अमित शाह राजनीति के ऐसे चाणक्य हैं, जिन्हें सवालों में उलझाना या रोककर रख पाना आसान नहीं है...
समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
अमित
शाह राजनीति के ऐसे चाणक्य हैं,
जिन्हें सवालों में उलझाना या रोककर रख पाना आसान नहीं है। बड़े-बड़े पत्रकार और ज्ञाता भी उनके आगे
असहज नज़र आते हैं। वो शब्दों के सवालों का रूप लेने से
पहले ही उनका रुख मोड़ देते हैं, या फिर ऐसा माहौल निर्मित कर
देते हैं कि सवालों का तीखापन अपने आप कम हो जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
के बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ही एकमात्र ऐसे नेता हैं, जिनसे
मुखातिब होने के लिए पत्रकारों को भी अतिरिक्त तैयारी करनी पड़ती है। आमतौर पर पत्रकारों के सवाल नेताओं को असहज कर देते हैं, मगर यहां स्थिति
पूरी तरह अलग है। अमित शाह व पीएम मोदी का बेबाक अंदाज कई बार पत्रकारों की तैयारी को भी नाकाफी साबित
कर देता है और दोनों के जवाब
देने के अंदाज से सवालों का वजन
कम सा लगने लगता है। लेकिन ‘ज़ी न्यूज़’ (Zee News) के संपादक सुधीर चौधरी ने इस बात को गलत साबित कर
दिया है।
सुधीर
चौधरी ने 2019 में होने वाले लोकसभा
चुनावों को ध्यान में रखते हुए हाल ही में अमित शाह का एक इंटरव्यू लिया है। इसका टाइटल भी ‘शाह का 2019 वाला इंटरव्यू’ रखा गया है। यह इंटरव्यू इसलिए
सबसे ख़ास रहा,
क्योंकि सुधीर चौधरी ने उन ज्वलंत
मुद्दों पर तीखे सवाल दागे,
जिनपर बात करने से सरकार बचती रही
है। यदि
आप इस धमाकेदार इंटरव्यू के गवाह नहीं बन पाए हैं, तो आप यहां उसके कुछ चुनिंदा सवाल-जवाब से रूबरू
हो सकते हैं। वैसे आप ये पूरा इंटरव्यू नीचे विडियो लिंक के जरिए भी देख सकते हेें...
सवाल: इस चुनाव प्रचार के बीच में कश्मीर की जो
समस्या आई है, इस पर
आपको क्या कहना है? क्या जम्मू कश्मीर में विधानसभा को भंग
करने का ही एक विकल्प था?
जवाब: ये समस्या नहीं समाधान है। राज्यपाल के कदम पर शंका
करने का कोई कारण नहीं है, जो लोग शोर कर रहे हैं, वो भी यही चाहते हैं।
सवाल: जब रफाल जैसे मुद्दों पर पूरा देश चर्चा करता
है, राहुल गांधी ने इसे बहुत बड़ा
मुद्दा बना लिया और विपक्षी दलों को इसमें जोड़ा। बहुत
से लोग यह कहते हैं कि रफाल का मुद्दा वैसे ही साबित होगा जैसे बोफोर्स मुद्दा
राजीव गांधी के लिए हुआ था। दो चीज़ें हैं, या तो ये मीडिया के लिए है या ज़मीन पर इसका असर हो रहा है?
जवाब: ये दो चीज़ें नहीं हैं, एक ही चीज़ है कि इनके पास
मुद्दा नहीं हैं। मैं आपको बताना चाहता हूं, जो बातें बताई जा रही हैं, वो सत्य हैं। एक फूटी कौड़ी दाम ज्यादा नहीं हैं, हमने सभी चीज़ें
सुप्रीम कोर्ट के सामने रखी हैं। यदि कांग्रेस के पास
इतनी इनफॉर्मेशन है तो कोर्ट में केस क्यों नहीं किया? कांग्रेस
अध्यक्ष अपनी सूचनाओं का आधार बताएंगे? उन्हें नहीं मालूम कि
जो कागज़ उन्हें पकड़ाया गया है वो सही नहीं है।
सवाल: क्या आपको ऐसा लगा कि इससे सरकार की छवि को चोट
पहुंचती है?
जवाब: कुछ समय के लिए पहुंचती है, लेकिन जब न्याय आएगा तब नहीं
पहुंचेगी।
सवाल: शुरू में ऐसा लगता था कि चार साल सबकुछ एक
स्क्रिप्ट के हिसाब से चल रहा है, चार साल बाद लगने लगा जैसे लोग स्क्रिप्ट से बाहर निकल रहे हैं। आपने और मोदीजी ने जो स्क्रिप्ट बनाई उससे लोग बाहर निकल रहे हैं?
जवाब: सुधीर जी आप इतने सीनियर जनर्लिस्ट हैं, इसमें आश्चर्य क्या है? जरा ठन्डे दिमाग से सोचिए। चार साल लोग मुद्दा
तलाशते रहे, मुद्दा मिला नहीं। चार
साल के बाद झूठे मुद्दे खड़े किए गए। अब झूठे मुद्दे
अदालत में पहुंचे हैं, तो दूध का दूध, पानी
का पानी हो जाएगा।
सवाल: राम मंदिर आपका बहुत बड़ा वादा है। आपके मेनिफेस्टो में राम
मंदिर, धारा 370, यूनिफार्म सिविल
कोर्ट का भी जिक्र था। आपका कोर वोटर पूछता है कि अब तो
साढ़े चार साल हो गए, इसमें आपने अब तक क्या डिलीवर किया?
