आज टीवी सांप-बिच्‍छू-नाग की स्‍टोरी से आगे निकलकर अच्‍छा हो गया है, बोले संजय बरागटा

पिछले दिनों हुए ‘एक्‍सचेंज4मीडिया न्‍यूज ब्रॉडकास्टिंग अवॉर्ड्स’ (ENBA) समारोह में...

समाचार4मीडिया ब्यूरो by
Published - Wednesday, 28 February, 2018
Last Modified:
Wednesday, 28 February, 2018
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समाचार4मी‍डिया ब्यूरो ।।

पिछले दिनों हुए ‘एक्‍सचेंज4मीडिया न्‍यूज ब्रॉडकास्टिंग अवॉर्ड्स’ (ENBA) समारोह में 'Newsroom 2020को लेकर चर्चा हुई। चर्चा में शामिल टीवी इंडस्ट्री की अनुभवी शख्सियतों ने अपने-अपने तरीके से बताने की कोशिश की कि आने वाले समय में यानी 2020 तक न्‍यूजरूम का भविष्‍य क्‍या होगा और यह इंडस्‍ट्री क्‍या मोड़ लेगी।

कार्यक्रम में ‘जी  मीडिया’ के एडिटर (इंटीग्रेटेड न्‍यूजरूम) संजय बरागटा ने कहा, 'स्‍टोरी टैलर्स के लिए यह बहुत अच्‍छा समय है। कहानी बताने वालों के लिए वर्ष 2020 तक इससे बेहतर समय कोई और नहीं हो सकता है। जब मैं अपने आपको एक पत्रकार के तौर पर देखता हूंजिसने 1994 में टीवी पत्रकारिता शुरू की थी तो उस समय टेप भेजने के लिए काफी कठिनाई होती थी। जब मैं कोच्चि शूटिंग करने के लिए गया तो वहां मेरा सबसे पहला दर्द ये होता था कि मैं यहां से दिल्‍ली के न्‍यूजरूम में टेप कैसे भेजूं। वहां से फ्लाइट में किसी पैसेंजर के हाथ-पैर जोड़कर टेप भेजा जाता था। राइडर एयरपोर्ट से लाता था और इसके बाद उस टेप को ऑफिस में पहुंचाया जाता था। इसके बाद स्‍टोरी कटती थी। लेकिन आज इंटरनेट का इतना विस्‍तार हो गया है कि कंट्रोल बिल्‍कुल खत्‍म हो गया है। पहला कंट्रोल तो ये खत्‍म हुआ है कि अब कंटेंट की कोई कमी नहीं है। कंटेंट इतना सारा है कि आप अनुमान नहीं लगा सकते हैं। इस समय करीब 50 करोड़ स्‍मार्टफोन यूजर्स अपने देश में हैं। हम मुगालते में जी रहे हैं कि हम खबरें ब्रेक करते हैं। हम तो सिर्फ वेरीफाई करते हैं। कहीं पर भी कोई घटना होती है तो स्‍मार्टफोन यूजर्स जो हैंवो अपने आप में रिपोर्टर हैं। पब्लिशर हैंएडिटर हैं। उनके सामने कोई घटना होती है तो वो उसका फोटो और विडियो लेकर उस पर कुछ लिख देते हैं और सोशल मीडिया पर शेयर कर देते हैं। मन करे तो वो फेसबुक लाइव का इस्‍तेमाल भी कर लेते हैं। उन्‍हें न तो ओवी वैन की जरूरत हैन न्‍यूज रूम की जरूरत है और न ही कॉपी एडिटर की जरूरत है।

बरागटा ने कहा, 'हमारा कंप्‍टीशन अब ऐसे लोगों से हो रहा है। कंटेंट बेइंतहा है। पहले कंट्रोल हम संपादकों के हाथ में होता था कि ये खबर रुकेगी और ये खबर जाएगी और किस तरह जाएगीयानी सब कुछ निर्णय हम संपादक लोग लेते थे लेकिन अब सोशल मीडिया ने इन सभी नैतिकताओं को तहस-नहस कर दिया है। सोशल मीडिया में कोई लिखता है कि हिन्‍दू ने मुसलमान को मारा। हिन्‍दू ने दलित को मारा। आजकल हम न्‍यूजरूम में इस तरह की स्‍टोरी पर ही चर्चा करते हैं। कभी-कभी अजीब भी लगता है कि आखिर हम कर क्‍या रहे हैंलेकिन ये सच्‍चाई है। पहले हम कहते थे कि एक-दो गुटों में झड़प लेकिन अब तो ये कहा जाता है कि मुसलमान ने हिन्‍दू को या हिन्‍दू ने मुसलमान को मारा। क्‍योंकि वो खबर सोशल मीडिया पर पहले ही वायरल हो चुकी है और लोगों को पहले ही पता है। ऐसे में यदि आप दो गुटों की बात करेंगे तो वो आपको सुननेदेखने अथवा पढ़ने के लिए नहीं आएगा। ऐसे में यदि आप उसकी बात से सहमत हो रहे हैं कि हां हिन्‍दू ने मुस्लिम को मारा तो उसे लगेगा कि हांये सही कह रहे हैं और मैंने भी ऐसा ही सुना था। इसके बाद वो इसमें शामिल हो रहा है। ग्‍लोबल स्‍तर पर काफी बदलाव हो रहे हैं और आप इसे रोक नहीं सकते हैं।

