भारत में न्यूज ब्रॉडकास्ट का क्षेत्र परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है...
रुहैल अमीन ।।
भारत में न्यूज ब्रॉडकास्ट
का क्षेत्र परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। चूंकि आजकल न्यूज के लिए डिजिटल का
इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है, ऐसे में इसने पारंपरिक ब्रॉडकास्टर्स को प्रासंगिक बने रहने के लिए नए
रास्ते तलाशने पर मजबूर कर दिया है।
इस बदलते माहौल के बीच, ब्रॉडकास्टर्स ने
एडिटोरियल के परिप्रेक्ष्य में अपने न्यूज रूम को एक नया लुक देना शुरू कर दिया
है। क्रेडिबिलिटी को लेकर जिम्मेदारी भी काफी बढ़ गई है। आजकल 'फेक न्यूज' का
मुद्दा भी जोर-शोर से छाया हुआ है और इसे रोकने को लेकर तमाम बहस हो रही हैं और यह
बात भी ब्रॉडकास्टरों को न्यूज
के लिए एक नए भविष्य की कल्पना करने में मदद कर रही है।
हमारी सहयोगी वेबसाइट ‘एक्सचेंज4मीडिया’
(exchange4media) ने इन मामलों को लेकर ‘बीएजी नेटवर्क’ (BAG
Network) की चेयरपर्सन और एमडी
अनुराधा प्रसाद से खास बातचीत की। इस बातचीत के दौरान अनुराधा प्रसाद ने न सिर्फ
देश में ब्रॉडकास्ट न्यूज की नई शुरुआत के बारे में बताया बल्कि ऐसे माहौल में
प्रासंगिक बने रहने के लिए इस क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए नए रास्तों को लेकर
भी जानकारी दी। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश:
यह कहा जा रहा है कि पिछले वर्षों के दौरान टीवी न्यूज ब्रॉडकास्टर्स के
लिए डिजिटल मीडियम एक बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। ऐसे में टीवी न्यूज ब्रॉडकास्टर्स
के लिए अस्तित्व का खतरा उत्पन्न हो गया है, क्या ये बात सही है?
जब टीवी की शुरुआत हुई थी
तो प्रिंट के बारे में भी लोगों ने ऐसा ही कहना शुरू कर दिया था लेकिन ऐसा अब तक
नहीं हुआ है। टीवी के आने के बाद इसके प्रभाव में कमी तो हो सकती है लेकिन यह अभी
भी बना हुआ है। यही बात टीवी पर भी लागू होती है। वास्तव में टीवी न्यूज प्लेयर्स
ने डिजिटल की आंधी को अपनी प्रगति के रूप में लिया है और अब यह मामला चुनौती का न
होकरइस परिवर्तन को अपनाने और स्वीकार करने के बारे में है।
जिस तरह से डिजिटल विज्ञापन खर्च में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, ऐसे में क्या आपको लगता
है कि यह टीवी न्यूज ब्रॉडकास्टर्स के लिए चिंता करने की बात है?
(हंसते हुए) पहले जब यह
विज्ञापन प्रिंट से टीवी की ओर जा रहा था तब भी लोग यही बात कह रहे थे लेकिन देश
में प्रिंट अभी भी बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहा है। मुझे नहीं लगता कि अगले
पांच-छह साल में हमारे विज्ञापन रेवेन्यू पर कोई फर्क पड़ेगा। मेरा मानना है कि
जल्द ही सभी चीजें पटरी पर आ जाएंगी और इसका फायदा सभी प्लेटफॉर्म को होगा।
इसके अलावा ब्रॉडकास्टर्स
ने भी डिजिटल की तरह प्रासंगिक बने रहने के लिए प्रयास करने शुरू कर दिए हैं। ऐसे
में मुझे नहीं लगता कि इसका ज्यादा प्रभाव पड़ेगा। मेरा तो ये मानना है कि न्यूज
बिजनेस में प्रासंगिक बने रहने के लिए आपको लगातार कुछ न कुछ नया करना होगा।
लगातार बदल रही टेक्नोलॉजी और इस्तेमाल के तरीकों में हो रहे बदलाव के बीच
में पारंपरिक न्यूज प्लेयर्स प्रासंगिक बने रहने के लिए किस तरह भविष्य के लिए
खुद को तैयार कर रहे हैं?
