‘समाचार4मीडिया’ व ‘एक्सचेंज4मीडिया’ द्वारा आयोजित ‘मीडिया एंड मीडिया एजुकेशन...
समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
‘समाचार4मीडिया’ व ‘एक्सचेंज4मीडिया’ द्वारा आयोजित ‘मीडिया एंड मीडिया एजुकेशन समिट’ (Media & Media Education Summit) के दौरान सोशल मीडिया की ताकत के बारे में बात करते हुए ‘ZEE उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड और मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़’ के एडिटर दिलीप तिवारी ने कहा कि कुछ दिन पहले ये चर्चा हो रही थी कि चुनाव के दौरान हम (मीडिया) सोशल मीडिया से जुड़े मुद्दे उठा लेते हैं और उनके प्रेशर में आ जाते हैं। कमलनाथ का बयान भी हाल ही में चर्चा में रहा था। ZEE MP-CG के नाम से दो सर्वे फर्जी किए गए, जबकि हमने कोई सर्वे नहीं किया और हम पूरे दिन सफाई देते रहे कि ये सर्वे फर्जी है। ये है सोशल मीडिया की दूसरी ताकत, जिसे कुछ लोग इस्तेमाल भी करना चाहते हैं।
उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया के पॉजिटिव पॉइंन्ट्स तो होते ही हैं, वहीं बीच-बीच में हमें इसके नकारात्मक पहलू भी देखने को मिलते हैं। लेकिन ये हमारे लिए चिंता का सवाल नहीं है, बल्कि सवाल ये है कि हम जिस ऑर्गनाइजेशन के लिए काम करते हैं तो क्या वहां का सिस्टम मजबूत है और नहीं तो वहां हमको सिस्टम मजबूत करना होगा, क्योंकि क्रेडिबिलिटी आपकी होती है, सोशल मीडिया की नहीं।
उन्होंने कहा कि आज जिसके पास स्मार्ट फोन है, वो स्मार्ट जर्नलिस्ट है। वो कुछ भी लिख सकता है। लेकिन सवाल यहां सबसे बड़ा ये है कि क्या हम सोशल मीडिया से डरेंगे? या सोशल मीडिया को अपने लिए इस्तेमाल करेंगे? बहुत से मीडिया ऑर्गनाइजेशन आज ‘मोजो’ (मोबाइल जर्नलिज्म) का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे कैमरामैंस की नौकरी खतरे में है। इसलिए आज जर्नलिस्ट्स या स्ट्रिंगर्स जो छोटे-छोटे कस्बों या फिर जो जिलो में है उनके लिए सोशल मीडिया एक हथियार बन गया है, जो आपके ही काम आता है। लेकिन हमें ‘एथिक्स’(नैतिकता) की बात भी ध्यान रखनी होगी, क्योंकि वे (स्ट्रिंगर्स या फिर छोटे स्तर के पत्रकार) न तो किसी स्कूल में गए हैं, न किसी यूनिवर्सिटी से आए हैं, बल्कि फील्ड में ही ट्रेंड हुए हैं।
उन्होंने कहा कि कई बार रीजनल मीडिया छोटी-छोटी खबरों को दिखाते हैं। कई बार ऐसा लगता है कि ये बाजार की खबरें हैं और भीड़ से आ रही हैं। मैं ये कहना चाहूंगा कि नेशनल मीडिया में रीजनल के लिए जगह बिल्कुल नहीं है। नेशनल मीडिया में रीजनल कंटेट गायब हो चुका है। मुझे लगता है कि जब कोई बड़ी खबर या सनसनी खबर होती है, तभी नेशनल मीडिया रीजनल की ओर झांकता है। इसीलिए रीजनल मीडिया के साथ-साथ सोशल मीडिया ऐसा एक बहुत बड़ा प्लेटफॉर्म है, जो लोगों की आवाज बन रहा है। इसलिए हमें इसे पॉजिटिव तरीके से ही इस्तेमाल करना चाहिए।
पत्रकारिता में आने वालों छात्रों को संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि जिस पत्रकारिता के पेशे में नए छात्र आना चाहते हैं, उनके लिए सबसे जरूरी है ‘सब्र’। आप कुछ लोगों को परदे पर देखते हैं फिर चाहे वह एंकर्स हों, या रिपोर्टर्स, लेकिन जो परदे के पीछे हैं, वही असल में महारथी हैं, क्योंकि वही पूरे सिस्टम को चलाते हैं। उन्होंने कहा कि यहां ये भी कहना चाहूंगा कि हमेशा पैसे के पीछे मत भागिए, बल्कि हमेशा ये टैग लगाकर रखिए कि ‘नॉट फॉर सेल’ (Not for sale)। क्योंकि हमारे मीडिया में नीचे से लेकर ऊपर तक एक सड़ांध है, जिसके लिए हम सब जिम्मेदार हैं। इसलिए मैं उम्मीद करता हूं कि पत्रकारिता में आने वाले छात्रों का नाम किसी डायरी, किसी लिस्ट या फिर किसी टेप में नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि जर्नलिस्ट्स को ये तय कर लेना चाहिए कि वो पत्रकारिता के पेशे में क्यों आया है, क्या वो किसी तरह की गतिविधियों में लिप्त होने आया है या फिर पत्रकारिता करने आया है। इसलिए मीडिया के स्कूलों में पढ़ाने वाले अध्यापकों से गुजारिश है कि इस क्षेत्र में आने वालों छात्रों को ये जरूर बताएं कि वे इस पेशे में पैसा बनाने न जाएं, बल्कि वे ऐसे पेशे से जुड़ने जा रहे हैं, जो आपको नाम देगा, इज्जत देगा, शोहरत देगा। उन्हें इस फील्ड में अच्छे जर्नलिस्ट्स को देखकर आगे बढ़ना चाहिए और जिन्हें नहीं देख पाते, उन्हें पढ़कर आगे बढ़ना चाहिए और लंबी रेस का घोड़ा बनना चाहिए।