हिमांशु: तेरे जैसा यार कहाँ, कहाँ ऐसा याराना याद करेगी दुनिया तेरा यूँ चले जाना...

कल रात पुणे हवाईअड्डे पर फ्लाइट का इंतज़ार करते-करते जब थक...

समाचार4मीडिया ब्यूरो by
Published - Tuesday, 10 October, 2017
Last Modified:
Tuesday, 10 October, 2017
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हिमांशु का यूं चले जाना.... 

नीरज नैयर

कल रात पुणे हवाईअड्डे पर फ्लाइट का इंतज़ार करते-करते जब थक गया, तो फेसबुक खंगालने लगा तभी मेरी नज़र एक ऐसी खबर पर पड़ी, जिसने मुझे कुछ देर के लिए पूरी तरह सुन्न कर दिया। यह खबर थी, मेरे टीवी पत्रकार दोस्त हिमांशु गिरी के निधन की।

इस खबर के कुछ देर पहले ही मैं सोच रहा था कि हिमांशु से लंबे समय से बात नहीं हुई है। कल सुबह सबसे पहले उसे फ़ोन लगाऊंगा। लेकिन मुझे पता नहीं था कि वो सुबह कभी नहीं आएगी।

हिमांशु से मेरी मुलाकात ‘आज’ अख़बार, आगरा में हुई थी। उन दिनों हम बतौर ट्रेनी पत्रकार पत्रकारिता की बारीकियों को समझ रहे थे। हिमांशु को शुरू से ही कैमरे के सामने माइक पकड़कर खड़े होने का शौक था। जब हम प्रेस में अकेले होते थे, तो वो कलम को माइक बनाकर रिपोर्टिंग शुरू कर देता। हिमांशु उन लोगों में से था, जो माहौल को गंभीर बनाकर काम के बोझ तले दबना नहीं जानते। वो खबरे लिखते-लिखते भी चुटकुला सुना दिया करता था और कई बार उसके चुटकुलों के चक्कर में हमें सिटी चीफ से डांट भी सुनने को मिली।

मुझे हिमांशु के साथ वो फर्स्ट असाइनमेंट आज भी याद है, जब हमें आगरा के अवैध पक्षी व्यापार पर एक रिपोर्ट तैयार करने को कहा गया था। हिमांशु इसे लेकर बेहद रोमांचित था और मैं थोड़ा नर्वस। क्योंकि ऐसे लोगों के बीच जाकर जांच-पड़ताल करना जो कुछ भी कर गुजरने के तैयार हों, मुश्किल तो होता ही है। हम कई दिनों तक बाज़ारों में घूमें, पुलिसकर्मियों से बातचीत की और आखिरकार एक अच्छी रिपोर्ट तैयार हुई। हिमांशु ने उस वक़्त मुझसे कहा था, “मेरे भाई, यही रोमांच तो पत्रकारिता का मज़ा है, अगर सीधे-सीधे ही काम करना है तो फिर कोई सरकारी नौकरी क्या बुरी है.” 

हिमांशु को जब ईटीवी में नौकरी मिली, तो इस खबर के बारे में उसके परिवार के बाद शायद मुझे सबसे पहले पता चला होगा। उसने ऑफिस में किसी से इस बारे में जिक्र नहीं किया, मुझसे बस इतना कहा कि साइबर कैफ़े चल एक ज़रूरी मेल भेजना है। उसके चेहरे के हावभाव और मेल भेजने की जल्दबाजी से मैं भांप गया कि ये कोई सामान्य मेल नहीं है। जब मैंने जोर दिया तो उसने बताया कि उसे आख़िरकार माइक थामने का मौका मिल गया है।

इसके कुछ दिनों बाद वो आगरा छोड़कर चला गया, फिर हमारी कभी मुलाकात नहीं हुई। फ़ोन पर बातें हुईं, मगर इतनी कम कि ज्यादा कुछ याद नहीं। हां, एक बार ज़रूर मैंने अपने नए नंबर से फ़ोन लगाकर उसे खूब परेशान किया, उस वक़्त उसने कहा था ‘चल इस बहाने बात तो हुई, वरना काम के चक्कर में तो हम एक-दूसरे को भूल ही जाते हैं.’ हिमांशु मौकापरस्त नहीं बल्कि मदद करने वाला दोस्त था, जिंदादिली और ख़ुशमिज़ाजी उसके जीवन का मंत्र थी। भगवान उसकी आत्मा को शांति दे. इस बात का अफ़सोस मुझे हमेशा रहेगा कि मैंने उससे बात करने का पहले क्यों नहीं सोचा....

