कल रात पुणे हवाईअड्डे पर फ्लाइट का इंतज़ार करते-करते जब थक...
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हिमांशु का यूं चले जाना....
नीरज नैयर
कल रात पुणे हवाईअड्डे पर फ्लाइट का इंतज़ार करते-करते जब थक गया, तो फेसबुक खंगालने लगा तभी मेरी नज़र एक ऐसी खबर पर पड़ी, जिसने मुझे कुछ देर के लिए पूरी तरह सुन्न कर दिया। यह खबर थी, मेरे टीवी पत्रकार दोस्त हिमांशु गिरी के निधन की।
इस खबर के कुछ देर पहले ही मैं सोच रहा था कि हिमांशु से लंबे समय से बात नहीं हुई है। कल सुबह सबसे पहले उसे फ़ोन लगाऊंगा। लेकिन मुझे पता नहीं था कि वो सुबह कभी नहीं आएगी।
हिमांशु से मेरी मुलाकात ‘आज’ अख़बार, आगरा में हुई थी। उन दिनों हम बतौर ट्रेनी पत्रकार पत्रकारिता की बारीकियों को समझ रहे थे। हिमांशु को शुरू से ही कैमरे के सामने माइक पकड़कर खड़े होने का शौक था। जब हम प्रेस में अकेले होते थे, तो वो कलम को माइक बनाकर रिपोर्टिंग शुरू कर देता। हिमांशु उन लोगों में से था, जो माहौल को गंभीर बनाकर काम के बोझ तले दबना नहीं जानते। वो खबरे लिखते-लिखते भी चुटकुला सुना दिया करता था और कई बार उसके चुटकुलों के चक्कर में हमें सिटी चीफ से डांट भी सुनने को मिली।
मुझे हिमांशु के साथ वो फर्स्ट असाइनमेंट आज भी याद है, जब हमें आगरा के अवैध पक्षी व्यापार पर एक रिपोर्ट तैयार करने को कहा गया था। हिमांशु इसे लेकर बेहद रोमांचित था और मैं थोड़ा नर्वस। क्योंकि ऐसे लोगों के बीच जाकर जांच-पड़ताल करना जो कुछ भी कर गुजरने के तैयार हों, मुश्किल तो होता ही है। हम कई दिनों तक बाज़ारों में घूमें, पुलिसकर्मियों से बातचीत की और आखिरकार एक अच्छी रिपोर्ट तैयार हुई। हिमांशु ने उस वक़्त मुझसे कहा था, “मेरे भाई, यही रोमांच तो पत्रकारिता का मज़ा है, अगर सीधे-सीधे ही काम करना है तो फिर कोई सरकारी नौकरी क्या बुरी है.”
नही रहे हिमांशु भाई
संदीप सिंह गुसैन
बात वर्ष 2010 की है जब पहली बार मैं अल्मोडा गया था। मेरो पहाड की शूट के दौरान वहां बडे भाई हिमांशु गिरि से मुलाकात हुई।हिमांशु भाई ने जिस गर्मजोशी से स्वागत किया वो हमेशा यादगार रहेगा। कुमाउनी संस्कृति परम्पराएं और समस्याओं को जितनी शिद्दत से हिमांशु भाई ने उठाया वो हमेशा याद रहेगा।उस दौरान हमने कई मुद्दों पर चर्चा की और गोल्जू देवता,अल्मोड़ा शहर की कई खबरें भी की। उसके बाद उनका ट्रान्सफर रामपुर हो गया। लेकिन हिमांशु भाई ने जो अपने अल्मोड़ा कार्यकाल के दौरान पहाड़वासियों का दिल जीत लिया।हमेशा याद आओगे दाज्यू...................
राजेश रैना जी हिमांशु के परिवरा के लिए कुछ कीजिए, प्लीज...
राहुल सिंह शेखावत
मुझे पूर्व चैनेल में अपनी पहली पारी में हिमांशु गिरी का दोस्ताना साथ मिला,,,जिसने अल्मोड़ा में तैनात रहते उस शहर के मिजाज को समझते हुए बेहतर काम किया था,,,उसके बाद घर वापसी की चाह में हिमांशु पहले रामपुर और फिर अपने घर बरेली तबादला होकर चला गया,,,,और अब अचानक एक्सीडेंट के बाद मौत की खबर पता चली है,,, कुदरत के क्रूर मजाक से उसकी पत्नी और 2 छोटे बच्चों के भविष्य के सामने प्रश्नचिन्ह लग गया है,,, राजेश रैना जी आपको ईटीवी में 16 साल पूरे करने पर दिल से बधाई,,,, अगर आप हिमांशु के परिवार के लिए कुछ कर पाएं तो जरूर कीजियेगा क्योंकि वो बहुत मेहनती और ईमानदार रिपोर्टर था,,,, हिमांशु तुम्हारी वो आवाज याद आ रही है जब फ़ोन पर मेरे बोलने से पहले ही मस्त अंदाज में बोलते थे "ओहो दाज्यू के हरै "
बस यादों का कारवाँ होगा
पीयूष राय
नोवेल्टी चौराहे पर नाज़िम की चाय की दुकान पर शाम मे अक्सर पत्रकारों का जमावड़ा लगता हैं। प्रेस क्लब की कमी को भुनाने का शायद यह एक प्रयास था जहाँ छोटे बड़े मीडिया घराने के सभी पत्रकार दिन भर में एक बार मत्था ज़रूर टेक जाते थे। छोटी क़द काठी के हिमांशु गिरी से मेरी सैकड़ों मुलाक़ातें यही चाय पर हुई है। जब ख़बरों पर वाद विवाद और बहस का दौर शुरू होता था तो वह देर रात ही थमता था। कई ख़बरों पर साथ काम करने का भी मौक़ा मिला लेकिन अब सब थम जाएगा। यह ज़िंदगी अगर रंगमंच है तो आज एक किरदार हमेशा के लिये कम हो गया। आज शोक की लहर है कल तक रंगमंच के बाक़ी किरदार अपनी अपनी जद्दोजहद मे मशगूल हो जाएँगे और शायद मेरे साथ भी यही होगा। पीछे मुड़ देखना अब बेमानी होगी, बस यादों का कारवाँ होगा।
तेरे जैसा यार कहाँ
अमित नारायण शर्मा
तेरे जैसा यार कहाँ कहाँ ऐसा याराना
याद करेगी दुनिया तेरा यूँ चले जाने
आज एक अहसास मौन हो गया
अवधेष यादव
आज एक अहसास मौन हो गया
क्या नाता शून्य अनंत हो गया
दोस्त सहकर्मी हो वहम गया
चेतना हुई गुम व्योम छा गया