वक्त बदला पर रमेशजी नहीं बदले...

बात मैं स्व. द्वारिका प्रसाद अग्रवाल से शुरू कर रहा हूं। झांसी में जन्मा, वहीं से ...

Last Modified:
Thursday, 12 April, 2018
ramesh

अमिताभ श्रीवास्तव

वरिष्ठ पत्रकार ।।

बात मैं स्व. द्वारिका प्रसाद अग्रवाल से शुरू कर रहा हूं। झांसी में जन्मा, वहीं से स्नातक की पढ़ाई के वक्त छात्र राजनीति की शुरुआत हुई। झांसी से जिस जगह से भास्कर ने जन्म लिया, उसी इमारत में पिताजी पंजाब नेशनल बैंक शाखा में कार्यरत थे। करीब सोलह साल वो उसमें रहे और उसी बिल्डिंग में बुक एजेंसी से लेकर भास्कर की शुरुआत के किस्से वो हमें बताते रहे हैं। छात्र राजनीति और लेखन की शुरुआत में दो ही ठिकाने होते थे जहां मैं अक्सर चक्कर लगाया करता था। इनमें जागरण और भास्कर शामिल थे। उसके बाद 1991 में जब माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में था तब मुझे विश्वविद्यालय की ओर से भास्कर भोपाल में प्रशिक्षण के लिए भेजा गया। पत्रकारिता की शुरुआत यहीं से हुई, जब भास्कर के लिए खबरों के संपादन से लेकर रिपोर्टिंग का अनुभव मिला। भास्कर में खबरें और लेख छपे।

डिग्री के बाद मैंने नईदुनिया, भोपाल जॉइन किया और रिपोर्टिंग करने लगा। इसी दौरान द्वारिका प्रसाद अग्रवालजी का निधन हुआ और रमेश अग्रवालजी ने उनकी याद में पत्रकारिता सम्मान की घोषणा की। भास्कर ग्रुप ने इस समारोह को उच्च स्तर का बनाने के लिए देश के वरिष्ठ पत्रकारों की समिति बनाई और इसमें लेखन, रिपोर्टिंग और फोटोग्राफी के सम्मान रखे गए। इसमें देश के जाने माने पत्रकार सूर्यकांत बालीजी को लेखन के लिए सम्मानित किया गया और मुझे रिपोर्टिंग के सम्मान का अवसर मिला। ये सम्मान तत्कालीन मुख्य निर्वाचन आयुक्त टी.एन. शेषन ने दिए। उस वक्त शेषन का इतना क्रेज था कि रवींद्र भवन भोपाल के शीशे टूट गए। मध्यप्रदेश के तमाम राजनीतिज्ञ, मंत्री, सांसद, विधायक, पत्रकार उस कार्यक्रम में शामिल हुए, जो शेषन के क्रेज के कारण पहुंचे थे।

बाहर बड़े टीवी लगाए गए थे लेकिन लोग क्रिकेट मैच की तरह उस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए दीवाने हो रहे थे। मुझे बताया गया कि सूर्यकांत बाली ने किसी भी राजनीतिज्ञ से सम्मान ग्रहण करने में अनिच्छा जाहिर की थी, इसलिए रमेशजी ने शेषन से संपर्क साधा और उन्हें उस कार्यक्रम के लिए राजी भी कर लिया। शेषन किसी भी कार्यक्रम में शामिल नहीं होते थे। कार्यक्रम के बाद जो भी सम्मानित सदस्य थे वो दिन भर के लिए भास्कर के मेहमान थे। खुद रमेशजी ने सभी सदस्यों से सहजता से मुलाकात की, चर्चा की और लंच में हिस्सा लिया। यही नहीं जो भी सम्मानित सदस्य थे, उनके परिवार के सदस्यों को भी पूरा सम्मान दिया। मुझे ध्यान है, जब अपने बड़े भाई रवि श्रीवास्तवजी और मामाजी के बेटे संजय खरे के साथ कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचा तो मुख्य द्वार पर भारी भीड़ अंदर दाखिल होने के लिए कश्मकश कर रही थी। द्वार पर खुद सुधीर अग्रवालजी सुरक्षाकर्मियों के साथ व्यवस्था संभालने में लगे थे। सुरक्षाकर्मियों ने मुझे दाखिल होने की तो अनुमति दी लेकिन इन दोनों को रोक दिया। जब सुधीर जी ने देखा तो उन्होंने आगे बढ़कर सभी को भीतर बुलाया।

ये कुछ यादें हैं जिन्हें शेयर करने से नहीं रोक पाया। इस बात की हैरानी जरूर रही कि ये सम्मान एक ही बार क्यों होकर रह गया, मुझे नहीं मालूम। रमेशजी ने खुद को कामयाबी के नशे से दूर रखा और इसीलिए पूरे देश में भास्कर ग्रुप को खड़ा कर दिया। अब तीसरी पीढ़ी इसे आगे बढ़ा रही है, निश्चित रूप से पहली पीढ़ी से ज्यादा दूसरी पीढ़ी ने कमाल किया और लगता है कि तीसरी पीढ़ी उनसे भी ज्यादा असरदार होगी। क्या ख्याल है आपका?

 

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