‘एक्सचेंज4मीडिया न्यूज ब्रॉडकास्टिंग अवॉर्ड्स’ (ENBA) का दसवां एडिशन शनिवार को...
रुहैल अमीन ।।
‘एक्सचेंज4मीडिया न्यूज ब्रॉडकास्टिंग अवॉर्ड्स’ (ENBA) का दसवां एडिशन 10 फरवरी को नोएडा के होटल रेडिसन ब्लू में धूमधाम से
मनाया गया। इस मौके पर वरिष्ठ राजनेता और ‘इंडियन
प्रीमियर लीग’ (IPL) के चेयरमैन राजीव शुक्ला ने बताया
कि आने वाले दिनों में टीवी न्यूज का भविष्य कैसा होगा। उन्होंने इस बात पर भी
प्रकाश डाला कि किस तरह से समकालीन न्यूज मीडिया के परिदृश्य में बदलाव की जरूरत
है।
राजीव शुक्ला ने कहा, ‘आजकल पत्रकारिता
काफी बदल गई है और अब यह महत्वपूर्ण लोगों के निकट ही घूम रही है। इससे पहले यह
होता था कि राजनेता कवरेज के लिए पत्रकारों के पीछे भागते थे लेकिन अब यह उल्टा
हो गया है। पहले हम लोगों को ज्यादा तवज्जो दी जाती थी, लेकिन अब उन लोगों की मांग ज्यादा है। अब समय आ गया है कि पत्रकारिता के
उसी रूप को वापस लाने के लिए, जिसके लिए यह जानी जाती
है, आत्ममंथन करें। मीडिया में इस समय काफी असमानता है
और हमें इन्हें देखने की और आज के समय के अनुसार इन्हें दूर करने की जरूरत है।’
कार्यक्रम में राजीव शुक्ला ने स्वतंत्र पत्रकारिता की
जरूरत पर भी बल दिया। उन्होंने कहा, ‘मेरा मानना है कि
न्यूज चैनलों को किसी भी तरह के राजनीतिक दबाव में नहीं आना चाहिए और इन सबसे
मुक्त होना चाहिए। मैं आपको ‘न्यूज24’ का एक उदाहरण दे सकता हूं। कभी भी किसी राजनीतिक दल ने चैनल पर पक्षपाती
होने का आरोप नहीं लगाया है। मेरा मानना है कि मीडिया के लिए यह जरूरी है कि उस पर
किसी भी तरह का दबाव न हो और वह सही तथ्यों पर रिपोर्टिंग करे, फिर चाहे वह किसी भी राजनेता से किसी न किसी रूप में जुड़ा ही क्यों न हो।’
कार्यक्रम के दौरान राजीव शुक्ला ने वर्तमान सरकार को भी
एक सलाह दे डाली। उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार के राजनेता मीडिया के साथ उस तरह
की बात नहीं करते हैं, जिस तरह यूपीए सरकार करती थी। राजीव
शुक्ला ने कहा, ‘मैं कहूंगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
को नियमित तौर पर मीडिया से उसी तरह बातचीत करनी चाहिए, जिस तरह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी किया करते थे। मीडिया के
प्रश्नों से बचना सही तरीका नहीं है, बल्कि उसके साथ
जुड़ना सही दृष्टिकोण है।’
राजीव शुक्ला ने कहा कि भारत में सभी लोगों के पास स्कोप
है। 130 करोड़ लोगों की आबादी वाले इस देश में न्यूज चैनल, टीवी न्यूज चैनल, प्रिंट मीडिया और डिजिटल
मीडिया, सभी के पास पूरे मौके हैं, क्योंकि यहां पर लोगों की पाठकों की और व्यूअर्स की कोई कमी नहीं है और
आप लोगों के बीच आसानी से समायोजित हो सकते हैं। ऐसे में यदि हम भारतीय मीडिया की
बात करें तो यह स्थिति बहुत प्रोत्साहित करने वाली है। चूंकि यहां पर काफी स्कोप
है ऐसे में आप आगे बढ़ सकते हैं। 'केपीएमजी' की रिपोर्ट के अनुसार, अनुमान लगाया गया है कि
टेलिविजन न्यूज चैनल का मार्केट 14 प्रतिशत बढ़ रहा है। इसके बाद प्रिंट मीडिया
का नंबर है और इसमें ग्रोथ भी करीब नौ प्रतिशत की बढ़ोतरी हो रही है। डिजिटल
मीडिया तीसरे नंबर पर है। लेकिन मेरा मत इससे अलग है। मेरा मानना है कि डिजिटल
मीडिया तेजी से आगे बढ़ रहा है। हालांकि मौद्रीकरण की बात करें तो डिजिटल मीडिया
को उतनी कमाई नहीं हो रही है लेकिन इसकी आगे बढ़ने की रफ्तार काफी तेज है। आजकल
लगभग सभी न्यूज चैनल इसकी ओर खासा ध्यान दे रहे हैं और डिजिटल मीडिया
डिपार्टमेंट पर उनका ज्यादा जोर है।
एक टेलिविजन चैनल तो 100 करोड़ का रेवेन्यू हर साल
डिजिटल मीडिया की बदौलत ले रहा है और यह रेवेन्यू दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है।
कुल मिलाकर कहें तो डिजिटल मीडिया चारों ओर छाया हुआ है और आज के समय में कोई भी
तबका इससे अछूता नहीं है। यदि आप कोई न्यूज चैनल चला रहे हैं तो आप भारतीय और
एनआरआई दर्शकों तक ही अपनी पहुंच बना सकते हैं लेकिन डिजिटल मीडिया में ऐसा नहीं
है और पूरी दुनिया के व्युअर्स तक आसानी से पहुंच सकते हैं।
मुझे लगता है कि डिजिटल मीडिया के साथ सिर्फ यही एक
परेशानी है कि इसकी जवाबदेही ज्यादा नहीं है। कोई भी व्यक्ति किसी के खिलाफ भी
कुछ भी लिख सकता है। कई बार यह बहुत गलत होता है, क्योंकि इसमें
जब कोई यदि आपको परेशान कर रहा है, आपकी बेइज्जती कर
रहा है लेकिन आप कुछ नहीं कर सकते हैं। मैंने इस बारे में साइबर कानून आदि देखने
की कोशिश भी की तो पता चला कि इसमें अदालत का आदेश है और आप कुछ नहीं कर सकते हैं।
ऐसे में कौन व्यक्ति रोजाना कोर्ट जाता है और वहां की कार्यप्रणाली से सभी लोग
भलीभांति परिचित हैं। किसी व्यक्ति के खिलाफ अदालत से कोई आदेश लेने में वर्षों
निकल जाते हैं। ऐसा होना काफी मुश्किल है, इसलिए इस
दिशा में हमें कुछ जरूर करना चाहिए।
हमारी सरकार में भी साइबर कानून पर काम किया गया था। इससे
