अभिव्यक्ति पर खतरा तो लोकतंत्र कहां

उमेश चतुर्वेदी, टीवी पत्रकार, स्तंभकार और ब्लॉगर सत्ता चाहे लोकतांत्रिक हो या फिर कोई और...उसकी अहम जिम्मेदारी नियमन और व्यवस्था को बनाए रखना होता है...व्यवस्था बहाली में बाधा बनती प्रक्रियाओं और कोशिशों का निषेध भी सत्ताओं का काम होता है। लेकिन अक्सर होता यह है कि निषेध के इस अधिकार का इस्तेमाल सत्ताएं अपने खिलाफ उठने वाली आवाजों को दबाने के लि

Last Modified:
Saturday, 26 May, 2012
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उमेश चतुर्वेदी, टीवी पत्रकार, स्तंभकार और ब्लॉगर सत्ता चाहे लोकतांत्रिक हो या फिर कोई और...उसकी अहम जिम्मेदारी नियमन और व्यवस्था को बनाए रखना होता है...व्यवस्था बहाली में बाधा बनती प्रक्रियाओं और कोशिशों का निषेध भी सत्ताओं का काम होता है। लेकिन अक्सर होता यह है कि निषेध के इस अधिकार का इस्तेमाल सत्ताएं अपने खिलाफ उठने वाली आवाजों को दबाने के लिए करने लगती है। सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश) नियम-2011 को इसी अंदाज में लिया जा सकता है। अधिनायकवादी सत्ता हो या निरंकुश राज, उनमें सत्ता की इस कोशिश पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। लेकिन लोकतंत्र में ऐसे सवाल उठेंगे। शायद यही वजह है कि इस नियम का राज्यसभा में जोरदार विरोध हुआ। इस नियम के मुताबिक यह नियम अपेक्षा रखता है कि वे सभी मध्यवर्ती जो इंटरनेट, दूरसंचार, ई-मेल अथवा ब्लॉगिंग सेवाएं उपलब्ध कराते और साइबर कैफे चलाते हैं, उन्हें उन सामग्री को हटाना होगा, जो मोटे तौर पर नुकसानदायक, सतानेवाली, निंदात्मक, अश्लील, अपमानजनक, निजता भंग करने वाली,घृणित अथवा रंगभेद से सम्बंधित, जातीय तौर पर आपत्तिजनक, धन उगाहने अथवा जुआ खेलने को बढ़ावा देने वाली अथवा किसी भी रूप में अवैध हैं। इस नियम में कई ऐसे प्रावधान है, जिनका इस्तेमाल सरकारें अबाध अभिव्यक्ति पर रोक लगाने में कर सकती हैं। जब भी सरकार को बुरा लगेगा, इन नियमों का हवाला देकर इंटरनेट, ब्लॉगिंग और ऐसी चीजों पर रोक लगा देगी। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सूचना क्रांति के दौर में ऐसी रोकें कारगर साबित नहीं हो पा रही हैं। प्रॉक्सी सर्वर के सहारे लोग हर वह चीज देख रहे हैं, जो पाबंदी के घेरे में है। हां सरकार चाहे तो चीन की तरह रोक लगा सकती है। लेकिन उसे यह दावा करना भी रोक देना होगा कि वह दुनिया की सबसे बड़ी लोकतंत्र की प्रतिनिधि है। फिर इस नियम से एक यह भी ध्वनि जा रही है कि फेसबुक पर जिस तरह सरकार के कुछ बड़े अलंबरदारों के खिलाफ अभियान चल रहा है, या फिर अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान को समर्थन मिल रहा है, वह सरकार और उसके स्तंभों को पसंद नहीं है। जाहिर है कि ऐसे में सरकार से संयत और पारदर्शी व्यवहार की उम्मीद बढ़ जाती है। बेहतर तो यह होता कि इस नियम को लचीला बनाया जाता। इस नियम में समाहित शब्दों की खुली व्याख्या की जाती। तभी जाकर इंटरनेट का कारगर इस्तेमाल हो सकता है। समाचार4मीडिया देश के प्रतिष्ठित और नं.1 मीडियापोर्टल exchange4media.com की हिंदी वेबसाइट है। समाचार4मीडिया.कॉम में हम आपकी राय और सुझावों की कद्र करते हैं। आप अपनी राय, सुझाव और ख़बरें हमें mail2s4m@gmail.com पर भेज सकते हैं या 01204007700 पर संपर्क कर सकते हैं। आप हमें हमारे फेसबुक पेज पर भी फॉलो कर सकते हैं।
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