जवाब: देखिए कोर वोटर को हम जवाब दे देंगे, आप उसकी चिंता मत कीजिए। मैं जाता हूं वोटरों के बीच में। राम मंदिर
हमारा मुद्दा आज भी है और जब तक मंदिर नहीं बनेगा तब तक रहेगा। हमारे घोषणापत्र में हमने कहा है कि राम मंदिर के मुद्दे को हम संवैधानिक
रूप से हल करेंगे। कांग्रेस पार्टी के नेता कपिल सिब्बल
ने पहले एक बयान दिया था कि इस केस को 2019 तक सुनना ही नहीं चाहिए। तो ये जनता के सामने स्पष्ट है कि राम मंदिर के मुद्दे को कौन लटकाना
चाहता है। हमारी सरकार के वकील ने कहा है कि इसकी जल्दी से जल्दी सुनवाई हो,
मगर ये फैसला अदालत करेगी मैं और आप नहीं कर सकते।
सवाल: लेकिन भाजपा के समर्थक कहते हैं कि इतने बड़े
बहुमत के साथ भाजपा की सरकार आ गई, इसके बाद भी यदि हम कोई रास्ता न निकाल पाएं... जैसे
बहुत सारे लोग कहते हैं कि आप अध्यादेश ले आइए या किसी और रास्ते से आप कम से कम
मंदिर की एक ईंट तो रखवाईए?
जवाब: एक ईंट नहीं पूरा मंदिर ही बनाया जाएगा। अब कोर्ट जिस मैटर पर काम
कर रही है, उस पर जल्दबाजी करना ठीक नहीं। हम इसे देखेंगे, जनता की संवेदनाओं को समझ रहे हैं,
उसे जवाब भी देंगे।
सवाल: तो अध्यादेश के पक्ष में आप नहीं हैं?
जवाब: अभी ज़रूरत नहीं है।
सवाल: रुपया काबू में नहीं है, सीबीआई काबू में है, और पेट्रोल और डीजल के भाव भी काबू में नहीं हैं?
जवाब: देखिए पेट्रोल के भाव और डॉलर दोनों नीचे आ रहे
हैं। अमेरिका
और चीन के ट्रेड वॉर के कारण यह हालात बने हैं। हमने इसे टैकल किया है, लेकिन एक दो महीने टैकल करने में लगते ही हैं। आरबीआई
के साथ सरकार का कोई असंवैधनिक झगड़ा नहीं है। कुछ मूल
तत्वों पर सरकार चर्चा करना चाह रही है। पिछली सरकारों
ने भी गवर्नरों को निकाला है, आप पिछले रिकॉर्ड देखिए।
सवाल: सीबीआई को लेकर क्या डर था सरकार के मन में,
अचानक से रात दो बजे अलोक वर्मा को बाहर निकाल दिया?
जवाब: कोई डर नहीं था। दो सीनियर अफसरों ने एक दूसरे के खिलाफ करप्शन
के आरोप लगाए थे, अब इसकी जांच कौन करेगा बताओ? स्वाभाविक रूप से निष्पक्ष एजेंसी को करनी होगी, तो
सीवीसी और उसके साथ के दो अफसरों को सरकार ने ये मामला सौंपा है। जब तक जांच चल रही है यदि ये अधिकारी पदस्थ रहते तो क्या जांच निष्पक्ष
होती?
सवाल: 2014 में अच्छे दिन मुद्दा बने, आपको क्या लगता है कि 2019 में कोई
एक ऐसी धुरी है, जिसके आसपास चुनाव लड़े जाएंगे, या फिर या कॉम्बिनेशन ऑफ़ सो मैनी फैक्टर होगा?
जवाब: कॉम्बिनेशन ऑफ़ सो मैनी फैक्टर होगा, लेकिन 22 करोड़ परिवारों के जीवन
स्तर में हमने बदलाव किया है। मैं मानता हूं कि वो
परिवार हमारा साथ देंगे।
सवाल: एक सवाल जो आपसे किसी ने नहीं पूछा होगा, लेकिन मैं पूछता हूं कि ऐसा कहा
जाता है कि भाजपा में कुछ लोग हैं जो चाहते हैं कि उनका भी नंबर आए प्रधानमंत्री बनने
का?
जवाब: ऐसा नहीं है कि किसी ने पूछा नहीं, लेकिन कोई नाम नहीं देता। ऐसी बातें केवल स्टोरी के रूप में प्रचारित की जाती हैं।
सवाल: मीडिया की बात करें तो इन साढ़े चार सालों
में... अगर सुप्रीम कोर्ट में कोई आरोप पत्र भी दाखिल होता है तो मीडिया उसे फ्रंट
पेज पर लगाता है, लेकिन
आपके एफिडेविट पर भी सवाल उठाता है, इसे कैसे नहीं बदल पाए
आप?
जवाब: मुझे लगता है हमें दखल नहीं देना चाहिए, जो सत्य है सामने आ ही जाएगा। ये मीडिया को खुद सोचना है कि किसे कैसे दिखाना है, किसकी
छवि कैसी बनेगी, हमें नहीं सोचना।
देखिए, पूरा इंटरव्यू-