पहले भाजपा नेता प्रमोद महाजन ने भी इस दिशा में कुछ प्रयास किए थे, हालांकि वे इसमें सफल नहीं हो पाए थे। बाद की सरकारों ने भी इस बारे में
काफी काम किया लेकिन यह उतना मजबूत नहीं बन पाया। ऐसे में सरकार को भी कुछ ऐसा
उपाय निकालना चाहिए जिससे जवाबदेही तय की जा सके और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
बनी रह सके। यदि हम इंडियन टेलिविजन इंडस्ट्री और इंडियन मीडिया इंडस्ट्री की
बात करें तो इस समय यह करीब 19.60 बिलियन डॉलर है और वर्ष 2012 तक इसके 37 बिलियन
डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। यदि रिस्पॉसिबिलिटी, अकाउंटिबिलिटी
और क्रेडिबिलिटी होना बहुत जरूरी है।
इस समय सबसे ज्यादा रेवेन्यू एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री से
आ रहा है। इससे सबसे मुश्किल काम डिस्ट्रीब्यूशन का है। ब्रॉडकास्टर के सामने
डिस्ट्रीब्यूशन सबसे बड़ी समस्या है। कुछ ब्रॉडकास्टर्स के पास अपना डिस्ट्रीब्यूशन
प्लेटफॉर्म है जबकि कुछ ब्रॉडकास्टर्स के पास अपना डिस्ट्रीब्यूशन प्लेटफॉर्म
नहीं है। यह सबसे बड़ी चुनौती है। इसमें टेक्नोलॉजी को लेकर रिस्क भी है क्योंकि
हर दो-तीन साल में टेक्नोलॉजी बदल जाती है। अभी जो एमएसओ और डीटीएच प्लेटफॉर्म
चल रहे हैं, कौन जानता है कि यह आने वाले समय
में शून्य हो जाएं और कुछ दूसरी तरह के जियो या दूसरे टाइप पूरे मार्केट पर छा
जाएं। ऐसे में मेरा मानना है कि सरकार को इस दिशा में जरूर कुछ काम करना चाहिए।
यदि हम दुनिया की बात करें तो मैंने देखा कि वे ब्रॉडकास्टर्स
पर ज्यादा ध्यान देते हैं और डिस्ट्रीब्यूशन के द्वारा उन्हें काफी रेवेन्यू
मिलता है। लेकिन भारत में वह मॉडल नहीं हैं, यहां तो
ब्रॉडकास्टर्स डिस्ट्रीब्यूशन को भुगतान करने के लिए बाध्य होते हैं। हमारे
देश में अधिकांश खर्च तो डिस्ट्रीब्यूशन में हो जाता है। ऐसे में उन्हें
मुश्किल से ही मुनाफा हो पाता है। यदि उन्हें प्रॉफिट नहीं मिलता है तो वे टीआरपी
पर चल रहे हैं। इन परिस्थितियों में ज्यादा से ज्यादा टीआरपी हासिल करने के लिए
वे 'लक्ष्मणरेखा' का उल्लंघन
करते हैं। यही कारण है कि चैनलों पर एंकर जोर-जोर से चिल्लाते हैं अथवा चैनलों पर
शो में हंगामा होता है। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है, दअरसल, वे रेटिंग हासिल करना चाहते हैं। ऐसे में क्रेडिबिलिटी का सवाल पैदा हो
जाता है। इस रेटिंग के चक्कर में ही क्रेडिबिलिटी प्रभावित हो रही है। आखिर अरनब
गोस्वामी क्या करते हैं, वे भी ज्यादा से ज्यादा
रेटिंग हासिल करना चाहते हैं। 'टाइम्स नाउ' और 'रिपब्लिक' में
भी सिर्फ रेटिंग को लेकर ही प्रतिस्पर्द्या है। हिन्दी चैनलों की बात करें तो
वहां पर भी यही स्थिति है। वे भी रेटिंग हासिल करना चाहते हैं। ऐसे में इस स्थिति
के पीछे रेटिंग और टीआरपी का ही मूल दोष है और इससे टेलिविजन इंडस्ट्री की ग्रोथ
भी प्रभावित हो रही है। टेलिविजन व्युअर्स और सभी स्टेकहोल्डर्स के बीच भी यही
मुद्दा है। यदि क्रेडिबिलिटी कम हो जाती है तो स्वाभाविक रूप से रेटिंग भी कम हो
जाएगी। इस पर लोग टेलिविजन देखना बंद कर देंगे और फिर प्रिंट मीडिया का रुख कर
लेंगे।
राजीव शुक्ला ने कहा, 'प्रिंट में कुछ
सिद्धांत होते हैं और वे हमेशा इसका पालन करते हैं। मुझे यह बात इसलिए पता है कि
मैंने भी प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दोनों में काम किया है। 200
पत्रकारों की प्रेस कॉन्फ्रेंस में कोई नेता संवेदनशील बात बताता है और यह भी
कहता है कि ये बात ऑफ द रिकॉर्ड है तो कोई पत्रकार उसे प्रकाशित नहीं करेगा। लेकिन
क्या आज टेलिविजन में ऐसा किया जा सकता है। आपस में हुई निजी बातों को भी दिखा
दिया जाता है। इसलिए कहा सकता है कि मीडिया के कवरेज को लेकर काफी बदलाव आया है।
पार्लियामेंट के सेंट्रल हॉल में अनकहा एक नियम है, जिसके बारे में हालांकि स्पीकर ने आदेश नहीं दिया है, लेकिन सभी लोग उसका पालन करते हैं। वह नियम यह है कि यदि सेंट्रल हाल में
कुछ सदस्य आपस में किसी भी मुद्दे पर बात कर रहे हैं तो उसे कभी भी रिपोर्ट नहीं
किया जाता है। लेकिन आखिर आजकल ऐसे सिद्धांत कहां हैं। आजकल तो स्टिंग जर्नलिज्म
को बढ़ावा दिया जा रहा है। यदि ऊपर दिए गए मेरे उदाहरणों को छोड़ भी दें तो आज तो
ये हाल है कि यदि आप किसी से कुछ बात कर रहे हैं तो पता नहीं कौन उसका स्टिंग कर
ले और कब वह चारों ओर फैल जाए। आज के समय में ये बहुत बड़ी समस्या है। ऐसे में
सभी नेता, नौकरशाह और सेलिब्रिटी कहीं पर भी कुछ बोलते
हुए डरे रहते हैं कि पता नहीं कौन उनका स्टिंग कर ले और बात का बतंगड़ बन जाए। ऐसे
में प्राइवेसी का सवाल उठता है। आखिर क्यों प्राइवेसी का और क्रेडिबिलिटी का सवाल
उठता है। यह सब आज के माहौल के कारण हो रहा है। यहां मीडिया के बहुत सारे लोग बैठे
हैं, जिनमें जर्नलिज्म के छात्र और मीडिया कंपनियों के
कई स्टेकहोल्डर्स भी शामिल हैं, उन सभी को अपने कंधे
पर ये जिम्मेदारी उठानी होगी। अगर साख चली गई तो कुछ नहीं बचेगा। सिर्फ विश्वास
