मुझे लगता है कि यह बहुत बड़ी कीमत है। मैंने ऐसा कभी नहीं किया। मैं बहुत खुशी से आपको बता सकता हूं कि मैंने अपना वो ट्रैक रिकॉर्ड आज भी बरकरार रखा है। 

दूसरी बात यह कि मुझसे कई लोगों ने यह पूछा है कि उस इंटरव्यू में मुझसे एक सवाल पूछा गया था कि जब आप जेल में थे तो क्या हुआ। ये ऐसी बात है, जिस बारे में मैं पहले बार किसी सार्वजनिक मंच पर बोल रहा हूं। मुझे लगता है कि आज के बाद यह सारी स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। 2012 में राजनीतिक रूप से एक झूठा और गलत केस मेरे ऊपर दायर किया गया। उस समय तत्कालीन सरकार की पूरी कोशिश यही थी कि पूरे के पूरे मीडिया हाउस को मिटा दिया जाए। वह मीडिया हाउस जो उनके साथ जुड़ा हुआ नहीं था। उस मामले में एक एफआईआर दर्ज की गई, जिसमें मेरा नाम था, 'जी बिजनेस' के एडिटर और मेरे सहयोगी समीर अहलूवालिया का नाम भी उस एफआईआर में था। ‘जी’ ग्रुप के चेयरमैन सुभाष चंद्रा और उनके भाई जवाहर गोयल का नाम भी उस एफआईआर में था। इसके साथ ही एफआईआर में सुभाष चंद्रा के बेटे पुनीत गोयनका का नाम भी था। यानी इन पांचों लोगों का नाम उस एफआईआर में था। इस बात से आसानी से समझा जा सकता है कि एफआईआर दर्ज कराने वालों की मंशा क्या रही होगी। उसके बाद अगले दो महीने मेरे ऊपर एक-एक करके लगातार पांच और एफआईआर होती गईं।

आप याद कीजिए कि निर्भया केस में मैंने निर्भया के दोस्त का इंटरव्यू किया था, उस पर भी मेरे खिलाफ एफआईआर हो गई। इसी मामले में उन्होंने मुझे गिरफ्तार किया और मैं करीब 20 दिन जेल में रहा। जब मैं वापस आया तो उसी मामले में एक एफआईआर और दर्ज हो गई। उसके बाद एक और हो गई और ये सब गैरजमानती धाराओं में थीं। कानून के जानकार इस बात को भलीभांति जानते हैं कि यदि आपको किसी को गिरफ्तार करना है तो शुरू में एक बार उस पर गैरजमानती धाराओं में मुकदमा दर्ज करवा दीजिए। बाद में अदालत के चक्कर लगाते रहिए। उस समय उन लोगों की पूरी मंशा यही थी कि हमारे चैनल को बंद कर दिया जाए। सूचना प्रसारण मंत्रालय भी हरकत में आ गया और कारण बताओ नोटिस भेज दिया।

यानी जितने भी मंच उस समय हो सकते थे, सब के सब पीछे पड़ गए। इसके बाद हम लोग सुप्रीम कोर्ट गए और वहां वही कहा, जो आज मैं आपसे कह रहा हूं। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट से हमें राहत मिली, वरना उस समय वह चैनल ही बंद हो जाता। हैरानी की बात है कि किसी ने उस समय हमारा ज्यादा साथ नहीं दिया और मैं भी उस दौरान ज्यादातर चुप रहा। मैंने सोच लिया कि मैं अदालत में साबित करूंगा कि इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। उस केस को बंद होने में दस साल लग गए।

