डॉ. वैदिक ने 'तीन तलाक' को फौजदारी कानून के तहत रखने पर उठाया सवाल...

मुसलमानों में चली आ रही तीन तलाक की प्रथा को हमारे सर्वोच्च न्यायालय ने तीन माह पहले अवैध घोषित कर दिया था...

समाचार4मीडिया ब्यूरो by
Published - Sunday, 26 November, 2017
Last Modified:
Sunday, 26 November, 2017
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वेद प्रताप वैदिक

वरिष्ठ पत्रकार ।।

अब तीन तलाक़ को तलाक़

मुसलमानों में चली आ रही तीन तलाक की प्रथा को हमारे सर्वोच्च न्यायालय ने तीन माह पहले अवैध घोषित कर दिया था। फिर भी सरकार इस प्रथा के विरुद्ध शीघ्र ही कानून बनाने जा रही है। कुछ लोगों का कहना है कि मुस्लिम महिलाओं के वोट खींचने और कट्टर हिंदूवादी तत्वों को खुश करने के लिए मोदी सरकार यह दांव चल रही है लेकिन यह तथ्य है कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बावजूद तीन तलाक की कई घटनाएं सामने आई हैं। 

अलीगढ़ मुस्लिम विवि के एक प्रोफेसर ने हाल ही में अपनी पत्नी को ई-मेल और व्हाट्साप पर तलाक दे दिया। गांवों और छोटे शहरों में होने वाली ऐसी घटनाओं की चर्चा तक नहीं होती। ऐसी स्थिति में सरकार ऐसा कानून बनाना चाहती है, जिससे तीन तलाक देने वालों को सजा मिल सके। सजा के डर से वे तीन तलाक देने से बाज़ आएंगे। 

यहां हम कहेंगे कि सरकार की मंशा तो ठीक है लेकिन घरेलू वाद-विवाद को क्या फौजदारी कानून के तहत रखना ठीक है ? यदि तीन बार तलाक-तलाक बोलने वाले शौहर को पांच या दस साल की सजा का प्रावधान कर दिया जाए तो उसका नतीजा क्या निकलेगा? बीवी तो घर में रहेगी और मियां जेल में ! 

यह तो 5-10 साल का मियादी तलाक नहीं हो गया क्या? और फिर बीवी घर में तो रहेगी लेकिन खाएगी क्या? इसीलिए बेहतर होगा कि इस कानून को फौजदारी नहीं, दीवानी क्षेत्र में रखा जाए। आर्थिक जुर्माना कर देना काफी है। ऐसे मामलों को बातचीत और ठंडे दिमाग से हल करने पर भी जोर दिया जाना चाहिए। इससे भी ज्यादा जरुरी है कि सभी मुस्लिम संगठन इस कानून का जमकर प्रचार करें ताकि कोई भी शौहर अपनी बीवी को तीन तलाक देने की हिम्मत ही न करे।

इसके अलावा भारतीय मुस्लिम समाज के नेताओ को आगे आकर अनेक अन्य मुस्लिम कानूनों में सुधार के आंदोलन चलाने चाहिए। उन्हें चाहिए कि दुनिया भर के मुसलमानों का वे नेतृत्व करें। भारतीय मुसलमानों की इसे मैं खास जिम्मेदारी समझता हूं, क्योंकि उन्हें भारत की उदार, लचीली और सदा आधुनिक रहने वाली संस्कृति विरासत में मिली है। वे मुसलमान हैं तो वे इस्लाम में पूरी श्रद्धा रखें लेकिन अरबों के दकियानूसी रीति-रिवाजों को आंख मींचकर वे क्यों मानते रहें?

(साभार: नया इंडिया)


 

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