का संकट है। इसलिए ये बहुत जरूरी है। यहां मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहता क्योंकि
हमारे सबसे रिश्ते हैं और अच्छे रिश्ते हैं। अभी किसी ने बोला कि अरनब गोस्वामी
कैमरे के बाहर इतने बढ़िया आदमी हैं कि पूछो मत, फिर
कैमरे पर क्या हो जाता है। वो कोई शाहरुख खान का कोई डायलॉग थोड़े ही है जो पढ़कर
बोलना पड़ता है। दरअसल, यह सब रेटिंग या टीआरपी के लिए
होता है। फिर उसमें धीरे धीरे राजनीतिक झुकाव शामिल होता जाता है।'
राजीव शुक्ला का कहना था, 'मैं भी पत्रकार था, मैंने करीब बीस साल पत्रकारिता की है और मेरे भी कई लोगों के साथ इस तरह
के भावनात्मक व पारिवारिक रिश्ते थे। राजीव गांधी से रिश्ते थे, अटल बिहारी जी से रिश्ते थे और वे घर पर भी आते थे। लेकिन आज की तारीख
में दो किस्म के पत्रकार हो गए हैं। एक पत्रकार रहकर राजनीतिज्ञ की तरह काम करता
है और एक वे हैं जिन्होंने चुना है कि उन्हें यदि कोई नेता अच्छा लगता है या
कोई राजनीतिक दल अच्छा लगता है वे पत्रकारिता छोड़ देंगे और खुले तौर पर उनके साथ
चले जाएंगे। मेरे ख्याल से दूसरा रास्ता बेहतर है। मैं भी यही मानता हूं और
मैंने सोच लिया था कि ऐसा नहीं करेंगे कि पत्रकार रहते हुए ऊपर से पत्रकार बने
रहेंगे और अंदर-अंदर राजनीतिक दल से जुड़े रहेंगे। यह तो एक तरह का धोखा हो गया
अपने व्युअर्स और रीडर्स के साथ। यदि किसी पत्रकार को राजनीति में आना है तो उसे
खुले तौर पर आ जाना चाहिए। इस तरह के लोगों की संख्या बहुत बढ़ रही है जो ऊपर से
तो पत्रकार हैं और नीचे से राजनेता बने हुए हैं।'
ऐसे लोगों का नाम पूछे जाने पर राजीव शुक्ला का कहना था, 'ऐसे लोगों की संख्या बहुत बढ़ गई है। एक-दो होते तो मैं बता देता वैसे
सभी को इसके बारे में पता है। इससे आप अपने दर्शक को धोखा दे रहे हैं और अपने
पाठकों को धोखा दे रहे हैं। मेरा मानना है कि यदि आप पॉलिटिकल जर्नलिस्ट हैं तो
आप आधे राजनीतिज्ञ तो वैसे ही बन गए क्योंकि आप रात-दिन उनके साथ रहते हैं। लेकिन
आपका ये हुनर होना चाहिए कि उनके साथ रहते हुए अपने काम करना न कि उनकी तरह काम
करना। आईएएस अधिकारी को स्टील फ्रेम इसलिए कहा जाता है कि वे एक हद तक पॉलिटिकल
प्रेशर अपने ऊपर लेते हैं लेकिन काम नियम-कायदों के हिसाब से करते हैं। हालांकि ये
स्टील फ्रेम आजकल रबर फ्रेम होता जा रहा है। यह काम पत्रकारों का करना है। बेशक
वे कैसे भी माहौल में रहें लेकिन जब स्टोरी लिखने बैठें तो सिर्फ अपने विवेक से
बिना किसी से प्रभावित हुए काम करें। हालांकि ऐसा हो नहीं रहा है। इसलिए तो ऐसे
सेमिनार आयोजित होते हैं और ये बात करने की नौबत आई। मैं आलोक जी की बात से सहमत
हूं कि बहुत प्रेशर होता था लेकिन तब दूसरी तरह का प्रेशर होता था। आज उल्टा हो
गया है। आजकल मालिक खुद खड़े रहते हैं कि आप प्रेशर तो डालो हम तैयार हैं, यह स्थिति ठीक नहीं है। क्योंकि जब ऐसा रिपोर्टर अपने ऑफिस जाता है तो
उसकी वैल्यू मालिक और एडिटर के बीच इस बात को लेकर आंकी जाती है कि यह किसके
नजदीक है। मैं इस तरह की स्थिति को साख पर संकट से जोड़ता हूं। अब मीडिया बहुत
विस्तार कर गया है। पहले सैकड़ों पत्रकार होते थे और अब इनकी संख्या हजारों में
है। मुझे याद है कि जब मैं रूबरू के नाम से इंटरव्यू करता था तो बड़े-बड़े नेता
कहते थे कि मेरा भी इंटरव्यू कर लो। एक बड़े नेता तो छह महीने तक मुझे कहते रहे
वे मेरे ऑफिस भी आते थे लेकिन तब हम तय करते थे कि किसका इंटरव्यू करना है। आज तो
यह हाल है कि छोटे नेता भी परेशान हैं कि आखिर किसे इंटरव्यू दें, पचासों अप्लीकेशन पड़ी हुई हैं। आज सब उलट गया है और पत्रकार की सफलता की
कुंजी ये हो गई है कि वह किसका इंटरव्यू लेकर आता है। मैं आज यहां पूर्व पत्रकार
होने के नाते बोल रहा हूं। आजकल जो वार्षिक कार्यक्रम कॉन्क्लेव होते हैं, उनमें गेस्ट को-ऑर्डिनेटर का पद भी शामिल कर लिया गया है जबकि पहले इस
तरह का कोई पद ही नहीं होता था। ऐसे लोगों का काम एक से एक लोगों को चैनल पर लाना
है। अब ऐसे लोगों ने देखा कि उनकी इतनी वैल्यू है तो उन्होंने पैसे लेने शुरू कर
दिया जबकि पहले लोग खुद आने को तैयार रहते थे। आज किसी भी क्रिकेटर को शो में बुला
लो, को-ऑर्डिनेटर ले आएगा जबकि पहले ऐसा नहीं था। ऐसा
ही हाल फिल्म इंडस्ट्री का हो गया है। पहले उभरते हुए कलाकार पत्रकारों को साधकर
रखते थे लेकिन आज तो उनके साथ धक्का-मुक्की तक होने लगी है। पहले हम इन प्रश्नों
का जवाब सोचना पड़ेगा कि कैसे हम अपनी गरिमा और गौरव को बचाकर, अपनी शान बचाकर रखना है।'