वर्ष 2012 में वह केस दर्ज हुआ था, उस समय मुझे ‘जी न्यूज’ में आए हुए महज दो महीने ही हुए थे। उस समय मैं समझ ही रहा था कि मुझे क्या करना चाहिए, तब तक ये झूठे केस मेरे खिलाफ दर्ज हो गए। वर्ष 2022 में यह केस कोर्ट में बंद हो गया, जब पुलिस ने अपनी क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की और बताया कि उन्हें इस तरह का कोई सबूत नहीं मिला, जिससे साबित कर सकें कि ये आरोप सही हैं। इसलिए हम इसमें क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करना चाहते हैं। जिसने हमारे ऊपर ये आरोप लगाए थे, उन्होंने 2017-18 में अपनी शिकायत को भी वापस ले लिया और कहा कि ये मामला कंफ्यूजन में हुआ और उस समय कुछ और हित साधने के लिए हमने ये एफआईआर करा दी थी। इसके बाद ही उस केस को बंद होने में पांच साल लग गए। उस समय कोई भी होता तो बताता कि देखिए हम सही थे, इसलिए जीत गए, लेकिन मैं तब भी चुप रहा, क्योंकि मैं दस साल तक इस मामले में पहले भी कुछ नहीं बोला था। लेकिन अब मैं आपको बताना चाहता हूं कि वह केस बंद हो चुका है। मैं उस बारे में बोलना नहीं चाहता था, लेकिन आज मैंने आपके सामने सार्वजनिक तौर पर सब कुछ स्पष्ट कर दिया है। उस केस में मैं दोषी नहीं पाया गया।    

डॉ. अनुराग बत्रा और सुधीर चौधरी के बीच हुई इस पूरी बातचीत का वीडियो आप यहां देख सकते हैं। 

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टीवी न्यूज की दुनिया में भारत विश्व मंच का महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन चुका है: भूपेन्द्र चौबे

वरिष्ठ टीवी पत्रकार भूपेन्द्र चौबे ने साझा किया कि उन्हें भी 2018 में उद्यमशीलता (entrepreneurial) के कीड़े ने काट लिया था और वह अपना खुद का वेंचर शुरू करना चाहते थे

Last Modified:
Tuesday, 29 August, 2023
BhupendraChaubey78451

पहले समय न्यूज रिपोर्टिंग दो लोगों का काम होता था। एक जिसके हाथ में भारी भरकम वीडियो कैमरा रहता था और दूसरा, एक रिपोर्टर जिसके हाथ में माइक रहता था। इसके अलावा, खबरों को प्रसारित करना कठिन था, क्योंकि दूरदर्शन ही इसके लिए एकमात्र स्थान था। यह कहना है कि लेखक व उद्यमी डॉ. भुवन लाल का।

डॉ. भुवन लाल ने 'न्यूजनेक्स्ट समिट 2022' (NewsNext Summit 2022) के दौरान वरिष्ठ टीवी पत्रकार भूपेन्द्र चौबे के साथ गहन बातचीत में यह बात कही। उन्होंने भूपेन्द्र चौबे के साथ चर्चा की कि आज भारत में टीवी समाचारों की क्या समस्या है।

चर्चा के दौरान डॉ. भुवन लाल ने कहा कि आज चीजें कैसे बदल गई हैं और मीडिया बिरादरी में हर कोई एक लंबा सफर तय कर चुका है। इस पर वरिष्ठ टीवी पत्रकार भूपेंद्र चौबे ने कहा कि टीवी न्यूज विभिन्न चरणों से गुजरा है और अब यह तेजी से विकसित हो रहा है। यह अब एक ऐसी स्थिति में है कि भारत विश्व मंच पर एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन गया है। उन्होंने कहा, जो कुछ भारतीय टीवी न्यूज पर देखा जाता है उसे विश्व स्तर पर भी देखा जाता है।

उन्होंने कहा कि 1.4 अरब लोगों की आबादी वाले देश को, जिसकी आबादी 2047 तक 1.73 अरब होने की संभावना है, पत्रकारिता के दो तत्वों - 'क्रेडिबिलिटी' (Credibility ) और 'कंट्री' (Country) की सख्त जरूरत है।"

इसके बाद वरिष्ठ टीवी पत्रकार भूपेन्द्र चौबे ने कहा कि वह पिछले सात-आठ साल से शिखर सम्मेलन में आ रहे हैं और लगभग सभी टॉप मीडिया प्रोफेशनल के साथ पत्रकारिता के संकट पर चर्चा करते हैं। उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि सभी पत्रकार ढोंगी (hypocrites) हैं, जिसमें मैं भी शामिल हूं।

चौबे ने साझा किया कि उन्हें भी 2018 में उद्यमशीलता (entrepreneurial) के कीड़े ने काट लिया था और वह अपना खुद का वेंचर शुरू करना चाहते थे, क्योंकि न्यूज मीडिया टूट चुका था।  

