प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की तर्ज पर इस बार निर्वाचन आयोग की नजर सोशल मीडिया पर भी रहेगी,,,
समाचार4मीडिया
ब्यूरो ।।
चुनावी विज्ञापन को लेकर इस बार भारत निर्वाचन आयोग की नजर सोशल मीडिया पर भी रहेगी। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की तर्ज पर चुनाव प्रचार संबंधित कानूनी प्रावधान सोशल मीडिया पर भी लागू किया गया है।
इस प्रावधान के तहत कोई
भी राजनीतिक दल या प्रत्याशी बिना सक्षम प्राधिकारी के पूर्व प्रमाणन के सोशल
मीडिया पर चुनावी विज्ञापन नहीं दे सकता है। इस तरह की सामग्री का प्रकाशन किए
जाने पर इसे प्रचार व्यय में जोड़ा जाएगा। इसके लिए व्यय लेखा भी तैयार करना होगा।
निर्वाचन आयोग द्वारा इस संबंध में जारी दिशा निर्देशों में साफ किया गया है कि सोशल मीडिया मसलन ट्विटर, फेसबुक, यूट्यूब, विकीपीडिया और ऐप्स आदि पर कोई भी विज्ञापन या एप्लीकेशन देने से पहले इसकी अनुमति अवश्य ली जाए। यह अनुमति मीडिया सर्टिफिकेशन ऑफ मॉनीटरिंग कमेटी (एमसीएमसी) देगी। इसके लिए राजनीतिक दलों व प्रत्याशियों को निर्धारित प्रारूप में आवेदन करना होगा।
चुनावी खर्चे में उन व्यक्तियों
एवं टीम के वेतन व भत्ते भी शामिल होंगे, जो उम्मीदवार या राजनीतिक दल का सोशल
मीडिया अकाउंट या वेबसाइट संचालित करने का काम करते हैं। ऐसे में जाहिर है कि सोशल
मीडिया के माध्यम से प्रचार करना राजनीतिक पार्टियों के लिए महंगा होगा।
आयोग ने चुनाव प्रचार के लिए राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों और उनके समर्थकों द्वारा मोबाइल पर बल्क में भेजे जाने वाले एसएमएस और वॉयस मैसेज का भी इन्हें जारी करने से पूर्व एमसीएमसी से प्रमाणित कराना अनिवार्य कर दिया है। आयोग ने कहा है कि यह जरूरी है कि बल्क एसएमएस एवं वॉयस मैसेज की भी मॉनीटरिंग की जाए, ताकि चुनाव प्रचार अभियान के दौरान इस सुविधा का दुरुपयोग न हो सके।
आयोग ने बल्क एसएमएस को
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का ही एक हिस्सा मानते हुए कहा है कि चुनाव प्रचार अभियान के
दौरान भेजे जाने वाले सभी तरह के बल्क एसएमएस एवं वॉयस मैसेज भेजने पर किया गया
खर्च राजनीतिक दलों एवं उम्मीदवारों को निर्वाचन व्यय लेखे में शामिल करना होगा।
आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि सोशल मीडिया पर भी आचार संहिता पूरी तरह से लागू रहेगी, साथ ही वेबसाइट और सोशल मीडिया अकाउंट पर पोस्ट की जाने वाली सामग्री इसके अधीन रहेगी।