राजीव शुक्ला का कहना था, 'अब बात आती है कि तनख्वाह की। आप प्रिंट मीडिया के पत्रकार की तनख्वाह देख लो और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकार की तनख्वाह देख लो। दोनों में जमीन-आसमान का अंतर है। एक हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के वकील की तरह है और एक जिला अदालत के वकीलों की तरह है। दो साल काम करने के बाद इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का पत्रकार अपने आपको सीनियर कहता है जबकि प्रिंट में 20 साल तक काम करने के बाद भी वहां का पत्रकार अपने आपको सीनियर नहीं कह पाता है। ऐसे में प्रिंट मीडिया के वे लोग जो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में काम करने में भी सक्षम हैं, वे प्रिंट छोड़कर वहां जा रहे हैं। मीडिया में इस तरह की चीजें बहुत हो रही हैं, इसलिए मैंने उनका यहां जिक्र किया है। इसलिए इस तरह के मुद्दों को उठाने की जरूरत है। हम लोगों को आत्मचिंतन करना पड़ेगा। ये अच्छा विचार है कि मीडिया में सेल्फ रेगुलेशन होना चाहिए लेकिन क्या सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में ही होना चाहिए। आलोक जी और मैं दोनों प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के मेंबर रह चुके हैं लेकिन काउंसिल बिना दांत वाला शेर है, क्योंकि उसके पास किसी तरह की कार्रवाई का अधिकार नहीं है। वहां पर मीडिया द्वारा टेलिविजन रेगुलेटरी बॉडी गठित की गई लेकिन वह भी अपने उद्देश्य में सफल नहीं हुई। उसमें कोई एक-दूसरे की सुनता ही नहीं है और डिजिटल मीडिया की कोई रेगुलेटरी बॉडी ही नहीं है। कोई भी कुछ भी कर सकता है। इसलिए मेरे ख्याल से ये मौका है जब हम सब लोगों को सोचना पड़ेगा। इसके बारे में विचार करना होगा और अपने आप को बचाके यानी अपनी गरिमा और इज्जत बचाकर चलना पड़ेगा।'
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‘सोनी म्यूजिक इंडिया’ (SMI) ने संगीता अय्यर को डायरेक्टर (प्रमोशंस) के पद पर नियुक्त करने की घोषणा की है। अपनी इस भूमिका में संगीता अय्यर मीडिया चैनल्स में ‘सोनी म्यूजिक इंडिया’ की प्रमोशन स्ट्रैटेजी और एक्टिविटीज का नेतृत्व करेंगी। वह ‘सोनी म्यूजिक इंडिया’ के मैनेजिंग डायरेक्टर रजत कक्कड़ को रिपोर्ट करेंगी।
इस बारे में रजत कक्कड़ का कहना है, ‘कंपनी में संगीता के शामिल होने पर हम बहुत उत्साहित हैं। संगीता को देश के उभरते हुए मीडिया परिदृश्य की गहरी समझ है और कंपनी को उनके अनुभवों का काफी लाभ मिलेगा।’
वहीं, संगीता अय्यर का कहना है, ‘सोनी म्यूजिक इंडिया और इसकी बेहतरीन टीम में शामिल होने पर मैं बहुत खुश हूं। सोनी म्यूजिक के नेतृत्व में भारतीय म्यूजिक इंडस्ट्री एक नए युग का निर्माण करने में जुटी है। यह देश भर में तमाम शैलियों और भाषाओं में गहरी भागीदारी प्रदान करने के साथ ही कलाकारों और प्रशंसकों के लिए आकर्षक कंटेंट प्रदान करती है।’
करीब दो दशक के अपने करियर में संगीता रेडियो, रिटेल और एडवर्टाइजिंग के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा दिखा चुकी हैं। पूर्व में वह ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’, ‘रिलायंस मीडिया नेटवर्क’ और ‘स्टार नेटवर्क’ जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के साथ काम कर चुकी हैं।
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केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया और ओवर-द-टॉप (OTT) प्लेटफॉर्म्स के लिए गुरुवार को गाइडलाइंस जारी कर दी हैं। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और रविशंकर प्रसाद ने गुरुवार की दोपहर आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसकी घोषणा की। नई गाइडलाइंस के दायरे में फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और नेटफ्लिकस, अमेजॉन प्राइम और हॉटस्टार जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म्स आएंगे।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस मौके पर केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का कहना था, 'सरकार का मानना है कि मीडिया प्लेटफॉर्म्स के लिए एक लेवल-प्लेइंग फील्ड होना चाहिए इसलिए कुछ नियमों का पालन करना पड़ेगा। लोगों की मांग भी बहुत थी।' प्रकाश जावड़ेकर ने कहा जिस तरह फिल्मों के लिए सेंसर बोर्ड हैं, टीवी के लिए अलग काउंसिल बना है उसी तरह ओटीटी के लिए भी नियम लाए जा रहे हैं। लगातार मिल रही शिकायतों के बाद सरकार ने नए नियम लागू करने पर विचार किया है। उनका कहना था कि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के पास किसी तरह का कोई बंधन नहीं है। इसलिए तमाम आपत्तिजनक सामाग्रियां बिना किसी रोकटोक के दिखाई जाती हैं। इसी के मद्दे नजर सरकार को ये लगता है कि सभी लोगों को कुछ नियमों का पालन करना होगा।
We have decided to have 3 tier mechanism for OTT platforms;
— PIB India (@PIB_India) February 25, 2021
▪️OTT and Digital news media have to disclosed their details
▪️Grievance redressal system for Digital and OTT platforms
▪️Self regulatory body headed by retired SC or HC judge
Union Minister @PrakashJavdekar pic.twitter.com/6QdCK44yxA