लेकिन फिर समस्या खड़ी हुई- पैसा कहां से आएगा? दुर्भाग्य से टीवी न्यूजरूम पर न्यूज मैनेजर्स ने कब्जा कर लिया है। इन न्यूज मैनेजर्स का पर्सनल, प्रोफेशनल या पॉलिटिकल चाहे जो भी कारण रहा हो, पत्रकारिता के मानकों को ऊपर उठाने के बजाय इसे नीचे गिराते गए। 

उन्होंने आगे कहा कि अब यह निचले स्तर पर पहुंच गया है, कि जहां आपके पास अपनी पहचान बनाने के लिए नए रास्ते खोजने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है।

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि यदि कोई पत्रकार पैसा चाहता है, तो एक निश्चित व्यवसाय मॉडल मौजूद है। और अगर वे उस बिजनेस मॉडल को चुनौती देने के लिए तैयार हैं, तो उन्हें पैसे के मोर्चे पर समझौता करने के लिए तैयार रहना होगा”, चौबे ने हस्ताक्षर करते हुए कहा।

जैसा न्यूज टीवी पर कंटेंट को लेकर कुछ दशक पहले कल्पना की गई थी, गुण और परिभाषा के अनुसार बदल गई है। आज सभी चीजें  कॉमर्स और टेक्नोलॉजी के इर्द-गिर्द घूमती है। उन्होंने तर्क दिया कि मैं यह बिल्कुल भी नहीं मानता कि पत्रकारों का कॉमर्स से कोई संबंध नहीं है। पत्रकारिता की सभी अपेक्षाएं  कॉमर्स से ही पूरी होंगी।

इसलिए यदि कोई पत्रकार पैसा चाहता है, तो उसके लिए एक बिजनेस मॉडल पहले से ही मौजूद है और यदि वे उस बिजनेस मॉडल को चुनौती देने के लिए तैयार हैं, तो उन्हें पैसे के मोर्चे पर समझौता करने के लिए तैयार रहना होगा। निश्चित तौर जैसे-जैसे कई नए रास्ते खुल रहे हैं, इसके साथ ही बड़े पैमाने पर अपॉर्चुनिटीज भी मौजूद हैं। टेक्नोलॉजी ही मीडिया बिरादरी में सभी को सही राह दिखाएगी।

चर्चा के अंत में, चौबे ने इस बात पर प्रकाश डाला कि उन्होंने ‘whataboutery’ नाम से एक नया शब्द देखा है, जो पत्रकारिता में विश्वसनीयता की वर्तमान स्थिति के साथ बिल्कुल फिट बैठता है।

उन्होंने कहा कि सच्चाई यह है और मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं है कि दशकों से अधिक अनुभव वाला कोई भी पत्रकार नहीं है, जिसे किसी न किसी स्तर पर दबाव में झुकना नहीं पड़ा हो और न ही विशेष पक्ष लेना पड़ा हो।'

इसलिए, भुपेंद्र चौबे का मानना है कि उनके पास अन्य पत्रकारों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने का कोई अधिकार नहीं है। यहां तक कि 99 प्रतिशत पत्रकारों के पास भी वह अधिकार नहीं है।

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मनगढ़ंत और झूठी सूचनाओं से निपटना पत्रकारों के लिए सबसे बड़ी चुनौती: सुधीर चौधरी

जाने-माने न्यूज एंकर और हिंदी न्यूज चैनल 'आजतक' के कंसल्टिंग एडिटर सुधीर चौधरी का कहना है कि मीडिया में समय के साथ तकनीकी दृष्टिकोण से काफी बड़ा बदलाव आया है।

Last Modified:
Monday, 14 August, 2023
Sudhir Chaudhary

‘एक्सचेंज4मीडिया’ द्वारा शुरू की गई सीरीज ‘हेडलाइन मेकर्स’ (HEADLINE MAKERS) के तहत जाने-माने न्यूज एंकर और हिंदी न्यूज चैनल 'आजतक' (AajTak) के कंसल्टिंग एडिटर सुधीर चौधरी से ‘एक्सचेंज4मीडिया’ के सीनियर एडिटर रुहैल अमीन ने मीडिया से जुड़े तमाम अहम मुद्दों पर बात की है। इस दौरान सुधीर चौधरी ने टीवी पत्रकारिता में अपने तीन दशक लंबे करियर, ट्रोल्स और आलोचकों को लेकर अपनी राय और टीवी न्यूज के भविष्य समेत तमाम अहम पहलुओं पर बेबाकी से बातचीत की है। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश:

'आजतक' पर आपके प्राइम टाइम शो 'ब्लैक&व्हाइट' को एक साल पूरा हो गया है। यह सफर कैसा रहा?