अभी 10 दिन पहले ही मिलने की कह रहा था...
भास्कर युगल
कॉलेज के बाद हम सब दोस्त बिछुड़ से ही गए थे। दो-चार साल पर कभी बात हो जाती थी। कई सालों बाद अभी दस दिन पहले अचानक बरेली का कोई बंदा टकरा गया, तो मुझे हिमांशु की याद आई तो उसे फोन लगाया, बहुत दिनों बाद बात हुई थी। कॉलेज वाला हिमांशु आज बहुत अदब से बात कर रहा था, बार-बार घर आने का न्योता दे रहा था। पर आज सुबह जब उसके न रहने की बात सुनी, तो सन्न सा रह गया हूं। भाई कैसे अब तुम्हारे घर आऊं, कदम ठिठक से गए है...

वह खिलखिलाता चेहरा जो अब मौन हो गया
 विनती शर्मा
समझ नहीं आ रहा कि कैसे शुरू करूं। किसी का इस दुनिया से जाना बहुत सी जिंदगियों को ठहरा देता है। हिमांशु भी जिंदगियों को ठहरा कर चला गया। हमेशा खिलखिलाने वाले हिमांशु के जाने से उसके परिवार के साथ उससे जुड़े लोग भी गमगीन हैं। आज सुबह वह न जाने कितनों की जिंदगियों को गमगीन कर गया। सुबह-सुबह पता चला कि एक्सिडेंट के दसवें दिन वह अस्पताल में अपनी जिंदगी से जंग हार गया। 
मेरे सामने अभी चुलबुले हिमांशु का खिलखिलाता हुआ चेहरा आ रहा है। हिमांशु ने हमारे साथ केएमआई आगरा से जर्नलिज्म में मास्टर्स डिग्री की पढाई पूरी की थी। वह बहुत ही नटखट और शरारती किस्म का था। साथ ही पढ़ाई में भी तेज था, इसलिए सभी से उसकी बोलचाल थी। उसका बात-बात में चुटकुले सुनाना कोई नहीं भूल सकता। उसका सेंस आॅफ ह्यूमर गजब का था। वह क्लास के भाग्यशाली छात्रों में से एक था क्योंकि वह ऐसे पहला कैंडिडेट था जिसका पढाई के दौरान ही ईटीवी जैसे बड़े मीडिया हाउस में सिलेक्शन हो गया था। सिलेक्शन के साथ ही उसने कंपनी ज्वाॅइन कर ली और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। कभी-कभी उससे फोन पर बात हो जाती थी। वह अक्सर आगरा आने और सबसे मिलने की इच्छा जाहिर करता था। सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर भी वह अपनी पोस्ट अक्सर शेयर किया करता था। जब भी उसकी कोई रिपोर्ट न्यूज बुलेटिन में टेलिकास्ट होती तो वह मुझे वॉट्सएप के जरिए पहले से बता देता था। करीब 13 साल तक ईटीवी में अपनी सेवाएं देने के दौरान उसके अचानक इस दुनिया से चले जाने की खबर ने विचलित कर दिया। अब जब उसके बारे में लिख रही हूं तो उसका खिलखिलाता हुआ चेहरा मेरे सामने आ रहा है। वह अकसर काॅलेज बिल्डिंग के नीचे बाइक पर बैठे जाया करता था और अपनी बातों से सभी का मनोरंजन किया करता था। उसके चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट रहती थी। लेकिन अफसोस ये खिलखिलाता हुआ चेहरा अब बस स्मृति शेष रह गया है। हिमांशु के इतने जल्दी जाने का अफसोस है लेकिन उसने इतनी कम आयु में इतना कुछ पाया इसका गर्व। तुम बहुत याद आओगे हिमांशु। 