टेलिविजन काफी गतिशील माध्यम
है। मेरा मानना है कि प्रासंगिक बने रहने के लिए पिछले दस वर्षों में न्यूज सेक्टर
ने अपने आप में पहले ही काफी बड़े बदलाव किए हैं। उदाहरण के लिए, पहले के मुकाबले आम आदमी
के हितों को लेकर इन दिनों न्यूज का फोकस ज्यादा है। यह जो बदलाव है वह पारंपरिक
प्लेयर्स को वर्तमान जरूरतों को पूरा करने और प्रासंगिक बने रहने में भी मदद कर
रहा है।
आजकल न्यूज की स्पीड और क्रेडिबिलिटी बहस का बड़ा मुद्दा है। कई बार स्पीड
के चक्कर में क्रेडिबिलिटी से समझौता करना पड़ जाता है। ऐसे में दोनों के बीच
संतुलन बिठाना कितनी बड़ी चुनौती है?
स्पीड निश्चित रूप से
काफी मायने रखती है लेकिन स्पीड और क्रेडिबिलिटी को साथ-साथ लेकर चलना चाहिए। स्पीड
के चक्कर में आप क्रेडिबिलिटी से समझौता नहीं कर सकते हैं। जब भी हम कुछ प्रसारित
करते हैं, तब यह ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि दर्शकों का उस पर भरोसा होना चाहिए।
किसी भी न्यूज संस्थान और उसके व्यूअर्स के बीच विश्वास का रिश्ता होता है और
इस विश्वास को बनाए रखना चाहिए। यदि क्रेडिबिलिटी की बात करें तो सच्चाई ये है
कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वाले कई लोग इसकी न्यूज पर भरोसा नहीं करते
हैं। माना जाता है कि सोशल मीडिया पर 30 प्रतिशत से ज्यादा न्यूज फर्जी होती है।
हमारे देश में लोग अभी भी पारंपरिक मीडिया प्रतिष्ठानों की क्रेडिबिलिटी पर भरोसा
करते हैं और ऐसे में हमारी जिम्मेदारी बनती है कि इस भरोसे को बनाए रखें और अपनी
एडिटोरियल पॉलिसी को इस प्रकार रखें जिसमें क्रेडिबिलिटी पर ज्यादा ध्यान रहे।
कई समाचार संस्थानों में संपादकीय विभाग द्वारा लिए जाने वाले निर्णयों पर
डाटा और एनॉलिटिक्स ने प्रभाव डालना शुरू कर दिया है, क्या टीवी न्यूज सेक्टर
भी इसी तरह के चरण से गुजर रहा है?
एनॉलिटिक्स काफी अहम है
लेकिन यह हमारे ऊपर हावी नहीं हो सकता है। इसके अलावा हम हर समय चलते रहने वाले
मीडिया हैं और इसलिए एनॉलिटिक्स हमारे लिए इस तरह की भूमिका नहीं निभा सकता है
जैसा एडिटोरियल में होता है। जब आप न्यूज पर काम कर रहे हैं तो उसमें एनॉलिटिक्स
की कोई भूमिका नहीं है, क्योंकि यह तो तेजी से होने वाली घटना होती है। मुझे लगता है कि टीवी न्यूज
ब्रॉडकास्टर्स के मुकाबले डाटा और एनॉलिटिक्स की भूमिका प्रिंट और डिजिटल मीडियम
में ज्यादा होती है।
कई लोगों का मानना है कि
इन दिनों न्यूज सेक्टर राजनीति से ज्यादा प्रभावित है और ऐसे में निष्पक्ष बने
रहना काफी मुश्किल होता है, क्या आप इस बात से सहमत हैं?
आपका कहना सही है, मनुष्य होने के नाते
चाहे वह पुरुष हो अथवा महिला, उसका कुछ न कुछ राजनीतिक
दृष्टिकोण होता है और उन्हें इसका हक भी है। हालांकि कई बार यह पूर्वाग्रह दिखाई
दे जाता है, लेकिन मेरा मानना है कि यह जानबूझकर नहीं होता
है। जब आप किसी न्यूज को कवर कर रहे होते हैं तो उसमें किसी भी मायने में
छेड़छाड़ करने का न तो समय होता है और न ही गुंजाइश होती है। ऐसे में किसी भी तरह
की राजनीति से प्रभावित होने का कोई सवाल ही नहीं है।
समाचार4मीडिया.कॉम देश के प्रतिष्ठित और नं.1 मीडियापोर्टल exchange4media.com की हिंदी वेबसाइट है। समाचार4मीडिया
में हम अपकी राय और सुझावों की कद्र करते हैं। आप अपनी राय, सुझाव और ख़बरें हमें mail2s4m@gmail.com पर भेज सकते हैं या 01204007700 पर संपर्क कर सकते हैं।
आप हमें हमारे फेसबुक पेज पर भी फॉलो कर सकते हैं।