यह बहुत ही सुखद और संतोषजनक सफर रहा है। जब मैं ‘आजतक’ जैसे देश के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित प्लेटफॉर्म पर आया तो मैं यह सोचकर थोड़ा नर्वस था कि मेरे दर्शक इस नए शो को कितना पसंद करेंगे। उस समय मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं अपना सफर दोबारा से शुरू कर रहा हूं। यह एक तरह से ‘शोले2’ को बनाने और यह सुनिश्चित करने जैसा था कि यह वैसी ही सफल हो। अब, जब मैं लोगों के बीच जाता हूं तो वे मुझे बताते हैं कि उन्हें यह शो कितना पसंद है। मुझे ख़ुशी है कि दर्शकों ने इसे बहुत जल्दी स्वीकार कर लिया और अपना प्यार बरसाया।

‘सीधी बात’ को लेकर क्या कहेंगे?

मैं दोनों शो की मेजबानी का आनंद ले रहा हूं और मुझे उम्मीद है कि दर्शक मुझे इस नए फॉर्मेट में देखकर काफी खुश होंगे।

आप लगभग तीन दशक से न्यूजरूम का हिस्सा रहे हैं। इस दौरान आपकी नजर में न्यूजरूम में किस तरह के बदलाव आए हैं?

मुझे लगता है कि इस दौरान सबसे बड़ा अंतर टेक्नोलॉजी का है। करीब तीस साल पहले जब मैंने अपना करियर शुरू किया था,  उस समय वह बिल्कुल अलग दौर था।  वर्ष 1999 में जब मैं कारगिल युद्ध कवर कर रहा था तो उस समय सबसे बड़ी चुनौती थी कि कारगिल से दिल्ली तक फुटेज कैसे प्राप्त करें?

मैंने उस समय कैप्टन विक्रम बत्रा का एक इंटरव्यू किया था और जब वह इंटरव्यू प्रसारित हुआ, तब तक कैप्टन विक्रम बत्रा वीरगति को प्राप्त हो चुके थे। यानी तकनीकी दृष्टिकोण से काफी बड़ा बदलाव आया है। आज हमारे पास एक स्थान पर एक पीसीआर और दूसरे स्थान पर रिपोर्टर और एंकर हो सकता है, इसलिए टेक्नोलॉजी ने हमारे बिजनेस में सब कुछ आसान बना दिया है।

न्यूज रूम के इस तकनीकी सशक्तिकरण के बाद सबसे बड़ी चुनौती यह है कि आपको एक ही बार में कई जेनरेशंस को अपनी सेवाएं देनी होंगी। इसके अलावा, टेक्नोलॉजी सिर्फ हमारे पास ही नहीं आई है, बल्कि इसने व्युअर्स को भी सशक्त बनाया है। यह टेक्नोलॉजी का ही कमाल है कि आज अगर मैं यहां से सीधा प्रसारण कर सकता हूं तो हमारे दर्शक भी अपने घर से सीधा प्रसारण कर सकते हैं।

आज के दौर में न्यूज सबसे पहले न्यूज चैनल्स पर नहीं बल्कि सोशल मीडिया पर दिखाई देती है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स सूचना का समानांतर स्रोत बन गए हैं और इसने हमारे काम को बहुत चुनौतीपूर्ण बना दिया है। यह वह समय है, जब आपको अपने फॉर्मेट्स में लगातार नए पहल और नए प्रयोग करने होंगे।

ऐसा कहा जाता है कि आजकल टीवी पर न्यूज (खबरें) कम और व्यूज (विचार) ज्यादा होते हैं। आपका इस बारे में क्या कहना है?

मेरा मानना है कि टीवी न्यूज में आप जो भी बदलाव देखते हैं, वह दर्शकों की पसंद और नापसंद से आते हैं। रात नौ बजे का प्राइमटाइम शो टीवी चैनल का संपादकीय पेज होता है। यह लोगों को गहराई से उस न्यूज का अर्थ बताने के साथ-साथ यह भी बताता है कि यह न्यूज उन्हें कैसे प्रभावित करती है। अगर आप बिना किसी विश्लेषण के न्यूज दिखाएंगे तो वह अधूरी होगी, क्योंकि वह न्यूज तो पहले से ही सबके पास है। अब, जो बताना बाकी है वह यह है कि ऐसा क्यों हो रहा है?