वहीं, रविशंकर प्रसाद का कहना था, ‘सोशल मीडिया कंपनियों का भारत में कारोबार करने के लिए स्वागत है। इसकी हम तारीफ करते हैं। व्यापार करें और पैसे कमांए। सरकार असहमति के अधिकार का सम्मान करती है लेकिन यह बेहद जरूरी है कि यूजर्स को सोशल मीडिया के दुरुपयोग को लेकर सवाल उठाने के लिए फोरम दिया जाए।’ प्रसाद ने कहा, ’हमारे पास कई शिकायतें आईं कि सोशल मीडिया पर मार्फ्ड तस्वीरें शेयर की जा रही हैं। आतंकी गतिविधियों के लिए इनका इस्तेमाल हो रहा है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के दुरुपयोग का मसला सिविल सोसायटी से लेकर संसद और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है।’
Guidelines for Social Media Platforms
— PIB India (@PIB_India) February 25, 2021
A Grievance redressal mechanism should be developed and there should be a Grievance Redressal Officer
Should be registered within 24 hours and disposed in 15 days: Union Minister @rsprasad#ResponsibleFreedom #OTTGuideline pic.twitter.com/8A0DQycQqe
सोशल मीडिया के लिए गाइडलाइंस
- इसमें दो तरह की कैटिगरी हैं: सोशल मीडिया इंटरमीडियरी और सिग्निफिकेंट सोशल मीडिया इंटरमीडियरी।
- सबको शिकायत निवारण व्यवस्था (ग्रीवांस रीड्रेसल मैकेनिज्म) बनानी पड़ेगी। 24 घंटे में शिकायत दर्ज करनी होगी और 14 दिन में निपटाना होगा।
- अगर यूजर्स खासकर महिलाओं के सम्मान से खिलवाड़ की शिकायत हुई तो 24 घंटें में कंटेंट हटाना होगा।
- सिग्निफिकेंड सोशल मीडिया को चीफ कम्प्लायंस ऑफिसर रखना होगा जो भारत का निवासी होगा।
- एक नोडल कॉन्टैक्ट पर्सन रखना होगा जो कानूनी एजेंसियों के चौबीसों घंटे संपर्क में रहेगा।
- मंथली कम्प्लायंस रिपोर्ट जारी करनी होगी।
- सोशल मीडिया पर कोई खुराफात सबसे पहले किसने की, इसके बारे में सोशल मीडिया कंपनी को बताना पड़ेगा।
- हर सोशल मीडिया कंपनी का भारत में एक पता होना चाहिए।
- हर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के पास यूजर्स वेरिफिकेशन की व्यवस्था होनी चाहिए।
- सोशल मीडिया के लिए नियम आज से ही लागू हो जाएंगे। सिग्निफिकेंड सोशल मीडिया इंटरमीडियरी को तीन महीने का वक्त मिलेगा।
ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के लिए गाइडलाइंस
- ओटीटी और डिजिटल न्यूज मीडिया को अपने बारे में विस्तृत जानकारी देनी होगी। रजिस्ट्रेशन अनिवार्य नहीं है।
- दोनों को ग्रीवांस रीड्रेसल सिस्टम लागू करना होगा। अगर गलती पाई गई तो खुद से रेगुलेट करना होगा।
- ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को सेल्फ रेगुलेशन बॉडी बनानी होगी, जिसे सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज या कोई नामी हस्ती हेड करेगी।
- सेंसर बोर्ड की तरह ओटीटी पर भी उम्र के हिसाब से सर्टिफिकेशन की व्यवस्था हो। एथिक्स कोड टीवी, सिनेमा जैसा ही रहेगा।
- डिजिटल मीडिया पोर्टल्स को अफवाह और झूठ फैलाने का कोई अधिकार नहीं है।
गौरतलब है कि लंबे समय से नेटफ्लिक्स और अमेजॉन प्राइम जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को नियंत्रित करने पर बहस चल रही थी। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को नियंत्रित करने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई कर केंद्र सरकार से अब तक की गई कार्रवाइयों पर जवाब दाखिल करने को कहा था।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा था कि वह ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर कार्रवाई करने पर विचार कर रही है। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल संजय जैन ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि केंद्र सरकार ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को नियंत्रित करने के मुद्दे पर कुछ कदम उठाने पर विचार कर रही है।
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पुलिस ने मध्य प्रदेश के दतिया जिले में एक फर्जी पत्रकार को गिरफ्तार किया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पकड़ा गया फर्जी पत्रकार कई बड़े न्यूज चैनल्स और अखबारों के फर्जी आईडी बनवाकर क्षेत्र में अवैध रूप से वसूली कर रहा था।
आरोपी ने अपना एक होर्डिंग भी छपवाकर दतिया व्यापार मेले के बाहर लगा दिया था, जिसमें उसने खुद को मीडिया पार्टनर बताया था। अन्य पत्रकारों ने जब अपने चैनलों का नाम और फर्जी पत्रकार का नाम देखा तो कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज करा दी। मामला दर्ज होने के बाद पुलिस ने करीब 21 वर्षीय इस फर्जी पत्रकार को उसके घर से कई दस्तावेजों के साथ गिरफ्तार कर लिया।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, रविवार देर रात स्थानीय पत्रकार ने राजघाट कॉलोनी महावीर वाटिका निवासी अनुज पुत्र अनिल गुप्ता पर फर्जी पत्रकार बनकर लोगों से अवैध वसूली करने की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। एसपी अमन सिंह राठौड़ के निर्देश पर सोमवार को पुलिस ने आरोपी के घर दबिश देकर उसे गिरफ्तार कर लिया।
