मैगजीन जर्नलिज्‍म के भविष्‍य पर इन वजहों से विशेषज्ञों ने जताया भरोसा...

ट्रेडिशनल जर्नलिज्‍म को कभी भी इस तरह की चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ा है, जितना इसे आज करना पड़ रहा...

Last Modified:
Tuesday, 29 August, 2017
Samachar4media

समाचार4मी‍डिया ब्यूरो ।।

ट्रेडिशनल जर्नलिज्‍म को कभी भी इस तरह की चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ा है, जितना इसे आज करना पड़ रहा है और इसके अस्तित्‍व पर खतरा बना हुआ है। आजकल ऑनलाइन मीडिया तेजी से बढ़ रही है। इसके द्वारा जितनी तेजी से न्‍यूज तैयार होती है, उतनी जल्‍दी डिलीवर भी हो जाती है। ऐसी स्थिति में ट्रेडिशनल मीडिया संस्‍थान खासकर प्रिंट पब्लिकेशंस इन दिनों गहरे दबाव में हैं।

डिजिटल मीडिया पर न्‍यूज जितनी तेजी से फैलती है, उसने न्‍यूज पेपर्स और मैगजीन्‍स को दूसरे पायदान पर धकेल दिया है। लोगों को लगने लगा है कि प्रिंट जर्नलिज्‍म खासकर मैगजीन जर्नलिज्‍म को इन दिनों काफी कठिन दौर से गुजरना पड़ रहा है और यह स्थिति तेजी से बढ़ती जा रही है। ऐसे में कई लोगों ने इस प्रकार की पत्रकारिता के पतन के बारे में भी लिखना शुरू कर दिया है।

मैगजीन जर्नलिज्‍म के लिए हालात इस कदर खराब हो चुके हैं कि हाल ही में केंद्रीय वित्‍त मंत्री अरुण जेटली ने तो यहां तक कह दिया था, ‘आज के समय में भारत में मैगजीन जर्नलिज्‍म शायद काफी मुश्किलों भरा है। मैं टेक्‍नोलॉजी को धन्‍यवाद देता हूं जिसने अपने आप ही न्‍यूज की परिभाषा बदल दी है। आज के समय में न्‍यूज वही रह गई है जो कैमरा कवर करता है अथवा डिजिटल मीडिया पर आकर्षित करती है। ऐसे में टेक्‍नोलॉजी और समय दोनों ही मामलों में प्रिंट जर्नलिज्‍म काफी बदलावों से जूझ रहा है। यदि हम दैनिक अखबारों की ही बात करें तो कोई भी व्‍यक्ति अगले दिन वह समाचार अखबार में नहीं पढ़ना चाहेगा जो वह इससे पहले दिन ही कई बार टीवी पर देख चुका है अथवा स्‍मार्टफोन पर पढ़ चुका है।

आंकड़ों की बात

पिच मेडिसन’ (Pitch Madison) रिपोर्ट 2017 के अनुसार, वर्ष 2016 में प्रिंट में सात प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। इनमें दैनिक अखबारों की ग्रोथ 8 प्रतिशत रही जबकि मैगजीन की ग्रोथ निगेटिव रही। नोटबंदी के कारण बड़े प्रिंट ऐडवर्टाइजर्स के विज्ञापन खर्च पर काफी प्रभाव पड़ा था। वर्ष 2017 में, प्रिंट ऐडवर्टाइजिंग मार्केट 9.5 प्रतिशत बढ़ने की उम्‍मीद है और यह ‍दैनिक और प्रादेशिक प्रकाशनों के साथ बढ़कर 20000 करोड़ रुपये हो सकता है।

रिपोर्ट के अनुसार, यदि कैटेगरी की बात करें तो प्रिंट में सबसे ज्‍यादा योगदान (15 प्रतिशत) देने वाला एफएमसीजी सेक्‍टर है। इसके बाद ऑटोमोबाइल्‍स (14 प्रतिशत) और फिर एजुकेशन (10 प्रतिशत) का नंबर आता है। इसमें ई-कॉमर्स का योगदान सिर्फ तीन प्रतिशत है। वर्ष 2016 में ई-कॉमर्स कैटेगरी में 15 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है और यह 621 करोड़ रुपये रह गई है। यदि वॉल्‍यूम की बात करें तो हिन्‍दी प्रकाशनों का योगदान अंग्रेजी के मुकाबले ज्‍यादा बना हुआ है। हिन्‍दी में जहां यह प्रतिशत 35 है, वहीं अंग्रेजी में यह 26 प्रतिशत है। 

लेकिन यदि वॉल्‍यूम की ग्रोथ की बात करें तो अंग्रेजी प्रकाशनों की ग्रोथ आठ प्रतिशत बढ़ी है जबकि हिन्‍दी प्रकाशनों के लिए यह प्रतिशत सिर्फ तीन पर सिमट गया है। कन्‍नड़, बंगाली और पंजाबी प्रकाशनों के वॉल्‍यूम में भी पर्याप्‍त वृद्धि हुई है, जबकि गुजराती और तमिल प्रकाशनों की ग्रोथ में छह प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है।  