आज तमाम टेक कंपनियां, चाहे वह एक्स (पूर्व में ट्विटर), फेसबुक, इंस्टाग्राम आदि हों, आपको अपनी बात कहने के लिए प्लेटफॉर्म दे रही हैं। आप वीडियो और ट्वीट आदि के माध्यम से तमाम फॉर्मेट्स में लोगों के साथ अपने व्यूज शेयर कर सकते हैं। आप इन टेक कंपनियों से अपने व्यूज शेयर करने की स्वतंत्रता खरीद रहे हैं। तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारे दर्शक व्यूज सुनने के लिए कितने उत्सुक हैं। यदि व्यूज हटा दिए जाएं तो आपको 24 घंटे केवल स्पीड न्यूज ही देखने को मिलेंगी। जैसे पांच मिनट में 100 न्यूज और ऐसे में आप उन न्यूज का संदर्भ कभी नहीं समझ पाएंगे।

ऐसा कहा जाता है कि आज की टीवी पत्रकारिता में हम (पत्रकार) सत्ता में बैठे लोगों से कठिन सवाल पूछना भूल गए हैं, खबरें सिर्फ प्रचार का माध्यम बन गई हैं और कुछ नहीं। इस बारे में आपके क्या विचार हैं?

ऐसा नहीं है। आप प्रधानमंत्री के साथ मेरे इंटरव्यूज देखें। कई लोग कहते हैं कि आप प्रधानमंत्री से कठिन प्रश्न नहीं पूछ सकते हैं, लेकिन यदि आप इन सभी इंटरव्यूज को देखें तो आपको पता चलेगा कि एक भी प्रश्न ऐसा नहीं है, जो मैंने उनसे नहीं पूछा हो। प्रधानमंत्री के साथ पिछले चुनाव से ठीक पहले मेरे आखिरी इंटरव्यू में मैंने उनसे बेरोजगारी और अन्य मुद्दों के बारे में पूछा था।

इसी तरह, लोग कहते हैं कि हम अमित शाह जैसे शीर्ष मंत्रियों से कठिन सवाल नहीं पूछते हैं। आप अमित शाह के साथ मेरे सभी इंटरव्यूज देख सकते हैं और फिर मुझे बताएं कि उनमें से कौन से प्रश्न कठिन नहीं हैं।

समस्या यह है कि इस तरह की बातें फैलाने वाले अधिकांश लोग किसी न किसी राजनीतिक दल के लिए काम कर रहे हैं। वे ऐसा नैरेटिव बनाते हैं कि कठिन सवाल नहीं पूछे जा रहे हैं, जबकि ऐसा नहीं है।

अगर मैं विपक्ष की बात करूं तो जो लोग कहते हैं कि सत्ता में लोग बोलते नहीं हैं, वे बताएं कि राहुल गांधी ने अपना आखिरी इंटरव्यू कब दिया था? सोनिया गांधी ने अपना आखिरी इंटरव्यू कब दिया था? आपने नीतीश कुमार का आखिरी इंटरव्यू कब देखा था?

निजी तौर पर मैं असम्मानजनक इंटरव्यू करने में विश्वास नहीं रखता। यदि कोई व्यक्ति मेरे पास गेस्ट बनकर आता है तो उसे यह अधिकार है कि वह जो कहना चाहता है, कहे। उसे स्पेस मिलना चाहिए ताकि वह अपनी बात खुलकर रख सके।

आजकल होता यह है कि जब आप एक घंटे किसी का इंटरव्यू करते हैं, तो उसका सिर्फ एक हिस्सा सोशल मीडिया पर दिखाया जाता है। कतिपय लोगों द्वारा पत्रकार को बदनाम करने के लिए अथवा निहित स्वार्थों के चलते इस तरह की गलत सूचना फैलाई जाती है। मेरा मानना है कि झूठी और मनगढ़ंत सूचनाओं से निपटना आज पत्रकारों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।

सुधीर चौधरी के साथ इस पूरी बातचीत का वीडियो आप यहां देख सकते हैं।

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