डिजिटल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के कारण एक ओर जहां मेनलाइन प्रिंट मीडिया को तमाम चुनौतियों...
रुहेल अमीन ।।
डिजिटल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के कारण एक ओर
जहां मेनलाइन प्रिंट मीडिया को तमाम चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है और उसके
अस्तित्व पर संकट बना हुआ है, वहीं
यदि हम क्षेत्रीय पत्रकारिता की बात करें तो स्थिति कुछ अलग ही नजर आती है। स्थानीय
स्तर पर अर्थव्यवस्था मजबूत होने से पिछले कुछ वर्षों में क्षेत्रीय न्यूज के
क्षेत्र में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (MIB) मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2015-16 में देश में 110851 रजिस्टर्ड
पब्लिकेशंस के साथ प्रिंट इंडस्ट्री में 5.13 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। रीडरशिप
के मामले में हिन्दी अखबार आगे रहे जबकि अंग्रेजी भाषा के अखबारों को ज्यादा
विज्ञापन मिले। वहीं स्थानीय भाषा के अखबारों का विस्तार हुआ है और वे इंडस्ट्री
की बैकबोन बने हुए हैं।
इस बारे में ‘इनाडु’
(Eenadu) के
डायरेक्टर आई वेंकट का कहना है कि क्षेत्रीय अखबार प्रिंट मीडिया की नई परिभाषा
लिख रहे हैं और इसे नई ऊंचाई पर ले जा रहे हैं। उनका कहना है, ‘यदि आप क्षेत्रीय अखबारों में हुई
वृद्धि को देखें तो आपको पता चलेगा कि पिछले वर्षों में इनका प्रदर्शन काफी उत्साहजनक
रहा है। यदि इनाडु की ही बात करें तो हम आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में प्रमुख
समाचार पत्र बन गए हैं। इन परिणामों ने ही हमें नए एडिशंस खोलने के लिए प्रोत्साहित
किया है। मेरे हिसाब से क्षेत्रीय अखबार प्रिंट मीडिया की ग्रोथ में निश्चित रूप
से बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।’
यही नहीं, पिछले
साल केंद्र सरकार द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में भी क्षेत्रीय अखबारों की वृद्धि
को रेखांकित किया गया था। इस बारे में तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री वेंकैया
नायडू ने कहा भी था, ‘क्षेत्रीय भाषी अखबारों को समझना काफी
आसान है। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि आने वाले वर्षों में क्षेत्रीय अखबारों का
सर्कुलेशन सबसे ज्यादा हो।’
यहां यह भी बताना जरूरी है कि यदि हम क्षेत्रीय
भाषी अखबारों की बात करें तो उनमें ‘आनंद
बाजार पत्रिका’, ‘मलयालम मनोरमा’, ‘डेली थांती’, ‘इनाडु’, ‘लोकमत’, ‘गुजरात समाचार’, ‘सकाल’ और ‘संदेश’ सबसे ज्यादा पढ़ने वाले अखबार हैं और क्षेत्रीय पत्रकारिता को आगे
बढ़ाने में अपना महत्वूर्ण योगदान दे रहे हैं।
हालांकि, प्रिंट
में और खासकर क्षेत्रीय अखबारों की रीडरशिप और रेवेन्यू में अच्छी खासी बढ़ोतरी
देखने को मिल सकती है ऐसे में यदि प्रिंट डिजिटल न्यूज के कदम से कदम मिलाकर चल
सके तो लोगों को काफी ताज्जुब होगा।
इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार सोमनाथ सप्रू का
कहना है कि किसी भी अखबार की ताकत उसकी लोकल कवरेज होती है। यदि हम भारतीय अखबारों
के विकास की कहानी का विश्लेषण करें तो देखेंगे कि मेट्रो सिटी के अखबार न्यूज
वेबसाइट की तुलना में काफी ऊपर हैं। न्यूजपेपर के प्रबंधक अपनी लोकल ताकत को अपनी
वेबसाइट पर भी इस्तेमाल कर रहे हैं।
वहीं, प्रिंट इंडस्ट्री के भविष्य के बारे में सप्रू का कहना है, ‘जहां तक इनाडु के भविष्य की प्लानिंग की बात है तो हम अपने प्रमुख मार्केट आंध्रप्रदेश और तेलंगाना पर फोकस कर रहे हैं और फिलहाल विस्तार करने का हमारा कोई इरादा नहीं है। कुल मिलाकर देश में प्रिंट इंडस्ट्री की अच्छी ग्रोथ होगी और पश्चिमी देशों के विपरीत इसके सामने कोई चुनौती नहीं है।’
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