दोबारा आगे बढ़ने की उम्‍मीद

मैगजीन की ग्रोथ में गिरावट के बावजूद इंडस्‍ट्री से जुड़े लोगों को उम्‍मीद है कि यह फॉर्मेट दोबारा से आगे बढ़ेगा और आने वाले समय में सुनहरे दौर का गवाह बनेगा।  

इंडिया टुडे ग्रुप’ (India Today Group) के एडिटोरियल डायरेक्‍टर (पब्लिशिंग) और एडिटर्स गिल्‍ड ऑफ इंडिया’ (Editors Guild of India) के प्रेजिडेंट राज चेंगप्‍पा का कहना है , ‘ मैगजीन के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही है कि आज टेक्‍नोलॉजी की वजह से न्‍यूज को कभी भी और कहीं भी हासिल किया जा सकता है। इनमें सबसे ज्‍यादा अहम भूमिका स्‍मार्टफोन निभा रहा है। हालांकि इसकी अपनी कुछ सीमाएं भी हैं। यदि आप इंटरनेट पर अधिकांश न्‍यूज आइटम को देखें तो पता चलेगा कि इनमें सभी आइटम्‍स एक जैसे नजर आते हैं। ऐसे में न्‍यूज आइटम्‍स के बीच में कोई भी भेद समझ में नहीं आता है। लेकिन यदि हम प्रिंट को देखते हैं तो इसमें डिस्‍प्‍ले बिल्‍कुल अलग होता है। इसमें हेडलाइंस, पिक्‍चर और ग्राफिक्‍स की वजह से सभी न्‍यूज आइटम अलग-अलग साफ दिखाई देते हैं। इसके अलावा इस पर ढेरों खबरें हैं ऐसे में लोग कंफ्यूज हो जाते हैं।

उनका कहना है, ‘मैगजीन में कंटेंट भी अलग होता है और चीजें स्‍पष्ट समझ में आती हैं। इसमें अच्‍छा डिस्‍प्‍ले और विजुअल्‍स भी होते हैं, जो लोगों को पसंद आते हैं। ऐसे में यदि मैगजीन की बात करें तो इसमें स्‍टोरी के बारे में बेहतर तरीके से बताया जाता है। ऐसे में मैगजीन की भूमिका एक बार फिर बढ़ रही है। इस दिशा में इंडिया टुडे’ (India Today) मैगजीन ने लोगों की जरूरतों को समझते हुए इसमें काफी बदलाव किए हैं।

नोटबंदी और जीएसटी की दोहरी मार

इन दिनों मीडिया इंडस्‍ट्री खासकर प्रिंट इंडस्‍ट्री के सामने पिछले आठ-दस महीनों से आ रहीं चुनौतियां आर्थिक परिवेश के कारण ज्‍यादा हैं। नोटबंदी और जीएसटी के कारण विज्ञापन पर होने वाले खर्च में कटौती आई है और टीवी अथवा डिजिटल के मुकाबले प्रिंट पर इसका सबसे ज्‍यादा प्रभाव पड़ा है।

मैगजीन पब्लिशर्स के सामने आ रहीं चुनौतियों की चर्चा करते हुए कारवां’  मैगजीन के एडिटर और दिल्ली प्रेसके एग्जिक्‍यूटिव डायरेक्‍टर अनंत नाथ ने कहा, ‘ कंज्‍यूमर प्रॉडक्‍ट ऐडवर्टाइजिंग पर सबसे ज्‍यादा निर्भर रहने मैगजीन्‍स पर काफी उल्‍टा प्रभाव पड़ा है। मैगजीन्‍स के सामने दूसरी बड़ी चुनौती इनका डिस्‍ट्रीब्‍यूशन है। मेरे विचार से यह कहना कि लोग ऑनलाइन पढ़ रहे हैं और इसी कारण प्रिंट में गिरावट दर्ज हो रही है, वह इस समस्‍या का सिर्फ छोटा सा भाग है।’ 

नाथ का मानना है कि यदि लोगों को आसानी से उपलब्‍ध हो तो वे आज भी प्रिंट पब्लिकेशंस को खरीदने के लिए तैयार हैं। उनका कहना है, ‘यदि प्रिंट को लोगों के घर पर उपलब्‍ध करा दिया जाए अथवा उन्‍हें ऐसी जगह पर रख दिया जाए, जहां से लोग आसानी से उसे प्राप्‍त कर सकें तो लोग मैगजीन को खरीदने के लिए तैयार हैं। मैगजीन के साथ सबसे बड़ी समस्‍या यह रही है कि इंडस्‍ट्री अभी तक यह व्‍यवस्‍था नहीं बना पाई है जिससे लोगों को यह आसानी से उपलब्‍ध हो सके। हम लगातार इस दिशा में लगे हुए हैं कि रीडर मैगजीन खरीदने के लिए कुछ प्रयास करें।’   