पूछताछ करने पर अनुज के पास कई चैनलों और अखबारों के साथ पीआरओ का लेटर फ्रेम में जड़ा हुआ मिला। कई युवक-युवतियों को पत्रकार बनाने संबंधी दस्तावेज व नियुक्ति पत्र भी आरोपी के घर से जब्त किए गए। पुलिस अनुज से पूछताछ कर रही है।
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डिजिटल न्यूज प्लेटफॉर्म thequint.com के स्वामित्व वाली और संचालक कंपनी ‘क्विंट डिजिटल मीडिया’ (Quint Digital Media) को कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर और चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर के पद पर रितु कपूर को पुन: नामित (re-designate) किए जाने के प्रस्ताव को शेयरहोल्डर्स (Shareholders) की मंजूरी मिल गई है। इसके साथ ही कंपनी को वंदना मलिक को नॉन एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर के पद पर नियुक्त किए जाने के प्रस्ताव को भी शेयरहोल्डर्स से मंजूरी मिल गई है। यह नियुक्ति पांच साल के लिए होगी।
‘क्विंट डिजिटल मीडिया’ ने बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज को इस बारे में जानकारी दी है। बताया जाता है कि 20 जनवरी को एक मीटिंग में बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने रितु कपूर को कंपनी के एमडी और चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर पद पर नियुक्त किए जाने को अपनी मंजूरी प्रदान कर दी थी। इस निर्णय पर शेयरधारकों की मुहर लगनी बाकी थी।
बता दें कि कंपनी ने 30 दिसंबर 2020 को जानकारी दी थी कि राघव बहल ने कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर के पद से इस्तीफा दे दिया है। कंपनी का कहना था कि 29 दिसंबर 2020 के बाद मैनेजिंग डायरेक्टर के पद से राघव बहल का इस्तीफा प्रभावी हो गया है। हालांकि, बहल कंपनी के बोर्ड में नॉन-एग्जिक्यूटिव प्रमोटर डायरेक्टर के रूप में कार्य करना जारी रखेंगे। 29 दिसंबर को कंपनी के एमडी राघव बहल के इस्तीफे के बाद क्विंट डिजिटल मीडिया की सीईओ रितु कपूर को एमडी का अतिरिक्त पद सौंपा गया था।
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चीन ने पिछले साल गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों के साथ हुई झड़प में मारे गए अपने सैनिकों की संख्या पर सवाल उठाने वाले अपने ही तीन पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, चीन के अधिकारियों का कहना है कि तीनों को पूछताछ के लिए गिरफ्तार किया गया है।
गिरफ्तार किए गए पत्रकारों में इकनॉमिक ऑब्जर्वर के साथ काम कर चुके 38 वर्षीय किउ जिमिंग भी शामिल हैं। किउ के अलावा एक ब्लॉगर को बीजिंग से अरेस्ट किया गया है, वहीं 25 वर्ष के एक ब्लॉगर यांग को दक्षिण पश्चिमी सूबे सिचुआन से अरेस्ट किया गया है। किउ पर आरोप है कि उन्होंने आंकड़ों पर सवाल उठाकर सेना की शहादत का अपमान किया है। तीनों को समाज में गलत प्रभाव डालने वाली जानकारी देने के आरोप में अरेस्ट किया गया है।
दरअसल, कुछ दिनों पूर्व ही चीनी सेना ने आधिकारिक तौर पर बताया था कि पिछले साल 15 जून को भारत और चीन की सेनाओं के बीच पूर्वी लद्दाख में हुई झड़प में उसके चार सैनिकों की मौत हुई थी और एक सैनिक की मौत बाद में हुई थी। इस झड़प में भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हो गए थे।
उस वक्त चीनी सेना ने कोई आंकड़ा जारी नहीं किया था, लेकिन तमाम मीडिया रिपोर्ट्स में 40 से 50 सैनिकों की मौत की बात कही गई थी। हालांकि चीन ने अब करीब आठ महीने बाद अपने सैनिकों की मौत की बात तो स्वीकारी, लेकिन आंकड़ा सिर्फ चार का ही दिया। चीन सरकार के इसी आंकड़े पर किउ ने सवाल उठाया था। उन्होंने यह आंकड़ा कुछ ज्यादा होने की बात कही थी। इसके साथ ही किउ ने चीन सरकार की ओर आठ महीनों के बाद आंकड़ा जारी करने पर भी सवाल उठाया था।
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‘भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण’ (TRAI) ने समयबद्ध फैसले के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट से न्यू टैरिफ ऑर्डर-2.0 (NTO 2.0) के मामले को तत्काल सूचीबद्ध (Listing) करने की गुजारिश की है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ‘ट्राई’ ने न्यू टैरिफ ऑर्डर-2.0 के मामले को इसी महीने सूचीबद्ध करने के लिए कहा है, ताकि इस पर फैसला आ सके। रिपोर्ट के अनुसार, ‘ट्राई’ के चेयरमैन पीडी वाघेला उपभोक्ताओं के हितों को मद्देनजर नए टैरिफ ऑर्डर को जल्द से जल्द लागू कराना चाहते हैं।
बता दें कि पिछले साल जनवरी में ट्राई ने नए न्यू टैरिफ ऑर्डर (NTO 2.0) को लागू करने का आदेश दिया था, जिसके बाद ब्रॉडकास्टर्स के ग्रुप ने बॉम्बे हाई कोर्ट में ट्राई के आदेश को चुनौती दी थी। फिलहाल मामला कोर्ट में विचाराधीन है।
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अर्जेंटीना (Argentina) में कोराना वायरस टीकाकरण (Corona Vaccination) को लेकर प्राथमिकता समूह से बाहर के लोगों को टीका दिए जाने पर विवाद इस कदर गहरा गया कि यहां के स्वास्थ्य मंत्री को इस्तीफा तक देना पड़ गया। दरअसल, विवाद के बीच अर्जेंटीना (Argentina) के राष्ट्रपति अल्बर्टों फर्नांडीज ने स्वास्थ्य मंत्री को इस्तीफा देने को कहा दिया था, जिसके बाद उन्हें यह कदम उठाना पड़ा।