उन्‍होंने सवाल उठाया कि क्‍या हम अल्‍पसंख्‍यक को फोकस करते हुए बहुसंख्‍यकों को भूल गए हैं। क्‍या बहुसंख्‍यकों की कोई समस्‍याएं नहीं होतीं और क्‍या उनके लिए हमें सवाल नहीं उठाने चाहिए। ये देखने-देखने का अंतर है।

उन्‍होंने कहा कि यह तो प्रकृति का नियम है। कोई चीज खत्‍म होती है और उसकी जगह दूसरी चीज ले लेती है। दिल की धड़कन का उदाहरण देते हुए बरागटा ने कहा कि एक चीज ऊपर उठती है तो समय के साथ वह नीचे भी आती है।

कंटेंट और संपादकों के कंट्रोल के बाद अब समस्‍या डिस्‍ट्रिब्‍यूशन की आती है। टेलिविजन चैनल के डिस्‍ट्रिब्‍यूशन के लिए इतना पैसा कहां से आएगा। अखबार के लिए मिलने वाला न्‍यूजप्रिंट इतना महंगा है कि उसके लिए पैसे कहां से आएंगे। आज का समय ये है कि टीवी स्‍क्रीन छोटे हो गए हैं और कम हो गए हैं। आज स्‍टोरी के लिए प्राइम टाइम की कोई बाध्‍यता नहीं है। आज हमें अपनी किसी भी स्‍टोरी को देखनेसुनने अथवा पढ़ने के लिए अगले दिन के अखबार का इंतजार नहीं करना होता है। आजकल कंटेंट आसानी से उपलब्‍ध है। टेक्‍नोलॉजी के माध्‍यम से हम अपनी खबर को आसानी से सर्च कर लेते हैं और यह भी पता लगा लेते हैं कि लोग उस पर किस तरह की प्रतिक्रिया व्‍यक्त कर रहे हैं। इसके बाद हम भी अपने सुझाव को उसमें शामिल कर शेयर कर देते हैं। आजकल टेक्‍नोलॉजी इतनी तेजी से बदल रही है कि आपको अब किसी चीज के लिए ज्‍याद इंतजार करने की जरूरत नहीं है। अब टेलिविजन पर एमएसओ का जमाना नहीं रहा बल्कि ओटीटी आ गया है। इसके द्वारा आप रोजाना रात को घर आकर जो सीरियल देखते थेउन्‍हें हफ्ते के एक दिन में एक साथ देख सकते हैं। इसमें भी आपकी मर्जी है कि आप खाना बनाते हुएमेहमानों का स्‍वागत करते हुए मनमुताबिक समय के अनुसार देख सकते हैं।

बरागटा ने कहा कि दर्शकों की डिमांड बदलती जा रही है और देश में हम ट्रेडिशनल मीडिया को बदलने की कोशिश कर रहे हैं। ऑटोमेशनअल्‍गोरिद्‍मवर्चुअल रियलिटी के साथ अब स्‍टोरी टैलिंग का तरीका भी बदल जाएगा। आने वाले समय पर एंकर ये नहीं कहेंगे कि मेरे पीछे देखिए बल्कि वो क्राइम सीन पर ड्रोन कैमरा भेजेंगे और घटना स्‍थल को दर्शकों को दिखा देंगे। एक नई तकनीक है फेस रिकगनिशन (चेहरे की पहचान )जिसके द्वारा आप कई सारे काम कर पाएंगे। अभी तक हम ट्विटर अथवा फेसबुक पर स्‍टोरी रखते हैं लेकिन आने वाले समय में ऐसा सिस्‍टम भी ब्रेक हो जाएगा कि सब कुछ कंप्‍यूटर में सेट कर देंगे और टाइम के अनुसार अथवा रोबोट अपने आप जाकर स्‍टोरी ब्रेक कर देगा।

बरागटा ने कहा, 'आजकल अमेरिकी कंपनी के जो तिमाही नतीजे आते हैं अथवा हमारे यहां जो बजट आता हैतो आखिर कौन इतनी कॉपियां पढ़ता रहे। आप तो सिर्फ ये जानना चाहते हैं कि आखिर सस्‍ता क्‍या हुआ और महंगा क्‍या हुआटैक्‍स कम हुआ अथवा ज्‍यादा हुआ। किस कंपनी पर ज्‍यादा असर पड़ रहा हैउसका आप लोगों से क्‍या मतलब है।'