आगे का सफर

हालांकि, आज के डिजिटल युग में रीडर्स को मैगजीन की ओर प्रेरित करना पब्लिशर्स के लिए चुनौती बना हुआ है लेकिन अच्‍छी बात यह है कि रीडर्स को मैगजीन के रूप में अभी भी प्रिंट कंटेंट पसंद आ रहा है। मीडिया विशेषज्ञों का भी कहना है कि मैगजीन जर्नलिज्‍म कंज्‍यूमर से गहराई तक जुड़ा है और टीवी व डिजिटल में इसकी कमी है। हालांकि उनका यह भी सुझाव है कि रीडरशिप को बनाए रखने और बढ़ाने के लिए डिस्‍ट्रीब्‍यूशन की दिशा में काफी काम करना होगा ताकि यह रीडर्स तक आसानी से पहुंच सके।

आउटलुक हिन्‍दी’ (Outlook Hindi) के पूर्व एडिटर-इन-चीफ और वरिष्‍ठ पत्रकार आलोक मेहता का इस बारे में कहना है, ‘मुझे लगता है कि मैगजीन जर्नलिज्‍म लोगों से गहराई तक जुड़ी हुई है। यह टीवी और डिजिटल जैसा मामला नहीं हैं, मैगजीन पब्लिशर्स के लिए यह अच्‍छी बात है और वह इसका लाभ उठा सकते हैं। लेकिन इसमें यह भी देखना होगा कि मैगजीन पब्लिशर्स किस तरह उन स्‍टोरी को पाठकों को परोसते हैं और न्‍यू मार्केटिंग की जरूरतों को कैसे पूरा करते हैं।

देश के बड़े मैगजीन पब्लिशर्स में शुमार स्‍पेंटा मल्‍टीमीडिया’ (Spenta Multimedia) के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्‍टर मानेक डावर का कहना है, ‘देश के मैगजीन पब्लिशर्स को इन दिनों काफी तनाव के दौर से गुजरना पड़ रहा है।डावर का मानना है कि इस स्थिति के पीछे ऐडवर्टाइजिंग रेवेन्‍यू और रीडरशिप की संख्‍या सबसे बड़ा कारण है।

उनका कहना है, ‘वैसे तो इस स्थिति के कई कारण हैं लेकिन सबसे बड़ा कारण यह है कि युवा पीढ़ी डिजिटल कंटेंट को ज्‍यादा महत्‍व दे रही है और मैगजीन नहीं पढ़ रही है। दूसरी बात यह है कि ग्‍लोबल स्‍तर पर अधिकांश मैगजीन्‍स ऑनलाइन सबस्क्रिप्‍शन भी देती हैं जबकि भारत में इस मॉडल को फॉलो करना काफी मुश्किल है। लेकिन एक अच्‍छी बात यह है कि लोग डिजिटल के मुकाबले प्रिंट को ज्‍यादा भरोसमंद मानते हैं, जिसका इसे सबसे ज्‍यादा फायदा मिल सकता है।’    

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि डिजिटल ज्‍यादा आसानी से लोगों को हासिल हो रहा है, जिसकी वजह से ही यह ज्‍यादा लोकप्रिय हो रहा है। लोगों के लिए आजकल मोबाइल और लैपटॉप पर न्‍यूज देखना काफी आसान हो गया है। लेकिन मैगजीन का लंबा फॉर्मेट और विश्‍लेषणात्‍मक जर्नलिज्‍म क्‍या इस लोकप्रिय प्‍लेटफार्म को पछाड़ पाएगा?

इस बारे में नाथ का कहना है कि मैगजीन जर्नलिज्‍म की अपनी खासियत है जिसे किसी और प्‍लेटफार्म से रिप्‍लेस नहीं किया जा सकता है। उनका मानना है कि सभी फॉर्मेट की अपनी चुनौतियां हैं। नाथ के अनुसार, ‘अधिकांश मामलों में ऑनलाइन रीडिंग में सिर्फ न्‍यूज, करेंट अफेयर्स और ब्रेकिंग न्‍यूज लोगों को मिल जाते हैं लेकिन हम अपनी मैगजीन में जो आर्टिकल्‍स छापते हैं, वह विषय को काफी गहराई से बताते हैं और लोगों को आकर्षित करते हैं। ऐसे लोग जो इन आर्टिकल्‍स को पढ़ना चाहते हैं, उनके लिए मोबाइल फॉर्मेट आइडियल नहीं है। इसके अलावा ऑनलाइन मीडिया में बीच में कई सारी चीजें ध्‍यान भटकाने वाली आती हैं, जिससे पढ़ने के लिए एकाग्रता नहीं मिल पाती है। भारत की बड़ी आबादी को देखते हुए यहां प्रिंट की वृद्धि और स्थिरता की काफी संभावनाएं हैं। इसलिए प्रिंट का महत्‍व हमेशा बना रहेगा। यह ऑनलाइन मीडिया के साथ चलता रहेगा और मीडिया में संतुलन बना रहेगा।

 

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