सोच रहा था सुबह बैंक जाऊंगा ....मगर अब क्या सब माटी
शंकर देव तिवारी 
हिमांशु गिरि का पत्रकारिता प्रिंट से शुरू हुई।  वे 2004 में आगरा में पढ़ने आये थे, तभी प्रशिक्षण बटोरने के लिए 'आज' अखबार में लगे। मैं शहर प्रभारी था। गिरि के साथ पंकज, नीरज नैयर, विजय बघेल आदि भी थे, मगर हिमांशु प्रतिभावान था। उसे प्रशासन की बीट दी। 
वह 2004 में आगरा में आज अखबार में विवि. से पत्रकारिता का कोर्स करके आये थे। सम्पादक आर बी सिंह ने तीन लड़के दिए थे काम सीखने के लिए, जिनमें एक हिमांशु भी थे।आज वो हमारे बीच नहीं हैं।प्रशासन बीट देखी थी। मेरे दैनिक भास्कर में जाने से पहले ही उसकी जॉब ई टीवी में लग गयी।उसके साथी पंकज तिवारी ..प्रभाकर शर्मा और विजय बघेल अलग अलग स्थानों पर है। हिमांशु की पोस्टिंग जहां जहा रही सवेरे से रिपोर्ट देते रहे। बरेली में जाकर भी यह क्रम जारी था, आज अभिषेक की खबर से पता चला कि वह दिल्ली में है . और अभी रात्रि 1.44 पर आरिफ की पोस्ट देखि..असहनीय है मेरे लिए। बहु छोटी ही है दो बच्चे हैं ..अभिषेक की खबर से बैंक नंबर लिया था, सोच रहा था सुबह बैंक जाऊंगा ....मगर अब क्या सब माटी ॐ नमः शांति .....कलम का धनी में जिन कुछ लोगों को मानता हूँ उनमें से एक हिमांशु भी हे... 
वह था ही ऐसा ..हम और वो तब तक डेस्क से नहीं उठते थे जब तक की औरों का छोड़ा काम नहीं खत्म कर लेते थे ...हिमांशु नाम नहीं काम था . विज्ञप्तियों का दौर ..हाथ से लिखने की आज अखबार की परम्परा ..प्रशासन , हेल्थ ,और क्राइम की भी ख़बरें जरूरत पडी तो डाक की भी ख़बरें ..वह रास्ता पूछता था बताता भी था हिमांशु का कहना होता था सर कोई भी विज्ञप्ति नहीं रहनी चाहिए ....एक नई परम्परा का प्रत्येक पेज पर संक्षिप्त की उन्हीं दिनों प्रयोग की थी ..वह परम्परा भास्कर, बीपीएन टाइम्स तक खूब काम आई .हिमांशु की यादें ..नीरज, पंकज, भास्कर .....हमारे साथ अभी याद करने को हैं ..बस अब हर रोज की सुवह वाली खबर नहीं मिलेगी ..ॐ शांति ....मेरा नमन .......

इस दिल को लगा कर ठेस कहाँ तुम चले गए
नीरज चक्रपाणि

मेरे साथ आगरा के डॉ. भीम राव अम्बेडकर विश्वविद्यालय में पत्रकारिता की पढ़ाई कर दैनिक आज से करियर की शुरूआत की।बर्तमान में etv बरेली में कार्य कर रहे बहुत ही मृदुल स्वभाव हिमांशु गिरी के हाथों बने वो दाल चावल आज भी याद आते है।जब उनके रूम पर में पकंज तिवारी, गजेंद्र यादव, अभिषेक मेहरोत्रा, भास्कर युगल पहुंच जाते थे।वही 1 ही थाली में सभी लोग हिमांशु के हाथों बने दाल चावल का आनंद लेते थे।आज मेरा प्यारा मित्र हमेशा के लिए हमसे दूर चला गया।भगवान उसकी आत्मा को अपने चरणों मे स्थान दें।
ॐ शांति शांति शांति।


सोचता ही रह गया...
पंकज तिवारी
मेरा प्रिय मित्र...हिमांशु। सिर्फ पत्रकारिता ही नही जिंदगी को जिंदादिली से जीने वाला जाबाज़। पत्रकारिता जैसे उसके खून में मिली थी। शुरू से नया करने का जुनूनी। आगरा में आज अखबार में उसके साथ काम करने का मौका मिला। कई दिन से उससे बात नही हुई। सोचता ही रह गया...

सब छीन लिया तुमने प्रभु...
हेमंत जोशी
हे ईश्वर, ये कैसी विम्डबना है...इतनी अच्छी मानवरूप आत्मा को इस धरती पर भेजा,हमारा मित्र बना, प्यार,भाई व्यवहार,सदाचार सभी कुछ था हिमांशु जी के पास!! सब छीन लिया तुमने प्रभु...यह नाइंसाफी है
मुझे बेहद द्ख है... विश्वास ही नही है कि ईश्वर आप क्रूर हो या आपने अपने प्रिय को मात्र इतने दिनो के लिये ही हमारे पास भेजा था...
मैं पूरे परिवार को इस असीम दुख को सहन कर पाने के लिये ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ और ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि पुण्य आत्मा को स्वर्ग में स्थान दें...