आखिर में उन्‍होंने कहा कि आज के समय में कंटेंट और व्‍युअर्स का ही बोलबाला होने जा रहा है। अब सिर्फ विज्ञापन रेवेन्‍यू से बात नहीं बनने वाली है बल्कि हमें कुछ अलग कंटेंट तैयार करना पड़ेगा। टीआरपी तो हफ्ते में एक बार आती हैडिजिटल में तो सब कुछ साथ के साथ पता चलता रहता है। उसके लिए हम सब तैयार हो रहे हैं। यदि हम वर्ष 2020 के न्‍यूज रूम की बात करें तो हमें ज्‍यादा अल्‍गोरिद्‍म और ज्‍यादा रोबोट देखने को मिलेंगे।


पैनल डिस्‍कशन के अंत में सवाल-जवाब के सेशन के दौरान संजय बरागटा का यह भी कहना था, 'आने वाले समय में न प्रिंट खत्‍म होगा और न टेलिविजन खत्‍म होगा लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आखिर हम एडिटर्स ने न्‍यूज में बनाया क्‍या हैहमने सांपबिच्‍छूमटकनाथ जैसे कैरेक्‍टर गढ़े हैं और इसके बाद भी हम आखिर रुके कहां हैंट्वेंटी-ट्वेंटीफास्‍ट खबरेंछह विंडो बनाकर बहस करा दोबस खत्‍म हो गया काम। क्‍या हमने अपनी ड्यूटी पूरी की हैक्‍या हमने स्‍टोरी निकालकर दी हैंन्‍यूजरूम में हमें आखिर सरकार की जरूरत क्‍यों पड़ती हैआखिर हम राजनीति पर इतना जोर क्‍यों देते हैं। यही कारण है कि लोग टीवी नहीं देख रहे हैं। हमारे यहां मध्‍यमवर्गीय परिवार की जो पुरानी व्‍यवस्‍था थी कि घर का जो मुखिया अथवा मुख्‍य कमाने वाला होता थावह रात को नौ बजे प्राइम टाइम देखता था। अभी भी टीवी का रिमोट तो घर के मुख्‍य कमाने वाले के हाथ में ही है लेकिन उसके बच्‍चे पहले से ही कान में हेडफोन लगाकर ने‍टफिल्क्स पर वो सारा कंटेंट देख चुके हैंजिसकी आप लोग परिकल्‍पना भी नहीं कर सकते हैं।'

उनका कहना था, 'सवाल यहां पर ये है कि हम ये न कहे कि टेलिविजन खत्‍म हो जाएगा और इसमें बेकार का कंटेंट भरा हुआ है। मैं मानता हूं कि आज टीवी सांपबिच्‍छूनाग की स्‍टोरी से आगे निकलकर बहुत अच्‍छा हो गया है। मैंने इस तरह का दौर देखा है और उस समय मुझे लगता था कि मैं पत्रकारिता छोड़ दूं और कहीं दूसरी जगह चला जाऊं। आज के समय में हमें कहानी कहने की जो कला हैउसमें कुछ नया करना होगा। इन स्‍टोरी को लंबे फॉर्मेट से छोटे फॉर्मेट में करने की जरूरत है। उस पर थोड़ी मेहनत करनी पड़ती हैकॉपी लिखनी पड़ती हैएडिटिंग करनी पड़ती है। हम तो टेलिविजन वाले हैं और हमारे पास इंफ्रॉस्‍ट्रक्‍चर है विडियो को कंवर्ट करने का लेकिन जो प्रिंट के लोग हैंजो बड़े-बड़े पब्लिकेशन हाउस हैंवो आज के समय में विडियो के लोगों को तलाश रहे हैं। इसका कारण ये है कि विडियो का इस्‍तेमाल ज्‍यादा है और रेवेन्‍यू विडियो के इस्‍तेमाल से ज्‍यादा आएगा।'

आज के समय में दर्शकों की मांग को देखते हुए हमें स्‍टोरी में हमें डाटा एना‍लिसिस चाहिएहमें उसमें विजुअल चाहिए और इंफोग्राफ चाहिए जो स्‍टोरी के बारे में फटाफट से बता सके। हमें ऐसी ही स्‍टोरी तैयार करनी है और ऐसे ही लोग चाहिए। जो लोग ऐसी ही स्‍टोरी बना पाएंगे वे ही इस क्षेत्र में टिक पाएंगे। आने वाले समय में टीवी स्‍क्रीन बहुत छोटी चीज होने जा रही है।

आखिर में उन्‍होंने कहा कि अभी हम जो टीवी देखते हैंउसकी टीआरपी आती हैउसमें 35 साल से अधिक उम्र के लोग टीवी के सामने रिमोट लेकर बैठते हैं। लेकिन जो 15 से 35 साल की उम्र के लोग हैं और जिनकी संख्‍या 65 प्रतिशत हैवे टीवी नहीं देखते हैं। आखिर जब मोबाइल पर सब कुछ उपलब्‍ध है तो फिर ऐसे लोगों को टीवी देखने की क्‍या जरूरत है। मेरा मानना है कि ये संख्‍या लगातार बढ़ती जाएगी और कंटेंट हासिल करने के लिए उनकी स्‍टाइल में भी परिवर्तन होता जाएगा। हमें ऐसे युवाओं पर ध्‍यान देना है और पत्रकारिता का अच्छा भविष्‍य कैसे हैउस पर काम करना ही होगा।

 

 

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