स्वास्थ्य मंत्री पर आरोप लगा है कि उन्होंने टीकाकरण के लिए प्राथमिकता समूह में नाम न होने के बावजूद एक मशहूर स्थानीय पत्रकार को टीका दिए जाने की सिफारिश की।
राष्ट्रपति ने अपने ‘चीफ ऑफ स्टाफ’ से स्वास्थ्य मंत्री गिनीज गोंजालेज गार्सिया को तुरंत इस्तीफा देने का आदेश देने को कहा, जिसके बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया। कोरोना वायरस से निपटने को लेकर गार्सिया प्रभार संभाल रहे थे।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पत्रकार होरासिओ वेरबिट्सकी ने मंत्री गार्सिया से टीकाकरण का अनुरोध किया था और मंत्री ने उन्हें स्वास्थ्य मंत्रालय बुलाया था। वहां शुक्रवार को उन्हें स्पूतनिक वी के टीके की खुराक दी गई थी।
वैसे यहां ऐसे कई मामले आए हैं जब मेयर, सांसदों, कार्यकर्ताओं, सत्ता के करीबी लोगों को टीके दिए गए, जबकि प्राथमिकता समूह में उनका नाम नहीं था। हालांकि प्राथमिकता के तहत देश में सबसे पहले डॉक्टरों, स्वास्थ्यकर्मियों और बुजुर्गों को टीके दिए जाने हैं। अर्जेंटीना में कोविड-19 से 20 लाख लोग संक्रमित हुए हैं और 50,857 लोगों की मौत हुई है।
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80 देशों के 203 से ज्यादा खोजी पत्रकार संगठनों की सर्वोच्च संस्था ने वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी को हिंदी भाषा के लिए संपादक नियुक्त किया गया है
80 देशों के 203 से ज्यादा खोजी पत्रकार संगठनों की सर्वोच्च संस्था ‘ग्लोबल इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म नेटवर्क’ (जीआईजीएन) ने वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी को हिंदी भाषा के लिए संपादक नियुक्त किया गया है और वे भोपाल से ही अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करेंगे।
वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी भोपाल स्थित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति रह चुके हैं। दीपक तिवारी ढाई दशक से भी अधिक समय से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। साहित्य और लेखन में रुचि रखने वाले तिवारी ने इस दौरान देश के विभिन्न क्षेत्रों के अलावा विदेश यात्राएं भी की हैं।
तिवारी मूल रूप से मध्य प्रदेश के सागर जिले के रहने वाले हैं। वे देश की प्रमुख अंग्रेजी पत्रिका ‘द वीक’ के विशेष संवाददाता के रूप में भोपाल में अपनी सेवाएं भी दी हैं। वह देश की प्रतिष्ठित संवाद समिति के दिल्ली मुख्यालय में भी काम कर चुके हैं। उन्हें पंचायती राज से संबंधित मुद्दों पर श्रेष्ठ रिपोर्टिंग के लिए प्रतिष्ठित सरोजिनी नायडू पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। वह देश-विदेश में कई पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। तिवारी ने सागर के डॉ. सर हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग से पत्रकारिता में स्नातक किया है।
विश्व की प्रतिष्ठित संस्था जीआईजीएन पूरी दुनिया में खोजी पत्रकारिता के नए-नए आयामों की आपस में चर्चा करके उसे नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने का काम करती है। इस संगठन का मुख्यालय वॉशिंगटन में है, जबकि इसकी सेवाएं फ्रेंच, स्पेनिश, रूसी, अफ्रीकी, चीनी, अरबी, उर्दू, बांग्ला और अंग्रेजी भाषा में चलती है और प्रत्येक भाषा का एक अलग संपादक है।
जीआईजीएन पत्रकारिता की नई तकनीकों और पब्लिक डोमेन में उपलब्ध जानकारियों के आधार पर एक रिसोर्स सेन्टर चलता है, जिसे कोई भी पत्रकार उपयोग कर सकता है। दीपक तिवारी को हिंदी भाषा में इस तरह की पत्रकारिता को विकसित करने की जिम्मेदारी दी गई है। जीआईजीएन का हर दो वर्ष में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन होता है जिसमें भारत समेत पूरी दुनिया के पत्रकार हिस्सा लेते हैं। यह संस्था आने वाले समय में हिंदी के पत्रकारों के लिए फेलोशिप भी प्रदान करेगी।
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दिल्ली के द्वारका इलाके में पिछले हफ्ते हुई स्थानीय यूट्यूब चैनल के पत्रकार दलबीर सिंह (34) की हत्या के मामले में पुलिस ने उसके भांजे गुरमीत को गिरफ्तार किया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 22 वर्षीय गुरमीत को गोला डेयरी (Goyla Dairy) से गिरफ्तार किया गया है।
मीडिया रिपोर्ट्स में पुलिस के हवाले से कहा गया है कि पूछताछ के दौरान गुरमीत ने बताया कि दलबीर सिंह उसका मामा था। परिवार ने करीब दो महीने पूर्व उसकी शादी तय की थी। दलबीर सिंह ने शादी समारोह में हर्ष फायरिंग के लिए उसे एक पिस्टल दी थी।