 अब हो नही ये सोचकर बहुत परेशान है हम
अखिल दीक्षित
कुछ भी न हुआ हो जैसे अभी यकीन नही आता, हॉस्पिटल के हाल मिल जाते थे, कभी किसी से बहुत कुछ पूछने की हिम्मत नही जुटा पाया। डर था कि कोई कुछ कह न दे, हो गया उसी डर से सामना, हम बहुत दिनों साथ रहे, अब हो नही ये सोचकर बहुत परेशान है हम। परिवार का क्या हॉल होगा भगवान सभी को दुख सहने की शक्ति दे। हिमान्शु हम सब हमेशा बहुत याद करेंगे तुम्हे।


नही रहे हिमांशु भाई

संदीप सिंह गुसैन
बात वर्ष 2010 की है जब पहली बार मैं अल्मोडा गया था। मेरो पहाड की शूट के दौरान वहां बडे भाई हिमांशु गिरि से मुलाकात हुई।हिमांशु भाई ने जिस गर्मजोशी से स्वागत किया वो हमेशा यादगार रहेगा। कुमाउनी संस्कृति परम्पराएं और समस्याओं को जितनी शिद्दत से हिमांशु भाई ने उठाया वो हमेशा याद रहेगा।उस दौरान हमने कई मुद्दों पर चर्चा की और गोल्जू देवता,अल्मोड़ा शहर की कई खबरें भी की। उसके बाद उनका ट्रान्सफर रामपुर हो गया। लेकिन हिमांशु भाई ने जो अपने अल्मोड़ा कार्यकाल के दौरान पहाड़वासियों का दिल जीत लिया।हमेशा याद आओगे दाज्यू...................


राजेश रैना जी हिमांशु के परिवरा के लिए कुछ कीजिए, प्लीज...

राहुल सिंह शेखावत

मुझे पूर्व चैनेल में अपनी पहली पारी में हिमांशु गिरी का दोस्ताना साथ मिला,,,जिसने अल्मोड़ा में तैनात रहते उस शहर के मिजाज को समझते हुए बेहतर काम किया था,,,उसके बाद घर वापसी की चाह में हिमांशु पहले रामपुर और फिर अपने घर बरेली तबादला होकर चला गया,,,,और अब अचानक एक्सीडेंट के बाद मौत की खबर पता चली है,,, कुदरत के क्रूर मजाक से उसकी पत्नी और 2 छोटे बच्चों के भविष्य के सामने प्रश्नचिन्ह लग गया है,,, राजेश रैना जी आपको ईटीवी में 16 साल पूरे करने पर दिल से बधाई,,,, अगर आप हिमांशु के परिवार के लिए कुछ कर पाएं तो जरूर कीजियेगा क्योंकि वो बहुत मेहनती और ईमानदार रिपोर्टर था,,,, हिमांशु तुम्हारी वो आवाज याद आ रही है जब फ़ोन पर मेरे बोलने से पहले ही मस्त अंदाज में बोलते थे "ओहो दाज्यू के हरै "


बस यादों का कारवाँ होगा

पीयूष राय

नोवेल्टी चौराहे पर नाज़िम की चाय की दुकान पर शाम मे अक्सर पत्रकारों का जमावड़ा लगता हैं। प्रेस क्लब की कमी को भुनाने का शायद यह एक प्रयास था जहाँ छोटे बड़े मीडिया घराने के सभी पत्रकार दिन भर में एक बार मत्था ज़रूर टेक जाते थे। छोटी क़द काठी के हिमांशु गिरी से मेरी सैकड़ों मुलाक़ातें यही चाय पर हुई है। जब ख़बरों पर वाद विवाद और बहस का दौर शुरू होता था तो वह देर रात ही थमता था। कई ख़बरों पर साथ काम करने का भी मौक़ा मिला लेकिन अब सब थम जाएगा। यह ज़िंदगी अगर रंगमंच है तो आज एक किरदार हमेशा के लिये कम हो गया। आज शोक की लहर है कल तक रंगमंच के बाक़ी किरदार अपनी अपनी जद्दोजहद मे मशगूल हो जाएँगे और शायद मेरे साथ भी यही होगा। पीछे मुड़ देखना अब बेमानी होगी, बस यादों का कारवाँ होगा।


तेरे जैसा यार कहाँ

अमित नारायण शर्मा

तेरे जैसा यार कहाँ कहाँ ऐसा याराना 

याद करेगी दुनिया तेरा यूँ चले जाने


आज एक अहसास मौन हो गया 

अवधेष यादव

आज एक अहसास मौन हो गया 

क्या नाता शून्य अनंत हो गया 

दोस्त सहकर्मी हो वहम गया 

चेतना हुई गुम व्योम छा गया





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