हिंदी के विकास में मराठी पत्रकारों ने दिया अहम योगदान...

संपादकाचार्य बाबूराव विष्णु पराड़कर की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में...

समाचार4मीडिया ब्यूरो by
Published - Tuesday, 16 January, 2018
Last Modified:
Tuesday, 16 January, 2018
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समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।


संपादकाचार्य बाबूराव विष्णु पराड़कर की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में यूपी के वाराणसी में रविवार को स्मृति समारोह का आयोजन किया गया। यह समारोह उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान, काशी पत्रकार संघ और नादरंग के सहयोग से पराड़कर स्मृति भवन में किया गया, जिसमें हिंदी पत्रकारिता और हिंदी के विकास में बाबूराव विष्णु पराड़कर के योगदान को याद किया गया। कार्यक्रम के दौरान मराठी पत्रकारों की हिंदी सेवा और साहित्यिक-सांस्कृतिक पत्रकारिता विषय पर मंथन के साथ ही इसके बदलते परिवेश पर चर्चा हुई।  


पराड़कर स्मृति भवन में आयोजित समारोह में वरिष्ठ पत्रकार नवीन जोशी ने कहा कि साहित्य से ज्यादा पत्रकारिता ने हिंदी को परिष्कृत करने का कार्य किया और ऐसा करने वाले पत्रकारों में गैर हिंदी पत्रकारों की बड़ी भूमिका है। उन्होंने कहा कि हिंदी पट्टी के बाहर हिंदी को विकसित करने का कार्य होता रहा। कोलकाता इसका एक बड़ा केन्द्र था। गैर हिंदी भाषी पत्रकारों में मराठी पत्रकारों की बड़ी संख्या रही। विशेष रूप से बाबूराव विष्णु पराड़कर, लक्ष्मण गर्दे, माधवराव सप्रे जैसे पत्रकारों का नाम इनमें प्रमुख है।


समारोह में सकाल और स्वराज जैसे समाचार पत्रों के पूर्व संपादक व पुणे विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष एस.के.कुलकर्णी ने कहा कि हिंदी और मराठी के रिश्ते पुराने हैं। पराड़कर जी ने हिंदी भाषा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे हमेशा उसे आगे बढ़ाने में जुटे रहे। कुलकर्णी इन दिनों महाराष्ट्र में पराड़कर के गांव पराड़ में स्मारक का निर्माण भी करा रहे हैं।


वहीं लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र के शिक्षक रहे प्रो. रमेश दीक्षित ने कहा कि संकुचित और संकीर्ण मनोवृत्ति को तिलांजलि देकर सार्वदेशिक सरोकारों से जुड़ने की कोशिश करनी चाहिए। ख्यात नाटककार राजेश कुमार ने कहा कि वर्तमान में बाजारवाद का मीडिया पर काफी दबाव है। दिनोंदिन साहित्य और संस्कृति के लिए जगह कम होती जा रही है। वर्तमान में साहित्य और संस्कृति पत्रकारिता को समृद्ध करने की जरूरत है।

 

दो सत्रों में चले इस समारोह में जहां मराठी पत्रकारों की हिंदी सेवा पर चर्चा हुई वहीं साहित्यिक-सांस्कृतिक पत्रकारिता के विरासत और वर्तमान पर भी विचार रखे गए। वरिष्ठ रंग समीक्षक कुंवरजी अग्रवाल ने कहा कि हिंदी पत्रकारिता का आरंभ ही साहित्यिक और सांस्कृतिक पत्रकारिता से हुआ है। भारतेन्दु पत्रकार भी थे और उन्होंने बहुत सारे पत्र निकाले। उन्होंने साहित्य और पत्रकारिता का अद्भुत समन्वय किया है।


उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष राजनारायण शुक्ल ने कहा कि पत्रकारिता को छोटे-छोटे कस्बों, गांवों में कार्य करने वाली प्रतिभाओं को भी प्रकाश में लाने का कार्य करना चाहिए। चर्चित नाटककार राजेश कुमार ने कहा कि आज पत्रकारिता में साहित्य और संस्कृति का स्पेस लगातार कम होता जा रहा है।


वहीं प्रमुख रंगकर्मी प्रवीन शेखर ने कहा कि सांस्कृतिक पत्रकारिता सिर्फ सूचना या समीक्षा नहीं है, वह सांस्कृतिक इतिहास का दस्तावेज है।


समारोह में जितेन्द्र नाथ मिश्र, काशी पत्रकार संघ के अध्यक्ष सुभाषचन्द्र सिहं, महामंत्री अत्रि भारद्वाज ने भी विचार व्यक्त किए। दोनो सत्रों का संचालन पराड़कर जी के पौत्र आलोक पराड़कर ने किया।


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