पुलिस के अनुसार, पिस्टल के लिए दलबीर सिंह रुपयों की मांग कर रहा थी। गुरमीत इसके लिए सिर्फ दस हजार रुपये देने को तैयार था, लेकिन दलबीर ज्यादा रुपये मांग रहा था। 16 फरवरी को दोनों काकरोला इलाके में मिले, जहां से दलबीर सिंह उसे अपने घर के पास ले गया। यहां पैसों को लेकर दोनों के बीच बहस हो गई और गुस्से में गुरमीत ने दलबीर के सिर में गोली मार दी।
पिछले दिनों पुलिस को सूचना मिली कि गुरमीत उस पिस्टल को बेचने की तैयारी कर रहा है। सूचना पर पुलिस ने गुरमीत को कुतुब विहार इलाके से गिरफ्तार कर लिया। पुलिस को उसके कब्जे से पिस्टल बरामद हुई है। उस पर आर्म्स एक्ट और हत्या की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है।
गौरतलब है कि जेजे कॉलोनी, भरत विहार के रहने वाले दलबीर सिंह की 16 फरवरी को घर के पास सिर में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। यहां पर वह पत्नी और तीन बच्चों के साथ किराये के मकान में रहते थे।
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ग्रेटा थनबर्ग टूल किट मामले में दिशा रवि की गिरफ्तारी पर हंगामा जारी है। शुक्रवार दिशा रवि की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई हुई। दिशा के वकील ने याचिका में मीडिया ट्रायल रोकने की मांग की थी, लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने मीडिया ट्रायल रोकने से इनकार कर दिया और मीडिया को निर्देश भी दिए हैं। कोर्ट ने कहा कि इस मामले को सनसनीखेज ना बनाया जाए और ऐसी खबरें न दिखाई जाएं, जिससे जांच और आरोपी के अधिकार प्रभावित हो।
गुरुवार को दिल्ली उच्च न्यायालय ने किसान आंदोलन से जुड़ी टूलकिट साझा करने के मामले में गिरफ्तार जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि की याचिका पर दिल्ली पुलिस व कई मीडिया हाउस को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। याचिका में दिशा रवि ने पुलिस पर उसके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी से संबंधित जांच सामग्री को मीडिया में लीक करने का आरोप लगाया है।
दिशा के वकील ने आरोप लगाया कि दिल्ली पुलिस अपने ट्विटर हैंडल के माध्यम से दिशा के खिलाफ अपना मामला बना रही है। वकील ने एक विशिष्ट चैनल के वीडियो का उल्लेख करते हुए कहा कि न्यूज एंकर और रिपोर्टर का कहना है कि उन्हें साइबर सेल के स्रोतों से जानकारी मिली है। इस पर कोर्ट ने दिशा के वकील से पूछा कि क्या वह यह दावा करने की कोशिश कर रहे हैं कि पुलिस ने वास्तव में इसे लीक किया था। कोर्ट ने कहा कि ये न्यूज चैनल कह रहे हैं कि उन्हें इसकी सूचना दिल्ली पुलिस से मिली है।
कोर्ट ने कहा कि हम मीडिया से उसके सोर्स के बारे में नहीं पूछ सकते, लेकिन जानकारी सही होना भी जरूरी है। निजता का अधिकार, फ्री स्पीच और देश की संप्रभुता में संतुलन करना जरूरी है। इस मामले में फिलहाल चार किसानों की जानकारी आई है, वह दिखा रही है कि इस मामले में खबरों को सनसनीखेज भी बनाया गया।
कोर्ट ने आगे कहा कि चैनल के एडिटर को भी देखना होगा कि मामले को सनसनीखेज न बनाया जाए और न ही ऐसी खबर की जाएं, जिससे जांच और आरोपी के अधिकार प्रभावित हो।
इसके साथ ही कोर्ट ने दिशा रवि को यह निर्देश भी दिया है कि वह पुलिस की छवि को खराब करने की कोशिश न करें। इससे पहले दिशा के वकील ने मांग की कि केस से जुड़ी हुई जानकारी सार्वजनिक न कि जाए। वकील ने कहा कि दिशा को गिरफ्तार करके दिल्ली लाया गया, लेकिन वकील को जानकारी तक नहीं दी कि दिशा को किस कोर्ट में पेश करेंगे।
दिशा के वकील ने कोर्ट में कहा कि खबरों में ये भी बता दिया गया कि जांच के दौरान पुलिस ने दिशा से क्या-क्या सवाल पूछे। इतना ही नहीं, मीडिया में दिशा का कथित बयान भी चलाया गया। ये सब लीक हुई जानकारी के आधार पर हुआ है।
वहीं, दिल्ली पुलिस के वकील ने कहा कि दिशा के वकील जिन खबरों और ट्वीट की बात कर रहे हैं, अभी उसके बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है। लेकिन अगर कोर्ट चाहे तो इस मामले में सोमवार तक कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की जाएगी। साथ ही उन्होंने कहा कि मीडिया में जो रिपोर्टिंग हो रही है, वह जरूरी नहीं है कि सच हो। कोर्ट ने आदेश दिया कि जब तक जांच पूरी नहीं होती और चार्जशीट दायर नहीं होती, तब तक केस से जुड़ी कोई जानकारी सार्वजनिक न की जाए।
बता दें कि दिशा की याचिका में कहा गया है कि दिल्ली पुलिस और सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह टूल किट एफआईआर से से जुड़े हुए हैं जो भी जांच है, उसकी जानकारी सार्वजनिक न करें। निशा रवि को गलत तरीके से गिरफ्तार किया गया और उसको लेकर दिल्ली पुलिस बंगलुरु से दिल्ली आ गई बेंगलुरु की अदालत में याचिका दायर करने का मौका नहीं दिया गया। मीडिया ट्राई की वजह से दिशा रवि की छवि को नुकसान पहुंच रहा है। लिहाज़ा उस पर रोक लगाई जाए। मीडिया में दिशा रवि और ग्रेटा थनबर्ग के बीच की जो वॉट्सऐप चैट चल रही है, उसको भी चलाने से रोका जाए, क्योंकि इससे दिशा रवि के फ्री एंड फेयर ट्रायल के अधिकार को छीना जा रहा है।
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